पांडुलिपियां निम्न में से किस पर लिखी जाती थी - paandulipiyaan nimn mein se kis par likhee jaatee thee

पांडुलिपियां निम्न में से किस पर लिखी जाती थी - paandulipiyaan nimn mein se kis par likhee jaatee thee

हिन्दी भाषा में यह ‘पाण्डुलिपि’, ‘हस्तलेख’, ‘हस्तलिपि’ इत्यादि नामों से प्रसिद्ध है। ऐसा माना जाता है कि सोलहवीं शताब्दी के आरम्भ में विदेशियों के द्वारा संस्कृत का अध्ययन आरम्भ हुआ। अध्ययन आरम्भ होने के पश्चात इसकी प्रसिद्धि सत्रहवीं शताब्दी के अन्त में और अठारवीं शताब्दी के आरम्भ में मानी जाती है । उनमें ताडपत्र, भोजपत्र, ताम्रपत्र और सुवर्णपत्र आदि प्रसिद्ध प्रकार हैं । वर्तमान में सर्वाधिक मातृकाग्रन्थ भोजपत्रों और ताडपत्रों में प्राप्त होते हैं । ताडपत्र लौह लेखनी से लिखे जाते थे। इस समस्त संसार में ज्ञानियों और पण्डितों का देश एकमात्र भारत ही है, जहाँ विपुल ज्ञानसम्पदा हस्तलिखित ग्रन्थों के रूप में सुरक्षित है।

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इतिहास धरोहर है। धरोहरों का अकूत और अनमोल खजाना बिहार में भरा पड़ा है। राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन की शोध टीम ने राज्य के मुजफ्फरपुर, मोतिहारी और दरभंगा जिले के कुछ निजी पुस्तकालयों में सर्वेक्षण के दौरान ऐसी दुर्लभ हस्तलिखित पांडुलिपियों की खोज करने में कामयाबी हासिल की है, जो बोरे और टीन के बक्से में बंद थीं।

पटना [दीनानाथ साहनी]। इतिहास धरोहर है। धरोहरों का अकूत और अनमोल खजाना बिहार में भरा पड़ा है। राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन की शोध टीम ने राज्य के मुजफ्फरपुर, मोतिहारी और दरभंगा जिले के कुछ निजी पुस्तकालयों में सर्वेक्षण के दौरान ऐसी दुर्लभ हस्तलिखित पांडुलिपियों की खोज करने में कामयाबी हासिल की है, जो बोरे और टीन के बक्से में बंद थीं।

शोध टीम के संयोजक विभाष कुमार के नेतृत्व में जब सदस्यों ने बोरे-बक्से से पांडुलिपियों को निकाला तो सब हैरान रह गए। मिट्टी की परत के बीच 'ताड़ पत्र' से लेकर 'वस्त्र' पर कई हस्तलिखित पांडुलिपियां मिलीं। करीब सवा सौ पृष्ठों की 'प्रभावती प्रणय' नामक पांडुलिपि ताड़ पत्र पर लिखी गई है, जो अब भी 70 फीसदी सुरक्षित है। मुगलकालीन लिपि में अंकित कई पांडुलिपियां 'वस्त्र' पर लिखी गई हैं। कुछ पांडुलिपियों पर कालखंड भी दर्ज है और उनके रचनाकार के नाम भी।

मोतिहारी के अरेराज प्रखंड के कमलुआ गांव निवासी सरस्वती रमण मिश्र के पास संग्रहित करीब 1000 पांडुलिपियां हैं। उनमें ऐसी दर्जन भर पांडुलिपियां हैं, जो डेढ़ हजार साल पुरानी हैं। इसी प्रकार मुजफ्फरपुर स्थित रामचंद्र शाही संग्रहालय में ऐसी पांडुलिपियां मिली हैं, जो इतिहास में दफन कई रहस्यों पर से पर्दा उठा सकती हैं। दरभंगा के चंद्रधारी संग्रहालय में भी करीब 200 दुर्लभ पांडुलिपियां पाई गई हैं। ये पांडुलिपियां बोरे में बंद होकर दीमक का हमला झेल रही थीं। ज्यादातर पांडुलिपियां मिथिला अक्षर संस्कृत और बांग्ला भाषा में हैं। संस्कृत, अरबी, फारसी, पाली व बांग्ला भाषा में प्राप्त पांडुलिपियों के बारे में जानकारी के लिए इतिहासकारों से मदद ली जा रही है।

विभाष कुमार ने बताया कि ऐसी जीर्ण-शीर्ण पांडुलिपियों को माइक्रो-फिल्मिंग डिजिटलाइजेशन करके ही सुरक्षित बचाया जा सकता है। फिलहाल प्राप्त पांडुलिपियों की कंडीशन रिपोर्ट तैयार करने का काम चल रहा है। इसे पेजिनेशन, इंक टेस्ट, डिवाइडिंग और फिर टिशू पेपर में लेमिनेशन किया जाएगा।

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Written By Answer By Rjwala Monday, 13 September 2021 Add Comment

सवाल: पांडुलिपि किस पर लिखी जाती है?

पांडुलिपियों को चर्मपत्र और अन्य चर्मपत्र, पपीरस और कागज पर तैयार किया गया था। रूस में 11 वीं शताब्दी से पुराने बर्च की छाल के दस्तावेज बच गए हैं। भारत में, ताड़ के पत्ते की पांडुलिपि, एक विशिष्ट लंबी आयताकार आकृति के साथ, प्राचीन काल से 19 वीं शताब्दी तक उपयोग की जाती थी।

पांडुलिपियां निम्न में से किस पर लिखी जाती थी - paandulipiyaan nimn mein se kis par likhee jaatee thee

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पांडुलिपियां निम्न में से किस पर लिखी जाती थी - paandulipiyaan nimn mein se kis par likhee jaatee thee

पाण्डुलिपि या मातृकाग्रन्थ एक हस्तलिखित ग्रन्थविशेष है । इसको हस्तप्रति, लिपिग्रन्थ इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। आङ्ग्ल भाषा में यह Manuscript शब्द से प्रसिद्ध है इन ग्रन्थों को MS या MSS इन संक्षेप नामों से भी जाना जाता है। हिन्दी भाषा में यह 'पाण्डुलिपि', 'हस्तलेख', 'हस्तलिपि' इत्यादि नामों से प्रसिद्ध है । ऐसा माना जाता है कि सोलहवीं शताब्दी (१६) के आरम्भ में  विदेशियों के द्वारा संस्कृत का अध्ययन आरम्भ हुआ । अध्ययन आरम्भ होने के पश्चात इसकी प्रसिद्धि  सत्रहवीं शताब्दी के अन्त में और अठारवीं शताब्दी के आरम्भ में मानी जाती है । उस कालखण्ड में  भारत में  स्थित मातृकाग्रन्थों का अध्ययन एवं संरक्षण विविध संगठनों के द्वारा किया गया ।

पाण्डुलिपि (manuscript) उस दस्तावेज को कहते हैं जो एक व्यक्ति या अनेक व्यक्तियों द्वारा हाथ से लिखी गयी हो। जैसे हस्तलिखित पत्र। मुद्रित किया हुआ या किसी अन्य विधि से, किसी दूसरे दस्तावेज से (यांत्रिक/वैद्युत रीति से) नकल करके तैयार सामग्री को पाण्डुलिपि नहीं कहते हैं।

पाण्डुलिपि अपनी रक्षा के लिये क्या कहती है, देखें-

जलाद्रक्षेत्तैलाद्रक्षेद्रक्षेच्छिथिलबन्धनात्। मूर्खहस्ते न मां दद्यादिति वदति पुस्तकम् ॥( मुझे जल से, तेल से, ढ़ीले बन्धन (बाइंडिंग) से बचायें। मुझे मूर्ख के हाथ में नहीं थमाना चाहिये - ऐसा पुस्तक कहता है।

इतिहास[संपादित करें]

मातृकाग्रन्थों का मुख्य उद्देश्य भारतीयज्ञान की अतिप्राचीन परम्परा का संरक्षण है । वेदों के  गंभीर ज्ञान से लेकर पञ्चतन्त्र की बालकथाओं तक संस्कृत में विषय-विविधता विद्यमान है। हजारों वर्षों से सङ्कलित और संरक्षित यह ज्ञान युगों युगों से चला आ रहा है । अंत: मातृकाग्रन्थों या पाण्डुलिपियों  का इतिहास ही भारतीयपरम्परा का  इतिहास माना जाता है । बल-विक्रम और आयु के साथ कालान्तर में मनुष्य की स्मृतिशक्ति का ह्रास हुआ । जिस  ह्रास के कारण ज्ञान का और शोधप्रबन्धों का रक्षण करने के लिए मातृकाग्रन्थों की  वैज्ञानिक  पद्धति का उपयोग आरम्भ हुआ । मातृकाग्रन्थ अनेक प्रकार के होते हैं , परन्तु उनमें ताडपत्र, भोजपत्र, ताम्रपत्र और सुवर्णपत्र आदि  प्रसिद्ध प्रकार हैं । वर्तमान में सर्वाधिक मातृकाग्रन्थ भोजपत्रों और ताडपत्रों में प्राप्त होते हैं । ताडपत्र लौह लेखनी से लिखे जाते थे । मातृकाग्रन्थों के लेखन में  विशिष्ट साधन और कौशल की अपेक्षा होती है । मातृकाग्रन्थ के लेखक विद्वान और कलाओं से पूर्ण (कुशल) होने चाहिए । जर्मनी देश के वेद विद्वान  मैक्समूलर (१८२३-१९००) ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि "इस समस्त संसार में ज्ञानियों और  पण्डितों का देश एकमात्र भारत ही है, जहाँ विपुल ज्ञानसम्पदा हस्तलिखित ग्रन्थों के रूप में सुरक्षित है "।

सूचिप्रकाशन[संपादित करें]

आरम्भ में संस्कृत मातृकाग्रन्थों का संरक्षण 'रॉयल एशियाटिक सोसायटी' संस्था और 'इण्डिया ऑफिस्' संस्था के द्वारा हुआ । १७८४ ई.में 'रॉयल एशियाटिक सोसाइटी' संस्था की स्थापना हुयी । उस संस्था के द्वारा भारत में विद्यमान मातृकाग्रन्थों का सङ्कलन कार्य प्रारंभ हुआ ।इस संस्था के ग्रन्थ-सङ्ग्रह की सूची १८०७ ई. में लन्दन से प्रकाशित हुयी । उस सूची के मुख्यसम्पादक सर विलियम जोन्स और लेडी जोन्स थे । हेनरी टामस कोलब्रुक (१७६५-१८३७ ई.) को १८०७ ई. में 'एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल'-संस्था के सभापति के रूप में नियुक्त किया गया । उन्होंने अपने कार्यकाल में अनेक मातृकाग्रन्थों को संरक्षित की । उनके द्वारा लिखित शोधपूर्ण विवरणिका आज भी लन्दन में सुरक्षित है । उनका अनुसरण करते हुए अन्य विद्वानों ने १८१७-१९३४ के मध्य विभिन्न ग्रन्थ-सङ्ग्रहों को प्रकाशित किया । उस कार्य में मुख्य व्यक्ति पं. हरप्रसाद शास्त्री माने जाते हैं । आठवें भाग का सम्पादन १९३४-४० के मध्य श्री चिन्ताहरण चक्रवर्ती ने किया । दशवें भाग का सम्पादन १९४५ में श्रीचन्द्रसेनगुप्त ने किया ।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • पाण्डुलिपिविज्ञान
  • पाण्डुलिपियों की सूची
  • राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन
  • चर्मपत्र
  • तालपत्र
  • ताम्रपत्र
  • भांडारकर प्राच्य शोध संस्थान
  • संचयन

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन (National Mission for Manuscripts) का जालस्थल
  • Indian Manuscripts -- Largest Online Collection of Indian Manuscripts & Antique Books
  • संस्कृत पांडुलिपियों का संरक्षण जरूरी
  • छत्तीसगढ़ में प्राप्त पांडुलिपियाँ[मृत कड़ियाँ]
  • ‘Sanskrit manuscripts should be declared national asset’
  • The Sarasvati Mahal Library, has the richest collection of manuscripts in Sanskrit, Tamil, Marathi and Telugu
  • British Library Glossary of manuscript terms, mostly relating to Western medieval manuscripts
  • Centre for the History of the Book, University of Edinburgh
  • Chinese Codicology
  • Manuscripts Department, University of North Carolina at Chapel Hill
  • The Schøyen Collection - the world's largest private collection of manuscripts of all types, with many descriptions and images
  • Manuscript Catalog
  • sanskrit manuscript

पांडुलिपि कहाँ लिखी गई थी?

यह ताड़ के पत्ते पर लिखी गई है. 1869 में जब यह पुस्तकालय खुला था तभी ये दूसरी पांडुलिपियों के साथ यहां आई थी." उन्होंने बताया कि इस लाइब्रेरी में ताड़ के पत्ते पर लिखी 50180 पांडुलिपियां, कागज़ पर लिखी 22134 और ताम्रपत्रों पर लिखी 26556 संदर्भ पुस्तकें (रेफ़रेन्स बुक) हैं."

पांडुलिपि कैसे लिखी जाती है?

पाण्डुलिपि (manuscript) उस दस्तावेज को कहते हैं जो एक व्यक्ति या अनेक व्यक्तियों द्वारा हाथ से लिखी गयी हो। जैसे हस्तलिखित पत्र। मुद्रित किया हुआ या किसी अन्य विधि से, किसी दूसरे दस्तावेज से (यांत्रिक/वैद्युत रीति से) नकल करके तैयार सामग्री को पाण्डुलिपि नहीं कहते हैं।

पांडुलिपि कब लिखी गई थी?

लगभग ३०० ईसापूर्व का तमिल तालपत्र ताड़ (ताल) के सूखे पत्तों पर लिखी पाण्डुलिपियाँ तालपत्र कहलाती हैं। पाण्डुलिपि के लिये तालपत्र का उपयोग एशिया के कुछ भागों (मुख्यत: भारत) में १५वीं शती ईसापूर्व तक मिलता है। आरम्भ में ज्ञान मौखिक रूप से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानान्तरित होता था।

पांडुलिपि तैयार करने के कितने चरण होते हैं?

Solution : पांडुलिपि तैयार करने के चार चरण निम्नलिखित हैं <br> 1. कागज तैयार करना। <br> 2. लेखन कार्य।