उत्तराखंड राज्य की स्थापना कब हुई? - uttaraakhand raajy kee sthaapana kab huee?

उत्तराखंड राज्य की स्थापना कब हुई? - uttaraakhand raajy kee sthaapana kab huee?

उत्तरखण्ड (पूर्व नाम उत्तरांचल), उत्तर भारत में स्थित एक राज्य है जिसका निर्माण ९ नवम्बर २००० को कई वर्षों के आन्दोलन के पश्चात[2] भारत गणराज्य के सत्ताईस वें राज्य के रूप में किया गया था। सन २००० से २००६ तक यह उत्तरांचल के नाम से जाना जाता था। जनवरी २००७ में स्थानीय लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए राज्य का आधिकारिक नाम बदलकर उत्तरखण्ड कर दिया गया।[3] राज्य की सीमाएँ उत्तर में तिब्बत और पूर्व में नेपाल से लगी हैं। पश्चिम में हिमाचल प्रदेश और दक्षिण में उत्तर प्रदेश इसकी सीमा से लगे राज्य हैं। सन २००० में अपने गठन से पूर्व यह उत्तर प्रदेश का एक भाग था। पारम्परिक हिन्दू ग्रन्थों और प्राचीन साहित्य में इस क्षेत्र का उल्लेख उत्तराखण्ड के रूप में किया गया है। हिन्दी और संस्कृत में उत्तरखण्ड का अर्थ उत्तरी क्षेत्र या भाग होता है। राज्य में हिन्दू धर्म की पवित्रतम और भारत की सबसे बड़ी नदियों गंगा और यमुना के उद्गम स्थल क्रमशः गंगोत्री और यमुनोत्री तथा इनके तटों पर बसे वैदिक संस्कृति के कई महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थान हैं।

देहरादून, उत्तरखण्ड की अन्तरिम राजधानी होने के साथ इस राज्य का सबसे बड़ा नगर है। गैरसैण नामक एक छोटे से कस्बे को इसकी भौगोलिक स्थिति को देखते हुए भविष्य की राजधानी के रूप में प्रस्तावित किया गया है किन्तु विवादों और संसाधनों के अभाव के चलते अभी भी देहरादून अस्थाई राजधानी बना हुआ है।[4][5] राज्य का उच्च न्यायालय नैनीताल में है।

राज्य सरकार ने हाल ही में हस्तशिल्प और हथकरघा उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए कुछ पहल की हैं। साथ ही बढ़ते पर्यटन व्यापार तथा उच्च तकनीकी वाले उद्योगों को प्रोत्साहन देने के लिए आकर्षक कर योजनाएँ प्रस्तुत की हैं। राज्य में कुछ विवादास्पद किन्तु वृहत बाँध परियोजनाएँ भी हैं जिनकी पूरे देश में कई बार आलोचनाएँ भी की जाती रही हैं, जिनमें विशेष है भागीरथी-भीलांगना नदियों पर बनने वाली टिहरी बाँध परियोजना। इस परियोजना की कल्पना १९५३ मे की गई थी और यह अन्ततः २००७ में बनकर तैयार हुआ। उत्तरखण्ड, चिपको आन्दोलन के जन्मस्थान के नाम से भी जाना जाता है।[6]

इतिहास

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स्कन्द पुराण में हिमालय को पाँच भौगोलिक क्षेत्रों में विभक्त किया गया है:-

खण्डाः पंच हिमालयस्य कथिताः नैपालकूमाँचंलौ।
केदारोऽथ जालन्धरोऽथ रूचिर काश्मीर संज्ञोऽन्तिमः॥

अर्थात् हिमालय क्षेत्र में नेपाल, कुर्मांचल (कुमाऊँ), केदारखण्ड (गढ़वाल), जालन्धर (हिमाचल प्रदेश) और सुरम्य कश्मीर पाँच खण्ड है।[7]

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पौराणिक ग्रन्थों में कुर्मांचल क्षेत्र मानसखण्ड के नाम से प्रसिद्व था। पौराणिक ग्रन्थों में उत्तरी हिमालय में सिद्ध गन्धर्व, यक्ष, किन्नर जातियों की सृष्टि और इस सृष्टि का राजा कुबेर बताया गया हैं। कुबेर की राजधानी अलकापुरी (बद्रीनाथ से ऊपर) बतायी जाती है। पुराणों के अनुसार राजा कुबेर के राज्य में आश्रम में ऋषि-मुनि तप व साधना करते थे। अंग्रेज़ इतिहासकारों के अनुसार हूण, शक, नाग, खस आदि जातियाँ भी हिमालय क्षेत्र में निवास करती थी। पौराणिक ग्रन्थों में केदार खण्ड व मानस खण्ड के नाम से इस क्षेत्र का व्यापक उल्लेख है। इस क्षेत्र को देवभूमि व तपोभूमि माना गया है।

मानस खण्ड का कुर्मांचल व कुमाऊँ नाम चन्द राजाओं के शासन काल में प्रचलित हुआ। कुर्मांचल पर चन्द राजाओं का शासन कत्यूरियों के बाद प्रारम्भ होकर सन् १७९० तक रहा। सन् १७९० में नेपाल की गोरखा सेना ने कुमाऊँ पर आक्रमण कर कुमाऊँ राज्य को अपने आधीन कर लिया। गोरखाओं का कुमाऊँ पर सन् १७९० से १८१५ तक शासन रहा। सन् १८१५ में अंग्रेंजो से अन्तिम बार परास्त होने के उपरान्त गोरखा सेना नेपाल वापस चली गयी किन्तु अंग्रेजों ने कुमाऊँ का शासन चन्द राजाओं को न देकर ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अधीन कर दिया। इस प्रकार कुमाऊँ पर अंग्रेजो का शासन १८१५ से आरम्भ हुआ।

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ऐतिहासिक विवरणों के अनुसार केदार खण्ड कई गढ़ों (किले) में विभक्त था। इन गढ़ों के अलग-अलग राजा थे जिनका अपना-अपना आधिपत्य क्षेत्र था। इतिहासकारों के अनुसार पँवार वंश के राजा ने इन गढ़ों को अपने अधीन कर एकीकृत गढ़वाल राज्य की स्थापना की और श्रीनगर को अपनी राजधानी बनाया। केदार खण्ड का गढ़वाल नाम तभी प्रचलित हुआ। सन् १८०३ में नेपाल की गोरखा सेना ने गढ़वाल राज्य पर आक्रमण कर अपने अधीन कर लिया। यह आक्रमण लोकजन में गोरखाली के नाम से प्रसिद्ध है। महाराजा गढ़वाल ने नेपाल की गोरखा सेना के अधिपत्य से राज्य को मुक्त कराने के लिए अंग्रेजों से सहायता मांगी। अंग्रेज़ सेना ने नेपाल की गोरखा सेना को देहरादून के समीप सन् १८१५ में अन्तिम रूप से परास्त कर दिया। किन्तु गढ़वाल के तत्कालीन महाराजा द्वारा युद्ध व्यय की निर्धारित धनराशि का भुगतान करने में असमर्थता व्यक्त करने के कारण अंग्रेजों ने सम्पूर्ण गढ़वाल राज्य राजा गढ़वाल को न सौंप कर अलकनन्दा-मन्दाकिनी के पूर्व का भाग ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन में सम्मिलित कर गढ़वाल के महाराजा को केवल टिहरी जिले (वर्तमान उत्तरकाशी सहित) का भू-भाग वापस किया। गढ़वाल के तत्कालीन महाराजा सुदर्शन शाह ने २८ दिसम्बर १८१५ को टिहरी नाम के स्थान पर जो भागीरथी और भिलंगना नदियों के संगम पर छोटा-सा गाँव था, अपनी राजधानी स्थापित की। कुछ वर्षों के उपरान्त उनके उत्तराधिकारी महाराजा नरेन्द्र शाह ने ओड़ाथली नामक स्थान पर नरेन्द्रनगर नाम से दूसरी राजधानी स्थापित की। सन् १८१५ से देहरादून व पौड़ी गढ़वाल (वर्तमान चमोली जिला और रुद्रप्रयाग जिले का अगस्त्यमुनि व ऊखीमठ विकास खण्ड सहित) अंग्रेजों के अधीन व टिहरी गढ़वाल महाराजा टिहरी के अधीन हुआ।[8][9]

भारतीय गणतन्त्र में टिहरी राज्य का विलय अगस्त १९४९ में हुआ और टिहरी को तत्कालीन संयुक्त प्रान्त (उत्तर प्रदेश) का एक जिला घोषित किया गया। १९६२ के भारत-चीन युद्ध की पृष्ठभूमि में सीमान्त क्षेत्रों के विकास की दृष्टि से सन् १९६० में तीन सीमान्त जिले उत्तरकाशी, चमोली व पिथौरागढ़ का गठन किया गया। एक नये राज्य के रूप में उत्तर प्रदेश के पुनर्गठन के फलस्वरुप (उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, २०००) उत्तराखण्ड की स्थापना ९ नवम्बर २००० को हुई। अत: इस दिन को उत्तराखण्ड में स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है।

सन् १९६९ तक देहरादून को छोड़कर उत्तराखण्ड के सभी जिले कुमाऊँ मण्डल के अधीन थे। सन् १९६९ में गढ़वाल मण्डल की स्थापना की गयी जिसका मुख्यालय पौड़ी बनाया गया। सन् १९७५ में देहरादून जिले को जो मेरठ प्रमण्डल में सम्मिलित था, गढ़वाल मण्डल में सम्मिलित कर लिया गया। इससे गढ़वाल मण्डल में जिलों की संख्या पाँच हो गयी। कुमाऊँ मण्डल में नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, तीन जिले सम्मिलित थे। सन् १९९४ में उधमसिंह नगर और सन् १९९७ में रुद्रप्रयाग, चम्पावत व बागेश्वर जिलों का गठन होने पर उत्तराखण्ड राज्य गठन से पूर्व गढ़वाल और कुमाऊँ मण्डलों में छः-छः जिले सम्मिलित थे। उत्तराखण्ड राज्य में हरिद्वार जनपद के सम्मिलित किये जाने के पश्चात गढ़वाल मण्डल में सात और कुमाऊँ मण्डल में छः जिले सम्मिलित हैं। १ जनवरी २००७ से राज्य का नाम "उत्तरांचल" से बदलकर "उत्तराखण्ड" कर दिया गया है।

भूगोल

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उत्तराखण्ड[10] का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल २८° ४३’ उ. से ३१°२७’ उ. और रेखांश ७७°३४’ पू से ८१°०२’ पू के बीच में ५३,४८३ वर्ग किमी है, जिसमें से ४३,०३५ कि.मी.२ पर्वतीय है और ७,४४८ कि.मी.२ मैदानी है, तथा ३४,६५१ कि.मी.२ भूभाग वनाच्छादित है।[11] राज्य का अधिकांश उत्तरी भाग वृहद्तर हिमालय श्रृंखला का भाग है, जो ऊँची हिमालयी चोटियों और हिमनदियों से ढका हुआ है, जबकि निम्न तलहटियाँ सघन वनों से ढकी हुई हैं जिनका पहले अंग्रेज़ लकड़ी व्यापारियों और स्वतन्त्रता के बाद वन अनुबन्धकों द्वारा दोहन किया गया। हाल ही के वनीकरण के प्रयासों के कारण स्थिति प्रत्यावर्तन करने में सफलता मिली है। हिमालय के विशिष्ठ पारिस्थितिक तन्त्र बड़ी संख्या में पशुओं (जैसे भड़ल, हिम तेंदुआ, तेंदुआ और बाघ), पौंधो और दुर्लभ जड़ी-बूटियों का घर है। भारत की दो सबसे महत्वपूर्ण नदियाँ गंगा और यमुना इसी राज्य में जन्म लेतीं हैं और मैदानी क्षेत्रों तक पहुँचते-२ मार्ग में बहुत से तालाबों, झीलों, हिमनदियों की पिघली बर्फ से जल ग्रहण करती हैं।

उत्तराखण्ड, हिमालय श्रृंखला की दक्षिणी ढलान पर स्थित है और यहाँ मौसम और वनस्पति में ऊँचाई के साथ-२ बहुत परिवर्तन होता है, जहाँ सबसे ऊँचाई पर हिमनद से लेकर निचले स्थानों पर उपोष्णकटिबंधीय वन हैं। सबसे ऊँचे उठे स्थल हिम और पत्थरों से ढके हुए हैं। उनसे नीचे, ५,००० से ३,००० मीटर तक घासभूमि और झाड़ीभूमि है। समशीतोष्ण शंकुधारी वन, पश्चिम हिमालयी उपअल्पाइन शंकुधर वन, वृक्षरेखा से कुछ नीचे उगते हैं। ३,००० से २,६०० मीटर की ऊँचाई पर समशीतोष्ण पश्चिम हिमालयी चौड़ी पत्तियों वाले वन हैं जो २,६०० से १,५०० मीटर की उँचाई पर हैं। १,५०० मीटर से नीचे हिमालयी उपोष्णकटिबंधीय पाइन वन हैं। उचले गंगा के मैदानों में नम पतझड़ी वन हैं और सुखाने वाले तराई-दुआर सवाना और घासभूमि उत्तर प्रदेश से लगती हुई निचली भूमि को ढके हुए है। इसे स्थानीय क्षेत्रों में भाभर के नाम से जाना जाता है। निचली भूमि के अधिकांश भाग को खेती के लिए साफ़ कर दिया गया है।

भारत के निम्नलिखित राष्ट्रीय उद्यान इस राज्य में हैं, जैसे जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान (भारत का सबसे पुराना राष्ट्रीय उद्यान) रामनगर, नैनीताल जिले में, फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान और नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान, चमोली जिले में हैं और दोनो मिलकर यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं, राजाजी राष्ट्रीय अभयारण्य हरिद्वार जिले में और गोविंद पशु विहार और गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान उत्तरकाशी जिले में हैं।

उत्तराखण्ड की नदियाँ

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ऋषिकेश के निकट हिमालय क्षेत्र

इस प्रदेश की नदियाँ भारतीय संस्कृति में सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। उत्तराखण्ड अनेक नदियों का उद्गम स्थल है। यहाँ की नदियाँ सिंचाई व जल विद्युत उत्पादन का प्रमुख संसाधन है। इन नदियों के किनारे अनेक धार्मिक व सांस्कृतिक केन्द्र स्थापित हैं। हिन्दुओं की पवित्र नदी गंगा का उद्गम स्थल मुख्य हिमालय की दक्षिणी श्रेणियाँ हैं। गंगा का प्रारम्भ अलकनन्दा व भागीरथी नदियों से होता है। अलकनन्दा की सहायक नदी धौली, विष्णु गंगा तथा मंदाकिनी है। गंगा नदी, भागीरथी के रूप में गौमुख स्थान से २५ कि॰मी॰ लम्बे गंगोत्री हिमनद से निकलती है। भागीरथी व अलकनन्दा देव प्रयाग संगम करती है जिसके पश्चात वह गंगा के रूप में पहचानी जाती है। यमुना नदी का उद्गम क्षेत्र बन्दरपूँछ के पश्चिमी यमनोत्री हिमनद से है। इस नदी में होन्स, गिरी व आसन मुख्य सहायक हैं। राम गंगा का उद्गम स्थल तकलाकोट के उत्तर पश्चिम में माकचा चुंग हिमनद में मिल जाती है। सोंग नदी देहरादून के दक्षिण पूर्वी भाग में बहती हुई वीरभद्र के पास गंगा नदी में मिल जाती है। इनके अलावा राज्य में काली, रामगंगा, कोसी, गोमती, टोंस, धौली गंगा, गौरीगंगा, पिंडर नयार (पूर्व) पिंडर नयार (पश्चिम) आदि प्रमुख नदियाँ हैं।

हिमशिखर

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हिमालयी श्रृंखला का उत्तराखण्डी शिखर

राज्य के प्रमुख हिमशिखरों में गंगोत्री (६६१४ मी.), दूनगिरि (७०६६), बन्दरपूँछ (६३१५), केदारनाथ (६४९०), चौखम्बा (७१३८), कामेट (७७५६), सतोपन्थ (७०७५), नीलकण्ठ (५६९६), नन्दा देवी (७८१८), गोरी पर्वत (६२५०), हाथी पर्वत (६७२७), नंदा धुंटी (६३०९), नन्दा कोट (६८६१) देव वन (६८५३), माना (७२७३), मृगथनी (६८५५), पंचाचूली (६९०५), गुनी (६१७९), यूंगटागट (६९४५) हैं।

हिमनद

राज्य के प्रमुख हिमनदों में गंगोत्री, यमुनोत्री, पिण्डर, खतलिगं, मिलम, जौलिंकांग, सुन्दर ढूंगा इत्यादि आते हैं।

झीलें

राज्य के प्रमुख तालों व झीलों में गौरीकुण्ड, रूपकुण्ड, नन्दीकुण्ड, डूयोढ़ी ताल, जराल ताल, शहस्त्रा ताल, मासर ताल, नैनीताल, भीमताल, सात ताल, नौकुचिया ताल, सूखा ताल, श्यामला ताल, सुरपा ताल, गरूड़ी ताल, हरीश ताल, लोखम ताल, पार्वती ताल, तड़ाग ताल (कुमाऊँ क्षेत्र) इत्यादि आते हैं।

दर्रे

उत्तराचंल के प्रमुख दर्रों में बरास- ५३६५ मी., (उत्तरकाशी), माना - ६६०८ मी.(चमोली), नोती-५३००मी. (चमोली), बोल्छाधुरा- ५३५३मी., (पिथौरागड़), कुरंगी-वुरंगी-५५६४ मी.(पिथौरागड़), लोवेपुरा-५५६४ मी. (पिथौरागड़), लमप्याधुरा-५५५३ मी. (पिथौरागढ़), लिपुलेश-५१२९ मी. (पिथौरागड़), उंटाबुरा, थांगला, ट्रेलपास, मलारीपास, रालमपास, सोग चोग ला पुलिग ला, तुनजुनला, मरहीला, चिरीचुन दर्रा आते हैं।

मौसम

उत्तराखण्ड का मौसम दो भागों में विभाजित किया जा सकता है: पर्वतीय और कम पर्वतीय या समतलीय। उत्तर और उत्तरपूर्व में मौसम हिमालयी उच्च भूमियों का प्रतीकात्मक है, जहाँ पर मॉनसून का वर्ष पर बहुत प्रभाव है। राज्य में वार्षिक औसत वर्षा वर्ष २००८ के आंकड़ों के अनुसार १६०६ मि.मी. हुई थी। अधिकतम तापमान पंतनगर में ४०.२ डिग्री से. (२००८) अंकित एवं न्यूनतम तापमान -५.४ डिग्री से. मुक्तेश्वर में अंकित है।[11]

यह भी देखें: उत्तराखण्ड के मौसम की जानकारी

भाषाएँ

हिन्दी एवं संस्कृत उत्तरखंड की राजभाषाएँ हैं। इसके अतिरिक्त उत्तराखंड में बोलचाल की प्रमुख भाषाएँ ब्रजभाषा, गढ़वाली, कुमाँऊनी हैं।

सरकार और राजनीति

उत्तराखण्ड सरकार में वर्तमान राज्यपाल गुरमीत सिंह एवं मुख्यमन्त्री पुष्कर सिंह धामी हैं। वर्तमान समय में उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है।[12]

मुख्यमन्त्री

राज्य की स्थापना से अब तक यहाँ ग्यारह मुख्यमन्त्री हुए हैं। पुष्कर सिंह धामी राज्य के वर्तमान मुख्यमन्त्री हैं:

  • नित्यानन्द स्वामी
  • भगत सिंह कोश्यारी
  • नारायण दत्त तिवारी
  • भुवन चन्द्र खण्डूरी
  • रमेश पोखरियाल निशंक
  • भुवन चन्द्र खण्डूरी (एक कार्यकाल में दूसरी बार)
  • विजय बहुगुणा
  • हरीश रावत
  • त्रिवेंद्र सिंह रावत
  • तीरथ सिंह रावत
  • पुष्कर सिंह धामी

राज्यपाल

राज्य स्थापना से लेकर अब तक यहाँ छह राज्यपाल हुए है। गुरमीत सिंह (लेफ्टिनेंट जनरल) राज्य के वर्तमान राज्यपाल हैं:

  • सुरजीत सिंह बरनाला
  • सुदर्शन अग्रवाल
  • बी॰ ऍल॰ जोशी
  • मार्गरेट अल्वा
  • अजीज कुरेशी
  • कृष्ण कांत पॉल
  • बेबी रानी मौर्य
  • गुरमीत सिंह (लेफ्टिनेंट जनरल)

मण्डल और जिले

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उत्तराखण्ड में १३ जिले हैं जो तीन मण्डलों में समूहित हैं: कुमाऊँ मण्डल, गढ़वाल मण्डल और गैरसैंण मण्डल।

कुमाऊँ मण्डल के चार जिले हैं[13]:

  • उधम सिंह नगर जिला
  • चम्पावत जिला
  • नैनीताल जिला
  • पिथौरागढ़ जिला

गढ़वाल मण्डल के पाँच जिले हैं[13]:

  • उत्तरकाशी जिला
  • टिहरी गढ़वाल जिला
  • देहरादून जिला
  • पौड़ी गढ़वाल जिला
  • हरिद्वार जिला

गैरसैंण मण्डल के चार जिले हैं[14]:

  • अल्मोड़ा जिला
  • चमोली जिला
  • बागेश्वर जिला
  • रुद्रप्रयाग जिला

जनसांख्यिकी

जनसंख्या वृद्धि
जनगणनाजनसंख्या
१९५१ 29,46,000
१९६१ 36,11,000 22.6%
१९७१ 44,93,000 24.4%
१९८१ 57,26,000 27.4%
१९९१ 70,51,000 23.1%
२००१ 84,89,000 20.4%
स्रोत:भारत की जनगणना[15]

२०११ की जनगणना के अनुसार, उत्तराखण्ड की जनसंख्या १,०१,१६,७५२ है[16] २००१ की जनगणना के अनुसार, उत्तराखण्ड की जनसंख्या ८४,८९,३४९ थी, जिसमें ४३,२५,९२४ पुरुष और ९१,६३,८२५ स्त्रियाँ थीं। इसमें सर्वाधिक जनसंख्या राजधानी देहरादून की ५,३०,२६३ है।[17] २०११ की जनगणना तक जनसंख्या का १ करोड़ तक हो जाने का अनुमान है। मैदानी क्षेत्रों के जिले पर्वतीय जिलों की अपेक्षा अधिक जनसंख्या घनत्व वाले हैं। राज्य के मात्र चार सर्वाधिक जनसंख्या वाले जिलों में राज्य की आधे से अधिक जनसंख्या निवास करती हैं। जिलों में जनसंख्या का आकार २ लाख से लेकर अधिकतम १४ लाख तक है। राज्य की दशकवार वृद्धि दर १९९१-२००१ में १९.२ प्रतिशत रही। उत्तराखण्ड के मूल निवासियों को कुमाऊँनी या गढ़वाली कहा जाता है जो प्रदेश के दो मण्डलों कुमाऊँ और गढ़वाल में रहते हैं। एक अन्य श्रेणी हैं गुज्जर, जो एक प्रकार के चरवाहे हैं और दक्षिण-पश्चिमी तराई क्षेत्र में रहते हैं।

मध्य पहाड़ी की दो बोलियाँ कुमाऊँनी और गढ़वाली, क्रमशः कुमाऊँ और गढ़वाल में बोली जाती हैं। जौनसारी और भोटिया दो अन्य बोलियाँ, जनजाति समुदायों द्वारा क्रमशः पश्चिम और उत्तर में बोली जाती हैं। लेकिन हिन्दी पूरे प्रदेश में बोली और समझी जाती है और नगरीय जनसंख्या अधिकतर हिन्दी ही बोलती है।

उत्तराखण्ड में धार्मिक समूह
धार्मिक समूह प्रतिशत[18]
हिन्दू 85.00%
मुसलमान 11.92%
सिख 2.49%
ईसाई 0.32%
बौद्ध 0.15%
जैन 0.11%
अन्य 0.01%

शेष भारत के समान ही उत्तराखण्ड में हिन्दू बहुमत में हैं और कुल जनसंख्या का ८५% हैं, इसके बाद मुसलमान १२%, सिख २.५% और अन्य धर्मावलम्बी ०.५% हैं। यहाँ लिंगानुपात प्रति १००० पुरुषों पर ९६४ और साक्षरता दर ७२.२८%[19] है। राज्य के बड़े नगर हैं देहरादून (५,३०,२६३), हरिद्वार (२,२०,७६७), हल्द्वानी (१,५८,८९६), रुड़की (१,१५,२७८) और रुद्रपुर (८८,७२०)। राज्य सरकार द्वारा १५,६२० ग्रामों और ८१ नगरीय क्षेत्रों की पहचान की गई है।

कुमाऊँ और गढ़वाल के इतिहासकारों का कहना है की आरम्भ में यहाँ केवल तीन जातियाँ थी राजपूत, ब्राह्मण और शिल्पकार। राजपूतों का मुख्य व्यवसाय ज़मीदारी और कानून-व्यस्था बनाए रखना था। ब्राह्मणों का मुख्य व्यवसाय था मन्दिरों और धार्मिक अवसरों पर धार्मिक अनुष्ठानों को कराना। शिल्प्कार मुख्यतः राजपूतों के लिए काम किया करते थे और हथशिल्पी में दक्ष थे। राजपूतों द्वारा दो उपनामों रावत और नेगी का उपयोग किया जाता है।

प्रमुख नगर

प्रमुख नगर और जनसंख्या

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देहरादून
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हरिद्वार

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अल्मोड़ा
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कोटद्वार

देहरादून देहरादून जिला ४,२६,६७४ १२ नैनीताल नैनीताल जिला ४१,३७७
हरिद्वार हरिद्वार जिला २,२८,८३२ १३ अल्मोड़ा अल्मोड़ा जिला ३४,१२२
हल्द्वानी नैनीताल जिला २,०१,४६१ १४ कोटद्वार पौड़ी जिला ३३,०३५
रुद्रपुर उधमसिंहनगर जिला १,५४,५५४ १५ मसूरी देहरादून जिला २६,०७५
काशीपुर उधमसिंहनगर जिला १,२१,६२३ १६ पौड़ी पौड़ी जिला २५,४४०
रुड़की हरिद्वार जिला १,१८,२०० १७ गोपेश्वर चमोली जिला २१,४४७
ऋषिकेश देहरादून जिला ६६,१८९ १८ श्रीनगर पौड़ी जिला २०,११५
रामनगर नैनीताल जिला ५४,७८७ १९ रानीखेत अल्मोड़ा जिला १८,८८६
पिथौरागढ़ पिथौरागढ़ जिला ५६,०४४ २० खटीमा उधमसिंहनगर जिला १५,०९३
१० जसपुर उधमसिंहनगर जिला ५०,५२३ २१ जोशीमठ चमोली जिला १६,७०९
११ किच्छा उधमसिंहनगर जिला ४१,९६५ २२ बागेश्वर बागेश्वर जिला ९,२२९
जनसंख्या २०११ की जनगणना के आधार पर[20]

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अर्थव्यवस्था

उत्तराखण्ड का सकल घरेलू उत्पाद वर्ष २००४ के लिए वर्तमान मूल्यों के आधार पर अनुमानित २८०.३२ अरब रुपए (६ अरब डॉलर) था। उत्तर प्रदेश से अलग होकर बना यह राज्य, पुराने उत्तर प्रदेश के कुल उत्पादन का ८% उत्पन्न करता है। २००३ की औद्योगिक नीति के कारण, जिसमें यहाँ निवेश करने वाले निवेशकों को कर राहत दी गई है, यहाँ पूँजी निवेश में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। सिडकुल यानि स्टेट इन्फ़्रास्ट्रक्चर एण्ड इण्डस्ट्रियल डिवेलपमण्ट कार्पोरेशन ऑफ उत्तराखण्ड लि. ने उत्तराखण्ड राज्य के औद्योगिक विकास के लिये राज्य के दक्षिणी छोर पर सात औद्योगिक भूसंपत्तियों की स्थापना की है[21], जबकि ऊचले स्थानों पर दर्जनों पनबिजली बाँधों का निर्माण चल रहा है। फिर भी, पहाड़ी क्षेत्रों का विकास अभी भी एक चुनौती बना हुआ है क्योंकि लोगों का पहाड़ी क्षेत्रों से मैदानी क्षेत्रों की ओर पलायन जारी है।

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उत्तराखण्ड में चूना पत्थर, राक फास्फेट, डोलोमाइट, मैग्नेसाइट, तांबा, ग्रेफाइट, जिप्सम आदि के भण्डार हैं। राज्य में ४१,२१६ लघु औद्योगिक इकाइया स्थापित हैं, जिनमें लगभग ३०५.५८ करोड़ की परिसम्पत्ति का निवेश हुआ है और ६३,५९९ लोगों को रोजगार प्राप्त है। इसके अतिरिक्त १९१ भारी उद्योग स्थापित हैं, जिनमें २,६९४.६६ करोड़ रुपयों का निवेश हुआ है। १,८०२ उद्योगों में ५ लाख लोगों को कार्य मिला हुआ है। वर्ष २००३ में एक नयी औद्योगिक नीति बनायी गई जिसके अन्तर्गत्त निवेशकों को कर में राहत दी गई थी, जिसके कारण राज्य में पूंजी निवेश की एक लहर दौड़ गयी।

राज्य की अर्थ-व्यवस्था मुख्यतः कृषि और संबंधित उद्योगों पर आधारित है। उत्तराखण्ड की लगभग ९०% जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। राज्य में कुल खेती योग्य क्षेत्र ७,८४,११७ हेक्टेयर (७,८४१ किमी²) है। इसके अलावा राज्य में बहती नदियों के बाहुल्य के कारण पनविद्युत परियोजनाओं का भी अच्छा योगदान है। राज्य में बहुत सी पनविद्युत परियोजनाएं हैं जिनक राज्य के लगभग कुल ५,९१,४१८ हेक्टेयर कृषि भूमि में सिंचाई में भी योगदान है। राज्य में पनबिजली उत्पादन की भरपूर क्षमता है। यमुना, भागीरथी, भीलांगना, अलकनन्दा, मन्दाकिनी, सरयू, गौरी, कोसी और काली नदियों पर अनेक पनबिजली संयन्त्र लगे हुए हैं, जिनसे बिजली का उत्पादन हो रहा है। राज्य के १५,६६७ गाँवों में से १४,४४७ (लगभग ९२.२२%) गाँवों में बिजली है। इसके अलावा उद्योग का एक बड़ा भाग वन सम्पदा पर आधारित हैं। राज्य में कुल ५४,०४७ हस्तशिल्प उद्योग क्रियाशील हैं।[22]

परिवहन

उत्तराखण्ड रेल, वायु और सड़क मार्गों से अच्छे से जुड़ा हुआ है। उत्तराखण्ड में पक्की सडकों की कुल लंबाई २१,४९० किलोमीटर है। लोक निर्माण विभाग द्वारा निर्मित सड़कों की लंबाई १७,७७२ कि॰मी॰ और स्थानीय निकायों द्वारा बनाई गई सड़कों की लंबाई ३,९२५ कि॰मी॰ हैं।

जौली ग्रांट (देहरादून) और पंतनगर (ऊधमसिंह नगर) में हवाई पट्टियां हैं। नैनी-सैनी (पिथौरागढ़), गौचर (चमोली) और चिनयालिसौर (उत्तरकाशी) में हवाई पट्टियों को बनाने का कार्य निर्माणाधीन है। 'पवनहंस लि.' ने 'रूद्र प्रयाग' से 'केदारनाथ' तक तीर्थ यात्रियों के लिए हेलीकॉप्टर की सेवा आरम्भ की है।

हवाई अड्डे

राज्य के कुछ हवाई क्षेत्र हैं:

  • जॉलीग्रांट हवाई अड्डा (देहरादून): जॉलीग्रांट हवाई अड्डा, देहरादून हवाई अड्डे के नाम से भी जाना जाता है। यह देहरादून से २५ किमी की दूरी पर पूर्वी दिशा में हिमालय की तलहटियों में बसा हुआ है। बड़े विमानों को उतारने के लिए इसका हाल ही में विस्तार किया गया है। पहले यहाँ केवल छोटे विमान ही उतर सकते थे लेकिन अब एयरबस ए३२० और बोइंग ७३७ भी यहाँ उतर सकते हैं।[23]
  • चकराता वायुसेना तलः चकराता वायुसेना तल चकराता में स्थित है, जो देहरादून जिले का एक छावनी कस्बा है। यह टोंस और यमुना नदियों के मध्य, समुद्र तल से १,६५० से १,९५० मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
  • पंतनगर विमानक्षेत्र (पंतनगर, नैनीताल)
  • उत्तरकाशी
  • गोचर (चमोली)
  • अगस्त्यमुनि (हेलिपोर्ट) (रुद्रप्रयाग)
  • नैनी सैनी हवाई अड्डा (पिथौरागढ़)

रेलवे स्टेशन

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हरिद्वार रेलवे स्टेशन का प्रवेश

राज्य के रेलवे स्टेशन हैं:

  • देहरादून: देहरादून का रेलवे स्टेशन, घण्टाघर/नगर केन्द्र से लगभग ३ किमी कि दूरी पर है। इस स्टेशन का निर्माण १८९७ में किया गया था।[24]
  • हरिद्वार जंक्शन
  • हल्द्वानी-काठगोदाम रेलवे स्टेशन
  • रुड़की
  • रामनगर
  • कोटद्वार रेलवे स्टेशन
  • ऊधमसिंह नगर

बस अड्डे

राज्य के प्रमुख बस अड्डे हैं:

  • देहरादून
  • हरिद्वार
  • हल्द्वानी
  • रुड़की
  • रामनगर
  • कोटद्वार

पर्यटन

छोटा चार धाम

उत्तराखंड राज्य की स्थापना कब हुई? - uttaraakhand raajy kee sthaapana kab huee?
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केदारनाथ • बद्रीनाथ
गंगोत्री • यमुनोत्री

यह सन्दूक:

  • दर्शन
  • वार्ता
  • संपादन

फुरसती, साहसिक और धार्मिक पर्यटन उत्तराखण्ड की अर्थव्यस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जैसे जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान और बाघ संरक्षण-क्षेत्र और नैनीताल, अल्मोड़ा, कसौनी, भीमताल, रानीखेत और मसूरी जैसे निकट के पहाड़ी पर्यटन स्थल जो भारत के सर्वाधिक पधारे जाने वाले पर्यटन स्थलों में हैं। पर्वतारोहियों के लिए राज्य में कई चोटियाँ हैं, जिनमें से नंदा देवी, सबसे ऊँची चोटी है और १९८२ से अबाध्य है। अन्य राष्टीय आश्चर्य हैं फूलों की घाटी, जो नंदा देवी के साथ मिलकर यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।

उत्तराखण्ड में, जिसे "देवभूमि" भी कहा जाता है, हिन्दू धर्म के कुछ सबसे पवित्र तीर्थस्थान है और हज़ार वर्षों से भी अधिक समय से तीर्थयात्री मोक्ष और पाप शुद्धिकरण की खोज में यहाँ आ रहे हैं। गंगोत्री और यमुनोत्री, को क्रमशः गंगा और यमुना नदियों के उदग्म स्थल हैं, केदारनाथ (भगवान शिव को समर्पित) और बद्रीनाथ (भगवान विष्णु को समर्पित) के साथ मिलकर उत्तराखण्ड के छोटा चार धाम बनाते हैं, जो हिन्दू धर्म के पवित्रतम परिपथ में से एक है। हरिद्वार के निकट स्थित ऋषिकेश भारत में योग क एक प्रमुख स्थल है और जो हरिद्वार के साथ मिलकर एक पवित्र हिन्दू तीर्थ स्थल है।

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हरिद्वार में संध्या आरती के समय हर की पौड़ी का एक दृश्य।

हरिद्वार में प्रति बारह वर्षों में कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें देश-विदेश से आए करोड़ो श्रद्धालू भाग लेते हैं। राज्य में मंदिरों और तीर्थस्थानों की बहुतायत है, जो स्थानीय देवताओं या शिवजी या दुर्गाजी के अवतारों को समर्पित हैं और जिनका सन्दर्भ हिन्दू धर्मग्रन्थों और गाथाओं में मिलता है। इन मन्दिरों का वास्तुशिल्प स्थानीय प्रतीकात्मक है और शेष भारत से थोड़ा भिन्न है। जागेश्वर में स्थित प्राचीन मन्दिर (देवदार वृक्षों से घिरा हुआ १२४ मन्दिरों का प्राणंग) एतिहासिक रूप से अपनी वास्तुशिल्प विशिष्टता के कारण सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। तथापि, उत्तराखण्ड केवल हिन्दुओं के लिए ही तीर्थाटन स्थल नहीं है। हिमालय की गोद में स्थित हेमकुण्ड साहिब, सिखों का तीर्थ स्थल है। मिंद्रोलिंग मठ और उसके बौद्ध स्तूप से यहाँ तिब्बती बौद्ध धर्म की भी उपस्थिति है।

पर्यटन स्थल

उत्तराखण्ड में बहुत से पर्यटन स्थल है जहाँ पर भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया से पर्यटक आते हैं, जैसे नैनीताल और मसूरी। राज्य के प्रमुख पर्यटन स्थल हैं:

  • केदारनाथ
  • नैनीताल
  • गंगोत्री
  • यमुनोत्री
  • बद्रीनाथ
  • अल्मोड़ा
  • ऋषिकेश
  • हेमकुण्ड साहिब
  • नानकमत्ता
  • फूलों की घाटी
  • मसूरी
  • देहरादून
  • हरिद्वार
  • औली
  • बेदिनी
  • चकराता
  • रानीखेत
  • बागेश्वर
  • भीमताल
  • कौसानी
  • रूपकुण्ड
  • लैंसडाउन

शिक्षा

उत्तराखण्ड के शैक्षणिक संस्थान भारत और विश्वभर में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। ये एशिया के सबसे कुछ सबसे पुराने अभियान्त्रिकी संस्थानों का गृहस्थान रहा है, जैसे रुड़की का भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (पूर्व रुड़की विश्वविद्यालय) और पन्तनगर का गोविन्द बल्लभ पंत कृषि एवँ प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय। इनके अलावा विशेष महत्व के अन्य संस्थानों में, देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी, इक्फ़ाई विश्वविद्यालय, भारतीय वानिकी संस्थान; पौड़ी स्थित गोविन्द बल्लभ पन्त अभियान्त्रिकी महाविद्यालय और द्वाराहाट स्थित कुमाऊँ अभियान्त्रिकी महाविद्यालय भी हैं।

इन सार्वजनिक संस्थानों के अलावा उत्तराखण्ड में बहुत से निजी संस्थान भी हैं, जैसे ग्राफ़िक एरा संस्थान, देहरादून प्रौद्योगिकी संस्थान, भारतीय एयर हॉस्टेस अकादमी इत्यादि।

उत्तराखण्ड बहुत से जाने-माने दिनी और बोर्डिंग विद्यालयों का घर भी है जैसे दून विद्यालय (देहरादून) सेण्ट जोसफ़ कॉलेज, (नैनीताल), वेल्हम गर्ल्स स्कूल (देहरादून), वेलहम ब्यॉज स्कूल (देहरादून), सेण्ट थॉमस कॉलेज (देहरादून), सेण्ट जोसफ़ अकादमी (देहरादून), वुडस्टॉक स्कूल (मसूरी), बिरला विद्या निकेतन (नैनीताल), भोवाली के निकट सैनिक स्कूल घोड़ाखाल, राष्ट्रीय भारतीय सैन्य महाविद्यालय (देहरादून), द एशियन स्कूल (देहरादून), द हेरिटैज स्कूल (देहरादून), जी डी बिरला मैमोरियल स्कूल (रानीखेत), सेलाकुइ वर्ल्ड स्कूल (देहरादून), वेदारम्भ मॉण्टेसरी स्कूल (देहरादून) और शेरवुड कॉलेज (नैनीताल)। बहुत से विदुषकों ने इन विद्यालयों से शिक्षा ग्रहण की जिनमें बहुत से भूतपूर्व प्रधानमन्त्री और अभिनेता इत्यादि भी हैं।

हाल ही के वर्षों में बहुत से निजी संस्थान भी यहाँ खुले हैं जिनके कारण उत्तराखण्ड तकनीकी, प्रबन्धन और अध्यापन-शिक्षा के एक प्रमुख केन्द्र के रूप में उभरा है। कुछ उल्लेखनीय संस्थान हैं देहरादून प्रौद्योगिकी संस्थान (देहरादून), अम्रपाली अभियांत्रिकी एवँ प्रौद्योगिकी संस्थान (हल्द्वानी), सरस्वती प्रबन्धन एवँ प्रौद्योगिकी संस्थान (रुद्रपुर) और पाल प्रबन्धन एवँ प्रौद्योगिकी संस्थान (हल्द्वानी)।

एतिहासिक रूप से यह माना जाता है की उत्तराखण्ड वह भूमि है जहाँ पर शास्त्रों और वेदों की रचना की गई थी और महाकाव्य, महाभारत लिखा गया था। ऋषिकेश को व्यापक रूप से विश्व की योग राजधानी माना जाता है।

विश्वविद्यालय

क्षेत्रीय भावनाओं को ध्यान में रखते हुए जो बाद में उत्तराखण्ड राज्य के रूप में परिणित हुआ, गढ़वाल और कुमाऊँ विश्वविद्यालय १९७३ में स्थापित किए गए थे। उत्तराखण्ड के सर्वाधिक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय हैं:

नाम प्रकार स्थिति
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की केन्द्रीय विश्वविद्यालय रुड़की
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान २०१२ से केन्द्रीय विश्वविद्यालय ऋषिकेश
भारतीय प्रबन्धन संस्थान २०१२ से केन्द्रीय विश्वविद्यालय काशीपुर
गोविन्द बल्लभ पन्त कृषि एवँ प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय राज्य विश्वविद्यालय पंतनगर
हेमवती नन्दन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय केन्द्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर व पौड़ी
कुमाऊँ विश्वविद्यालय राज्य विश्वविद्यालय नैनीताल और अल्मोड़ा
उत्तराखण्ड प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय राज्य विश्वविद्यालय देहरादून
दून विश्वविद्यालय राज्य विश्वविद्यालय देहरादून
पेट्रोलियम और ऊर्जा शिक्षा विश्वविद्यालय निजि विश्वविद्यालय देहरादून
हिमगिरि नभ विश्वविद्यालय निजि विश्वविद्यालय देहरादून
भारतीय चार्टर्ड वित्तीय विश्लेषक संस्थान (आइसीएफ़एआइ) निजि विश्वविद्यालय देहरादून
भारतीय वानिकी संस्थान डीम्ड विश्वविद्यालय देहरादून
हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ़ हॉस्पिटल ट्रस्ट डीम्ड विश्वविद्यालय देहरादून
ग्राफ़िक एरा विश्वविद्यालय डीम्ड विश्वविद्यालय देहरादून
गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय डीम्ड विश्वविद्यालय हरिद्वार
पतंजलि योगपीठ विश्वविद्यालय निजि विश्वविद्यालय हरिद्वार
देव संस्कृति विश्वविद्यालय निजि विश्वविद्यालय हरिद्वार
उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय राज्य विश्वविद्यालय हल्द्वानी

संस्कृति

रहन-सहन

उत्तराखण्ड एक पहाड़ी प्रदेश है। यहाँ ठण्ड बहुत होती है इसलिए यहाँ लोगों के मकान पक्के होते हैं। दीवारें पत्थरों की होती है। पुराने घरों के ऊपर से पत्थर बिछाए जाते हैं। वर्तमान में लोग सीमेण्ट का उपयोग करने लग गए है। अधिकतर घरों में रात को रोटी तथा दिन में भात (चावल) खाने का प्रचलन है। लगभग हर महीने कोई न कोई त्योहार मनाया जाता है। त्योहार के बहाने अधिकतर घरों में समय-समय पर पकवान बनते हैं। स्थानीय स्तर पर उगाई जाने वाली गहत, रैंस, भट्ट आदि दालों का प्रयोग होता है। प्राचीन समय में मण्डुवा व झुंगोरा स्थानीय मोटा अनाज होता था। अब इनका उत्पादन बहुत कम होता है। अब लोग बाजार से गेहूं व चावल खरीदते हैं। कृषि के साथ पशुपालन लगभग सभी घरों में होता है। घर में उत्पादित अनाज कुछ ही महीनों के लिए पर्याप्त होता है। कस्बों के समीप के लोग दूध का व्यवसाय भी करते हैं। पहाड़ के लोग बहुत परिश्रमी होते है। पहाड़ों को काट-काटकर सीढ़ीदार खेत बनाने का काम इनके परिश्रम को प्रदर्शित भी करता है। पहाड़ में अधिकतर श्रमिक भी पढ़े-लिखे है, चाहे कम ही पढ़े हों। इस कारण इस राज्य की साक्षरता दर भी राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है।

त्यौहार

शेष भारत के समान ही उत्तराखण्ड में पूरे वर्षभर उत्सव मनाए जाते हैं। भारत के प्रमुख उत्सवों जैसे दीपावली, होली, दशहरा इत्यादि के अतिरिक्त यहाँ के कुछ स्थानीय त्योहार हैं[25]:

  • देवीधुरा मेला (देवीधुरा, चम्पावत)
  • पूर्णागिरी मेला (टनकपुर, चम्पावत)
  • नन्दा देवी मेला (अल्मोड़ा)
  • गौचर मेला (गौचर, चमोली)
  • वैशाखी (उत्तरकाशी)
  • माघ मेला (उत्तरकाशी)
  • उत्तरायणी मेला (बागेश्वर)
  • विशु मेला (जौनसार बावर)
  • हरेला (कुमाऊँ)
  • गंगा दशहरा
  • नन्दा देवी राजजात यात्रा जो हर बारहवें वर्ष होती है

खानपान

इन्हें भी देखें: पहाड़ी खाना एवं भारतीय खाना

उत्तराखण्डी खानपान का अर्थ राज्य के दोनों मण्डलों, कुमाऊँ और गढ़वाल, के खानपान से है। पारम्परिक उत्तराखण्डी खानपान बहुत पौष्टिक और बनाने में सरल होता है। प्रयुक्त होने वाली सामग्री सुगमता से किसी भी स्थानीय भारतीय किराना दुकान में मिल जाती है।

यहाँ के कुछ विशिष्ट खानपान है[26]:

  • आलू टमाटर का झोल
  • चैंसू
  • झोई
  • कापिलू
  • मंण्डुए की रोटी
  • पीनालू की सब्जी
  • बथुए का पराँठा
  • बाल मिठाई
  • सिसौंण का साग
  • गौहोत की दाल

वेशभूषा

पारम्परिक रूप से उत्तराखण्ड की महिलायें घाघरा तथा आँगड़ी, तथा पुरूष चूड़ीदार पजामा व कुर्ता पहनते थे। अब इनका स्थान पेटीकोट, ब्लाउज व साड़ी ने ले लिया है। जाड़ों (सर्दियों) में ऊनी कपड़ों का उपयोग होता है। विवाह आदि शुभ कार्यो के अवसर पर कई क्षेत्रों में अभी भी सनील का घाघरा पहनने की परम्परा है। गले में गलोबन्द, चर्‌यो, जै माला, नाक में नथ, कानों में कर्णफूल, कुण्डल पहनने की परम्परा है। सिर में शीषफूल, हाथों में सोने या चाँदी के पौंजी तथा पैरों में बिछुए, पायजेब, पौंटा पहने जाते हैं। घर परिवार के समारोहों में ही आभूषण पहनने की परम्परा है। विवाहित औरत की पहचान गले में चरेऊ पहनने से होती है। विवाह इत्यादि शुभ अवसरों पर पिछौड़ा पहनने का भी यहाँ चलन आम है।[27]

लोक कलाएँ

लोक कला की दृष्टि से उत्तराखण्ड बहुत समृद्ध है। घर की सजावट में ही लोक कला सबसे पहले देखने को मिलती है। दशहरा, दीपावली, नामकरण, जनेऊ आदि शुभ अवसरों पर महिलाएँ घर में ऐंपण (अल्पना) बनाती है। इसके लिए घर, ऑंगन या सीढ़ियों को गेरू से लीपा जाता है। चावल को भिगोकर उसे पीसा जाता है। उसके लेप से आकर्षक चित्र बनाए जाते हैं। विभिन्न अवसरों पर नामकरण चौकी, सूर्य चौकी, स्नान चौकी, जन्मदिन चौकी, यज्ञोपवीत चौकी, विवाह चौकी, धूमिलअर्ध्य चौकी, वर चौकी, आचार्य चौकी, अष्टदल कमल, स्वास्तिक पीठ, विष्णु पीठ, शिव पीठ, शिव शक्ति पीठ, सरस्वती पीठ आदि परम्परागत रूप से गाँव की महिलाएँ स्वयं बनाती है। इनका कहीं प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है। हरेले आदि पर्वों पर मिट्टी के डिकारे बनाए जाते है। ये डिकारे भगवान के प्रतीक माने जाते है। इनकी पूजा की जाती है। कुछ लोग मिट्टी की अच्छी-अच्छी मूर्तियाँ (डिकारे) बना लेते हैं। यहाँ के घरों को बनाते समय भी लोक कला प्रदर्षित होती है। पुराने समय के घरों के दरवाजों व खिड़कियों को लकड़ी की सजावट के साथ बनाया जाता रहा है। दरवाजों के चौखट पर देवी-देवताओं, हाथी, शेर, मोर आदि के चित्र नक्काशी करके बनाए जाते है। पुराने समय के बने घरों की छत पर चिड़ियों के घोंसलें बनाने के लिए भी स्थान छोड़ा जाता था। नक्काशी व चित्रकारी पारम्परिक रूप से आज भी होती है। इसमें समय काफी लगता है। वैश्वीकरण के दौर में आधुनिकता ने पुरानी कला को अलविदा कहना प्रारम्भ कर दिया। अल्मोड़ा सहित कई स्थानों में आज भी काष्ठ कला देखने को मिलती है। उत्तराखण्ड के प्राचीन मन्दिरों, नौलों में पत्थरों को तराश कर (काटकर) विभिन्न देवी-देवताओं के चित्र बनाए गए है। प्राचीन गुफाओं तथा उड्यारों में भी शैल चित्र देखने को मिलते हैं।

उत्तराखण्ड की लोक धुनें भी अन्य प्रदेशों से भिन्न है। यहाँ के बाद्य यन्त्रों में नगाड़ा, ढोल, दमुआ, रणसिंग, भेरी, हुड़का, बीन, डौंरा, कुरूली, अलगाजा प्रमुख है। ढोल-दमुआ तथा बीन बाजा विशिष्ट वाद्ययन्त्र हैं जिनका प्रयोग आमतौर पर हर आयोजन में किया जाता है। यहाँ के लोक गीतों में न्योली, जोड़, झोड़ा, छपेली, बैर व फाग प्रमुख होते हैं। इन गीतों की रचना आम जनता द्वारा की जाती है। इसलिए इनका कोई एक लेखक नहीं होता है। यहां प्रचलित लोक कथाएँ भी स्थानीय परिवेश पर आधारित है। लोक कथाओं में लोक विश्वासों का चित्रण, लोक जीवन के दुःख दर्द का समावेश होता है। भारतीय साहित्य में लोक साहित्य सर्वमान्य है। लोक साहित्य मौखिक साहित्य होता है। इस प्रकार का मौखिक साहित्य उत्तराखण्ड में लोक गाथा के रूप में काफी है। प्राचीन समय में मनोरंजन के साधन नहीं थे। लोकगायक रात भर ग्रामवासियों को लोक गाथाएं सुनाते थे। इसमें मालसाई, रमैल, जागर आदि प्रचलित है। अभी गाँवों में रात्रि में लगने वाले जागर में लोक गाथाएं सुनने को मिलती है। यहां के लोक साहित्य में लोकोक्तियाँ, मुहावरे तथा पहेलियाँ (आंण) आज भी प्रचलन में है। उत्तराखण्ड का छोलिया नृत्य काफी प्रसिद्ध है। इस नृत्य में नृतक लबी-लम्बी तलवारें व गेण्डे की खाल से बनी ढाल लिए युद्ध करते है। यह युद्ध नगाड़े की चोट व रणसिंह के साथ होता है। इससे लगता है यह राजाओं के ऐतिहासिक युद्ध का प्रतीक है। कुछ क्षेत्रों में छोलिया नृत्य ढोल के साथ शृंगारिक रूप से होता है। छोलिया नृत्य में पुरूष भागीदारी होती है। कुमाऊँ तथा गढ़वाल में झुमैला तथा झोड़ा नृत्य होता है। झौड़ा नृत्य में महिलाएँ व पुरूष बहुत बड़े समूह में गोल घेरे में हाथ पकड़कर गाते हुए नृत्य करते है। विभिन्न अंचलों में झोड़ें में लय व ताल में अन्तर देखने को मिलता है। नृत्यों में सर्प नृत्य, पाण्डव नृत्य, जौनसारी, चाँचरी भी प्रमुख है।[28]

उत्तराखण्डी सिनेमा

उत्तराखंड राज्य की स्थापना कब हुई? - uttaraakhand raajy kee sthaapana kab huee?

उत्तराखण्डी सिनेमा और इसके नाट्य पूर्ववृत्त उस जागृति के परिणाम हैं जो स्वतन्त्रता के बाद आरम्भ हुई थी और जिसका उद्भव ६०, ७० और ८० के दशकों में हुआ और अन्ततः १९९० के दशक में विस्फोटक रूप से उदय हुआ। समस्त पहाड़ों और देहरादून, श्रीनगर, अल्मोड़ा और नैनीताल में एक आन्दोलन का उभार हुआ जिसके सूत्रधार “कलाकार, कवि, गायक और अभिनेता थे जिन्होनें राज्य की सांस्कृतिक और कलात्मक रूपों का उपयोग राज्य के संघर्ष को बल देने के लिए किया।”

ग्रामों की लोक-संस्कृति और स्थानीय लोगों की सामाजिक-आर्थिक परेशानियों के समायोजन का निरन्तर चलचित्रों में प्रदर्शन होता रहा जिसका आरम्भ पराशर गौर के १९८३ के चलचित्र "जगवाल" से हुआ जो २००३ में "तेरी सौं" के प्रथमोप्रदर्शन (प्रीमियर) तक हुआ।[29] विशेष रूप से तेरी सौं, उत्तराखण्ड आन्दोलन के संघर्ष पर आधारित थी। इस चलचित्र में १९९४ की उस दुखदाई घटना का चित्रण किया गया है जिसने राज्य आन्दोलन की अग्नि में घी का काम किया।

वर्ष २००८ में, उत्तराखण्ड के कलात्मक समुदाय द्वारा उत्तराखण्ड सिनेमा की २५वीं वर्षगांठ मनाई गई।

उत्तराखण्ड तीव्र-तथ्य

उत्तराखण्ड के राज्य प्रतीक
स्थापना दिवस ९ नवम्बर २०००
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राज्य पशु कस्तूरी मृग
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राज्य पक्षी मोनाल
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राज्य वृक्ष बुरांस
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राज्य पुष्प ब्रह्म कमल
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राजनैतिक तथ्य

  • ऑनलाइन वोटर आईडी: देहरादून
  • प्रशासनिक राजधानी: देहरादून
  • प्रस्तावित राजधानी: गैरसैण
  • उच्च न्यायालय: नैनीताल
  • देश में स्थिति: उत्तर भारत
  • मुख्यमन्त्री: पुष्कर सिंह धामी
  • राज्यपाल: के के पाल
  • मण्डल संख्या: दो (कुमाऊँ और गढ़वाल)
  • कुल जिले: तेरह
  • विधानसभा सीटें: सत्तर
  • लोकसभा सीटें: पाँच

धार्मिक तथ्य

  • उत्तराखण्ड को 'देवभूमि' के नाम से भी जाना जाता है। इसका कारण है पौराणिक काल में इस क्षेत्र में हुए विभिन्न देवी-देवताओं द्वारा लिए अवतार। यहाँ त्रियुगी-नारायण नामक स्थान पर महादेव ने सती पार्वती से विवाह किया था।
  • मन्सार नामक स्थान पर सीता माता धरती में धरती में समाई थी। यह स्थान उत्तराखण्ड के पौडी जिले में है और यहाँ प्रतिवर्ष एक मेला भी लगता है।
  • कमलेश्वर/सिद्धेश्वर मन्दिर श्रीनगर का सर्वाधिक पूजित मन्दिर है। कहा जाता है कि जब देवता असुरों से युद्ध में परास्त होने लगे तो भगवान विष्णु को भगवान शंकर से इसी स्थान पर सुदर्शन चक्र मिला था।
  • सती अनसूया ने उत्तराखण्ड में ही ब्रह्मा, विष्णु, एवँ महेश को बालक बनाया था।
  • डोईवाला भगवान दत्तात्रेय के २ शिष्यों की निवास भूमि है। यही नहीं, भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण ने भी यहीं प्रायश्चित किया था।

उत्तराखंड राज्य की स्थापना कब हुई? - uttaraakhand raajy kee sthaapana kab huee?

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उत्तराखण्ड में चौकोड़ी से हिमालय शृंखला का विहंगम दृश्य

इन्हें भी देखें

  • उत्तराखण्ड सरकार
  • कुमाऊँ मण्डल
  • गढ़वाल मण्डल

सन्दर्भ

  1. "Report of the Commissioner for linguistic minorities: 50th report (July 2012 to June 2013)" (PDF). Commissioner for Linguistic Minorities, Ministry of Minority Affairs, Government of India. मूल (PDF) से को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 जुलाई 2017.
  2. उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन Archived 2012-05-10 at the Wayback Machine (अंग्रेज़ी)
  3. उत्तरांचल बना उत्तराखण्ड Archived 2014-11-29 at the Wayback Machine (अंग्रेज़ी)
  4. निशंक सरकार गैरसैंण में बनाएगी सचिवालय? Archived 2010-07-08 at the Wayback Machine नैनीताल समाचार। अभिगमन तिथि: १९ जुलाई २०१०।
  5. राजधानी बने तो कहां, गैरसैंण और देहरादून के बीच होड़ Archived 2010-07-15 at the Wayback Machine नवभारत टाइम्स। अभिगमन १९ जुलाई २०१०।
  6. द चिपको मूवमेण्ट Archived 2010-10-21 at the Wayback Machine (अंग्रेज़ी)
  7. मेरापहाड़.कॉम Archived 2012-07-01 at the Wayback Machine। ऍम ऍस मेहता। ६ अक्टूबर २००९
  8. टिहरी गढ़वाल का संक्षिप्‍त इतिहास Archived 2010-07-18 at the Wayback Machine। उत्तरांचल-उत्तराखण्ड। २२ फ़रवरी २००६। तरुण।
  9. उत्तराखण्ड : कुछ तथ्य इतिहास के झरोखे से... Archived 2012-04-18 at the Wayback Machine। यंगौत्तराखण्ड कम्युनिटी- ऑल अबाउट उत्तराखण्ड
  10. "उत्तराखण्ड का नक्शा". मूल से 2 अक्तूबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 सितंबर 2016.
  11. ↑ अ आ उत्तराखण्ड राज्य का आधिकारिक जालस्थल Archived 2010-08-27 at the Wayback Machine- राज्य की एक झलक
  12. उत्तराखंड के 11 वें मुख्यमंत्री बने पुष्कर सिंह धामी, राज्यपाल ने दिलाई शपथ दैनिक जागरण
  13. ↑ अ आ "आधिकारिक जालस्थल: उत्तराखण्ड सरकार". मूल से 22 सितंबर 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 सितंबर 2010.
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विस्तृत पठन

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  • पाण्डे बद्रीदत्त १९९० कुमाऊँ का इतिहास। अल्मोड़ा; श्याम प्रकाशन श्री अल्मोड़ा बुक डिपो।
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  • बालदिए, के. एस. १९९८ कुमाऊँ (लैंड एण्ड प्यूपिल)। नैनीताल; ज्ञानोदय प्रकाशन।
  • नौटियाल शिवानन्द १९९८ कुमाऊँ दर्शन। लखनऊ; सुलभ प्रकाशन।
  • सक्सेना कौशल किशोर १९९४ कुमाऊँ कला, शिल्प और संस्कृति। अल्मोड़ा; श्री अल्मोड़ा बुक डिपो।
  • वाजपेयी श्री कृष्णदत्त १९६२ उत्तर प्रदेश का सांस्कृतिक इतिहास। आगरा; शिवलाल अग्रवाल एण्ड कम्पनी (प्रा.) लि.।
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  • मठपाल यशोधर १९९७ उत्तराखण्ड का काष्ठशिल्प। देहरादून; शिवा ऑफसेट प्रेस।
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  • बैराठी कृष्णा एवं सत्येन्द्र कुश १९९२ कुमाऊँ की लोक कला, संस्कृति और परम्परा। अल्मोड़ा; श्री अल्मोड़ा बुक डिपो।
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  • मठपाल यशोधर १९८७ उत्तराखण्ड की संस्कृति की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि उत्तराखण्ड वार्षिकी, उत्तराखण्ड शोध संस्थान।
  • वैष्णव यमुनादत्त १९८३ कुमाऊँ का इतिहास, "खस कस्साइट जाति के परिपेक्ष्य में"। अल्मोड़ा; श्री अल्मोड़ा बुक डिपो।
  • पाण्डे, पी.सी. १९९० इथनोबौटनी ऑफ कुमाऊँ हिमालया, हिमालय इन्वायरनमेंट एण्ड डबलपमेट। अल्मोड़ा; श्री अल्मोड़ा बुक डिपो।
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  • पाण्डे गिरिश चन्द्र १९७७ उत्तराखण्ड की अर्थव्यवस्था। नैनीताल; कंसल पब्लिशर्स।
  • पालीवाल, नारायण दत्त १९८५ कुमाऊँनी - हिन्दी शब्दकोश। दिल्ली; तक्षशिला प्रकाशन।
  • पाण्डे, चारु चन्द्र १९८५ कुमाऊँनी कवि 'गोर्दा' का काव्य दर्शन। अल्मोड़ा; देशभक्त प्रेस।
  • वैष्णव शालिग्राम १९२३ उत्तराखण्ड रहस्य। नागपुर-चमोली; पुष्कराश्रम।
  • सांकृत्यायन राहुल १९५३ हिमालय परिचय। इलाहाबाद; लॉ जर्नल प्रेस।
  • सिंह वीर १९८९ खेती और पशु : पहाड़ी खेती के आधार। नैनीताल; संपादक व प्रकाशक पाठक।
  • जोशी, एम.पी. १९७४ सम रेअर स्कल्पचर्स फ्राम कुमाऊँ हिल्स संग्रहालय पुरातत्व पत्रिका।

बाहरी कड़ियाँ

  • उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
  • उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ
  • उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी)
  • अपनाउत्तराखण्ड.कॉम
  • उत्तराखण्ड से सम्बन्धित शैक्षिक सामग्री (study material)
  • भारतीय स्वतन्त्रता-संग्राम और उत्तराखण्ड
उत्तराखंड राज्य की स्थापना कब हुई? - uttaraakhand raajy kee sthaapana kab huee?
हिमाचल प्रदेश
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चीन
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हरियाणा
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उत्तर प्रदेश सुदूर-पश्चिमांचल
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नेपाल

उत्तराखंड राज्य कौन से सन में बना था?

9 नवंबर 2000उत्तराखंड / स्थापना की तारीखnull

उत्तराखंड का पुराना नाम क्या है?

उत्तराखंड का पुराना नाम उत्तरांचल था। जो सन 2000 से 2006 तक इसी नाम से जाना जाता था। जनवरी 2007 से राज्य का आधिकारिक नाम उत्तराखंड है।

उत्तराखंड का नाम कब पड़ा?

इस प्रक्रिया के चलते 12 अक्टूबर, 2006 को उत्तरांचल राज्य की विधानसभा ने राज्य के नाम में परिवर्तन सम्बन्धी विधेयक, 2006 को मंजूरी प्रदान कर दी, जिसके उपरान्त यह प्रस्ताव संसद के शीतकालीन सत्र ( 2006 ) में लोकसभा और राज्यसभा से पारित होने के पश्चात् 3 जनवरी, 2007 को राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षर हो जाने के बाद इस राज्य का ...

उत्तराखंड के संस्थापक कौन है?

फलतः भारती चन्द ने पहली बार डोटी राजाओं से स्वतंत्र राज्य की स्थापना की। यह विजय 1451-1452 ईस्वी में प्राप्त हुई। इसके अलावा भारती चंद ने अपने राज्य का साम्राज्य विस्तार किया। अपने पुत्र रत्न चंद की सहायता से सोर (पिथौरागढ़), सीरा (डीडीहाट वाला क्षेत्र) और थल आदि पर अधिकार कर लिया ।