राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां कितनी है - raashtrapati kee aapaatakaaleen shaktiyaan kitanee hai

भारत के राष्ट्रपति देश के औपचारिक प्रधान होते है| उन्हें औपचारिक रूप से अनेक कार्यकारी, विधायी, वित्तीय, न्यायिक आदि शक्तियां प्राप्त होती है| इन शक्तियों में राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां यानि इमरजेंसी पॉवर प्रमुख है| राष्ट्रपति इन इमरजेंसी पॉवर का प्रयोग प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रीमंडल के सलाह पर करते है| हम इस लेख में राष्ट्रपति को कौन-कौन से आपातकालीन शक्तियां प्राप्त है और वह किस स्थिति में इमरजेंसी की घोषणा करते है, इसका भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार के साथ ही अन्य चीजों पर क्या प्रभाव होता है आदि बातों पर चर्चा कर रहे है| राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां: राष्ट्रीय आपात, राष्ट्रपति शासन और वित्तीय आपातकाल

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राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां कितनी है - raashtrapati kee aapaatakaaleen shaktiyaan kitanee hai
राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां कितनी है - raashtrapati kee aapaatakaaleen shaktiyaan kitanee hai

भारत के राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां क्या है – What is Emergency Power of Indian President in Hindi.

भारतीय संविधान के भाग 18 में अनुच्छेद 352 से 360 तक में भारतीय राष्ट्रपति के आपातकालीन शक्तियां से संबंधित प्रावधान दिए गए है| इसके अनुसार देश की संप्रभुता, एकता, अखंडता, लोकतांत्रिक राजनैतिक व्यवस्था तथा संविधान की सुरक्षा से संबंधित किसी असामान्य स्थिति में केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रपति के नाम पर कुछ विशेष आपातकालीन प्रावधान पूरे देश या देश के किसी क्षेत्र में लगाये जा सकते है|

आपातकालीन शक्तियां या प्रावधान असामान्य परिस्थितियों के मद्देनजर बनायीं गयी विशेष व्यवस्था होती है| इसकी प्रमुख विशेषता की बात की जाये तो इसमें केंद्र सरकार सर्वाधिक शक्तिशाली हो जाती है और सभी राज्य केंद्र के पूर्ण नियंत्रण में आ जाते है|

भारत राज्यों के संघीय व्यवस्था का एक बेजोड़ उदाहरण वाला देश है| सामान्य दिनों के लिए, भारतीय संघीय व्यवस्था में, राज्यों एवं केंद्र के बीच विषय का बंटवारा किया गया है| जहाँ रेल, डाक, तार, बाह्य सुरक्षा, सेना जैसी विषय केंद्र सरकार के अधीन दी गयी है वहीँ कृषि, लॉ एंड आर्डर, पुलिस आदि आंतरिक विषयों को राज्य सरकार को सौंपी गयी है| लेकिन आपात काल के लागू होने के बाद संघीय व्यवस्था की यह विशेषता गौण हो जाती है और आपातकाल के प्रकृति के अनुसार सभी विषय केंद्र सरकार के पास स्थानान्तरित हो जाती है|

आपातकाल का नागरिकों के ऊपर भी प्रभाव हो सकता है और यह प्रभाव कैसी और किस हद तक होगी यह भी आपातकालीन के प्रकृति पर निर्भर करती है| आपातकाल के प्रकृति से तात्पर्य है कि विभिन्न तरह के आपातकाल, जिसकी चर्चा हम इस लेख में आगे करेंगें, का अलग-अलग प्रभाव होता है|

आपातकाल के तहत बनाये गए प्रावधान केंद्र को किसी भी असामान्य स्थिति से प्रभावी रूप से निपटने में सक्षम बनाते है| यह देश की संप्रभुता, अखंडता, एकता के साथ ही लोकतंत्र और संविधान के रक्षक की भूमिका का निर्वहन करता है| भारतीय संविधान के भाग 18 में अनुच्छेद 352 से 360 तक में आपातकालीन से संबंधित प्रावधानों की चर्चा मिलती है|

भारतीय संविधान के भाग 18 में भारतीय राष्ट्रपति की तीन आपातकालीन शक्तियों के बारे में जानकारी मिलती है: राष्ट्रीय आपातकाल, राष्ट्रपति शासन और वित्तीय आपातकाल| आइये इन तीनों आपातकालीन प्रावधानों के बारे में एक एक कर समझने का प्रयास करते है|

राष्ट्रीय आपातकाल: अनुच्छेद 352 – National Emergency in Hindi

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 में राष्ट्रीय आपातकाल या नेशनल इमरजेंसी से संबंधित प्रावधानों की चर्चा की गयी है| आइये इससे संबंधित प्रमुख पहलुओं को समझते है|

  • राष्ट्रीय आपात की घोषणा कब की जाती है
  • नेशनल इमरजेंसी की घोषणा कौन करता है?
  • राष्ट्रीय आपात कब तक लागू रहता है?
  • राष्ट्रीय आपात का प्रभाव क्या होता है?

राष्ट्रीय आपात की घोषणा कब और कहाँ की जाती है?

यदि सम्पूर्ण भारत में अथवा भारत के किसी भाग में युद्ध, बाह्य आक्रमण अथवा सशस्त्र विद्रोह शुरू हो गया हो या फिर ऐसा शुरू हो सकने की पुरजोड़ संभावना हो तो उस क्षेत्र में अथवा पूरे देश में राष्ट्रीय आपात की घोषणा की जा सकती है|

ऐसे में हम कह सकते है कि केवल यथार्थ ही नहीं बल्कि आशंका के आधार पर भी नेशनल इमरजेंसी की घोषणा की जा सकती है| दूसरे, ध्यान दें कि इसे पूरे देश में एक साथ या देश के किसी खास भाग में भी लागू किया जा सकता है|

नेशनल इमरजेंसी की घोषणा कौन करता है?

नेशनल इमरजेंसी यानी कि राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा राष्ट्रपति द्वारा मंत्री परिषद् के लिखित संस्तुति के बाद की जाती है| ध्यान देने योग्य बात है कि राष्ट्रपति ऐसी उद्घोषणा केवल मंत्री परिषद् की लिखित सिफारिश प्राप्त होने पर ही कर सकता है|

44 वें संविधान संसोधन अधिनियम 1978 के पूर्व ऐसी उद्घोषणा प्रधानमंत्री के सलाह पर भी की जा सकती थी लेकिन 44 वें संविधान संसोधन अधिनियम 1978 द्वारा इस बात को तय किया गया कि इसके लिए मंत्री परिषद् की लिखित सिफारिश होनी चाहिए|

राष्ट्रीय आपात कब तक लागू रहता है?

राष्ट्रीय आपात घोषित किये जाने के एक माह के भीतर इसे संसद से अनुमोदित किया जाना आवश्यक है अन्यथा यह समाप्त हो जाएगा|

संसद के अनुमोदन के द्वारा राष्ट्रीय आपातकाल अवधि एक बार में 6 माह के लिए बढाया जा सकता है| इस तरह से इसे कितनी भी बार बढाया जा सकता है|

हालाँकि राष्ट्रपति इसे कभी भी वापस ले सकता है| और दुसरे लोकसभा में साधारण बहुमत से प्रस्ताव पारित करके भी इसे ख़त्म किया जा सकता है|

राष्ट्रीय आपात का प्रभाव क्या होता है?

राष्ट्रीय आपातकाल असाधारण परिस्थितयों से निपटने के लिए एक महत्वपूर्ण टूल है| इसका संघीय व्यवस्था, मौलिक अधिकार, संसद और विधानसभा के कार्यकाल आदि पर प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है| नेशनल इमरजेंसी का निम्नलिखित प्रभाव हो सकता है:

  • संघीय व्यवस्था पर प्रभाव
  • मौलिक अधिकारों पर प्रभाव
  • संसद और विधानसभा के कार्यकाल पर प्रभाव

राष्ट्रीय आपात का संघीय व्यवस्था पर प्रभाव

नेशनल इमरजेंसी के लागू होने के बाद संघीय व्यवस्था एकात्मक हो जाती है| इस समय केंद्र सरकार सर्वशक्तिमान हो जाती है| वह राज्य सरकार को किसी भी विषय पर कार्यकारी निर्देश दे सकता है| हालाँकि राज्य सरकार को बर्खास्त नहीं किया जाता लेकिन वह प्रभावहीन हो जाता है| संसद राज्य सूची के विषय पर भी कानून बना सकती है| राज्य सूची के विषय से तात्पर्य है कि वह सारे विषय जिस पर कानून बनाने की शक्ति राज्य सरकार को सौंपी गयी है|

इसके दौरान केंद्र द्वारा राज्य को प्रशासनिक शक्ति के प्रयोग के संदर्भ में निर्देश दिए जा सकते है| इसी तरह केंद्र एवं राज्यों के बीच कर के बंटवारे को बदला जा सकता है|

राष्ट्रीय आपात का मौलिक अधिकारों पर प्रभाव

नेशनल इमरजेंसी के दौरान मैलिक अधिकारों का भी निलंबन किया जा सकता है| इस बारे में संविधान के अनुच्छेद 358 एवं 359 में वर्णन मिलता है|

संविधान के अनुच्छेद 358 के अनुसार, जब राष्ट्रीय आपात की घोषणा की जाती है तो अनुच्छेद 19 में वर्णित मूल अधिकार समाप्त हो जाते है|

उल्लेखनीय है कि मूल अधिकार के अंतर्गत नागरिकों को कुछ मूलभूत अधिकार प्रदान किये है| संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 12 से 35 तक में विभिन्न मूल अधिकार की चर्चा की गयी है| इसमें अनुच्छेद 19 के अंतर्गत 6 स्वतंत्रता प्रदान किये गये है:

  • विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
  • शांतिपूर्ण और शस्त्ररहित सम्मलेन की स्वतंत्रता
  • संगठन बनाने और सहकारी संस्थाएं बनाने की स्वतन्त्रता
  • भारत में कही भी आने जाने की स्वतंत्रता
  • भारत में कहीं भी निवास या बस जाने की स्वतंत्रता
  • कोई भी पेशा या व्यवसाय अपनाने की स्वतंत्रता

अनुच्छेद 358 के अनुसार जब राष्ट्रीय आपात की घोषणा की जाती है तो अनुच्छेद 19 में वर्णित उपरोक्त मूल अधिकार समाप्त हो जाते है| हालाँकि 44 वें संविधान संसोधन अधिनियम 1978 के अनुसार केवल युद्ध अथवा बाह्य आक्रमण के समय लगाये आपातकाल के समय ही इसे लागू किया जा सकता है| यानी कि सशस्त्र विद्रोह के आधार पर लगाये इमरजेंसी के समय ऐसा नहीं किया जा सकता|

संविधान के अनुच्छेद 359 के अनुसार, राष्ट्रपति मूल अधिकार को समाप्त करने के संदर्भ में घोषणा कर सकता है| हालाँकि 1978 के 44 वें संविधान संसोधन अधिनियम के अनुसार राष्ट्रपति अनुच्छेद 20 तथा 21 में वर्णित मूल अधिकार पर प्रतिबन्ध नहीं लगा सकता| इस तरह अनुच्छेद 359 अनुच्छेद 20 तथा 21 को छोड़कर अन्य मूल अधिकारों के निलंबन से संबंधित है|

जहाँ अनुच्छेद 20 – अपराधी ठहराए जाने पर दोष सिद्धि के संबंध में संरक्षण का अधिकार है वहीँ अनुच्छेद 21 – भारत में किसी भी व्यक्ति को विधि के द्वारा स्थापित प्रक्रिया के बिना प्राण और दैहिक स्वतंत्रता से वंचित नहीं किये जा सकने का अधिकार है|

अगर सरल शब्दों में समझे तो, राष्ट्रीय आपातकाल के अंतर्गत अनुच्छेद 358 के द्वारा अनुच्छेद 19 में प्राप्त मूल अधिकार को आपातकाल की पूरी अवधि तक के लिए रोक दिया जाता है जबकि अनुच्छेद 359 के द्वारा अनुच्छेद 20 और 21 में वर्णित मूल अधिकारों को छोड़कर बाकी सभी मूल अधिकारों को राष्ट्रपति द्वारा उद्घोषित अवधि तक के लिए निलंबित किया जा सकता है|

राष्ट्रीय आपात का संसद और विधानसभा के कार्यकाल पर प्रभाव

साधारण समय में लोकसभा का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है| पांच साल पूरा होने पर लोकसभा विघटित हो जाती है और नये लोकसभा का चुनाव होता है| लेकिन जब राष्ट्रीय आपातकाल लागू हो तो लोकसभा का कार्यकाल बढाया जा सकता है|

इस दौरान लोकसभा का कार्यकाल एक बार में एक वर्ष के लिए बढ़ाया जा सकता है| हालाँकि इसे कितनी भी बार बढाया जा सकता है| गौर किया जाना चाहिए कि आपातकाल के समाप्त होने पर लोकसभा का कार्यकाल 6 माह से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता| इसी तरह राज्य विधानसभा का कार्यकाल भी एक बार में एक वर्ष के लिए और आपातकाल के ख़त्म होने के बाद 6 माह से अधिक नहीं बढाया जा सकता|

राष्ट्रपति शासन: अनुच्छेद 356 – President Rule in Hindi

राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां में राष्ट्रपति शासन भी मुख्य है| इसे राज्य आपातकाल या संवैधानिक आपातकाल भी कहा जाता है| संविधान निर्माताओं की सोच थी कि इसका प्रयोग बहुत कम किया जाएगा लेकिन यह अब तक का सबसे विवादित आपातकालीन प्रावधान बन चूका है| आइये इससे जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं को समझते है|

  • राष्ट्रपति शासन की घोषणा कब और क्यों की जाती है?
  • राष्ट्रपति शासन को देश के किस क्षेत्र में लगाया जा सकता है?
  • राष्ट्रपति शासन कब तक लागू रहता है?
  • राष्ट्रपति शासन का प्रभाव क्या होता है?
  • राष्ट्रपति शासन लगाये जाने से जुड़े विवाद

राष्ट्रपति शासन की घोषणा कब और क्यों की जाती है?

राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता के आधार पर राष्ट्रपति शासन की घोषणा की जाती है| यह सामान्यतः राज्यपाल की अनुशंशा के आधार पर लगाया जाता है|

अपने संवैधानिक रूप के अनुसार, जब किसी राज्य में ऐसी परिस्थिति बन पड़े जब वहां चुनाव न करवाया जा सके अथवा राज्य जान बुझकर संवैधानिक मूल्यों की अवहेलना करने लगे तो राष्ट्रपति शासन के द्वारा उस राज्य का प्रशासन राष्ट्रपति अपने हाथों में ले सकता है|

राष्ट्रपति शासन को देश के किस क्षेत्र में लगाया जा सकता है?

इसे देश के किसी भी प्रान्त यानी कि राज्य में लगाया जा सकता है| विधान सभा वाले केंद्रशासित प्रदेशों में इसे भी इसे लगाया जा सकता है|

उल्लेखनीय है कि दिल्ली, पुदुचेरी और जम्मू&कश्मीर ऐसे संघशासित प्रदेश है जहाँ विधानसभा है| इन तीनों प्रान्तों में अभी तक राष्ट्रपति शासन लगाया जा चूका है| 2019 में जम्मू & कश्मीर के संघशासित प्रदेश बनाये जाने के बाद यहां राष्ट्रपति शासन लगाया गया|

अभी तक छतीसगढ़ को छोड़कर सभी राज्य में एक से अधिक बार राष्ट्रपति शासन लगाया जा चूका है| बिहार, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मणिपुर जैसे कुछ राज्यों में तो इसे 8 बार तक लगाया जा चूका है| इसे 2020 तक सबसे अधिक (9 बार) उत्तर प्रदेश में लगाया जा चूका है|

राष्ट्रपति शासन कब तक लागू रहता है?

राष्ट्रपति शासन किसी राज्य में अधिक से अधिक तीन वर्षो तक लगाया जा सकता है| इसे घोषित किये जाने के दो माह के भीतर संसद से अनुमोदित किया जाना आवश्यक है| यदि राष्ट्रपति द्वारा घोषणा के बाद 2 माह के भीतर इसे संसद द्वारा अनुमोदित नहीं करवाया जाता है तो यह स्वतः समाप्त हो जाता है|

संसद के अनुमोदन के द्वारा इसकी अवधि को 6 माह के लिए बढाया जा सकता है| परन्तु 1978 के 44 वें संसोधन द्वारा दूसरी बार विस्तारित करने हेतु निम्न शर्तों का पूरा होने आवश्यक होता है:

  • उस प्रान्त में या प्रान्त के किसी क्षेत्र में राष्ट्रीय आपात लागू हो,
  • उस राज्य में चुनाव संभव न होने के संदर्भ में निर्वाचन आयोग अनुशंशा करें,

राष्ट्रपति अपनी घोषणा को कभी भी वापस ले सकता है और फिर राष्ट्रपति शासन समाप्त हो जाता है| इसे समाप्त होने के लिए किसी तरह की संसदीय अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होती|

राष्ट्रपति शासन का प्रभाव क्या होता है?

जब किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन आरोपित किया जाता है तो राष्ट्रपति को उस राज्य के प्रशासन की शक्ति प्राप्त हो जाती है| उस राज्य की मुख्यमंत्री वाली मंत्रीपरिषद को भंग कर दिया जाता है| राज्य का राज्यपाल राष्ट्रपति के नाम पर राज्य सचिव कि सहायता से अथवा राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किसी सलाहकार की सहायता से राज्य का प्रशासन चलाता है|

राष्ट्रपति शासन के लागू होने के बाद संबंधित राज्य के संदर्भ में संघात्मक ढांचा एकात्मक हो जाता है| राष्ट्रपति शासन आरोपित करने के साथ राज्य विधानसभा को भंग या निलम्बित किया जा सकता है| हालाँकि बोम्मई मामले (1994) में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि विधानसभा को भंग तभी किया जा सकता है जब राष्ट्रपति शासन को संसद द्वारा अनुमोदित कर दिया जाये| इससे पूर्व राज्य विधानसभा को केवल भंग किया जा सकता है|

उल्लेखनीय है कि विधानसभा के भंग होने के बाद पुनः चुनाव कराया जाना आवश्यक होता है जबकि निलंबित विधानसभा को पुनः बहाल किया जा सकता है| हालाँकि बोम्मई मामले (1994) में ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि यदि न्यायिक समीक्षा के दौरान राष्टपति शासन को असंवैधानिक और अवैध पाया जाता है तो विघटित विधानसभा को पुनःस्थापित और निलंबित विधानसभा को पुनः बहाल किया जा सकता है|

संसद राज्य सूची के विषय पर कानून बना सकती है| यह कानून राष्ट्रपति शासन ख़त्म होने के बाद भी प्रभावी बना रहता है| राष्ट्रपति द्वारा राज्य के किसी भी अधिकारी या संस्था की शक्ति का अधिग्रहण किया जा सकता है|

हालाँकि राष्ट्रपति शासन के दौरान उच्च न्यायालय की शक्ति बरक़रार होती है| इसके आलावा नागरिकों के मौलिक अधिकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है| यानी कि राज्य आपातकाल या राष्ट्रपति शासन के दौरान मौलिक अधिकार का उलंघन नहीं किया जा सकता है|

राष्ट्रपति शासन लगाये जाने से जुड़े विवाद

इसे लगाया जाना अधिकांश समय विवाद से जुड़ा रहा है| कई बार केंद्र सरकार के रूप में मौजूद सत्ताधारी दल ने राज्य विधानसभा में मौजूद दुसरे पार्टी के सरकार को गिराने के लिए इसका प्रयोग किया है|

मूल संविधान में राष्ट्रपति शासन को न्यायिक समीक्षा से पड़े रखा गया था लेकिन बार-बार इसके दुरुपयोग को देखते हुए 1978 के 44वें संविधान संसोधन द्वारा इसे न्यायिक समीक्षा के दायरे में लाया गया| न्यायिक समीक्षा से तात्पर्य है कि अब इसे लगाये जाने के आधारों की सुप्रीम कोर्ट द्वारा परीक्षण की जा सकती है|

बोम्मई मामले (1994) में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि विधानसभा को भंग तभी किया जा सकता है जब राष्ट्रपति शासन को संसद द्वारा अनुमोदित कर दिया जाये| इससे पूर्व राज्य विधानसभा को केवल भंग किया जा सकता है| उसने यह भी कहा कि यदि न्यायिक समीक्षा के दौरान राष्टपति शासन को असंवैधानिक और अवैध पाया जाता है तो विघटित विधानसभा को पुनःस्थापित और निलंबित विधानसभा को पुनः बहाल किया जा सकता है|

वित्तीय आपात: अनुच्छेद 360 – Financial Emergency in Hindi

सम्पूर्ण भारत अथवा इसके किसी क्षेत्र की वित्तीय स्थिति के खतरे में होने की स्थिति में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 360 में वित्तीय आपात लगाये जाने से संबंधित प्रावधान मिलते है| हालाँकि अभी तक कभी भी इसे नहीं लगाया गया है| आइये इससे जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं को समझते है|

  • वित्तीय आपात की घोषणा कब और क्यों की जाती है?
  • वित्तीय आपात का प्रभाव क्या होता है?
  • वित्तीय आपात कब तक लागू रहता है?

वित्तीय आपात की घोषणा कब और क्यों की जाती है?

पूरे भारत में अथवा भारत के किसी क्षेत्र में वित्तीय साख या वित्तीय स्थिरता के ऊपर खतरें की स्थिति में वित्तीय आपात की घोषणा की जा सकती है|

वित्तीय आपातकाल राष्ट्रपति द्वारा लगाया जाता है लेकिन इसे लगाये जाने के घोषणा के दो माह के भीतर संसद द्वारा अनुमोदित करवाया जाना आवश्यक है| 1978 के 44वें संविधान के अनुसार राष्ट्रपति के वित्तीय आपातकाल घोषित किये जाने के निर्णय की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है|

वित्तीय आपात का प्रभाव क्या होता है?

वित्तीय आपात काल की अवधि में राज्य के सभी वित्तीय मामलों पर केंद्र का नियंत्रण हो जाता है| राज्यों को वित्तीय आचरण के सन्दर्भ में निर्देश दिए जा सकते है| राज्यों के धन-विधेयकों को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित किया जा सकता है|

राष्ट्रपति केंद्र की सेवा में लगे किसी भी श्रेणी के व्यक्तियों की और उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीशों की वेतन एवं भत्तों में कटौती के संदर्भ में निर्देश जारी कर सकती है|

वित्तीय आपात कब तक लागू रहता है?

एक बार संसद द्वारा अनुमोदित किये जाने के बाद यह राष्ट्रपति द्वारा स्वयं वापस लिये जाने तक जारी रहता है| यदि इसे घोषित किये जाने के 2 माह के भीतर संसद द्वारा अनुमोदित नहीं किया जाता है तो यह समाप्त हो जाता है|

यदि वित्तीय आपातकाल की घोषणा के बाद और दो महीने से पूर्व ही लोकसभा का विघटन हो जाए तो यह घोषणा फिर से गठित हुई लोकसभा की प्रथम बैठक के बाद तीस दिनों तक प्रभावी रहती है परन्तु इसे राज्यसभा की मंजूरी मिलनी चाहिए| यह प्रावधान अन्य दोनों आपातकाल राष्ट्रीय आपातकाल और राष्ट्रपति शासन के संदर्भ में भी समान होती है|

भारत के राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां की आलोचना

राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां काफी महत्वपूर्ण है लेकिन विभिन्न आधारों पर इसकी आलोचना भी की जाती रही है| कुछ महत्वपूर्ण आधारों में शामिल है:

इन शक्तियों का केंद्र सरकार द्वारा दुरूपयोग किया जा सकता है| राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां के दुरूपयोग के लिए सर्वाधिक चर्चित उदाहरण 1975 के आपातकाल के रूप में दिया जाता है|

राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां को विपक्षी दल के खिलाफ दुर्भावनापूर्ण ढंग से इस्तेमाल किया जाता है|

राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां के अंतर्गत लगाये जाने वाले नेशनल इमरजेंसी में मौलिक अधिकार के उलंघन एवं संघीय ढांचे के निलंबन को लेकर भी इसकी आलोचना की जाती रही है|

निष्कर्ष

स्पष्ट है कि भारतीय राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां असाधारण परिस्थितियों से निपटने हेतु एक महत्वपूर्ण संवैधानिक प्रावधान है| राष्ट्रपति इनका प्रयोग प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रीमंडल के सलाह पर करता है| समय-समय पर राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां के दुरूपयोग से संबंधित विवाद भी उठते रहे है और यह आलोचना का भी कारण बना है, इसके बाबजूद यह एक महत्वपूर्ण संवैधानिक प्रावधान है जो भारत के संप्रभुता, एकता, अखंडता, लोकतांत्रिक राजनैतिक व्यवस्था तथा संविधान की सुरक्षा से संबंधित किसी असामान्य स्थिति से निपटने में सक्षम है|

हमें आशा है कि इस लेख ने आपको भारत के राष्ट्रपति की तीनों आपातकालीन शक्तियां (राष्ट्रीय आपात काल, राष्ट्रपति शासन और वित्तीय आपातकाल) को समझने में मदद की| आपको राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति के बारे में भी पढना पंसद हो सकता है|

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राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां कितने प्रकार की होती है?

· युद्ध, बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से उत्पन्न परिस्थिति में राष्ट्रपति आपात की उद्घोषणा कर सकता है। · 44वें संविधान संशोधन के द्वारा यह प्रावधान कर दिया गया है कि आपातकाल की घोषणा मंत्रिमंडल के लिखित परामर्श पर ही राष्ट्रपति द्वारा की जा सकती है।

आपातकाल कितने प्रकार के होते हैं?

इसमें देश में लगने वाले 3 तीन प्रकार के आपातकाल का वर्णन किया गया है। जिनमे – राष्ट्रीय आपातकाल (National Emergency) , राजकीय आपातकाल ( State Emergency) और वित्तीय आपातकाल (Financial Emergency ) शामिल हैं। भारत में आपातकाल सिर्फ राष्ट्रपति द्वारा ही लगाई जा सकती है।

राष्ट्रपति की न्यायिक शक्तियां कौन कौन सी है?

संविधान का 72वाँ अनुच्छेद राष्ट्रपति को न्यायिक शक्तियाँ देता है कि वह दंड का उन्मूलन, क्षमा, आहरण, परिहरण, परिवर्तन कर सकता है। क्षमादान – किसी व्यक्ति को मिली संपूर्ण सजा तथा दोष सिद्धि और उत्पन्न हुई निर्योज्ञताओं को समाप्त कर देना तथा उसे उस स्थिति में रख देना मानो उसने कोई अपराध किया ही नहीं था।

भारत के राष्ट्रपति के पास आपात अधिकार कितने है?

व्याख्या: भारत के राष्ट्रपति के पास तीन प्रकार के आपात अधिकार हैं: प्रथम-युद्ध के समय आपात स्थिति लागू कर सकता है। द्वितीय-बाह्य आक्रमण के समय तृतीय-शसस्त्र विद्रोह के समय अनुच्छेद -358 की व्यवस्थानुसार अनुच्छेद -352 के अंतर्गत प्रथम दो आधारों युद्ध या बाह्य आक्रमण के आधार पर मूलाधिकारों की भी समाप्ति होती है।