शैक्षिक निर्देशन की इन परिभाषाओं में इसकी विशेषताओं, कार्यो एवं उद्धेश्यों का उल्लेख किया गया है। शैक्षिक निर्देशन की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं- Show
इन परिभाषाओं के विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि शैक्षिक निर्देशन भी छात्र के विकास में सहायक होती है तथा शिक्षा प्रक्रिया का अभिन्न अंग है। शिक्षा सम्बन्धी सभी प्रकार की समस्याओं के समाधान में सहायक होती है।
शैक्षिक निर्देशन की आवश्यकतावैज्ञानिक एवं औद्योगिक प्रगति तथा मनोवैज्ञानिक अनुसंधानों के पफलस्वरुप, शैक्षिक जगत में अनेक नवीन परिवर्तन दृष्टिगोचर हुए हैं। शिक्षा के उद्धेश्यों, शिक्षण अधिगम की व्यवस्था तथा अनुदेशन की प्रक्रिया में इन परिवर्तनों को प्रत्यक्ष रूप में देखा जा सकता है। इसमें सन्देह नहीं है कि वर्तमान विद्यालयों में अध्यनन करने वाले विद्यार्थियों के समक्ष आज अपेक्षावृफत अधिक समस्याए उपस्थित होती हैं। इन समयाओं के समाधान के लिए शैक्षिक निर्देशन का उपयोग आवश्यक है संक्षेप में शैक्षिक निर्देशन की आवश्यकता अग्रलिखित दृष्टियों से है-
विभिन्न स्तरों पर शैक्षिक निर्देशनशिक्षा के प्रत्येक स्तर पर किसी न किसी प्रकार की समस्याओं का विद्यार्थियों के समक्ष उपस्थित होना स्वाभाविक है। यही कारण है कि शिक्षा के प्रत्येक स्तर पर निर्देशन का महत्व है। जोन्स के अनुसार-निर्देशन सम्पूर्ण शैक्षिक कार्यव्म का अभिन्न अंग है। सुधारात्मक क्षमताओं की अपेक्षा यह सकारात्मक कार्य के रूप में सेवा करता है और अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए बालक के विद्यालय से प्रथम सम्पर्वफ स्थापित होने से लेकर, जब तक कि वह किसी वृनि में नियुक्त नहीं हो जाता, निरन्तर एक प्रक्रिया स्तर पर निर्देशन के कार्यो का निर्धारण किया गया है। प्राथमिक स्तर पर निर्देशनप्राथमिक स्तर के बालकों को अन्य स्तरों की अपेक्षा अधिक एवं सतत् निर्देशन की आवश्यकता होती है। परिवार के मुक्त वातावरण से पाठशाला का जीवन सर्वथा भिन्न होता है। इस स्तर पर आत्मानुशासन की प्रवृनि का विकास एवं पर्याप्त बोध गम्यता विकास सहज में ही सम्भव नहीं होता है अत: पग-पग पर बालक के समक्ष आने वाली समस्याओं का समाधान तथा अधिगम की दिशा में उसकी रूचि को निरन्तर बनाए रखना आवश्यक होता है। यह एक ऐसा स्तर होता है जब बालक के प्रत्येक व्यवहार एवं प्रत्येक जिज्ञासा का मयान रखा जाना चाहिए। बालकों के प्रति अनपेक्षित कठोर व्यवहार उनमें स्थायी रूप से भय का संचार कर सकता है। उनके प्रति उपेक्षा का भाव उन्हें अनेक प्रकार के दुराभ्यासों का प्रतिवूफल प्रभाव पड़ सकता हैं तथा वह कुसमायोजन की प्रवृनि हो सकती है।
प्रत्येक विद्यार्थी का बौद्धिक स्तर, रूचि, अभिरुचि एक दूसरे से भिन्न होती हैं। वांछित अधिगम की दिशा में सफलता प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक होता है कि प्रत्येक विद्यार्थी को उसके अनुरूप विषयों के अध्यनन का अवसर प्राप्त हो। माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक स्तर पर शैक्षिक निर्देशनइस स्तर पर अपेक्षाकृत अधिक योग्यता वाले निर्देशन प्रदाताओं की आवश्यकता होती है। इसका कारण यह है कि इन स्तरों का पाठ्यक्रम बहुविधि एवं अधिक विस्तृत होता है। साथ ही नवीं कक्षा में पहुचने से पूर्व विषयों के चयन की समस्या भी छात्रों के समक्ष उपस्थित होती है। भावी प्रगति के सन्दर्भ में इस समस्या के समाधान का अपना विशिष्ट महन्व होता है और इस दिशा में निर्देशन ही अधिक उपयोगी होता है क्योंकि प्राथमिक विद्यालयों की शिक्षा प्रणाली के विपरीत, इस स्तर पर एक साथ कई शिक्षकों को छात्रों की प्रगति से सम्बन्धित उनरदायित्वों का निर्वाह करना होता है। इसके अतिरिक्त निर्देशन के व्यावसायिक पक्ष पर भी इस स्तर पर बल दिया जाता है, क्योंकि अब छात्रों में भावी व्यवसाय के सन्दर्भ में भी विचार प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है। इस स्तर पर निर्देशन कार्यो से सम्बन्धित प्रमुख क्रियाए हैं-
माध्यमिक शिक्षा के उपरान्त शैक्षिक निर्देशनशैक्षिक निर्देशन का महत्व प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक स्तर पर ही अधिक होता हैं। इसके उपरान्त अध्यनन करने वाले विद्यार्थियों की संख्या एवं शैक्षिक समस्याए अपेक्षाकृत कम होती है। अधिगम एवं शैक्षिक सम्बोधित से सम्बन्धित समस्याओं के समाधान में छात्र स्वयं सक्षम हो चुके होते हैं। उनकी समस्याए वैयक्तिक, सामाजिक एवं व्यावसायिक पक्ष से अधिक सम्बन्धित होती है, फिर भी भावी अध्यनन के अवसरों अध्यनन केन्द्रों, वांछित पुस्तकों की सम्बोधित आदि के सन्दर्भ में निर्देशन प्रदान किया जा सकता है। इस स्तर से सम्बन्धित, अनेक समस्याए इस प्रकार की होती हैं। जिनको व्यावसायिक निर्देशन के क्षेत्र में रखा जा सकता है और व्यावसायिक निर्देशन सेवाओं के आधार पर ही इन समस्याओं के समाधान के लिए सहायता प्रदान की जा सकती है। शैक्षिक निर्देशन के उद्देश्यव्यक्ति के शैक्षिक परिवेश एवं उसमें प्राप्त सम्भावनाओं, अपेक्षाओं एवं विशेषताओं से, शैक्षिक निर्देशन का सम्बन्ध होता है। आज हमारे देश के विद्यालयों, महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में पाठ्यचर्याओं, पाठ्यक्रमों एवं अधिगम के सामानों का प्रावधान किया है, वह अपनी विभिन्नता की दृष्टि से विशेषता रखती हैं। इसके साथ ही, उनसे लाभ प्राप्त कर सकने वाले विद्यार्थियों की, क्षमताओं, योग्यताओं, प्रवणताओं एवं अभिवृनियों इत्यादि की उपेक्षा को मयान में रखकर भी उनमें भिन्नता दिखलाई देती है।
शैक्षिक निर्देशन के उपरोक्त उद्धेश्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि शैक्षिक निर्देशन का मुख्य उद्धेश्य, विद्यार्थियों में अपेक्षित संवेदनशीलता एवं जागरूकता उत्पन्न करना है, जिससे वे उपयुक्त एवं उचित प्रकार के अभिकरणों, संसामानों एवं अधिगम-लक्ष्यों का चयन स्वयं ही कर सके। शैक्षिक मार्गदर्शन का मुख्य उद्देश्य क्या है?शैक्षिक निर्देशन के उद्देश्य
विद्यार्थियों को अपनी योग्यता, प्रवणता एवं रूचि के अनुसार पाठ्यक्रमों के चयन में तथा उनके लिए अपेक्षित तैयारी में सहायता करना। छात्रों को, राष्टींय एवं राज्य स्तरों पर आयोजित, विभिन्न प्रकार की प्रतियोगी परीक्षाओं हेतु अपेक्षित तत्परता व तैयारी के सम्बन्ध में, आवश्यक सूचनाए प्रदान करना।
शैक्षिक मार्गदर्शन क्या है शैक्षिक मार्गदर्शन के उद्देश्य आवश्यकता और महत्व का वर्णन करें?शैक्षिक निर्देशन के उद्देश्य
विद्यार्थियों की रुचि योग्यता एवं साथियों के अनुसार शिक्षा की योजना तैयार करना तथा उचित पाठ्यक्रमों को चुनने में विद्यार्थी की सहायता करना। शिक्षण संस्थाओं से संबंधित कर्मचारियों, आवश्यक पाठ्यक्रम एवं प्रशासनिक प्रबंध ने परिवर्तनों का सुझाव देना।
शैक्षिक मार्गदर्शन से आप क्या समझते हैं?शैक्षिक-निर्देशन की परिभाषाएँ (shaikshik nirdeshan ki paribhasha) जोन्स के अनुसार," शैक्षिक निर्देशन वह व्यक्तिगत सहायता है, जो छात्रों को इसलिए दी जाती है कि वे अपने लिए उपयुक्त विद्यालय, पाठ्यक्रम, पाठ्य विषय तथा अन्य क्रियाओं का चयन कर सकें और उनमें समायोजित हो।"
निर्देशन का मुख्य उद्देश्य क्या है?निर्देशन का प्रमुख उद्देश्य व्यक्ति का विकास है। व्यक्ति की आत्म विवेचन एवं आत्मविज्ञता को बढ़ाना। अपने व्यक्तित्व के सकारात्मक एवं नकारात्मक पक्षो, गुणों एवं सीमाओं प्रतिमाओं तथा न्यूनताओं को स्वयं समझने की क्षमता विकसित करना। व्यक्ति को अपनी आवश्यकताओं, क्षमताओं,रूचियों एवं आकर्षणों के विषय में उचित समझ विकसित करना।
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