संविधान सभा के सदस्य कैसे चुने गए? - sanvidhaan sabha ke sadasy kaise chune gae?

भारत की आजादी के 75 साल के अवसर पर ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ के अंतर्गत सूचना और प्रसारण मंत्रालय (एमआईबी) स्वतंत्रता संग्राम के विभिन्न पहलुओं पर पूरे वर्ष के लिए ई-फोटो प्रदर्शनियों की एक श्रृंखला शुरू कर रहा है। इनमें से पहली ई-फोटो प्रदर्शनी ‘संविधान का निर्माण’ पर है। इस वर्चुअल प्रदर्शनी का उद्घाटन आज नई दिल्ली में किया गया।

इस ई-फोटो प्रदर्शनी में संविधान के निर्माण को दर्शाया गया है जिसके साथ-साथ लगभग 30 दुर्लभ चित्र भी प्रस्‍तुत किए गए हैं। इसमें अनेक वीडियो एवं भाषणों के लिंक भी हैं जो आकाशवाणी के अभिलेखागार और फिल्म प्रभाग से लिए गए हैं। इस ई-फोटो प्रदर्शनी में संविधान सभा के गठन से लेकर संविधान को अपनाने और आखिर में भारत के प्रथम गणतंत्र दिवस का जश्न मनाने तक की पूरी यात्रा को बखूबी दर्शाया गया है।   

 यह प्रदर्शनी https://constitution-of-india.in/  पर उपलब्ध है।

संविधान सभा के सदस्य कैसे चुने गए? - sanvidhaan sabha ke sadasy kaise chune gae?

ई-फोटो प्रदर्शनी की मुख्य विशेषताएं

ई-फोटो प्रदर्शनी की शुरुआत भारतीय संसद, जो देश के संविधान का प्रतिनिधित्व करती है, और डॉ. बी.आर. अम्बेडकर, जिन्हें संविधान के निर्माण में अपार योगदान देने के कारण ‘संविधान के जनक’ के रूप में जाना जाता है, की फोटो से होती है।

संविधान सभा का गठन (6 दिसंबर, 1946) और संविधान सभा की पहली बैठक (9 दिसंबर, 1946)- संविधान सभा, जो जनसाधारण द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों का एक निकाय है और जो संविधान का मसौदा तैयार करने या अपनाने के उद्देश्य से इकट्ठे हुए थे, की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई थी।

डॉ. राजेंद्र प्रसाद को अध्‍यक्ष नियुक्त किया गया (11 दिसंबर, 1946)- डॉ. राजेंद्र प्रसाद, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महान सेनानी, वकील, विद्वान थे और जो वर्ष 1950 में भारत के पहले राष्ट्रपति बने, संविधान सभा के पहले अध्यक्ष चुने गए।

'उद्देश्य प्रस्‍ताव' को प्रस्‍तुत करना और अनुमोदन (13 दिसंबर, 1946)- ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ 13 दिसंबर, 1946 को पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा प्रस्‍तुत किया गया था जिसने संविधान के निर्माण के लिए सटीक दर्शन एवं मार्गदर्शक सिद्धांत प्रदान किए और बाद में ‘भारत के संविधान की प्रस्तावना’ का रूप ले लिया।

राष्ट्रीय ध्वज अपनाया गया (22 जुलाई, 1947)-  भारत के राष्ट्रीय ध्वज को 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया था, और यह 15 अगस्त 1947 को भारत के प्रभुत्‍व का आधिकारिक ध्वज बन गया। भारतीय ध्वज में ये शामिल हैं- तिरंगा अर्थात, केसरिया, सफेद और हरा रंग; अशोक चक्र, जो 24 तीलियों वाला पहिया है; और जिसके केंद्र में गहरा नीला रंग है।

स्वतंत्र भारत (15 अगस्त, 1947) - इसी दिन ब्रिटिश साम्राज्य की सत्ता भारत को सौंपी गई, यह अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों के व्‍यापक सहयोग से संभव हो पाया जिनके प्रयासों ने भारत की आजादी को एक वास्तविकता बना दिया। .

मसौदा समिति (29 अगस्त, 1947) - संविधान का मसौदा विभिन्न जातियों, क्षेत्रों, धर्मों, इत्‍यादि के 299 प्रतिनिधियों द्वारा तैयार किया गया था जिनमें महिला व पुरुष दोनों ही शामिल थे। मसौदा समिति और उसके सदस्य भारतीय संविधान के निर्माण में इस समिति के विभिन्‍न चरणों और संविधान सभा के विचार-विमर्श के दौरान काफी प्रभाव रखते थे।

भारत का संविधान पारित किया गया और अपनाया गया (26 नवंबर, 1949)- इस दिन को संविधान दिवस या राष्ट्रीय कानून दिवस के रूप में जाना जाता है। भारत के संविधान को अपनाने के उपलक्ष्य में यह दिवस मनाया जाता है। यह संविधान सभा 26 जनवरी, 1950 को प्रभावी हुई।

संविधान सभा की अंतिम बैठक (24 जनवरी, 1950) - संविधान सभा की अंतिम बैठक। ‘भारत का संविधान’ (395 अनुच्छेदों, 8 अनुसूची, 22 भागों के साथ) पर हस्ताक्षर किए गए और सभी ने इसे स्वीकार किया।

जब संविधान लागू हुआ (26 जनवरी, 1950)- संविधान ने देश के मौलिक शासी दस्तावेज के रूप में भारत सरकार अधिनियम 1935 का स्‍थान लिया और भारत का प्रभुत्‍व भारतीय गणराज्य बन गया।

पहला आम चुनाव (1951-52)- भारत में आम चुनाव 25 अक्टूबर 1951 से लेकर 21 फरवरी 1952 तक के बीच हुए। ये अगस्त 1947 में देश की आजादी के बाद लोकसभा के पहले चुनाव थे। ये भारतीय संविधान के प्रावधानों के तहत कराए गए थे जिसे 26 नवंबर 1949 को अपनाया गया था।

ई-फोटो प्रदर्शनी में पाठकों की भागीदारी बढ़ाने और नागरिकों की ‘जन भागीदारी के जरिए जनांदोलन’ सुनिश्चित करने के लिए एक अतिरिक्त परस्‍पर संवादात्‍मक/आकर्षक प्रश्नोत्तरी भी है जिसमें 10 प्रश्नों का एक सेट है।

यह ई-फोटो प्रदर्शनी हिंदी एवं अंग्रेजी और 11 अन्य भाषाओं (उड़िया, गुजराती, मराठी, असमिया, तेलुगु, कन्नड़, तमिल, मलयालम, पंजाबी, बंगाली, उर्दू) में उपलब्ध है।

इसके लिए लिंक एमआईबी, बीओसी, पीआईबी, डीडी, एआईआर और एमआईबी के क्षेत्रीय कार्यालयों एवं विभिन्न मंत्रालयों की अन्य वेबसाइटों पर उपलब्ध है। ये लिंक पीआईबी/आरओबी के क्षेत्रीय कार्यालयों द्वारा स्थानीय विश्वविद्यालयों, कॉलेजों, स्कूलों के लिए उपलब्ध कराए जाएंगे। इसके अलावा, इनके संबंधित सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर भी इनका प्रचार-प्रसार किया जाएगा।

विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों जैसे कि एफबी/ट्विटर/यूट्यूब चैनलों के माध्यम से भी इनका प्रचार-प्रसार किया जाएगा। पाठकगण भी #AmritMahotsav का उपयोग करके इस विषय से संबंधित किसी भी उत्‍कृष्‍ट सामग्री को पोस्ट या शेयर कर सकते हैं।

उमेश चतुर्वेदी। देश में जब भी कोई संकट आता है या राजनीतिक विवाद होते हैं, तब-तब संविधान का ही हवाला देकर उस विवाद और संकट को हल करने की बात की जाती है। आजादी के 75वें साल में आते-आते और अपने लागू होने की 71वीं सालगिरह तक अपने देश में संविधान किसी धर्मग्रंथ से भी ज्यादा पूजनीय और पवित्र बन चुका है। लेकिन इसके निर्माण से जुड़े कई ऐसे तथ्य हैं, जिसे बहुत कम ही लोग जानते हैं।

जिस संविधान सभा ने संविधान तैयार किया, एक दौर तक उसका विरोध वामपंथी विचारधारा करती रही। उनका तर्क था कि संविधान सभा के सभी 389 सदस्यों का चुनाव तो हुआ था, लेकिन उनका निर्वाचन प्रत्यक्ष नहीं था। यानी जिस जनता के लिए वह सभा संविधान का निर्माण करने वाली थी, उसका निर्वाचन उस जनता ने नहीं किया था।

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दरअसल संविधान सभा के सभी सदस्यों को या तो तब के अंग्रेज शासित राज्यों के विधान मंडलों और रियासतों के सीमित मतदाता वर्ग ने चुना था। संविधान सभा के कई सदस्य बेशक भारत की आजादी के आंदोलन के सेनानी रहे थे, लेकिन जिस प्रारूप समिति ने इसे तैयार किया, उसका कोई सदस्य आजादी के आंदोलन में शामिल ही नहीं था। संविधान सभा की प्रारूप समिति के सातों सदस्यों में से एक कन्हैया लाल मणिक लाल मुंशी स्वाधीनता सेनानी तो थे, लेकिन भारत की आजादी के लिए हुई निर्णायक जंग यानी भारत छोड़ो के वक्त वे चुप थे।

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आजाद भारत के पहले भारतीय गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी भी भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान चुप रहे। बाबा साहब भीमराव आंबेडकर इस प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे। लेकिन वे भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ब्रिटिश वायसराय की काउंसिल के सदस्य थे। यानी आजादी के आंदोलन में उनकी सीधी भागीदारी नहीं थी, बल्कि उस दौरान वह ब्रिटिश सरकार के मंत्री की हैसियत से काम कर रहे थे। संविधान सभा का गठन छह दिसंबर 1946 को हुआ था। इसके तहत संविधान निर्माण की समिति बनी, जिसे ड्राफ्ट कमेटी भी कहा जाता है। उसके जिम्मे संविधान के तब तक तैयार संविधान के प्रारूप पर बहस करके उसे 389 सदस्यीय संविधान सभा में प्रस्तुत करना था, जो उसे अंतिम रूप देगी।

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देश के भावी सरकार के लिए तत्कालीन अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और उप-प्रधानमंत्री सरदार पटेल ने कर्नाटक के जाने माने विधिवेत्ता बेनेगल नरसिम्ह राव को विधि सलाहकार का पद देकर संविधान के प्रारूप पर काम करने के लिए 1946 में ही जिम्मेदारी दे दी थी। बीएन राव ने मद्रास और कैंब्रिज विश्वविद्यालय से पढ़ाई की थी। वर्ष 1910 में वे भारतीय सिविल सेवा के लिए चुने गए। वर्ष 1939 में उन्हें कलकत्ता हाई कोर्ट का न्यायाधीश बनाया गया। जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने 1944 में उन्हें अपना प्रधानमंत्री नियुक्त किया था। इन्हीं राव साहब को संविधान का मूल प्रारूप तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई थी। भारत सरकार के संविधान सलाहकार के नाते उन्होंने वर्ष 1945 से 1948 तक अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन आदि देशों की यात्र की और तमाम देशों के संविधानों का अध्ययन किया। इसके बाद उन्होंने 395 अनुच्छेद वाले संविधान का पहला प्रारूप तैयार करके संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष डा. आंबेडकर को सौंप दिया।

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29 अगस्त 1947 को प्रारूप समिति की बैठक में कहा गया कि संविधान सलाहकार बीएन राव द्वारा तैयार प्रारूप पर विचार कर उसे संविधान सभा में पारित करने हेतु प्रेषित किया जाए। संविधान सभा में संविधान का अंतिम प्रारूप प्रस्तुत करते हुए 26 नवंबर 1949 को भीमराव आंबेडकर ने जो भाषण दिया था, उसमें उन्होंने संविधान निर्माण का श्रेय बीएन राव को भी दिया है।

संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष आंबेडकर थे। उसके दूसरे सदस्य थे अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर, जो मद्रास प्रांत के महाधिवक्ता रहे। इसके तीसरे सदस्य थे, कन्हैया लाल मणिक लाल मुंशी। मुंशी की ख्याति गुजराती और हिंदी लेखक के साथ ही जाने-माने वकील के रूप में भी रही है। मुंशी ने भी 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा नहीं लिया था। तब उनका मानना था कि गृह युद्ध के जरिये भारत अखंड रह सकता है। वे पाकिस्तान के निर्माण के विरोध में इसी विचार को सहयोगी पाते थे। इसके चौथे सदस्य थे, असम के मोहम्मद सादुल्ला। वैसे तो उन्होंने मुस्लिम लीग के साथ राजनीति की, लेकिन वे भारत में ही रहे। पांचवें सदस्य थे आंध्र प्रदेश के मछलीपत्तनम निवासी एन माधवराव, जो मैसूर राज्य के दीवान यानी प्रधान मंत्री भी रहे। वे तेलुगूभाषी थे और दिलचस्प है कि हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के विरोधी रहे। छठे सदस्य को लोग नेहरू सरकार में वित्त मंत्री रहे टीटी कृष्णमाचारी के रूप में जानते हैं। सातवें सदस्य एन गोपालास्वामी अयंगर थे। वे बीएन राव से पहले कश्मीर के प्रधान मंत्री रहे।

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संविधान सभा ने जब 26 नवंबर 1949 को संविधान को अंगीकृत किया तो इसके सभी सदस्यों ने उस पर हस्ताक्षर किए थे, सिवाय उन्नाव निवासी क्रांतिकारी शायर और संविधान सभा के सदस्य हसरत मोहानी के। उन्हें जवाहरलाल नेहरू ने मनाने की खूब कोशिश की थी, लेकिन वे अडिग रहे। दरअसल वे भारत को राष्ट्रमंडल का अंग बनाए जाने के विरोधी थे।

संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव कैसे हुआ था?

पहली बार संविधान सभा की माँग सन-1895 में बाल गंगाधरतिलक ने उठाई थी। अन्तिम बार (पाँचवी बार) 1938 में नेहरू जी ने संविधान सभा बनाने का निर्णय लिया था। संविधान सभा के सदस्य वयस्क मताधिकार के आधार पर अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित हुए थे। जिनका चुनाव जुलाई 1946 में सम्पन्न हुआ था।

संविधान सभा के स्थाई सदस्य कौन चुने गए?

सच्चिदानंद सिन्हा को संविधान सभा का अस्थायी सदस्य चुना गया, जिन्होंने 9 दिसंबर 1946 को हुई संविधान सभा की पहली बैठक की अध्यक्षता की थी। इसके बाद डॉ. राजेंद्र प्रसाद सभा के स्थायी सदस्य चुने गए

संविधान पर हस्ताक्षर करने वाले अंतिम व्यक्ति कौन थे?

तीनों प्रतियो पर किए थे हस्ताक्षर संविधान प्रस्ताव सर करने वाले सदस्यों की कुल संख्या 284 थी। हस्ताक्षर करने वालों में पंडित जवाहरलाल नेहरू सबसे पहले व्यक्ति थे और अंतिम व्यक्ति संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद ने हस्ताक्षर किये थे

संविधान सभा के सदस्यों ने कब हस्ताक्षर किए?

24 जनवरी 1950 को, 284 सदस्यों ने भारतीय संविधान पर हस्ताक्षर किए। 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा की अंतिम बैठक हुई। संविधान सभा में शुरू में 389 सदस्य थे। संविधान सभा की मांग पहली बार 1935 में INC द्वारा उठाई गई थी।