नीचे आकृति में दिए हुए अव्ययों के भेद पहचानकर उनका अर्थपूर्ण स्वतंत्र वाक्यों में प्रयोग कीजिए : Show
Concept: व्याकरण (१० वीं कक्षा) Is there an error in this question or solution? अव्यय (Indeclinable) की परिभाषा
जिन शब्दों के रूप में लिंग, वचन, कारक आदि के कारण कोई परिवर्तन नही होता है उन्हें अव्यय (अ +व्यय) या अविकारी शब्द कहते है । इसे हम ऐसे भी कह सकते है- 'अव्यय' ऐसे शब्द को कहते हैं,
जिसके रूप में लिंग, वचन, पुरुष, कारक इत्यादि के कारण कोई विकार उत्पत्र नही होता। ऐसे शब्द हर स्थिति में अपने मूलरूप में बने रहते है। चूँकि अव्यय का रूपान्तर नहीं होता, इसलिए ऐसे शब्द अविकारी होते हैं। इनका व्यय नहीं होता, अतः ये अव्यय हैं। अव्यय और क्रियाविशेषणपण्डित किशोरीदास बाजपेयी के मतानुसार, अँगरेजी के आधार पर सभी अव्ययों को क्रियाविशेषण मान लेना उचित नही; क्योंकि कुछ अव्यय ऐसे हैं, जिनसे क्रिया की विशेषता लक्षित नहीं होती। जैसे- जब मैं भोजन करता हूँ, तब वह
पढ़ने जाता हैं। इस वाक्य में 'जब' और 'तब' अव्यय क्रिया की विशेषता नहीं बताते। अतः, इन्हें क्रियाविशेषण नहीं माना जा सकता। (i) कालवाचक अव्यय-इनमें समय का बोध होता है। जैसे- आज, कल, तुरन्त, पीछे, पहले, अब, जब, तब, कभी-कभी, कब, अब से,
नित्य, जब से, सदा से, अभी, तभी, आजकल और कभी। उदाहरणार्थ- (ii) स्थानवाचक अव्यय-इससे स्थान का बोध होता है। जैसे- यहाँ, वहाँ, कहाँ, जहाँ, यहाँ से, वहाँ से, इधर-उधर। उदाहरणार्थ- (iii) दिशावाचक अव्यय-इससे दिशा का बोध होता है। जैसे- इधर, उधर, जिधर, दूर, परे, अलग, दाहिने, बाएँ, आरपार। (iv) स्थितिवाचक अव्यय-नीचे,> नीचे, ऊपर तले, सामने, बाहर, भीतर इत्यादि। अव्यय के भेदअव्यय निम्नलिखित चार प्रकार के होते है - (1) क्रियाविशेषण (Adverb) (2) संबंधबोधक (Preposition) (3) समुच्चयबोधक (Conjunction) (4) विस्मयादिबोधक (Interjection) (1) क्रियाविशेषण :-जिन शब्दों से क्रिया, विशेषण या दूसरे क्रियाविशेषण की विशेषता प्रकट हो, उन्हें 'क्रियाविशेषण' कहते है। दूसरे शब्दो में- जो शब्द क्रिया की विशेषता बतलाते है, उन्हें क्रिया विशेषण कहा जाता है। जैसे- राम धीरे-धीरे टहलता है; राम वहाँ टहलता है; राम अभी टहलता है। क्रिया विशेषण के प्रकार(1) प्रयोग के अनुसार- (i) साधारण (ii) संयोजक (iii) अनुबद्ध (2) रूप के अनुसार- (i) मूल क्रियाविशेषण (ii) यौगिक क्रियाविशेषण (iii) स्थानीय क्रियाविशेषण (3) अर्थ के अनुसार- (i) परिमाणवाचक (ii) रीतिवाचक (1) 'प्रयोग' के अनुसार क्रियाविशेषण के तीन भेद(i) साधारण क्रियाविशेषण- जिन क्रियाविशेषणों का प्रयोग किसी वाक्य में स्वतन्त्र होता हैं, उन्हें 'साधारण क्रियाविशेषण' कहा जाता हैं। (ii) संयोजक क्रियाविशेषण- जिन क्रियाविशेषणों का सम्बन्ध किसी उपवाक्य से रहता है, उन्हें ' संयोजक क्रियाविशेषण' कहा जाता हैं। (iii) अनुबद्ध क्रियाविशेषण- जिन क्रियाविशेषणों के प्रयोग अवधारण (निश्र्चय) के लिए किसी भी शब्दभेद के साथ होता हो, उन्हें 'अनुबद्ध
क्रियाविशेषण' कहा जाता है। (2) रूप के अनुसार क्रियाविशेषण के तीन भेद(i) मूल क्रियाविशेषण- ऐसे क्रियाविशेषण, जो
किसी दूसरे शब्दों के मेल से नहीं बनते, 'मूल क्रियाविशेषण' कहलाते हैं। (ii) यौगिक क्रियाविशेषण- ऐसे क्रियाविशेषण,जो किसी दूसरे शब्द में प्रत्यय या पद जोड़ने पर बनते हैं, 'यौगिक क्रियाविशेषण' कहलाते हैं। यौगिक क्रियाविशेषण नीचे लिखे शब्दों के मेल से बनते हैं- (i) संज्ञाओं की द्विरुक्ति से- घर-घर, घड़ी-घड़ी, बीच-बीच, हाथों-हाथ। (ii) दो भित्र संज्ञाओं के मेल से- दिन-रात, साँझ-सबेरे, घर-बाहर, देश-विदेश। (iii) विशेषणों की द्विरुक्ति से- एक-एक, ठीक-ठीक, साफ-साफ। (iv) क्रियाविशेषणों की द्विरुक्ति से- धीरे-धीरे, जहाँ-तहाँ, कब-कब, कहाँ-कहाँ। (v) दो क्रियाविशेषणों के मेल से- जहाँ-तहाँ, जहाँ-कहीं, जब-तब, जब-कभी, कल-परसों, आस-पास। (vi) दो भित्र या समान क्रियाविशेषणों के बीच 'न' लगाने से- कभी-न-कभी, कुछ-न-कुछ। (vii) अनुकरण वाचक शब्दों की द्विरुक्ति से- पटपट, तड़तड़, सटासट, धड़ाधड़। (viii) संज्ञा और विशेषण के योग से- एक साथ, एक बार, दो बार। (ix) अव्य य और दूसरे शब्दों के मेल से- प्रतिदिन, यथाक्रम, अनजाने, आजन्म। (x) पूर्वकालिक कृदन्त और विशेषण के मेल से- विशेषकर, बहुतकर, मुख़्यकर, एक-एककर। (iii) स्थानीय क्रियाविशेषण- ऐसे क्रियाविशेषण, जो बिना रूपान्तर के किसी विशेष स्थान में आते हैं, 'स्थानीय क्रियाविशेषण' कहलाते हैं। जैसे- वह अपना सिर पढ़ेगा। (3) 'अर्थ' के अनुसार क्रियाविशेषण के भेद(i) परिमाणवाचक क्रियाविशेषण- जो शब्द क्रिया परिमाण या माप प्रकट करते है उन्हें 'परिमाणवाचक क्रियाविशेषण' कहते है। (क) अधिकताबोधक- बहुत, अति, बड़ा, बिलकुल, सर्वथा, खूब, निपट, अत्यन्त, अतिशय। (ख) न्यूनताबोधक- कुछ, लगभग, थोड़ा, टुक, प्रायः, जरा, किंचित्। (ग) पर्याप्तिवाचक- केवल, बस, काफी, यथेष्ट, चाहे, बराबर, ठीक, अस्तु। (घ) तुलनावाचक- अधिक, कम, इतना, उतना, जितना, कितना, बढ़कर। (ड़) श्रेणिवाचक- थोड़ा-थोड़ा, क्रम-क्रम से, बारी-बारी से, तिल-तिल, एक-एककर, यथाक्रम। (ii) रीतिवाचक क्रियाविशेषण- जो शब्द क्रिया की रीती या ढंग बताते है उन्हें रीतिवाचक क्रियाविशेषण कहते है। (क) प्रकार- ऐसे, वैसे, कैसे, मानो, धीरे, अचानक, स्वयं, स्वतः, परस्पर, यथाशक्ति, प्रत्युत, फटाफट। (ख) निश्र्चय- अवश्य, सही, सचमुच, निःसन्देह, बेशक, जरूर, अलबत्ता, यथार्थ में, वस्तुतः, दरअसल। (ग) अनिश्र्चय- कदाचित्, शायद, बहुतकर, यथासम्भव। (घ) स्वीकार- हाँ, जी, ठीक, सच। (ड़) कारण- इसलिए, क्यों, काहे को। (च) निषेध- न, नहीं, मत। (छ) अवधारण- तो, ही, भी, मात्र, भर, तक, सा। इन्हें भी पढ़ें -
कुछ समानार्थक क्रियाविशेषणों का अन्तर(i) अब-अभी 'अब' में वर्तमान समय का अनिश्र्चय है और 'अभी' का अर्थ तुरन्त से है; जैसे- अब- अब आप जा सकते हैं। अभी- अभी-अभी आया हूँ। (ii) तब-फिर- अन्तर यह है कि 'तब' बीते हुए हमय का बोधक है और 'फिर' भविष्य की ओर संकेत करता है। जैसे- तब- तब उसने कहा। फिर- फिर आप भी क्या कहेंगे। (iii) कहाँ-कहीं- 'कहाँ' किसी निश्र्चित स्थान का बोधक है और 'कही' किसी अनिश्र्चित स्थान का परिचायक। कभी-कभी 'कही' निषेध के अर्थ में भी प्रयुक्त होता है; जैसे- कहाँ- वह कहाँ गया ? कहीं- वह कहीं भी जा सकता है। (iv) न-नहीं-मत- इनका प्रयोग निषेध के अर्थ में होता है। 'न' से साधारण-निषेध और 'नहीं' से निषेध का निश्र्चय सूचित होता है। 'न' की अपेक्षा 'नहीं' अधिक जोरदार है। 'मत' का प्रयोग निषेधात्मक आज्ञा के लिए होता है। जैसे- 'न'- इनके विभित्र प्रयोग इस प्रकार हैं- नहीं- (क) तुम नहीं जा सकते। मत- (क) भीतर मत जाओ। (v) ही-भी- बात पर बल देने के लिए इनका प्रयोग होता है। अन्तर यह है कि 'ही' का अर्थ एकमात्र और 'भी' का अर्थ 'अतिरिक्त' सूचित करता है। जैसे- भी- इस काम को तुम भी कर सकते हो। ही- यह काम तुम ही कर सकते हो। (vi) केवल-मात्र- 'केवल' अकेला का अर्थ और 'मात्र' सम्पूर्णता का अर्थ सूचित करता है; जैसे- केवल- आज हम केवल दूध पीकर रहेंगे। यह काम केवल वह कर सकता है। मात्र-, मुझे पाँच रूपये मात्र मिले। (vii) भला-अच्छा- 'भला' अधिकतर विशेषण के रूप में प्रयुक्त होता है, पर कभी-कभी संज्ञा के रूप में भी आता है; जैसे- भला का भला फल मिलता है। 'अच्छा' स्वीकृतिमूलक अव्यय है। यह कभी अवधारण के लिए और कभी विस्मयबोधक के रूप में प्रयुक्त होता है। जैसे- अच्छा, कल चला जाऊँगा। (viii) प्रायः-बहुधा- दोनों का अर्थ 'अधिकतर' है, किन्तु 'प्रायः' से 'बहुधा की मात्रा अधिक होती है। प्रायः- बच्चे प्रायः खिलाड़ी होते हैं। (ix) बाद-पीछे- 'बाद' काल का और 'पीछे' समय का सूचक है। जैसे- बाद- वह एक सप्ताह बाद आया। इन्हें भी पढ़ें-
(2) सम्बन्धबोधक अव्यय :-जो शब्द वाक्य में किसी संज्ञा या सर्वनाम के साथ आकर वाक्य के दूसरे शब्द से उनका संबन्ध बताये वे शब्द 'सम्बन्धबोधक अव्यय' कहलाते । जैसे- दूर,
पास, अन्दर, बाहर, पीछे, आगे, बिना, ऊपर, नीचे आदि। उपयुक्त प्रथम वाक्य में 'ऊपर' शब्द
'वृक्ष और 'पक्षी' के सम्बन्ध को दर्शता है। विशेष- यह बात विशेष रूप से ध्यान रखनी चाहिए कि सम्बन्धबोधक शब्द को सम्बन्ध दर्शाना आवश्यक होता है। जब यह सम्बन्ध न जोड़कर साधारण रूप में प्रयोग होता है तो यह क्रिया-विशेषण का कार्य करता है। इस प्रकार एक ही शब्द क्रिया-विशेषण भी हो सकता है और सम्बन्धबोधक भी। जैसे-
सम्बन्धबोधक के भेदप्रयोग, अर्थ और व्युत्पत्ति के अनुसार सम्बन्धबोधक अव्यय के निम्नलिखित भेद है । (1) प्रयोग के अनुसार- (i) सम्बद्ध (ii) अनुबद्ध (2) अर्थ के अनुसार- (i) कालवाचक (ii) स्थानवाचक (iii) दिशावाचक (iv) साधनवाचक (v) हेतुवाचक (vi) विषयवाचक (vii) व्यतिरेकवाचक (viii) विनिमयवाचक (ix) सादृश्यवाचक (x) विरोधवाचक (xi) सहचरवाचक (xii) संग्रहवाचक (xiii) तुलनावाचक (3) व्युत्पत्ति के अनुसार- (i) मूल सम्बन्धबोधक (ii) यौगिक सम्बन्धबोधक (1) प्रयोग के अनुसार सम्बन्धबोधक के भेद(i) सम्बद्ध सम्बन्धबोधक - ऐसे सम्बन्धबोधक शब्द संज्ञा की विभक्तियों के पीछे आते हैं। जैसे- धन के बिना, नर की नाई। (ii) अनुबद्ध सम्बन्धबोधक- ऐसे सम्बन्धबोधकअव्यय संज्ञा के विकृत रूप के बाद आते हैं। जैसे- किनारे तक, सखियों सहित, कटोरे भर , पुत्रों समेत। (2) अर्थ के अनुसार सम्बन्धबोधक के भेद(i) कालवाचक- आगे, पीछे, बाद, पहले, पूर्व, अनन्तर, पश्र्चात्, उपरान्त, लगभग। (ii) स्थानवाचक- आगे, पीछे, नीचे, तले, सामने, पास, निकट, भीतर, समीप, नजदीक, यहाँ, बीच, बाहर, परे, दूर। (iii) दिशावाचक- ओर, तरफ, पार, आरपार, आसपास, प्रति। (iv) साधनवाचक- द्वारा, जरिए, हाथ, मारफत, बल, कर, जबानी, सहारे। (v) हेतुवाचक- लिए, निमित्त, वास्ते, हेतु, खातिर, कारण, मारे, चलते। (vi)विषयवाचक- बाबत, निस्बत, विषय, नाम, लेखे, जान, भरोसे। (vii) व्यतिरेकवाचक- सिवा, अलावा, बिना, बगैर, अतिरिक्त, रहित। (viii) विनिमयवाचक- पलटे, बदले, जगह, एवज। (ix) सादृश्यवाचक- समान, तरह, भाँति, नाई, बराबर, तुल्य, योग्य, लायक, सदृश, अनुसार, अनुरूप, अनुकूल, देखादेखी, सरीखा, सा, ऐसा, जैसा, मुताबिक। (x) विरोधवाचक- विरुद्ध, खिलाप, उलटे, विपरीत। (xi) सहचरवाचक- संग, साथ, समेत, सहित, पूर्वक, अधीन, स्वाधीन, वश। (xii) संग्रहवाचक- तक, लौं, पर्यन्त, भर, मात्र। (xiii) तुलनावाचक- अपेक्षा, बनिस्बत, आगे, सामने। (3) व्युत्पत्ति के अनुसार सम्बन्धबोधक के भेद (i) मूल सम्बन्धबोधक- बिना, पर्यन्त, नाई, पूर्वक इत्यादि। (ii) यौगिक सम्बन्धबोधक- संज्ञा से- पलटे, लेखे, अपेक्षा, मारफत। (3)समुच्चयबोधक अव्यय :-जो अविकारी शब्द दो शब्दों, वाक्यों या वाक्यांशों को परस्पर मिलाते है, उन्हें समुच्चयबोधक कहते है। उदाहरण- आँधी आयी और पानी बरसा। यहाँ 'और' अव्यय समुच्चयबोधक है; क्योंकि यह पद दो वाक्यों- 'आँधी आयी', 'पानी बरसा'-
को जोड़ता है। राम 'और 'लक्ष्मण दोनों भाई थे। समुच्चयबोधक के भेदइस अव्यय के मुख्य भेद निम्नलिखित है- (1) समानाधिकरण (2) व्यधिकरण (1) समानाधिकरण-जिन पदों या अव्ययों द्वारा मुख्य वाक्य जोड़े जाते है, उन्हें 'समानाधिकरण समुच्चयबोधक' कहते है। इसके चार उपभेद हैं- (i) संयोजक- जो शब्द, शब्दों या वाक्यों को जोड़ने का काम करते है, उन्हें संयोजक कहते है। (ii) विभाजक- जो शब्द, विभिन्नता प्रकट करने के लिए प्रयुक्त होते है, उन्हें विभाजक कहते है। (iii)विकल्पसूचक- जो शब्द विकल्प का ज्ञान करायें, उन्हें 'विकल्पसूचक' शब्द कहते है। (iv) विरोधदर्शक- पर, परन्तु, किन्तु, लेकिन, मगर, वरन, बल्कि। (v) परिणामदर्शक- इसलिए, सो, अतः, अतएव। (2) व्यधिकरण-जिन पदों या अव्ययों के मेल से एक मुख्य वाक्य में एक या अधिक आश्रित वाक्य जोड़े जाते है, उन्हें ' व्यधिकरण समुच्चयबोधक' कहते हैं। इसके चार उपभेद है।- (i) कारणवाचक- क्योंकि, जोकि, इसलिए कि। (ii) उद्देश्यवाचक- कि, जो, ताकि, इसलिए कि। (iii) संकेतवाचक- जो-तो, यदि-तो, यद्यपि-तथापि, चाहे-परन्तु, कि। (iv) स्वरूपवाचक- कि, जो, अर्थात, याने, मानो। (4)विस्मयादिबोधक अव्यय :-जो शब्द आश्चर्य, हर्ष, शोक, घृणा, आशीर्वाद, क्रोध, उल्लास, भय आदि भावों को प्रकट करें, उन्हें 'विस्मयादिबोधक' कहते है। दूसरे शब्दों में-जिन अव्ययों से हर्ष-शोक आदि के भाव सूचित हों, पर उनका सम्बन्ध वाक्य या उसके किसी विशेष पद से न हो, उन्हें 'विस्मयादिबोधक' कहते है। जैसे- हाय! अब मैं क्या करूँ ? हैं !तुम क्या कर रहे हो ? यहाँ 'हाय!' और 'है !' विस्मयादिबोधक अव्यय है, जिनका अपने वाक्य या किसी पद से कोई सम्बन्ध नहीं। विस्मयादिबोधक के निम्नलिखित भेद हैं- (i) हर्षबोधक- अहा!, वाह-वाह!,धन्य-धन्य, शाबाश!, जय, खूब आदि। (ii) शोकबोधक- अहा!, उफ, हा-हा!, आह, हाय,त्राहि-त्राहि आदि। (iii) आश्चर्यबोधक- वाह!, हैं!,ऐ!, क्या!, ओहो, अरे, आदि (iv) क्रोधबोधक- हट, दूर हो, चुप आदि। (v) स्वीकारबोधक- हाँ!, जी हाँ, जी, अच्छा, जी!, ठीक!, बहुत अच्छा! आदि। (vi) सम्बोधनबोधक- अरे!, अजी!, लो, रे, हे आदि। (vii) भयबोधक- अरे, बचाओ-बचाओ आदि। निपात और उसके कार्ययास्क के अनुसार
'निपात' शब्द के अनेक अर्थ है, इसलिए ये निपात कहे जाते हैं- उच्चावच्चेषु अर्थेषु निपतन्तीति निपाताः। यह पाद का पूरण करनेवाला होता है- 'निपाताः पादपूरणाः । कभी-कभी अर्थ के अनुसार प्रयुक्त होने से अनर्थक निपातों से अन्य सार्थक निपात भी होते हैं। निपात का कोई लिंग, वचन नहीं होता। मूलतः इसका प्रयोग अववयों के लिए होता है।
जैसे अव्ययों में आकारगत अपरिवर्त्तनीयता होती है, वैसे ही निपातों में भी। निपात के भेदयास्क ने निपात के तीन भेद माने है- (1) उपमार्थक निपात : यथा- इव, न, चित्, नुः (2) कर्मोपसंग्रहार्थक निपात : यथा- न, आ, वा, ह; (3) पदपूरणार्थक निपात : यथा- नूनम्, खलु, हि, अथ। यद्यपि निपातों में सार्थकता नहीं होती, तथापि उन्हें सर्वथा निरर्थक भी नहीं कहा जा सकता। निपात शुद्ध अव्यय नहीं है; क्योंकि संज्ञाओं, विशेषणों, सर्वनामों आदि में जब अव्ययों का प्रयोग होता है, तब उनका अपना अर्थ होता है, पर निपातों में ऐसा नहीं होता। निपातों का प्रयोग निश्र्चित शब्द, शब्द-समुदाय या पूरे वाक्य को अन्य भावार्थ प्रदान करने के लिए होता है। इसके अतिरिक्त, निपात सहायक शब्द होते हुए भी वाक्य के अंग नहीं हैं। पर वाक्य में इनके प्रयोग से उस वाक्य का सम्रग अर्थ व्यक्त होता है। साधारणतः निपात अव्यय ही है। हिन्दी में अधिकतर निपात शब्दसमूह के बाद आते हैं, जिनको वे बल प्रदान करते हैं। निपात के कार्यनिपात के निम्नलिखित कार्य होते हैं- (2) अस्वीकृति- जैसे : मेरा छोटा भाई आज वहाँ नहीं जायेगा। (3) विस्मयादिबोधक- जैसे : क्या अच्छी पुस्तक है ! (4) वाक्य में किसी शब्द पर बल देना- बच्चा भी जानता है। निपात के प्रकारनिपात के नौ प्रकार या वर्ग हैं- (1) स्वीकार्य निपात- जैसे : हाँ, जी, जी हाँ। (2) नकरार्थक निपात- जैसे : नहीं, जी नहीं। (3) निषेधात्मक निपात- जैसे : मत। (4) पश्रबोधक- जैसे : क्या ? न। (5) विस्मयादिबोधक निपात- जैसे : क्या, काश, काश कि। (6) बलदायक या सीमाबोधक निपात- जैसे : तो, ही, तक, पर सिर्फ, केवल। (7) तुलनबोधक निपात- जैसे : सा। (8) अवधारणबोधक निपात- जैसे : ठीक, लगभग, करीब, तकरीबन। (9) आदरबोधक निपात- जैसे : जी। अव्यय का पद परिचयइसमें अव्यय, अव्यय का भेद और उससे सम्बन्ध रखनेवाला पद- इतनी बातें लिखनी चाहिए। वह अभी आया है। उदाहरण- अहा ! आप आ गये। पद-परिचय के कुछ अन्य उदाहरणउदाहरण (1) अच्छा लड़का कक्षा में शान्तिपूर्वक बैठता है। उदाहरण (2) मोहन अपने भाई सोहन को छड़ी से मारता है। इन्हें भी पढ़ें -
अव्ययों का सार्थक वाक्यों में प्रयोग कीजिए?जैसे- राम धीरे-धीरे टहलता है; राम वहाँ टहलता है; राम अभी टहलता है। इन वाक्यों में 'धीरे-धीरे', 'वहाँ' और 'अभी' राम के 'टहलने' (क्रिया) की विशेषता बतलाते हैं। ये क्रियाविशेषण अविकारी विशेषण भी कहलाते हैं।
10 अव्ययों को लिखकर वाक्यों में प्रयोग कीजिये?ऐसे शब्द जिसमें लिंग, वचन, पुरुष, कारक आदि के कारण कोई विकार उत्पन्न नहीं होता वह शब्द अव्यय कहलाते हैं। अव्यय सदैव अपरिवर्तित, अविकारी रहते हैं। जैसे- जब, तब, अभी, उधर, वहाँ, इधर, कब, क्यों, वाह, आह, ठीक, अरे, और, तथा, एवं, किन्तु, परन्तु, बल्कि, इसलिए, अतः, अतएव, चूँकि, अवश्य इत्यादि।
निम्नलिखित अव्यय शब्द का वाक्य में प्रयोग कीजिए क्योंकि?Answer: यह फल मुझे पसंद नही क्योंकि यह कड़वा हैं।
अवयव कितने प्रकार के होते हैं?अव्यय के पांच प्रकार होते हैं
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