जानिए विजयदशमी का महत्व व पूजन विधि और क्यों की जाती है इस दिन शस्त्र पूजाMy jyotish expert Updated 12 Oct 2021 03:39 PM IST Show Vijay dashmi significance - फोटो : google वैदिक काल से आज तक जो चार उत्सव-त्योहार भारतीय समाज में जीवित हैं, उनमें विजयदशमी भी एक है। विजयदशमी यानि दशहरा का पर्व हर साल देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है, क्या आप जानते हैं कि इस दिन को कई जगहों पर आयुधपूजा या शस्त्र पूजा के नाम भी जाना जाता है। जैसे तमिलनाडु, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में इसे आयुध पुजाई के नाम से अस्त्र-शस्त्र का पूजन किया जाता है। इसके अलावा केरल, उड़ीसा, कर्नाटक राज्यों में मनाया जाता है। महाराष्ट्र में आयुध पूजा को खंडे नवमी के रूप में मनाया जाता है। यूपी, बिहार, मध्यप्रदेश अन्य जगहों पर शस्त्र पूजन के रूप में जाना जाता है। नवरात्रि स्पेशल - 7 दिन, 7 शक्तिपीठ में श्रृंगार पूजा : 7 - 13 अक्टूबर हर कोई इस पर्व का इंतजार बेसब्री से करता है, हर बार यह पर्व अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। ऐसे में कई लोगों के मन में ये प्रश्न उठना स्वाभाविक बात है कि जब यह दशहरे का दिन है तो इस दिन शस्त्र पूजा क्यों की जाती है। तो ऐसे में आज इस दौरान की जाने वाली शस्त्र पूजा के कारण के बारे में बता रहे है। दरअसल शस्त्र पूजा नवरात्रि का एक अभिन्न अंग माना जाता है, इस दिन सभी अस्त्र-शस्त्र की पूजा करने की परंपरा है। भारत में नवरात्रि के अंतिम दिन अस्त्र पूजन की परंपरा सदियों से चली आ रही है। -: दशहरे का किया हैं, महत्व • वाल्मीकि रामायण में श्रीराम ने किष्किंधा (महाराष्ट्र) के ऋष्यमूक पर्वत पर चातुर्मास अनुष्ठान किया था। श्रीराम का यह अनुष्ठान आषाढी पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन मास में शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि तक चला था। इसके ठीक तुरंत बाद विजया दशमी को श्रीराम ने अनुज लक्ष्मण, वानरपति सुग्रीव और वीर हनुमान के साथ किष्किंधा से लंका की ओर प्रस्थान किया। पद्मपुराण के अनुसार श्रीराम का राक्षस रावण से युद्ध पौष शुक्ल द्वितीया से शुरू होकर चैत्र कृष्ण तृतीया तक चला। पौराणिक मान्यतानुसार चैत्र कृष्ण तृतीया को श्रीराम ने अधर्मी रावण का संहार किया था। इसके बाद अयोध्या लौट आने पर नव संवत्सर की प्रथम तिथि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ। अत: दशहरे को रावण वध की बात न केवल अतार्किक है बल्कि पौराणिक मान्यता के भी विरुद्ध है। हां, रामलीला के उल्लास के लिए रावण का वध सुखद व मनोरंजक अवश्य है। -: शस्त्रपूजन का दिन है दशहरा • आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा से लेकर नवमी तक दुर्गा पूजा का उत्सव, जिसे नवरात्र भी कहते हैं, किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। आश्विन का दुर्गोत्सव धूमधाम के साथ मनाया जाता है, विशेषत: बंगाल, बिहार एवं कामरूप में। वैसे शक्ति को पूजने का नवरात्र-उत्सव वर्ष में दो बार आता हैं फिर भी आश्विन मास का दुर्गा पूजा-उत्सव ही पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। नौ दिन तक चलने वाले इस दुर्गा अनुष्ठान का उत्थापन-विसर्जन जिस तिथि को होता है, वह है-विजया दशमी। यह सदियों से शौर्य, पराक्रम और राष्ट्र व धर्म के प्रति समर्पित भावनाओं को प्रदर्शित करने के लिए महत्वपूर्ण तिथि है। एक ओर, ज्योतिष शास्त्र व कर्मकांड की मान्यतानुसार इस दिन श्रवण नक्षत्र होने से यह देवी प्रतिमा के विसर्जन का दिन है। वहीं धर्मशास्त्रीय नियमों के हिसाब से अपराजिता पूजन, शमी पूजन, सीमोल्लंघन, गृह-पुनरागमन, घर की नारियों द्वारा अपने समक्ष दीप घुमाने, नए वस्त्र व आभूषण खरीदने या धारण करने के साथ ही क्षत्रिय-राजपूतों द्वारा घोड़ों, हाथियों, सैनिकों व शस्त्रों को पूजने का दिन भी विजया दशमी ही है। -: शस्त्र पूजन विधि • ऐसे में हर कोई यह भी जानना चाहता है कि आखिर विजयादशमी के दिन शस्त्र पूजन की सही विधि क्या होती है? इस संबंध में जानकारों का कहना है कि इसके लिए सबसे पहले घर पर जितने भी शस्त्र हैं, उन पर पवित्र गंगाजल का छिड़काव करें। शस्त्रों को पवित्र करने के बाद उन पर हल्दी या कुमकुम से टीका लगाएं और फल-फूल अर्पित करें। वहीं एक बात का ध्यान अवश्य रखें कि शस्त्र पूजा में शमी के पत्ते जरूर चढ़ाएं। दशहरे पर शमी के पेड़ की पूजा करने का विशेष महत्व होता है। इस नवरात्रि, सर्व सुख समृद्धि के लिए कामाख्या देवी शक्ति पीठ में करवाएं दुर्गा सप्तशती का विशेष पाठ : 7 - 13 अक्टूबर 2021 - Durga Saptashati Path Online नवरात्रि पर कन्या पूजन से होंगी मां प्रसन्न, करेंगी सभी मनोकामनाएं पूरी : 13 अक्टूबर 2021- Navratri Kanya Pujan 2021 कब मिलेगी आपको अपनी ड्रीम जॉब ? जानें हमारे अनुभवी ज्योतिषियों से- अभी बात करें FREE पंचाग के अनुसार आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी को विजयदशमी, दशहरे अथवा आयुध पूजा के रुप में देशभर में मनाया जाता है। दशहरा हिंदूओं के प्रमुख त्यौहारों में से एक है। यह पर्व अच्छाई की बुराई पर जीत का प्रतीक है। इसी दिन पुरूषोत्तम भगवान राम ने रावण का वध किया था। यह त्यौहार विजयादशमी के रूप में जाना जाता है। मां दुर्गा ने नौ रात्रि और दस दिन के युद्ध के बाद राक्षस महिषासुर का वध किया था। इसके अलावा कुछ लोग इस त्योहार को आयुध पूजा(शस्त्र पूजा) के रूप में मनाते हैं। इस दिन लोग शस्त्र-पूजा करते हैं और नया कार्य प्रारम्भ करते हैं (जैसे अक्षर लेखन का आरम्भ, नया उद्योग आरम्भ, बीज बोना आदि)। ऐसा विश्वास है कि इस दिन जो कार्य आरम्भ किया जाता है उसमें विजय मिलती है। इस दिन जगह-जगह मेले लगते हैं। रामलीला का आयोजन होता है। रावण का विशाल पुतला बनाकर उसे जलाया जाता है। दशहरा अथवा विजयदशमी भगवान राम की विजय के रूप में मनाया जाए अथवा दुर्गा पूजा के रूप में, दोनों ही रूपों में यह शक्ति-पूजा का पर्व कहलाता है | क्यों मनाया जाता है दशहरा -पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भगवान 14 वर्षों के वनवास में थे तो लंकापति रावण ने उनकी पत्नी माता सीता का अपहरण कर उन्हें लंका की अशोक वाटिका में बंदी बना कर रखा लिया था। श्रीराम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण, भक्त हनुमान और वानर सेना के साथ रावण की सेना से लंका में ही पूरे नौ दिनों तक युद्ध लड़ा। मान्यता है कि उस समय भगवान श्री राम ने भी मां दूर्गा की पूजा कर शक्ति का आह्वान किया था, भगवान श्री राम की परीक्षा लेते हुए पूजा के लिये रखे गये कमल के फूलों में से एक फूल को गायब कर दिया। चूंकि श्री राम को राजीवनयन यानि कमल से नेत्रों वाला कहा जाता था इसलिये उन्होंनें अपना एक नेत्र मां को अर्पण करने का निर्णय लिया ज्यों ही वे अपना नेत्र निकालने लगे देवी प्रसन्न होकर उनके समक्ष प्रकट हुई और विजयी होने का वरदान दिया। आश्विन मास की दशमी तिथि भगवान पुरूषोत्तम राम ने दस सिर वाले आतातायी रावण का वध किया था। तभी से दस सिरों वाले रावण के पुतले को हर साल दशहरा के दिन इस प्रतीक के रूप में जलाया जाता है ताकि हम अपने अंदर के क्रोध, लालच, भ्रम, नशा, ईर्ष्या, छल, कपट, स्वार्थ, अन्याय, अमानवीयता एवं अहंकार को नष्ट करें। क्यों मनायी जाती है विजयादशमी -धार्मिक मान्यताओं के अनुसार असुरों के राजा महिषासुर ने कठोर तप किया और उसे ब्रह्माजी से आशीर्वाद मिला था कि पृथ्वी पर कोई भी व्यक्ति उसे नहीं मार सकता है। इस आशीर्वाद के कारण उसने तीनों लोक में हाहाकार मचा रखा था।अपनी शक्ति के बल पर देवताओं को पराजित कर इन्द्रलोक सहित पृथ्वी पर अपना अधिकार कर लिया था। भगवान ब्रह्रा के दिए वरदान के कारण किसी भी कोई भी देवता उसका वध नहीं कर सकते थे। ऐसे में त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु और शिव) सहित सभी देवताओं ने अपनी शक्तियों से देवी दुर्गा की उत्पत्ति की। माँ दुर्गा ने नौ दिनों तक महिषासुर का मुकाबला किया और दसवे दिन माँ दुर्गा ने इस असुर का वध कर किया और देवी ने महिषासुर के आंतक से सभी को मुक्त करवाया। मां की इस विजय को ही विजय दशमी के नाम से मनाया जाता है। महाभारत कालीन विजयदशमी -महाभारत युद्ध से पहले एक और महायुद्ध हुआ था जिसे अर्जुन ने अकेले ही लड़ा था। एक तरफ कौरवों की विशाल सेना थी और दूसरी तरफ अकेला अर्जुन। यह युद्ध विराट के युद्ध नाम से इतिहास में दर्ज है। महाभारत की कथा के अनुसार दुर्योधन ने जुए में पांडवों को हरा दिया था। शर्त के अनुसार पांडवों को 12 वर्षों तक निर्वासित रहना पड़ा, जबकि एक साल के लिए उन्हें अज्ञातवास में भी रहना पड़ा। अज्ञातवास के दौरान उन्हें हर किसी से छिपकर रहना था और यदि कोई उन्हें पा लेता तो उन्हें दोबारा 12 वर्षों का निर्वासन का दंश झेलना पड़ता। इस कारण अर्जुन ने उस एक साल के लिए अपनी गांडीव धनुष को शमी नामक वृक्ष पर छुपा दिया था और राजा विराट के लिए एक ब्रिहन्नला का छद्म रूप धारण कर कार्य करने लगे। दशमी के दिन ही अर्जुन ने शमी वृक्ष से अपने धनुष को वापिस निकालकर दुश्मनों को हराया था। कौरवों के असत्य पर यह पांडवों के धर्म की जीत थी। पांडवों के विजय को भी विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है। आज का दिन महत्वपूर्ण क्यों है ?- दशहरे का दिन साल के सबसे पवित्र दिनों में से एक माना जाता है। यह साढ़े तीन मुहूर्त में से एक है (साल का सबसे शुभ मुहूर्त - चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, अश्विन शुक्ल दशमी, वैशाख शुक्ल तृतीया, एवं कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा (आधा मुहूर्त))। यह अवधि किसी भी चीज़ की शुरूआत करने के लिए उत्तम है। हालाँकि कुछ निश्चित मुहूर्त किसी विशेष पूजा के लिए भी हो सकते हैं। - अपराजिता पूजा को विजयादशमी का महत्वपूर्ण भाग माना जाता है । - जब सूर्यास्त होता है और आसमान में कुछ तारे दिखने लगते हैं तो यह अवधि विजय मुहूर्त कहलाती है। इस समय कोई भी पूजा या कार्य करने से अच्छा परिणाम प्राप्त होता है। कहते हैं कि भगवान श्रीराम ने दुष्ट रावण को हराने के लिए युद्ध का प्रारंभ इसी मुहुर्त में किया था और इसी समय शमी नामक पेड़ ने अर्जुन के गाण्डीव नामक धनुष का रूप लिया था। - क्षत्रिय, योद्धा एवं सैनिक इस दिन अपने शस्त्रों की पूजा करते हैं; यह पूजा आयुध/शस्त्र पूजा के रूप में भी जानी जाती है। - इस दिन शमी पूजन भी होती हैं, जिसे पुरातन काल में राजशाही के लिए क्षत्रियों के लिए यह पूजा मुख्य मानी जाती थी। - ब्राह्मण इस दिन माँ सरस्वती की पूजा करते हैं। - वैश्य अपने बहीखाते की आराधना करते हैं। - कई जगहों पर होने वाली नवरात्रि रामलीला का समापन भी आज के दिन होता है। - रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ का पुतला जलाकर भगवान राम की जीत का जश्न मनाया जाता है। - बंगाल में माँ दुर्गा पूजा का त्यौहार भव्य रूप में मनाया जाता है। - महाराष्ट्र में इसे 'सिलंगण' के नाम से सामाजिक महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। - कश्मीर में खीर भवानी के नाम से यह त्यौहार मानते है | - गुजरात का गरबा (डांडिया) की धूम तो विश्व प्रसिद्ध है | आप सभी को और आपके परिवार को दशहरा पर्व की हार्दिक बधाई। यह भी जरूर पढ़े - |