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नवीन लोक प्रशासन के उद्भव के कारण1960 के दशक के अन्त में अमरीकी समाज विघटन और टूट-फूट की स्थितियों में से गुजरता हुआ दिखायी दे रहा था। परम्परावादी लोक प्रशासन अमरीकी समाज के संकट को समझने में असफल रहा। सामाजिक-आर्थिक संकटों से उत्पन्न नई माँगों और चुनौतियों का यह सामना करने में अपने आपको असमर्थ पा रहा था। आणविक शास्त्रों से उत्पन्न आतंक, गृहयुद्ध, सामाजिक विभेद, वियतनाम में अघोषित युद्ध, जो विश्व की नैतिक अन्तरात्मा पर प्रहार कर रहा था ने अमरीकी बुद्धिजीवियों को आलोड़ित कर दिया था। ऐसे माहौल में अमरीका के युवा बुद्धिजीवियों को तो और भी बेचैन कर दिया क्योंकि एक ओर न तो शासन के संस्थापित केन्द्र कुछ कर पा रहे थे और न मान्यता प्राप्त शिक्षा के गढ़ों में ही कोई हल-चल थी। समाज विज्ञान के अन्य विषयों की तरह लोक प्रशासन जैसा विषय भी सामाजिक उथल-पुथल के इस दौर में पूरी तरह से हिल उठा। समाज के समक्ष खड़ी इन चुनौतियों का उत्तर नये विचारों और नए नारों में ढूँढ़ना आवश्यक हो गया। ऐसा ही एक नया नारा, नया आन्दोलन ‘नवीन लोक प्रशासन’ के नाम से चल पड़ा। दार्शनिक पृष्ठभूमि– नवीन लोक प्रशासन आन्दोलन लोक प्रशासन के नवयुवक विद्वानों का आन्दोलन है। यह आन्दोलन 1960 के दशक के उत्तरार्द्ध में शुरू हुआ और लगभग एक दशक तक सामाजिक जागरण का उत्प्रेरक बना रहा, जैसाकि इसके एक प्रमुख समर्थक एच. जॉर्ज फ्रेडरिकसन की कृति ‘न्यू पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन’ शीर्षक से इंगित होता है जो कि 1980 में प्रकाशित हुई थी। ‘नवीन लोक प्रशासन’ शब्दबन्ध का प्रयोग लोक प्रशासन विषय के लिए नई दार्शनिक दृष्टि का बोध कराने हेतु किया गया। लोक प्रशासन के रूढ़िवादी सूत्र थे ‘कुशलता’ और ‘मितव्ययिता’ जिन्हें लोक प्रशासन जैसे गतिशील विषय के अपर्याप्त और असन्तोषजनक लक्ष्य माना गया। चूँकि समस्त प्रशासनिक क्रियाविधियों की धुरी मनुष्य है और मनुष्य को कुशलता के यान्त्रिक साँचे में बाँधकर नहीं रखा जा सकता। अतः प्रशासन को मानव उन्मुखी होना चाहिए। तथा उसका दृष्टिकोण मूल्य आधारित हो। अतः नवीन लोक प्रशासन के समर्थकों ने शोध की प्रासंगिकता पर जोर देते हुए यह प्रतिपादित किया कि अनुसंधान के लिए परिष्कृत उपकरणों का विकास करना उपयोगी है, परन्तु उससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण बात वह उद्देश्य है जिसके लिए इन उपकरणों को प्रयोगों में लाया जा रहा है। नवीन लोक प्रशासन के विद्वानों का स्पष्ट मत था कि मूल्यों की आधारशिला पर ही ज्ञान की इमारत खड़ी की जा सकती है और यदि मूल्यों को ज्ञान की प्रेरक शक्ति न माना जाये तो सदा ही यह खतरा रहता है कि ज्ञान को गलत उद्देश्यों के लिए काम में लाया जाएगा। ज्ञान का उपयोग यदि सही उद्देश्यों के लिए करना है तो मूल्यों को उनकी केन्द्रीय स्थिति पर फिर से स्थापित करना आवश्यक होगा। शोध महत्त्वपूर्ण सामाजिक समस्याओं से सम्बद्ध होनी चाहिए और लोक प्रशासन के विद्वानों का काम, समाधानों का सुझाव देने के अतिरिक्त, यह भी है कि वे अभीसिप्त सामाजिक परिवर्तन को लाने के आन्दोलन का क्रियाशील नेतृत्व अपने हाथों में लें। नवीन लोक प्रशासन के लक्ष्यनवीन लोक प्रशासन के लक्ष्य इस प्रकार हैं: 1. प्रासंगिकतापरम्परागत लोक प्रशासन के लक्ष्य थे: कार्यकुशलता व मितव्ययिता जबकि नवीन लोक प्रशासन का लक्ष्य है प्रासंगिकता। अर्थात् सम्बद्ध सामाजिक समस्याओं के प्रति इसमें गहरी चिन्ता है। इसका मूल मन्तव्य है— लोक प्रशासन का ज्ञान एवं शोध साज की। आवश्यकता के सन्दर्भ में ‘प्रासंगिक’ तथा ‘संगतिपूर्ण’ होना चाहिए। अब लोक प्रशासन केवल पोस्डकोर्ब तकनीक से ही सम्बद्ध नहीं रहा अपितु लोक प्रशासन अध्ययनकर्त्ताओं को समाज की मूलभूत चिन्ताओं में प्रत्यक्ष भागीदारी का अवसर मिला। है। ड्वाइट वार ने बार-बार इस बात पर बल दिया है कि लोक प्रशासन उन मुद्दों से अछूता नहीं रह सकता जिनका सामना समाज को करना है। 2. मूल्यनवीन लोक प्रशासन स्पष्ट रूप से आदर्शात्मक है। यह परम्परावादी लोक प्रशासन के मूल्यों को छिपाने के व्यवहार तथा प्रक्रियात्मक तटस्थता को अस्वीकार करता है। मिन्नोबुक सम्मेलन के प्रतिनिधियों ने यह स्पष्टतः कहा कि मूल्य के प्रति तटस्थ लोक प्रशासन असम्भव है। बुद्धिजीवियों के स्तर पर, अमरीका में हाल के कुछ लेखों में लोक प्रशासन में नैतिकता के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है। चूँकि लोक प्रशासन के कार्यों का विस्तार हो रहा है अतः यह जरूरी है कि सार्वजनिक पद अधिकारियों के क्रिया-कलापों में नैतिकता के प्रति चेतना लायी जाए। नैतिक मूल्यों के प्रति फिर से जोर देने के कारण अनेक महत्त्वपूर्ण परिणाम सामने आए हैं जिनका लोक प्रशासन के अध्ययन पर प्रत्यक्ष महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। इससे लोक प्रशासन में उत्तरदायित्व और नियन्त्रण की भावना के प्रति से रुचि बढ़ाने में मदद मिली है। 3. असामाजिक समतापरम्परागत लोक प्रशासन यथास्थितिवादी स्वरूप का था. जबकि नवीन लोक प्रशासन सामाजिक समता के सिद्धान्त पर बल देता है। यह समाज के कमजोर वर्गों-मसल महिलाओं, बच्चों तथा दलितों को सामाजिक न्याय प्रदान करने के लिए संवेदनशील रहता है। नवीन लोक प्रशासन का उद्देश्य विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग का अन्त तक सामाजिक समता पर बल देता है। 4. परिवर्तनसामाजिक समता की प्राप्ति के लिए नवीन लोक प्रशासन परिवर्तन पर बल देता है। यह समाज में यथास्थितिवाद, शोषण, सामाजिक एवं आर्थिक विषमता को समाप्त कर समतायुक्त एवं शोषणविहीन नए समाज की स्थापना करता है। नवीन लोक प्रशासन समाज में परिवर्तन लाने के औजार के रूप में कार्य करता है। संक्षेप में, नवीन लोक प्रशासन आधारशास्त्र, मूल्यों, अभिनव परिवर्तन तथा सामाजिक समानता पर बल देता है। इसके अनुसार मूल्यों की आधारशिला पर ही लोक प्रशासन की इमारत खड़ी की जा सकती है। लोक प्रशासन का औचित्य उसी स्थिति में सर्वमान्य होगा, जबकि समाज में व्याप्त विषमताओं, संघर्षो, आकांक्षाओं, सन्दर्भों एवं चिन्ताओं के उचित समाधान किए जाएँ। नवीन लोक प्रशासन के प्रमुख आयाम हैं—सहभागिता, विकेन्द्रकीरण, मानव-प्रेम, ग्राहक उन्मुखी प्रशासन, लोकतान्त्रिक निर्णय प्रक्रिया तटस्थता के बजाय मूल्यों पर आधारित सेवाभावी प्रतिबद्ध लोक प्रशासन।
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DisclaimerDisclaimer: Sarkariguider does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: You may also likeAbout the authorनवीन लोक प्रशासन का उदय कब हुआ?1971 में ड्वाहट वाल्डो द्वारा संपादित उथल-पुथल के काल में लोक प्रशासन का प्रकाशन.
नवीन लोक प्रशासन से कौन संबंधित है?नवीन लोक-प्रशासन ने इस महत्त्वपूर्ण बात पर बल दिया है कि लोक-प्रशासन को सीधे समाज से जुड़ा होना चाहिए। नवीन लोक-प्रशासन विशुद्ध रूप से एक अमेरिकी धारणा है। भारत जैसे देश में नवीन लोक-प्रकाशन की धारणा या विचारों का प्रसार व्यापक रूप से नहीं हुआ है । 1926 में लोक-प्रशासन की प्रथम पाठ्य-पुस्तक प्रकाशित हुई।
नवीन लोक प्रशासन का जनक कौन है?एक विषय के रूप में लोक-प्रशासन का जन्म 1887 में हुआ। अमेरिका के प्रिन्सटन यूनिवर्सिटी में राजनीतिशास्त्र के तत्कालीन प्राध्यापक वुडरो विल्सन को इस शास्त्र का जनक माना जाता है।
नवीन लोक प्रशासन का प्रमुख लक्षण कौन सा है?नवीन लोक प्रशासन तथ्यों की प्रांसगिकता पर अत्यधिक बल देता है। यह परम्परागत लोक प्रशासन के लक्ष्यों कार्यकुशलता एवं मितव्यतिता को समकालीन समाज की समस्याओं के समाधान हेतु अपर्याप्त मानता है और इस बात पर बल देता है कि लोक प्रशासन का ज्ञान एवं शोध समाज की आवश्यकता के सन्दर्भ में प्रासंगिक तथा संगतिपूर्ण होना चाहिए।
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