दधीचि कौन थे उनके परोपकार का वर्णन कीजिए? - dadheechi kaun the unake paropakaar ka varnan keejie?

दधीचि कौन थे उनके परोपकार का वर्णन कीजिए? - dadheechi kaun the unake paropakaar ka varnan keejie?

हम अधिकतर देखते हैं कि, खुद के लिए तो हर कोई जीता है। लेकिन लोगों की भलाई के काम करना, दूसरों का भला सोचना ऐसे व्यक्ति बहोत कम होते हैं। दूसरों का परोपकार करने वाले बहोत कम होते हैं। लेकिन हमारे भारत देश में ऐसे कई महान लोगों ने जन्म लिया, जिनके जन्म का मानो मकसद ही था या है, लोगों का उपकार करना। कई परोपकारी साधु संत, महान पुरुष, नेताओं ने जन्म लिया है।

आज की कहानी में हम बात करेंगे एक ऐसे ही महान पुरुष की, जिनके जीवन का उद्देश्य ही था… अच्छाई के लिए खुद को समर्पित करना। हम बात कर रहे हैं: महान परोपकारी पुरुष महर्षि दधीचि की। उनकी विद्वता की प्रसिद्धि देश के कोने कोने तक फैली थी दूर-दूर से विद्यार्थी उनके यहां विद्या अध्ययन के लिए आते थे। वह सज्जन दयालु उदार तथा सभी से प्रेम का व्यवहार करते थे।

कहानी का शीर्षक है: परोपकारी महर्षि दधीचि (The great Maharishi Dadhichi)

महर्षि दधीचि नैमिषारण्य सीतापुर उत्तर प्रदेश के घने जंगलों के मध्य में आश्रम बनाकर रहते थे। महर्षि अपनी पत्नी और 3 वर्ष के बालक जिनका नाम था- (पिप्पलाद) के साथ रहते थे। महर्षि दधीचि के जीवन काल से कई परोपकार की कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। यह बात है उस समय की है जब श्मशान में महर्षि दधीचि के मांसपिंड का दाह संस्कार हो रहा था।  दधीचि की मृत्यु मात्र 31 वर्ष की वय में ही हो गयी थी।तभी उनकी  पत्नी पति के इस वियोग को सहन नहीं कर पाईं। और पास में स्थति एक विशालकाय पीपल के वृक्ष पर कटोरे में अपने 3 वर्ष के बालक को रखकर, स्वयं चीता में बैठ गई। और सती हो गई। इस तरह से दोनों ही पति-पत्नी का बलिदान हो गया। लेकिन 3 वर्ष का बालक पिप्पलाद भुखा- प्यासा रोता रहा। इस तरह कुछ भी खाने को ना मिलने से बच्चा पीपल के वृक्ष के फलों को खाकर जीवित रहा। और धीरे धीरे बड़ा होता गया। लंबे समय तक पीपल के पत्तों और फलों को खाकर पिप्पलाद बड़ा होता गया। बालक हमेशा सुरक्षित रहा। 

एक और रोचक कहानी: भगवान का डमरू 

देवर्षि नारद ने बालक से लिया परिचय 

एक दिन की बात है, देवर्षि नारद पीपल के वृक्ष के पास से गुजर रहे थे। तभी नारद मुनि ने पीपल के कोटर में बालक को देखा और बालक से उसका परिचय पूछा। इस तरह से नारद मुनि और बालक पिप्पलाद के बीच वार्तालाप शुरू हुआ। 

नारद मुनि बोले – बालक तुम कौन हो ?
बालक- यही तो मैं भी जानना चाहता हूँ । 
नारद- तुम्हारे जनक कौन हैं ? 
बालक- यही तो मैं जानना चाहता हूँ ।

तब नारद ने ध्यान धर देखा।नारद ने आश्चर्यचकित हो बताया कि हे बालक ! तुम महान दानी महर्षि दधीचि के पुत्र हो। तुम्हारे पिता की अस्थियों का वज्र बनाकर ही देवताओं ने असुरों पर विजय पायी थी। नारद ने बताया कि तुम्हारे पिता दधीचि की मृत्यु मात्र 31 वर्ष की वय में ही हो गयी थी।

बालक- मेरे पिता की अकाल मृत्यु का कारण क्या था ?
नारद- तुम्हारे पिता पर शनिदेव की महादशा थी।
बालक- मेरे ऊपर आयी विपत्ति का कारण क्या था ?
नारद- शनिदेव की महादशा है।

इस तरह से नारद मुनि ने बालक को सब बता दिया, और वह बालक पीपल के वृक्ष पर ही रहता था तथा पीपल के वृक्ष से ही पत्तों और फलों को खाकर अपना पेट भर लिया करता था। इसलिए बालक का नाम पिप्पलाद रख दिया गया।  

दधीचि कौन थे उनके परोपकार का वर्णन कीजिए? - dadheechi kaun the unake paropakaar ka varnan keejie?

महर्षि दधीचि image credit: hindip

बालक पिप्पलाद ब्रह्मा को प्रसन्न करके वरदान की प्राप्ति 

एक और रोचक कहानी: आखिर क्यूँ, दिन प्रतिदिन बढ़ता गया ब्राह्मण का लोभ!

नारद मुनि  के जाने के पश्चात बालक पिप्पलाद ने नारद मुनि के बताए अनुसार ब्रह्मा जी की घोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया। ब्रह्मा जी ने जब बालक पिप्पलाद से वर मांगने को कहा तो पिप्पलाद ने अपनी दृष्टि मात्र से किसी भी वस्तु को जलाने की शक्ति माँगी। ब्रह्मा जी से वरदान मिलने पर सर्वप्रथम पिप्पलाद ने शनि देव का आह्वान कर अपने सम्मुख प्रस्तुत किया और सामने पाकर आँखे खोलकर भष्म करना शुरू कर दिया। शनिदेव का पूरा शरीर जलने लगा। ब्रह्मांड में कोलाहल मच गया। सूर्यपुत्र शनि की रक्षा में सारे देव विफल हो गए। सूर्य भी अपनी आंखों के सामने अपने पुत्र को जलता हुआ देखकर ब्रह्मा जी से बचाने हेतु विनय करने लगे।

अन्ततः ब्रह्मा जी स्वयम् पिप्पलाद के सम्मुख उपस्थतित हुए और शनिदेव को छोड़ने की बात कही किन्तु पिप्पलाद तैयार नहीं हुए। ब्रह्मा जी ने एक के बदले दो वरदान मांगने को कहा, तब पिप्पलाद ने खुश होकर निम्नवत दो वरदान मांगे-

1- जन्म से 5 वर्ष तक किसी भी बालक की कुंडली में शनि का स्थान नहीं होगा। जिससे कोई और बालक मेरे जैसा अनाथ न हो।

2- मुझ अनाथ को शरण पीपल वृक्ष ने दी है। अतः जो भी व्यक्ति सूर्योदय के पूर्व पीपल वृक्ष पर जल चढ़ाएगा उस पर शनि की महादशा का असर नहीं होगा।

दधीचि कौन थे उनके परोपकार का वर्णन कीजिए? - dadheechi kaun the unake paropakaar ka varnan keejie?

In 1988 Dadhichi stamp of India.

ब्रह्मा जी ने तथास्तु कहकर वरदान दे दिया। उसी क्षण पिप्पलाद ने जलते हुए शनि को अपने ब्रह्मदण्ड से उनके पैरों पर आघात करके उन्हें मुक्त कर दिया ।

  • जिससे शनिदेव के पैर क्षतिग्रस्त हो गए और वे पहले जैसी तेजी से चलने लायक नहीं रहे।
  • अतः तभी से शनि “शनै:चरति य: शनैश्चर:” अर्थात जो धीरे चलता है वही शनैश्चर है, कहलाये और शनि आग में जलने के कारण काली काया वाले अंग भंग रूप में हो गए।
    सम्प्रति शनि की काली मूर्ति और पीपल वृक्ष की पूजा का यही धार्मिक हेतु है।
  • आगे चलकर पिप्पलाद ने प्रश्न उपनिषद की रचना की,जो आज भी ज्ञान का वृहद भंडार है। 

एक और रोचक कहानी : रीटा की तरकीब ने दिलाई साहूकार से कर्ज की मुक्ति

आज भी ऐसे ही महान परोपकारी पुरुषों में से एक महर्षि दधीचि का नाम आदर के साथ लिया जाता है महर्षि दधीचि ज्ञानी थे। उनके जीवन की कई कहानियाँ हमें सीख देती हैं। 

कहानी से सीख: हमें नि:स्वार्थ भाव से दूसरों की हमेशा मदद करनी चाहिए। कभी भी मदद या परोपकार के बदले में किसी भी चीज वस्तु या, किसी प्रकार की अपेक्षाएं नहीं रखनी चाहिए। एक कहावत भी है कि- ‘नेकी कर और दरिया में डाल’ 

अर्थात- इस प्रकार का कर्म पुण्य से भी श्रेष्ठ होता है जिसको गीता में निष्काम कहा गया है। जिसमें फल की चेष्टा नहीं होती। 

ऐसी ही रोचक कहानियाँ आपके समक्ष हम लाते रहेंगे। तब तक के लिए देश और दुनिया की खबरों के लिए बने रहें OTT INDIA पर.. स्वस्थ रहें। 

अधिक रोचक जानकारी के लिए डाउनलोड करें:- OTT INDIA App

Android: http://bit.ly/3ajxBk4

iOS: http://apple.co/2ZeQjTt

दधीचि कौन थे Class 10?

दधीचि प्राचीन काल के परम तपस्वी और ख्यातिप्राप्त महर्षि थे। उनकी पत्नी का नाम 'गभस्तिनी' था। महर्षि दधीचि वेद शास्त्रों आदि के पूर्ण ज्ञाता और स्वभाव के बड़े ही दयालु थे। अहंकार तो उन्हें छू तक नहीं पाया था।

दधीचि ने कौन सा परोपकार किया था?

महर्षि दधीचि को भगवान शिव से अस्थि वज्र का वरदान प्राप्त थापरोपकार की भावना वे दधीच ने अपनी अस्थियों को दान करना स्वीकार किया और अंत में दैत्य वृत्तासुर का वध हुआ।

दधीचि कौन थे और वह कहाँ रहते थे?

दधीचि भारत के वैदिक काल के महान ऋषि थे. जिनकें पिता का नाम अथर्व तथा माता का नाम शान्ति बताया जाता हैं. वृत्रासुर व इंद्र के मध्य हुए ऐतिहासिक युद्ध के संदर्भ में कहा जाता है कि देवराज इंद्र जिस धनुष का उपयोग कर रहे थे वह महर्षि दधीची की हड्डियों से निर्मित था.

दधीचि की हड्डी से कौन कौन से अस्त्र बने थे?

महर्षि दधिचि ने संसार के हित में अपने प्राण त्याग दिए। देव शिल्पी विश्वकर्मा ने इनकी हड्डियों से देवराज के लिए वज्र नामक अस्त्र का निर्माण किया और दूसरे देवताओं के लिए भी अस्त्र शस्त्र बनाए।