उसने बिना चोंच अर्थात बिना इंद्रियों के ही आनंद रस का पान किया है, इसलिए अब सारे बंधन को भूल गया है और सांसारिक मोहमाया के प्रति उसकी आसक्ति खत्म हो गई है।कबीर ये कहना चाहते हैं कि जब जीवात्मा परमात्मा को समझ लेता है तो वह परमात्मा में ही विलीन हो जाता है और जब तक वो परमात्मा से अलग रहता है तो जीवात्मा बनकर इस संसार में भटकता रहता है। जब परमात्मा को जान लेता है तो परमात्मा के परम तत्व रहस्य को जानकर उसमें ही एकाकार हो जाता है और आनंद से भर उठता है। तब उसे अपने शरीर की इंद्रियों द्वारा सुख अच्छे नही लगते। वह तो परमतत्व को जानने के सुख में ही आनंद अनुभव करता है।
हमारे अन्य प्रश्न उत्तर : ‘ऐकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होई’ −इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है? निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिये। बिरह भुवंगम तन बसै, मंत्र न लागै कोइ। कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढै बन माँहि। जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि। पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ। MCQ Questions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 1 साखी Share this: MCQ Questions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 1 साखी can be an effective way to assess understanding of key concepts, and can be used to promote deeper thinking about a topic. This type of question is often used in exams, and practicing with them can help you get the highest marks possible. With Chapter 1 Class 10 Hindi Sparsh MCQ questions with answers, you will be able to better gauge your understanding of the material. This allows the students to go over the material they have learnt in class. निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिये: इस कविता का भाव है कि जिस व्यक्ति के हृदय में ईश्वर के अनंत प्रेम कि धुन लग जाती हैं और ईश्वर के प्रेम को ही अपना सारा सुख मानने लगता हैं तथा ईश्वर के प्रति प्रेम रुपी विरह का सर्प बस जाता है, उस पर कोई मंत्र असर नहीं करता है। उस पर किसी बात का कोई असर नहीं होता है। अर्थात भगवान के विरह में कोई भी जीव सामान्य नहीं रहता है। कबीरदास जी कहते हैं कि जब मनुष्य के मन में अपनों के बिछड़ने का दुख सांप बन कर लोटने लगता है तो उस पर न कोई मन्त्र का असर करता है और न ही कोई दवा का असर करती है। उसी तरह ईश्वर के वियोग में मनुष्य जीवित नहीं रह सकता और यदि वह जीवित रहता भी है तो उसकी स्थिति पागलों जैसी हो जाती है। विरह की वेदना जिस प्रकार किसी व्यक्ति को मन ही मन काटती रहती है, वैसे ही ईश्वर के रंग में रंगा भक्त भी सबसे जुदा होता है। सच्चा भक्त अपने ईश्वर से दूर नहीं रह सकता। ईश्वर के वियोग में वह जीवित नहीं रह सकता और यदि जीवित रह भी जाए तो वह पागल हो सकता है। विरह-वेदना रूपी नाग उसे निरंतर डसता रहता है। इस वेदना को यदि कोई समझ सकता है तो स्वयं ईश्वर ही समझ सकते हैं। बिरह भुवंगम तन बसै मन्त्र न लागै कोई हिंदी मीनिंग Birah Bhuvangam Tan Base Mantra Na Lage Koi Hindi Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Meaning Sahitकबीर के दोहे व्याख्या हिंदी में बिरह भुवंगम तन बसै मन्त्र न लागै कोई। राम बियोगी ना जिवै जिवै तो बौरा होई।। Birah Bhuvangam Tan Basai Mantr Na Laagai Koee. दोहे के शब्दार्थ Word Meaning of Kabir Doha Hindiबिरह : बिछड़ने का दुःख। भुवंगम : भुजंग , सांप। तन बसै : मन में रहता है। मन्त्र न लागै कोई : कोई उपचार कार्य नहीं करता है। बौरा: पागल। इस दोहे का हिंदी मीनिंग : विरह की वेदना (बिछड़ने का दुःख ) जिस प्रकार किसी व्यक्ति को मन ही मन काटती रहती है, उसे कोई मंत्र (उपचार) भी नहीं लगता है, ऐसे ही राम से प्रेम करने वाले व्यक्ति को भी मन ही मन संताप रहता है (मन में विरह का सांप काटता रहता है ) और उसका जीवित रहना सम्भव नहीं होता है, यदि वह जीवित रह भी जाए तो पागल के समान ही रहता है। पागल के समान इसलिए बताया गया है क्योकि यह जगत 'माया ' की भाषा को समझता है, माया के इतर किये गए कार्य और व्यवहार को समाज अव्यवहारिक और असामान्य मानते हुए उस व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता पर शक करके उसे पागल कहने लगते हैं। वस्तुतः ईश्वर के रंग में रंगा बैरागी सबसे जुदा होता है तभी तो बुल्ले शाह कहते हैं, मैं क्यों ना पांवो में घुंघरू बाँध के मुरशद को मनाऊँ ?
Mann Lago Yaar - Abida Parveen | Gulzar | Sufi Kalaam | Times Music Spiritual Saroj Jangir : Lyrics Pandits |