बाल विकास में परिवार की क्या भूमिका होती है? - baal vikaas mein parivaar kee kya bhoomika hotee hai?

इसे सुनेंरोकेंपरिवार, बालक के विकास की प्रथम पाठशाला है। यह बालक में निहित योग्यताओं एवं क्षमताओं का विकास करता है। पारिवारिक ढांचे का विशिष्ट रूप एक समाज के रूप में समाज में विभिन्न हो सकता है और होता है पर सब जगह परिवार के मुख्य कार्य हैं- बच्चे का पालन करना, उसे समाज की संस्कृति से परिचित कराना, सारांश में उसका सामाजिकरण करना।”

बालक की शिक्षा में परिवार का क्या महत्व है?

इसे सुनेंरोकेंपरिवार बालक के लिये प्रथम पाठशाला के रूप में माना जाता है। बालक जब पैदा होता है तब उसको पूर्ण संरक्षण देने का दायित्व परिवार के अन्य बड़े सदस्यों का होता है। परिवार में रहकर बालक शारीरिक रूप से विकास करता है और मानवोचित गुणों को अपनाने की क्रिया को सीखता है। बालक का स्थायी विकास भी परिवार में ही रहकर होता है।

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शिक्षा में परिवार की क्या भूमिका है?

इसे सुनेंरोकेंपरिवार, बालक के विकास की प्रथम पाठशाला है। यह बालक में निहित योग्यताओं एवं क्षमताओं का विकास करता है। परिवार का प्रत्येक सदस्य, बालक के विकास में योगदान देता है। यंग एवं मैक (Young & Mack) के अनुसार- ” परिवार सबसे पुराना और मौलिक मानव समूह है।

बच्चों के विकास पर पारिवारिक मूल्य का क्या प्रभाव पड़ा है?

इसे सुनेंरोकेंपारिवारिक तंत्र का बच्चे के विकास पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है, विशेषकर पहले कुछ सालों में बच्चे का मां के साथ किस तरह का रिश्ता रहा। मां के साथ रहकर ही शिशु परिवार के महत्व जान पाता है। इस दौरान बच्चे में भावनात्मक विकास भी होता है और वह माहौल में अपने आप को ढालना सीखता है।

बाल्यावस्था क्या है बालक के विकास में परिवार की भूमिका का वर्णन करें?

इसे सुनेंरोकेंबाल्यावस्था के विकास में परिवार का महत्वपूर्ण योगदान है | परिवार बालक के विकास की प्रथम पाठशाला है परिवार या घर समाज के न्यूनतम समूह इकाई है । परिवार मे बालक उदारता ,अनुदारता,निस्वार्थ ,स्वार्थ उसमें न्याय और अन्याय व सत्य औरअसत्य, परिश्रम एवं आलस में अंतर सीखता है।

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सामाजिक विकास में परिवार की क्या भूमिका है?

इसे सुनेंरोकेंबच्चा जब अपने परिवार के साथ मिलकर रहना सीखता है तभी उसे समाज के नियमों तथा रीति-रिवाजों को मानने का महत्त्व भी समझ में आता है। माता-पिता के सामाजिक व्यवहार के ढांचे पर ही बच्चे का सामाजिक विकास होता है। इस प्रकार परिवार में रहकर बच्चा उस व्यवहार को सीखता है, जो समाज को मान्य है तथा समाज में रहने के लिए आवश्यक है।

बालक का सामाजिक कारण कहाँ से प्रारम्भ होता है?

इसे सुनेंरोकेंप्राथमिक सामाजीकरण परिवार, पड़ोस एवं नातेदारी, मित्र-समूह व आरम्भिक स्कूली शिक्षा के माध्यम से होता है जिसमें बच्चा समाज का सहभागी सदस्य बनने के बारे में बहुत कुछ सीखता है। परिवार को सार्वभौम मान कर सामाजीकरण में इसे आधारभूत संस्था के रूप में देखा जाता है।

बच्चों के विकास के लिए परिवार के चित्र क्यों महत्वपूर्ण है?

इसे सुनेंरोकेंमुख्य वक्ता ने कहा कि बच्चों के विकास के लिए परिवार और समाज का योगदान महत्वपूर्ण होता है। बच्चों को ऐसा वातावरण मुहैया करवाना चाहिए जिससे उनमें सीखने की क्षमता का विकास हो। बच्चों को मानसिक, शारीरिक एवं नैतिक रूप से सशक्त बनाना चाहिए, जिससे वे किसी भी कार्य को करने के लिए सक्षम हों।

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पारिवारिक शिक्षा क्या है?

इसे सुनेंरोकें1) पारिवारिक जीवन शिक्षा व्यक्ति तथा परिवार दोनों के रूप में जीवन भर परिवार में व्यक्ति से संबंधित रहती है। 2) यह परिवारों में व्यक्तियों की आवश्यकता पर आधारित होनी चाहिए। 3) पारिवारिक जीवन शिक्षा अध्ययन और अभ्यास के क्षेत्र में बहु आयामी है।

समाजीकरण में परिवार की भूमिका क्या है?

इसे सुनेंरोकेंसंक्षेप में कह सकते हैं कि बालक के समाजीकरण में बहुत से संस्थाएँ योगदान देती हैं फिर भी परिवार का योगदान सबसे ऊपर है क्योंकि समाजीकरण की पहली शिक्षा बच्चा परिवार के द्वारा ही सीखता है। परिवार के बाद बच्चा स्कूल द्वारा समाजीकरण करना सीखता है, परन्तु समजीकरण में शिक्षा में परिवार की महांत्वता को नकरा नहीं जा सकता।

बच्चों के विकास में परिवार की भूमिका| बालक के सामाजिक विकास में विद्यालय की भूमिका|बालक के विकास में घर का योगदान | बच्चो के विकास में स्कूल की भूमिका | बच्चो के विकास में परिवार की भूमिका |बच्चों के विकास में विद्यालय की भूमिका| बालक के संवेगात्मक विकास में शिक्षक की भूमिका | अगर आप इन सभी सवालों का जवाब जानना चाहते हैं तो आज के इस पोस्ट को पूरा पढ़ें। 

इस पोस्ट में आप बाल्यावस्था के विकास से जुड़ी यह सभी जानकारी के बारे में जान लेंगे | 

बाल विकास में परिवार की क्या भूमिका होती है? - baal vikaas mein parivaar kee kya bhoomika hotee hai?

 

बाल्यावस्था के विकास में परिवार ,विद्यालय, शिक्षक एवं साथी संगी की भूमिका का वर्णन करें |

Ans:- बाल्यावस्था जन्म उपरांत मानव विकास की दूसरी अवस्था है जो शैशवावस्था के समाप्ति के बाद प्रारंभ होती है ।इस अवस्था में वह व्यक्तिगत और समाजिक वयवहार    सीखना शुरू करता है तथा उसकी औपचारिक शिक्षा का भी आरंभ हो जाता है।

शैक्षिक दृष्टि से बाल्यावस्था  जीवन की एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण अवस्था है । बाल्यावस्था की आयु 6 वर्ष से लेकर 12 वर्ष तक की होती है । बाल्यावस्था को संवेगो की अवस्था कहा  जाता है।

**  कोल के अनुसार :- “बाल्यावस्था जीवन का अनोखा काल है”
** किलपैट्रिक के अनुसार:- ” बाल्यावस्था जीवन का निर्माण काल है।”
**कोल एवं  ब्रुस अनुसार :- ” वास्तव में माता-पिता के लिए बाल विकास की अवस्था को समझना कठिन है।”
बाल्यावस्था के विकास में परिवार विद्यालय शिक्षक एवं साथ सांगी की भूमिका अत्यंत  ही महत्वपूर्ण है ,जो कि निम्न है :—

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बाल्यावस्थ के विकास मे परिवार की भूमिका या बालक के विकास में फैमिली की भूमिका (balak ke vikas me family ki bhumika) :-

परिवार बालक के विकास की प्रथम पाठशाला है परिवार या घर समाज के न्यूनतम समूह इकाई है ।परिवार मे बालक उदारता ,अनुदारता,निस्वार्थ ,  स्वार्थ उसमें न्याय और अन्याय व सत्य औरअसत्य, परिश्रम    एवं आलस में अंतर सीखता है। 

 

*मांउटेसरी*  ने बालकों के विकास के लिए परिवार के वातावरण तथा परिस्थितियों को महत्वपूर्ण माना है।

*रेमन्ट के अनुसार :- ” परिवार ही वह स्थान है जहां वे महान गुण उत्पन्न होते हैं जिनकी सामान्य विशेषता सहानुभूति है।”

 

* परिवार या घर बालक की प्रथम पाठशाला है।
*नैतिकता व सामाजिकता का प्रशिक्षण मिलता है ।
*समायोजन तथा अनुकूलन के गुण विकसित होते हैं ।
*समाजिक व्यवहार का अनुकरण करता है।

* समाजिक ,नैतिक ,सांस्कृतिक व अध्यात्मिक मूल्यों का विकास होता है।
* रुचि ,अभिरुचि तथा का प्रवृत्तियों का विकास होता है।
*परिवार वालों को समाज में व्यवहार करने की शिक्षा देता है।

बाल्यावस्था के  विकास में विद्यालय की भूमिका या बालक के विकास में स्कूल की भूमिका(balak ke vikas me school ki bhumika)  :-

विद्यालय वे संस्थाएं हैं जिनको सभ्य मनुष्य द्वारा इस उद्देश्य से स्थापित किया जाता है कि समाज में सु व्यवस्थित और योग्य सदस्यता के लिए बालक को तैयार करने में सफलता मिलें ।

जॉन डीवी की अनुसार:- “विद्यालय अपनी चारदीवारी के बाहर  वृहद समाज का प्रतिबिंब हैं। जिसमें जीवन को व्यतीत  करके सिखा जाता है। यह एक सरल,  शुद्ध तथा उत्तम समाज हैं।”
1. बालक को जीवन की जटिल परिस्थितियों का सामना करने योग बनाता है।
2.समाजिक सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण करता है तथा उसे अगली पीढ़ी में हस्तांतरित करता है ।
3.विद्यालय बालकों को घर तथा संसार से जोड़ने का कार्य करता हैं ।

4.व्यक्तित्व का सामंजस्य पूर्ण विकास करने में विद्यालय का महत्वपूर्ण योगदान है ।
5.विद्यालय में समाज के आदर्शों ,विचार- विमर्श का प्रचार होता है तथा अशिक्षित नागरिकों के निर्माण में योग देता हैं।

6. विद्यालय बालको का समाजिक, मानसिकता , रचनात्मक, संवेगात्मक, लोकतांत्रिक ,मौलिक, नेतृत्व की छमता आदि का विकास करता है।

थॉमसन के अनुसार :-“विद्यालय बालकों का मानसिक ,शारीरिक, सामुदायिक, चारित्रिक, राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय विकास करता है और स्वस्थ रहने का प्रशिक्षण देता है।”

बाल्यावस्था के विकास से शिक्षक की भूमिका या बालक के विकास में शिक्षक की भूमिका (balak ke vikas me teacher ki bhumika ) :- 

 बच्चे अपना अधिकतम समय परिवार के बाद विद्यालय में व्यतीत करते हैं जहाँ वह लगातार शिक्षकों के संपर्क में रहते हैं। शिक्षक ना केवल बच्चों का संज्ञानात्मक विकास करता है बल्कि विकास के अन्य आयामों को भी विकसित करने में सहायक होता है ।विभिन्न खेलों एवं व्यायाम द्वारा भी बच्चों का शारीरिक विकास संभव है ।

कक्षा के भीतर एवं बाहर समुचित वातावरण का निर्माण करके बच्चों के सामाजिक -संवेगात्मक विकास को भी बढ़ावा देते हैं। इसलिए बच्चों के व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास में शिक्षकों की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाती है।
* विलियम जेम्स के अनुसार* :- ‘शिक्षक का सर्वप्रथम  कार्य उन आदतों को छाँटना और लिखना है जो बालकों के लिए पूरे जीवन सबसे अधिक लाभप्रद रहे।”



1.  समाजिक विकास:-
बच्चों में सामाजिक सूझ का विकास करना अध्यापक बाला बच्चों में अध्यापक का दायित्व है अतः कक्षा के अंदर तथा कक्षा के बाहर बच्चों के  क्रिया -कलापो का ,रुचियों का, मनोवृतियों का एवं आचरण आदि का अवलोकन करना चाहिए।

 


2. नैतिक विकास:-बच्चों को अध्यापक द्वारा सही और उचित दिशा में निर्देशन देने चाहिए ।



3. सृजनात्मकता का विकास:-
अध्यापक द्वारा बच्चों में समस्या समाधान की योग्यता वो मूल्यांकन की क्षमता जांच करने की कुशलता तथा नवीन क्रियाओं के प्रति उद्- भावनाओं का स्तर आदि ।

4.समायोज क्षमता का विकास :- अध्यापकों को चाहिए कि उसके वातावरण में फेर-बदल करें तभी बालक स्वयं से और समास से समायोजन स्थापित कर सकता है।

बाल्यावस्था के विकास में साथ- संगी की भूमिका  या बालक के विकास में दोस्त की भूमिका : –


1.बाल्यावस्था में बच्चे अपने आप को बड़ों की छत्रछाया से मुक्त करना चाहते हैं या करने का प्रयास करते हैं माता- पिता, परिवार के बड़े सदस्यों के साथ समय बिताना नहीं चाहते हैं  ।

2. वे हम उम्र के बालकों के टोली या गिरोह का सदस्य बनना चाहते हैं उसके साथी सदस्यों का प्रभाव उसके सामाजिक विकास के रूप में देखा जा सकता है।

3. बालक किसी न किसी समूह का सदस्य बन कर समूह द्वारा निर्धारित उचित ,अनुचित आदर्शों का अनुसरण करता है और निर्देशन को मानता है जिससे उसमें उत्तरदायित्व और सहकारिता की भावना विकसित होती है।

4. हरलॉक केअनुसार :-“साथी- संगी बालकों में आत्म- नियंत्रण ,साहस, न्याय, सहनशीलता दूसरों के प्रति  सद्भाव आदि गुणों का विकास करता है “।

5.साथियों के प्रभाव से बालक समाजिक कार्यों और गतिविधियों में प्रतियोगिता के लिए प्रोत्साहित होता है जिससे उसमें बहिर्मुखी प्रतिभा का विकास होता है। जैसे :-साहित्य, संगीत ,कला ,समाज -सेवा ,समाजिक संपर्क इत्यादि ।6.साथियों के संपर्क से बालकों को अनुभव होने लगता है कि समाज में उसका क्या स्थान है और समाज में उसे किस प्रकार रहना चाहिए।
7.साथियों के प्रभाव से बालक में समाजिक परिपक्वता का भाव विकसित होता है और समाज के प्रति उसने दायित्वों का बोध होता है।
8. समूहों में रहने के कारण बालक आत्म – केंद्रित और स्वार्थी नहीं होता है।
9. साथियों के साथ बालक गुणों को नहीं सीखता है बल्कि उनके अवगुण को भी सीखता है।

निष्कर्ष :-

अत: हम इस प्रकार निष्कर्ष स्वरुप कह सकते हैं कि बालक के सर्वांगीण विकास में परिवार, विद्यालय, शिक्षक एवं साथ -संगी अत्यंत ही महत्वपूर्ण है ।एक अच्छा परिवार ,अच्छा विद्यालय ,अच्छा शिक्षक एवं अच्छा साथी- संगी ही एक अच्छा और दायित्वान व्यक्तित्व का निर्माण करता है जो कि राष्ट्रहित के लिए काम करता है।

बालक के विकास में परिवार की क्या भूमिका है?

बाल्यावस्था के विकास में परिवार का महत्वपूर्ण योगदान है | परिवार बालक के विकास की प्रथम पाठशाला है परिवार या घर समाज के न्यूनतम समूह इकाई है । परिवार मे बालक उदारता ,अनुदारता,निस्वार्थ ,स्वार्थ उसमें न्याय और अन्याय व सत्य औरअसत्य, परिश्रम एवं आलस में अंतर सीखता है।

बालकों के जीवन में परिवार का क्या महत्व है?

परिवार, बालक के विकास की प्रथम पाठशाला है। यह बालक में निहित योग्यताओं एवं क्षमताओं का विकास करता है। परिवार का प्रत्येक सदस्य, बालक के विकास में योगदान देता है। यंग एवं मैक (Young & Mack) के अनुसार- " परिवार सबसे पुराना और मौलिक मानव समूह है।

व्यक्तित्व के विकास में परिवार की क्या भूमिका होती है?

परिवार के सदस्यों का भी बालक के व्यक्तित्व के विकास पर प्रभाव पड़ता है। जन्मकाल से ही मनुष्य का व्यक्तित्व का विकास प्रारम्भ हो जाता है। जन्म के समय उसकी माता तक ही उसका परिवार सीमित रहता है। उसे अपने सभी प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अपनी माता पर निर्भर रहना पड़ता है।

बालक के व्यक्तित्व पर परिवार का क्या प्रभाव पड़ता है?

परिवार के बाद बालक के व्यक्तित्व पर पड़ौस का प्रभाव पड़ता है। पड़ौस के जिन बच्चों के साथ बच्चा खेलता है अथवा जो बच्चे बालक के साथ उससे खेलने उसके घर आते हैं, बच्चा इन बच्चों से अनेक आदतें और तरह-तरह के कौशल ही नहीं सीखता है, बल्कि बच्चे का बौद्धिक और संवेगात्मक विकास भी इन बच्चों के व्यवहार से प्रभावित होता है।