देश में राजनीतिक रूप से 1977 का वर्ष बहुत ही बदलाव वाला था। इस वर्ष देश को पहली बार गैरकांग्रेसी सरकार मिली। जिसके मुखिया के रूप में मोरारजी देसाई ने पहले गैरकांग्रेसी प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। हालांकि यह सरकार बहुमत से इंदिरा गांधी को हराकर बनाई गई थी फिर भी आपसी खींचतान के चलते यह सरकार ज्यादा नहीं चल पाई और जल्दी ही चुनाव हुए। इन चुनावों में इंदिरा गांधी भारी बहुमत से जीतकर एक बार फिर प्रधानमंत्री बनी। हालांकि यह गठबंधन वाली सरकार ज्यादा नहीं चल पाई लेकिन इसने देश की पार्टियों के सामने महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़ने का रास्ता रखा जिसके आधार पर बाद में देश में कई सरकारें गिराई और बनाई गई। Show मिली 'दूसरी आजादी', विपक्षियों ने बनाई जनता पार्टी 19 महीने बाद जब आपातकाल खत्म हुआ तो यह लोगों के लिए दूसरी आजादी जैसा था। विपक्षी नेताओं को रिहा किया गया। हालात सामान्य होने लगे। इसके बाद जनसंघ, कांग्रेस (ओ), भारतीय लोकदल, सोशलिस्ट पार्टी ने एक होकर जनता पार्टी बनाई, जिसने कांग्रेस को शिकस्त दी। जनता पार्टी यह कहकर लोगों के बीच गई थी कि वह लोकतंत्र को फिर से स्थापित करने आई है। 'सिंहासन खाली करो, जनता आती है' जैसे नारे भी इसी वक्त सुनने में आए। जनता से 'लोकतंत्र या तानाशाही' में से किसी एक को चुनने तक को कहा गया। इसी बीच कांग्रेस के कुछ सीनियर नेताओं (जगजीवन राम, हेमवती नंदन बहुगुणा आदि) ने कांग्रेस छोड़ी, जिससे पार्टी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। जेपी आंदोलन से नए नेताओं का उदय 1974 में पटना के गांधी मैदान में जय प्रकाश नारायण ने एक बड़ी जनसभा की और 'संपूर्ण क्रांति' की घोषणा की। आपातकाल के विरोध में यह आंदोलन चलाया गया था। जेपी ने इस आंदोलन के लिए एक साल तक विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को बंद करने का आह्वान किया। जेपी आंदोलन से जुड़े लोगों को जेल जाना पड़ा। जेपी आंदोलन से ही कई दिग्गज नेता निकले। इनमें जॉर्ज फर्नांडिज, मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, सुशील मोदी और शरद यादव शामिल हैं। जॉर्ज फर्नांडिज और लालू यादव जैसे नेता पहुंचे संसद उत्तर भारत में कांग्रेस का सूपड़ा साफ आपातकाल और उस दौरान चलाए गए जबरन नसबंदी के अभियान ने उत्तर भारत में कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया। बिहार और उत्तरप्रदेश जैसे दो मुख्य राज्यों में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली थी। वहीं अन्य हिंदी भाषी राज्य जैसे राजस्थान और मध्यप्रदेश में कांग्रेस को सिर्फ एक-एक सीट मिली। राजधानी दिल्ली में भी कांग्रेस खाता नहीं खोल पाई थी। अपनी सीट तक नहीं बचा पाईं इंदिरा इंदिरा गांधी ने 1977 के जनवरी माह में लोकसभा भंग कर आम चुनाव की घोषणा की। इसके बाद 16 से 19 मार्च तक वोटिंग हुई और 20 मार्च को वोटों की गिनती शुरू हुई। जिसमें 542 सीटों में से कांग्रेस को सिर्फ 154 सीटों से संतोष करना पड़ा। इस तरह कांग्रेस को करीब 200 सीटों का नुकसान हुआ था। वहीं जनता पार्टी ने 295 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इस चुनाव में इंदिरा (रायबरेली) और उनके बेटे संजय गांधी भी हार गए थे। अपनी सीट नहीं बचा सके इंदिरा-संजय शाह आयोग का गठन, दो बार गिरफ्तार हुईं इंदिरा आपातकाल के दौरान इंदिरा सरकार ने लोगों के अधिकारों का कैसे-कैसे हनन किया इसकी जांच के लिए जनता पार्टी ने शाह आयोग का गठन किया। इसके साथ ही अपनी शक्ति के गलत इस्तेमाल के लिए इंदिरा को नाटकीय ढंग से दो बार अरेस्ट भी किया गया। जिसमें वह पहली बार एक दिन और दूसरी बार करीब एक हफ्ते के लिए जेल में रहीं। इंदिरा ने जीता खोया भरोसा, कमजोर हुई जनता पार्टी इस बीच कांग्रेस में फिर विरोध शुरू हो गया, कई सीनियर नेताओं को लगा कि इंदिरा का राजनीतिक करियर अब खत्म हो चुका है। इसके बाद इंदिरा ने कांग्रेस (आई) का गठन किया। अलग पार्टी बनाने के एक महीने बाद इंदिरा ने 1978 में कर्नाटक और आंध्रप्रदेश के विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज की। यह हाथ के निशान वाली कांग्रेस की पहली जीत थी। दूसरी तरफ 1978 के अंत तक जनता पार्टी की सरकार ने ऐसा कोई बड़ा बदलाव करके नहीं दिखाया था, जिससे जनता प्रभावित हो। उल्टा अपराध, महंगाई, भ्रष्टाचार आदि और ज्यादा बढ़ गए। वहीं शुरुआत से चली आ रही कलह पार्टी को लगातार कमजोर कर रही थी। जनता पार्टी की सरकार गिराने के मौके ढूंढ़ रहे थे संजय गांधी दरअसल, चरण सिंह इंदिरा पर सख्त ऐक्शन लेने के पक्षकार थे। इसपर अनबन इतनी बढ़ गई कि मोरारजी देसाई ने चरण सिंह और इंदिरा को चुनाव हरानेवाले राज नारायण को पार्टी से निकाल दिया। दूसरी तरफ जनता पार्टी की सरकार गिराने के जुगाड़ लगा रहे संजय गांधी ने उस मौके को भुनाने का सोचा। उन्होंने चरण सिंह के हनुमान कहे जानेवाले राज नारायण से करीबी बढ़ाई। इस बीच मोरारजी ने दोनों सीनियर नेताओं को पार्टी में तो ले लिया, लेकिन अनबन बनी रही। नाटकीय राजनीतिक घटनाक्रम के बाद 1980 में हुए चुनाव दूसरी तरफ संजय गांधी किसी तरह जनता पार्टी की सरकार गिराने का जुगाड़ लगा रहे थे। इसे ध्यान में रखते हुए उन्होंने राज नारायण को मना लिया कि वह भारतीय लोक दल का समर्थन जनता पार्टी सरकार से वापस ले लें। संजय ने वादा किया था कि कांग्रेस चरण सिंह को प्रधानमंत्री बनने में मदद करेगी। इसपर राज नारायण राजी हो गए। फिर मोरारजी देसाई के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। जनता पार्टी की सरकार गिराई गई। वादे के मुताबिक, चरण सिंह पीएम भी बने लेकिन सिर्फ 23 दिन के लिए। इसके बाद इंदिरा ने उनसे समर्थन वापस ले लिया और फिर 1980 में चुनाव की घोषणा हो गई। इसके साथ ही चरण सिंह इकलौते ऐसे भारतीय प्रधानमंत्री बन गए, जिनकी सरकार संसद में कदम रखने से पहले ही गिर गई। 1977 के चुनाव में क्या हुआ था?में एक प्रमुख घटनाओं की बारी है, सत्तारूढ़ कांग्रेस का नियंत्रण खो दिया के लिए भारत में पहली बार स्वतंत्र भारत में भारतीय आम चुनाव, 1977. जल्दबाजी में गठित जनता गठबंधन की पार्टियों का विरोध करने के लिए सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी, होंगे 298 सीटें हैं ।
1977 में भारत में किसकी सरकार थी?श्री देसाई गुजरात के सूरत निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा के लिए चुने गए थे। बाद में उन्हें सर्वसम्मति से संसद में जनता पार्टी के नेता के रूप में चुना गया एवं 24 मार्च 1977 को उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली।
1976 में केंद्र में किसकी सरकार थी?25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का 21 महीने की अवधि में भारत में आपातकाल घोषित था। तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की अनुच्छेद 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा कर दी।
1978 में भारत में किसकी सरकार थी?मोरारजी देसाई (29 फ़रवरी 1896 – 10 अप्रैल 1995) (गुजराती: મોરારજી રણછોડજી દેસાઈ) भारत के स्वाधीनता सेनानी, राजनेता और देश के चौथे प्रधानमंत्री (सन् 1977 से 79) थे।
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