सकारात्मक दृष्टिकोण के उदाहरण क्या हैं? - sakaaraatmak drshtikon ke udaaharan kya hain?

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Q.25: सकारात्मक दृष्टिकोण क्या है ? स्वयं में नकारात्मक दृष्टि की शक्ति किन गुणों व मूल्यों को विकसित कर की जा सकती है?

उत्तर : सकारात्मकता (पॉजिटिविटी) का शब्दकोषीय अर्थ है– पूर्ण निश्चयात्मकता, स्वीकारात्मकता, दृढ़ विश्वास, दृढ़ विचार। नकारात्मकता का शाब्दिक अर्थ है निषेधात्मकता. अस्वीकारात्मकता, अनिश्चयात्मकता। सकारात्मक दृष्टिकोण व्यक्ति का आशावादी नजरिया है तथा नकारात्मक दृष्टिकोण निराशावादी व त्याज्य नजरिया है। गिलास पानी से आधा भरा है यह सकारात्मक दृष्टिकोण है और उसी गिलास को देखकर यह कहना कि गिलास आधा खाली है नकारात्मक नजरिया है। सकारात्मक दृष्टिकोण के गुण तथा नकारात्मक दृष्टिकोण के लक्षण (अवगुण) को इस प्रकार समझा जा सकता है–

सकारात्मक दृष्टिकोण के गुण

नकारात्मक दृष्टिकोण के लक्षण

1 आत्मविश्वास

1 आत्मविश्वासहीनता

2 सही सोच

2 गलत सोच

3 उत्साह व साहस

3 निरुत्साह,भय,संशय

4 सतत परिश्रम

4 आलस्य

5 कर्मण्यता

5 अकर्मण्यता

6 आत्म सम्मान

6 आत्मसम्मान के अभाव

7 उच्च महत्त्वाकांक्षा

7  आकांक्षाविहीनता

8 उत्तरदायित्व का ज्ञान

8 लापरवाही

9 आलोचना को सुधार के रूप में लेना

9 आलोचना से क्षुब्ध या कुद्ध होना

10 उदारता

10 कृपणता

11 आशावाद

11 निराशावाद

12 धैर्य

12 अधीरता

13 एकाग्रता

13 विचारों का भटकाव

14 चुनौती स्वीकारना

14 चुनौती को नकारना

15 दृढ इच्छाशक्ति

15 इच्छा शक्ति का अभाव

16 मिलनसारिता

16 अलगाव अहंकार

17 हास परिहास

17 उदासी

18 समयबद्धता

18 समय का ध्यान न रखना


सकारात्मक दृष्टिकोण के उदाहरण क्या हैं? - sakaaraatmak drshtikon ke udaaharan kya hain?

जीवन तथा व्यक्तित्व के विकास में सकारात्मक दृष्टिकोण उपयोगी है तथा नकारात्मक दृष्टिकोण त्याज्य है। सकारात्मकता धन (+) का चिन्ह है जो विकसित होकर गुणा (×) के चिन्ह में परिवर्तित होता है जबकि नकारात्मकता ऋण (–) का चिन्ह है जो ऋण ही रहता है।

मनुष्य के विचारों तथा दृष्टिकोण का उसके व्यक्तित्व पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। कहा गया है कि जैसी सोच वैसा कर्म । इस सिद्धान्त पर अधिकांश लोग ध्यान नहीं देते । जब आप अपने तथा दूसरों के विषय में अच्छा सोचने लगते हैं तो दूसरे लोग भी आपके विषय में अच्छा सोचने लगते हैं । यदि हम दूसरे से घृणा करने लगते हैं तो दूसरे भी आपके प्रति घृणा. भाव रखने लगते हैं। आपके व्यक्तित्व के विकास में आपके दृष्टिकोण की अहम भूमिका होती है। अगर आपके विचार कमजोर हैं तो आपका व्यक्तित्व भी कमजोर हो जाएगा। आपके विचार ऊंचे हैं तो आप स्वयं भी ऊंचे उठ जाएंगे। जवाहरलाल नेहरू ने लिखा है–“आदमी का व्यक्तित्व उसकी अपनी कमाई है।"

सकारात्मक दृष्टिकोण का मनुष्य के जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। सकारात्मक दष्टिकोण से आपकी इच्छाशक्ति, आपका संकल्प, आपका आत्मविश्वास, आपकी महत्त्वाकांक्षा, आपका उत्साह बढ़ता है तथा आप सफलता के निकट पहुँचते जाते हैं।'

सकारात्मक सोच से सफलता का एक दृष्टांत है–गुरु द्रोणाचार्य ने जब शूद्र पुत्र एकलव्य को राजपत्रों के साथ धनुर्विद्या सिखाने से अस्वीकार कर दिया तब दृढ़ इच्छा शक्ति के धनी तथा सकारात्मक दृष्टि रखने वाले जंगल में रहकर गुरु द्रोणाचार्य की मिट्टी की मार्ति बना जिय के रूप में स्वयं ही धनुर्विद्या का नियमित अभ्यास प्रारंभ किया तथा अपनी सकारात्मक संकल्प से वह इतना निपुण हो गया कि उसने भौंक–भौंक कर विघ्न उत्पन्न करने वाले श्वान का मुंह तीरों से भर दिया। यह आश्चर्यजनक समाचार सुनकर द्रोणाचार्य ने आकर एकलव्य से उनके गरु का नाम पूछा तो एकलव्य ने द्रोणाचार्य की मिट्टी की मूर्ति की ओर संकेत मेरे गरु । आशय यह है कि सकारात्मक दृष्टिकोण रखने वाले बालक एकलव्य ने गुरु के अस्वीकार करने के बाद भी उनकी मर्ति के समक्ष बैठकर धनुर्विद्या सीखने में सफलता पाई। सकारात्मक दृष्टिकोण वाला बाधाओं के बाद भी सफलता की मंजिल पा लेता है।

जीवन में समस्याओं के निराकरण हेतु हम दो प्रकार से प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं–या सकारात्मक नजरिये को लेकर चलते हैं या नकारात्मक नजरिये से काम करते हैं। शोध से यह ज्ञात हुआ है कि नकारात्मक दृष्टिकोण से सेहत बिगडती है। नकारात्मक दष्टिकोण से समस्या का हल खोज पाना कठिन हो जाता है। हर हालत में सकारात्मक दष्टिकोण रखने से हम उपाय खोज पाने में सफल होते हैं।

सकारात्मकता मनुष्य के व्यक्तित्व को विकास के मार्ग पर ले जाती है। अच्छी सोच से आप अपना दूसरों का, समाज का भी कल्याण करते हैं। नकारात्मकता न आपके हित में है और न दूसरों के। आपके सकारात्मक विचार आपको शक्ति से ओत प्रोत करते हैं जबकि नकारात्मक विचार आपकी शक्ति का शोषण करते हैं। अपने मस्तिष्क से नकारात्मक विचारा तथा उनसे जनित कृत अवगुणों–यथा ईर्ष्या,जलन, घृणा, संदेह, दुविधा आदि से अपन मास्तष्क को मुक्त रखिए। अपने मस्तिष्क में सकारात्मक विचारों को ही आमंत्रित कीजिए। आपका मस्तिष्क निरंतर विचारों का सृजन करता रहता है, आप जैसा आदेश मस्तिष्क को देंगे,वह वैसे ही विचारों की संरचना में व्यक्त हो जाता है, अब आपको विचार करना है तो सकारात्मक क्यों नहीं? यदि कोई नकारात्मक विचार–श्रृंखला जन्म लेने का यत्न करे तो आप उस पर तुरंत प्रतिबंध लगाइए, नकारात्मक विचारों को सकारात्मक विचारों में परिवर्तित कीजिए, नकारात्मक विचारों पर सकारात्मक विचारों की चादर डाल दीजिए। नकारात्मक विचारों को सफलतापूर्वक नियंत्रित किया जा सकता है जब आप वास्तव में उन पर नियंत्रण प्राप्त करना चाहते हैं, नकारात्मक विचार व्यक्ति के उत्तम प्रयासों को भी असफल बना देते हैं, क्योंकि जब ऐसे विचार मस्तिष्क में घुस जाते हैं तब आप सफल विचारों के सृजन में सक्षम नहीं हो पाते और नकारात्मक विचारों पर ही क्रियान्वयन करने को बाध्य हो जाते हैं,नकारात्मक विचार व्यक्ति की विचारधारा को कैसे प्रभावित करते हैं. इस संबंध में गोल्फ के विख्यात खिलाड़ी टाम वाटसन बताते हैं, "जब आप नकारात्मक रूप में सोच रहे होते हैं तब आप यही सोच पाते हैं कि आपको ऐसा नहीं करना चाहिए।

मेरे संबंध में, मैं शायद यही सोचता हूँ कि मुझे गेंद को किस दिशा में नहीं मारना चाहिए और जितना मैं नकारात्मक दिशा में सोचता हूँ मेरा मस्तिष्क, मेरे हाथ, मेरी छडी गेंद को उसी दिशा में मारने को उद्यत होते हैं जिस दिशा में गेंद को नहीं जाना था।"

किसी भी व्यक्ति के लिए नकारात्मक दृष्टिकोण अत्यन्त हानिप्रद है । यह उनके सपनों उपलब्धियों को शून्य कर देता है । नकारात्मक सोच वाले व्यक्ति अपने कैरियर, स्वास्थ्य और संबंधों को भी खो देते हैं । नकारात्मक सोच जीवन के हर पहलू पर विपरीत प्रभाव डालती है। यही सफलता की दृष्टि से बड़ी बाधा है । इसके विपरीत सकारात्मक सोच एक ऐसी शक्तिशाली तकनीक है जो जीवन में असफलता को दूर भगाती है। मगर इसके लिए जरूरी है कि इस सोच को हम लगातार जारी रखें। यह आपके जीवन स्तर को बढ़ाएगी।

इस दिशा में की गई स्टडी से भी पता लगता है कि हमारी बीमारी और नकारात्मक दृष्टि का सीधा संबंध होता है। इस सोच के कारण कैंसर जैसे असाध्य रोग भी हए हैं। यह नकारात्मक सोच हमारे आंतरिक तंत्र को कमजोर करती है। यदि हम उद्देश्य करने के पर्व ही यह विचार रख लें कि हम इसको नहीं कर पाएंगे तो उस उद्देश्य के पूर्ण होने की संभावना कम हो जाती है। और यह भी संभव है कि लक्ष्य पूर्ति के दौरान आने वाली सामान्य बाधाओं से हम घबराकर उद्देश्य ही छोड़ दें। इसके विपरीत आशावादी अपने उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए उत्साह से लगे रहते हैं और उसी उत्साह से वे आने वाली बाधाओं को पार कर लेते हैं। सकारात्मक सोच के कारण वे डटकर समस्या का सामना आत्मविश्वास से करते हैं और स्वयं को लक्ष्य प्राप्ति हेतु प्रोत्साहित करते रहते हैं ।

हमारी आशावादी सोच हमारी गतिविधि व कार्यों को प्रभावित करती है जिससे उसके परिणाम आते हैं और अच्छे परिणाम पुनः हमारी सोच को प्रभावित करते हैं । सकारात्मक दष्टिकोण रखने वाले लोगों में यह वर्तुलाकार गति लगातार रहती है–

सकारात्मक दृष्टिकोण के उदाहरण क्या हैं? - sakaaraatmak drshtikon ke udaaharan kya hain?

आज के समय में अवसाद नाम की बीमारी बहुत तेजी से बढ़ रही है । विश्व स्वास्थ्य संगठन का यह कहना है कि आने वाले समय में हृदय की बीमारी के बाद सबसे बड़ी बीमारी 'अवसाद' की होगी। यह बीमारी भी नकारात्मक सोच का परिणाम है। अवसादग्रस्त व्यक्ति में नैराश्य भाव प्रबल होता है । वह जीवन की बुरी घटना या स्थिति के लिए स्वयं को जिम्मेदार ठहराते हैं और उन्हें यह लगता है कि ये उनकी गलती से हुआ है । वे अपनी समस्या को बड़े रूप में देखते हैं । उनको लगता है कि यह समस्या इतनी बड़ी है कि इसका समाधान नहीं निकल पायेगा । वे यह सोचते हैं कि समस्या स्थायी है अतः खत्म नहीं हो सकती। अतः यह जरूरी है कि हम अपनी सोच को कंट्रोल में रखें। हमेशा यह ध्यान रखना है कि हम मस्तिष्क को सकारात्मक रखें।

स्वयं में सकारात्मक दृष्टि की शक्ति निम्नलिखित गुणों व मूल्यों को विकसित कर की जा सकती है–

(1) आशावादी सोच– “मैं ऐसा कर पाऊंगा” यह आशावादी सोच है तथा “मैं इसे नहीं कर पाऊंगा” यह निराशावादी सोच है। निराशावादी हमेशा त्रुटियाँ खोजता है जबकि आशावादी उन त्रुटियों का समाधान । निराशावादी सहानुभूति बटोरने का यत्न करता है, जबकि आशावादी चारों ओर उल्लास बिखेरता है । निराशावादी केवल परिस्थितियों की आलोचना ही । करता रहता है जबकि आशावादी प्रतिकूल परिस्थितियों को बदलने व अपने अनुकल बनाने का प्रयत्न करता है । निराशावादी अपने आपको हतोत्साहित करने का प्रयत्न करता है और आशावादी स्वयं को प्रोत्साहित करता है । निराशावादी अकेलापन खोजता है जबकि आशावादी मिलनसार होता है। स्वयं में सकारात्मकता उत्पन्न करने के लिए आशावादी सोच अपेक्षित है न कि ' निराशावादी।

(2) आत्मविश्वास– जो जैसा सोचता है, वैसा ही बन जाता है। अपने में अपनी क्षमताओं व योग्यताओं में यकीन रखना आत्म विश्वास है । आत्मविश्वासी व्यक्ति स्वयं को दुर्बल न बनाकर सबल मानता है। आत्मविश्वास के उदाहरण दृष्टव्य हैं–

(i) एक बार एक विद्यार्थी को परीक्षा में अनुत्तीर्ण बताया गया। उसने शिक्षक से कहा–मैं अनुत्तीर्ण नहीं हो सकता, रिजल्ट पुनः देखिए। मुझे अपने उत्तर सही होने पर पर्ण विश्वास है। परीक्षाफल की पुनः जाँच करने पर पाया गया कि छात्र सर्वोत्तम अंकों से उत्तीर्ण हुआ है। सभी शिक्षकों एवं प्राचार्य ने छात्र के आत्मविश्वास को सहारा। वह छात्र थे भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद।

(ii) मुगल सम्राट हुमायूँ (1530–1556) का उदाहरण लें। सन् 1540 के बिलग्राम के युद्ध में परास्त होकर उसे अपने राज्य को छोड़ना पड़ा था। इस पराजय के बावजूद उसने आत्मविश्वास नहीं खोया। निरंतर प्रयास करता रहा अंततः उसके आत्मविश्वास की विजय हुई और 1555 ई. में उसने भारत का साम्राज्य पुनः प्राप्त कर लिया।।

(3) क्षमताओं की पहचान– सकारात्मक व्यक्ति अपनी वास्तविक क्षमताओं की पहचान रखता ह। सक्षमता उसे विरोधाभासी परिस्थितियों से जाने की शक्ति प्रदान करती है। मनावशानिक बन्डुरा के अनुसार तनाव (टेंशन) के प्रभाव को घटाने या कम करने का एक उपाय जानकामता प्रत्याशा है। इसका अर्थ है कि किसी तनाव का सामना या मकाबला करने की क्षमता अपने भीतर जिस हद तक वह समझता है उसी हद तक तनाव का प्रभाव हल्का हा जाता है।

(4) उत्साह व साहस– कायर पुरुष प्रायः डगमगा जाते हैं, जबकि साहसी व्यक्ति आपदाओं पर विजय पा लेते हैं। साहसी व्यक्ति अपने इरादे नहीं बदलते उनका संकल्प अट होता है । उनका उत्साह उन्हें अपने गंतव्य तक पहुँचा देता है । सकारात्मकता रखने वाले व्यक्तियों का उत्साह व साहस सोडावाटर की तरह नहीं होता कि अभी तो उबाल खा रहा है मगर थोड़ी देर में शांत हो गया। उनका साहस व उत्साह सदा बना रहता है।

(5) अनवरत परिश्रम– सकारात्मक दृष्टिकोण रखने वाले केवल विचार ही नहीं रखते–वे लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अनथक परिश्रम भी करते हैं। लुई पाश्चर जिन्होंने कुत्ते के काटने के इलाज की खोज की–उनके परिश्रम की प्रगाढ़ता का यह प्रसंग प्रेरणादायक है। उनके विवाह समारोह के लिए परिवारजन व इष्टमित्र चर्च पहुँच गए लेकिन पाश्चर नहीं पहुँचे। खोज की गई तो एक मित्र ने पाश्चर्य को प्रयोगशाला में किसी प्रयोग में व्यस्त पाया। मित्र बोले यार! हद हो गई आज तुम्हारा विवाह है, चर्च में तुम्हारा इंतजार हो रहा है। बंद करो यह प्रयोग यह तो बाद में भी हो जाएगा। पाश्चर ने अपनी तल्लीनता में उसकी ओर बिना देखे ही कहा जरा रुको । कई वर्षों से मैं जो अनुसंधान कर रहा हूँ उसका परिणाम निकल रहा है। ऐसा न हो कि मेरी वर्षों की मेहनत बेकार हो जाए। पाश्चर प्रयोग पूरा कर ही चर्च के लिए रवाना हए।

(6) समय प्रबंधन– समय बहुमूल्य है अतः समय पर कामों का निपटारा करने के लि उसकी योजना (टाइम टेबल) बना लेना आवश्यक है । किन कामों को प्राथमिकता देनी रे ते भी नियोजित कर लेना चाहिए। समय का पाबंद (पंक्चुअल) होना भी महत्त्वपर्ण है अभी छोटे–छोटे कामों में समय व्यर्थ जाता है । अवकाश के समय का भी सही उपयोग करना चालिनी सकारात्मक सोच रखने वाले मानते हैं कि समय ही धन है।

(7) दढ विचार– विचार वह प्रेरक शक्ति है जो मनुष्य को कार्य करने के लिए प्रेरित प्रोत्साहित व बाध्य करती है। दृढ़ विचार उपलब्धि की ओर ले जाते हैं। मौर्य समांट को (273–286 ई.पूर्व) का उदाहरण है–उसने 261 ई.पू. कलिंग के युद्ध में विजय प्राप्त की। इस यात में हुए नरसंहार एवं हृदय विदारक हिंसा ने अशोक के मर्मस्थल को छू लिया। उसके अंदर करुणा व मानवता के कल्याण के दृढ़ विचार उत्पन्न हुए। इस विचार को कार्यरूप में परिणित करते हुए उसने युद्ध का मार्ग छोड़कर धर्म का मार्ग अपनाया।

(8) चनौती स्वीकारना– लक्ष्य सिद्धि के मार्ग में अनेक कठिनाइयाँ चुनौती के रूप में सामने आती हैं। सकारात्मक दृष्टिकोण रखने वाले चुनौतियाँ स्वीकार करते हैं तथा नकारात्मक दृष्टिकोण वाले विपत्ति समझकर उससे दूर भागते हैं। हनुमान ने 'सीता की खोज' को चनौती के रूप में लिया तथा मार्ग की कठिनाइयों को हल कर सफलता पाई। सोच को सकारात्मक रखने से चुनौतियाँ आसान हो जाती हैं।

(9) इच्छा शक्ति की प्रबलता– सकारात्मकता की शक्ति विकसित करने के लिए मनुष्य में इच्छाशक्ति होनी चाहिए। मनोकामनाओं में बलवती इच्छा शक्ति होती है । जहाज डूबने पर तैरकर किनारे तक पहुँचने वाले में प्रबल इच्छा शक्ति आवश्यक होती है। दृढ़ इच्छाशक्ति का स्वामी दुनिया को अपने अनुसार टाल लेना है । थामस अल्वा एडीसन जिन्होंने बिजली के बल्ब का अविष्कार किया वे पेट्रोमैक्स में काम करते करते परेशान हो गए थे। उन्हें बार–बार लैंप में मिट्टी का तेल भरना पड़ता था। वे इस झंझट को समाप्त करना चाहते थे। उन्होंने सोचा जब वे कालिख (कार्बन) तेल के चलते जल सकती है तो बिजली के तारों से क्यों नहीं। उन्हें एक उपाय सूझा–क्यों न एक लंबी कालिख को दो तारों के बीच रखकर जलाने का प्रयास किया जाए। उनका फिलामेंट कई बार टूट जाता था। सातवीं बार वे राख को दो फिलामेंटों के बीच स्थापित करने में सफल हुए। उन्होंने जैसे ही स्विच ऑन किया फिलामेंट प्रकाशित हो उठा। इस तरह बिजली के बल्ब का आविष्कार हुआ। यह एडीसन की प्रबल इच्छा शक्ति का उदाहरण है ।

(10) जिम्मेदारी स्वीकारना– सकारात्मकता की शक्ति स्वयं में विकसित करने के लिए जिम्मेदारी को स्वीकार करने के लिए जिम्मेदारी को कर्त्तव्य के रूप में लेना चाहिए। अर्जन ने कर्तव्य पालन का पाठ श्रीकृष्ण से सीखकर जिम्मेदारी को समझा।

(11) स्वानुशासन– स्वानुशासन से आशय है नियमों तथा शिष्टाचार के तथा शिष्ट व्यवहार के कायदों का स्व अन्तर्मन से पालन करना । वाणी में संयम तथा मधुरता से ऐसी शक्ति उत्पन्न होती है जिससे दूसरे आपके व्यक्तित्व से अभिभूत हो उठते हैं। सफलता तथा लक्ष्य सिद्धि की दृष्टि से स्वानुशासन एक सकारात्मक सोच है। छात्राध्यापक/शिक्षकों के जीवन में अनुशासन का विशेष महत्त्व है । ये स्वअनुशासित होंगे तो अपने विद्यार्थियों को भी नियम पालन की उपयुक्त शिक्षा दे पाएंगे। बोलने के पहले व्यक्ति को सोच लेना चाहिए कि उसके शब्दों से कोई अशोभनीय स्थिति तो उत्पन्न नहीं होगी। अपशब्दों का प्रयोग तथा क्रोध में कुछ कड़ा बोल जाना दूसरों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है और इससे आपका अहित भी हो सकता है।

(12) आत्म चिंतन व आत्म साक्षात्कार– अपने आप को जानने के लिए, अपनी शक्तियों व कमजोरियों की पहचान के लिए, लक्ष्य प्राप्ति के उपाय सोचने के लिए, ध्यान अत्यावश्यक है। योग विद्या की जन्मभूमि भारत में योगियों का प्रमुख अस्त्र है ध्यान। ध्यान की विभिन्न तकनीकें देश में प्रचलित हैं परन्तु सभी का उद्देश्य अपनी मानसिक शक्तियों का विकास करना है। महर्षि रजनीश, महर्षि महेश योगी, स्वामी सच्चिदानद, स्वामी रामदेव, महर्षि अरवि विख्यात भारतीय हैं जिन्होंने ध्यान को नया रूप दिया है । भावातीत ध्यान, एकीकृत ध्यान, सर्वांग ध्यान आदि विभिन्न प्रचलित तकनीकें आत्मचिंतन व आत्म साक्षात्कार को प्रमुखता दी है। ध्यान स्वयं में सकारात्मक शक्ति को विकसित करने का प्रमुख मार्ग है।

(13) एकाग्रता– इमर्शन का कथन है कि एकाग्रता राजनीति, युद्ध, व्यवसाय अर्थात् मानव व्यवहार के प्रत्येक प्रबंधन में शक्तियों का रहस्य है । श्रीकृष्ण ने गीता में अर्जन को 'स्थिर बुद्धि' का संदेश दिया था जो चित्र की एकाग्रता के बिना संभव नहीं है। जब सूफी कबीर अपने जुलाहे के काम में निमग्न थे, तब उनके सामने से बैंड–बाजों के साथ एक बारात निकली । बारात के गुजर जाने के बाद एक व्यक्ति ने उनसे आकर पूछा 'क्या बारात इधर से गजर गई' कबीर बोले. 'भई, मुझे क्या मालूम? मैं तो अपने काम में लगा था।' चार्ल्स किंग्ले ने कहा है–जब मैं किसी काम में लगता हूँ उस समय दुनिया की और कोई चीज मेरे सामने नहीं होती। यही महान बनने की कुंजी है । एकाग्रता से दृष्टि लक्ष्य की ओर उन्मुख रहती है। अर्जन से गम दोणाचार्य ने पूछा कि क्या पेड़ पर बैठी चिडिया तम्हें दिखाई दे रही है और क्या–क्या दिखाई दे रहा है। धनुर्धर शिष्य अर्जुन ने कहा मुझे तो सिर्फ चिड़िया की आंख ही दिख रही है और कुछ नहीं।

(14) तनाव मुक्ति– आज के जटिल तथा समस्याप्रधान समाज में तनाव या प्रतिबल (स्ट्रस) पग–पग पर सामने आता है। आधनिक शोधों से यह पता चलता है कि लगभग 75 जातशत रागा का कारण यही तनाव है। यहाँ तक कि हृदय रोग व ब्रेन हेमरेज में भी तनाव की भूमिका होता है । तनाव का प्रभाव सिरदर्द उच्च रक्तचाप, पेट के विकार तथा लक्ष्य प्राप्ति में अपराध क रूप में सामने आता है। तनाव से मक्ति पाना सकारात्मक शक्ति से संभव है। हास मारहास, विनाद वृत्ति, धीरज आदि से तनाव से मक्ति पाई जा सकती है। प्रार्थना, शांति प्रसन्नता, आत्म क्षमता, मिलनसारिता, संगीत, ध्यान, योग आदि तनाव से मुक्ति के उपाय हैं।

(15) नेतृत्व या नायकत्व– स्वयं में नेतृत्व शक्ति का विकास सकारात्मक क्षमता विकासत करने में सहायक है। नेतृत्व से टीम वर्क तथा अनुयायी हासिल करने में सहायता मिलता है । लीडरशिप पॉजिटिव पर्सनल्टी का विशेष गुण है। यदि आपमें यह गुण है तो असंभव से लगने वाले कार्य भी संभव हो जाते हैं।

(16) आत्म सम्मान– आत्म सम्मान या स्वाभिमान का सीधा–सा अर्थ है खुद का सम्मान या अपनी दृष्टि में अपना मूल्य आंकलन । आत्म विश्वास मनुष्य में दुर्गुणों को वश में रखने की लगाम है । आत्म सम्मान वाले व्यक्ति के लिए अपकीर्ति मृत्यु से भी अधिक बुरी होती है ।

उपरोक्त प्रमुख गुणों व मूल्यों के अतिरिक्त उचित पोषाक धारण करना, सम्प्रेषण कला या वक्तृताशक्ति, सच्चरित्रता, आलोचना व असफलता से सीख लेना, संतोष, उदारता, आत्मसंयम, योगाभ्यास, इत्यादि गुण या मूल्य स्वयं में सकारात्मकता विकसित करने में सहायक है ।


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सकारात्मक दृष्टिकोण का अर्थ क्या है?

सकारात्मक दृष्टिकोण जीवन को जहां आनंदित करता है वहीं कुछ अनूठा एवं विलक्षण करने की पात्रता भी प्रदान करता है। इन्हीं स्थितियों में हम कई बड़े-बड़े और अनूठे काम कर गुजरते हैं। सकारात्मकता नैतिक साहस को बढ़ाती है।

सकारात्मक सोच क्या है और इसका महत्व उदाहरण सहित बताइए?

वास्तव में हमारी सोच हमारे व्यक्तित्व का प्रतिबिंब है। जीवन की कठिन से कठिन परिस्थितियों को भी हल कर सकने का विश्वास ही हमारी सकारात्मक सोच है। मुश्किल से मुश्किल दौर में भी हिम्मत बनाए रखना हमारे सकारात्मक सोच की शक्ति है। किसी भी मुश्किल कार्य को करने की हिम्मत भी हमें हमारे सकारात्मक सोच से ही मिलती है।

सकारात्मक दृष्टिकोण कैसे बनाएं?

दूसरों के प्रति रुचि दिखाएं लोगों के साथ अच्छे संबंध रखने के लिए, आपको ध्यान देना चाहिए कि वे क्या कह रहे हैं और उनकी सराहना करें। उदाहरण के लिए, यदि कोई आपको उनके विचारों के बारे में बताता है, तो आपको हमेशा मुस्कुराहट के साथ जवाब देना चाहिए ताकि दूसरे व्यक्ति को लगे कि आप उनकी राय को महत्व देते हैं।

सकारात्मक दृष्टि से क्या लाभ होता है?

यह सत्य है कि हम जैसा सोचते हैं वैसा ही प्राप्त करते हैं। नकारात्मक सोच जहां हमें निराशावादिता और असफलता की ओर ले जाती है वहीं सकारात्मक विचार हमें सफलता की ओर अग्रसर करते हैं। यदि हम ये ठानकर चलें कि आज दिनभर हम जो भी सोचेंगे अच्छा ही सोचेंगे तो निश्चित ही हमारा दिन अच्छा जाएगा।