Ayodhya Masjid donation: इस मस्जिद का निर्माण अयोध्या के धानीपुर गांव में किया जाएगा. अभी तक महज 20 लाख का डोनेशन मिला है.Ayodhya Mosque donation: अयोध्या में मस्जिद निर्माण को लेकर एक बड़ी खबर सामने आ रही है. जो लोग वहां मस्जिद निर्माण के लिए डोनेशन दे रहे हैं, उसे टैक्स में छूट दी गई है. बाबरी मस्जिद- रामजन्मभूमि विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद निर्माण के लिए अलग से 5 एकड़ की जमीन दी है. साल 2020 में ऐसी ही छूट की घोषणा राम मंदिर निर्माण में चंदा देने वालों के लिए भी की गई थी. Show राम मंदिर निर्माण डोनेशन को टैक्स फ्री करने बाद इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन (IICF) की तरफ से मस्जिद निर्माण को लेकर डोनेशन को टैक्स फ्री करने की अपील दायर की गई थी. इस फाउंडेशन के चेयरमैन जफर फारुखी ने बताया कि 1 सितंबर 2020 को इस संबंध में अपील दायर की गई थी. इसमें मांग की गई थी कि डोनेशन को इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 80जी के तहत लाया जाए. 21 जनवरी 2021 को इस मामले को रिजेक्ट कर दिया गया था. 3 फरवरी को दोबारा इस अपील को दायर किया गया था. सेक्शन 80जी के तहत टैक्स में लाभइनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 80जी के तहत रिलीफ फंड, चैरिटेबल ऑर्गनाइजेशन को दिए जाने वाले दान पर टैक्स डिडक्शन का लाभ मिलता है. यह राशि ग्रॉस इनकम से घटा दी जाती है. अभी तक IICF को 20 लाख का डोनेशन मिला है. मस्जिद के साथ-साथ अस्पताल और कम्युनिटी किचन का भी निर्माणमस्जिद निर्माण को लेकर IICF ने अयोध्या डेवलपमेंट अथॉरिटी को बिल्डिंग प्लान सौंपा है. इस मस्जिद का निर्माण अयोध्या के धानीपुर गांव में किया जाएगा. इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत 300 बेड वाला सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल, कम्युनिटी किचन और रिसर्च सेंटर भी शामिल है. मस्जिद की क्षमता 2000 लोगों की एक साथ नमाज पढ़ने की होगी. ये भी पढ़ें, इंश्योरेंस कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेचेगा पंजाब नेशनल बैंक, जानिए PNB ने क्यों लिया यह फैसला ये भी पढ़ें, अंबानी और अडाणी नहीं बल्कि ये हैं भारत के सबसे ज्यादा सैलरी पाने वाले बॉस, जानिए लिस्ट में कौन-कौन हैं शामिल 26 सितंबर,2021 को, ट्विटर पर कई ब्लू-टिकधारी यूजर्स ने भारत में मंदिर के टैक्स देने के मुद्दे का विरोध जताते हुए #FreeTemples हैशटैग चलाया। यूजर्स ने दावा किया कि भारत में केवल हिंदू मंदिरों को ही टैक्स देना पड़ता है, लेकिन चर्च और मस्जिदों से टैक्स नहीं वसूला जाता। एल्विश यादव, गौरव गोयल, गौरव तनेजा, अंशुल सक्सेना नामी ब्लूटिकधारी यूजर्स ने इस हैशटैग पर ट्वीट किए, हैशटैग चलाने वाले लोगों ने विशेष रूप से तमिलनाडु सरकार पर सवाल दाग़े। यादव के ट्वीट को मिले 25,000 से ज्यादा लाइकगौरव गोयल का ट्वीटगौरव तनेज का ट्वीटअंशुल सक्सन के ट्वीट को मिले 15,000 से ज्यादा लाइकप्रणिता सुभाष का ट्वीटफैक्ट चेक:गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स प्रावधान के तहत, एक साल में 40 लाख से अधिक (तेलंगाना को छोड़कर) का औसत कारोबार करने वाली किसी भी संस्था को खुद को जीएसटी के तहत पंजीकृत कराना होगा। और केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड के अनुसार, किसी भी धार्मिक निकाय को उस मानदंड को पूरा करने पर टैक्स का भुगतान करने से छूट नहीं है। हालांकि कुछ रियायत जरूर हैं लेकिन वह सभी धर्मों पर लागू होती हैं। चूंकि कई धार्मिक स्थलों का प्रबंधन ट्रस्ट द्वारा किया जाता है और वे केवल एक धार्मिक स्थल के रूप में मौजूद रहने के अलावा कई अन्य गतिविधियों का संचालन करते हैं, टैक्स उन सभी पर लागू होता है। टैक्स का लाभ प्राप्त करने के लिए, ट्रस्ट को आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 12AA के तहत पंजीकृत होना चाहिए, यदि वे धर्मार्थ सेवाएं प्रदान करते हैं। चूंकि दावा तब भी वायरल हुआ और अब भी वायरल हो रहा है, भारतीय वित्त मंत्रालय ने 2017 में इसे स्पष्ट करने के लिए एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की। 2017 में वित्त मंत्रालय का बयानइसलिये यह कहना कि सिर्फ मंदिर ही टैक्स देते हैं, और बाकी धर्मों के धार्मिक स्थलों से टैक्स नहीं वसूला जाता यह गलत है, भ्रामक है, झूठा है, और समाज में अलगाव एंव असंतोष को बढ़ावा देने वाला है। सोशल मीडिया पर एक दावा शेयर किया जा रहा है. इसके मुताबिक, सिर्फ़ हिन्दू मंदिरों को ही टैक्स भरना पड़ता है. 26 सितंबर को यूट्यूबर एल्विस यादव ने ये दावा ट्वीट किया था. आर्टिकल लिखे जाने तक इस ट्वीट को 7,500 से ज़्यादा बार रीट्वीट किया जा चुका है. (ट्वीट का आर्काइव लिंक)
यूट्यूबर गौरव तनेजा ने एल्विस का ट्वीट कोट करते हुए लिखा कि 2014 में 282, 2019 में 303 लाकर भी जो काम नहीं हो सका वो 543 से भी नहीं होगा. यहां भाजपा और बीते दो आम चुनावों में उसकी सीटों की संख्या की ओर इशारा किया गया था. ट्विटर पर ये दावा वायरल है. This slideshow requires JavaScript. फ़ेसबुक पर भी ये इसे शेयर किया जा रहा है. This slideshow requires JavaScript. फ़ैक्ट-चेकऑल्ट न्यूज़ इस दावे की जांच 2017 में ही कर चुका है. उस मौके पर सुब्रमण्यम स्वामी ने ट्वीट किया था कि GST सिर्फ़ मंदिरों को देना होगा न कि मस्जिद और चर्च को. ऑल्ट न्यूज़ ने अपनी जांच में इस दावे को झूठा पाया था. वित्त मंत्रालय ने 3 जुलाई 2017 को ट्वीट करते हुए इस दावे को फ़र्ज़ी बताया था. बताया गया था कि GST धर्म के आधार पर लागू नहीं किया जाएगा.
इसके अलावा, ऑल्ट न्यूज़ ने 2017 में कुछ मुस्लिम ट्रस्ट से भी संपर्क किया था. उन्होंने बताया था कि वो देश में लागू किये गए नए टैक्स कानूनों का पालन कर रहे हैं और उन्हें GST सर्टिफ़िकेट्स भी मिल चुके हैं. मिर्ज़ापुर, अहमदाबाद की कुरेशी कमिटी के सदस्य उस्मान एच कुरेशी ने हमें बताया था कि उन्हें GST रजिस्ट्रेशन नंबर भी मिल चुका था और वो नए कानूनों के मुताबिक, टैक्स का भुगतान करने वाले थे. उन्होंने ऑल्ट न्यूज़ के साथ GST के सर्टिफ़िकेट्स की तस्वीर शेयर की थी. हमने अहमदाबाद सुन्नी मुस्लिम वक्फ़ कमिटी (ट्रस्ट) के अध्यक्ष रिज़वान क़ादरी से भी बात की थी. उन्होंने बताया था कि ट्रस्ट की शहर में कुछ संपत्तियां हैं. और उन्हें किराये के 3 लाख रुपये मिलते हैं. GST में 20 लाख तक की छूट होती है और इसलिए ज़रूरी है कि उनकी वार्षिक आय, GST के साथ रजिस्टर हो. उन्होंने ऑल्ट से बात करते हुए इस बात की पुष्टि की थी कि वो GST आने से पहले से ही ट्रस्ट की आय पर टैक्स देते आ रहे थे. GST के बारे में कोई भी संस्था जिसकी वार्षिक आय 40 लाख से ज़्यादा हो (विशेष राज्यों में 20 लाख से ज़्यादा), तो उन्हें खुद को GST के तहत रजिस्टर करवाना होगा. इनकम टैक्स ऐक्ट, 1961 के सेक्शन 12AA के तहत रजिस्टर की गई संस्था को ही टैक्स में छूट मिल सकती है. सरकार ने ट्रस्ट द्वारा दी जाने वाली सेवाओं की एक लिस्ट जारी की थी जिसमें शामिल सेवाएं अगर कोई ट्रस्ट देता हो तो ही उसे GST सर्टिफ़िकेट मिल सकता है. लिस्ट में शामिल सेवाओं में धार्मिक समारोह का आयोजन, धार्मिक परिसर को किराये पर देना शामिल है. यहां ध्यान दें कि इसमें धार्मिक परिसर के हॉल, खुली जगह, कमरे (जिसका किराया 1 हज़ार से ज़्यादा हो) या परिसर में मौजूद किसी भी दुकान/जगह को व्यापार के लिए देना शामिल नहीं है. इस लिस्ट से बाहर दी जाने वाली सेवाएं GST के अंतर्गत आयेंगी और ट्रस्ट को इससे संबंधित टैक्स का भुगतान करना होगा. GST में धार्मिक और चैरिटी ट्रस्ट को लेकर दिए गए प्रावधानों में साफ़-साफ़ कहा गया है कि सभी धर्मों की धार्मिक गतिविधियों में छूट दी जाएगी. बशर्ते ये सेवाएं सरकार द्वारा जारी की गई लिस्ट के अनुसार हों. कुल मिलाकर, 2017 से सोशल मीडिया पर एक दावा किया जा रहा है कि सिर्फ़ मंदिरों को ही टैक्स का भुगतान करना पड़ता है. और मस्जिद और चर्च इससे बाहर है. ये दावा पूरी तरह से फ़र्ज़ी है. |