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आत्मपरिचय/आत्मपरिचय कविता की व्याख्या/हरिवंशराय बच्चन की कविता आत्मपरिचय का सार/aatmparichay poem by Harivanshray Bacchan class 12 CBSE,HBSE कविता - आत्मपरिचय कवि – हरिवंशराय बच्चन1.मैं जग –जीवन का मार लिए फिरता हूँ,मैं जग –जीवन का मार लिए फिरता हूँ,
मैं स्नेह-सुरा का पान किया कस्ता हूँ, शब्दार्थ-जग-जीवन-सांसारिक गतिविधि। झंकृत -तारों को बजाकर स्वर निकालना। सुरा-शराब। स्नेह-प्रेम। पान-पीना। ध्यान करना-परवाह करना। गाते-प्रशंसा करते। प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित कविता ‘आत्मपरिचय’ से उद्धृत है। इसके रचयिता हरिवंशराय बच्चन जी हैं। इस कविता में कवि अपने जीवन के बारे में दुनिया का बताता हैं । व्याख्या-बच्चन जी कहते हैं कि मैं संसार में जीवन का भार उठाकर घूमता रहता हूँ। इसके बावजूद मेरा जीवन प्यार से भरा-पूरा है। जीवन की समस्याओं के बावजूद कवि के जीवन में प्यार है। उसका जीवन सितार की तरह है जिसे किसी ने छूकर झंकृत कर दिया है। फलस्वरूप उसका जीवन संगीत से भर उठा है। उसका जीवन इन्हीं तार रूपी साँसों के कारण चल रहा है। उसने स्नेह रूपी शराब पी रखी है अर्थात प्रेम किया है तथा बाँटा है। उसने कभी संसार की परवाह नहीं की। संसार के लोगों की प्रवृत्ति है कि वे उनको पूछते हैं जो संसार के अनुसार चलते हैं तथा उनका गुणगान करते हैं। कवि अपने मन की इच्छानुसार चलता है, अर्थात वह वही करता है जो उसका मन कहता है। काव्य सौन्दर्य1. कवि ने निजी प्रेम को स्वीकार किया है। 2. संसार के स्वार्थी स्वभाव पर टिप्पणी की है। 3. ‘स्नेह-सुरा’ व ‘साँसों के तार’ में रूपक अलंकार है। 4. ‘जग-जीवन’, ‘स्नेह-सुरा’ में अनुप्रास अलंकार है। 5. खड़ी बोली का प्रयोग है। 6. ‘किया करता हूँ’, ‘लिए फिरता हूँ’ की आवृत्ति में गीत की मस्ती है। प्रश्न (क) जगजीवन का भार लिए फिरने से कवि का क्या आशय हैं? ऐसे में भी वह क्या कर लेता है? उत्तर –
(क) ‘जगजीवन का भार लिए फिरने’ से कवि का आशय है-सांसारिक रिश्ते-नातों और दायित्वों को निभाने की जिम्मेदारी, जिन्हें न चाहते हुए भी कवि को निभाना पड़ रहा है। ऐसे में भी उसका जीवन प्रेम से भरा-पूरा है और वह सबसे प्रेम करना चाहता है। 2.मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँमैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ मैं जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूँ शब्दार्थ-उदगार-दिल के भाव। उपहार-भेंट। भाता-अच्छा लगता। स्वप्नों का संसार-कल्पनाओं की दुनिया। दहा-जला। भव-सागर-संसार रूपी सागर। मौज-लहरों। प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित कविता ‘आत्मपरिचय’ से अवतरित है। इसके रचयिता प्रसिद्ध गीतकार हरिवंशराय बच्चन हैं। इस कविता में कवि जीवन को जीने की शैली बताता है। साथ ही दुनिया से अपने द्वंद्वात्मक संबंधों को उजागर करता है। व्याख्या-कवि अपने मन की भावनाओं को दुनिया के सामने कहने की कोशिश करता है। उसे खुशी के जो उपहार मिले हैं, उन्हें वह साथ लिए फिरता है। उसे यह संसार अधूरा लगता है। इस कारण यह उसे पसंद नहीं है। वह अपनी कल्पना का संसार लिए फिरता है। उसे प्रेम से भरा संसार अच्छा लगता है। वह कहता है कि मैं अपने हृदय में आग जलाकर उसमें जलता हूँ अर्थात मैं प्रेम की जलन को स्वयं ही सहन करता हूँ। प्रेम की दीवानगी में मस्त होकर जीवन के जो सुख-दुख आते हैं, उनमें मस्त रहता हूँ। यह संसार आपदाओं का सागर है। लोग इसे पार करने के लिए कर्म रूपी नाव बनाते हैं, परंतु कवि संसार रूपी सागर की लहरों पर मस्त होकर बहता है। उसे संसार की कोई चिंता नहीं है। काव्य सौन्दर्य1. कवि ने प्रेम की मस्ती को प्रमुखता दी है। 2. व्यक्तिवादी विचारधारा की प्रमुखता है। 3. ‘स्वप्नों का संसार’ में अनुप्रास तथा ‘भव-सागर’ और ‘भव मौजों’ में रूपक अलंकार है। 4. खड़ी बोली का स्वाभाविक प्रयोग है। 5. तत्सम शब्दावली की बहुलता है। 6. श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति है। प्रश्न (क) कवि के ह्रदय में कौन-सी अग्नि जल रही हैं? वह व्यक्ति क्यों है? उत्तर –(क) कवि के हृदय में एक विशेष आग (प्रेमाग्नि) जल रही है। वह प्रेम की वियोगावस्था में होने के कारण व्यथित है। (ख) ‘निज उर के उद्गार’ का अर्थ यह है कि कवि अपने हृदय की भावनाओं को व्यक्त कर रहा है।’निज उर के उपहार’ से तात्पर्य कवि की खुशियों से है जिसे वह संसार में बाँटना चाहता है। 3.मैं यौवन का उन्माद लिए फिरता हूँ,मैं यौवन का उन्माद लिए फिरता हूँ, कर यत्न मिटे सब, सत्य किसी ने जाना? शब्दार्थ-यौवन-जवानी। उन्माद-पागलपन। अवसाद-उदासी, खेद। यत्न-प्रयास। नादान-नासमझ, अनाड़ी। दाना-चतुर, ज्ञानी। मूढ़-मूर्ख। जग-संसार। प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित कविता ‘आत्मपरिचय’ से अवतरित है। इसके रचयिता प्रसिद्ध गीतकार हरिवंशराय बच्चन हैं। इस कविता में कवि जीवन को जीने की शैली बताता है। साथ ही दुनिया से अपने द्वंद्वात्मक संबंधों को उजागर करता है। व्याख्या-कवि कहता है कि उसके मन पर जवानी का पागलपन सवार है। वह उसकी मस्ती में घूमता रहता है। इस दीवानेपन के कारण उसे अनेक दुख भी मिले हैं। वह इन दुखों को उठाए हुए घूमता है। कवि को जब किसी प्रिय की याद आ जाती है तो उसे बाहर से हँसा जाती है, परंतु उसका मन रो देता है अर्थात याद आने पर कवि-मन व्याकुल हो जाता है।कवि कहता है कि इस संसार में लोगों ने जीवन-सत्य को जानने की कोशिश की, परंतु कोई भी सत्य नहीं जान पाया। इस कारण हर व्यक्ति नादानी करता दिखाई देता है। ये मूर्ख (नादान) भी वहीं होते हैं जहाँ समझदार एवं चतुर होते हैं। हर व्यक्ति वैभव, समृद्ध, भोग-सामग्री की तरफ भाग रहा है। हर व्यक्ति अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए भाग रहा है। वे इतना सत्य भी नहीं सीख सके। कवि कहता है कि मैं सीखे हुए ज्ञान को भूलकर नई बातें सीख रहा हूँ अर्थात सांसारिक ज्ञान की बातों को भूलकर मैं अपने मन के कहे अनुसार चलना सीख रहा हूँ। काव्य सौन्दर्य1. पहली चार पंक्तियों में कवि ने आत्माभिव्यक्ति की है तथा अंतिम चार में सांसारिक जीवन के विषय में बताया है। 2. ‘उन्मादों में अवसाद’ में विरोधाभास अलंकार है। 3. ‘लिए फिरता हूँ’ की आवृत्ति से गेयता का गुण उत्पन्न हुआ है। 4. ‘कर यत्न मिटे सब, सत्य किसी ने जाना’ पंक्ति में अनुप्रास अलंकार है। 5. ‘नादान वहीं है, हाय, जहाँ पर दाना’ में सूक्ति जैसा प्रभाव है। 6. खड़ी बोली है। प्रश्न (क) ‘यौवन का उन्माद’ का तात्यय बताइए। उत्तर –(क) कवि प्रेम का दीवाना है। उस पर प्रेम का नशा छाया हुआ है, परंतु उसकी प्रिया उसके पास नहीं है, अत: वह निराश भी है। (ख) कवि संसार के समक्ष हँसता दिखाई देता है, परंतु अंदर से वह रो रहा है क्योंकि उसे अपनी प्रिया की याद आ जाती है। 4. मैं और, और जग और, कहाँ का नाता,मैं और, और जग और, कहाँ का नाता, मैं निज रोदन में राग लिए फिरता
हूँ, शब्दार्थ-नाता-संबंध। वैभव-समृद्ध। पग-पैर। रोदन-रोना। राग-प्रेम। आग-जोश। भूय-राजा। प्रासाद-महल। निछावर-कुर्बान। खडहर-टूटा हुआ भवन। भाग-हिस्सा। प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित कविता ‘आत्मपरिचय’ से उद्धृत है। इसके रचयिता प्रसिद्ध गीतकार हरिवंशराय बच्चन हैं। इस कविता में कवि जीवन को जीने की शैली बताता है। साथ ही दुनिया से अपने द्वंद्वात्मक संबंधों को उजागर करता है। व्याख्या-कवि कहता है कि मुझमें और संसार-दोनों में कोई संबंध नहीं है। संसार के साथ मेरा टकराव चल रहा है। कवि अपनी कल्पना के अनुसार संसार का निर्माण करता है, फिर उसे मिटा देता है। यह संसार इस धरती पर सुख के साधन एकत्रित करता है, परंतु कवि हर कदम पर धरती को ठुकराया करता है। अर्थात वह जिस संसार में रह रहा है, उसी के प्रतिकूल आचार-विचार रखता है।कवि कहता है कि वह अपने रोदन में भी प्रेम लिए फिरता है। उसकी शीतल वाणी में भी आग समाई हुई है अर्थात उसमें असंतोष झलकता है। उसका जीवन प्रेम में निराशा के कारण खंडहर-सा है, फिर भी उस पर राजाओं के महल न्योछावर होते हैं। ऐसे खंडहर का वह एक हिस्सा लिए घूमता है जिसे महल पर न्योछावर कर सके। काव्य सौन्दर्य1. कवि ने अपनी अनुभूतियों का परिचय दिया है। 2. ‘कहाँ का नाता’ में प्रश्न अलंकार है। 3. ‘रोदन में राग’ और ‘शीतल वाणी में आग’ में विरोधाभास अलंकार तथा ‘बना-बना’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। 4. ‘और’ की आवृत्ति में यमक अलंकार है। 5. ‘कहाँ का’ और ‘जग जिस पृथ्वी पर’ में अनुप्रास अलंकार की छटा है। 6. श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति है तथा खड़ी बोली का प्रयोग है।
(क) कवि और संसार के बीच क्या संबंध हैं? उत्तर – (क) कवि और संसार के बीच किसी प्रकार का संबंध नहीं है। संसार
में संग्रह वृत्ति है, कवि में नहीं है। वह अपनी मजी के संसार बनाता व मिटाता है। 5. मैं रोया, इसको तुम कहाते हो गाना,मैं रोया, इसको तुम कहाते हो गाना, मैं बीवानों का वेश लिए फिरता हूँ शब्दार्थ-फूट पड़ा-जोर से रोया। दीवाना-पागल। मादकता-मस्ती। नि:शेष-संपूर्ण। प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित कविता ‘आत्मपरिचय’ से उद्धृत है। इसके रचयिता प्रसिद्ध गीतकार हरिवंश राय बच्चन हैं। इस कविता में कवि जीवन को जीने की अपनी शैली बताता है। साथ ही दुनिया से अपने द्वंद्वात्मक संबंधों को उजागर करता है। व्याख्या-कवि कहता है कि प्रेम की पीड़ा के कारण उसका मन रोता है। अर्थात हृदय की व्यथा शब्द रूप में प्रकट हुई। उसके रोने को संसार गाना मान बैठता है। जब वेदना अधिक हो जाती है तो वह दुख को शब्दों के माध्यम से व्यक्त करता है। संसार इस प्रक्रिया को छंद बनाना कहती है। कवि प्रश्न करता है कि यह संसार मुझे कवि के रूप में अपनाने के लिए तैयार क्यों है? वह स्वयं को नया दीवाना कहता है जो हर स्थिति में मस्त रहता है। समाज उसे दीवाना क्यों नहीं स्वीकार करता। वह दीवानों का रूप धारण करके संसार में घूमता रहता है। उसके जीवन में जो मस्ती शेष रह गई है, उसे लिए वह घूमता रहता है। इस मस्ती को सुनकर सारा संसार झूम उठता है। कवि के गीतों की मस्ती सुनकर लोग प्रेम में झुक जाते हैं तथा आनंद से झूमने लगते हैं। मस्ती के संदेश को लेकर कवि संसार में घूमता है जिसे लोग गीत समझने की भूल कर बैठते हैं। काव्य सौन्दर्य1. कवि मस्त प्रकृति का व्यक्ति है। यह मस्ती उसके गीतों से फूट पड़ती है। 2. ‘कवि कहकर’ तथा ‘झूम झुके’ में अनुप्रास अलंकार और ‘क्यों कवि . अपनाए’ में प्रश्न अलंकार है। 3. खड़ी बोली का स्वाभाविक प्रयोग है। 4. ‘मैं’ शैली के प्रयोग से कवि ने अपनी बात कही है। 5. श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति हुई है। 6. ‘लिए फिरता हूँ’ की आवृत्ति गेयता में वृद्ध करती है। 7. तत्सम शब्दावली की प्रमुखता है।
(ख) कवि स्वयं को क्या कहना पसंद करता हैं और क्यों? उत्तर –(क) कवि कहता है कि जब वह विरह की पीड़ा के कारण रोने लगता है तो संसार उसे गाना समझता है। अत्यधिक वेदना जब शब्दों के माध्यम से फूट पड़ती है तो उसे छंद बनाना समझा जाता है। (ख) कवि स्वयं को कवि की बजाय दीवाना कहलवाना पसंद करता है क्योंकि वह अपनी असलियत जानता है। उसकी कविताओं में दीवानगी है। पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्नप्रश्न 1: कविता एक ओर जग-जीवन का मार लिए घूमने की बात करती है और दूसरी ओर ‘मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ’-विपरीत से लगते इन कथनों का क्या आशय हैं? उत्तर – जग-जीवन का भार लेने से कवि का अभिप्राय यह है कि वह सांसारिक दायित्वों का निर्वाह कर रहा है। आम व्यक्ति से वह अलग नहीं है तथा सुख-दुख, हानि-लाभ आदि को झेलते हुए अपनी यात्रा पूरी कर रहा है। दूसरी तरफ कवि कहता है कि वह कभी संसार की तरफ ध्यान नहीं देता। यहाँ कवि सांसारिक दायित्वों की अनदेखी की बात नहीं करता। वह संसार की निरर्थक बातों पर ध्यान न देकर केवल प्रेम पर केंद्रित रहता है। आम व्यक्ति सामाजिक बाधाओं से डरकर कुछ नहीं कर पाता। कवि सांसारिक बाधाओं की परवाह नहीं करता। अत: इन दोनों पंक्तियों के अपने निहितार्थ हैं। ये एक-दूसरे के विरोधी न होकर पूरक हैं। प्रश्न 2: जहाँ पर दाना रहते हैं, वहीं नादान भी होते
हैं-कवि ने ऐसा क्यों कहा होगा? उत्तर – नादान यानी मूर्ख व्यक्ति सांसारिक मायाजाल में उलझ जाता है। मनुष्य इस मायाजाल को निरर्थक मानते हुए भी इसी के चक्कर में फैसा रहता है। संसार असत्य है। मनुष्य इसे सत्य मानने की नादानी कर बैठता है और मोक्ष के लक्ष्य को भूलकर संग्रहवृत्ति में पड़ जाता है। इसके विपरीत, कुछ ज्ञानी लोग भी समाज में रहते हैं जो मोक्ष के लक्ष्य को नहीं भूलते। अर्थात संसार में हर तरह के लोग रहते हैं। प्रश्न 3: मैं और, और जग और कहाँ का नाता- पंक्ति में ‘और’ शब्द की विशेषता बताइए। उत्तर –यहाँ ‘और’ शब्द का तीन बार प्रयोग हुआ है। अत: यहाँ यमक अलंकार है। पहले ‘और’ में कवि स्वयं को आम व्यक्ति से अलग बताता है। वह आम आदमी की तरह भौतिक चीजों के संग्रह के चक्कर में नहीं पड़ता। दूसरे ‘और’ के प्रयोग में संसार की विशिष्टता को बताया गया है। संसार में आम व्यक्ति सांसारिक सुख-सुविधाओं को अंतिम लक्ष्य मानता है। यह प्रवृत्ति कवि की विचारधारा से अलग है। तीसरे ‘और’ का प्रयोग ‘संसार और कवि में किसी तरह का संबंध नहीं’ दर्शाने के लिए किया गया है। प्रश्न 4: शीतल वाणी में आग’ के होने का क्या अभिप्राय हैं? अयवा ‘शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ’-इस कथन से कवि का क्या आशय है? अयवा ‘आत्मपरिचय’ में कवि के कथन- ‘शीतल वाणी में आग लिए फिरता हुँ’ – का विरोधाभास स्पष्ट र्काजिए। उत्तर – कवि ने यहाँ विरोधाभास अलंकार का प्रयोग किया है। कवि की वाणी यद्यपि शीतल है, परंतु उसके मन में विद्रोह, असंतोष का भाव प्रबल है। वह समाज की व्यवस्था से संतुष्ट नहीं है। वह प्रेम-रहित संसार को अस्वीकार करता है। अत: अपनी वाणी के माध्यम से अपनी असंतुष्टि को व्यक्त करता है। वह अपने कवित्व धर्म को ईमानदारी से निभाते हुए लोगों को जाग्रत कर रहा है। अन्य हल प्रश्नलघूत्तरात्मक प्रश्नप्रश्न 1: ‘आत्मपरिचय’ कविता में कवि हरिवश राय बच्चन ने अपने व्यक्तित्व के किन पक्षों को उभारा है? 1. कवि अपने जीवन में मिली आशाओं-निराशाओं से संतुष्ट है। 2. वह (कवि) अपनी धुन में मस्त रहने वाला व्यक्ति है। 3. कवि संसार को मिथ्या समझते हुए हानि-लाभ, यश-अपयश, सुख-दुख को समान समझता है। 4. कवि संतोषी प्रवृत्ति का है। वह वाणी के माध्यम से अपना आक्रोश प्रकट करता है।
उत्तर –‘आत्मपरिचय’ कविता के रचयिता का मानना है कि स्वयं को जानना दुनिया को जानने से ज्यादा कठिन है। समाज से व्यक्ति का नाता खट्टा-मीठा तो होता ही है। संसार से पूरी तरह निरपेक्ष रहना संभव नहीं। दुनिया अपने व्यंग्य-बाण तथा शासन-प्रशासन से चाहे जितना कष्ट दे, पर दुनिया से कटकर मनुष्य रह भी नहीं पाता क्योंकि उसकी अपनी अस्मिता, अपनी पहचान का उत्स, उसका परिवेश ही उसकी दुनिया है। वह अपना परिचय देते हुए लगातार दुनिया से अपने द्रविधात्मक और द्वंद्वात्मक संबंधों का मर्म उद्घाटित करता चलता है। वह पूरी कविता का सार एक पंक्ति में कह देता है कि दुनिया से मेरा संबंध प्रीतिकलह का है, मेरा जीवन विरुद्धों का सामंजस्य है। प्रश्न
3: ‘आत्मपरिचय’ कविता को द्वष्टि में रखते हुए कवि के कथ्य को अपने शब्दों में प्रस्तुत कीज। उत्तर – ‘आत्मपरिचय’ कविता में कवि कहता है कि यद्यपि वह सांसारिक कठिनाइयों से जूझ रहा है, फिर भी वह इस जीवन से प्यार करता है। वह अपनी आशाओं और निराशाओं से संतुष्ट है। वह संसार से मिले प्रेम व स्नेह की परवाह नहीं करता, क्योंकि संसार उन्हीं लोगों की जयकार करता है जो उसकी इच्छानुसार व्यवहार करते हैं। वह अपनी धुन में रहने वाला व्यक्ति है। कवि संतोषी प्रवृत्ति का है। वह अपनी वाणी के जरिये अपना आक्रोश व्यक्त करता है। उसकी व्यथा शब्दों के माध्यम से प्रकट होती है तो संसार उसे गाना मानता है। वह संसार को अपने गीतों, द्वंद्वों के माध्यम से प्रसन्न करने का प्रयास करता है। कवि सभी को सामंजस्य बनाए रखने के लिए कहता है। प्रश्न 4: कवि को संसार अपूर्ण क्यों लगता है? उत्तर –कवि भावनाओं को प्रमुखता देता है। वह सांसारिक बंधनों को नहीं मानता। वह वर्तमान संसार को उसकी शुष्कता एवं नीरसता के कारण नापसंद करता है। वह बार-बार वह अपनी कल्पना का संसार बनाता है तथा प्रेम में बाधक बनने पर उन्हें मिटा देता है। वह प्रेम को सम्मान देने वाले संसार की रचना करना चाहता है। प्रश्न 5: निम्नलिखित पद्यश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए- मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूँ, मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ. (क) कवि ने ‘स्नेह’ को ‘सुरा’ क्यों कहा है? ससार के प्रति उसके नकारात्मक दृष्टिकोण का क्या कारण है? है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता उत्तर –(क) कवि ने ‘स्नेह’ को ‘सुरा’ इसलिए कहा है क्योंकि वह प्रेम की मादकता में डूब जाता है। इस मादकता के कारण उसे सांसारिक कष्टों की परवाह नहीं रह जाती। (ख) संसार उन लोगों को महत्त्व देता है जो सांसारिकता में डूबे रहते हैं और सांसारिकता को ही सर्वोत्तम मानते हैं। कवि सांसारिकता से दूर रहता है, इसलिए संसार कवि को महत्व नहीं देता। आत्मपरिचय/आत्मपरिचय कविता की व्याख्या/हरिवंशराय बच्चन की कविता आत्मपरिचय का सार/aatmparichay poem by Harivanshray Bacchan class 12 CBSE,HBSE आत्म परिचय कविता में कवि क्या लिए हुए फिरता है?आत्मपरिचय कविता का सारांश
इस कविता में कवि हरिवंश राय बच्चन ने अपने स्वभाव और व्यक्तित्त्व के बारे में बताया है। कवि का इस संसार से प्रीति-कलह का संबंध है क्योंकि वह जग जीवन से जुड़ा भी है और इससे अलग भी है। वह इस संसार का भार (जिम्मेदारियाँ) लिए फिरता है लेकिन उसके जीवन में प्यार की भावना भी है।
आत्म परिचय से आप क्या समझते हैं?आत्म परिचय Atma parichay I Class 12 Hindi Core AROH आरोह (PART 1) NCERT POEM Harivansh roy bacchan - YouTube.
आत्म परिचय कविता से हमें क्या प्रेरणा मिलती है?Solution : . आत्मत्राण. कविता से हमें प्रेरणा मिलती है कि हम अपने काम एवं दायित्वों को पूरी निष्ठा एवं ईमानदारी के साथ पूर्ण करें। हम अपने कार्यों के लिए ईश्वर पर निर्भर न रहें, बल्कि स्वयं के अन्दर ऐसी शक्ति एवं क्षमता विकसित कर लें, जिससे विषम परिस्थितियों एवं कठिनाइयों से जूझने की शक्ति हमारे अन्दर मौजूद हो।
आत्म परिचय कविता के कवि कौन है?प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह, भाग-2' में संकलित कविता 'आत्मपरिचय' से उद्धृत है। इसके रचयिता प्रसिद्ध गीतकार हरिवंश राय बच्चन हैं। इस कविता में कवि जीवन को जीने की अपनी शैली बताता है।
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