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Ans: अपने जीते-जी अपनी जायदाद का स्वामी किसी को बनाना उचित नहीं है।
Ans: वे अपनी जीते-जी ज़मीन किसी को नहीं लिखेंगे
Ans: जाल में फँसी चिड़िया पकड़ से बाहर हो गई थी।
Ans: महंत के।
Ans: ‘a’ और ‘b’ दोनों कथन सत्य हैं।
Ans: चतुर और ज्ञानी।
Ans: मृत्यु से।
Ans: भाइयों द्वारा हरिहर काका के साथ मारपीट।
Ans: हरिहर नाम से एक विद्यालय
Ans: पुलिस के जवान।
Ans: चार।
Ans: साठ बीघे
Ans: हरिहर काका की अच्छी तरह सेवा करो
Ans: हरिहर काका स्वयं उठकर अपनी जरूरतों को पूरा करते थे।
Ans: जब भाइयों की पत्नियों ने उनकी सेवा करनी बंद कर दी
Ans: जब उनके घर एक अतिथि आए और काका को रूखा-सूखा भोजन दिया गया
Ans: अपनी जमीन ठाकुर जी के नाम लिख दो।
Ans: बैकुण्ठ की
Ans: कि हरिहर नाराज होकर चले गए।
Ans: हरिहर काका की पन्द्रह बीघा उपजाऊ जमीन। हरिहर काका के भाइयों ने अपनी पत्नियों को क्या सीख दी थी?Solution. हरिहर काका के तीनों भाइयों ने अपनी पत्नियों को यह सीख दी थी कि हरिहर काका की अच्छी तरह सेवा करें। समय पर उन्हें नाश्ता-खाना दें। किसी बात की तकलीफ़ न होने दें।
I अपने भाइयों के परिवार के प्रति हरिहर काका के मोहभंग की शुरुआत कैसे हुई?भाई खेतों पर गए रहते और औरतें हाल पूछने भी नहीं आतीं। दालान के कमरे में अकेले पड़े हरिहर काका को स्वयं उठकर अपनी ज़रूरतों की पूर्ति करनी पड़ती। ऐसे वक्त अपनी पत्नियों को याद कर-करके हरिहर काका की आँखें भर आतीं। भाइयों के परिवार के प्रति मोहभंग की शुरुआत इन्हीं क्षणों में हुई थी।
हरिहर काका ने अपनी जायदाद के विषय में मन ही मन क्या निश्चय कर लिया था?अपनी जायदाद उन्हें न देना उनके साथ अन्याय करना होगा। हरिहर काका के भाई उनसे प्रार्थना करने लगे कि वे अपने हिस्से की जमीन को उनके नाम लिखवा दें। इस विषय पर हरिहर काका ने बहुत सोचा और अंत में इस परिणाम पर पहुंचे कि अपने जीते-जी अपनी जायदाद का स्वामी किसी और को बनाना ठीक नहीं होगा।
आप हरिहर काका के भाइयों की जगह होते तो क्या करते?ऐसा मैं उनकी ज़मीन-जायदाद के लोभ में नहीं करता, बल्कि पारिवारिक सदस्य सहोदर भाई होने के अलावा मानवता के आधार पर भी करता। मैं अपने परिवार के अन्य सदस्यों से काका के साथ अच्छा व्यवहार करने के लिए कहता ताकि उन्हें ठाकुरबारी जैसी जगह जाने और महंत जैसे ढोंगियों के बहकावे में आने की स्थिति ही न आती।
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