Show ऋग्वेद सनातन धर्म अथवा हिन्दू धर्म का स्रोत है । इसमें 1028 सूक्त हैं, जिनमें देवताओं की स्तुति की गयी है। इस ग्रंथ में देवताओं का यज्ञ में आह्वान करने के लिये मन्त्र हैं। यही सर्वप्रथम वेद है। ऋग्वेद को दुनिया के सभी इतिहासकार हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की सबसे पहली रचना मानते हैं। ये दुनिया के सर्वप्रथम ग्रन्थों में से एक है। ऋक् संहिता में 10 मंडल, बालखिल्य सहित 1028 सूक्त हैं। वेद मंत्रों के समूह को 'सूक्त' कहा जाता है, जिसमें एकदैवत्व तथा एकार्थ का ही प्रतिपादन रहता है। ऋग्वेद के सूक्त विविध देवताओं की स्तुति करने वाले भाव भरे गीत हैं। इनमें भक्तिभाव की प्रधानता है। यद्यपि ऋग्वेद में अन्य प्रकार के सूक्त भी हैं, परन्तु देवताओं की स्तुति करने वाले स्रोतों की प्रधानता है। प्रमुख तथ्यऋग्वेद के विषय में कुछ प्रमुख बातें निम्नलिखित है-
ऋक्ष शब्द ऋग्वेद में एक बार तथा परवर्ती वैदिक साहित्य में कदाचित ही प्रयुक्त हुआ है। ऋग्वेद में यातुधानों को यज्ञों में बाधा डालने वाला तथा पवित्रात्माओं को कष्ट पहुँचाने वाला कहा गया है। नवाँ मण्डल सोम से सम्बन्धित होने से पूर्ण रूप से स्वतन्त्र है। यह नवाँ मण्डल आठ मण्डलों में सम्मिलित सोम सम्बन्धी सूक्तों का संग्रह है, इसमें नवीन सूक्तों की रचना नहीं है। दसवें मण्डल में प्रथम मण्डल की सूक्त संख्याओं को ही बनाये रखा गया है। पर इस मण्डल का विषय, कथा, भाषा आदि सभी परिवर्तीकरण की रचनाएँ हैं। ऋग्वेद के मन्त्रों या ऋचाओं की रचना किसी एक ऋषि ने एक निश्चित अवधि में नहीं की, अपितु विभिन्न काल में विभिन्न ऋषियों द्वारा ये रची और संकलित की गयीं। ऋग्वेद के मन्त्र स्तुति मन्त्र होने से ऋग्वेद का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्त्व अधिक है। चारों वेदों में सर्वाधिक प्राचीन वेद ऋग्वेद से आर्यों की राजनीतिक प्रणाली एवं इतिहास के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। ऋग्वेद अर्थात् ऐसा ज्ञान, जो ऋचाओं में बद्ध हो। विभागऋग्वेद में दो प्रकार के विभाग मिलते हैं-
सूक्तों के पुरुष रचयिताओं में गृत्समद, विश्वामित्र, वामदेव, अत्रि, भारद्वाज और वसिष्ठ तथा स्त्री रचयिताओं में लोपामुद्रा, घोषा, अपाला, विश्वरा, सिकता, शचीपौलोमी और कक्षावृत्ति प्रमुख है। इनमें लोपामुद्रा प्रमुख थी। वह क्षत्रीय वर्ण की थी किन्तु उनकी शादी अगस्त्य ऋषि से हुई थी। ऋग्वेद के दूसरे एवं सातवें मण्डल की ऋचायें सर्वाधिक प्राचीन हैं, जबकि पहला एवं दसवां मण्डल अन्त में जोड़ा गया है। ऋग्वेद के आठवें मण्डल में मिली हस्तलिखित प्रतियों के परिशिष्ट को ‘खिल‘ कहा गया है। ऋग्वेद के मण्डल एवं उसके रचयिता
प्राचीन रचनाऋग्वेद भारत की ही नहीं सम्पूर्ण विश्व की प्राचीनतम रचना है। इसकी तिथि 1500 से 1000 ई.पू. मानी जाती है। सम्भवतः इसकी रचना सप्त-सैंधव प्रदेश में हुई थी। ऋग्वेद और ईरानी ग्रन्थ 'जेंद
अवेस्ता' में समानता पाई जाती है। ऋग्वेद के अधिकांश भाग में देवताओं की स्तुतिपरक ऋचाएं हैं, यद्यपि उनमें ठोस ऐतिहासिक सामग्री बहुत कम मिलती है, फिर भी इसके कुछ मन्त्र ठोस ऐतिहासिक सामग्री उपलब्ध करते हैं। जैसे एक स्थान ‘दाशराज्ञ युद्ध‘ जो भरत कबीले के राजा सुदास एवं पुरू कबीले के मध्य हुआ था, का वर्णन किया गया है। भरत जन के नेता सुदास के मुख्य पुरोहित वसिष्ठ थे, जब
कि इनके विरोधी दस जनों (आर्य और अनार्य) के संघ के पुरोहित विश्वामित्र थे। दस जनों के संघ में- पांच जनो के अतिरिक्त- अलिन, पक्थ, भलनसु, शिव तथ विज्ञाषिन के राजा सम्मिलित थे। भरत जन का राजवंश त्रित्सुजन मालूम पड़ता है, जिसके प्रतिनिधि देवदास एवं सुदास थे। भरत जन के नेता सुदास ने रावी (परुष्णी) नदी के तट पर उस राजाओं
के संघ को पराजित कर ऋग्वैदिक भारत के चक्रवर्ती शासक के पद पर अधिष्ठित हुए। ऋग्वेद में, यदु, द्रुह्यु, तुर्वश, पुरू और अनु पांच जनों का वर्णन मिलता है। शाखाएँऋग्वेद के मंत्रों का उच्चारण यज्ञों के अवसर पर 'होतृ ऋषियों' द्वारा किया जाता था। ऋग्वेद की अनेक संहिताओं में 'संप्रति संहिता' ही उपलब्ध है। संहिता का अर्थ संकलन होता है। ऋग्वेद की पांच शाखायें हैं-
ऋग्वेद के कुल मंत्रों की संख्या लगभग 10600 है। बाद में जोड़ गये दशम मंडल, जिसे ‘पुरुषसूक्त‘ के नाम से जाना जाता है, में सर्वप्रथम शूद्रों का उल्लेख मिलता है। इसके अतिरिक्त नासदीय सूक्त (सृष्टि विषयक जानकारी, निर्गुण ब्रह्म की जानकारी), विवाह सूक्त (ऋषि दीर्घमाह द्वारा रचित), नदि सूक्त (वर्णित सबसे अन्तिम नदी गोमल), देवी सूक्त आदि का वर्णन इसी मण्डल में है। इसी सूक्त में दर्शन की अद्वैत धारा के प्रस्फुटन का भी आभास होता है। सोम का उल्लेख नवें मण्डल में है। 'मैं कवि
हूं, मेरे पिता वैद्य हैं, माता अन्नी पीसनें वाली है। यह कथन इसी मण्डल में है। लोकप्रिय 'गायत्री मंत्र' (सावित्री) का उल्लेख भी ऋग्वेद के 7वें मण्डल में किया गया है। इस मण्डल के रचयिता वसिष्ठ थे। यह मण्डल
वरुण देवता को समर्पित है। त्रित देवता की कथा
संबंधित लेखऋग्वेद के 7 वे मंडल में क्या है?ऋग्वेद 7वें मंडल में सुदास तथा दस राजाओं के मध्य हुए युद्ध का वर्णन किया गया है,जो कि पुरुष्णी (रावी) नदी के तट पर लङा गया , इस युद्ध में सुदास की जीत हुई । वशिष्ठ एवं उनके वंशजो द्वारा 7वे मंडल में 104 सूक्त वर्णित किये गए। वशिष्ठ एवं सुदास संवाद बहुत प्रसिद्ध है।
ऋग्वेद के आठवें मंडल में क्या है?आठवें मण्डल में कण्व, भृगु आदि कुछ परिवारों के मन्त्र संकलित हैं। पहले और दसवें मण्डल में सूक्त-संख्या समान हैं। दोनों में 191 सूक्त ही हैं। इन दोनों मण्डलों की उल्लेखयोग्य विशेषता यह भी है कि इसमें अनेक ऋषियों के द्वारा साक्षात्कार किये गये मन्त्रों का संकलन किया गया है।
ऋग्वेद के 3 मंडल में क्या है?मंडल 3 में 62 ऋचाएं हैं, जिनमें मुख्य रूप से अग्नि और इंद्र और विश्वदेव हैं। श्लोक ३.६२.१० गायत्री मंत्र है, जिसका हिंदू धर्म में बहुत महत्व है। इस मंडला में अधिकांश का श्रेय विश्वामित्र को दिया जाता है।
ऋग्वेद के 6 मंडल में क्या है?ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के रचयिता अनेक ऋषि हैं जबकि द्वितीय के गृत्समय, तृतीय के विश्वासमित्र, चतुर्थ के वामदेव, पंचम के अत्रि, षष्ठम् के भारद्वाज, सप्तम के वसिष्ठ, अष्ठम के कण्व व अंगिरा, नवम् और दशम मंडल के अनेक ऋषि हुए हैं।
|