पृथ्वी कहती धैर्य न छोड़ो कविता - prthvee kahatee dhairy na chhodo kavita

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"पृथ्वी कहती धैर्य न छोड़ो कितना ही हो सिर पर भार.." ~ सोहनलाल द्विवेदी

Posted by Hindinama on Monday, June 15, 2020

ज. इससे यह प्रेरणा मिलती है कि जितने भी गंभीर समस्याएँ हों इनकी साहार और कठिन मेहनत से सामना करना    चाहिए !

शब्दार्थ _भावार्थ

1.पर्वत कहता शीश उठाकर ,

  तुम भी ऊँचे बन जाओ !

   सागर कहता है लहराकर ,

   मन में गहराई लाओ !

शब्दार्थ :

शीश     =   తల

ऊंचा     =   ఎతైన

गहराई   =   లోతు

लहराना  =    అలలు పై పైకి ఉప్పొంగుట

भावार्थ :

प्रकृति कि सीखा  कविता के कवी श्री सोहनलाल सविवेदी हैं कि  प्रकृति के कण _कण में कुछ संदेश छिपा  रहता है!उन संदेश से हम अपना जीवन सफल बना सकते हैं!

पर्वत हम से कहता हैं कि तुम अपना सिर उठाकर मुझे जैसे ऊँचे रहना महान गुण है !समुद्र लहराते कहता है कि मैंजैसे गहरा हूँ!वैसे तुम भी अपना मन गहरा और विशाल बनाओ माने गहराई से सोचो!

2. समझ रहे हों क्या कहती है ,

    उठ _उठ गिर कर तरल तरंग !

    भर लो भर लो अपने मन में ,

    मीठे _मीठे मृदुल उमंग !!

शब्दार्थ :

गिरना   =    పడిపోవుట

तरल     =   చలించునట్టి

तरंग     =   తరంగము

भरना    =    నింపుట

मृदुल    =    కోమలమైన

उमंग    =    ఆశ

भावार्थ:

कवि कहते हैं_समुद्र के चंचल तरंग उठ _उठकर  गिरते हैं !क्या तुम समझ सकते हों कि वे क्या कह रहे है?वे कहना चाहते हैंकि तुम भी इनके जैसे अपने दिल में मीठी और कोमल आशाएँ भर लो !क्योंकि आशा को सफल बनाने के प्रयत्न ज़रूर करते हों !

3.पृथ्वी कहती धैर्य न छोडो,

   कितना ही हों सिर पर भार !

    नभ खता है,फैलो इतना ,

    ढक लो तुम सारा संसार !!

शब्दार्थ :

पृथ्वी     =      భూమి

भार       =     బరువు

नभ       =     ఆకాశము

फैलाना   =      వ్యాపించుట

ढकना    =     కప్పుట

भावार्थ :

धरती हम से कहते है कि चाहे  जीतनी बडी जिम्मेदारी तुम्हें पूरी करनी है ,धैर्य के साथ उसे पूरा फैलाकर साड़ी दुनिया ढकलो !माने महान बनाकर सब पर अपना प्रभाव दिखाओ !

अर्थग्राहाता _प्रतिक्रया

अ) प्रश्नों के उतर बताइए

1.नदियाँ खेती के लिए प्रकार उपयोगी हैं?

ज. नदिया पहाड़ो से निकलती हैं ! पहाडों में रास्ता बनाकर ,जंगलों से  होकर होदान में  बहती हैं ! प्राणिमात्र के लिए नदियों का पानी बहुत उपयोगी है खेती के लिए उपजाऊ भीम तैयार करने का विविध तरकारियों करती हैं! नदियों के पानी से ही खेतोंकि सिंचाई होती है!किसान अनाज के साथ_साथ विविध तरकारियाँ और खाद्यान्न  भी उसी पानी से पैदा करते हैं! नदियों पर बाँध बनाकर पानी इकटठाकिया जाता है! नहरें निकाली जाती हैं!नहरों हैं ! इस तरह खेती के हर काम के लिए नदियाँ बहुत उपयोगी हैं !

2.  ऋतुऔं के नियंत्रण में पर्वत कैसे सहायक होते हैं ?

ज. पर्वत तो अकसर ऊँचे होते हैं !पर्वत कि सम्पदा है!इनसे कई लाभ हैं!हमें बहुत सहायक होते हैं ,इनकी तलहटो में अनेक पेड पैधों के होने के कारण हमेशा हरियाली और ठंडक बानी रहती हैं !

खासकर समुद्र कि तेंज हवाऔ पर्वत देश कि रक्षा करते हैं !तूफ़ान ,आँधी आदि प्रकृति संबन्धी अनेक हालतों से ये हमें बचाते है!ऐसे पर्वत ऋतुओ के नियंत्रण में भी बडे सहायक होते है! उन्ही के कारण मौसम समय पर आते है !मेघो को रोककर वर्षाएसही समय पर आने में    इनका ख़ास महत्त्व रहता है !इस तरह हम देखते हैं कि  ऋतुओ  के नियंत्रण में पर्वत बडे सहायकारी होते हैं !

आ ) कविता के आधार पर उचित क्रम दीजिए !

1.  सागर कहता हैलहरा कर !        (3)

2.  पर्वत कहता है शीश उठाकर !    (1)

3.  मन में गहराई लाओ!              (4)

4.  तुम भी ऊँचे बन जाओ !          (2)                                                                             

ज  1)3     2)1     3)4    4 )2

इ )स्तंभ का  को स्तंभ खा  से जोड़िए और उसका भाव बताइए !

    क         ख

 पर्वत        धैर्य न छोडो                                             उदा:  धैर्यवान बनाना !

 सागर       ढक लो तुम सारा संसार                                   ..................

 तरंग        गहराई लाओ                                               ...................

 पृथ्वी        ह्दय में उमंग भर लो                                      ...................

नभ          ऊँचे बन आओ                                             ....................

ज .   क         ख

     1  पर्वत        (4)           धैर्य न छोडो                                   उदा:  धैर्यवान बनाना !

     2 सागर        (5)            ढक लो तुम सारा संसार                      वषा में करना /फैल जाना

     3 तरंग         (2)            गहराई लाओ                                    विशाल भाव रखना 

     4  पृथ्वी        (3)            ह्दय में उमंग भर लो                           उत्साहित होना   

     5  नभ         (1)            ऊँचे बन आओ                                   महान बनाना

ई) पदयांश पढ़िए !अब इन प्रशनो के उत्तर दीजिए !

भई सूरज                                            जो सच से बेखबर

ज़रा इस आदमी को जगाओ !                       सपनों में खोया पडा है ,

भई पवन                                              भाई पछी इनके कानों पर चिल्लाओ !

ज़रा इस आदमी को हिमाओ                         भाई सूरज

यह आदमी   जो सोया पड़ा है                        ज़रा इस आदमी को जगाओ !

प्रशन:

1.सूरज के बारे में आप क्या जानते हैं?

ज .सूरज भूमि के बहुत नंजदीक रहनेवाला एक नक्षत्र ही है!सूरज एक जलता हुआ आग का गोला है ! पृथ्वी से सूरज कई गुना बडा है ! पिथवी पर रहनेवाले समस्त प्राणी कोटि को आवश्यक जिव शेट्टी सूरज से ही मिलती हैं! गृह परिवार में सूरज केंद्र स्थान में है!गृह ,उपग्रह और लघु गृह सूरज के चारो और घूमते रहते हैं!पृथ्वी पर रहा पानी सूरज की गरमी से भाप के रूप में ऊपर उठाकर मेघ बनते हैं ,ठंडी हवा लगते ही मेघ पानी बरसाते हैं !

2 .कवी ने सूरज ,पंछी ,हवा से क्या कहा ?

ज.  कवी ने सूरज से कहा कि कृपा करके इस मानव को जगाओ !

     पंछी से कहा कि हे पक्षी /चिड़िया  ज़रा इनके कानों पर चिल्लाओ !

     हवा से कहा कि ज़रा आदमी को हिलाओ!

3. वास्तव में जगाने का क्या तात्पर्य है?

ज. पर्वत हम्रषा बडे_बडे शिखरों के कारण ऊँचे रहते हैं! यदि हम अच्छे से अच्छे काम और बढ़प्पन के कार्य करों तो हम  भी उन्हीं कि तरह दुनिया में आदर के साथ सर उठा करके रहेंगे ! हमारा जीवन उन्नत बनेगा !हम दुनिया में आदरणीय बनेंगे !इसलिए हम छे _अच्छे काम करते हुए पर्वतों के जैसे सर खड़ा करके रहने के लिए पर्वत ऐसा कह रहा होगा !

अभिव्यक्ति -सृजनात्मकता

अ) प्रशनों के उत्तर लिखिए !

1. पर्वत सिर उठाकर जीने   के लिए   क्यों  कह  रहा होगा ?

ज.पर्वत हमेशा  बडे_बडे शिखरों  के कारण ऊँचे  रहते हैं!यदि हम अच्छे से काम और  बढ़प्पन के कार्य करें तो हम भी उन्ही  की  तरह दुनिया  में आदर  के साथ सिर  उठा  करके रहेंगे !हमारा  जीवन उन्नत बनेगा ! हम दुनिया में आदरणीय  बनेंगे !इसलिए हम अच्छे काम करते  हुए  पर्वतों के जैसे सिर  खड़ा करके रहने के लिए पर्वत ऐसा कह  रहा होगा !

2.   हमें विपत्तियों का सामना हमें कैसे करना चाहिए ?

ज. धैर्य ,समयसफुर्ति  ,उपाय साहस और सोच विचार के साथ हम विपत्तियों का सामना कर सकते हैं !हम पृथ्वी स्व धैर्य  न छेडने कि भावना को ग्रहण कर के विपत्तियों का सामना कर सकेंगे !

3. प्रकृति के अन्य तत्व जैसे : नदियाँ,सूरज,पेडआदि हमें क्या सीखा देते हैं ?

ज.प्रकृति के अन्य तत्व जैसे नदियाँ,सूरज,पेड़ आदि हमें ये सीखा देते हैं _

नदियाँ : निर्मल रहने ,मीठे _मीठे  मृदुल उमंगो को भरने तथा परोपकरर कि भावना का सीखा देती हैं !

सूरज :जगाने और जगाने तथा सकल जीवों का आधार बनाने का सीखा देता है!सूरज हमें अंधकार को दूर करके प्रकाश को फैलाने का सीखा भी देता है !

पेड़ :पेड़ हमें सदा परोपकारी बने रहने का सीखा देते हैं!

आ ) कवित का सारांश अपने शब्दों में लिखिए !

ज. प्रकृति कि सीखा  कविता के कवि श्री सोहनलाल द्विवेदी जी हैं !उनका जीवनकाल 1906 _1988 है!

अपनी अमूल्य  रचनाओ से वे हिन्दी साहित्य में प्रसिदु हुए हैं!उनकी प्रमुख रचना "सेवाग्राम "है!भारत सरकार ने उन्हें पदमश्री से विभूषित किया !

प्रस्तुत कविता में कवि कहते हैंकि हमारे चारो और कि प्रकृति के कण _कण में कुछ संदेश छिपा रहता है! उन संदेशों का आचरण करने से हम अपने जीवन को सार्थक व सफल बना सकते हैं!पर्वत हम से कहता है कि तुम भी अपना सर उठाकर मुझ जैसे ऊँचे बनजाओ !अर्थ है कि सब में ऊँचा रहना महान गन है !समुद्र लहराते कहता है कि मैंजैसे गहरा हूँ वैसे  तुम भी अपने मन गहरऔर विशाल बनाओ !माने  गहराई से सोचो !

समुद्र के चंचल तरंग उठ _उठ कर गिरते हैं! क्या तुम समझ सकते हो कि वे क्या कह रहे हैं ?वे कहना चाहते हैं कि तुम भी उनके जैसे अपने दिल में मीठी और कोमल आशाएँ भर लो !क्योंकि आशा को सफल बनाने का प्रयत्न ज़रूर करते हो !

धरती हम से कहती है कि चाहे जीतनी बड़ी  ज़िम्मेदारी तुम्हें पूरी करनी है ,धैर्य के साथ उसे ोुरा करों !आकाश  कहता है कि मुझे जैसा पूरा फैलकर साड़ी दुनिया ढक लो ! माने महान बनाकर सब पर अपना प्रभाव दिखाओ !

इ)कविता के भाव से दो सुतियाँ बनाइए !

ज. 1) प्रकृति कि सिख अपना लो                       2)फूलों से हँसना सीखो !

       प्यारा जीवन सुखमय बना लो !                      भैरों से गाना सीखो !

ई) निचे दी गयी पंक्तियों   के आधार पर छोटी  _सी कविता लिखिए !

हरियाली कहती ......................!          ज. सारा जग खुशहाल बनाओ !

महकते  पक्षी कहते ..................!              सब पर अपना असर डालो !

चहचहाते  पक्षी कहते ................!              मीठे गान सबको सुनाओ !

बहती नदियाँ कहती ..................!              जीवन में आगे बढते जाओ !

परियोजना कार्य :

सोहनलाल द्विवेदी के बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए !उनकी किसी एक कविता का संकलन कीजिए !

ज. पं.सोहनलाल द्विवेदी जी आधुनिक हिन्दी  के प्रमुख कवि हैं !उनका जन्म सन 1906  में हुआ अपनी अमूल्य हिन्दी  साहित्य में आप पहले बच्चों की कविताएँ करनेवाले के रूप में प्रसिदु हुए !अब तो राष्ट्रिय कवि के रूप में उनका बडा नाम है!आप गाँधीवाद से अधिक प्रभावित हुए !आपकी रचनाशैली प्रभावोत्पादक और ओजमय है !आपकी बहुत सी कविताएँ "वासवदत्ता "नामक ग्रंथमें संगृहीत हैं!आपका विरचित "कुणाल " काव्य बडा  सुंदर है! भैरवी    द्विवेदी जी के अभियान गीतों क संग्रह है !इसके गीत सुंदर और देशभक्ति भरनेवाले हैं !

गाँधीजी की अहिंसात्मक नीति से प्रभावित आपका एक अभियान गीत इस प्रकार है!

बढे  चलो ,बढो चलो ,

न हाथ एक शात्र हो ,न साथ एक अस्त्र हो ,

न अन्न नीर वस्त्र हो ,हटो  नहीं ,डटो वहीं!!

        बढे चलो ,बढे चलो

रहे समक्ष हिम शिखर ,तुम्हारा प्राण उठे निखार !

भले  ही जाय तन बिखर ,रुको नहीं झुको नहीं !!

  बढे चलो ,बढे चलो !!

ESSENTIAL MATERIAL 

प्रशन :

1..पर्वत क्या सन्देश रहा है ?

ज. पर्वत अपना सिर उठाकर ऊँचा खडाहोता है !ऐसा पर्वत संदेश दे रहा है की तुम भी मेरे जैसे अच्छे काम करते धैर्य से सिर उठाकर खडे रहो !वही महान गन है !

2. तरंग क्या कहती है ?

ज.सागर में चंचल तरंग उठ _उठ कर गिरती है ! वह हम से कहती है कि अपन मन में मीठ_मीटो सुकोमल उमंग भर लो !कोमल उमंग भरने से मन खुशी से नाच उठता है ! हर काम करते का उत्साह उमडता रहता है !

पृथ्वी कहती धैर्य न छोड़ो कितना?

पृथ्वी कहती धैर्य न छोड़ो कितना ही हो सिर पर भार, नभ कहता है फैलो इतना ढक लो सारा संसार ! Earth Day 2021 विचलित कर रहा है वर्तमान संकट। आप साहसी हैं तो संभव है कि आगे बढ़कर इस तूफान से टकराने की तैयारी में जुट जाएं। पर यदि साहस के साथ धैर्य नहीं है तो आप शीघ्र ही थक जाएंगे।

पर्वत हमसे क्या कहता है?

पर्वत कहता शीश उठाकर, तुम भी ऊँचे बन जाओ। सागर कहता है लहराकर, मन में गहराई लाओ।

आकाश हमें क्या संदेश देता है?

उत्तर : आकाश हमें सर्वोपरि बनने का संदेश देता है। प्राणियों को हवा-पानी, वन-पर्वत, पेड़-पौधे आदि दिए है। परंतु आज मनुष्य प्रकृति के इन उपादानों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान नहीं देता

तरल तरंग क्या कहती है?

तरलं तरंग उठ – उठकर गिर पडती है। तरल तरंग उठ – उठ गिर कर कहती है | कि तुम अपने मन में मीठे मृदुल उमंग भर लो। उपर्युक्त पद्यांश 'प्रकृति की सीख' नामक पद्य पाठ से लिया गया है। उपर्युक्त पद्यांश के कवि हैं श्री सोहनलाल द्विवेदी जी।