यह दीप अकेला कविता की सप्रसंग व्याख्या - yah deep akela kavita kee saprasang vyaakhya

यह दीप अकेला कविता की सप्रसंग व्याख्या - yah deep akela kavita kee saprasang vyaakhya

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यह दीप अकेला

In this post we have given the detailed notes of class 12 Hindi chapter 3rd Yeh Deep Akela. These notes are useful for the students who are going to appear in class 12 board exams

इस पोस्ट में क्लास 12 के हिंदी के पाठ 3 यह डीप अकेला  के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 12 में है एवं हिंदी विषय पढ़ रहे है।

Board CBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Hindi (अंतरा)
Chapter no. Chapter 3
Chapter Name यह डीप अकेला
Category Class 12 Hindi Notes
Medium Hindi
Class 12 Hindi Chapter 3 यह डीप अकेला

सच्चिनान्द हीरानंद वात्स्यायन “अज्ञेय” का जीवन परिचय

  • जन्म
    • 7 मार्च 1911कुशीनगर में हुआ
  • पहचान
    • लेखक, कवि
  • पुरस्कार/सम्मान
    • साहित्य अकादमी
    • भारतीय ज्ञानपीठ
  • यादगार कृतियाँ
    • आँगन के पार द्वार, कितनी नावों में कितनी बार
  • कहानियाँ
    • विपथगा, परम्परा, कोठरी की बात, शरणार्थी, जयदोल
  • उपन्यास
    • शेखर एक जीवनी, नदी के द्वीप, अपने अपने अजनबी
  • मृत्यु
    • 4 अप्रैल, 1987 ई

पाठ का परिचय 

  • यह कविता बावरा अहेरी से ली गई है जिसे अज्ञेय ने लिखा था
  • इस कविता में मनुष्य को दीपक के रूप में दिखाया गया है और मनुष्य की व्यक्तिगत सत्ता को समाज के साथ जोड़ने की बात कही गई है 

यह दीप अकेला स्नेह भरा

है गर्ब भरा मदमाता, पर इसको भी पंक्ति को दे दो।

  • कवि कहते हैं कि जिस प्रकार एक दीपक तेल से भरे होने के कारण जलता रहता है और अपने प्रकाश से अंधेरे को दूर करता है उसी प्रकार मनुष्य भी अकेला होता है मनुष्य को पता होता है कि उनके पास शक्तियां हैं, कार्य को करने के गुण हैं और मनुष्य अपने गुणों पर गर्व करते हुए घमंड दिखाता है 
  • कवि का कहना है कि अगर दीपक को पंक्ति से जोड़ दिया जाए तो प्रकाश में वृद्धि होगी ठीक उसी प्रकार अगर किसी मनुष्य को समाज से जोड़ दिया जाए तो उस मनुष्य के गुणों से संपूर्ण समाज को लाभ होगा

यह जन हे-गाता गीत जिन्हें फिर और कौन गाएगा?

पनडुब्बा-ये मोती सच्चे फिर कौन कृती लाएगा?

  • यह वह व्यक्ति है जिसे समाज से जोड़ना जरूरी है
  • मनुष्य वह गोताखोर है जो समुंदर में डुबकी लगाकर समुंद्र से मोती निकालता है
  • यह वह गोताखोर है जो मनुष्य के हृदय में डुबकी लगाकर उनके प्रति भावनाओं को जोड़ता है
  • अगर उस मनुष्य को हम समाज से नहीं जोड़ेंगे तो उन सभी रचनाओं को कौन ढूंढ कर लाएगा

यह समिधा-ऐसी आग हठीला बिरला सुलगाएगा।

यह अट्वितीय-यह मेरा-यह मैं स्वयं विसर्जित-

यह दीप, अकेला, स्नेह भरा

है गर्व भरा मदमाता, पर इसको भी पंक्ति को दे दो।

  • मनुष्य उस लकड़ी के समान है जो खुद तो जलती है पर अपने आसपास रोशनी प्रदान करती हैं 
  • कवि कहते हैं कि उसके जैसा कोई नहीं है उन्ही से ही समाज का विकास होगा
  • दीपक की तुलना मनुष्य से की गई है
  • अनेकों स्थान पर अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है
  • यह कविता संगीतात्मक रूप से लिखी गई है

यह मधु है-स्वयं काल की मौना का युग-संचय;

यह गोरस-जीवन-कामधेनु का अमृत-पूत पय,

  • कवि कहते हैं कि एक शहर धीरे-धीरे बनता है उसे बनने में समय लगता है जिस तरह एक टोकरी को भरने में समय लगता है
  • कवि कहते हैं कि मनुष्य एक वह व्यक्ति है जो दूसरों को प्रेम प्रदान करता है

यह अंकुर-फोड धरा को रवि को तकता निर्भय,

यह प्रकृत, स्वयंभू, ब्रह्म, अयुत: इसको भी शक्ति को दे दो।

यह दीप, अकेला, स्नेह भरा

है गर्व भरा मदमाता, पर इसको भी पंक्ति को दे दो।

  • कवि कहते हैं कि यह मनुष्य अंकुर की तरह अपने आप बड़ा होकर सूरज को बिना डरे ताकता है मतलब वह बहादुर है वह खुद ब्रह्मा का रूप है, हम सब ईश्वर का रूप हैं, कवि कहते हैं कि मनुष्य को संसार से जोड़ना चाहिए 

यह वह विश्वास, नहीं जो अपनी लघुता में भी काँपा,

वह पीड़ा, जिस की गहराई को स्वयं उसी ने नापा;

कुत्सा, अपमान, अवज्ञा के धुँधुआते कडुबे तम में

यह सदा-द्रवित, चिर-जागरूक, अनुरक्त-नेत्र,

उल्लंब-बाहु, यह चिर-अखंड अपनापा।

जिज्ञासु, प्रबुद्ध, सदा श्रद्धामय, इसको भक्ति को दे दो-

  • इस पंक्ति में भी दीप की तुलना मनुष्य से की गई है जो परोपकारी है अर्थात प्रेम से भरा हुआ है 
  • दीपक जलाता है और दुनिया का अंधेरा दूर करता है उसी प्रकार एक ऐसा मनुष्य जो सनेह से भरा है ज्ञानी है अगर ऐसा व्यक्ति समाज से जुड़ता है तो समाज का भी विकास होता है 

यह दीप, अकेला, स्नेह भरा

है गर्ब भरा मदमाता, पर इसको भी पंक्ति को दे दो।

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यह दीप अकेला कविता का मूल भाव क्या है?

यह दीप अकेला है परंतु स्नेह से भरा हुआ है। जिसके कारण उसमें गर्व है अर्थात गर्व से भरा हुआ है, और उसका यह गर्व उसकी पूर्णता की अपूर्णता को दर्शाता है। कवि चाहता है कि उसे उसी प्रकार के अन्य दियों की पंक्ति में शामिल कर देना चाहिए तभी उसे सामूहिकता की शक्ति का बोध होगा। उसे अपनी पूर्णता के अधूरेपन का भी ज्ञान होगा।

यह दीप अकेला कविता के द्वारा क्या संदेश दिया गया है?

यह प्रकृत, स्वयंभू, ब्रह्म, अयुतः इसको भी शक्ति को दे दो। यह दीप, अकेला, स्नेह भरा है गर्व भरा मदमाता, पर इसको भी पंक्ति को दे दो। मैंने देखा एक बूँद सहसा उछली सागर के झाग से; रंग गई क्षणभर ढलते सूरज की आग से। मुझ को दीख गया : सूने विराट् के सम्मुख हर आलोक-छुआ अपनापन है उन्मोचन नश्वरता के दाग से !

यह दीप अकेला में दीप किसका प्रतीक है?

'दीप' व्यक्ति का प्रतीक है और 'पंक्ति' समाज का प्रतीक है। कविता पर प्रयोगवादी शैली का प्रभाव है इसमें तत्सम शब्दावली का प्रयोग हुआ है। कवि इस कविता में स्वयं को इसी व्यक्तित्व रूप में अर्जित करते हुए, समाज में स्वयं को विसर्जित कर देना चाहता है।

यह दीप अकेला इसे भी पंक्ति को दे दो पंक्ति से क्या तात्पर्य है?

इसमें विद्यमान पंक्ति शब्द समाज का प्रतीक स्वरूप है। दीप को पंक्ति में रखने का तात्पर्य समाज के साथ जोड़ना है। इसे ही व्यष्टि का समिष्ट में विलय कहा गया है।