पञ्चभूत (पंचतत्व या पंचमहाभूत) भारतीय दर्शन में सभी पदार्थों के मूल माने गए हैं। आकाश (Space) , वायु (Quark), अग्नि (Energy), जल (Force) तथा पृथ्वी (Matter) - ये पंचमहाभूत माने गए हैं जिनसे सृष्टि का प्रत्येक पदार्थ बना है। लेकिन इनसे बने पदार्थ जड़ (यानि निर्जीव) होते हैं, सजीव बनने के लिए इनको आत्मा चाहिए। आत्मा को वैदिक साहित्य में पुरुष कहा जाता है। सांख्य शास्त्र में प्रकृति इन्ही पंचभूतों से बनी मानी गई है। योगशास्त्र में अन्नमय शरीर भी इन्हीं से बना है। प्राचीन ग्रीक में भी इनमें से चार तत्वों का उल्लेख मिलता है - आकाश (ईथर) को छोड़कर।यूनान के अरस्तू और फ़ारस के रसज्ञ जाबिर इब्न हय्यान इसके प्रमुख पंथी माने जाते हैं। हिंदू विचारधारा के समान यूनानी, जापानी तथा बौद्ध मतों में भी पंचतत्व को महत्वपूर्ण एवं गूढ अर्थोंवाला माना गया है। पंचतत्व को ब्रह्मांड में व्याप्त लौकिक एवं अलौकिक वस्तुओं का प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष कारण और परिणति माना गया है। ब्रह्मांड में प्रकृति से उत्पन्न सभी वस्तुओं में पंचतत्व की अलग-अलग मात्रा मौजूद है। अपने उद्भव के बाद सभी वस्तुएँ नश्वरता को प्राप्त होकर इनमें ही विलीन हो जाती है। यहाँ तत्व के नाम का अर्थ उनके भौतिक रूप से नहीं है - यानि जल का अर्थ पानी से जुड़ी हर प्रकृति या अग्नि का अर्थ आग से जुड़ी हर प्रकृति नहीं है। योगी आपके छोड़े हुए सांस (प्रश्वास) की लंबाई के देख कर तत्व की प्रधानता पता लगाने की बात कहते हैं। इस तत्व से आप अपने मनोकायिक (मन और तन) अवस्था का पता लगा सकते हैं। इसके पता लगाने से आप, योग द्वारा, अपने कार्य, मनोदशा आदि पर नियंत्रण रख सकते हैं। यौगिक विचारधारा में इसका प्रयोजन (भविष्य में) अवसरों का सदुपयोग तथा कुप्रभावों से बचने का प्रयास करना होता है। लेकिन ये यौगिक विधि, ज्योतिष विद्या से इस मामले में भिन्न है के ग्रह-नक्षत्रों के बदले यहाँ श्वास-प्रश्वास पर आधारित गणना और पूर्वानुमान लगाया जाता है।[1] पृथ्वी एक मात्र देवी का स्वरूप है और सूर्य एकमात्र देव इनको आप आदि शक्ति माँ सरस्वती (बुध), माँ महालक्ष्मी (शुक्र), माँ अन्नपूर्णा (पृथ्वी) अब आगे माँ वैष्णवी (मंगल) तथा सूर्य के रूप में महादेव इन चार पिण्डो यानि धरतीयों में नारायण (जीवात्मा) को पोषित करते हैं। तत्व प्राण ऊर्जा (योग में प्राण का एक विशिष्ट अर्थ होता है) के विशिष्ट रूप बताते हैं। प्राण इन्ही पाँच तत्वों से मिलकर बना है - ठीक उसी प्रकार जैसे हमारा शरीर और अन्य कई चीज़। माण्डुक्योपनिषद, प्रश्नोपनिषद तथा शिव स्वरोदय मानते हैं कि पंचतत्वों का विकास मन से, मन का प्राण से और प्राण का समाधि (यानि पराचेतना) से हुआ है। गुण-प्रकारपृथ्वीजलअग्निवायुआकाशप्रकृतिभारीशीतलऊष्णअनिश्चितमिश्रितगुणवज़न, एकजुटताद्रवता, संकुचनगरम, प्रसारगतिफैलाववर्णपीलासफ़ेदलालनीला या भूराकालाआकारचौकौनअर्धचंद्रत्रिभुजषट्कोणबिन्दुचक्रमूलाधारस्वाधिष्ठानमणिपूरअनाहतविशुद्धिमंत्रलंवंरंयंहंतन्मात्रागंधस्वाददृश्यस्पर्शशब्दशरीर में कार्यत्वचा, रक्तशरीर के सभी द्रवक्षुधा, निद्रा, प्यासपेशियों का संकुचन-आकुचनसंवेग, वासनाशरीर में स्थितिजाँघेपैरकंधेनाभिमस्तकमानसिक दशाअहंकारबुद्धिमनस, विवेकचित्तप्रज्ञाकोशअन्नमयप्राणमयमनोमयविज्ञानमयआनंदमयप्राणवायुअपानप्राणसमानउदानव्यानग्रहबुधचंद्र, शुक्रसूर्य, मंगलशनिबृहस्पतिदिशापूर्वपश्चिमदक्षिणउत्तरमध्य-ऊर्ध्वजैसा कि उपर कहा गया है, साधक योगी तत्व का पता लगाकर अपने भविष्य का पता लगा लेते हैं। इससे वे अपनी मनोदशा औक क्रियाकलापों को नियंत्रित कर जीवन को बेहतर बना सकते हैं। इसकी कई विधियाँ योगी बताते हैं, कुछ चरण इस प्रकार हैं -
ज्योतिष और योग में तत्व[संपादित करें]ज्योतिष विज्ञान भी इस बात को स्वीकारता है कि व्यक्ति के जीवन तथा चरित्र को मूलतत्व किस प्रकार प्रभावित करते हैं। जहाँ ज्योतिष के अनुसार तत्व एक ब्रह्मांडीय कंपन के लक्षण बताते हैं वहीं (स्वर-) योग सिद्धांत के अनुसार ये तत्व एक ख़ास शारीरिक लक्षण को बताते हैं। शिव स्वरोदय ग्रंथ मानता है कि श्वास का ग्रहों, सूर्य और चंद्र की गतियों से संबंध होता है। ग्रंथ स्वर-विहीन (यानि तत्वों के यौगिक महत्व) ज्योतिष विद्या को भी बेकार मानता है[2]। माँ ने सीख दी कि कैसा भी संकट हो, वह कभी आत्महत्या करने की बात न सोचे। धैर्य और साहस से परिस्थितियों का सामना करे। माँ ने बेटी को सावधान किया कि मूल्यवान वस्त्रों और गहनों को पाकर वह बहुत अधिक खुश न हो। ये नारी को बंधन में डालने वाली वस्तुएँ हैं। माँ ने यह सीख भी दी कि वह लड़की होने को अपनी कमजोरी न समझे। स्वाभिमान के साथ जीवन बिताए। प्रश्न 9. इसका प्रत्यक्ष उदाहरण ‘पति प्रधानों’ और ‘पतिपार्षदों’ के रूप में देखा जा सकता है। वस्त्र और आभूषण स्त्री को भ्रमित करने वाले मोहक शब्द मात्र हैं। इनका स्त्री के जीवन में कोई विशेष महत्व नहीं होना चाहिए। प्रश्न 10. इसलिए वह अपने जीवन में प्राप्त अनुभवों के आधार पर लड़की को ऊँचे-ऊँचे आदर्शों और उपदेशों के बजाय समय के अनुकूल ठोस और व्यावहारिक शिक्षाएँ देती है। अपनी सुन्दरता पर मुग्ध न होना, आत्महत्या के विचार से दूर रहना, वस्त्र और आभूषणों के मायाजाल से बचना और लड़की होते हुए भी लड़की जैसी न दिखाई देना; ये सभी शिक्षाएँ माँ की मूल चिन्ता को ही उजागर करती हैं। RBSE Class 10 Hindi Chapter 9 निबन्धात्मक प्रश्नप्रश्न 11. सच तो यह है कि कन्या के साथ ‘दान’ शब्द को जोड़ना, ‘नारी की स्थिति पर बड़ा व्यंग्य है और उसकी गरिमा को गिराने वाला है। कन्या क्या कोई निर्जीव वस्तु या पशु-पक्षी है जो उसे किसी को दान में दे दिया जाय? मनुष्य के दान की कल्पना भी सभ्य समाज में उचित प्रतीत नहीं होती।आज इस दान के साथ न वह श्रद्धा है न पुण्य प्राप्ति की इच्छा। ‘कन्यादान’ विवाह का एक औपचारिक अनुष्ठान भर रह गया है। दोन वही सफल माना गया है जो सुपात्र को दिया जाय। क्या इस शर्त का पालन हो पा रहा है? जब स्त्री-स्वावलम्बन और सशक्तिकरण की बातें हो रही हों तब कन्या का दान किया जाना एक मजाक से अधिक क्या कहा जा सकता है?अतः अपने मूलभाव और सार्थकता को खो चुके इस शब्द को या तो व्यवहार से बाहर कर देना चाहिए या फिर इसे समयानुकूल नाम दिया जाना चाहिए। प्रश्न 12. (ख) वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह……………पर लड़की जैसी दिखाई मत देना RBSE Class 10 Hindi Chapter 9 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर1. ‘कितना प्रामाणिक था उसका दुख’ इस पंक्ति में कवि ने माँ के दुख को माना है 2. माँ अपनी अंतिम पूँजी समझ रही थी 3. ‘दुख बाँचना’ से आशय है 4. माँ के अनुसार आग होती है 5. माँ ने वस्त्र और आभूषणों को बताया है RBSE Class 10 Hindi Chapter 9 अति लघूत्तरात्मक प्रश्नप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. RBSE Class 10 Hindi Chapter 9 लघूत्तरात्मक प्रश्नप्रश्न 1. लड़की बिछुड़ते समय हर माँ का दिल भर आता है। वर्षों का साथ, लाड़-प्यार और जीवन में सूनापन आने की भावना उसे आसू बहाने को बाध्य कर देती है। उसे लगता है जैसे उसके पास बेटी के रूप में जीवन की पूँजी शेष थी। वह उस से दूर होने जा रही है। . प्रश्न 2. इसी कारण उसे विवाहित जीवन के सुख का अस्पष्ट-सा आभास था। वह अभी आगामी जीवन की समस्याओं और कष्टों से अपरिचित थी। कवि ने यह संकेत भी किया। है कि माँ को उसका विवाह छोटी आयु में करना पड़ रहा था। प्रश्न 3. उसकी समझ में केवल उतनी ही पंक्तियाँ आ रही थीं, जिनमें तुक और लय का समावेश था। भाव यह है कि वह विवाहित जीवन के सुखमय पक्ष का ही थोड़ा-सा ज्ञान रखती थीं, वह आने वाली कठिनाइयों से अपरिचित थी। प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. इससे उनका व्यक्तित्व और आत्मविश्वास संकट में पड़ जाता है। वस्त्र औरआभूषणों के उपहार देकर पुरुष नारी को अपने अधीन कर लिया करते हैं। प्रश्न 7. आज समय बदल रहा है। लड़कियाँ जीवन के हर क्षेत्र में लड़कों को कड़ी चुनौती दे रही हैं। हर पेशे में अपनी प्रतिभा का प्रमाण दे रही हैं। अत: अपनी बेटी को दी गई। माँ की यह सीख पूरी तरह समयानुकूल है। RBSE Class 10 Hindi Chapter 9 निबंधात्मक प्रश्नप्रश्न 1. उसके लिए वैवाहिक जीवन ऐसा ही अस्पष्ट था जैसे धुंधले प्रकाश में पढ़ा जाने वाला कोई पाठ हो। उसके मन में विवाहित जीवन की कुछ सुखद कल्पनाएँ मात्र थीं। उसकी वास्तविकता से वह परिचित नहीं थी। इसी कारण कवि उसे सयानी नहीं मानता। प्रश्न 2. उसकी सुन्दरता दूसरों के लिए ईष्र्या का कारण हो सकती थी। इससे द्वेष को वातावरण बन सकता था। माँ ने बेटी को समझाया कि चाहे जैसी कठिन परिस्थिति क्यों न आए, वह कभी भी आत्महत्या करने की बात न सोचे। सूझ-बूझे और धैर्यपूर्वक समस्या का सामना करे। वह सुन्दर वस्त्रों तथा बहुमूल्य आभृणों के मोह में न पड़े। ये स्त्री को भ्रम में डाल देते हैं। उसके स्वाभिमान को वंचित कर देते हैं। माँ ने वर्तमान परिस्थितियों को प्रश्न 3. कन्यादान हिन्दू विवाह का एक परंपरागत अंग रहा है। कन्या कोई निर्जीव वस्तु नहीं कि उसका अन्नदान, वस्त्रदान, गोदान आदि की भाँति दान कर दिया जाय। दान की गई वस्तु का दान प्राप्तकर्ता स्वामी मान लिया जाता है। अतः ‘कन्यादान’ शब्द में स्त्री के पद को हीन करने की गंध आती है।मेरा मत है कि इस शब्द को या तो विवाह पद्धति से निकाल दिया जाय या फिर इसके स्थान पर ‘आशीषदान’, ‘मंगल कामना’ या कोई और उपयुक्त शब्द प्रयोग में लाया जाय। विवाह के लिए पाणिग्रहण’ शब्द भी प्रचलित है। कन्या के माता-पिता अपनी पुत्री का हाथ वर को पकड़ाते हैं अर्थात् दाम्पत्य जीवन में दोनों को एक-दूसरे का पूरक मानते हुए उनके मंगलमय जीवन की कामना व्यक्त करते हैं। कन्यादान को यही स्वरूप है और इसके अनुरूप ही नाम भी दिया जाना चाहिए। प्रश्न 4. वह चाहता है कि नारियाँ अपने व्यक्तित्व, अपनी क्षमताओं और अपने गुणों के प्रति जागरूक बने। कवि का संदेश है कि नारी को ससुराल में मिलने वाले गहनों और वस्त्रों से अधिक मोह नहीं रखना चाहिए।ये उसे पुरुष की दासता में बाँध देने वाले बंधनों के समान हो सकते हैं। अपने रूप और सुन्दरता पर मुग्ध होकर रहना, अपने आपको धोखा देने के समान है। स्त्री को अपने स्त्री होने पर गर्व होना चाहिए हर प्रकार की दीनता-हीनता से मुक्त रहना चाहिए साथ ही अपने स्त्रियोचित गुणों को बनाए रखना चाहिए। देखा जाय तो भारतीय नारी के सन्दर्भ में दिये गए ये संदेश सम्पूर्ण विश्व की नारी जाति के लिए हैं। उनके मार्गदर्शक हो सकते हैं। कवि परिचय जीवन परिचय- कवि ऋतुराज का जन्म राजस्थान में भरतपुर जनपद में सन् 1940 में हुआ। उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर से अँग्रेजी में एम. ए. की उपाधि ग्रहण की। उन्होंने लगभग चालीस वर्षों तक अँग्रेजी-अध्यापन किया। ऋतुराज के अब तक प्रकाशित काव्य संग्रहों में ‘पुल पर पानी’, ‘एक मरणधर्मा और अन्य’, ‘सुरत निरत’ तथा ‘लीला मुखारविन्द’ प्रमुख हैं। अपनी रचनाओं के लिए ऋतुराज परिमल सम्मान, मीरा पुरस्कार, पहल सम्मान, बिहारी पुरस्कार आदि से सम्मानित हो चुके हैं। साहित्यिक परिचय-ऋतुराज ने हिन्दी की मुख्य परम्परा से हटकर उन लोगों को अपनी रचनाओं का विषय बनाया है। जो प्रायः उपेक्षित रहे हैं। उनके सुख-दु:ख, चिन्ताओं और चुनौतियों को चर्चा में स्थान दिलाया है। सामाजिक जीवन के व्यावहारिक अनुभवों को कवि ने सच्चाई के साथ शब्दों में उतारा है। आम जीवन में व्याप्त चिन्ताओं, विसंगतियों और सामाजिक जीवन की विडम्बनाओं की ओर पाठकों का ध्यान आकर्षित किया है। लोक प्रचलित भाषा के द्वारा आम जीवन की समस्याओं को विमर्श के केन्द्र में लाकर कवि ने सामाजिक न्याय की भावना को बल प्रदान किया है। पाठ परिचय ‘कन्यादान’ विवाह का एक महत्त्वपूर्ण अंग रहा है। कवि ने इस कविता में ‘कन्या के दान’ पर प्रश्न उठाते हुए, एक माँ द्वारा अपनी पुत्री को वैवाहिक जीवन से संबंधित गम्भीर शिक्षाएँ दिलवाई हैं। कविता में माँ बेटी को परम्पराओं और आदर्शो से हटकर, कुछ उपयोगी सीखें दे रही है। समाज ने स्त्रियों के लिए आचरण के जो पैमाने गढ़े हैं, वे बड़े आदर्शवादी हैं। स्त्रियों से यही आशा की जाती रही है। कि वे अपना जीवन इन्हीं आदर्शों के अनुरूप ढालें। स्त्रियों को कोमल बताया जाना एक प्रकार से उनके व्यक्तित्व का उपहास है। स्त्री पुरुष की तुलना में कमजोर होती है, यही कोमलता का अर्थ है। कविता में माँ अपनी भोली-भाली कन्या को शिक्षा दे रही है कि वह अपनी सुंदरता पर मुग्ध होने से बचे क्योंकि इससे वह ईर्ष्या का शिकार हो सकती है। चाहे जैसी कठिन परिस्थिति आए वह कभी अपना जीवन समाप्त कर देने की बात न सोचे। सुन्दर और मूल्यवान वस्त्र तथा आभूषण पाकर वह भ्रम में न पड़े। ये स्त्री को पराधीन बनाकर रखने वाले बंधन होते हैं। तू लड़की है यह सच है किन्तु इस कारण तू कमजोर या परावलम्बी है, यह बात सपने में भी मत सोचना। इस प्रकार कवि ने बेटी की विदाई पर माँ को भावुक होकर आँसू बहाते नहीं दिखाया है बल्कि अपने जीवन के गम्भीर अनुभवों को उसके साथ साझा किया है। पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ (1) शब्दार्थ-प्रामाणिक = सच्चा, वास्तविक। दान = कन्यादान, विवाह की एक रीति। पूँजी = संपूर्ण संचित धन। सयानी = समझदार, चतुर। आभास = हल्की समझ, अनुमान। बाँचना = पढ़ना, समझ पाना। पाठिका = पढ़ने वाली। धुंधले = अस्पष्ट, कम चमकदार। लयबद्ध = लय में बँधी, स्पष्ट। संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि ऋतुराज की कविता ‘कन्यादान’ से लिया गया है। इस अंश में कवि ने एक नवविवाहिता लड़की के सरल स्वभाव का और जीवन की कठोर वास्तविकता से परिचित। न होने का वर्णन किया है। व्याख्या-बेटी का कन्यादान करते समय माँ दुखी थी। उसे लग रहा था मानो वह अपने जीवन में संचित अंतिम पूँजी से भी बिछुड़ रही हो। माँ का यह दुख दिखावा या रीति निभाना मात्र नहीं था। उसका दुख वास्तविक था जिससे हर कन्या की माता को गुजरना पड़ता है। माँ कन्या को कुछ बड़ी उपयोगी और व्यावहारिक शिक्षाएँ देना चाहती थी। लड़की अभी भोली और सरल स्वभाव वाली थी। उसे अभी सांसारिक व्यवहार का, जीवन की कठोर सच्चाइयों का ज्ञान नहीं था। उसके मन में वैवाहिक जीवन के सुखों की एक अस्पष्ट-सी तस्वीर तो थी लेकिन उससे जुड़े दु:खों और समस्याओं से वह अपरिचित थी। कम आयु और भोले स्वभाव के कारण आगामी जीवन उसके लिए धुंधले प्रकाश में पढ़ी जाने वाली कविता के समान था। उसकी तुक और लय में बँधी सुखद पंक्तियों को ही वह पढ़ने और समझने में समर्थ थी। अभी उसे जीवन के कड़वे अनुभवों का ज्ञान न था। विशेष- 2. शब्दार्थ-झाँककर = देखकर। चेहरा = मुख। रीझना = मुग्ध होना, अति प्रसन्न होना। जलने के लिए = आग लगाकर आत्महत्या करने के लिए। शाब्दिक भ्रम = भ्रम में डाल देने वाले शब्द। लड़की जैसी = कमजोर या दूसरों पर निर्भर। संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि ऋतुराज की कविता ‘कन्यादान’ से लिया गया है। इस अंश में माँ अपनी विवाहित बेटी को आगामी जीवन के लिए उपयोगी सीख दे रही है। व्याख्या-विदा होकर ससुराल जाने वाली बेटी को शिक्षा देते हुए माँ कह रही है-बेटी ! ससुराल में अपनी सुन्दरता पर बहुत प्रसन्न होकर न रहना। तुम्हारी यह सुन्दरता किसी को प्रसन्न करेगी तो किसी के लिए ईर्ष्या का कारण भी हो सकती है। सुन्दरता पर इतराने से अनेक समस्याएँ खड़ी हो जाती हैं। ध्यान रखना स्त्री के लिए आग केवल रोटी सेकने के लिए होती हैं। कभी भी आवेश में आकर या हताश होकर आग लगाकर जल मरने की बात मत सोचना। सूझ-बूझ और साहस से समस्याओं का सामना करते हुए जीना। ससुराल में कीमती वस्त्र और आभूषण पाकर बहुत खुश मत होना। ये गहने-कपड़े केवल भ्रम में डालने वाले शब्दों की तरह हुआ करते हैं। ये स्त्री को बंधन में डाल देने वाली हथकड़ियों और बेड़ियों के समान हैं। इनके मोह में फंसकर अपनी सही सोच से दूर मत हो जाना। यह सही है कि तुम एक लड़की हो किन्तु लड़की होना कोई कमजोरी नहीं बल्कि स्वाभिमान की बात है। कभी अन्याय और अपमान से समझौता मत करना। विशेष-
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न प्रश्न 1. आपके विचार से माँ ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसी मत दिखाई देना? उत्तर – माँ चाहती थी कि उसकी लड़की स्वभाव से सरल, भोली और कोमल बनी रहे, क्योंकि ये गुण लड़की। में स्वाभाविक रूप से होने चाहिए। इसके साथ ही आज की इस स्वार्थी दुनिया को देखकर वह उसे शोषण से भी बचाना) चाहती थी कि उसकी पुत्री दुर्बलता, कायरता एवं हीनता से ग्रस्त न हो, अन्याय एवं शोषण का सामना कर सके। इसलिए। उसने कहा कि उसकी लड़की, लड़की तो बने किन्तु लड़की जैसी दिखाई न दे। प्रश्न 2. ‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है जलने के लिए नहीं ‘ ( क ) इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की किस स्थिति की ओर संकेत किया गया है? (ख) माँ ने बेटी को सचेत करना क्यों जरूरी समझा? उत्तर – (क) इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की उस स्थिति की ओर संकेत किया गया है, जिसमें दहेज कम लाने। के जुर्म में उन्हें जलाकर मार दिया जाता है या फिर वे दबाव में आकर आग में जलकर आत्महत्या कर लेती हैं, जो सबसे) बड़ा पाप होता है । (ख) माँ ने अपनी बेटी को सचेत करना इसलिए जरूरी समझा ताकि उसके सामने ऐसी स्थिति उत्पन्न होने पर) उससे वह साहस के साथ निपट सके । वह न तो स्वयं इस मार्ग को अपनाये और न दूसरों को ऐसा करने दे । प्रश्न 3. ‘पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की’ इन पंक्तियों को पढ़कर लड़की की जो छवि आपके सामने उभरकर आ रही है, उसे शब्दबद्ध कीजिए । उत्तर – इन पंक्तियों को पढ़कर हमारे मन में एक ऐसी लड़की की छवि उभरती है जिसके सामने वैवाहिक जीवन) का धुँधला प्रकाश है । वह सोच रही है कि वह सज-धजकर ससुराल जायेगी । उसका पति उसे प्यार करेगा, उसके सास-ससुर और अन्य परिवारीजन उसे पलकों पर बिठा लेंगे। वह वहाँ नाज-नखरों से रहेगी। वह नए-नए कपड़े और गहने पहनेगी। सबका मन रिझायेगी। इसके साथ ही घर गृहस्थी का काम भी निपटायेगी । परन्तु वह विवाहित जीवन की यथार्थ कठोर स्थितियों से पूरी तरह परिचित नहीं थी । प्रश्न 4 माँ को अपनी बेटी ‘अंतिम पूँजी’ क्यों लग रही थी ? उत्तर- माँ को अपनी बेटी अंतिम पूँजी इसलिए लग रही थी, क्योंकि कन्यादान के बाद वह अपनी ससुराल चली जायेगी। ऐसी स्थिति में वह अकेली रह जायेगी, फिर वह अपने सुख-दुःख किसके साथ बाँटेगी। प्रश्न 5. माँ ने बेटी को क्या-क्या सीख दी? अथवा कन्यादान’ कविता में एक माँ अपनी बेटी को क्या सीख दे रही है? संक्षेप में लिखिए। उत्तर- माँ ने बेटी को निम्नलिखित सीख दी – (i) अपने रूप – सौन्दर्य पर कभी गर्व न करना, अर्थात् उसकी प्रशंसा पर रीझकर धोखे में मत रहना । (ii) आग का सदुपयोग करना, अत्याचार एवं अन्याय का दृढ़ता से सामना करना । (iii) वस्त्र और आभूषणों से भ्रमित न होना और न अपना व्यक्तित्व खोना। (iv) अपनी सरलता, कोमलता और भोलेपन को इस तरह प्रकट न करना कि ससुराल वाले उसका गलत ढंग से फायदा उठाएँ । रचना और अभिव्यक्ति प्रश्न 6. आपकी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना कहाँ तक उचित है ? उत्तर- हमारी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात आज के जमाने में करना उचित नहीं है, क्योंकि कन्या कोई बेजान वस्तु नहीं है जिसका दान किया जाये । कन्या का अपना पृथक् व्यक्तित्व होता है । इसके साथ ही यह भी विचारणीय है कि जो वस्तु दान में दी जाती है, वह न तो ली जाती है और न उससे सम्बन्ध रखा जाता है । कन्या विवाह के बाद पुन: अपने माता-पिता के पास आती है और उन्हीं के साथ रहती भी है। इस आधार पर भी उसके साथ दान की बात करना उचित नहीं है। इसी आधार पर कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान ने अपनी पुत्री के विवाह के समय अपनी पुत्री का कन्यादान नहीं किया था। पाठेतर सक्रियता ‘स्त्री को सौन्दर्य का प्रतिमान बना दिया जाना ही उसका बंधन बन जाता है’ – इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए। उत्तर-यह कथन सत्य है कि स्त्री की सुन्दरता को महत्व देकर उसे बंधन में बाँधा जाता है। यदि किसी नारी को अपनी ओर आकर्षित करना हो तो सबसे पहले उसकी वेश-भूषा और उसकी सुन्दरता की प्रशंसा करो । वह अपनी प्रशंसा सुनकर मन ही मन प्रसन्न हो उठेगी। सहज रूप में आपकी तरफ आकर्षित हो जायेगी और बंधन में बँध जायेगी। लेकिन जब उसे यह पता चलेगा कि सौन्दर्य – वर्णन मात्र एक छलावा था, तो वह उसी क्षण से बहकावे में नहीं आयेगी और अपने अस्तित्व को पहचानकर दूर हो जायेगी । यहाँ अफगानी कवयित्री मीना किश्वर कमाल की कविता की कुछ पंक्तियाँ दी जा रही हैं। क्या आपको कन्यादान कविता से इसका कोई संबंध दिखाई देता है ? मैं लौटूंगी नहीं मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ मैंने अपनी राह देख ली है अब मैं लौटूंगी नहीं मैंने ज्ञान के बंद दरवाजे खोल दिए हैं सोने के गहने तोड़कर फेंक दिए हैं भाइयो! मैं अब वह नहीं हूँ जो पहले थी मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ मैंने अपनी राह देख ली है अब मैं लौटूंगी नहीं। उत्तर- उपर्युक्त कविता का सीधा संबंध हमें ‘कन्यादान’ कविता से दिखाई पड़ता है। कन्यादान कविता की कन्या भोली, कोमल और सरल स्वभाव की है । वह सौन्दर्य के जाल में बँधी हुई बंधन के कारणों से अनजान है। इसीलिए वह यह नहीं समझ पाती कि वस्त्र और आभूषण उसे पुरुष का गुलाम बना देते हैं । ‘मैं लौटूंगी नहीं’ कविता की कन्या अपने आप में जागरूक है । वह यह समझ गयी है कि गहने उसके लिए बंधन हैं। इसलिए उसने उनसे अपना मुँह मोड़ लिया है। उसने अपनी कमजोरी और अपनी दिशा को अच्छी तरह से समझ लिया है। इस प्रकार ‘मैं लौटूंगी नहीं’ काव्यांश की कन्या ‘कन्यादान’ की कन्या का जागृत रूप है। अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. ‘कन्यादान’ कविता का वर्ण्य विषय क्या है? उत्तर- ‘कन्यादान’ में बेटी के विवाह का वर्णन है। जो माँ बेटी को विदा करते हुए सीख देती है। प्रश्न 2. माँ को अपनी बेटी ‘अंतिम पूँजी’ क्यों लग रही थी ? उत्तर- इसलिए कि बेटी के विदा होने के पश्चात् माँ किसके साथ अपने सुख-दुःख बाँटेगी। प्रश्न 3. कवि ने लड़की को धुँधले प्रकाश की पाठिका क्यों कहा है ? उत्तर- क्योंकि उसके सामने वैवाहिक जीवन के सुखों का धुंधला प्रकाश ही था । वह जीवन के अन्य आने वाले दुःखों से अनजान थी । प्रश्न 4. माँ ने ‘पानी’ में झाँककर अपने चहरे पर मत रीझना’ ऐसा क्यों कहा है ? । उत्तर- इसलिए कि अपने रूप – सौन्दर्य पर मुग्ध मत होना, यही मुग्धता बंधन का कारण है । प्रश्न 5. वस्त्र और आभूषण को स्त्री के लिए बंधन क्यों माना गया है? उत्तर- क्योंकि शादी के बाद वस्त्र और आभूषण लड़की को नये रिश्ते में बाँधते हैं। प्रश्न 6. ‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है’ ऐसा कहने का क्या आशय है ? उत्तर – माँ, बेटी को सीख दे रही है कि आग का उपयोग सिर्फ रोटियाँ सेंकने के लिए है, स्वयं को जलाने या जलवाने के लिए नहीं है । प्रश्न 7. कविता में वर्णित ‘शाब्दिक भ्रम की तरह बंधन’ किसके लिए कहा गया है? उत्तर – वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रम के बंधन के रूप में होते हैं, जो मोह में लिपटी भाषा में जकड़ लेते हैं । प्रश्न 8. कवि ऋतुराज की काव्य कृतियों के नाम बताइये । उत्तर- ‘एक मरणधर्मा और अन्य’, ‘पुल पर पानी’, ‘सुरत-निरत और लीला- मुखारविंद’ आदि । प्रश्न 9. कवि ऋतुराज को मिले साहित्यिक सम्मान के नाम बताइये । उत्तर – सोमदत्त, परिमल सम्मान, मीरा पुरस्कार, पहल सम्मान तथा बिहारी पुरस्कार मिल चुके हैं। प्रश्न 10. कवि ऋतुराज की कविताओं का विषय मुख्यतया क्या है ? उत्तर – उनकी कविताओं में दैनिक जीवन के अनुभव का यथार्थ प्रतिबिम्बित होता है। लघूत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. ‘माँ ने कहा लड़की होने पर लड़की जैसी दिखाई मत देना ।’ ऐसा कवि ने क्यों कहा? आशय स्पष्ट कीजिए । उत्तर – माँ, आज की दुनियादारी को देखकर उसे शोषण से बचाना चाहती है । वह चाहती है कि उसके ससुराल वाले उसकी सरलता का गलत फायदा न उठाएँ, उस पर अत्याचार न करें । इसलिए वह कहती है कि उसकी लड़की लड़की सी बने किन्तु लड़की जैसी दिखाई न दे । प्रश्न 2. ‘कन्यादान’ कविता में बेटी को ‘अन्तिम पूँजी’ क्यों कहा गया है ? उत्तर – प्रस्तुत कविता में बेटी को अन्तिम पूँजी इसलिए कहा गया है कि वह माता-पिता की लाड़ली होती है। कन्यादान के समय वह संचित पालित पूँजी की तरह दूसरों को सौंप दी जाती है । वह माँ के सबसे निकट और उसके सुख-दुःख की साथी होती है। उसके ससुराल चले जाने पर माँ अकेली रह जाती है । प्रश्न 3. ‘कन्यादान’ कविता के आधार पर बताइये कि कविता में कोरी भावुकता नहीं बल्कि एक माँ के संचित अनुभवों की पीड़ा की प्रामाणिक अभिव्यक्ति है। उत्तर – मां अपनी बेटी के सुख दुःख की साथी व साक्षी होती है। सामाजिक व्यवस्था द्वारा स्त्रियों के लिए आवरण सम्बन्धी प्रतिमान गढ़े गये हैं। वे आदर्श के आवरण में बँधे हैं। एक स्त्री होने के नाते माँ अपने अनुभव द्वारा बेटी को उपयुक्त सलाह देती है। 4. प्रश्न. अपने चेहरे पर मत रीझना’ पंक्ति में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए। उत्तर-प्राय: बहुएँ अपने रूप पर आकर्षित होकर अपने आप में सुन्दरी होने का भ्रम पाल लेती हैं, जिसका फायदा) उसके ससुराल वाले उठाकर उन्हें घर गृहस्थी के बंधन में बाँध देते हैं और वे अपने आप में कमजोर पड़ जाती हैं। प्रश्न. 5. कवि ने माँ के दुःख को प्रामाणिक क्यों बताया है ? उत्तर- कवि ने माँ के दुःखको प्रामाणिक अथवा वास्तविक इसलिए बताया है, क्योंकि उसे अपने वैवाहिक जीवन के कक्षों का यथार्थ अनुभव प्राप्त था। वह अच्छी तरह जानती थी कि ससुराल में उसकी कन्या को कितनी कठिनाइयाँ होगी तथा उसे किस तरह सुख दुःख बाँटना पड़ेगा। प्रश्न 6. ‘कन्यादान’ कविता में माँ की मूल चिन्ता क्या है? उत्तर– माँ की चिता यह है कि उसकी लड़की भोली और सरल है। वह वैवाहिक जीवन के कष्टों और कठिनाइयों को नहीं जानती है। इसलिए वह इस स्वार्थी दुनिया की अनुभूति कर अपनी लड़की के संभावित दुःखों के बारे में सोच सोचकर घुली जा रही है। प्रश्न 7. कवि ने लड़की को धुँधले प्रकाश की पाठिका क्यों कहा है ? उत्तर- लड़की सयानी न होने के साथ सरल और भोली थी, उसे केवल जीवन के आनन्ददायक पक्ष का ही। आभास था। उसे वैवाहिक जीवन से जुड़ी कठिनाइयों एवं कष्टों का आभास नहीं था। इसलिए कवि ने उसे धुँधले प्रकाश की पाठिका कहा है। प्रश्न 8. एक कन्या विवाह से पूर्व अपने वैवाहिक जीवन की कैसी-कैसी कल्पनाएँ करती है? उत्तर- एक कन्या विवाह से पूर्व अपने वैवाहिक जीवन के बारे में बड़ी रंगीन कल्पनाएँ करती है। उसका पति उससे अतिशय प्रेम करेगा, सभी उसके रूप-सौन्दर्य को देखकर रीझेंगे। वह ससुराल में सुन्दर वस्त्रों और गहनों से सज धजकर सबका मन अपनी ओर आकर्षित कर लेगी । प्रश्न 9. ‘वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह बन्धन हैं स्त्री जीवन के’ कथन का आशय स्पष्ट कीजिए। उत्तर- जिस प्रकार चतुर व्यक्ति अपनी मोहक शब्दावली से भोले इन्सान को गुलाम बना लेता है, वैसे ही वस्त्र और आभूषण अपने आकर्षण से भ्रमित कर स्त्री को गुलाम बना लेते हैं और वह वस्त्राभूषणों के मोह में ससुराल के दासतामय बंधन में पड़ जाती है । प्रश्न 10. ‘कन्यादान’ कविता का सन्देश स्पष्ट कीजिए । उत्तर – ‘कन्यादान’ कविता का सन्देश नारी जागृति से संबन्धित है। पुरुषों द्वारा नारी- सौन्दर्य की प्रशंसा करना, वस्त्र और आभूषण का लालच देना वस्तुतः उसे गुलाम बनाये रखने के बंधन हैं। इनसे मुक्त होकर उसे नारी जैसी दुर्बलताओं के प्रति सचेत रहना चाहिए, तभी वह शक्तिशाली बन सकती है। प्रश्न 11. माँ अपनी पुत्री के बारे में क्या कामना करती है? उत्तर – माँ अपनी पुत्री के बारे में कामना करती है कि वह ससुराल में जाकर समझदारी से काम ले। वह अपनी) सरलता, सौन्दर्य और भोलेपन के कारण बंधनों में न बँधे । वह अपने ऊपर होने वाले अन्याय और अत्याचारों से बचे और अबला न होकर सबला बने । प्रश्न 12. ‘कन्यादान’ कविता में माँ ने बेटी को जो सीख दी है क्या वह आज के युग के अनुकूल है? पक्ष ) या विपक्ष में तर्क देकर स्पष्ट कीजिए । उत्तर – ‘कन्यादान’ कविता में माँ ने बेटी को जो सीख दी है, वह आज के युग के सर्वथा अनुकूल है। आज ससुराल पक्ष वधू की सरलता का अनुचित लाभ उठाने के लिए दबाव बनाता है। उसे धमकाया – सताया जाता है। अतः वह साहस से उनका विरोध करे और स्वाभिमान से जीवनयापन करे । निबन्धात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रस्तुत कविता ‘कन्यादान’ का सार संक्षिप्त शब्दों में दीजिए। अथवा ‘कन्यादान’ कविता में कवि ऋतुराज ने माँ की सीख द्वारा क्या संदेश दिया है? स्पष्ट कीजिए। उत्तर – कवि ऋतुराज ने ‘कन्यादान’ कविता के माध्यम से शादी के बाद स्त्री जीवन में आने वाली कठिनाइयों से बेटी को सावधान रहने के लिए अनेक बातें कही हैं। कविता में विवाह के पश्चात् विदाई के समय माँ अपने अच्छे-बुरे सभी अनुभवों का निचोड़ एक सही व तर्कसंगत सीख देती है। ताकि आगे जाकर ससुराल में बेटी सुख, सम्मान का जीवन व्यतीत कर सके। कविता में माँ परम्परागत आदर्श माँओं से हट कर भिन्न है। वह बेटी से कहती है कि तुम अपनी सुन्दरता पर रीझना मत। आग का प्रयोग खाना पकाने के लिए करना, न कि जलने के लिए। तू सावधानी से रहना। स्त्री जीवन जीते हुए वस्त्रों एवं आभूषणों के प्रति मोह मत रखना, क्योंकि ये सब बंधन स्वरूप होते हैं, सोचने-समझने का सामर्थ्य छीन लेते हैं। माँ कहती है तू हमेशा लड़की की तरह निश्छल, सरल रहना लेकिन मूर्ख लड़की की तरह दिखाई मत देना । लोक व्यवहार के प्रति सजग रहना इत्यादि तरह से एक माँ, बेटी को समझाती है। प्रश्न 2. ‘कन्यादान’ कविता में प्रस्तुत सीख को विस्तार से बताइये | अथवा कविता ‘कन्यादान’ में कवि ने कौन-कौनसी सीख दी है और क्यों? विस्तार से बताइये । उत्तर – कवि ऋतुराज ने माँ-बेटी के संबंधों पर प्रकाश डालते हुए कई सीख आज की बेटियों को दी है। ससुराल में बेटी को किसी तरह की परेशानी ना हो इसलिए माँ अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों से सीखी हुई प्रामाणिक सीख अपनी बेटी को देने की कोशिश करती है । पहली सीख कविता में माँ बेटी को देती है कि अपने सौन्दर्य पर अभिमान मत करना क्योंकि यह स्थाई नहीं होता है। दूसरी सीख में माँ कहती है कि आग का प्रयोग हमेशा खाना बनाने के लिए करना लेकिन अगर किसी के द्वारा इसका प्रयोग जलाने के लिए किया जाए तो उसका पुरजोर विरोध करना क्योंकि आग खाना बनाने के काम आती है जलाने के लिए नहीं । तीसरी सीख में मां कहती है कि कभी भी वस्त्रों एवं आभूषणों के प्रति मोह- आकर्षण मत रखना क्योंकि ये स्त्री जीवन के बंधन के रूप में होते हैं। अंत में माँ कहती है कि लड़की होना पर लड़की जैसी मत दिखना अर्थात् लड़की के गुण मर्यादा, लज्जा, सहनशीलता, विनम्रता सभी को व्यवहार में रखना लेकिन कभी इनको अपनी कमजोरी मत बनने देना । अन्याय अत्याचार के खिलाफ डटकर खड़ी हो जाना । आदि सीख कवि ने कविता में माँ के माध्यम से प्रत्येक बेटी को दी है । रचनाकार का परिचय सम्बन्धी प्रश्न प्रश्न 1. कवि ऋतुराज का जीवन परिचय संक्षिप्त रूप में दीजिए | अथवा कवि ऋतुराज के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए | उत्तर – कवि ऋतुराज का जन्म 1940 में भरतपुर में हुआ। राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर से अंग्रेजी में एम.ए. करने के पश्चात् अंग्रेजी साहित्य में पढ़ाने का कार्य किया। मुख्यधारा से अलग समाज के लोगों की चिंताओं को कवि ने अपने लेखन में उतारा है। उनकी कविताओं में दैनिक जीवन का यथार्थ अपने आस-पास की रोजमर्रा में घटित घटनाओं पर आधारित होता था। यही कारण है कि उनकी भाषा अपने परिवेश और लोक-जीवन से जुड़ी हुई है। उन्होंने ‘एक मरणधर्मा और अन्य’, ‘पुल पर पानी’, ‘सुरत निरत’ और ‘लीला मुखारबिंद’ काव्य संग्रह लिखे हैं। तथा इन्हें कई – राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। |