एक विकासशील अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताएं क्या है? - ek vikaasasheel arthavyavastha kee mukhy visheshataen kya hai?

आजादी के पश्चात् यद्यपि सरकार द्वारा विशेषकर द्वितीय पंचवर्षीय योजना के पश्चात आधारभूत संरचना के निर्माण पर बल दिया गया हैपरंतु आज भी भारत में सड़करेलवेबंदरगाहबिजली इत्यादि आधारभूत संरचना के पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता नहीं है।

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मानव पूंजी का निम्न स्तर

भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में मानव पूंजी विकास में एक अहम् भूमिका निभा सकता हैपरंतु मानव विकास की उपेक्षा ने मानव पूंजी के स्तर को निम्न बना रखा है जिसका एक स्पष्ट प्रमाण है अशिक्षारूढ़िवादिता एवं अकुशल श्रमशक्ति। वस्तुतः आठवीं योजना के पूर्व तक मानव विकास जैसी किसी अवधारणा का कोई चिन्ह मात्र भी भारतीय अर्थव्यवस्था में विद्यमान नहीं था। आज भी सामाजिक क्षेत्रों के अंतर्गत स्वास्थ्यशिक्षापेयजल इत्यादि के रूप में मानव विकास के स्रोतों का पर्याप्त मात्रा में विकास नहीं हो पाया है।

भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था से लाभ

मिश्रित अर्थव्यवस्था को भारत में लागू किया जाना इसलिए तर्कसंगत प्रतीत होता हैक्यांकि भारत में स्वतंत्राता के उपरांत सामाजिक-आर्थिक विकास की समस्या थीजो वर्तमान में भी विद्यमान है। भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था के प्रमुख लाभ हैं-
1. आर्थिक स्वतंत्रता
2.  तीव्र आर्थिक एवं औद्योगिक विकास
3.  तीव्र गति से कृषि विकास
4.  तीव्र गति से वैज्ञानिक तथा तकनीकी प्रगति
5.  प्रजातांत्रिक मूल्यों की रक्षा
6. सामाजिक तथा आर्थिक समानता का संकल्प।
 
उपर्युक्त तथ्यों के आलोक में यह कहा जा सकता है कि भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था की प्रणाली बहुविध लाभकारी सिद्ध हुई है। इससे राष्ट्र में कृषि उत्पादनऔद्योगिक उत्पादन व वैज्ञानिक प्रगति की दृष्टि से आशातीत सफलता प्राप्त हुई परंतु आर्थिक नियोजन के सात दशकों के उपरांत भी कुछ सामाजिक आर्थिक समस्याओं का समाधान नहीं हो सका है।


भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के मुद्दे

एक तरफभारत को निरंतर विकास दर के लिए प्रशंसा मिल रही है और दूसरी तरफयह अभी भी कम आय वाली विकासशील अर्थव्यवस्था है। आज भीभारत की लगभग 25 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे रहती है। इसके अलावाकई मानव और प्राकृतिक संसाधन हैं जिनका उपयोग कम किया जा रहा है। इस लेख मेंहम भारत में आर्थिक मुद्दों का पता लगाएंगे।
 

भारत में आर्थिक मुद्दे

एक गरीब देश और दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक होने के नातेभारत में कुछ अनोखे आर्थिक मुद्दे हैं जो नीचे दिए गए हैं

1. कम प्रति व्यक्ति आय:

आमतौर परविकासशील अर्थव्यवस्थाओं में प्रति व्यक्ति आय कम होती है। 2014 में भारत में प्रति व्यक्ति आय 1,560 डॉलर थी। उसी वर्षसंयुक्त राज्य अमेरिका की प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय भारत की तुलना में 35 गुना थी और चीन की तुलना में भारत 5 गुना अधिक था।
इसके अलावाकम प्रति व्यक्ति आय के अलावाभारत को आय के असमान वितरण की भी समस्या है। यह गरीबी की समस्या को महत्वपूर्ण बनाता है और देश की आर्थिक प्रगति में एक बड़ी बाधा है। इसलिएकम प्रति व्यक्ति आय भारत में प्राथमिक आर्थिक मुद्दों में से एक है।

2. कृषि पर जनसंख्या की भारी निर्भरता:

एक अन्य पहलू जो भारतीय अर्थव्यवस्था के पिछड़ेपन को दर्शाता है वह है देश में व्यवसायों का वितरण। भारतीय कृषि क्षेत्र देश की तेजी से बढ़ती आबादी की मांगों को पूरा करने में कामयाब रहा है।
विश्व बैंक के अनुसार, 2014 मेंभारत में लगभग 47 प्रतिशत कामकाजी आबादी कृषि में लगी हुई थी। दुर्भाग्यवशइसने राष्ट्रीय आय में महज 17 प्रतिशत का योगदान दिया और इस क्षेत्र में प्रति व्यक्ति कम उत्पादकता है। उद्योगों का विस्तार पर्याप्त जनशक्ति को आकर्षित करने में विपफल रहा।

3. भारी जनसंख्या का दबावः

एक अन्य कारक जो भारत में आर्थिक मुद्दों में योगदान देता है वह है जनसंख्या। आजभारत दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश हैपहला चीन है।
हमारे पास उच्च स्तर की जन्म दर और मृत्यु दर का गिरता स्तर है। बढ़ती आबादी को बनाए रखने के लिएप्रशासन को भोजनकपड़ेआश्रयचिकित्सास्कूली शिक्षा आदि की बुनियादी आवश्यकताओं का ध्यान रखना चाहिएइसलिए देश पर आर्थिक बोझ बढ़ रहा है।

4. पुरानी बेरोजगारी और कम रोजगार का अस्तित्वः

विशाल बेरोजगार कामकाजी आबादी एक और पहलू है जो भारत में आर्थिक मुद्दों में योगदान देता है। हमारे देश में श्रम की प्रचुरता है जो पूरी आबादी को लाभकारी रोजगार प्रदान करना कठिन बनाता है। साथ हीपूंजी की कमी के कारण द्वितीयक और तृतीयक व्यवसायों की अपर्याप्त वृद्धि हुई है। इसने भारत में पुरानी बेरोजगारी और कम रोजगार में योगदान दिया है। कृषि में काम करने वाली लगभग आधी आबादी के साथएक खेतिहर मजदूर का सीमांत उत्पाद नगण्य हो गया है। शिक्षित-बेरोजगारों की बढ़ती संख्या की समस्या ने देश के संकटों को भी बढ़ा दिया है।


5. पूंजी निर्माण की दर में धीमे सुधार:

भारत के पास हमेशा पूंजी की कमी थी। हालाँकिहाल के वर्षों मेंभारत ने पूंजी निर्माण में धीमी लेकिन स्थिर सुधार का अनुभव किया है। हमने 2000-05 के दौरान 1.6 प्रतिशत की जनसंख्या वृद्धि का अनुभव किया और बढ़ती आबादी के कारण अतिरिक्त बोझ को ऑफसेट करने के लिए लगभग 6.4 प्रतिशत निवेश करने की आवश्यकता है।
इसलिएभारत को मूल्य” ह्रास की भरपाई करने और जीवन स्तर को बनाए रखने के लिए लगभग 14 प्रतिशत की सकल पूंजी निर्माण की आवश्यकता है। जीवन स्तर में सुधार का एकमात्र तरीका सकल पूंजी निर्माण की दर को बढ़ाना है।


6. धन वितरण में असमानता:

ऑक्सफैम की 99 प्रतिशत के लिए एक अर्थव्यवस्था रिपोर्ट, 2017 के अनुसारदुनिया में अमीर और गरीब के बीच की खाई बहुत बड़ी है। दुनिया मेंआठ पुरुषों के पास 3.6 बिलियन लोगों के समान संपत्ति है जो मानवता के सबसे गरीब आधे लोगों का निर्माण करते हैं।
भारत मेंकेवल 1 प्रतिशत लोगों के पास कुल भारतीय धन का 58 प्रतिशत है। साथ ही, 57 अरबपतियों के पास भारत की 70 प्रतिशत संपत्ति के बराबर धन है। धन का असमान वितरण निश्चित रूप से भारत के प्रमुख आर्थिक मुद्दों में से एक है।


7. मानव पूंजी की खराब गुणवत्ता:

शब्द के व्यापक अर्थ मेंपूंजी निर्माण में किसी भी संसाधन का उपयोग शामिल है जो उत्पादन की क्षमता को बढ़ाता है। इसलिएजनसंख्या का ज्ञान और प्रशिक्षण पूंजी का एक रूप है। इसलिएशिक्षाकौशल-प्रशिक्षणअनुसंधान और स्वास्थ्य में सुधार पर व्यय मानव पूंजी का एक हिस्सा है। आपको एक परिप्रेक्ष्य देने के लिएसंयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम मानव विकास सूचकांक के आधार पर देशों को रैंक करता है। यह जीवन प्रत्याशाशिक्षा और प्रति व्यक्ति आय पर आधारित है।


8. तकनीक का निम्न स्तर:

हर दिन नई तकनीकों का विकास किया जा रहा है। हालांकिवे महंगे हैं और उन्हें उत्पादन में लागू करने के लिए काफी मात्रा में कौशल वाले लोगों की आवश्यकता होती है। किसी भी नई तकनीक के लिए पूंजी और प्रशिक्षित और कुशल कर्मियों की आवश्यकता होती है। इसलिएमानव पूंजी की कमी और कुशल श्रम की अनुपस्थिति अर्थव्यवस्था में प्रौद्योगिकी के प्रसार में बड़ी बाधाएं हैं।एक अन्य पहलू जो भारत में आर्थिक मुद्दों को जोड़ता हैवह यह है कि गरीब किसान आवश्यक बीजउर्वरकऔर मशीन जैसे ट्रैक्टरनिवेशक आदि भी नहीं खरीद सकते हैं। इसके अलावाभारत में अधिकांश उद्यम सूक्ष्म या लघु हैं इसलिएवे आधुनिक और अधिक उत्पादक तकनीकों को बर्दाश्त नहीं कर सकते।

9. मूलभूत सुविधाओं तक पहुंच का अभाव:

2011 मेंभारत की जनगणना के अनुसारभारत की लगभग 70  प्रतिशत आबादी ग्रामीण और स्लम क्षेत्रों में रहती है। इसके अलावाभारत में केवल 46.6 प्रतिशत परिवारों के पास अपने परिसर के भीतर पीने के पानी की सुविधा है। साथ हीकेवल 46.9 प्रतिशत घरों में घरेलू परिसर के भीतर शौचालय की सुविधा है। इससे भारतीय कामगारों की दक्षता कम हो जाती है। साथ हीस्वास्थ्य सेवाओं के कुशल और प्रभावी वितरण के लिए समर्पित और कुशल स्वास्थ्य कर्मियों की आवश्यकता है। हालांकियह सुनिश्चित करना कि भारत जैसे देश में ऐसे पेशेवर उपलब्ध हैंएक बड़ी चुनौती है।

10. जनसांख्यिकीय विशेषताएं:

2011 की जनगणना के अनुसारभारत का जनसंख्या घनत्व 382 प्रति वर्ग किलोमीटर थाजबकि विश्व जनसंख्या घनत्व 41 प्रति वर्ग किलोमीटर था। इसके अलावा, 29.5 प्रतिशत 0-14 वर्ष आयु वर्ग में, 62.5 प्रतिशत 15-59 वर्ष आयु वर्ग में और 60 वर्ष या उससे अधिक आयु वर्ग में लगभग 8 प्रतिशत था। यह साबित करता है कि हमारी आबादी का निर्भरता भार बहुत अधिक है।

11. प्राकृतिक संसाधनों का कम उपयोग:

भारत प्राकृतिक संसाधनों जैसे भूमिजलखनिज और बिजली संसाधनों में समृद्ध है। हालांकिदुर्गम क्षेत्रोंआदिम प्रौद्योगिकियों और पूंजी की कमी जैसी समस्याओं के कारणइन संसाधनों का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है। यह भारत में आर्थिक मुद्दों में योगदान देता है।

12. बुनियादी सुविधाओं का अभाव:

ढांचागत सुविधाओं की कमी भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाली एक गंभीर समस्या है। इनमें परिवहनसंचारबिजली उत्पादनऔर वितरणबैंकिंग और क्रेडिट सुविधाएंस्वास्थ्य और शैक्षणिक संस्थान आदि शामिल हैंइसलिए देश के विभिन्न क्षेत्रों की क्षमता का उपयोग कम किया जाता है।
 
 

भारतीय अर्थव्यवस्थाः चुनौतियाँ एवं संभावनाएँ

भारत में गरीबी उन्मूलन हेतु अनेक उपाय किये गये लेकिन वो अपने तकनीकी एवं संरचनात्मक खामियों के कारण लक्षित उद्देश्यों को प्राप्त नहीं कर सके।

अर्थव्यवस्थाओं की मुख्य चुनौतियां

चाहे काल खण्ड कुछ भी रहा हो अर्थव्यवस्थाओं की मूल चुनौती रही है अपनी जनसंख्या को आवश्यकता की वस्तुओं और सेवाओं को उपलब्ध कराना। वस्तुओं की श्रेणी में आवश्यक मदेंयथा भोजनआवासवस्त्र इत्यादि से लेकर गैर-आवश्यक मदेंयथा रेफीजरेटरटी.वी.कार इत्यादि हो सकती हैं। इसी प्रकारजनसंख्या को जिन सेवाओं की आवश्यकता होती हैवे स्वास्थ्यशिक्षापेयजल से लेकर उच्चतर प्रकार की सेवाएँ,जैसे बैंकिंगबीमावायु परिवहनटेलीफोनइंटरनेट इत्यादि तक हो सकती हैं। कोई अर्थव्यवस्था जैसे-जैसे विकास की ओर अग्रसर होती है उसकी वस्तुओं एवं सेवाओं की मात्रा और प्रकार दोनों बढ़ती जाती हैं। सीमित संसाधनों का ईष्टतम् दोहन करके अपने समसामयिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना प्रत्येक अर्थव्यवस्था की चुनौती रही है। कोई भी अर्थव्यवस्था जैसे ही एक श्रेणी की वस्तुओं और सेवाओं को उपलब्ध् कराने में सफल होने की स्थिति में आती है विकास के नये स्तर में उच्चतर श्रेणी की वस्तुओं एवं सेवाओं की मांग प्रारंभ हो जाती है। इस प्रकार अपनी जनसंख्या की आवश्यकताओं को पूरा करने का यह दौर प्रत्येक अर्थव्यवस्था में अनवरत चलता रहता है और यह प्रक्रिया कभी नहीं खत्म होने वाली है। इस चुनौती के दो आयाम हैं प्रथमअपने उपलब्ध संसाधनों के दोहन के द्वारा उन वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन जिनकी उस समय जनसंख्या को आवश्यकता होती है। अपनी उत्पादन प्रक्रिया का यह स्तर प्राप्त करना आवश्यक होता है। उत्पादन के इस स्तर को प्राप्त करने के लिए उपयुक्त मात्रा के निवेश की आवश्यकता होती है। यह निवेश वहाँ की सरकार