राम कथाओं मे रावण वध को लेकर बहुत सारी कहानियां हैं। कहा जाता है कि रावण की नाभि में अमृत से भरा अमृतकुंड था। विभीषण श्रीराम को रावण की नाभि में अमृत होने का राज़ बता देता है और श्रीराम रावण का वध कर देते हैं। विभीषण को यह राज बताने के लिए आज भी कोसा जाता है। कहा जाता है ‘घर का भेदी लंका ढाहे’ लेकिन क्या ये सच है ? क्या सच में रावण की नाभि में कोई अमृत था और श्रीराम ने रावण की नाभि में बाण मारकर उसकी नाभि का अमृत सोख लिया था जिसके बाद रावण की मृत्यु हो गई ? Show रावण को मारना क्यों कठिन था?
देवता ब्रम्हा जी से कहते हैं कि “आपने रावण को जो वरदान दिया है उसकी वजह से वह तीनों लोकों के प्राणियों पर अत्याचार कर रहा है ।“ देवता ब्रम्हा जी को उस वरदान की याद दिलाते हैं तो ब्रम्हा जी कहते हैं कि – तेन गन्धर्वयक्षाणां देवतानां च रक्षसाम् | अर्थः- रावण ने कहा कि मैं गंधर्व, देवता, दैत्यों और यक्षों के द्वारा अवध्य हो जाऊँ । मैंने (ब्रम्हा जी) कहा कि ऐसा ही होगा ‘वाल्मीकि रामायण’ के ‘उत्तरकांड’ के ‘दशम सर्ग’ में भी ब्रम्हा जी से रावण के वरदान मांगने की कथा दोबारा आती है , लेकिन यहां दिए गए श्लोक में थोड़ा अंतर भी दिखाई देता है – सुपर्णनागयक्षाणां दैत्यदानवरक्षसाम। अर्थः-सनातन प्रजापते! मैं गरुड़, नाग, यक्ष, दैत्य, दानव, राक्षस तथा देवताओं के लिए अवध्य हो जाऊँ। ‘वाल्मीकि रामायण’ के ‘बालकांड’ के ‘सर्ग 15’ के मुताबिक रावण अपने वरदान में मनुष्यों के द्वारा अपनी मृत्यु होने का वरदान मांगना भूल गया। जबकि ‘उत्तरकांड’ में सर्ग 10 के श्लोक 20 में रावण कहता है कि उसे मनुष्य आदि तुच्छ प्राणियों से अपनी जान का भय नहीं है यही वजह थी कि भगवान विष्णु ने श्रीराम अवतार लिया ताकि वो मनुष्य रुप में रावण का वध कर सकें। इसके अलावा रावण को कई ऐसी सिद्धियां प्राप्त थीं जिसकी वजह से उसका सिर कटने के बाद भी वह पुनः जीवित हो उठता था। रावण की नाभि में अमृत कुंड का रहस्यसबसे पहले अगर हम ‘आदि काव्य’ और श्री राम के चरित्र पर लिखे गए सबसे प्रथम महान ग्रंथ ‘वाल्मीकि रामायण’ को पढ़ते हैं तो ये कथा कहीं भी नज़र नहीं आती है। ‘वाल्मीकि रामायण’ के मुताबिक जब रावण और श्री राम के बीच युद्ध हो रहा था तो देवराज़ इंद्र ने श्री राम की सहायता हेतु अपना दिव्य रथ और अपने सारथी मातलि को भेजा था। इसी मातलि ने श्री राम से यह कहा कि “क्या आप रावण को मारने की युक्ति भूल गये हैं जो इतनी देर कर रहे हैं? अथ संस्मारयामास मातली राघवं तदा | अर्थः- मातलि ने रघुनाथ जी को कुछ याद दिलाते हुए कहा कि हे वीरवर! आप अनजान की तरह क्यों इस राक्षस का अनुसरण कर रहे हैं ? विसृजास्मै वधाय त्वमस्त्रं पैतामहं प्रभो | अर्थः- मातली कहते हैं कि कि “हे प्रभु श्री राम! आप ब्रह्मा जी के अस्त्र का प्रयोग करें क्योंकि अब देवताओं के अनुसार रावण के वध का समय आ चुका है” ततः संस्मारितो रामस्तेन वाक्येन मातलेः | अर्थः- मातलि के याद कराने के बाद प्रभु श्री राम को उस अस्त्र का स्मरण हो गया, फिर उन्होंने फुफकारते हुए सर्प के समान उस तेजस्वी बाण को अपने हाथ में ले लिया। यह वही बाण था जिसे ब्रम्हा ने सबसे पहले इंद्र को दिया था । इस बाण को इंद्र ने अगत्स्य को दिया था और जिसे अगस्त्य ऋषि ने श्री राम को युद्ध में उस वक्त दिया था जब अगत्स्य श्रीराम को आदित्य ह्दय स्त्रोत्र का गुप्त ज्ञान दे कर रावण के विरुद्ध युद्ध के लिए तैयार करते हैं स रावणाय संक्रुद्धो भृशमायम्य कार्मुकम् | अर्थः- श्रीराम ने अत्यंत कुपित होकर बड़े यत्न के साथ धनुष को पूर्णरुप से खींच कर उस मर्मभेदी बाण को रावण पर चला दिया। वज्रधारी इंद्र के हाथों से छूटे हुए वज्र के समान दुर्धर्ष और काल के समान अनिवार्य वह बाण रावण की छाती पर जा लगा। स विसृष्टो महावेगहः शरीरान्तकरः शरः | अर्थः- शरीर का अंत कर देने वाले इस महान वेगशाली श्रेष्ठ बाण ने छूटते ही दुरात्मा रावण के ह्रदय को विदीर्ण कर डाला । रुधिराक्तः स वेगेन शरीरान्तकरः शरः | अर्थः- शरीर का अंत करके रावण के प्राण हर लेने वाला वब बाण उसके खून से रंगकर वेगपूर्वक धरती में समा गया । ‘वाल्मीकि रामायण’ के इन श्लोकों को ठीक से पढ़ा जाए तो यह संकेत मिलता है कि रावण की नाभि में कोई अमृत से भरा अमृत कुंड नहीं था। दूसरे, वह बाण ब्रह्मा जी के द्वारा तो निर्मित था, लेकिन वो ब्रह्मास्त्र नहीं था । इस बाण को ब्रह्मा जी ने सबसे पहले इंद्र को दिया था। इसी बाण को इंद्र ने अगत्स्य ऋषि को दिया था । श्रीराम को ऋषि अगस्त्य ने इसी बाण को युद्ध के पहले उस वक्त दिया था जब श्री राम युद्ध के परिणाम को लेकर आशंका में थे। अगस्त्य ने श्री राम को आदित्य ह्दय का पाठ कराकर भगवान सूर्य की अराधना कराई थी । संभवत इसके ठीक बाद ही श्री राम को अगस्त्य ऋषि ने रावण को मारने वाला ये विशेष बाण दिया था । तमिल कम्ब रामायण में रावण के वध की कथा तमिल भाषा की कम्ब रामायण में भी रावण की नाभि में अमृत से भरा अमृत कुंड होने की कोई कथा नहीं है। कंब रामायण के अनुसार श्रीराम पहले रावण के उस धनुष को तोड़ डालते हैं जिसे ब्रह्मा ने उसे दिया था। इसके बाद श्रीराम विचार करते हैं कि नारायण की नाभि से निकले ब्रह्मा के अस्त्र से ही रावण का वध किया जा सकता है। इसके बाद श्रीराम ब्रह्मा के उस बाण से रावण की छाती पर प्रहार करते हैं और रावण का वध हो जाता है । वाल्मीकि रामायण और कम्ब रामायण दोनों में ही कहीं भी विभीषण के द्वारा रावण की नाभि में अमृत से भरा अमृत कुंड होने का रहस्य बताने की कथा नहीं आती है। वाल्मीकि रामायण में मातलि के द्वारा जरुर श्रीराम को ब्रह्मा जी के दिए बाण का स्मरण कराया जाता है जो रावण के वध के लिए प्रयुक्त होता है। अध्यात्म रामायण में रावण की नाभि में अमृत कुंड होने की कथापहली बार अध्यात्म रामायण में रावण की नाभि में अमृत से भरे अमृत कुंड होने की कथा आती है। अध्यात्म रामायण के युद्धकांड में जब श्रीराम और रावण के बीच युद्ध हो रहा था तो उस वक्त श्रीराम के बाणों से रावण का सिर कट कर गिर जाता है। इसके बाद अचानक उसके सारे सिर फिर से उसके धड़ों पर आकर लग जाते हैं। ऐसा देख कर श्रीराम चिंता में पड़ जाते हैं कि आखिर रावण का वध फिर किस प्रकार करें?
त एते निष्फलं याता रावणस्य निपातने। अर्थः- राम को इस प्रकार चिंतामग्न देखकर उनके पास खड़े विभीषण ने कहा – भगवन! ब्रह्मा जी ने रावण को एक वर दिया था । उन्होंने कहा था कि तुम्हारी भुजाएं और सिर बारंबार काटने के बाद भी फिर से उत्पन्न हो जाएंगी। अध्यात्म रामायण में विभीषण रावण की नाभि में अमृत होने का रहस्य खोलता हैइसके बाद विभीषण रावण की नाभि में अमृत होने का रहस्य उजागर करता है और कहता है – उत्पत्स्यन्ति पुनः शीघ्रमित्याह भगवानजः । अर्थः- इसके नाभि देश में कुण्डलाकार से अमृत रखा हुआ है। उसे आप अग्नेयास्त्र से सुखा डालिये, तभी इसकी (रावण) मृत्यु हो जाएगी। विभीषण के इस वचन को सुनकर शीघ्र पराक्रमी राम ने अपने धनुष पर अग्नेयास्त्र चढ़ा कर उस राक्षस रावण की नाभि में मारा और फिर महाबली रघुनाथ जी ने क्रोधित होकर उसके सिर और भुजाएं काट डालीं। रावण की मृत्यु उसके नाभि के अमृत कुंड के सूखने से नहीं होती है
‘रामचरितमानस’ में रावण वध की कथा तुलसीदास जी ने ‘रामचरितमानस’ में रावण की नाभि में अमृत होने की कथा कही है।यह आंशिक रुप से अध्यात्म रामायण से ही ली गई प्रतीत होती है।इसके अलावा विभीषण के द्वारा ही रावण की नाभि में अमृत कुंड होने का रहस्य बताया जाता है । यह कथा भी अध्यात्म रामायण से ही ली गई है। यह कथा वही है जो हम हमेशा सुनते आए हैं। विभीषण श्री राम को यह बताते हैं कि रावण की नाभि में अमृत कुंड है और इसीलिए उसका वध करना असंभव है – नाभिकुंड पियूष बस याकें । नाथ जियत रावनु बल ताकें ।। इसके बाद ‘रामचरितमानस’ की कथा के अनुसार प्रभु श्री राम 31 बाणों को एक साथ छोड़ते हैं । इसमें एक बाण रावण की नाभि का अमृत सोख लेता है और बाकि के बाणों से रावण का शरीर कट कर गिर जाता है । इसी के साथ रावण का वध हो जाता है। लेकिन ‘अध्यात्म रामायण’ में जहां रावण नाभि में अमृत कुंड सूखने के बाद भी युद्ध करता है और आखिर में ब्रह्मास्त्र के द्वारा रावण का वध होता है , वही रामचरितमानस में इन्ही 31 बाणों में एक बाण ( जो कि ब्रह्मास्त्र नहीं है) से रावण की नाभि का अमृत सूख जाता है और इसके साथ ही रावण का वध भी हो जाता है । रावण को अमृत कैसे प्राप्त हुआ था?ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मदेव जी के वरदान से उसके नाभि में अमृत कलश उत्पन्न हुआ था। ब्रह्माजी के वरदान से रावण की नाभि में अमृतकलश स्थापित हुआ था।
रावण अमर कैसे हुआ था?युवावस्था में ही रावण तपस्या करने निकल गया उसे पता था कि ब्रह्मा जी उसके परदादा हैं, इसलिये उसने पहले उनकी घोर तपस्या की और कई वर्षों की तपस्या से प्रसन्न होके ब्रह्मा जी ने उसे वरदान माँग़ने को कहा, तब रावण ने अजर–अमर होने का वरदान माँगा.
अमृत कैसे मिला?समुद्र मंथन में अमृत निकला। इसे प्राप्त करने के लिए देवताओं ने दानवों के साथ छल किया। देवता अमर हो गए।
रावण का रहस्य क्या है?रावण महर्षि विश्रवा का पुत्र और ऋषि पुलस्त्य का वंशज था। महर्षि विश्रवा ने ही रावण को वेद वेदांत और उपनिषद का पाठ पढ़ाया था। ब्राह्मण कुल में पैदा होकर रावण बहुत बड़ा विद्वान बना। उसके जैसा विद्वान ब्राह्मण तीनों लोगों में कोई नहीं था।
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