रावण राम से युद्ध में क्यों हारा? - raavan raam se yuddh mein kyon haara?

पंडित प्रवर श्री तिवारी जी ने रावण पर राम की विजय का बडा सुन्दर विश्लेषण किया है। नौएडा में नवरात्रि पर्व के अवसर पर आयोजित श्री रामकथा ज्ञान यज्ञ में उन्होंने कहा कि समर भूमि में रावण को अस्त्र शस्त्र से सुसज्जित रथारूढ तथा रामजी को नंगे पैर देख कर विभीषण घबरा गए। अधीर होकर पूछते हैं कि आप रावण जैसे सृष्टि के सर्वश्रेष्ठ योद्धा को बिना किसी साधन के कैसे जीत पाओगे ?


"केहि बिधि जितब वीर बलवाना"


रामजी ने समर भूमि में जो विभीषण को समझाया वह ठीक वैसी ही परिस्थिति है जो बाद में द्वापर युग में कृष्ण द्वारा गीता जी के प्राकट्य के समय बनी। रामजी ने विभीषण को समझाया कि पहले तो तुम वीर शब्द को ठीक से समझो। 

कहा कि:-

"महा अजय संसार रिपु जीति सकइ सो वीर"

रावण अजय है तो यह संसार रूपी रिपु महाअजय है। इस महा अजय को जो हरा दे उसे ही सही मायने में वीर कहा जाएगा। फिर राम जी ने विजय प्राप्त करने के साधन बताए। उन्होंने कहा कि शत्रु के आक्रमण से रक्षा करने के लिए युद्ध में कवच तो नितांत आवश्यक है। राम जी कहते हैं कि महा अजय के प्रहार से बचाने का कवच है-विद्वज्जनों,शुद्ध आचरण वाले प्रभु भक्त ज्ञानियों ,पूज्य जनों का आश्रय। 


"कवच अभेद विप्र गुरु पूजा। एहि सम विजय उपाय न दूजा।।"

पंडित जी ने बताया कि युद्ध में जितना यह जानना ज़रूरी है कि राम जी कैसे जीते उतना ही यह जानना भी ज़रूरी है कि संसार का सबसे बलशाली,सबसे बड़ा योद्धा,सबसे धनवान,विशाल सेना वाला रावण हारा कैसे ?

--रावण के युद्ध में मारे जाने के उपरांत प्रत्यक्षदर्शी देवताओं ने वापस जाकर महाराज दशरथ को तुरंत सूचना दी कि आपके पुत्र राम ने मृत्युलोक में अजेय रावण को मार दिया है तो प्रसन्नता में दशरथजी लंका की समर भूमि में आकर अपने पुत्र को देखने आए और पराक्रम देख कर पुलकायमान हो गए। 

"तेहि अवसर दशरथ तहँ आए। तनय विलोकि नयन जल छाए।।
अनुज सहित प्रभु बंदन कीन्हा। आसिरवादु पितॉं तब दीन्हा। "

 और रामजी ने अजय निसाचर को जीत लेने का कारण वताया। 

"तात सकल तब पुन्य प्रभाऊ। जीत्यों अजय निसाचर राऊ।।"

बोले कि पूज्य पिताजी आपकी सेवा से आशीर्वाद का जो धन मैने एकत्र किया है उसी के पुण्य प्रताप से मैने अजेय को भी जीत लिया। 

 वनवास के समय रामजी का कथन था"मुनिगन मिलन विशेष  वन"---अर्थात वनवास है ही इसलिए कि मैं वन में जाकर तपस्यारत मुनियों के आशीर्वाद का धन,उनकी तपस्या का पुण्य एकत्र करके निसाचरों के बध की शक्ति प्राप्त कर सकूँ।

   रावण इसलिए हारा कि उसने अपने बड़ों का,पूज्यों का अपमान किया। जैसे वृद्ध माल्यवंत जिनको भरी सभा से निकाल दिया। आदि


विजयदशमी का संदेश है कि इस देवभूमि भारत में जीत उसी की होगी.श्रेय उसी को मिलेगा जो अपने माता पिता तथा श्रद्धेय जनों की समुचित सेवा ,सम्मान करता रहेगा,उनका आशीर्वाद लेता रहेगा। 

उल्लेख गुरू का भी है किंतु इस कलियुग में गुरु तो परमात्मा की कृपा से ही मिल सकता है। धनलोलुप व्यावसायिक लोग,धर्म और संस्कृति का छलावा दिखाकर समाज को ठगने वाले लोग चाहे ग्रुप पहनें,दाढ़ी बढ़ा लें,श्लोक बोलें ,क्छ भी ठगी करें गुरू नहीं हो सकते। बहुत सावधानी की आवश्यकता है। धन ऐंठने के लिए लालच में कुछ छद्म भगवा पहने ठग साईं को ही गुरू बनाकर पेश कर रहे हैं। इनसे बहुत दृढ़ता से निपटना होगा। 

अच्छे कार्य में कभी विलंब नहीं करना चाहिए। अशुभ कार्य को मोह वश करना ही पड़े तो उसे जितना हो सके उतना टालने का प्रयास करना चाहिए।

शक्ति और पराक्रम के मद में इतना अंधा नहीं हो जाना चाहिए की हर शत्रु तुच्छ और निम्न लगने लगे। मुझे ब्रह्मा जी से वर मिला था की वानर और मानव के अलावा कोई मुझे मार नहीं सकता। फिर भी मैं उन्हें
तुच्छ और निम्न समझ कर अहम में लिप्त रहा। जिस कारण मेरा समूल विनाश हुआ।

तीसरी और अंतिम बात रावण नें यह कही कि, अपने जीवन के गूढ रहस्य स्वजन को भी नहीं बताने चाहिए। चूंकि रिश्ते और नाते बदलते रहते हैं। जैसे की विभीषण जब लंका में था तब मेरा शुभेच्छु था। पर श्री राम की शरण में आने के बाद मेरे विनाश का माध्यम बना।

सार- अपने गूढ़ रहस्य अपने तक रखना, शुभ कर्म में देरी ना करना, गलत काम से परहेज़ करना, और किसी भी शत्रु को कमज़ोर ना समझना , यह अमूल्य पाठ हर एक इंसान को अपने जीवन में उतारना चाहिए।

लंकापति रावण त्रेता युग का सबसे हीन प्राणी के साथ-साथ एक ब्रह्मज्ञानी, कुशल राजनीतिज्ञ और बहु विधाओं का भी जानकार था। भगावन राम के साथ युद्ध में उसकी मौत हुई और मोक्ष की प्राप्ति की। ज्यादातर लोग जानते हैं कि रावण का युद्ध केवल श्रीराम के साथ हुआ था, जिसमें उसको हार मिली थी। लेकिन रावण केवल श्रीराम के हाथों ही नहीं हारा था बल्कि इससे पहले भी वह चार योद्धाओं के साथ युद्ध करके हार चुका था। एक योद्धा ने तो रावण को अपनी बाजू में दबाकर चार समुद्रों की परिक्रमा भी करवा दी थी। आइए जानते हैं कि राम के अलावा और किन लोगों से रावण हार चुका था...

राम और रावण के बीच युद्ध क्यों हुआ?

रामायण में अब तक कई प्रसंग दिखाए जा चुके हैं लेकिन राम-रावण का युद्ध बहुत अहम भाग है। क्योंकि राम-रावण का यह युद्ध केवल माता सीता को रावण की चुंगल से मुक्ति के लिए ही नहीं था बल्कि यह युद्ध असत्य पर सत्य की जीत के लिए भी था

रावण ने मरते समय राम से क्या कहा था?

ये राम मैं शक्ति में कही भी तुमसे पीछे नही था बल्कि में हर चेत्र में मैं तुमसे आगे ही था । फिर भी में तुमसे युद्ध यार गया क्यों क्योंकि मेरे पास लक्षण जैसा भाई नही था। इस लिए मैं ये युद्ध तुमसे हार गया। यही बात रावण ने राम से मरते वक्त कही होगी।

रावण को कौन कौन मार सकता था?

रावण ब्रह्मज्ञानी था, उसे पता था कि केवल भगवान राम ही उसे मुक्ति दिलवा सकते हैं। इसलिए वह भगवान राम से युद्ध में लीन हो गया और उसने अपने परिवार और वंश का भी नाश कर दिया।

रावण ने राम को क्या ज्ञान दिया?

अनिरुद्ध जोशी श्री राम और रावण के बीच हुए अंतिम युद्ध के बाद रावण जब युद्ध भूमि पर, मृत्युशैया पर पड़ा होता है तब भगवान राम, लक्ष्मण को समस्त वेदों के ज्ञाता, महापंडित रावण से राजनीति और शक्ति का ज्ञान प्राप्त करने को कहते हैं।