एक समान बाह्य क्षेत्र में द्विध्रुव - ek samaan baahy kshetr mein dvidhruv

वैद्युत द्विध्रुव (इलेक्ट्रिक डाइपोल) वह निकाय (सिस्टम) है जिसमे दो बराबर परन्तु विपरीत प्रकार के बिन्दु आवेश एक-दूसरे से अल्प दूरी पर स्थित होते हैं। किसी एक आवेश तथा दोनो आवेशों के बीच की दूरी के गुणनफल को वैद्युत द्विध्रुव आघूर्ण (electric dipole moment) p कहते हैं। वास्तव में वैद्युत द्विध्रुव आघूर्ण उस निकाय में हुए आवेशों के ध्रुवीकरण को मापता है और अन्तर्राष्ट्रीय इकाई प्रणाली में इसकी इकाई कूलम्ब-मीटर है।[1][2]

प्रकृति मे विभिन्न स्थितियों मे वैद्युत द्विध्रुव प्रकट होता है। दोनो आवेशो को मिलाने वाली रेखा को द्विध्रुव की अक्ष कहते हैं। यदि वैद्युत द्विध्रुव के दोनो आवेश -q तथा +q कूलॉम हों तथा उनके बीच की दूरी 2l मीटर हो तब वैद्युत द्विध्रुव का आघूर्ण ( p = q.2l) होता है। वैद्युत द्विध्रुव आघूर्ण एक सदिश है जिसकी दिशा प्रायः ऋणात्मक आवेश से धनात्मक आवेश की तरफ लिया जाता है।

यदि दो बराबर के बिन्दु आवेश (चार्ज) हों - एक ऋणात्मक और दूसरा धनात्मक - जिन्हें +q और −q लिखा जाये और उन दोनों के बीच का (ऋणात्मक से धनात्मक दिशा में जाता हुआ) विस्थापन सदिश (डिसप्लेसमेंट वेक्टर) d हो, तो अगर विद्युत द्विध्रुव आघूर्ण को p द्वारा दिखाया जाये तो वह इस प्रकार होगा:

p=qd{\displaystyle \mathbf {p} =q\mathbf {d} }

इसमें p की दिशा भी ऋणात्मक से धनात्मक की ओर होगी।

यदि बहुत से बिन्दु आवेश हों तो उनका विद्युत द्विध्रुवाघूर्ण निम्नलिखित तरीके से परिभाषित किया जाता है-

 (torque on a dipole in a uniform electric field in hindi) एक समान विद्युत क्षेत्र में द्विध्रुव पर बलाघूर्ण  , एक समान व असमान  वैद्युत क्षेत्र में वैद्युत द्विध्रुव पर बल आघूर्ण:

माना एक विद्युत द्विध्रुव AB है जो एक समान विद्युत क्षेत्र में उपस्थित है , विद्युत द्विध्रुव AB , θ कोण पर चित्रानुसार रखा गया है।

एक समान बाह्य क्षेत्र में द्विध्रुव - ek samaan baahy kshetr mein dvidhruv

विद्युत द्विध्रुव के +q आवेश पर विद्युत क्षेत्र की दिशा में एक बल लगता है जिसका मान F = qE होगा , तथा विद्युत द्विध्रुव के -q आवेश पर विद्युत क्षेत्र की दिशा के विपरीत एक बल लगता है जिसका मान F = -qE होगा। अतः विद्युत द्विध्रुव पर लगने वाला परिणामी या कुल बल

F (कुल) = qE + (-qE) = 0

अतः एक समान विद्युत क्षेत्र में द्विध्रुव पर लगने वाला बल शून्य होगा , अतः विद्युत द्विध्रुव गति नहीं करेगा।

लेकिन -q तथा +q पर लगने वाला बल संरेखी नहीं है अतः विद्युत द्विध्रुव पर एक बलयुग्म बनता है जो द्विध्रुव को विद्युत क्षेत्र की दिशा में संरेखित करने की कोशिश करता है।

बल आघूर्ण = किसी एक आवेश पर लगने वाला बल x बलों की क्रिया रेखा के मध्य की लंबवत दूरी

Torque (τ)बल आघूर्ण बल आघूर्ण = qE (BC)

चित्र से

BC = 2a Sinθ

अतः सूत्र में BC का मान रखने पर 

Torque (τ) बल आघूर्ण = qE (2a Sinθ)

चूँकि 

p = 2qa 

अतः 

Torque (τ) बल आघूर्ण = E p Sinθ

बलाघूर्ण को सदिश रूप में निम्न प्रकार लिखा जा सकता है।

एक समान बाह्य क्षेत्र में द्विध्रुव - ek samaan baahy kshetr mein dvidhruv

special case :

1. जब θ = 0

 Sinθ  = 0

Torque (τ) = E p Sin0 = 0 

अतः द्विध्रुव स्थायी साम्यावस्था में स्थित है। 

2. जब θ = 180

 Sin180  = 0

Torque (τ) = E p Sin180  = 0 

अतः द्विध्रुव अस्थायी साम्यावस्था में स्थित है।

3. जब θ = 90

 Sin90   = 1

Torque (τ) = E p  

इस स्थिति में (θ = 90) बलाघूर्ण का मान अधिकतम होता है। 

विद्युत क्षेत्र में विद्युत द्विध्रुव :

(1) समरूप विद्युत क्षेत्र में द्विध्रुव पर लगने वाले बल युग्म का आघूर्ण :-

एक समरूप वैद्युत क्षेत्र में एक वैद्युत द्विध्रुव θ विक्षेप की स्थिति में दिखाया गया है। द्विध्रुव के आवेशो +q एवं -q पर लगने वाले विद्युत बल qE परिमाण में , समान व दिशा में विपरीत है और दोनों की क्रिया रेखाएँ अलग है। अत: ये दोनों बल बलयुग्म बनाते है , इस बल युग्म का आघूर्ण –

T = बल x बलों की क्रिया रेखाओं के मध्य की दूरी

या

T = qE x BC

चित्र से , BC/AB = sinθ

या

BC = AB.sinθ

या

BC = 2l.sinθ

अत: T = qE x  2l.sinθ

T = q.2l.Esinθ

T = pEsinθ न्यूटन x मीटर

चित्र की सहायता से सदिश रूप में बल युग्म के आघूर्ण को निम्न तरह से लिखा जा सकता है –

T = p x E (सदिश चिन्ह के साथ है सभी राशियाँ)

सदिश T की दिशा दक्षिणावर्त पेंच के नियम के अनुसार सदिश p एवं E के तल के लम्बवत होती है।

स्थिति 1 : जब θ = 0 तो sinθ =  0

अत: T = pEsinθ = 0

या

T = 0

यह स्थायी संतुलन की अवस्था होती है।

स्थिति 2 : जब θ = 90 तो sinθ = 1

अत: T = pEsinθ = pE

यह बल आघूर्ण का अधिकतम मान है।

स्थिति 3 : T = pEsinθ

यदि विद्युत क्षेत्र E = 1 न्यूटन/कुलाम , θ = 90 तो sinθ = 1

तो T = p

अर्थात वैद्युत द्विध्रुव आघूर्ण उस बलयुग्म के आघूर्ण के तुल्य है जो द्विध्रुव पर तब कार्य करता है जब वह एकांक तीव्रता के समरूप वैद्युत क्षेत्र में क्षेत्र के लम्बवत रखा होता है।

एक असमान वैद्युत क्षेत्र में रखे वैद्युत द्विध्रुव का व्यवहार क्या होगा?

Solution : (i) वैद्युत द्विध्रुव पर एक परिणामी बल लगेगा जिससे यह एक परिणामी बल की दिशा में गति करेगा। (ii) वैद्युत द्विध्रुव पर एक बल-युग्म तथा एक बल लगेगा जिससे इसमें स्थानांतरीय व घूर्णन दोनों प्रकार की गतियाँ होगी।

एक समान विद्युत क्षेत्र में विद्युत द्विध्रुव पर बल कितना होता है?

Solution : एक समान विद्युत क्षेत्र में विद्युत द्विध्रुव पर परिणामी बल शून्य होता है।

द्विध्रुव का विद्युत क्षेत्र कितना होता है?

तथा विद्युत द्विध्रुव आघूर्ण की विमा = M 0L 1T 1A 1 होती है। विद्युत द्विध्रुव के उदाहरण : HCl ध्रुवी अणु है जिसमे एक H + तथा दूसरा Cl आयन परस्पर विद्युत आकर्षण बल से बंधे रहते है , दोनों आवेश के मध्य लगभग 10 -11 m की दूरी होती है जो की अल्प है अतः यह एक विद्युत द्विध्रुव का निर्माण करते है।

द्विध्रुव आघूर्ण क्या है उदाहरण दीजिए?

द्विध्रुव आघूर्ण : किसी ध्रुवीय अणु में किसी एक परमाणु पर उपस्थित आवेश की मात्रा (q या e) तथा दोनों परमाणुओं के नाभिकों के मध्य की दूरी (d या r) के गुणनफल को द्विध्रुव आघूर्ण कहते है। इसे μ से व्यक्त करते है। द्विध्रुव आघूर्ण की इकाई “डिबाई” होती है जिसे D से व्यक्त करते है। यहाँ e.s.u = स्थिर विद्युत मात्रक।