नेता जी की मूर्ति को देखकर क्या याद आने लगता है और क्यों? - neta jee kee moorti ko dekhakar kya yaad aane lagata hai aur kyon?

नेता जी की मूर्ति को देखकर क्या याद आने लगता था?


नगरपालिका ने कस्बे के चौराहे पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा स्थापित करवाई थी। लोग जब भी नेताजी की मूर्ति को देखते तो उन्हें नेता जी का आजादी के दिनों वाला जोश याद आने लगता था। उन्हें नेता जी के वे नारे याद आते थे जो लोगों में उत्साह भर देते थे जैसे ‘दिल्ली चलो’ और ‘तुम मुझे खून दो’। उनकी मूर्ति देखकर लोगों को प्रतीत होता था कि कोई उन्हें देश के नवनिर्माण में पुकार रहा है।

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हालदार साहब ने ड्राइवर को पहले चौराहे पर गाड़ी रोकने के लिए मना किया था लेकिन बाद में तुरंत रोकने को कहा-
हालदार साहब पहले मायूस क्यों हो गए थे?


हालदार साहब पहले मायूस हो गए थे क्योंकि हालदार साहब चौराहे पर लगी नेता जी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति को बिना चश्मे के देख नहीं सकते थे। जब से कैप्टन मरा था किसी ने भी नेता जी की मूर्ति पर चश्मा नहीं लगाया था। इसीलिए जब हालदार साहब कस्ये से गुजरने लगे तो उन्होंने ड्राइवर से चौराहे पर गाड़ी रोकने के लिए मनाकर दिया था 

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हालदार साहब ने ड्राइवर को पहले चौराहे पर गाड़ी रोकने के लिए मना किया था लेकिन बाद में तुरंत रोकने को कहा-
हालदार साहब इतनी-सी बात पर भावुक क्यों हो उठे?


चौराहे पर नेता जी की मूर्ति पर बच्चे के हाथ से बना सरकंडे का चश्मा देखकर हालदार साहब भावुक हो गए। पहले उन्हें ऐसा लग रहा था कि अब नेता जी की मूर्ति पर चश्मा लगाने वाला कोई नहीं रहा था। इसलिए उन्होंने ड्राइवर को वहाँ रुकने से मना कर दिया था। परंतु जब उन्होंने नेता जी की मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा देखा तो उनका मन भावुक हो गया। उन्होंने नम आँखों से नेता जी की मूर्ति को प्रणाम किया।

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हालदार साहब ने ड्राइवर को पहले चौराहे पर गाड़ी रोकने के लिए मना किया था लेकिन बाद में तुरंत रोकने को कहा-
 मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा क्या उम्मीद जगाता है?


हालदार साहब जब चौराहे से गुजरे तो न चाहते हुए भी उनकी नज़र नेता जी की मूर्ति पर चली गई। मूर्ति देखकर उन्हें आश्चर्य हुआ क्योंकि मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा लगा हुआ था। सरकंडे का चश्मा देखकर हालदार साहब को यह उम्मीद हुई कि आज के बच्चे कल को देश के निर्माण में सहायक होंगे और अब उन्हें कभी भी चौराहे पर नेता जी की बिना चश्मे की मूर्ति नहीं देखनी पड़ेगी।

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आशय स्पष्ट कीजिए
“बार-बार सोचते, क्या होगा उस कौम का जो अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी-जवानी-ज़िन्दगी सब कुछ होम देने वालों पर हँसती है और अपने लिए बिकने के मौके ढूँढ़ती है।”


लेखक का उपरोक्त वाक्य से यह आशय है कि लेखक बार-बार यही सोचता है कि उस देश के लोगों का क्या होगा जो अपने देश के लिए सब न्योछावर करने वालों पर हँसते है। देश के लिए अपना घर-परिवार, जवानी, यहाँ तक कि अपने प्राण भी देने वालों पर लोग हँसते हैं। उनका मजाक उड़ाते हैं। दूसरों का मजाक उड़ाने वालों के पास लोग जल्दी इकट्‌ठे हो जाते हैं जिससे उन्हें अपना सामान बेचने का अवसर मिल जाता है।

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सेनानी न होते हुए भी चश्मे बाले को लोग कैप्टन क्यों कहते थे?


चश्मे वाला कोई सेनानी नहीं था और न ही वे देश की फौज में था। फिर भी लोग उसे कैप्टन कहकर बुलाते थे। इसका कारण यह रहा होगा कि चश्मे वाले में देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। वह अपनी शक्ति के अनुसार देश के निर्माण में अपना पूरा योगदान देता था। कैप्टन के कस्वे में चौराहे पर नेता जी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति लगी हुई थी। मूर्तिकार उस मूर्ति का चश्मा बनाना भूल गया। कैप्टन ने जब यह देखा तो उसे बड़ा दुःख हुआ। उसके मन में देश के नेताओं के प्रति सम्मान और आदर था। इसीलिए वह जब तक जीवित रहा उसने नेता जी की मूर्ति पर चश्मा लगाकर रखा था। उसकी इसी भावना के कारण लोग उसे कैप्टन कहकर बुलाते थे।

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नेता जी की मूर्ति को देखकर क्या याद आने लगता था?


नगरपालिका ने कस्बे के चौराहे पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा स्थापित करवाई थी। लोग जब भी नेताजी की मूर्ति को देखते तो उन्हें नेता जी का आजादी के दिनों वाला जोश याद आने लगता था। उन्हें नेता जी के वे नारे याद आते थे जो लोगों में उत्साह भर देते थे जैसे ‘दिल्ली चलो’ और ‘तुम मुझे खून दो’। उनकी मूर्ति देखकर लोगों को प्रतीत होता था कि कोई उन्हें देश के नवनिर्माण में पुकार रहा है।

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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
पूरी बात तो अब पता नहीं, लेकिन लगता है कि देश के अच्छे मूर्तिकारों की जानकारी नहीं होने और अच्छी मूर्ति की लागत अनुमान और उपलब्ध बजट से कहीं बहुत ज़्यादा होने के कारण काफी समय ऊहापोह और चिट्ठी पत्री में बरबाद हुआ होगा और बोर्ड की शासनावधि समाप्त की घड़ियों में किसी स्थानीय कलाकार को ही श्वसर देने का निर्णय किया होगा और अंत में कस्बे के इकलौते हाई स्कूल के इकलौते ड्राइंग मास्टर-मान लीजिए मोतीलाल जी - को ही यह काम सौंप दिया गया होगा, जो महीने-भर में मूर्ति बनाकर 'पटक देने’ का विश्वास दिला रहे थे।
मूर्ति-निर्माण का कार्य किसे देने का निर्णय किया गया था?

  • स्थानीय कलाकार को 

  • महानगरीय कलाकार को
  • विदेशी कलाकार को
  • विदेशी कलाकार को

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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
पूरी बात तो अब पता नहीं, लेकिन लगता है कि देश के अच्छे मूर्तिकारों की जानकारी नहीं होने और अच्छी मूर्ति की लागत अनुमान और उपलब्ध बजट से कहीं बहुत ज़्यादा होने के कारण काफी समय ऊहापोह और चिट्ठी पत्री में बरबाद हुआ होगा और बोर्ड की शासनावधि समाप्त की घड़ियों में किसी स्थानीय कलाकार को ही श्वसर देने का निर्णय किया होगा और अंत में कस्बे के इकलौते हाई स्कूल के इकलौते ड्राइंग मास्टर-मान लीजिए मोतीलाल जी - को ही यह काम सौंप दिया गया होगा, जो महीने-भर में मूर्ति बनाकर 'पटक देने’ का बिश्वास दिला रहे थे।
नेता जी की मूर्ति किसी अच्छे मूर्तिकाल से क्यों नहीं बनवाई गई थी?

  • अच्छे मूर्तिकार की जानकारी नहीं थी
  • धन की कमी थी
  • कोई अच्छा मूर्तिकार ही नहीं था
  • कोई अच्छा मूर्तिकार ही नहीं था


A.

अच्छे मूर्तिकार की जानकारी नहीं थी

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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
पूरी बात तो अब पता नहीं, लेकिन लगता है कि देश के अच्छे मूर्तिकारों की जानकारी नहीं होने और अच्छी मूर्ति की लागत अनुमान और उपलब्ध बजट से कहीं बहुत ज़्यादा होने के कारण काफी समय ऊहापोह और चिट्ठी पत्री में बरबाद हुआ होगा और बोर्ड की शासनावधि समाप्त की घड़ियों में किसी स्थानीय कलाकार को ही श्वसर देने का निर्णय किया होगा और अंत में कस्बे के इकलौते हाई स्कूल के इकलौते ड्राइंग मास्टर-मान लीजिए मोतीलाल जी - को ही यह काम सौंप दिया गया होगा, जो महीने-भर में मूर्ति बनाकर 'पटक देने’ का विश्वास दिला रहे थे।
मूर्ति बनवाने में अधिक समय खराब क्यों हुआ था?

  • मूर्तिकार ढूँढने के कारण
  • व्यर्थ की ऊहापोह और चिट्‌ठी-पत्री में
  • सरकारी रोक-टोक के कारण
  • सरकारी रोक-टोक के कारण


B.

व्यर्थ की ऊहापोह और चिट्‌ठी-पत्री में

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निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
पूरी बात तो अब पता नहीं, लेकिन लगता है कि देश के अच्छे मूर्तिकारों की जानकारी नहीं होने और अच्छी मूर्ति की लागत अनुमान और उपलब्ध बजट से कहीं बहुत ज़्यादा होने के कारण काफी समय ऊहापोह और चिट्ठी पत्री में बरबाद हुआ होगा और बोर्ड की शासनावधि समाप्त की घड़ियों में किसी स्थानीय कलाकार को ही श्वसर देने का निर्णय किया होगा और अंत में कस्बे के इकलौते हाई स्कूल के इकलौते ड्राइंग मास्टर-मान लीजिए मोतीलाल जी - को ही यह काम सौंप दिया गया होगा, जो महीने-भर में मूर्ति बनाकर 'पटक देने’ का विश्वास दिला रहे थे।
मूर्तिकार मोती लाल जी किस विषय के अध्यापक थे?

  • नृत्य कला
  • गणित
  • ड्राईंग।
  • ड्राईंग।

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‘नेता जी का चश्मा’ पाठ का उद्‌देश्य स्पष्ट कीजिए।


‘नेता जी का चश्मा’ पाठ के लेखक स्वयंप्रकाश हैं। इस पाठ का उद्‌देश्य देश-प्रेम का वर्णन करना है।
देश का निर्माण कोई अकेला नहीं कर सकता है। जब-जब देश का निर्माण होता है उसमें कुछ नाम प्रसिद्ध हो जाते हैं और कुछ नाम गुमनामी के अंधेरे में खो जाते हैं। प्रस्तुत पाठ में भी यही दर्शाया गया है कि नगरपालिका वाले कस्बे के चौराहे पर नेता जी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति लगवाते हैं। मूर्तिकार नेता जी की मूर्ति का चश्मा बनाना भूल जाता है। उस कस्बे में कैप्टन नाम का व्यक्ति चश्मे बेचने वाला है। उसे बिना चश्मे के नेता जी का व्यक्तित्व अधूरा लगता है। इसलिए वह उस मूर्ति पर अपने पास से चश्मा लगवा देता है। सब लोग उसका मजाक उड़ाते हैं। उसके मरने के बाद नेता जी की मूर्ति बिना चश्मे के चौराहे पर लगी रहती है। बिना चश्मे की मूर्ति हालदार साहब को भी दु:खी कर देती है। वह ड्राइवर से चौराहे पर बिना रुके आगे बढ़ने को कहते हैं लेकिन उनकी नजर अचानक मूर्ति पर पड़ती है जिस पर किसी बच्चे द्वारा सरकंडे का बनाया चश्मा लगा हुआ था। यह दृश्य हालदार साहब को देशभक्ति की भावना से भर देता है। अत: इस पाठ का प्रमुख लक्ष्य है कि देश के निर्माण में करोड़ों गुमनाम व्यक्ति अपने-अपने ढंग से योगदान देते हैं। इस योगदान में बड़े ही नहीं अपितु बच्चे भी शामिल होते हैं।

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नेता जी की मूर्ति को देखकर क्या याद आने लगता है?

लोग जब भी नेताजी की मूर्ति को देखते तो उन्हें नेता जी का आजादी के दिनों वाला जोश याद आने लगता था। उन्हें नेता जी के वे नारे याद आते थे जो लोगों में उत्साह भर देते थे जैसे 'दिल्ली चलो' और 'तुम मुझे खून दो'। उनकी मूर्ति देखकर लोगों को प्रतीत होता था कि कोई उन्हें देश के नवनिर्माण में पुकार रहा है।

मूर्ति का उद्देश्य क्या है?

वे प्रतिनिधित्व करते हैं जिसे अतीत में लोगों ने मनाने और यादगार बनाने के लिए चुना था, वे इतिहास का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। वास्तव में, इतिहास पढ़ाना लगभग कभी भी यही कारण नहीं है कि उन्हें क्यों खड़ा किया जाता है। इसके बजाय, पुरातनता के बाद से सार्वजनिक स्थानों में मूर्तियों का उपयोग आमतौर पर शक्ति और अधिकार का प्रतिनिधित्व करने के लिए किया जाता रहा है।

नेता जी की मूर्ति बनाने में देरी के क्या कारण है?

हालदार साहब के मन में नेता जी की मूर्ति पर चश्मा लगाने वाले के प्रति आदर था। जब उन्हें पता चला कि चश्मा लगाने वाला कोई कैप्टन था तो उन्हें लगा कि वह नेता जी का कोई साथी होगा। परंतु पानवाला उसका मजाक उड़ाते हुए बोला कि वह एक लँगड़ा व्यक्ति है इसलिए वह फौज में कैसे जा सकता है।

नेता जी की मूर्ति पर चश्मा कौन लगाता था और क्यों?

(ख) पानवाला उदास हो गया। उसने पीछे मुड़कर मुँह का पान नीचे थूका और सिर झुकाकर अपनी धोती के सिरे से आँखें पोंछता हुआ बोला- साहब! कैप्टन मर गया । (ग) कैप्टन बार-बार मूर्ति पर चश्मा लगा देता था