कचरे का निस्तारण कैसे होता है? - kachare ka nistaaran kaise hota hai?

कचरे का निस्तारण कैसे होता है? - kachare ka nistaaran kaise hota hai?

जौनपुर। कुल्हनामऊ में इसी माह से शुरू होने वाला कूड़ा निस्तारण संयंत्र एक दिन में सौ टन कचरे का निस्तारण करेगा। इस कचरे से कंपोस्ट खाद और ईंधन तैयार किया जाएगा। खाद का इस्तेमाल खेतों की उर्वरता बढ़ाने में तो ईंधन से औद्योगिक इकाइयों को चलाने में मदद ली जाएगी। बहुप्रतीक्षित इस संयंत्र को अंतिम रूप देने में कार्यदायी संस्था के लोग जुटे हुए हैं।

करीब 10.73 एकड़ भूमि पर कूड़ा निस्तारण संयत्र का निर्माण पिछले आठ वर्षों से हो रहा था। इस पर 12.20 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। शहरवासियों को इस संयत्र के शुरू होने का लंबे समय से इंतजार रहा है। कूड़ा निस्तारण संयत्र दो हिस्सों में स्थापित किया गया है। एक हिस्से में सूखा कचरा (कपड़ा, पेपर, पॉलीथिन आदि) रखा जाएगा तो दूसरे में गीला कचरा (फल-सब्जी के छिलके, खाने के अवशेष आदि) एकत्रित होगा। सूखे कचरे को संयंत्र में डालकर रिफ्यूज्ड डिराइव्ड फ्यूल (आरडीएफ) तैयार किया जाएगा। यह ईंधन औद्योगिक इकाइयों को चलाने या स्थानीय स्तर पर बिजली बनाने में उपयोग किया जा सकेगा, मगर इसके लिए अलग से व्यवस्था करनी होगी। उधर, गीले कचरे को सूखाकर और सड़ाकर कंपोस्ट खाद बनाया जाएगा। इस खाद को किसानों या बड़ी कंपनियों को बिक्री की जाएगी। कूड़ा निस्तारण संयत्र बना रही कंपनी ए टू जेड वेस्ट मैनेजमेंट के प्रबंधक रमेश शर्मा के मुताबिक संयत्र लगभग 90 फीसदी तक तैयार हो चुका है। टीनशेड व अन्य फिनिशिंग के कार्य शेष हैं, जिसे शीघ्र ही पूरा कर लिया जाएगा। नगर पालिका सूखा व गीला कचरा अलग-अलग एकत्रित कर देगी, जिसके बाद संयंत्र में उसका निस्तारण होगा। निस्तारित कूड़े से करीब 30 से 40 फीसद आरडीएफ, 15 से 20 फीसद कंपोस्ट और शेष ईंट-पत्थर जैसे अपशिष्ट निकलेंगे। एक किलो कचरे में अधिकतम 200 ग्राम तक खाद निकलेगी। शहर से रोजाना 97 टन तक कूड़ा निकलता है।

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कूड़े से निकलेगा इतने प्रकार का मैटेरियल
आरडीएफ (रिफ्यूज्ड डिराइव्ड फ्यूल) : इसमें प्लास्टिक, ई-वेस्ट, पॉलीथिन, कपड़े, जूते-चप्पल समेत जलने वाला हल्का कचरा शामिल होता है। इस कचरे का उपयोग बायो ईंधन या बिजली बनाने में किया जाएगा। इसका उपयोग कैसे किया जाना है, यह अभी तय नहीं है।
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प्री-कंपोस्ट: कूड़े में शामिल मिट्टी, गोबर, किचन से निकलने वाले सब्जी के कतरन, सड़े फल समेत अन्य खाद्य पदार्थ को प्री-कंपोस्ट के रूप में अलग किया जाएगा। करीब 28 दिनों की प्रक्रिया के बाद खाद तैयार होगी। इसका उपयोग खेत या बागवानी में खाद के रूप में किया जा सकेगा।

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इनर्ट कचरा: यह कूड़े में शामिल ईट, पत्थर, गिट्टी समेत मकानों से निकलने वाले मलबे के कचरा होता है। बैलेस्टिक सेपरेटर मशीन कूड़े से यह अलग करेगा। इसका इस्तेमाल सड़क के गड्ढे भरने, लैंडफिल के रूप में हो सकेगा।
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कचरा एकत्र करने के लिए 40 हाथ ठेला लगाएगा नगर पालिका
जौनपुर। कूड़ा निस्तारण संयत्र चालू करने के लिए नगर पालिका ने भी तैयारी शुरू कर दी है। घरों से निकलने वाले कचरे को एकत्रित करने के लिए 40 हाथ ठेला या टेंपो का इस्तेमाल किया जाएगा। ईओ संतोष कुमार मिश्र ने बताया कि प्रत्येक वाहन पर दो बड़ा कूड़ादान रहेगा। हरे रंग के कूड़ादान में गीला और नीला रंग वाले कूड़ादान में सूखा कचरा रखा जाएगा। शहर से एकत्रित कचरे को मीरपुर और कलीचाबाद में एकत्र किया जाएगा। दोनों स्थानों पर अलग-अलग छंटाई के बाद कचरे को संयंत्र तक भेजा जाएगा। इसकी रूपरेखा तैयार की जा रही है। जल्द ही लोगों को जागरूक करते हुए इस अभियान की शुरुआत होगी।

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Date:12-07-17

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आज भारत के लगभग हर नगर के आसपास कूड़े के पहाड़ देखने को मिल जाते हैं। ये कूड़े के पहाड़ हमारी वर्षों से चली आ रही कचरा निष्पादन के प्रति अनदेखी का नतीजा है। सन् 2000 के म्यूनिसिपल सॉलिड वेस्ट (मैनेजमेंट एण्ड हैण्डलिंग) रूल्स में कचरे को अलग-अलग करके बचे हुए कचरे के लिए निश्चित स्थान आज खुले कूड़ाघर बने हुए हैं। गीले और सूखे कूड़े को अलग करके इकट्ठा करने की कोई कोशिश नगर निगमों की ओर से प्रारंभ नहीं की गई है। इस प्रकार के कूड़े के पहाड़ आज हमारी जान के लिए संकट बने हुए हैं।

  • इन कूड़े के पहाड़ों में हवा के जाने की बिल्कुल गुंजाइश नहीं रखी जाती है। अतः इनसे मीथेन नामक ऐसी गैस निकलती है, जो सूर्य के ताप को अवशोषित कर लेती है, वातावरण की गर्मी को बढ़ाती है और इस प्रकार यह ग्लोबल वार्मिंग के लिए भी जिम्मेदार है। कार्बन डाइ ऑक्साइड की तुलना में यह 20 प्रतिशत अधिक ताप को अवशोषित करती है।
  • 25 से 30 साल पुराने कूड़े से एक प्रकार का द्रव लीचेट निकलना शुरू हो जाता है। यह जहरीला होता है। यह कूड़े के पहाड़ों के आसपास के भूजल और मिट्टी में मिलकर उसे जहरीला बना देता है।
  • कूड़े के ढेरों से उठने वाली बदबू और आए दिन उन्हें जलाने से उठने वाला धुंआ; दोनों ही वहाँ रहने वालों के लिए कष्टदायक हैं।

कचरा निष्पादन की समस्या को लेकर लगातार दायर की जाने वाली याचिकाओं के बाद अब सूखा कचरा निष्पादन नियम, 2016 लाया गया है। इन नियमों में सूखे और गीले कूड़े को अलग-अलग रखने के निर्देश दिए गए हैं। ऐसा न करने की स्थिति में दंड का भी प्रावधान रखा गया है। संविधान के अनुच्छेद 51(ए) में दिए गए मौलिक कत्र्तव्यों में स्पष्ट कहा गया है कि ‘जंगल, झील, नदी और वन्य-जीवन जैसे प्राकृतिक पर्यावरण की सुरक्षा और विकास करना हर नागरिक का कत्र्तव्य है।’ कचरा निष्पादन के संबंध में कुछ अन्य नियम ऐसे हैं, जो कचरे का जैविक निष्पादन कर उसे संतुलित रखने पर बल देते हैं।

कचरा निष्पादन से संबंधित बहुत सी चुनौतियां अभी भी सामने खड़ी हैं, जिनसे निपटने के लिए कानूनों के व्यावहारिक स्तर पर अमल किए जाने की नितांत आवश्यकता है।

  • कूड़े के मैदानों की कोई सीमाएं नहीं बनाई गई हैं। न तो नीचे की गहराई की कोई सीमा है और न ही अगल-बगल की।
  • इन कूड़े के पहाड़ों को ऊपर से ढकना और भी ज्यादा खतरनाक है। मुंबई के मलाड में ऐसा किए जाने पर इनसे निकलने वाली जहरीली गैस ने पास के व्यावसायिक केन्द्र के इलैक्ट्रानिक उपकरण जला दिए। साथ ही वहाँ के निवासियों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ने लगा।
  • कई स्थानों पर लगाए गए कचरे से ऊर्जा बनाने वाले संयंत्र भी कारगर सिद्ध नहीं हो रहे हैं। यूरोप और चीन जैसे देशों में भी अब इन्हें सफल नहीं माना जा रहा है।
  • इन संयंत्रों से आर्थिक नुकसान भी हो रहा है। इनमें आने वाला गीला कूड़ा व्यर्थ जाता है। केवल सूखा कूड़ा ही ऊर्जा उत्पादन के काम आता है। दूसरे, इन संयंत्रों से अपेक्षित ऊर्जा भी नहीं मिल रही है।कचरा रूपांतरण संयंत्रों से वायु प्रदूषण बहुत अधिक होता है।
  • समाधान

हाल ही में भारत के स्वच्छ भारत अभियान की राष्ट्रीय विशेषज्ञ रागिनी जैन ने कचरा निष्पादन से जुड़ा एक ऐसा उपाय प्रस्तुत किया है, जो सुरक्षित और लाभकारी सिद्ध हो सकता है।

इस प्रक्रिया में कूड़े के पहाड़ों को अलग-अलग भागों में एक प्रकार से काटकर उन्हें सीढ़ीनुमा बना दिया जाता है। इससे उनके अंदर पर्याप्त वायु प्रवेश कर पाती है और लीचेट नामक द्रव अंदर भूमि में जाने के बजाय बहकर बाहर आ जाता है। कूड़े के हर ढेर को सप्ताह में चार बार पलटा जाता है। उस पर कॅम्पोस्ट माइक्रोब्स का छिड़काव किया जाता है, जिससे उसे जैविक मिश्रण के रूप में बदला जा सके। इस चार बार के चक्र में कूड़े का ढेर 40 प्रतिशत कम हो जाता है। इस प्रकार उसका जीवोपचारण कर दिया जाता है। लीचेट के उपचार के लिए भी कुछ सूक्ष्म जीवाणुओं का प्रयोग किया जाता है। इसके बाद जैव खनन के द्वारा इसका उपयोग खाद, सड़कों की मरम्मत, रिफ्यूज डिराइव्ड फ्यूल पैलेट, प्लास्टिक की रिसाइक्लिंग और भूमि भराव के लिए किया जा सकता है।जीवोपचार से कचरा निष्पादन करने के प्रयास में अनेक उद्यमी एवं अन्वेषक लगे हुए हैं। इस प्रकार के उपचार से कचरे से पटी भूमि अन्य कार्यों के भी उपयुक्त हो जाती है। यह सुरक्षित, सरल और मितव्ययी प्रणाली है।

इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित इशर जज अहलूवालिया एवं अलमित्रा पटेल के लेख पर आधारित।

कचरे का निस्तारण कैसे किया जा सकता है?

सूखे ओर गीले कचरे को मिक्स करने पर इनको बाद में अलग अलग करना असम्भव हो जाता है,ओर इस कारण मिक्स कचरे का निपटान बहुत मुश्किल हो जाता है। इस कारण से सूखे ओर गीले कचरे को अलग अलग कूड़ेदान में रखने का कहा जाता है और घरों से दोनों तरह के कचरे को अलग अलग ले जाया जाता है।

कचरा निस्तारण क्या है?

कचरा निस्तारण, रीसायक्लिंग, कचरे से ऊर्जा उत्पादन इन सभी को कचरा प्रबंधन या वेस्ट मैनेजमेंट कहा जाता है। रीसायक्लिंग से कई उपभोक्ता वस्तुएं बाजार में दोबारा उपलब्ध हो जाती है जो कि प्राकृतिक संसाधनों के दोहन में कमी ला रही है।

कचरे का प्रबंधन कैसे किया जाता है?

कचरे को अलग-अलग छाँटकर कुछ कचरे का पुन:चक्रण किया जाता है। जिस कचर का पुन:चक्रण संभव नहीं है उसे शहर से बाहर गड्ढे में डालकर ढंक दिया जाता है। द्रव कचरे जैसे मल, जल एवं अन्य रसायन को पाइपों के द्वारा एक जगह एकत्रित कर समुचित निपटारा किया जाता है। इस तरह कचरे का प्रबंधन किया जाता है।

घरेलु कचरे का निष्पादन दैनिक जीवन में कैसे किया जाता है?

(क) कम्पोस्टिंग (खाद बनाना): यह वह प्रक्रिया है जिससे घरेलू कचरा जैसे घास, पत्तियाँ, बचा खाना, गोबर वगैरह का प्रयोग खाद बनाने में किया जाता है। गोबर और कूड़े-कचरे की खाद तैयार करने के लिए एक गड्ढा खोदें। गड्ढे का आकार कूड़े की मात्रा तथा उपलब्ध स्थान के अनुरूप हो।