देश की सुरक्षा से क्या आशय है? - desh kee suraksha se kya aashay hai?

एक देश की अपनी सीमाओं के अंदर की सुरक्षा आंतरिक सुरक्षा है। इसमें अपने अधिकार क्षेत्र में शांति, कानून और व्यवस्था तथा देश की प्रभुसत्ता बनाए रखना मूलरूप से अंतर्निहित है।
  • बाह्य सुरक्षा से आंतरिक सुरक्षा कुछ मायनों में अलग है, क्योंकि विदेशी देशों के आक्रमणों से सुरक्षा प्रदान करना बाह्य सुरक्षा है। बाह्य सुरक्षा की जिम्मेवारी केवल देश की सेना की है जबकि आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेवारी पुलिस के कार्य क्षेत्र में आती है, जिसमें केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलों द्वारा मदद प्रदान की जाती है।
  • भारत में, आंतरिक सुरक्षा का उत्तरदायित्व ‘गृह मंत्रालय’ का और बाह्य सुरक्षा की जिम्मेदारी 'रक्षा मंत्रालय’ की है। कई देशों में गृह मंत्रालय को आंतरिक मामलों का मंत्रालय भी कहा जाता है।
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    खतरों का वर्गीकरण

    • कौटिल्य ने अर्थशात्र में लिखा है कि एक राज्य को चार प्रकार के खतरों का जोखिम हो सकता है
    1. आन्तरिक
    2. बाह्य
    3. आन्तरिक सहायता प्राप्त बाह्य
    4. बाह्य सहायता प्राप्त आन्तरिक
    • भारत की आंतरिक सुरक्षा को कौटिल्य द्वारा बताये गये उपर्युक्त चारों प्रकार के खतरे हैं।
    • बदलता बाह्य परिवेश भी हमारी आंतरिक सुरक्षा को प्रभावित करता है। श्रीलंका, पाकिस्तान, बंग्लादेश, नेपाल और म्यांमार में होने वाली घटनाएं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमारी आंतरिक सुरक्षा को प्रभावित करती हैं। इसलिए आज के सूचना और डिजिटल युग में देश की सुरक्षा के आंतरिक अथवा बाह्य खतरें दोनों एक-दूसरे से आपस में जुड़े हैं और इन्हें एक-दूसरे से अलग करके नहीं देखा जा सकता।
    • पिछले कुछ वर्षों से हमारी आंतरिक सुरक्षा का खतरा कई गुणा बढ़ गया है। आंतरिक सुरक्षा की समस्या ने हमारे देश के विकास और प्रगति को प्रभावित करना प्रारंभ कर दिया है और यह अब सरकार की मुख्य चिंताओं में से एक है।

    आंतरिक सुरक्षा के अवयव

    • देश की सीमाओं की अखंडता एवं आंतरिक प्रभुसत्ता का संरक्षण
    • देश की आंतरिक शांति बनाए रखना।
    • कानून व्यवस्था बनाए रखना।
    • विधि का कानून और कानून के समक्ष एकरूपता-बिना भेदभाव के सभी को देश के कानून के अनुसार न्याय।
    • डर से मुक्ति, संविधान में व्यक्ति को दी गई स्वतंत्रता का संरक्षण।
    • शांतिपूर्ण सहअस्तित्व एवं साम्प्रदायिक सद्भाव।

    आंतरिक सुरक्षा के लिए मुख्य चुनौतियाँ

    • भारत की स्वतंत्रता के साथ ही आंतरिक सुरक्षा से जुड़ी कुछ समस्याएं भी सामने आईं। जम्मू एवं कश्मीर राज्य के भारत में विलय के समय से ही आंतरिक सुरक्षा से जुड़ी कुछ समस्याएं उत्पन्न हो गई थीं। आजादी के समय हुए बंटवारे के दौरान अप्रत्याशित हिंसा हुई जिसमें लाखों लोग मारे गए। इस प्रकार साम्प्रदायिकता की समस्या रूपी राक्षस आजादी के दौरान ही सक्रिय हो गया जो कि बाद में दंगों के रूप में बार-बार सामने आता रहा है।

    मुख्य चुनौतियां

    1. भीतरी प्रदेशों में फैलाना आतंकवाद
    2. जम्मू-कश्मीर में उग्रवाद
    3. पूर्वोत्तर राज्यों में विद्रोह
    4. वामपंथी उग्रवाद
    5. संगठित अपराध और आतंकवाद के साथ इनका गठजोड़
    6. सांप्रदायिकता
    7. जातीय तनाव
    8. क्षेत्रवाद एवं अंतर-राज्य विवाद
    9. साइबर अपराध एवं साइबर सुरक्षा
    10. सीमा प्रबंधन
    11. तटीय सुरक्षा
    • एक उभरते हुए राष्ट्र के रूप में हमें आशा थी कि हम इन समस्याओं का समाधान कर लेंगे और राष्ट्र को नवनिर्माण और विकास के रास्ते पर ले जाएंगे लेकिन देश के अलग-अलग भागों में उभरी आंतरिक सुरक्षा की समस्याओं ने देश के विकास में बाधा उत्पन्न की है। भाषाई उपद्रवों, राज्यों के आपसी विवादों, धार्मिक एवं जातीय वैमनस्य इत्यादि कारणों से कई वर्षों से भारत की आंतरिक समस्याएं कई गुना बढ़ गई हैं। 1956 में भाषाई उपद्रवों के कारण देश को भाषा के आधार पर राज्यों को पुर्नगठन करने के लिए बाध्य होना पड़ा था।
    • 1950 के दशक में पूर्वोत्तर राज्यों में अशांति फैली, 1954 में नागालैंड में फिजो ने विद्रोह का झंडा उठाया और बाद में यह विद्रोह मिजोरम, मणिपुर एवं त्रिपुरा राज्यों में भी फैल गया।
    • साठ के दशक के अंतिम चरण में नक्सलवाद के रूप में एक नई समस्या सामने आईं स्वतंत्रता के समय भारत एक अल्प विकसित देश था और हमने देश के नवनिर्माण का कार्य प्रारंभ किया। विकास और तरक्की का जो मॉडल हमने अपनाया वह समतामूलक एवं सर्वव्यापी विकास का था, परन्तु समय के साथ यह स्पष्ट हो गया है कि हम गरीबी हटाने, बेरोजगारी की समस्या हल करने और देश के कई दूरस्थ क्षेत्रों का विकास करने में असफल रहे हैं। इस स्थिति का कई लोगें द्वारा गलत फायदा उठाया गया और माओवाद/नक्सलवाद/वामपंथी उग्रवाद के रूप में देश की आंतरिक सुरक्षा को बहुत बड़ा खतरा उत्पन्न हो गया। वर्ष 2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री ने यह स्वीकार भी किया था कि देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए नक्सलवाद सबसे बड़ा खतरा है।
    • 80 के दशक में पड़ोसी देश द्वारा प्रायोजित पंजाब का उग्रवाद देखने को मिला। पंजाब में उग्रवाद का बहुत ही घातक स्वरूप देखने को मिला। इस आंदोलन को चलाने के लिए सहायता पड़ोसी शत्रु देश से मिल रही थी। 1990 के दशक में कश्मीर में फिर से राष्ट्र विरोधी बाह्य ताकतों द्वारा समर्थित आतंकवाद का दौर प्रारंभ हुआ है जो कि पिछले एक दशक के दौरान पूरे देश में फैल चुका है। अखिल भारतीय आतंकवाद का महत्व 26/11 के मुम्बई आतंकववादी हमले के दौरान पूरी तरह से स्पष्ट हो गया है। इसके बाद केन्द्र ने आतंकवादरोधी तंत्र को मजबूत करने लिए कई ठोस कदम उठाने प्रारम्भ किए।
    • अंतर्राष्ट्रीय अपराधियों/माफिया संगठनों ने संगठित अपराध और आतंकवाद के बीच गठजोड़ स्थापित कर इस प्रकार के अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद को और बढ़ावा दिया है। इनका धन एकत्रित करने और काम करने का तरीका मुख्य रूप से हथियारों की तस्करी, ड्रग्स की तस्करी, हवाला लेन-देन, काले धन को वैध करने (मनी लांड्रिंग) और देश के विभिन्न भागों में जाली भारतीय मुद्रा नोटों को चलाना था।
    • साइबर सुरक्षा हमारे लिए नवीनतम चुनौती है। हम साइबर युद्ध के निशाने पर हो सकते हैं। हमारे महत्वपूर्ण प्रतिष्ठान अब पूरी तरह से साइबर पद्धति पर आधारित होते हैं जिन्हे खतरा हो सकता है। साइबर हमलों को रोकने की अक्षमता हमारी अर्थव्यवस्था और सुरक्षा के लिए घातक हो सकती है। 2013 के विकीलीक्स इसका एक सजीव उदाहरण है। इंटरनेट और मोबाइल संचार में हुई अभूतपूर्ण क्रांति से यह बात सामने आई है कि सामाजिक मीडिया दुष्प्रचार करने और हिंसा को हवा देने में एक खतरनाक भूमिका निभा सकता है। 2012 में पूर्वोत्तर राज्यों के विद्यार्थियों का दक्षिण राज्यों से पलायन और वर्ष 2013 में मुज्जफरनगर के जातीय दंगे ऐसे कुछ उदाहरण हैं जो बताते हैं कि कुछ समस्याओं में वृद्धि तेजी से बढ़ रही है संचार प्रणालियों का दुष्परिणाम है।
    • हमारी आंतरिक सुरक्षा के लिए सीमा प्रबंधन एक महत्वपूर्ण पहलू है। एक कमजोर सीमा प्रबंधन विभिन्न सीमाओं से आतंकवादियों, अवैध अप्रवासियों की घुस पैठ और हथियारों, ड्रग्स और जाली मुद्रा की तस्करी में सहायक हो सकता है। पूर्वोत्तर राज्यों में अवैध प्रवासियों के खिलाफ घटनाओं में वृद्धि हुई है। यह सुरक्षा की एक गंभीर समस्या है जिसका अभी हमें संतोषजनक हल खोजना है चाहे वह समाधान राजनीतिक हो या सामाजिक या फिर आर्थिक।
    • हमारी सुरक्षा को लेकर कुछ गैर-परम्परागत, गैर-सैन्य समस्याएं भी हो सकती हैं जैसेग प्राकृतिक आपदा, महामारी, ऊर्जा और पानी की कमी, खाद्यान्न सुरक्षा, संसाधनों की कमी, गरीबी, आर्थिक असमानताएं इत्यादि। परन्तु इन्हें इस पुस्तक में सम्मिलित नहीं किया गया है।

    आंतरिक सुरक्षा की समस्या के लिए जिम्मेवार कारक
    हमारी आंतरिक सुरक्षा की समस्याओं के लिए विभिन्न ऐतिहासिक और गैर-ऐतिहासिक पृष्ठभूमियां हैं। इनके बारे में विस्तार से आगामी अध्यायों में चर्चा की गई है। हालांकि कुछ मूल कारण नीचे वर्णित है

    • बेरोजगारी
    • असमान, असंतुलित विकास
    • प्रशासनिक मोर्चों पर विफलता या सुशासन का अभाव
    • साम्प्रदायिक वैमनस्य में वृद्धि
    • जातिगत जागरुकता और जातीय तनाव में वृद्धि
    • साम्प्रदायिक, जातीय, भाषायी या अन्य विभाजनकारी मापदण्डों पर आधारित विवादास्पद राजनीति का उदय
    • कठिन भू-भाग वाली खुली सीमाएं
    • कमजोर आपराधिक न्यायिक व्यवस्था, भ्रष्टाचार के कारण अपराधियों, पुलिस एवं राजनेताओं के बीच सांठगांठ, जिस कारण संगठित अपराधों का बेरोकटोक होना

    आजादी के समय से ही पहले तीन कारक स्वतंत्रता के बाद हमें विरासत में मिले। हम इन तीनों मुद्दों को तो हल करने में असफल रहे ही हैं, दुर्भाग्य से कई नए मुद्दे इसमें शामिल हुए हैं, जिससे हमारी आंतरिक सुरखा की समस्या कई गुणा बढ़ गई है। उपर्युक्त सूची में चौथे, पांचवें और छठे कारक प्रशासनिक विफलताओं और सातवां, आठवां व नौवां दलगत राजनीति के कारण हो सकता है। अंतिम कारक के लिए शासकीय अक्षमता को जिम्मेदार ठहरा सकते हैं। इन कारकों के कारण प्रत्येक समस्या और उभरकर सामने आई हैं और शत्रु पड़ोसी अपना हित साधने के लिए हमारी आंतरिक स्थितियों का फायदा उठाने का कोई भी अवसर नहीं छोड़ते। पाकिस्तान की खूफिया एजेंसी आईएसआई की भारत में हजारों तरीकों से खूनखराबा करने को घोषित नीति है।

    आंतरिक सुरक्षा सिद्धांत 
    हमें उपयुक्त आंतरिक सुरक्षा सिद्धांतों की आवश्यकता है जो कि निम्नलिखित व्यापक घटकों पर आधारित हो सकते हैं-

    अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा का आशय क्या है?

    सामूहिक सुरक्षा (Collective security) से आशय ऐसी क्षेत्रीय या वैश्विक सुरक्षा-व्यवस्था से है जिसका प्रत्येक घटक राज्य यह स्वीकारता है कि किसी एक राज्य की सुरक्षा सभी की चिंता का विषय है। यह मैत्री सुरक्षा (alliance security) की प्रणाली से अधिक महत्वाकांक्षी प्रणाली है।

    सुरक्षा कितने प्रकार के होते हैं?

    व्यक्ति को खतरे की जानकारी के आधार पर सुरक्षा श्रेणी को 5 श्रेणियों में विभाजित किया गया है: एसपीजी, जेड +, जेड, वाई, एक्स आदि।

    सुरक्षा से क्या आशय है बताइए?

    सुरक्षा (security) हानि से बचाव करने की क्रिया और व्यवस्था को कहते हैं। यह व्यक्ति, स्थान, वस्तु, निर्माण, निवास, देश, संगठन या ऐसी किसी भी अन्य चीज़ के सन्दर्भ में प्रयोग हो सकती है जिसे नुकसान पहुँचाया जा सकता हो।

    मानवता की सुरक्षा का क्या अर्थ है?

    (ग) मानवता की सुरक्षा का व्यापक अर्थ-मानवता की सुरक्षा का व्यापक अर्थ में युद्ध, जनसंहार, आतंकवाद, अकाल, महामारी व प्राकृतिक आपदा से सुरक्षा के साथ-साथ आर्थिक सुरक्षा एवं मानवीय गरिमा की सुरक्षा को भी शामिल किया जा सकता है। इस प्रकार मानवता की सुरक्षा के व्यापकतम अर्थ में अभाव एवं भय से मुक्ति पर बल दिया जाता है।