मुंबई। आमिर खान (Aamir Khan) और उनकी दूसरी पत्नी किरण राव (Kiran Rao) के बीच तलाक हो गया है। शादी के 15 सालों बाद उन्होंने यह फैसला ले लिया। आमिर और किरण के तलाक की खबर जैसे ही मीडिया में आई ट्विटर पर बॉलीवुड एक्ट्रेस फातिमा सना शेख का नाम टॉप ट्रेंड करने लगा। कुछ लोग तो ट्विटर पर फातिमा को ही आमिर के इस दूसरे तलाक की वजह बता रहे हैं। ये भी पढ़ें: ये बॉलीवुड एक्ट्रेस एक दो नहीं ’34 बच्चों’ की मां है, चोरी-छिपे विद… आमिर और किरण राव ने शनिवार दोपहर को एक बयान जारी कर खुद के अलग होने की बात कही है। आमिर खान और किरण राव ने तलाक पर जारी साझा बयान में कहा है, ‘इन 15 खूबसूरत वर्षों में हमने एक साथ जीवन भर के अनुभव, आनंद और हंसी साझा की है और हमारा रिश्ता केवल विश्वास, सम्मान और प्यार में बढ़ा है। अब हम अपने जीवन में एक नया अध्याय शुरू करना चाहेंगे- अब पति-पत्नी के रूप में नहीं, बल्कि एक-दूसरे के लिए सह-माता-पिता और परिवार के रूप में। हमने कुछ समय पहले एक प्लांड सेपरेशन शुरू किया था, और अब इस व्यवस्था को औपचारिक रूप देने में सहज महसूस कर रहे हैं, अलग-अलग रहने के बावजूद अपने जीवन को एक विस्तारित परिवार की तरह साझा करेंगे, हम अपने बेटे आजाद के प्रति समर्पित माता-पिता हैं, जिनका पालन-पोषण हम मिलकर करेंगे।’ ये भी पढ़ें: बॉलीवुड एक्टर आमिर खान और किरण राव का तलाक, 15 साल बाद टूटा रिश्ता.. कहा- नए … आमिर के तलाक की खबर के बाद ट्विटर में आमिर की फिल्म ‘दंगल’ की एक्ट्रेस फातिमा सना शेख को ट्रोल किया जाने लगा है, कई लोग फातिमा को इस अलगाव की वजह बता रहे हैं। आपको याद दिला दें कि फातिमा सना शेख ‘दंगल’ में आमिर खान की बेटी के किरदार में नजर आई थीं। आमिर और किरण फिल्म ‘लगान’ की शूटिंग के दौरान एक-दूसरे के करीब थे और 5 साल के रिश्ते के बाद 28 दिसंबर 2005 में दोनों ने शादी की थी, अपने तलाक की घोषणा के साथ ही उन्होंने अपने फैंस से कहा है कि वह चाहते हैं कि उनके फैंस और सभी लोग इस तलाक को एक अंत की तरह नहीं बल्कि एक नए सफर की शुरुआत की तरह देखें। बता दें कि किरण और आमिर का एक बेटा है आजाद। किरण राव से पहले आमिर खान ने रीना दत्ता से शादी की थी, रीना और आमिर के दो बच्चे हैं आयरा और जुनैद। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने सोनाखान (जिला बलौदाबाजार) के शहीद स्मारक में वीर नारायण सिंह को उनके बलिदान दिवस पर श्रद्धांजलि देने के उपरांत आयोजित आमसभा को सम्बोधित करते हुए इस आशय की घोषणा की है। श्री बघेल ने सोनाखान को तहसील तहसील बनाने का भी ऐलान किया है। मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर शहीद स्मारक परिसर में शहीद वीरनारायण सिंह की घोड़े पर सवार आदमकद प्रतिमा का अनावरण भी किया। उन्होंने यहां 28 करोड़ 60 लाख रूपये के विकास कार्यों की सौगात भी दी। कार्यक्रम की अध्यक्षता आदिम जाति एवं अनुसूचित जाति विकास मंत्री श्री प्रेमसाय सिंह एवं विशेष अतिथि के रूप में उद्योग मंत्री श्री कवासी लखमा, संसदीय सचिव एवं स्थानीय विधायक श्री चन्द्रदेव राय, सुश्री शकुन्तला साहू, छग पाठ्यपुस्तक निगम के अध्यक्ष श्री शैलेश नितिन त्रिवेदी, कृषक कल्याण परिषद के अध्यक्ष श्री सुरेन्द्र शर्मा, जिला पंचायत अध्यक्ष श्री राकेश वर्मा एवं जिला अध्यक्ष श्री हितेन्द्र ठाकुर उपस्थित थे। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने मुख्य मंच पर शहीद के परिजनों का शाल एवं श्रीफल भेंटकर सम्मानित किया। उन्होंने राज्य सरकार द्वारा शहीद के वंशजों के बढ़ाये गये मासिक पेंशन स्वीकृति आदेश पत्र भी प्रदान किये। जिला कलेक्टर श्री सुनील कुमार जैन ने स्वागत भाषण दिया। एस.एसपी श्री दीपक कुमार झा, जिला पंचायत सीईओ फरिहा आलम सिद्धिकी,अपर कलेक्टर श्री राजेन्द्र गुप्ता सहित बड़ी संख्या में अधिकारी, जनप्रतिनिधि एवं आदिवासी समाज के लोग उपस्थित थे। वीर नारायण सिंह (१७९५ - १८५७) छत्तीसगढ़ राज्य के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, एक सच्चे देशभक्त व गरीबों के मसीहा थे। १८५७ के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के समय उन्होने जेल से भागकर अंग्रेजों से लोहा लिया था जिसमें वे गिरफ्तार कर लिए गए थे। १० दिसम्बर १८५७ को उन्हें रायपुर के "जय स्तम्भ चौक" पर फाँसी दे दी गयी। वीर नारायण सिंह का जन्म सन् 1795 में सोनाखान के जमींदार रामसाय के हर हुआ था। वे बिंझवार आदिवासी समुदाय के थे, उनके पिता ने 1818-19 के दौरान अंग्रेजों तथा भोंसले राजाओं के विरुद्ध तलवार उठाई लेकिन कैप्टन मैक्सन ने विद्रोह को दबा दिया। इसके बाद भी बिंझवार आदिवासियों के सामर्थ्य और संगठित शक्ति के कारण जमींदार रामसाय का सोनाखान क्षेत्र में दबदबा बना रहा, जिसके चलते अंग्रेजों ने उनसे संधि कर ली थी। देशभक्ति और निडरता वीर नारायण सिंह को पिता से विरासत में मिली थी। पिता की मृत्यु के बाद 1830 में वे सोनाखान के जमींदार बने। स्वभाव से परोपकारी, न्यायप्रिय तथा कर्मठ वीर नारायण जल्द ही लोगों के प्रिय जननायक बन गए। 1854 में अंग्रेजों ने नए ढंग से कर (Tax) लागू किये, इसे जनविरोधी बताते हुए वीर नारायण सिंह ने इसका भरसक विरोध किया। इससे रायपुर के तात्कालीन डिप्टी कमिश्नर इलियट उनके घोर विरोधी हो गए । 1856 में छत्तीसगढ़ में भयानक सूखा पड़ा था, अकाल और अंग्रेजों द्वारा लागू किए कानून के कारण प्रांत वासी भुखमरी का शिकार हो रहे थे। कसडोल के व्यापारी माखन का गोदाम अन्न से भरा था। वीर नारायण ने उससे अनाज गरीबों में बांटने का आग्रह किया लेकिन वह तैयार नहीं हुआ। इसके बाद उन्होंने माखन के गोदाम के ताले तुड़वा दिए और अनाज निकाल ग्रामीणों में बंटवा दिया। उनके इस कदम से नाराज ब्रिटिश शासन ने उन्हें 24 अक्टूबर 1856 में संबलपुर से गिरफ्तार कर रायपुर जेल में बंद कर दिया। 1857 में जब स्वतंत्रता की लड़ाई तेज हुई तो प्रांत के लोगों ने जेल में बंद वीर नारायण को ही अपना नेता मान लिया और समर में शामिल हो गए। उन्होंने अंग्रेजों के बढ़ते अत्याचारों के खिलाफ बगावत करने की ठान ली थी। नाना साहब द्वारा उसकी सूचना रोटी और कमल के माध्यम से देश भर की सैनिक छावनियों में भेजी जा रही थी। यह सूचना जब रायपुर पहुँची, तो सैनिकों ने कुछ देशभक्त जेलकर्मियों के सहयोग से कारागार से बाहर तक एक गुप्त सुरंग बनायी और नारायण सिंह को मुक्त करा लिया। जेल से मुक्त होकर वीर नारायण सिंह ने 500 सैनिकों की एक सेना गठित की और 20 अगस्त, 1857 को सोनाखान में स्वतन्त्रता का बिगुल बजा दिया। इलियट ने स्मिथ नामक सेनापति के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना भेज दी। पर नारायण सिंह ने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली थीं। उन्होंने सोनाखान से अचानक बाहर निकल कर ऐसा धावा बोला कि अंग्रेजी सेना को भागते भी नहीं बना; पर दुर्भाग्यवश सोनाखान के आसपास के अनेक जमींदार अंग्रेजों से मिल गये। इस कारण नारायण सिंह को पीछे हटकर एक पहाड़ी की शरण में जाना पड़ा। अंग्रेजों ने सोनाखान में घुसकर पूरे नगर को आग लगा दी। नारायण सिंह में जब तक शक्ति और सामर्थ्य रही, वे छापामार प्रणाली से अंग्रेजों को परेशान करते रहे। काफी समय तक यह गुरिल्ला युद्ध चलता रहा; पर आसपास के जमींदारों की गद्दारी से नारायण सिंह फिर पकड़े गये और उन पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया। कैसा आश्चर्य कि जनता ने जिसे राजा के रूप में अपने हृदय मन्दिर में बसाया, उस पर राजद्रोह का मुकदमा ? पर अंग्रेजी शासन में न्याय का नाटक ऐसे ही होता था। मुकदमे में वीर नारायण सिंह को मृत्युदंड दिया गया। 10 दिसंबर 1857 को ब्रिटिश सरकार ने उन्हें सरेआम तोप से उड़ा दिया, स्वातंत्र्य प्राप्ति के बाद वहाँ ‘जय स्तम्भ’ बनाया गया, जो आज भी छत्तीसगढ़ के उस वीर सपूत की याद दिलाता है। |