सिंदूर तिलकित भाल कविता की व्याख्या - sindoor tilakit bhaal kavita kee vyaakhya

                
                                                                                 
                            अमर उजाला 'हिंदी हैं हम' शब्द श्रृंखला में आज का शब्द है- घोर, जिसका अर्थ है- भयंकर, विकराल, सघन, दुर्गम, कठिन, बहुत अधिक। प्रस्तुत है नागार्जुन की कविता- सिंदूर तिलकित भाल...

घोर निर्जन में परिस्थिति ने दिया है डाल!
याद आता है तुम्हारा सिंदूर तिलकित भाल!
कौन है वह व्यक्ति जिसको चाहिए न समाज?
कौन है वह एक जिसको नहीं पड़ता दूसरे से काज?
चाहिए किसको नहीं सहयोग?
चाहिए किसको नहीं सहवास?
कौन चाहेगा कि उसका शून्य में टकराए यह उच्छ्वास?
हो गया हूँ मैं नहीं पाषाण
जिसको डाल दे कोई कहीं भी
करेगा वह कभी कुछ न विरोध
करेगा वह कुछ नहीं अनुरोध
वेदना ही नहीं उसके पास
उठेगा फिर कहाँ से निःश्वास
मैं न साधारण, सचेतन जंतु
यहाँ हाँ-ना किंतु और परंतु
यहाँ हर्ष-विषाद-चिंता-क्रोध
यहाँ है सुख-दुख का अवबोध
यहाँ है प्रत्यक्ष औ’ अनुमान
यहाँ स्मृति-विस्मृति सभी के स्थान
तभी तो तुम याद आतीं प्राण,
हो गया हूँ मैं नहीं पाषाण! 

याद आते स्वजन
जिनकी स्नेह से भींगी अमृतमय आँख
स्मृति-विहंगम को कभी थकने न देंगी पाँख
याद आता मुझे अपना वह ‘तरउनी’ ग्राम
याद आतीं लीचियाँ, वे आम
याद आते मुझे मिथिला के रुचिर भू-भाग
याद आते धान
याद आते कमल, कुमुदिनि और तालमखान
याद आते शस्य-श्यामल जनपदों के
रूप-गुण-अनुसार ही रखे गए वे नाम
याद आते वेणुवन के नीलिमा के निलय अति अभिराम 

धन्य वे जिनके मृदुलतम अंक
हुए थे मेरे लिए पर्यंक
धन्य वे जिनकी उपज के भाग
अन्न-पानी और भाजी-साग
फूल-फल औ’ कंद-मूल अनेक विध मधु-मांस
विपुल उनका ऋण, सधा सकता न मैं दशमांश
ओह, यद्यपि पड़ गया हूँ दूर उनसे आज
हृदय से पर आ रही आवाज़
धन्य वे जन, वही धन्य समाज
यहाँ भी तो हूँ न मैं असहाय
यहाँ भी हैं व्यक्ति औ’ समुदाय
किंतु जीवन भर रहूँ फिर भी प्रवासी ही कहेंगे हाय!
मरूँगा तो चिता पर दो फूल देंगे डाल
समय चलता जाएगा निर्बाध अपनी चाल
सुनोगी तुम तो उठेगी हूक
मैं रहूँगा सामने (तस्वीर में) पर मूक
सांध्य नभ में पश्चिमांत-समान
लालिमा का जब करुण आख्यान
सुना करता हूँ, सुमुखि, उस काल
याद आता है तुम्हारा सिंदूर तिलकित भाल। 

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सिंदूर तिलकित भाल कविता में कवि को अपने गांव का क्या याद आता है?

सिंदुर तिलकित भाल नागार्जुन की सबसे प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ कविताओं में एक है. कवि अपने घर-परिवार से दूर पड़ा हुआ अपनी पत्नी का तिलकित भाल याद करता है. और उसी के साथ साथ जुड़ी हुई अपने गाँव की प्रकृति और वहाँ का समूचा जनजीवन उसकी आँखों के आगे तैरने लगता है. फिर इन सबके बीच उसे पत्नी का सिंदुर तिलकित भाल याद आता है.

सिंदूर तिलकित भाल कविता के रचनाकार कौन हैं?

सिंधुर तिल्कित भाल कविता सुविख्यात प्रगतिशील कवि एवं कथाकार नागार्जुन द्वारा रचित है। जन-मन के सजग और सतर्क रचनाकार कवि नागार्जुन अपनी कविता में यथार्थ को खुलकर चित्रित करते है।

प्रेत का बयान कविता का प्रतिपाद्य क्या है?

इस कविता में स्वाधीन भारत की व्यवस्था पर व्यंग्य किया गया है। फैण्टेसी के उपयोग द्वारा यहाँ भारत के सामाजिक, आर्थिक यथार्थ पर प्रहार किया गया है। एक मास्टर के प्रेत के बयान से स्पष्ट किया गया है कि अन्नाभाव ने उस दौर के राष्ट्र-निर्माता कहे जानेवाले शिक्षक की जान ले ली।