आरक्षण कैसे खत्म हो सकता है - aarakshan kaise khatm ho sakata hai

25 जुलाई को द्रौपदी मुर्मू ने भारत के 15वें राष्ट्रपति पद की शपथ ली. द्रौपदी मुर्मू द्वारा भारी अंतर से राष्ट्रपति चुनाव जीतने की घोषणा के बाद से सोशल मीडिया पर समाज सुधारक डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर का एक कथित बयान काफी शेयर किया जा रहा है. उनके इस कथित बयान को कोट करते हुए लिखा गया है, “जिस दिन कोई आदिवासी महिला भारत के सर्वोच्च पद “राष्ट्रपति” तक पहुंच जाएगी देश में आरक्षण खत्म कर देना चाहिए.”

डॉ. अम्बेडकर की तस्वीर के साथ ये बयान सोशल मीडिया पर काफी ज़्यादा शेयर किया गया है. 23 जुलाई को ‘वी आर अगेंस्ट रिजर्वेशन‘ नामक एक पेज ने इस कथित कोट को फ़ेसबुक पर शेयर किया. ‘आरक्षण एक अभिशाप’ नामक एक और आरक्षण विरोधी पेज ने भी ये तस्वीर पोस्ट की.

Posted by We Are Against Reservation on Friday, 22 July 2022

कई अन्य फ़ेसबुक अकाउंट्स ने इस दावे को शेयर करते किया.

आरक्षण कैसे खत्म हो सकता है - aarakshan kaise khatm ho sakata hai
आरक्षण कैसे खत्म हो सकता है - aarakshan kaise khatm ho sakata hai

फ़ेसबुक की तरह ही अलग-अलग ट्विटर अकाउंट्स ने भी इस कथन को शेयर करते हुए इसे डॉ. अम्बेडकर का बयान बताया.

आरक्षण कैसे खत्म हो सकता है - aarakshan kaise khatm ho sakata hai
आरक्षण कैसे खत्म हो सकता है - aarakshan kaise khatm ho sakata hai

ऑल्ट न्यूज़ को इस दावे की सच्चाई जानने के लिए व्हाट्सऐप हेल्पलाइन नंबर (76000 11160) पर कई रिक्वेस्ट भी मिलीं.

This slideshow requires JavaScript.

हैरानी की बात है कि गुवाहाटी स्थित अंग्रेजी दैनिक अखबार द सेंटिनल ने भी “लेटर्स टू द एडिटर” कॉलम के तहत एक आर्टिकल पब्लिश किया, जिसमें एक पाठक ने डॉ. अम्बेडकर के इस कथित बयान के आधार पर आरक्षण पर अपनी राय दी थी. (आर्काइव्ड लिंक)

आरक्षण कैसे खत्म हो सकता है - aarakshan kaise khatm ho sakata hai
आरक्षण कैसे खत्म हो सकता है - aarakshan kaise khatm ho sakata hai

फ़ैक्ट-चेक

ऑल्ट न्यूज़ ने की-वर्ड्स का इस्तेमाल करके हिंदी और अंग्रेजी में सर्च किया. हालांकि, इससे हमें जानकारी का कोई विश्वसनीय स्रोत नहीं मिला जिसमें बताया गया हो कि डॉ. अम्बेडकर ने ऐसा बयान दिया था. इस बात से हमें शक हुआ कि ये बयान झूठा हो सकता है.

फिर हमने विदेश मंत्रालय की वेबसाइट देखी, जहां डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर के सभी प्रकाशित लेखन और भाषण अलग-अलग हिस्सों में मौजूद है. इसे बेहतर ढंग से समझने के लिए हमने उन विशेषज्ञों से संपर्क किया जो इस प्रोजेक्ट के रिसर्च और संग्रह प्रक्रिया में शामिल थे.

आरक्षण कैसे खत्म हो सकता है - aarakshan kaise khatm ho sakata hai
आरक्षण कैसे खत्म हो सकता है - aarakshan kaise khatm ho sakata hai

ऑल्ट न्यूज़ ने खंड 17 से 22 तक डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर के लेखन और भाषणों के संपादक हरि नरके से बात की. हरि नारके 2016 तक सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय, पुणे में महात्मा फुले चेयर के प्रोफ़ेसर और प्रमुख थे. उन्होंने बताया, “इस खंड में डॉ. अम्बेडकर के सभी कार्यों और भाषणों को शामिल किया गया है. इसमें संविधान सभा की बहसों में उनका भाषण भी शामिल हैं.”

टेलीफ़ोन पर हुई बातचीत में हरि नारके ने ऑल्ट न्यूज़ को बताया, “मेरी विश्वसनीयता, अपने जीवन में डॉ. बीआर अम्बेडकर और महात्मा जोतिराव फुले पर किए गए कार्यों पर आधारित है. ये ध्यान देने वाली बात है कि पहले जब मैं 16 संस्करणों का संपादक नहीं था, उस वक्त भी मैं इस रिसर्च का एक हिस्सा था. अपने रिसर्च के आधार पर मैं ये कह सकता हूं कि डॉ. अम्बेडकर ने ऐसा कभी नहीं कहा कि ‘जिस दिन कोई आदिवासी महिला भारत के सर्वोच्च पद “राष्ट्रपति” तक पहुंच जाएगी देश में आरक्षण खत्म कर देना चाहिए.’ ये पहली बार नहीं है जब सोशल मीडिया पर डॉ. अम्बेडकर का कोई नकली बयान इस तरह शेयर किया गया है. गौरतलब है कि इस तरह के सभी नकली बयानों के बीच एक समानता होती है. इनमें कभी भी ये नहीं बताया जाता है कि डॉ. अम्बेडकर ने ये बयान कब और कहाँ दिए थे.”

हरि नरके ने आगे कहा, “सबसे पहले, हमें इस बयान एक वायरल होने के समय पर ध्यान देना चाहिए. द्रौपदी मुर्मू के भारत के 15वें राष्ट्रपति के रूप में चुने जाने की खबर से पहले ये बयान चर्चा में नहीं था. दूसरा, डॉ. अम्बेडकर सांकेतिकवाद में विश्वास नहीं करते थे. मुझे लगता है कि द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के बाद आदिवासी समुदाय के कल्याण पर उतना ही असर होगा, जितना भारत में रामनाथ कोविंद के राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान अनुसूचित जाति समुदाय पर असर हुआ है.”

नई पैकेजिंग के साथ पुराने दावे

ये पहला आरक्षण विरोधी बयान नहीं है, जिसका क्रेडिट डॉ. अम्बेडकर को दिया गया है. ये ध्यान देने वाली बात है कि पहले भी कई सोशल मीडिया अकाउंट्स (पहला, दूसरा, तीसरा ,चौथा) ने दावा किया था कि डॉ. अम्बेडकर सिर्फ 10 सालों के लिए आरक्षण चाहते थे.

2018 में झारखंड की राजधानी रांची में तीन दिवसीय लोक मंथन कार्यक्रम में भाजपा नेता सुमित्रा महाजन ने कहा, “अम्बेडकर जी का विचार 10 साल के लिए आरक्षण की शुरुआत करके सामाजिक सद्भाव लाना था. लेकिन हम हर 10 साल में आरक्षण को आगे बढ़ा देते हैं. ये एक कमी है.”

आरक्षण कैसे खत्म हो सकता है - aarakshan kaise khatm ho sakata hai
आरक्षण कैसे खत्म हो सकता है - aarakshan kaise khatm ho sakata hai

जून 2022 में जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल के सहायक प्रोफ़ेसर अनुराग भास्कर ने सेज जर्नल्स में “द मिथ ऑफ़ द टेन-ईयर लिमिट ऑन रिजर्वेशन एंड डॉ. अम्बेडकर्स स्टांस” टाइटल से एक पेपर पब्लिश किया. ये एक अकादमिक पत्रिका है जो पीयर-रिव्यू, इंटरैक्टिव और ओपन एक्सेस प्रारूप में ओरिजनल रिसर्च और रिव्यू आर्टिकल पब्लिश करती है.

भास्कर ने लिखा, “संवैधानिक पदाधिकारियों सहित कुछ व्यक्तियों का तर्क है कि ‘डॉ. अम्बेडकर सिर्फ एक दशक के लिए आरक्षण चाहते थे.’ (स्क्रॉल, 2018) अक्सर ये तर्क दिया जाता है कि आरक्षण सिर्फ दस सालों के लिए अस्तित्व में था. इस आर्टिकल में मैं ये बताना चाहता हूं कि ये तर्क झूठा है कि डॉ. अम्बेडकर सिर्फ 10 साल की अवधि के लिए आरक्षण चाहते थे.”

इस दावे को खारिज करते हुए अनुराग भास्कर ने लिखा, “इसे समझने के लिए भारत के संवैधानिक इतिहास, पूना पैक्ट (1932) को गहराई से जांचने की जरूरत है, क्योंकि इसमें राजनीतिक कार्यालयों में निचली जातियों के लिए विशेष अधिकारों और उस पर एक समय सीमा के बारे में विस्तार से बताया गया है. इस आर्टिकल में, ‘दलित वर्ग’, ‘अछूत’ और ‘अनुसूचित जाति’ (SC) शब्दों को एक दूसरे के जगह पर इस्तेमाल किया गया है, क्योंकि ये सभी इतिहास के अलग-अलग पहलू में डॉ. बी आर अम्बेडकर के लेखन में दिखते हैं. इसी तरह, इस आर्टिकल में अनुसूचित जनजाति (ST) और आदिवासियों को एक दूसरे की जगह पर इस्तेमाल किया गया है.” अगर आपके पास सेज जर्नल का एक्सेस है, तो आप पूरा पेपर पढ़ सकते हैं.

उन्होंने निष्कर्ष निकालते हुए बताया, “अम्बेडकर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए राजनीतिक आरक्षण के लिए भी 10 साल की निश्चित समय सीमा के पक्ष में नहीं थे. पूना पैक्ट के दौरान उनकी मांग थी कि 10 सालों के बाद, संयुक्त निर्वाचन क्षेत्रों में आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों की स्थिति पर फिर से विचार किया जाना चाहिए और अनुसूचित जाति को जनमत संग्रह द्वारा निर्णय लेना चाहिए कि क्या वो इस प्रणाली को जारी रखना चाहते हैं. इसका मतलब ये होगा कि अनुसूचित जाति से उम्मीदवारों के चुनाव का दूसरा तरीका अपनाया जाए या नहीं. हालांकि, इस मांग को संविधान के अंतिम पाठ में शामिल नहीं किया गया था. अम्बेडकर ने इसे ‘समान सुरक्षा पाने के नए तरीकों का आविष्कार’ करने के लिए अनुसूचित जाति पर छोड़ दिया था (CAI, 1949 e). असल में, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की सहमति के बिना राजनीतिक आरक्षण को खत्म नहीं किया जा सकता. राजनीतिक आरक्षण अनुसूचित जातियों और सवर्ण हिंदुओं के बीच ‘आपसी समझौते’ (वुंड्रू, 2017, पेज 57) का परिणाम था. जब इसे संविधान में शामिल किया गया, तो ये एक संवैधानिक वादे के समान हो गया. हालांकि, संविधान सभा ने राजनीतिक आरक्षण पर 10 साल की समय सीमा तय की थी, अम्बेडकर ने खुद अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की स्थिति में सुधार नहीं होने पर इस समय सीमा को बढ़ाने के लिए संवैधानिक संशोधन की विधि निर्धारित की थी (वुंड्रू, 2017, पेज 57). 1960 के बाद से इस समय सीमा का विस्तार अम्बेडकर की मांगों के अनुरूप है. पब्लिक सर्विसेज और एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई थी.”

कुल मिलाकर, द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति के रूप में चुने जाने के संदर्भ में डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर के ग़लत बयान को कोट करते हुए शेयर किया गया. डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर के 17 से 22 खंड के लेखन और भाषणों के संपादक हरि नरके के इनपुट और हमारी पड़ताल के आधार पर डॉ. अम्बेडकर ने ऐसा कभी नहीं कहा कि जिस दिन कोई आदिवासी महिला भारत के सर्वोच्च पद “राष्ट्रपति” तक पहुंच जाएगी देश में आरक्षण खत्म कर देना चाहिए.

आरक्षण के बारे में संविधान में क्या लिखा है?

आर्थिक आधार पर आरक्षण को ना अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में कौन होगा, इसकी परिभाषा संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 में दी गई है। संविधान का अनुच्छेद 16 (4) नागरिकों के पिछड़े वर्गों के हित में आरक्षण की अनुमति देता है और अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के बारे में विशेष रूप से उल्लेख नहीं करता है।

भारत में किसको कितना आरक्षण है?

केंद्र सरकार की नौकरियों और शैक्षिक संस्थानों में ओबीसी को 27 प्रतिशत, एससी के लिए 15 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए 7.5 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गई है। राज्यों में यह अलग-अलग हो सकता है। 2019 में 103वें संविधान संशोधन के जरिए ईडब्लूएस के लिए 10 प्रतिशत अलग से आरक्षण की व्यवस्था की गई।

संविधान में आरक्षण कितने साल के लिए दिया गया था?

10 सालों के लिए उनके राजनीतिक प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के लिए अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए अलग से निर्वाचन क्षेत्र आवंटित किए गए हैं। (हर दस साल के बाद सांविधानिक संशोधन के जरिए इन्हें बढ़ा दिया जाता है). 1947-1950 - संविधान सभा में बहस. 26/01/1950- भारत का संविधान लागू हुआ।

भारत में महिलाओं को कितने प्रतिशत स्थान आरक्षित हैं?

अभी भारत के संसद में महिलाओं को 33% का आरक्षण भले ही नहीं प्राप्त हो पाया हो लेकिन पंचायतों में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित हैं। अधिकांश राज्यों में इस आरक्षण को 33% से बढ़ाकर 50% कर दिया है। इन राज्यों में पंचायतों के प्रत्येक दूसरा पद महिलाओं के लिए आरक्षित है।