16 उत्खनन से प्राप्त वस्तुए क्या कहलाती है? - 16 utkhanan se praapt vastue kya kahalaatee hai?

विषयसूची

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  • 1 उत्खनन से प्राप्त वस्तुएं क्या कहलाती हैं?
  • 2 उत्खनन क्या है in Hindi?
  • 3 भारतीय उपमहाद्वीप में कृषि के प्राचीनतम साक्ष्य कहाँ से प्राप्त हुए हैं?`?
  • 4 विवृत खनन क्या है in Hindi?

उत्खनन से प्राप्त वस्तुएं क्या कहलाती हैं?

इसे सुनेंरोकेंसवाल: उत्खनन से प्राप्त वस्तुएं क्या कहलाती है? पुरातत्व भौतिक अवशेषों का उपयोग करके मानव अतीत का अध्ययन है। ये अवशेष कोई भी वस्तु हो सकती है जिसे लोगों ने बनाया, संशोधित किया या उपयोग किया। पोर्टेबल अवशेषों को आमतौर पर कलाकृतियां कहा जाता है ।

मेहरगढ़ आज कहाँ स्थित है?

इसे सुनेंरोकेंमेहरगढ़ आज के बलूचिस्तान में बोलन नदी के किनारे स्थित है। भारतीय इतिहास में इस स्थल का महत्व अनेक कारणों से है। यह स्थल भारतीय उप महाद्वीप को भी गेंहूँ-जौ के मूल कृषि वाले क्षेत्र में शामिल कर देता है और नवपाषण युग के भारतीय काल निर्धारण को विश्व के नवपाषण काल निर्धारण के अधिक समीप ले आता है।

उत्खनन क्या है in Hindi?

इसे सुनेंरोकेंउत्खनन को हिन्दी भाषा में ‘खुदाई’ और अंग्रेज़ी भाषा में ‘Excavation’ कहा जाता है। आज-कल मुख्य रूप से ज़मीन खोदने की वह क्रिया है, जो गहराई में दबे हुए प्राचीन अवशेषों, इमारती पत्थरों का पता लगाने के लिए की जाती है उसे उत्खनन कहा जाता है। वह स्थान, जहाँ से पत्थर निकाले जाते हैं, उसे पाषाण खान कहते हैं।

निर्माण में उत्खनन क्या है?

इसे सुनेंरोकेंकिसी पुरातात्विक स्थल पर खुदाई तथा प्राप्त कलाकृतियों की रिकॉर्डिंग को ही उत्खनन कहते हैं। पुरातात्विक अवशेषों की उपस्थिति या अनुपस्थिति को रिमोट सेंसिंग, उदाहरण के लिए जमीन के भीतर देख सकने वाली रडार, के द्वारा उच्च संभावना के साथ बताया जा सकता है।

भारतीय उपमहाद्वीप में कृषि के प्राचीनतम साक्ष्य कहाँ से प्राप्त हुए हैं?`?

इसे सुनेंरोकेंनवीनत्तम खोजों के आधार पर भारतीय उपमहाद्वीप में प्राचीनत्तम कृषि साक्ष्य वाला स्थल उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर जिलें में स्थित लहुरादेव है। यहां से 8000 ई.

सिंधु सभ्यता का सबसे पश्चिमी पुरातात्विक स्थल कौन है?`?

यह सैंधव नगर मोहनजोदड़ो से 130 किमी. दक्षिण-पूर्व सिंध प्रांत (पाकिस्तान) में स्थित है।

  • चन्हूदड़ो एकमात्र पुरास्थल है, जहां से वक्राकार ईंटें मिली हैं।
  • चन्हूदड़ो में किसी दुर्ग का अस्तित्व नहीं मिला है।
  • ऐसा प्रतीत होता है कि यह एक औद्योगिक केंद्र था जहां मणिकारी, मुहर बनाने, भार-माप के बटखरे बननाने का काम होता था।
  • विवृत खनन क्या है in Hindi?

    इसे सुनेंरोकेंपृथ्वी की सतह के नीचे दबी चट्टानों से खनिजों को निकालने की प्रक्रिया को खनन कहते हैं। विवृत खनन​: सतह की परत को हटाकर कम गहराई पर स्थित खनिजों को बाहर निकाला जाता है; इसे विवृत खनन के रूप में जाना जाता है।

    खुली खदान क्या है?

    इसे सुनेंरोकेंखुली खदान से उत्पादित कोयले की औसतन गुणवत्ता ग्रेड ‘जी’ तक अपेक्षित है और भूमीगत खदान से उत्पादित कोयले की ग्रेड ‘डी’ तक अपेक्षित है । कम वायु प्रदुषण • निरंक ध्वनि प्रदुषण सी. एच.पी की क्षमता को खदान की उत्पादन क्षमता से जोड़ा जायेगा ।

    16 उत्खनन से प्राप्त वस्तुए क्या कहलाती है? - 16 utkhanan se praapt vastue kya kahalaatee hai?

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    16 उत्खनन से प्राप्त वस्तुए क्या कहलाती है? - 16 utkhanan se praapt vastue kya kahalaatee hai?

    स्पेन में अटाप्योरका पर्वत पर ग्रैन डोलिना के स्थल पर उत्खनन, 2008

    16 उत्खनन से प्राप्त वस्तुए क्या कहलाती है? - 16 utkhanan se praapt vastue kya kahalaatee hai?

    सैंटा एना (केसरेस, एक्स्त्रेमाडूरा, स्पेन) की गुफा में उत्खनन

    शब्द पुरातात्विक उत्खनन के दो अर्थ हैं।

    1. पुरातत्व विज्ञान में उत्खनन का सर्वाधिक प्रयोग होता है तथा इसे इसी के साथ सम्बन्ध रखने के लिए जाना जाता है। इस सन्दर्भ में इसे पुरातात्विक अवशेषों को उजागर, प्रक्रम तथा अभिलेखित करने के लिए जाना जाता है।
    2. इस शब्द का प्रयोग किसी स्थान के अध्ययन के लिए प्रयोग की गयी तकनीक के उदाहरण के रूप में भी किया जाता है। इस अर्थ में, उत्खनन को कभी-कभी इसमें भाग लेने वालों के द्वारा अति सरल रूप में "खुदाई " से भी इंगित किया जाता है। इस तरह का स्थानिक उत्खनन एक विशिष्ट पुरातात्विक स्थल अथवा ऐसे स्थलों की श्रृंखला से सम्बंधित होता है तथा कई वर्षों तक चल सकता है।

    संक्षिप्त विवरण[संपादित करें]

    उत्खनन के प्रयोग में बहुत सी विशिष्ट तकनीकें उपलब्ध हैं, तथा इनमें से प्रत्येक खुदाई के अपने गुण हैं, तथा इनसे पुरातत्वविद की शैली का पता चलता है। संसाधनों और अन्य व्यावहारिक मुद्दों के कारण पुरातत्वविद अपनी इच्छानुसार जब चाहें व जहां चाहें उत्खनन नहीं कर पाते. इन बाधाओं का अर्थ यह है कि कई ज्ञात स्थलों के उत्खनन को जान-बूझकर छोड़ दिया गया है। इसका उद्देश्य इन्हें आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखने के साथ-साथ इनके द्वारा इसके आस-पास रहने वाले समुदायों के लिए इनकी भूमिका भी है। कुछ मामलों में यह आशा भी व्यक्त की जाती है कि प्रौद्योगिकी सुधार के द्वारा बाद में इन्हें पुनःपरीक्षण किये जाने में सहायता मिलेगी तथा उससे प्राप्त परिणाम अधिक लाभकारी होंगे। किसी पुरातात्विक स्थल पर खुदाई तथा प्राप्त कलाकृतियों की रिकॉर्डिंग को ही उत्खनन कहते हैं।

    पुरातात्विक अवशेषों की उपस्थिति या अनुपस्थिति को रिमोट सेंसिंग, उदाहरण के लिए जमीन के भीतर देख सकने वाली रडार, के द्वारा उच्च संभावना के साथ बताया जा सकता है। वास्तव में, पुरातात्विक स्थल के विकास के विषय में ऊपरी जानकारी तो इन तरीकों से प्राप्त हो सकती है परन्तु सूक्ष्म विशेषताओं को जानने के लिए बरमे के उचित उपयोग के साथ किये गए उत्खनन की ही आवश्यकता होती है।

    ऐतिहासिक विकास[संपादित करें]

    उत्खनन की तकनीकों का विकास खजाने खोजने के समय से ही होता आ रहा है, जबकि अन्वेषक किसी स्थल पर मानवीय गतिविधियों के द्वारा पड़ने वाले सम्पूर्ण प्रभाव को जानने का प्रयास करते थे, साथ ही इस स्थल का दूसरे स्थलों के साथ-साथ जिस भूदृश्य में यह स्थित है, उसके साथ सम्बन्ध को जानने का भी प्रयास होता था।

    इसका इतिहास खजानों तथा कलाकृतियों की एक अपरिपक्व खोज से प्रारंभ होता है जो "दुर्लभ कलाकृति" की श्रेणी में आते थे। पुरातात्विक महत्त्व की वस्तुओं को एकत्रित करने वाले इन दुर्लभ कलाकृतियों में बहुत रूचि लेते थे। बाद में इसकी सराहना की गयी कि थी कि किसी स्थल पर पूर्व समय के लोगों के जीवन के साक्ष्य थे जो कि खुदाई के द्वारा नष्ट हो गए। किसी दुर्लभ कलाकृति को अपने स्थान से हटा देने पर इसमें निहित अधिकांश सूचनाएं नष्ट हो जाती हैं। इसी अनुभूति के परिणामस्वरुप पुरातात्विक महत्त्व की वस्तुओं को एकत्रित करने का स्थान पुरातत्व विज्ञान ने ले लिया, यह वह प्रक्रिया है जिसे अभी भी परिपूर्ण बनाया जा रहा है।

    स्थानिक रचना[संपादित करें]

    जब इसे स्थान पर ही छोड़ दिया गया हो, पुरातात्विक सामग्री, कोई विशेष अर्थ नहीं प्रदर्शित करती है। इसे घटनाओं के साथ ही संचित किया जाता है। किसी माली ने एक कोने में मिट्टी का एक ढेर बना कर एक बजरी-पथ बनाया हो सकता है, या किसी छेद में एक पौधा लगाया हो सकता है। किसी राजगीर ने एक दीवार बनायी तथा खाई को भर दिया। कई वर्षों बाद, किसी ने इसपर एक शूकरशाला बनायी तथा इसमें नेटल पौधों का झुरमुट लगा दिया। बाद में, मूल दीवार ढह गयी। इनमें से प्रत्येक घटना, जिसे पूर्ण होने में लम्बा अथवा छोटा समय लग सकता है, एक परिस्थिति का निर्माण करती है। ये घटनाएं जो परतों के रूप में एकत्रित हो जाती हैं, पुरातात्विक अनुक्रम अथवा रिकॉर्ड कहलाती हैं। इस अनुक्रम अथवा रिकार्ड के अध्ययन से उत्खनन के द्वारा विवेचना की जाती है, जिसके बाद इन पर परिचर्चा तथा ज्ञान विकसित किया जाता है।

    प्रमुख प्रोकेज़ुअल पुरातत्वविद् लुईस बिन्फोर्ड ने उल्लेख किया है कि किसी स्थल पर प्राप्त पुरातात्विक साक्ष्य उस स्थल पर हुए ऐतिहासिक घटनाओं की ओर पूरी तरह से इंगित नहीं करते. एक एथनोआर्कियोलॉजिकल तुलना करते हुए, वे बताते हैं कि उत्तर-मध्य अलास्का के न्यूनाम्यूट एस्किमो शिकारी अपने शिकार की प्रतीक्षा करते हुए कैसे समय व्यतीत करते थे, तथा उस समय के दौरान वे समय व्यतीत करने के लिए किस प्रकार के कार्य करते थे, जिनमें विविध वस्तुओं पर नक्काशी, जैसे कि काष्ठ के सांचे, मुखौटे, सींग की चम्मचें, हाथीदांत की सुई के साथ साथ चमड़े के थैलों तथा हरिण की खाल से बने मोजों की मरम्मत आदि सम्मिलित थे। बिन्फोर्ड कहते हैं कि इन सभी गतिविधियों के पुरातात्विक साक्ष्य उत्पन्न हुए होंगे, परन्तु इनमें से किसी से भी इन शिकारियों के इस क्षेत्र में एकत्रित होने के मुख्य कारण का पता नहीं चलता; जो कि वास्तव में शिकार करना था। वे बताते हैं कि जानवरों के शिकार के लिए प्रतीक्षा करना "उनकी गतिविधि के कुल समय का 24% व्यतीत होता था; हालांकि इस व्यवहार का कोई पुतात्विक निष्कर्ष नहीं है। स्थल पर मौजूद कोई भी उपकरण तथा "उपोत्पाद" "मुख्य" गतिविधि की ओर संकेत नहीं करते हैं। स्थल पर की जाने वाली सभी गतिविधियां आवश्यक रूप से ऊब मिटने के लिए की गयीं थीं।"[1]

    उत्खनन के प्रकार[संपादित करें]

    16 उत्खनन से प्राप्त वस्तुए क्या कहलाती है? - 16 utkhanan se praapt vastue kya kahalaatee hai?

    लंदन में एक विकासात्मक वित्त पोषित साइट पर रोमन खाई में दफ़न किया गया एक घोड़ा.नोट "चरण से बाहर" पाइप हस्तक्षेप को व्यावहारिक कारणों से छोड़ दिया गया

    बुनियादी प्रकार[संपादित करें]

    आधुनिक पुरातात्विक उत्खनन के दो बुनियादी प्रकार हैं:

    1. अनुसंधान उत्खनन - जब साइट को इत्मीनान से पूरी तरह से उत्खनन करने के लिए समय और संसाधन उपलब्ध होते हैं। यह अब लगभग अनन्य रूप से शिक्षाविदों या निजी समितियों के लिए, जो पर्याप्त श्रम तथा धन एकत्रित कर सकते हैं, सुरक्षित रह गया है। जैसे-जैसे यह आगे बढ़ती है, निदेशक द्वारा खुदाई के आकार का निर्णय भी लिया जा सकता है।
    2. विकासात्मक उत्खनन - यह पेशेवर पुरातत्वविदों द्वारा की जाती है जब इमारतों के बढ़ने से पुरातात्विक स्थल खतरे में आ जाता है। यह सामान्य रूप से इमारत के डेवलपर (बनाने वाला) द्वारा वित्त पोषित होता है, एवं इसका अर्थ यह है कि इसमें समय महत्वपूर्ण होता है तथा इसमें उन्ही क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है जो इमारत से प्रभावित हो रहे होते हैं। आमतौर पर कार्यरत कर्मचारी अधिक कुशल होते हैं हालांकि विकासात्मक-पूर्व उत्खनन खोज किये गए क्षेत्रों का विस्तृत रिकॉर्ड भी उपलब्ध कराते हैं। बचाव सम्बन्धी पुरातत्व-विज्ञान (Rescue archaeology) को हालांकि एक अलग प्रकार का उत्खनन माना जाता है परन्तु व्यवहारिक रूप से यह विकासात्मक उत्खनन का ही एक प्रकार है। हाल के कुछ वर्षों में उत्खनन शब्दावली में नए प्रकार के उत्खननों का विकास हुआ है, जैसे कि स्ट्रिप मैप व सेम्पल, इस पेशे में इनमें से कुछ को शब्दजाल कहते हुए आलोचना की गयी है कि इनका प्रयोग कार्य प्रणाली के गिरते हुए स्तर को छिपाने के लिए किया जाता है।

    परीक्षण उत्खनन तथा विकासात्मक उत्खनन का मूल्यांकन[संपादित करें]

    पेशेवर पुरातत्वविज्ञान में दो प्रकार के परीक्षण उत्खनन होते हैं तथा दोनों ही विकासात्मक उत्खनन से सम्बंधित होते हैं: इनका नाम टेस्ट पिट अथवा ट्रेंच तथा वाचिंग ब्रीफ है। परीक्षण उत्खनन का प्रयोजन किसी क्षेत्र में विस्तृत उत्खनन से पहले पुरातात्विक संभाव्यता के विस्तार तथा विशेषताओं को सुनिश्चित करना होता है। अधिकांशतः इन्हें विकासात्मक उत्खनन में प्रोजेक्ट मैनेजमेंट योजना के अंतर्गत किया जाता है। ट्रायल ट्रेंच तथा वाचिंग ब्रीफ में मुख्य अंतर यह है कि ट्रायल ट्रेंच में सक्रिय रूप से खुदाई करके पुरातात्विक संभाव्यता को दर्शाने का प्रयास किया जाता है जबकि वाचिंग ब्रीफ सरसरी तौर पर खंदकों का अध्ययन है जहां पर खंदकें पुरातात्विक प्रयोग हेतु नहीं देखी जाती हैं, उदाहरण के रूप में गैस पाइप के लिए सड़क पर काटी गयी खंदक. संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रयुक्त एक मूल्यांकन पद्धति जिसे शौवेल टेस्ट पिट कहते हैं, जिसमें आधे वर्ग मीटर की ट्रायल ट्रेंच हाथ से खोदी जाती है। अक्सर पुरातत्वविज्ञान अतीत के लोगों के अस्तित्व और व्यवहार को जानने का एकमात्र साधन होता है। हजारों वर्षों में अनेक सहस्त्र सभ्यताएं व समाज तथा उनमें रहने वाले अरबों लोग आये और गए जिनके विषय में लिखित रिकॉर्ड अल्प अथवा उपलब्ध नहीं है, अथवा उपलब्ध रिकॉर्ड गलत अथवा अपूर्ण है। जिस प्रकार आजकल इसका लेखन किया जाता है, वह 4 सहस्राब्दी ई.पू. तक अस्तित्व में नहीं था, मानव सभ्यता में तकनीकी रूप से उन्नत सभ्यताओं की एक अपेक्षाकृत छोटी संख्या ने इसके बाद ही यह लेखन प्रारंभ किया। इसके विपरीत होमो सेपियंस कम से कम 200,000 साल से अस्तित्व में है, तथा होमो की अन्य प्रजातियां लाखों वर्षों से विद्यमान हैं (मानव विकास देखें). इन सभ्यताओं को सर्वश्रेष्ठ रूप से संयोगवश ही नहीं जाना जाता है; सदियों से वे इतिहासकारों की जानकारी के लिए उपलब्ध हैं, जबकि पूर्वैतिहासिक सभ्यताओं का अध्ययन हाल में ही प्रारंभ हुआ है। कई साक्षर सभ्यताओं में भी कई घटनाओं और महत्वपूर्ण मानव व्यवहार को आधिकारिक तौर पर दर्ज नहीं किया गया है। मानव सभ्यता के प्रारंभिक वर्षों से कोई ज्ञान - कृषि विकास, लोक धर्म की पंथ प्रथायें, प्रारंभिक नगरों का विकास - पुरातत्व से प्राप्त होना चाहिए।


    धौलाविरा के उत्तरी फाटक के पास से दस सिंधु शब्द-चिन्ह प्राप्त हुए हैं (लगभग 2500-1900 वर्ष प्राचीन), जहां पर लिखित रिकॉर्ड मौजूद हैं भी, वे अक्सर अधूरे तथा अवश्य ही कुछ सीमा तक पक्षपातपूर्ण हैं। कई समाजों में, साक्षरता कुलीन वर्ग तक ही सीमित थी, उदाहरण के रूप में पुरोहित वर्ग अथवा अदालत या मंदिर में कार्यरत लोगों तक. अभिजात्य वर्ग की साक्षरता भी अक्सर अनुबंध तथा दस्तावेजों तक ही सीमित थी। अभिजात्य वर्ग के अपने हित तथा दुनिया को देखने का नज़रिया अक्सर आम आदमियों से काफी भिन्न होता था। सामान्य लोगों के प्रतिनिधियों द्वारा किये गए लेखन के पुस्तकालयों में रखे जाने तथा आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित किये जाने की संभावनाएं बहुत ही कम थीं। इस प्रकार, लिखित रिकॉर्ड सीमित व्यक्तियों के पक्षपात, कल्पना, सांस्कृतिक मूल्य तथा संभावित कपट का प्रदर्शन करते हैं, जो कि बड़ी जनसंख्याओं का एक छोटा अंश मात्र ही थे। इसलिए, लिखित रिकॉर्ड पर एकमात्र स्रोत के रूप में भरोसा नहीं किया जा सकता है। सामग्री के रूप में प्राप्त रिकॉर्ड समाज के उचित प्रतिनिधित्व करने के निकट है, हालांकि यह अपनी अशुद्धियों पर निर्भर है जैसे कि नमूना लेने में किया गया पक्षपात तथा विभेदात्मक परिरक्षण.

    इनके वैज्ञानिक महत्व के अतिरिक्त, पुरातात्विक अवशेष कभी-कभी उन्हें बनाने वालों के वंशजों के राजनैतिक या सांस्कृतिक महत्व, एकत्रित करने वालों को प्राप्त होने वाले मौद्रिक मूल्य अथवा सशक्त कलापक्ष से प्रभावित होते हैं। बहुत से लोग पुरातत्व को इस तरह के सौंदर्य, धार्मिक, राजनीतिक, अथवा आर्थिक कोष की प्राप्ति से जोड़ कर देखते हैं न कि पूर्वकाल के समाजों के पुनर्निर्माण के रूप में.

    यह दृष्टिकोण अक्सर लोकप्रिय फिक्शन से प्राप्त होता है, जैसे रेडर्स ऑफ दि लॉस्ट आर्क, दि ममी एवं किंग सोलोमंस माइन्स. जब इस तरह के अवास्तविक विषयों को गंभीरता से देखा जाता है, उनके समर्थकों पर सदैव छद्मविज्ञान का आरोप लगाया जाता है (नीचे सूडोआर्कियोलॉजी देखें). हालांकि, ये प्रयास, चाहे वे वास्तविक अथवा काल्पनिक हों, आधुनिक पुरातत्व का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।

    खुदाई की अवधारणायें[संपादित करें]

    स्तरीकरण[संपादित करें]

    पुरातत्व, विशेष रूप से उत्खनन में स्तरीकरण सर्वोच्च और आधारभूत अवधारणा है। यह सुपरपोज़ीशन के नियम पर आधारित है। जब पुरातात्विक अवशेष जमीन की सतह से नीचे होते हैं (जैसा कि आमतौर पर होता है), प्रत्येक के संदर्भ की पहचान करना, पुरातत्वविद् के लिए उस पुरातात्विक स्थल के विषय में निर्णय लेने के लिए आवश्यक होता है, साथ ही इससे उस स्थल की प्रकृति तथा तारीख के विषय में भी जाम्कारी मिलती है। कौन से संदर्भ मौजूद हैं और वे कैसे बनाये गए, यह जान्ने का प्रयास करना पुरातत्वविद् की भूमिका होती है। पुरातात्विक स्तरीकरण या अनुक्रम स्टार्टिग्राफी अथवा सन्दर्भ की इकाई का सक्रिय सुपरपोज़ीशन है। पुरातत्व में, पुरातात्विक स्थल (भौतिक स्थान) की खोज महत्वपूर्ण होती है। अधिक स्पष्ट रूप से कोई पुरातात्विक संदर्भ समय-काल में एक घटना है जो पुरातात्विक रिकार्ड में संरक्षित हो गयी हो। भूतकाल में गड्ढे अथवा खाई को काटना एक संदर्भ है, जबकि सामग्री भरना दूसरा संदर्भ है। अनुभाग में कई भरण का दिखना कई संदर्भ कहे जायेंगे. संरचनात्मक विशेषताएं, प्राकृतिक निक्षेप तथा शवों को गाड़ना भी सन्दर्भ होंगे। किसी स्थल को इन बुनियादी, असतत इकाइयों में वर्गीकृत करने से पुरातत्वविद गतिविधियों के कालक्रम को बना सकते हैं तथा इनका वर्णन और व्याख्या की जा सकती है। स्तरीकरण संबंध ऐसे संबंध होते हैं जिन्हें समय आधारित पुरातात्विक स्थलों के बीच स्थापित किया जाता है, ऐसा उनके बनने के कालानुक्रमिक अनुक्रम में किया जाता है। एक उदाहरण किसी खाई तथा उस खाई को वापस भरने का हो सकता है। खाई को "भरे जाने" तथा "काटे जाने" के सन्दर्भ में "भरा जाना" क्रम में बाद में आएगा, उदाहरण के लिए खाई को भरे जाने से पूर्व उसको काटा जाना आवश्यक है। एक संबंध यह है कि अनुक्रम में बाद में आने वाले को "उच्च " संदर्भित किया जाता है तथा अनुक्रम में पहले आने वाले को "निम्न " संदर्भित किया जाता है, हालांकि शब्द उच्च अथवा निम्न का अर्थ यह नहीं है सन्दर्भ भौतिक रूप से ऊंचा अथवा नीचा हो। यह उच्च व निम्न की सोच हैरिस मैट्रिक्स के रूप में अधिक उपयोगी हो सकती है, जो कि किसी स्थल के स्थान व समय में निर्माण का दो-आयामी निरूपण है।

    व्याख्या के लिए स्तरीकृत संदर्भों का मेल[संपादित करें]

    आधुनिक पुरातत्व में किसी पुरातात्विक स्थल को समझने के लिए सन्दर्भों को समूहों में बांट कर उनके संबंधों के आधार पर उस समूह को बड़ा करते जाने की प्रक्रिया अपनाई जाती है। इन बड़े समूहों के नाम की शब्दावली अलग-अलग व्यावसाइयों के आधार पर बदलती है परन्तु कुछ शब्द जैसे कि अंतरापृष्ठ, उप-समूह, समूह तथा भूमि प्रयोग आदि सामान्य रूप से प्रयोग किये जाते हैं। उप-समूह का एक उदाहरण दफ़न में प्रयुक्त तीन सन्दर्भों से समझा जा सकता है; कब्र का आकार, मृत शरीर तथा उस शरीर के ऊपर पुनः भरी गयी मिट्टी. इस प्रकार उप-समूह अन्य उप-समूहों के साथ स्तरीकृत संबंधों के आधार पर एकत्रित होकर समूहों की रचना करते हैं जो कि इसी प्रकार "चरण" बनाती है। एक उप-समूह दफन-क्रिया अन्य उप-समूह दफन-क्रिया के साथ बड़ा समूह बना कर एक कब्रिस्तान का रूप ले सकती है, अथवा दफन-क्रिया समूह भी बना सकती है जिसे बाद में किसी भवन, जैसे कि गिरिजाघर के रूप में "चरण" की तरह समझा जा सकता है। एक या अधिक सन्दर्भों का एक कम सख्ती से किया गया समूह कभी-कभी फीचर भी कहलाता है।

    चरण और चरणबद्धता[संपादित करें]

    16 उत्खनन से प्राप्त वस्तुए क्या कहलाती है? - 16 utkhanan se praapt vastue kya kahalaatee hai?

    एक रोमानो-केल्टिक मंदिर की चरण में खुदाई से इस स्थल को कार्यात्मक स्तर तक छोटा कर दिया गया

    16 उत्खनन से प्राप्त वस्तुए क्या कहलाती है? - 16 utkhanan se praapt vastue kya kahalaatee hai?

    उसी रोमानो-केल्टिक मंदिर में चरण में भीतरी दीवार के निर्माण के तुरंत बाद और बाहरी दीवार के चित्र के बाईं ओर तक के निर्माण से पहले को निर्माण के स्तर तक कम कर दिया गया। नोट चरण को कम करने से मंदिर के विस्तृत निर्माण के सही अनुक्रम के विषय में जानकारी का प्राप्त की गयी

    चरण आम आदमी को सबसे आसानी से समझ में आनेवाला समूहीकरण है, क्योंकि इसका अभिप्राय लगभग समकालीन पुरातात्विक क्षितिज से है जो दर्शाता है "यदि आप किसी विशिष्ट समय में वापस जा पाते, तो आपको क्या दिखाई पड़ता". एक चरण का आशय, अक्सर, लेकिन हमेशा नहीं, एक व्यावसायिक स्तर की पहचान से सम्बंधित होता है, एक "प्राचीन धरातल", जो कुछ समय पहले मौजूद था। चरण की व्याख्या का निर्माण स्तरीकृत व्याख्या और उत्खनन का पहला लक्ष्य होता है। "चरण में" खुदाई चरणबद्धता से भिन्न है। पुरातात्विक स्थल की चरणबद्धता का अर्थ स्थल को उत्खनन अथवा उत्खनन-पश्चात समकालीन क्षितिजों में बांटने से होता है जबकि "चरण में खुदाई" पुरार्तात्विक अवशेषों को स्तरीकृत रूप से ऐसे हटाना होता है जिससे कि वे सन्दर्भ न हटने पायें जो कि सामयिक रूप से इसके पूर्व के हों अथवा "अनुक्रम में नीचे की ओर हों" इससे पहले कि अन्य सन्दर्भ जो कि स्तरीकरण सम्बन्ध में इसके बाद आते हैं जैसा कि सुपरइम्पोज़ीशन के नियम में कहा गया है। व्यवहार में व्याख्या की प्रक्रिया पुरातात्विक स्थल पर उत्खनन की रणनीति के साथ ही जारी रहेगी ताकि जहां तक संभव हो "चरणबद्धता" को उत्खनन के दौरान ही किया जा सके, तथा इसे एक अच्छी कार्यप्रणाली माना जाता है।

    व्यवहार में उत्खनन[संपादित करें]

    भूमिका[संपादित करें]

    उत्खनन के प्रारंभ में मशीन द्वारा ऊपरी मिट्टी के ढेर को हटाया जाना सम्मिलित होता है। इस सामग्री को मेटल डिटेक्टर के द्वारा परीक्षण किया जाता है ताकि कि भूल से अलग रह गया कोई भी सामग्री खोजी जा सके, परन्तु यदि इसके परित्याग से लेकर अब तक यह अनछुई नहीं रही है, इसमें आधुनिक सामग्रियों की एक परत मिलेगी जिसमें पुरातात्विक रूचि का अभाव होगा। ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित कोई फीचर सतह के नीचे दिखाई पड़ जाता है परन्तु शहरी क्षेत्रों में मानवीय निक्षेप की एक मोती पर्त हो सकती है, तथा प्रारंभ में सबसे ऊपरी सन्दर्भ ही प्रदर्शित होगा तथा इसे अन्य सन्दर्भों से अलग करके देखना होगा। सन्दर्भों तथा फीचर के नमूने लेने की एक रणनीति बनायीं जाती है जिसमें प्रत्येक फीचर के पूर्ण उत्खनन अथवा आंशिक उत्खनन के विषय में निर्णय लिया जाता है। उत्खनन का वरीयता प्राप्त लक्ष्य यह होता है कि सभी पुरातात्विक निक्षेपों तथा फीचर को उनके निर्माण के उलटे क्रम में हटाया जाये तथा कालानुक्रमिक रिकॉर्ड अथवा "अनुक्रम" के रूप में हैरिस मैट्रिक्स बनायीं जाए. इस हैरिस मैट्रिक्स का प्रयोग ज्ञान की सतत बढ़ती हुई इकाइयों की व्याख्या तथा इन्हें जोड़ने में किया जाता है। पुरातात्विक स्थल से स्तरीकृत रूप से हटाया जाना यहां की घटनाओं के कालानुक्रम को समझने के लिए बहुत आवश्यक है। हालांकि इसे ऐसा सोचा जाना कि "पुरातात्विक निक्षेप अपने आने के विपरीत क्रम में स्थल से जाने चाहिए". आमतौर पर एक ग्रिड बनायी जाती है जिसमें स्थल को 5 मीटर के वर्गों में विभाजित किया जाता है ताकि फीचर तथा सन्दर्भों को सम्पूर्ण स्थल के नक़्शे में सही रूप से स्थानित किया जा सके। इस ग्रिड को आम तौर पर किसी राष्ट्रीय जियोमैटिक डेटाबेस, जैसे कि ब्रिटेन के ऑर्डनेन्स सर्वे, में शामिल कर दिया जाता है। शहरी क्षेत्रों के पुरातत्व में यह ग्रिड एकल सन्दर्भ रिकॉर्डिंग के कार्यान्वन में अमूल्य हो जाती है।

    एकल संदर्भ रिकॉर्डिंग प्रणाली[संपादित करें]

    एकल संदर्भ रिकॉर्डिंग का विकास 1970 के दशक में लन्दन संग्रहालय के द्वारा किया गया था (इसके पहले विनचेस्टर तथा यॉर्क में भी) तथा तब से विश्व के कई भागों में यह मूल रिकॉर्डिंग प्रणाली बन गयी है, यह विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों के पुरातत्व की जटिलताओं तथा स्तरीकरण के सर्वथा अनुकूल है। प्रत्येक उत्खनित संदर्भ को एक "सन्दर्भ संख्या" दी जाती है तथा इसको प्रकार के आधार पर सन्दर्भ शीट पर लिख लिया जाता है तथा संभवतः इसे सम्पूर्ण योजना अथवा खानों पर बना लिया जाता है। समय की कमी और महत्व के आधार पर संदर्भों की तस्वीरें खींची जा सकती हैं लेकिन इस मामले में फोटोग्राफी का उद्देश्य संदर्भों का वर्गीकरण और उसका अन्य सन्दर्भों से सम्बन्ध होता है। प्रत्येक सन्दर्भ की प्राप्तियों को उनके सन्दर्भ संख्या तथा स्थल की कोड संख्या के साथ थैलों में रखा जाता है ताकि बाद में उत्खनन पश्चात प्रति संदर्भ में इसका प्रयोग किया जा सके। सन्दर्भ के मुख्य हिस्सों की समुद्र स्तर से ऊंचाई, उदाहरण के लिए दीवार के ऊपरी तथा निचले हिस्से का अंतर, निकाल कर योजना के खण्डों तथा संदभ शीट में दर्ज कर लिया जाता है। ऊंचाइयों का रिकॉर्ड गंदे स्थल अथवा सम्पूर्ण स्टेशन के साथ दर्ज किया जाता है तथा इसको साईट अस्थायी बेंचमार्क (लघुरूप टीबीएम) के सापेक्ष देखा जाता है। कभी कभी संदर्भों से जमा किये गए नमूने भी लिए जाते हैं ताकि बाद में इनका पर्यावरणीय विश्लेषण अथवा वैज्ञानिक कालांकन किया जा सके।

    व्यवहार में स्तरीकृत उत्खनन[संपादित करें]

    झुका हुआ शीर्ष भराव डूबी हुई साक्सोन इमारत को प्रदर्शित कर रहा है

    अपने मूल अर्थ में स्तरीकृत उत्खनन की श्रेष्ठ परंपरा में एक चक्रीय प्रक्रिया सम्मिलित है जिसमें इसमें स्थल की सतह पर "पुनः खुरपी चलाना" (ट्रौवेलिंग बैक) किया जाता है तथा ऐसे सन्दर्भों तथा कगारों को पृथक किया जाता है जिन्हें अपनी पूर्णता अथवा किसी अन्य सन्दर्भ के भाग के रूप में ही समझा जा सकता है

    1. असतत प्रत्यक्ष "कगारें" जो पूर्ण योजना में दर्शित क्षेत्र को पूर्णतः दर्शाती हैं तथा इसलिए स्तरीकृत रूप से अपने इर्द गिर्द के क्षेत्रों की तुलना में बाद की होती हैं अथवा
    2. असतत प्रत्यक्ष "कगारें" जो अपने इर्द गिर्द की सतह से अलग होती हैं, जैसा कि 1 में वर्णित है, तथा इनकी चारदीवारी उत्खन की सीमा से ही परिलक्षित होती है।

    संदर्भ को परिभाषित करने की इस प्रारंभिक प्रक्रिया के बाद, संदर्भ का मूल्यांकन स्थल की विस्तृत जानकारी के सम्बन्ध में इसलिए किया जाता है कि जिससे स्थल को चरणों में बांटने की आवश्यकता को जांचा जा सके, इसके पश्चात इसे विभिन्न तरीकों से हटाया व रिकॉर्ड किया जाता है। अक्सर, व्यावहारिक दृष्टिकोण या त्रुटि के कारण, संदर्भ की कगारों को परिभाषित करने की प्रक्रिया का पालन नहीं किया जा पाता है तथा सन्दर्भ को अनुक्रम के बिना अथवा गैर-स्तरीकृत ढंग से निकाल लिया जाता है। इसको "बिना चरण की खुदाई" कहा जाता है। यह अच्छी प्रथा नहीं है। संदर्भ को हटाने के पश्चात, तथा यदि व्यावहारिक हो तो फीचर के लिए सन्दर्भों के समूह को हटाने के बाद, "पृथक करते हुए खुदाई करते जाना" (आइसोलेट एंड डिग) प्रक्रिया को तब तक दोहराया जाता है जब तक कि उस पुरातात्विक स्थल से मानव निर्मित अवशेष पूरी तरह से हटा न लिए जायें, तथा स्थल को पूरी तरह से प्राकृतिक न बना दिया जाये.

    उत्खनन की भौतिक कार्यप्रणाली[संपादित करें]

    उत्खनन की प्रक्रिया को पूर्णतया कई प्रकार से प्राप्त किया जा सकता है तथा यह अवशेषों के प्रकार तथा समय सीमा पर निर्भर करता है। मुख्य रूप से अवशेषों को ट्रौवेल (खुरपी) तथा मैटॉक (फावड़ा) की सहायता से उठा कर ठेले अथवा बाल्टियों में भर कर बाहर ले जाया जाता है। कई अन्य उपकरणों का प्रयोग, जिनमें पतली तौलिया, जैसे प्लास्टर लीफ तौलिया तथा कई श्रेणियों के ब्रश सम्मिलित हैं, नाजुक वस्तुओं जैसे कि मानव अस्थि तथा सड़ी हुई लकड़ी के लिए किया जाता है। पुरातात्विक रिकॉर्ड से सामग्री को हटाने के कुछ बुनियादी दिशा निर्देशों का पालन किया जाता है।

    1. ज्ञात से अज्ञात की ओर कार्य करें . इसका मतलब यह है कि यदि कोई व्यक्ति सामग्री की स्तरीकरण की सीमा के प्रति आश्वस्त नहीं हो तो सामग्री को हटाने का कार्य वहां से प्रारंभ किया जाना चाहिए जहां पर यह अनुक्रम बेहतर रूप से ज्ञात हो।
    2. ऊपर से नीचे की ओर कार्य करें . ज्ञात से अज्ञात की ओर कार्य करने के साथ-साथ यह भी आवश्यक है कि अधिक से अधिक दूरी तक कार्य किया जाये, सन्दर्भ के भौतिक रूप से उच्च स्तर से निम्न स्तर की ओर सामग्री को हटाया जाना चाहिए। यह भी सर्वश्रेष्ठ प्रथा है क्योंकि अन्यथा निकली हुई मिटटी इससे नीचे की सतह पर, जिस पर काम किया जा रहा है, गिर जाएगी. इस प्रकार से धुंधले वर्णन, जो कि उत्खनक से खो जाते, बचाए जा सकते हैं।
    3. पुरातत्व में, हम अपनी आंखों का उपयोग करते हैं . संदर्भों के उत्खनन का कार्य सूक्ष्म भेदों के विस्तृत अवलोकन पर निर्भर होता है।
    4. संदेह की स्थिति में उपेक्षा करके आगे बढ़ो . यह अश्वारोहियों की सी लगने वाली उक्ति संक्षेप में आगे बढ़ने को प्रेरित करती है। किसी स्थल पर हमेशा समय की तुलना में किया जाने वाले कार्य का आधिक्य होता है। कई बार अनुभवी पुरातत्वविद भी अगले हटाये जाने वाले फीचर अथवा सन्दर्भ के बारे में निश्चित नहीं होते हैं। जब एक आदर्श तरीके से आगे बढ़ना संभव नहीं होता है, उत्खनन को अस्थायी वर्गों के साथ मनमाने तरीके से जारी रखा जाना चाहिए, जब तक कि प्रत्यक्ष स्तरीकरण फिर से सामने न आ जाये. पुरातात्विक स्थल के किसी क्षेत्र को मनमाने तरीके से छोड़ कर अस्थायी वर्गों की सहायता से स्तरीकरण पर नियंत्रण करके "चरण के बाहर खुदाई" की चेतावनी प्राप्त की जा सकती है। अगर उत्खनन के लिए मनमाना क्षेत्र बुद्धिमानी से चुना जाता है, अनुक्रम को प्रकट करते हुए उत्खनन को पूर्ण स्तरीकृत प्रकार से वापस प्राप्त किया जा सकता है। यह जानना आवश्यक है कि उपेक्षा करके आगे बढ़ना पूरी तरह से क्रम रहित कार्य नहीं है बल्कि तर्कपूर्ण फल, अवलोकन तथा अनुभव पर आधारित श्रेष्ठ अनुमान की क्रिया है।

    उत्खनन में आम त्रुटियां[संपादित करें]

    उत्खनन की आन त्रुटियां दो बुनियादी श्रेणियों में रखी जा सकती हैं और इनमें से किसी एक का होना लगभग निश्चित ही होता है क्योंकि उत्खनन एक ऐसी ध्वंसकारी प्रक्रिया है जो सूचना को रिकॉर्ड करने के साथ ही उसे नष्ट भी करती जाती है तथा गलतियों का सुधार आसानी से नहीं हो पाता है।

    1. कम काटा जाना कम काटा जाना तब होता है जबकि सन्दर्भ का उत्खनन पूरी तरह नहीं किया जाता तथा सन्दर्भ का बचा हुआ भाग प्रकृति के द्वारा ढंक लिया जाता है। यह विशेष रूप से अनुभवहीन पुरातत्वविदों के साथ होता है जो कि संकोचशील होते हैं। कम काटा जाने के परिणाम गंभीर होते हैं, प्राप्त पुरातात्विक अनुक्रम अधूरे होते हैं तथा इसके बाद की रिकॉर्डिंग तथा उत्खनन स्थल पर स्थित अवशेषों के त्रुटिपूर्ण मानों पर आधारित होते हैं। अनियंत्रित रूप में कम काटे जाने के पश्चात उत्पन्न मिथ्या डेटा जो कि अक्सर हस्तक्षेप से मिलने वाली प्राप्तियों की असफलता होती है, तथा इस प्रकार उत्खनन के पश्चात व्याख्या में गंभीर जटिलताएं होती हैं। इससे सम्पूर्ण पुरातात्विक स्थल "चरण के बाहर फेंक दिया जाता है" जहां हैरिस मैट्रिक्स में दर्ज सम्बन्ध समझे जा सकने वाले वास्तविक संबंधों को नहीं दर्शाते. यदि कम काटे जाने को जारी रखने की स्वीकृति दी जाती है, इसका दुष्प्रभाव बढ़ता जाता है।
    2. अधिक काटा जाना. अधिक काटा जाना तब होता है जब सन्दर्भ को गैर-इरादतन रूप से अन्य अवशेषों तथा सन्दर्भों के साथ काट दिया जाता है। अत्यधिक काटा जाना चरण को लापरवाही के साथ हटाया जाना परिलक्षित करता है। हालांकि अधिक काटे जाने के कुछ परिमाण को रोका जाना संभव नहीं होता है, तथा इसे कम काटे जाने से बेहतर माना जाता है हालांकि अधिक काटा जाना सूचना की हानि का प्रतिनिधित्व करता है।

    अधिक काटा जाना सूचना की हानि दर्शाता है जबकि कम काटा जाना मिथ्या सूचना दर्शाता है। किसी पुरातत्वविद् की एक भूमिका मिथ्या सूचना से बचना तथा सूचना की हानि को कम से कम करना भी होती है।

    प्राप्त वस्तुएं तथा शिल्पकृतियों की खुदाई[संपादित करें]

    वे वस्तुएं एवम शिल्पकृतियां जो पुरातात्त्विक अभिलेखों में अब भी शेष हैं, वे सम्बंधित सन्दर्भ के उत्खनन द्वारा प्राप्ति के दौरान मुख्यतः हाथ से और अवलोकन के माध्यम से ही निकाली गयी हैं। उपयुक्तता और समय सीमा के आधार पर अन्य कई तकनीकें भी उपलब्ध हैं। छोटी वस्तुओं की खुदाई को अधिकतम करने हेतु छानने और प्लवन की विधि का प्रयोग किया जाता है, जैसे मिट्टी के पात्रों के छोटे ठीकरे या चकमक पत्थर के टुकड़े. शोध आधारित उत्खनन, जहां काफी समय होता है, में छानने की विधि का प्रयोग काफी प्रचलन में है। सीमेंट मिश्रिक तथा वृहत स्तर पर छानने की प्रक्रिया में भी कुछ हद तक सफलता मिली है। इस विधि के द्वारा बेल्चे और मैटॉक (कुदाली) से सन्दर्भ को शीघ्रतापूर्वक हटाया जा सकता है, फिर भी इसमें खुदाई की दर उच्च रहती है। स्पॉयल को बेल्चे द्वारा मिश्रिक में डाला जाता है और घोल तैयार करने के लिए इसमें पानी मिलाया जाता है, जिसे फिर एक जालीदार छानने के माध्यम से उड़ेल दिया जाता है। प्लवन खुदाई की एक ऐसी प्रक्रिया है जो स्पॉयल को पानी की सतह पर डालने और बैठ चुके स्पॉयल में तैरती हुई वस्तुओं को अलग करने के द्वारा सम्पादित की जाती है, यह पर्यावरणीय डेटा की पुनर्प्राप्ति के लिए विशेष रूप से उपयुक्त विधि है, जैसे बीज और छोटी हड्डियां. सभी वस्तुओं को उत्खनन के दौरान ही नहीं निकाला जाता और कुछ तो विशेष रूप से उत्खनन के बाद, उत्खनन के दौरान लिए गए नमूनों के आधार, निकाली जाती हैं, विशेषतः प्लवन की क्रिया उत्खनन के बाद ही की जाती है।

    उत्खनन के दौरान वस्तुओं को निकालने में विशेषज्ञ की भूमिका प्रमुख होती है जो सन्दर्भ के विषय में पुरातात्त्विक अभिलेखों से सम्बंधित स्थान के कालांकन के विषय में जानकारी देता है। इसके द्वारा, प्राप्त वस्तुओं के अवशेष के उच्च क्रम के सन्दर्भ में पुनः निक्षिप्त हो जाने से, इसके फलस्वरूप होने वाली संभावित खोजों के सम्बन्ध में पहले से जानकारी मिल सकती है। स्थान का कालांकन पुष्टिकरण प्रक्रिया का और उत्खनन के दौरान पुरातात्त्विक स्थल की चरणबद्धता पर कार्यात्मक अवधारणा की वैधता के मूल्यांकन का एक हिस्सा होता है। उदहारण के लिए, एक अनियमित मध्ययुगीन मिट्टी के ठीकरे का एक प्रत्याशित लौहयुग नाली में पाया जाना, अवश्य ही उस स्थल पर खुदाई की सही योजना के विचारों को स्वाभाविक रूप से बदल देगा और प्रक्षेप की प्रकृति के बारे में गलत अवधारणा के फलस्वरूप खो सकने वाली अनेक जानकारियों को सुरक्षित कर लेगा, जो उत्खनन के द्वारा नष्ट हो जाती और जिसके परिणामस्वरूप उत्खनन के पश्चात विशेषज्ञ को उस पुरातात्त्विक स्थल से अन्य कोई जानकारी मिल पाने की सम्भावना भी सीमित हो जाती. या अनियमित जानकारी उत्खनन में "अंडरकटिंग" के रूप में त्रुटियां दिखा सकती है। कालांकन पद्धति कुछ हद तक उचित उत्खनन पर निर्भर करती है और इस प्रकार यह दोनों प्रक्रियाएं परस्पर एक दूसरे पर निर्भर करती हैं।

    खुदाई करनेवाले यन्त्र[संपादित करें]

    खुदाई करनेवाले यंत्रों के प्रयोग में लगातार वृद्धि हो रहा है, विशेषतः विकासकर्ता द्वारा करवाए जाने वाले उत्खनन में, ऐसा मुख्यतः समय के दबाव के करण होता है। यह विवाद का विषय है क्योंकि इनके प्रयोग के फलस्वरूप किसी पुरातात्त्विक स्थल पर पुरातात्त्विक क्रम किस प्रकार दर्ज किये जाते हैं इस सम्बन्ध में परिणामों में अंतर अवश्य ही कम हो जाता है। मशीनों का प्रयोग मुख्यतः आधुनिक बोझ को हटाने और स्पॉयल को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। ब्रिटिश पुरातत्त्व में खुदाई करनेवाले यंत्रों की ओर कभी-कभी "द बिग येलो ट्रोवेल" के उपनाम से भी संकेत किया जाता है।

    कार्यबल का संगठन[संपादित करें]

    पुरातात्त्विक उत्खनन करने वालों का एक समूह सामान्यतया एक निरीक्षक के लिए काम करता है जो स्थल निदेशक या परियोजना प्रबंधक के प्रति जवाबदेह होता है। पुरातात्त्विक स्थल की व्याख्या और अंतिम रिपोर्ट तैयार करने के लिए अंत में वह ही उत्तरदायी होगा। अधिकांश उत्खनन अंततः व्यावसायिक पत्रों में प्रकाशित किये जाते हैं, हालांकि इस प्रक्रिया में कई वर्षों का समय लग जाता है। यह प्रक्रिया उत्खनन के बाद होती है और अनगिनत अन्य विशेषज्ञों को विकसित करती है।

    उत्त्खनन मे प्रयुक्त शब्दावली[संपादित करें]

    (1) खदान (Quarry) - जिस स्थान से पत्थर निकला जाता है, उसे खदान कहते हैं।

    (2) उत्खनन (Quarrying) - चट्टानों से पत्थर निकलने की क्रिया

    (3) खदानी रस (Quarry sap) - खदान से निकाले गए नये पत्थरों में एक प्रकार की नमी विद्यमान होती है, जिसे खदानी रस कहते हैं।

    (4) छानस (screening)- सदलित पत्थरों को मपानुसार अलग-अलग करना छानस कहलाता है।

    (5) विस्फोटन (Blasting)- बारूदी धमाका करके चट्टानों सेेे पत्थर उखाड़ने वा तोड़नेे की क्रिया को विस्फोटन कहते हैं।

    (6) फलिता (fuse)- ज्वलनशील रासायनिक घोल से संतृप्त सूती डोरी, जो आग दिखाने पर समान गति से जलती है और चिंगारी आगे बढ़ती है, को फलिता कहते हैं |

    (7) विस्फोटक (Explosive)- अति ज्वलनशील रासायनिक पदार्थ जो चिनगारी दिखाने पर धमाका देते हैं और ऊर्जा निकलते हैं।

    (8) अविस्फोटन (Misfire)- जब विस्फोटक किसी कारण आग न पकड़े और धमाका ना हो, तो यह अविस्फोटन कहलाता है।

    (9) प्रस्फोटन (Detontor)- अत्यधिक संवेदनशील विस्फोटक सामग्री सेे भरी नलिका जो विद्युत चिनगारी द्वारा धमाका करती है।

    इन्हें भी देखें[संपादित करें]

    • पुरातात्विक संघ
    • पुरातात्विक संदर्भ
    • पुरातात्विक नैतिकता
    • पुरातात्विक क्षेत्र सर्वेक्षण
    • पुरातात्विक योजना
    • पुरातात्विक विभाग
    • कट (पुरातत्व)
    • फ़ीचर (पुरातत्व)
    • फोरेंसिक पुरातत्व
    • हैरिस मैट्रिक्स
    • देश द्वारा छांटे गए पुरातात्विक स्थलों की सूची
    • रिश्ता (पुरातत्व)
    • एक संदर्भित रिकॉर्डिंग
    • थूक (पुरातत्व)

    सन्दर्भ[संपादित करें]

    • बार्कर, फिलिप, (1993) टेक्निक्स ऑफ़ आर्कियोलॉजिकल एक्स्कैवेशन, तीसरा संस्करण, लंदन : बैट्सफोर्ड, ISBN 0-7134-7169-7
    • वेस्टमैन, एंड्रयू (सं.) 1994) आर्कियोलॉजिकल साइट मैनुअल, तीसरा संस्करण, लंदन : लंदन के संग्रहालय, ISBN 0-904818-40-3

    1. बिंफोर्ड, लुईस (1978). "डाइमेंशनल एनालिसिस ऑफ़ बिहेवियर एंड साइट स्ट्रक्चर: लर्निंग फ्रॉम एन एस्किमो हंटिंग स्टैंड". अमेरिकन ऐन्टिक्वटी. 40: 335.

    बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

    • एड्रियन चैड्विक - आर्कियोलॉजी एट द एज ऑफ़ कैआस: फर्दर टुवर्ड्स रिफ्लेक्सिव एक्स्कैवेशन मेथाडोलॉजिज़
    • एनआईओएसएच (NIOSH) सेफ्टी एंड हेल्दी टॉपिक: ट्रेन्चिंग एंड एक्स्कैवेशन.

    उत्खनन से प्राप्त वस्तुएं क्या कहलाता है?

    उत्खनन से प्राप्त वस्तुएं पुरातात्विक वस्तुएं कहलाती हैं।

    उत्खनन का क्या अर्थ होता है?

    उत्खनन (उत्+खनन) - (पुं.) (तत्.) - ज़मीन के अंदर से कोई चीज बाहर निकालने के लिए,या प्रकाश में लाने के उद्देश्य से की जाने वाली खोदने की क्रिया या खुदाई।

    पुरातत्व स्थल की खोज करने वाले को क्या कहा जाता है?

    ऐतिहासिक-सांस्कृतिक महत्व के स्थलों की खोज, उपलब्ध-प्राप्त साक्ष्यों के जरिए उनके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी जुटाना पुरातत्वविदों का मुख्य काम होता है।

    पुरातत्व से आप क्या समझते हैं?

    पुरातत्व, भौतिक अवशेषों के माध्यम से प्राचीन और हाल के मानव अतीत का अध्ययन है। पुरातत्वविद मिलियन वर्ष पुराने जीवाश्मों का अध्ययन कर सकते हैं। या वे वर्तमान समय में 20 वीं सदी की इमारतों का अध्ययन कर सकते हैं। पुरातत्व मानव संस्कृति की व्यापक और व्यापक समझ की खोज में अतीत के भौतिक अवशेषों का विश्लेषण करता है।