उपभोग फलन से क्या समझते हैं? - upabhog phalan se kya samajhate hain?

इसे सुनेंरोकेंउपभोग फलन को परिभाषित करते हुए ने कहा है कि ‘उपभोग फलन यह बतलाता है कि उपभोक्ता आय के प्रत्येक सम्भव स्तर पर उपभोग की वस्तुओं पर कितना खर्च करना चाहेंगा। ‘ ‘ Page 3 का कहना है कि “उपभोग क्रिया यह बताती है कि उपभोक्ता आय के प्रत्येक सम्भव स्तर पर उपभोग पदार्थों और सेवाओं पर कितना व्यय करना चाहेगे।

गुणक से क्या समझते हैं?

इसे सुनेंरोकेंगुणक से अभिप्राय निवेश में होने वाले परिवर्तन के कारण आय में होने वाले परिवर्तन से है। जब निवेश में वृद्धि होती है तो आय में उतनी ही वृद्धि नहीं होती जितनी के निवेश में वृद्धि हुई है बल्कि आय में निवेश की वृद्धि की तुलना में कई गुणा अधिक वृद्धि होती है। जितने गुणा यह वृद्धि होती है उसे ही गुणक कहते है।

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उपभोग फलन से आप क्या समझते हैं इस को प्रभावित करने वाले तत्वों की व्याख्या कीजिए?

इसे सुनेंरोकेंउपभोग तथा आय के स्तर में संबंध उपयोग फलन कहलाता है। उपभोग फलन बताता है कि उपभोग आय का फलन है अथवा अन्य शब्दों में उपभोग आय के स्तर पर निर्भर करता है। इसे आगे बढ़ाते हुए ध्यान दो कि जब एक व्यक्ति को अपनी साधन सेवाओं के लिए आय प्राप्त होती है तो वह समस्त आय को केवल उपभोग पर खर्च नहीं कर सकता।

समाज में इस तरह के कारणों ने उपभोग फलन को ऊपर की ओर लगभग उतना ही सरकाया है जितना की दीर्घकालीन में उपभोक्ता तथा आय के बीच समानुपाती संबंध स्थापित करने के लिए आवश्यक है और इस प्रकार उसे ऐसा प्रतीत होने से रोका है केवल आय के आधार पर प्रत्याशी  अनुपातिक संबंध प्रतीत होता है


2- सापेक्ष आय परिकल्पना the relative income hypothesis जेम्स डूसेनबरी की सापेक्ष आय परिकल्पना केंज के उपभोग सिद्धांत की दो आधारभूत मान्यताओं के निराकरण पर आधारित हैं डूसेनबरी का कहना है कि प्रत्येक व्यक्ति का उपयोग व्यवहार स्वतंत्र नहीं होता अपितु प्रत्येक अन्य व्यक्ति के व्यवहार पर निर्भर होता है दूसरा कि उपभोग संबंध कालांतर में अपरिवर्तनीय होते हैं और परिवर्तनीय नहीं होते

उनका मानना है कि यदि हम उपभोक्ता व्यवहार की समस्या को वास्तव में समझना चाहते हैं तो हमें प्रारंभ में उपभोग ढांचे की सामाजिक प्रकृति को मान्यता देनी होगी उपभोक्ता ढांचो की सामाजिक प्रकृति से उसका तात्पर्य है कि मानवों की प्रवृत्ति केवल अपने धनी पड़ोसियों के स्तर तक पहुंचने की ही नहीं अपितु उनसे आगे भी बढ़ जाने की होती है

   

 डूसेनबरी के सिद्धांत का दूसरा भाग है - आय  की गत चोटी past peak of income परिकल्पना जो उपभोग फलन में अल्पकालीन उतार-चढ़ाव की व्याख्या करते हैं और केंज कि इस मान्यता का खंडन करती है उपभोग संबंध परिवर्तनीय है इस परिकल्पना की स्थापना है कि समृद्धि की अवधि के दौरान उपभोग बढ़ेगा और धीरे-धीरे अपने आप को अधिक ऊंचे स्तर पर समायोजित कर लेगा जब एक बार लोग आय के एक विशेष उच्चतम स्तर पर पहुंच जाते हैं और इस जीवन स्तर के आदी हो जाते हैं तो मंदी के दौरान भी वे अपने उपभोग ढांचे को छोड़ने को तैयार नहीं होते



स्थायी आय परिकल्पना the permanent income hypothesis समानुपाती दीर्घकालीन तथा अनुपातिक अल्पकालीन उपभोग फलन के बीच प्रत्यक्ष विरोध का एक और समाधान फ्रीडमैन ने अपनी स्थायी आय परिकल्पना के माध्यम से प्रस्तुत किया फ्रीडमैन ने इस मत को स्वीकार किया कि चालू आय उपभोग व्यय को निर्धारित करती है और इसके स्थान पर उसने यह माना है की उपभोगता था व्यय दोनों के ही दो-दो भाग होते हैं स्थायी   आय  अस्थायी आय जिससे कि 

                  y  =yp  +yt    .c=cp+ct

अपने धन को ज्यों का त्यों सुरक्षित रखते हुए कोई उपभोक्ता इकाई आय जैसे मात्रा का उपभोग कर सकती है उस आय को स्थायी आय कहते हैं

Explanation : उपभोग फलन का आय और उपभोग के बीच संबंध अर्थ है। समाज का समस्त उपभोग समस्त आय पर निर्भर करता है जब आय बढ़ती है तो कुल उपभोग की मात्रा भी बढ़ती है और जब आय घटती है तो उपभोग की मात्रा भी घटती जाती है। उपभोग और आय के इस संबंध को उपभोग फलन कहा जाता है। अर्थात् उपभोग फलन आय की किसी विशेष स्तर पर उपभोग की मात्रा है। ....अगला सवाल पढ़े

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Web Title : Upbhog Phalan Ka Kya Arth Hai

उपभोग फलन | उपभोग प्रवृत्ति | उपभोग प्रवृत्ति का अर्थ | उपभोग फलन की विशेषताएँ | उपभोग प्रवृत्ति के प्रकार

Table of Contents

  • उपभोग फलन अथवा उपभोग प्रवृत्ति
    • उपभोग प्रवृत्ति का अर्थ
    • उपभोग फलन की विशेषताएँ (Features of Consumption Function)
    • उपभोग प्रवृत्ति के प्रकार (Types of Consumption Function)
    • सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति की रेखाचित्र द्वारा व्याख्या
    • सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति की विशेषताएँ
    • औसत तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति में अन्तर्सम्बन्ध
      • अर्थशास्त्र – महत्वपूर्ण लिंक

उपभोग फलन अथवा उपभोग प्रवृत्ति

(Consumption Function or propensity to Consume)

उपभोग प्रवृत्ति का अर्थ

(Meaning of Propensity to Consume)

आय और उपभोग व्यय के सम्बन्ध को ही उपभोग फलन या उपभोग प्रवृत्ति कहा जाता है। जिस प्रकार एक मांग वक्र विभिन्न कीमतों पर वस्तु की मांगी गई मात्राओं को दर्शाता है, उसी  प्रकार उपभोग प्रवृत्ति विभिन्न आय स्तरों पर व्यक्तियों द्वारा किये गये विभिन्न उपभोगों के व्यय को प्रकट करती है। केन्ज के अनुसार उपभोग व्यय आय पर निर्भर करता है; अर्थात् उपभोग व्यय आय का फलन है। इसका अभिप्राय यह है कि आय में परिवर्तन होने से उपभोग-व्यय में भी परिवर्तन होगा। मान लो ‘C’ कुल उपभोग व्यय को बताता है, ‘Y’ कुल आय को बताती है, तथा F’ फलन (Function) के लिए संकेत (Symbol) है; तो उपभोग फलन या प्रवृत्ति को सांकेतिक रूप में निम्न प्रकार व्यक्त किया जा सकता है-

C=F (Y) (Consumption is the Function of Income अर्थात् उपभोग व्यय आय का फलन है।

पीटरसन (Peterson) के अनुसार, “उपभोग फलन की परिभाषा एक अनुसूचि के रूप में दी जा सकती है जोकि विभिन्न आय स्तरों पर उपभोक्ताओं द्वारा पदार्थों और सेवाओं पर किये गये व्यय की मात्रा को बताती है।”

एफ० एस० बुमैन (E.S. Brooman) के अनुसार, “उपभोग फलन यह बताती है कि उपभोक्ता, आय के प्रत्येक सम्भव स्तर पर उपभोग वस्तुओं तथा सेवाओं पर कितना खर्च करना चाहेंगे।“

अतः एक उपभोक्ता अपनी दी हुई आय में से जो भाग या अनुपात उपभोग पर व्यय करता है, उसे केन्ज ने उपभोग प्रवृत्ति या उपभोग फलन कहा है; तथा दी हुई आय का जो भाग या अनुपात अपने पास बचा कर रखता है; उसे बचत प्रवृत्ति (Propensity to Save) कहा है।

उपभोग फलन से क्या समझते हैं? - upabhog phalan se kya samajhate hain?
उपभोग फलन से क्या समझते हैं? - upabhog phalan se kya samajhate hain?

दिये गये चित्र में Ox रेखा पर आय तथा Cy रेखा पर उपभोग एवं बचत दर्शाया गया है CC उपभोग वक्र है जो यह व्यक्त करता है कि आय में वृद्धि होने से वास्तव में व्यक्ति कितना उपभोग व्यय करते हैं। अर्थात् CC उपभोग वक्र यह व्यक्त करता है कि आय में प्रत्येक 50 रु० की वृद्धि में से 40 रु० उपभोग पर व्यय किये जाते हैं। इसका अर्थ यह है कि उपभोग वक्र की ढाल स्थिर (Constant) है। उपभोग वक्र CC मूल बिन्दु O से शुरू नहीं होता क्योंकि जब आय शून्य है तो उपभोग 30 रु० है। उपभोग वक्र CC के ऊपर दाईं ओर ढलान यह व्यक्त करता है कि आय में वृद्धि होने के साथ-साथ उपभोग व्यय में भी वृद्धि होती है। रेखाचित्र में T बिन्दु पर आय एवं उपभोग बराबर है। बिन्दु T के दायीं ओर बचतें धनात्मक (Positive) हो जाती है। क्योंकि 45° रेखा पर उपभोग वक्र CC का अन्तर बिन्दु T के बाद बढ़ने लगता है। बिन्दु T के बायीं और बचतें ऋणात्मक (Negative) हैं। SS बचत वक्र है। Q बिन्दु पर बचतें शून्य हैं। Q के बायीं और बचतें ऋणात्मक और Q बिन्दु के दायीं ओर बचतें धनात्मक हैं । अतः उपरोक्त रेखाचित्र से यह स्पष्ट होता है कि आय में वृद्धि के साथ-साथ उपभोग में वृद्धि तो होती है, लेकिन उसी अनुपात में नहीं। आय और उपभोग में पाए जाने वाले अन्तर की पूर्ति निवेश द्वारा की जानी चाहिए, नहीं तो आय के स्तर को बनाए रखना सम्भव नहीं होगा।

उपभोग फलन की विशेषताएँ (Features of Consumption Function)

उपभोग प्रवृत्ति की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) उपभोग अल्पकाल में स्थिर करती है- इसका कारण यह है कि अल्पकाल में मनोवैज्ञानिक तत्वों (जिन पर उपभोग प्रवृत्ति निर्भर करती है) में सामान्यतया परिवर्तन नहीं होते। अत: अल्पकाल में उपभोग प्रवृत्ति स्थिर रहती है।

(2) निर्धन वर्ग की उपभोग प्रवृत्ति धनी वर्ग से अधिक होती है- इसका कारण यह है कि निर्धन वर्ग की बहुत-सी आवश्यकताएं अधूरी रह जाती हैं, इसलिए जब इस वर्ग की आय में वृद्धि होती है तो आय में होने वाली वृद्धि का अधिकांश भाग यह वर्ग अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति पर खर्च कर देता है। इसीलिए निर्धन वर्ग की उपभोग प्रवृत्ति अधिक एवं बचत प्रवृत्ति कम होती है। इसके विपरीत धनी वर्ग की अधिकांश आवश्यकताएं पहले से ही पूरी होती हैं, अत: आय में होने वाली वृद्धि का बहुत कम भाग यह वर्ग उपभोग पर खर्च करती है। इसीलिए धनी वर्ग की उपभोग प्रवृत्ति कम तथा बचत प्रवृत्ति अधिक होती है।

(3) आय और रोजगार का उपभोग प्रवृत्ति से प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है- उपभोग प्रवृत्ति में वृद्धि से आय और रोजगार में वृद्धि होती है जबकि उपभोग प्रवृत्ति में कमी से आय और रोजगार में कमी आती है।

उपभोग प्रवृत्ति के प्रकार (Types of Consumption Function)

उपभोग प्रवृत्ति दो प्रकार की होती है-

(i) औसत उपभोग प्रवृत्ति (Average Propensity to Consume)

(ii) सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (Marginal Propensity to Consume)

(i) औसत उपभोग प्रवृत्ति (Average Propensity to Consume)

औसत उपभोग प्रवृत्ति आय का वह अनुपात है जो उपभोग पर खर्च किया जाता है। कुरीहारा के अनुसार “औसत उपभोग प्रवृत्ति, उपभोग व्यय और एक विशेष स्तर पर आय का अनुपात है।” एफ० एस० ब्रुमैन के अनुसार, “औसत उपभोग प्रवृत्ति कुल आय में से उपभोग पर किये गये खर्च का समानुपात है।” मैक्कोनल के अनुसार, “कुल दी हुई आय का भाग या प्रतिशत जिसका उपभोग किया जाता है, औसत उपभोग प्रवृत्ति कहलाती है।

संक्षेप में औसत उपभोग प्रवृत्ति = उपभोग की मात्रा/ आय की मात्रा

Average Propensity to consume = Consumption/ Income

or APC = C/Y

C = Consumption (उपभोग)

Y = Income(आय)

उदाहरण के लिए मान लो किसी समाज में कुल आय 500 करोड़ रु० है और उपभोग व्यय 400 करोड़ रु० है तो-

APC = C/Y = 400/500 = 4/5 = 0.8 = 80%

उपभोग फलन से क्या समझते हैं? - upabhog phalan se kya samajhate hain?
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उपरोक्त रेखाचित्र में ox पर आय तथा oy अक्ष पर उपभोग व्यय को दर्शाया गया है। CC औसत उपभोग प्रवृत्ति वक्र है। इस वक्र यह प्रकट होता है कि कुल उपभोग व्यय तथा कुल आय में क्या अनुपात है। E बिन्दु पर APC = C/Y = 400/500 = 0.8 या 80% है। ज्यों-ज्यों आय में वृद्धि होती है, APC वक्र भी या रेखाचित्र में CC वक्र भी दायीं ओर मुड़कर समतल (Flat) होने लगता है। इसका अभिप्राय यह है कि जैसे-जैसे आय में वृद्धि होती है, उपभोग में औसतन आनुपातिक वृद्धि कम होती है अर्थात् औसत उपभोग प्रवृत्ति कम होती जाती है।

(ii) सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (Marginal Propensity to Consume)

आय में होने वाली थोड़ी सी वृद्धि के फलस्वरूप उपभोग व्यय में जो वृद्धि होती है, उसे सीमांत उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।

सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति = उपभोग की मात्रा में परिवर्तन/आय की मात्रा में परिवर्तन

Marginal Propensity to Consume = Change in Consumption/Change in disposable income

या MRC= ∆C/∆Y

∆C = उपभोग में परिवर्तन

∆Y = आय में परिवर्तन

पीटरसन के अनुसार, “सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति से हमारा अभिप्राय आय में परिवर्तन से प्रेरित उपभोग व्यय से है।

मैक्कोनल के अनुसार, “आय में परिवर्तन का वह भाग या समानुपात जिसका उपभोग किया जाता है, सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कहलाता है। सीमान्त से अभिप्राय अतिरिक्त से है।”

एन०एफ० कीजर के अनुसार, “सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति उपभोग योग्य आय में वृद्धि या कमी और उसके परिणामस्वरूप उपभोग में वृद्धि या कमी के सम्बन्ध को दिखाती है।”

उदाहरण, के लिए मान लो समाज की आय 100 करोड़ रु० से बढ़कर 110 करोड़ रु० हो जाती तो आय में होने वाली सीमान्त वृद्धि (∆Y)10 करोड़ रु०है। इसी प्रकार मान लो कि समाज का उपभोग व्यय 80 करोड़ रु० से बढ़कर 86 करोड़ रु० हो जाता है तो उपभोग व्यय में सीमान्त वृद्धि (∆C) 6 करोड़ रु० हुई।

अत: MPC = ∆C/∆Y = 6/10 =  0.6 (इकाई से कम)

सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति की रेखाचित्र द्वारा व्याख्या

उपरोक्त रेखाचित्र में Ox अक्ष पर आय तथा OY अक्ष पर उपभोग को प्रकट किया गया है। जब आय OM से बढ़कर OM1 हो जाती है अर्थात् 100 करोड़ रु० से बढ़कर 110 करोड़ रु०  हो जाती है तो उपभोग व्यय ON से बढ़कर ON1 हो जाता है अर्थात् उपभोग व्यय 80 करोड़ रु० से बढ़कर 86 करोड़ रु० हो जाता है। इस प्रकार सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति = 6/10 = 0.6 है। अत: आय की वृद्धि का वह भाग या अनुपात जिसका उपभोग किया जाता है, सीमांत उपभोग प्रवृत्ति कहलाता है। चूँकि उपभोग में वृद्धि (AC) सदैव आय में होने वाली वृद्धि (∆Y) से कम होती है।

उपभोग फलन से क्या समझते हैं? - upabhog phalan se kya samajhate hain?
उपभोग फलन से क्या समझते हैं? - upabhog phalan se kya samajhate hain?

इसलिए सीमांत अपभोग प्रवृत्ति अर्थात् ∆C/∆Y अनुपात सदैव एक से कम होना चाहिए। अतः आय में होने वाली वृद्धि के साथ-साथ उपभोग प्रवृत्ति (MPC) घटती जाती है।

सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति की विशेषताएँ

(Features of Marginal Propensity to Consume)

(1) सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति सदैव धनात्मक (Positive) होती है। इसका कारण यह है कि आय में वृद्धि के साथ-साथ उपभोग में भी वृद्धि होती है, न कि कमी होती होती है। इसीलिए सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कभी भी ऋणात्मक (Negative) नहीं हो सकती।

(2) सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति शून्य से अधिक होती है, परन्तु एक से या इकाई से कम होती है अर्थात् MPC >0< 1 अतः सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति एक से अधिक नहीं हो सकती है। इसका कारण यह है कि आय में वृद्धि होने पर उपभोग में वृद्धि आय वृद्धि से अधिक नहीं हो सकती है।

(3) गरीब व्यक्तियों की सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति अमीर वर्ग की तुलना में अधिक होती है। इसका कारण यह है कि निर्धन वर्ग की आय कम होती है और वे अपनी समस्त आय को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उपभोग पर व्यय कर देते हैं। इसलिए गरीब वर्ग की सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति अधिक तथा इनकी बचत प्रवृत्ति कम होती है।

(4) यदि उपभोग वक्र या फलन एक सीधी रेखा हो (Liner or a straight lise)- तो उस अवस्था में सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति उपभोग वक्र के प्रत्येक बिन्दु पर समान रहती है।

(5) जैसे-जैसे आय में वृद्धि होती है, सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कम होती जाती है। इसका कारण यह है कि आय में होने वाली वृद्धि का शत प्रतिशत भाग या अनुपात उपभोग पर खर्च नहीं किया जाता। इसीलिए उपभोग में वृद्धि आय में वृद्धि के अनुपात से कम होती है। अत: निम्न आय स्तरों पर सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति अधिक होती है और उच्च आय स्तरों पर सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कम होती है।

(6) जो व्यक्ति अत्यधिक निर्धन होते हैं- उनका उपभोग व्यय आय से अधिक होता है। इसलिए अत्यधिक निर्धन वर्ग की सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति इकाई से अधिक होती है। अर्थात् MPC or ∆C/∆Y >1 | अतः असामान्य परिस्थितियों में सीमांत उपभोग प्रवृत्ति इकाई से अधिक भी हो सकती है।

औसत तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति में अन्तर्सम्बन्ध

(1) जब आय में वृद्धि होती है तो औसत उपभोग प्रवृत्ति एवं सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति दोनों ही गिरती हैं परन्तु औसत उपभोग प्रवृत्ति की अपेक्षा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति अधिक दर से गिरती है। गरीब या अविकसित देशों में सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) धनी या विकसित देशों की अपेक्षा अधिक होती है। इसका कारण यह है कि धनी देशों में व्यक्तियों की अधिकांश आवश्यकताएं पूरी या संतुष्ट होती हैं जबकि गरीब देशों में व्यक्तियों की अधिक आवश्यकताएं पूरी संतुष्ट नहीं होती हैं। अतः गरीब देशों में व्यक्ति अपनी बढ़ी हुई आय का अधिकांश भाग अपनी आवश्यकताओं की सन्तुष्टि पर खर्च कर देते हैं जबकि धनी देशों में व्यक्ति अपनी बढ़ी हुई आय का अधिकांश भाग बचत करते हैं। इसीलिए धनी देशों में बचत प्रवृत्ति अधिक होती है और गरीब देशों में कम होती है।

प्रो० हेन्सन (Hansen) के अनुसार कभी-कभी विकसित देशों में औसत उपभोग प्रवृत्ति तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति एक स्थिर या समान अनुपात (Constant Ratio)को प्राप्त कर लेती हैं जिसके कारण उपभोग वक्र का ढलान समतल (Flatten) हो जाता है। उपभोग वक्र के ढलान के समतल हो जाने के कारण प्रभावपूर्ण मांग में कमी उत्पन्न हो जाती है और इस प्रकार इन देशों में सम्पन्नता के मध्य दरिद्रता की समस्या उत्पन्न होती है। इसकी व्याख्या रेखाचित्र द्वारा निम्नलिखित है-

उपभोग फलन से क्या समझते हैं? - upabhog phalan se kya samajhate hain?
उपभोग फलन से क्या समझते हैं? - upabhog phalan se kya samajhate hain?

रेखाचित्र में OQ वक्र उपभोग फलन को दर्शाता है। इस वक्र (OQ वक्र) के किसी भी बिन्दु पर औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC) को उस बिन्दु से मूल बिन्दु तक खींची गई सीधी रेखा के ढाल द्वारा दिखाया जा सकता है। रेखाचित्र में Oa का ढ़ाल 0b के ढाल से अधिक ढलुआं (Steeper) है जिसका अर्थ यह है कि औसत उपभोग प्रवृत्ति आय के OY1 स्तर की अपेक्षा OY आय स्तर पर अधिक है। OQ उपभोग वक्र के किसी भी बिन्दु पर सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) वक्र के उस बिन्दु पर स्पर्श रेखा (Tangent) के ढाल द्वारा व्यक्त की जा सकती है। स्पर्श रेखा का ढलान अर्थात् सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति OY2 की अपेक्षा OY पर अधिक है; या स्पर्श रेखा KT स्पर्श रेखा PH की अपेक्षा बलुआं (Steeper) है। अतः जब आय में OY से OY2 वृद्धि होती है तो सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) में होने वाली कमी (i.e.) स्पर्श रेखा PH का ढाल और उपभोग प्रवृत्ति (APC) में होने वाली कमी (i.e, OC का ढाल) की अपेक्षा अधिक है।

(2) जब आय में कमी होती है तो सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति तथा औसत उपभोग प्रवृत्ति दोनों में ही वृद्धि होती है, परन्तु औसत उपभोग प्रवृत्ति में कम दर से वृद्धि होती है।

(3) जब सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति निश्चित या समान होती है तो औसत उपभोग प्रवृत्ति भी निश्चित या समान रहती है।

उपभोग फलन से क्या आशय है समझाइए?

उपभोग और आय में पाए जाने वाले सम्बन्ध को उपभोग फलन कहते है। यहां, उपभोग (C), आय (Y) का फलन (f) है। ब्रुमैन के अनुसार, “उपभोग फलन यह बताता है कि उपभोक्ता आय के प्रत्येक सम्भव स्तर पर उपभोग पदार्थों पर कितना खर्च करना चाहेंगे।” उपभोग फलन कुल उपभोग व्यय तथा राष्ट्रीय आय के सम्बन्ध को प्रकट करता है।

उपभोग फलन से आप क्या समझते हैं इस को प्रभावित करने वाले तत्वों की व्याख्या कीजिए?

1. द्राव्यिक आय- समाज में द्राव्यिक आय में वृद्धि होने पर उपभोग प्रवृत्ति बढ़ जायेगी तथा द्राव्यिक आय में कमी होने पर उपभोग प्रवृत्ति घट जायेगी। 2. अप्रत्याशित लाभ एवं हानियाँ- यदि अप्रत्याशित लाभ प्राप्त होते हैं जैसे शेयरों की कीमतें अचानक बढ़ जाती हैं तो उपभोग फलन ऊपर की ओर खिसक जायेगा।

उपभोग का मतलब क्या होता है?

उपभोग का हिंदी अर्थ किसी वस्तु का इस्तेमाल या व्यवहार। इस्तेमाल या व्यवहार का सुख; विषय-सुख। (अर्थशास्त्र) किसी वस्तु का ऐसा प्रयोग करना कि धीरे-धीरे उसकी उपयोगिता समाप्त होती जाए (कंजंप्शन)।

उपभोग फलन में क्या सत्य है?

उत्तर: प्रो. कीन्स के अनुसार, आय का जो भाग उपभोग पर व्यय हो जाता है उसे उपभोग प्रवृत्ति या उपभोग फलन कहते हैं। अत: उपभोग की मात्रा व्यक्ति की आय पर निर्भर करती है जब आय में वृद्धि होती है तो उपभोग में भी वृद्धि होती है तथा जब आय में कमी हो जाती है तो उपभोग में भी कमी हो जाती है।