प्रकृति में मूल अवस्था में कौन सी धातु मौजूद है - prakrti mein mool avastha mein kaun see dhaatu maujood hai

पञ्चभूत (पंचतत्व या पंचमहाभूत) भारतीय दर्शन में सभी पदार्थों के मूल माने गए हैं। आकाश (Space) , वायु (Quark), अग्नि (Energy), जल (Force) तथा पृथ्वी (Matter) - ये पंचमहाभूत माने गए हैं जिनसे सृष्टि का प्रत्येक पदार्थ बना है। लेकिन इनसे बने पदार्थ जड़ (यानि निर्जीव) होते हैं, सजीव बनने के लिए इनको आत्मा चाहिए। आत्मा को वैदिक साहित्य में पुरुष कहा जाता है। सांख्य शास्त्र में प्रकृति इन्ही पंचभूतों से बनी मानी गई है।

योगशास्त्र में अन्नमय शरीर भी इन्हीं से बना है। प्राचीन ग्रीक में भी इनमें से चार तत्वों का उल्लेख मिलता है - आकाश (ईथर) को छोड़कर।यूनान के अरस्तू और फ़ारस के रसज्ञ जाबिर इब्न हय्यान इसके प्रमुख पंथी माने जाते हैं। हिंदू विचारधारा के समान यूनानी, जापानी तथा बौद्ध मतों में भी पंचतत्व को महत्वपूर्ण एवं गूढ अर्थोंवाला माना गया है।

पंचतत्व को ब्रह्मांड में व्याप्त लौकिक एवं अलौकिक वस्तुओं का प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष कारण और परिणति माना गया है। ब्रह्मांड में प्रकृति से उत्पन्न सभी वस्तुओं में पंचतत्व की अलग-अलग मात्रा मौजूद है। अपने उद्भव के बाद सभी वस्तुएँ नश्वरता को प्राप्त होकर इनमें ही विलीन हो जाती है। यहाँ तत्व के नाम का अर्थ उनके भौतिक रूप से नहीं है - यानि जल का अर्थ पानी से जुड़ी हर प्रकृति या अग्नि का अर्थ आग से जुड़ी हर प्रकृति नहीं है। योगी आपके छोड़े हुए सांस (प्रश्वास) की लंबाई के देख कर तत्व की प्रधानता पता लगाने की बात कहते हैं। इस तत्व से आप अपने मनोकायिक (मन और तन) अवस्था का पता लगा सकते हैं। इसके पता लगाने से आप, योग द्वारा, अपने कार्य, मनोदशा आदि पर नियंत्रण रख सकते हैं। यौगिक विचारधारा में इसका प्रयोजन (भविष्य में) अवसरों का सदुपयोग तथा कुप्रभावों से बचने का प्रयास करना होता है। लेकिन ये यौगिक विधि, ज्योतिष विद्या से इस मामले में भिन्न है के ग्रह-नक्षत्रों के बदले यहाँ श्वास-प्रश्वास पर आधारित गणना और पूर्वानुमान लगाया जाता है।[1]

पृथ्वी एक मात्र देवी का स्वरूप है और सूर्य एकमात्र देव इनको आप आदि शक्ति माँ सरस्वती (बुध), माँ महालक्ष्मी (शुक्र), माँ अन्नपूर्णा (पृथ्वी) अब आगे माँ वैष्णवी (मंगल) तथा सूर्य के रूप में महादेव इन चार पिण्डो यानि धरतीयों में नारायण (जीवात्मा) को पोषित करते हैं।

तत्व प्राण ऊर्जा (योग में प्राण का एक विशिष्ट अर्थ होता है) के विशिष्ट रूप बताते हैं। प्राण इन्ही पाँच तत्वों से मिलकर बना है - ठीक उसी प्रकार जैसे हमारा शरीर और अन्य कई चीज़। माण्डुक्योपनिषद, प्रश्नोपनिषद तथा शिव स्वरोदय मानते हैं कि पंचतत्वों का विकास मन से, मन का प्राण से और प्राण का समाधि (यानि पराचेतना) से हुआ है।

गुण-प्रकारपृथ्वीजलअग्निवायुआकाशप्रकृतिभारीशीतलऊष्णअनिश्चितमिश्रितगुणवज़न, एकजुटताद्रवता, संकुचनगरम, प्रसारगतिफैलाववर्णपीलासफ़ेदलालनीला या भूराकालाआकारचौकौनअर्धचंद्रत्रिभुजषट्कोणबिन्दुचक्रमूलाधारस्वाधिष्ठानमणिपूरअनाहतविशुद्धिमंत्रलंवंरंयंहंतन्मात्रागंधस्वाददृश्यस्पर्शशब्दशरीर में कार्यत्वचा, रक्तशरीर के सभी द्रवक्षुधा, निद्रा, प्यासपेशियों का संकुचन-आकुचनसंवेग, वासनाशरीर में स्थितिजाँघेपैरकंधेनाभिमस्तकमानसिक दशाअहंकारबुद्धिमनस, विवेकचित्तप्रज्ञाकोशअन्नमयप्राणमयमनोमयविज्ञानमयआनंदमयप्राणवायुअपानप्राणसमानउदानव्यानग्रहबुधचंद्र, शुक्रसूर्य, मंगलशनिबृहस्पतिदिशापूर्वपश्चिमदक्षिणउत्तरमध्य-ऊर्ध्व

जैसा कि उपर कहा गया है, साधक योगी तत्व का पता लगाकर अपने भविष्य का पता लगा लेते हैं। इससे वे अपनी मनोदशा औक क्रियाकलापों को नियंत्रित कर जीवन को बेहतर बना सकते हैं। इसकी कई विधियाँ योगी बताते हैं, कुछ चरण इस प्रकार हैं -

  1. छायोपासना कर कंठ प्रदेश पर मन को एकाग्र किया जाता है।
  2. फिर उसको साधक अपलक निहारता है और उस पर त्राटक करता है।
  3. इसके बाद शरीर को ज़रा भी न हिलाते हुए आकाश में देखता है - फिर छाया की अनुकृति दिखती है।
  4. इसकी कुछ आवृत्तियों के बाद षण्मुखी मुद्रा के अभ्यास करने से चिदाकाश (चित्त का आकाश) में उत्पन्न होने वाले रंग को देखते हैं। ये जो भी रंग होता है, उस पर उपर दी गई सारणी के हिसाब से तत्व का पता चलता है। उदाहरणार्थ अगर यह पीला हो तो पृथ्वी तत्व की प्रधानता मानी जाती है।

ज्योतिष और योग में तत्व[संपादित करें]

ज्योतिष विज्ञान भी इस बात को स्वीकारता है कि व्यक्ति के जीवन तथा चरित्र को मूलतत्व किस प्रकार प्रभावित करते हैं। जहाँ ज्योतिष के अनुसार तत्व एक ब्रह्मांडीय कंपन के लक्षण बताते हैं वहीं (स्वर-) योग सिद्धांत के अनुसार ये तत्व एक ख़ास शारीरिक लक्षण को बताते हैं।

शिव स्वरोदय ग्रंथ मानता है कि श्वास का ग्रहों, सूर्य और चंद्र की गतियों से संबंध होता है। ग्रंथ स्वर-विहीन (यानि तत्वों के यौगिक महत्व) ज्योतिष विद्या को भी बेकार मानता है[2]।

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प्राकृतिक मुक्त मुक्त अवस्था में पाया जाने वाला धातु सोना है

prakirtik mukt mukt avastha mein paya jaane vala dhatu sona hai

प्राकृतिक मुक्त मुक्त अवस्था में पाया जाने वाला धातु सोना है

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प्रकृति में मूल अवस्था में कौन सी धातु मौजूद है - prakrti mein mool avastha mein kaun see dhaatu maujood hai
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प्रकृति में मूल अवस्था में कौन सी धातु मौजूद है - prakrti mein mool avastha mein kaun see dhaatu maujood hai

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कौन सा तत्व प्रकृति में मुक्त अवस्था में पाया जाता है ;

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मूल अवस्था में कौन सी धातु मौजूद है?

एक मूल धातु प्रकृति से या तो शुद्ध या मिश्र धातु के रूप में मूल अवस्था में पाई जाती है जिसे मूल धातु कहा जाता है। उदाहरण के लिए सोना, चांदी, तांबा और प्लेटिनम इत्यादि। वे सबसे कम प्रतिक्रियाशील हैं और इसलिए वे अपनी मूल अवस्था में पाई जाती हैं। धातु के केवल दो समूह प्रकृति में मौजूद हैं स्वर्ण समूह और प्लेटिनम समूह।

प्रकृति में शुद्ध अवस्था में कौन सी धातु पाई जाती है?

Solution : स्वर्ण, Ag तथा Pt उत्कृष्ट धातुएँ कहलाती हैं। वे अक्रियाशील होती हैं और मुक्त अवस्था में पायी जाती हैं।

कौन सा तत्व प्रकृति में मुक्त अवस्था में पाया जाता है?

Au (सोना), Pt (प्लैटिनम), Ag (सिल्वर), आदि मुक्त अवस्था में पाए जाते हैं क्योंकि ये धातुएँ रासायनिक रूप से कम प्रतिक्रियाशील होती हैं और वातावरण में मौजूद ऑक्सीजन के साथ प्रतिक्रिया नहीं करती हैं, इसलिए मुक्त अवस्था में पाई जाती हैं।

प्रकृति में कौन सी धातु होती है?

प्रकृति में असंयुक्त अवस्था में बिरली धातु ही मिलती है। स्वर्ण, रजत, प्लैटिनम और कभी-कभी ताम्र धातुएँ यदाकदा मिल जाती हैं। अधिकांश धातुओं के अयस्क (Ores) मिलते हैं जो अधातुओं (जैसे ऑक्सीजन, कार्बन, गंधक आदि) के साथ धातुओं के यौगिक होते हैं।