Bharat Me Internet Ka Prarambh Kab HuaGkExams on 12-05-2019 Show आज भारत में इंटरनेट जाना पहचाना नाम है, लेकिन भारत में इंटरनेट सेवा 15 अगस्त 1995 में तब आरंभ हुई जब विदेश संचार निगम लिमिटेड ने अपनी टेलीफोन लाइन के जरिए दुनिया के अन्य कंप्यूटर से भारतीय कंप्यूटरों को जोड़ दिया। जनसामान्य के लिए इंटरनेट विदेश संचार निगम सीमित (VSNL) के गेटवे सर्विस के साथ ही आरंभ हुआ। सन् 1998 में सरकार ने निजी कंपनियों को इंटरनेट सेवा क्षेत्र में आने की अनुमति दे दी। इसी साल देश की पहली साइट इंडिया वर्ल्ड डॉट कॉम आरंभ हुई। रेडिफ डॉट कॉम और इंडिया टाइम्स डॉट कॉम भी आरंभ हुई। सम्बन्धित प्रश्नComments anas on 11-10-2022 Internet ka dusra dor 1993 ko start hua tha निधि on 09-07-2022 भारत मे इंटरनेट का दूसरा दौर कब शुरू हुआ Annu on 07-11-2021 Bharat m internet kb prarambh hua Bharat me interne on 10-06-2021 Bharat me internet kab shuru hua tha Sarita Gulati on 12-04-2021 Internet ka dusra dor kb aarbh hua? Tosif ansari on 11-05-2020 1992 Atiksha on 17-03-2020 Interner patrkarit ko kin kin naam sa jana jata Drishti on 22-02-2020 Bharat mein internet ki shuruaat kab Hui Shekhar on 17-02-2020 Bharat mein internet ka prarambh Kab Hua. Option 1993 1953 1992 Akshay on 18-01-2020 Enternet ka full name
इंटरनेट (अंगरेजी: Internet) आपस में जुड़ल कंप्यूटर नेटवर्क सभ के बैस्विक सिस्टम हवे जे इंटरनेट प्रोटोकाल सूट (टीसीपी/आइपी) के इस्तमाल से दुनिया भर के कंप्यूटर डिवाइस सभ के आपस में जोड़े ला। ई एक तरह से नेटवर्क सभ के नेटवर्क हवे जेह में लोकल से ले के बैस्विक बिस्तार क्षेत्र वाला प्राइवेट, पब्लिक, एकेडेमिक, ब्यावसायिक आ सरकारी नेटवर्क सभ आपस में इलेक्ट्रानिक, वायरलेस आ ऑप्टिकल टेक्नालॉजी के माध्यम से जुड़ल बाड़ें। इंटरनेट पर बिबिध प्रकार के जानकारी संसाधन मौजूद बाड़ें आ बिबिध तरह के सेवा सभ उपलब्ध करावल जालीं जिनहन में वल्ड वाइड वेब के आपस-में-जुड़ल हाइपरटेक्स्ट डाकुमेंट आ एप्लीकेशन, ई-मेल, टेलीफोनी, आ फाइल शेयर करे नियर चीज प्रमुख बाड़ी स। इतिहासइंटरनेट के सुरुआत पैकेट स्विचिंग की शुरुआत से भइल जौन 1960 की दशक में शुरू भइल रहे। इनहन में सभसे महत्व वाला अर्पानेट (ARPANET) के सुरुआत रहल जेवन एगो रिसर्च की दौरान बनावल नेटवर्क रहे। अर्पानेट या एआरपीए नेट एगो प्रोजेक्ट की रूप में अमेरिका के कुछ विश्वविद्यालयन के नेटवर्क से जोड़े के काम कइलस आ ई प्रोटोकॉल बनावे के सुरुआत कइलस जेवना से कंप्यूटर नेटवर्कन के नेटवर्क बनावल जा सके। अर्पानेट के पहुँच बढ़ल 1981 में जब नेशनल साइंस फाउन्डेशन आपन कंप्यूटर साइंस नेटवर्क बनवलस। एकरी बाद 1982 में इंटरनेट प्रोटोकॉल सूट के मानक रूप बनावल गइल। संक्षिप्त इतिहास
इंटरनेट के सर्विसइंटरनेट कई तरह के सर्विस या सेवा उपलब्ध करावे ला। इनहन में से मुख्य तीन गो नीचे दिहल जात बाड़ी स: वर्ल्ड वाइड वेबवल्ड वाइड वेब के एगो चित्र के रूप में इस्कीम आम आदमी इंटरनेट आ वेब के एकही समझेला बाकी इन्हन में अंतर बाटे। वेब एगो सभसे ढेर इस्तेमाल में आवे वाली इंटरनेट सेवा हवे। वेबसाइट देखे खातिर अलग-अलग वेब ब्राउजर बनल बाटें जइसे की माइक्रोसॉफ्ट के इंटरनेट एक्सप्लोरर, गूगल के क्रोम, एपल के सफारी, ऑपेरा, मोजिला फ़ायरफ़ॉक्स नियर ढेर सारा ब्राउजर बाने। इन्हन की मदद से देखे वाला आदमी पन्ना-दर-पन्ना जानकारी देख सकत बाटे जेवन एक दुसरा से हाइपरटेक्स्ट प्रोटोकॉल द्वारा जुड़ल होखे लें। वर्ल्ड वाइड वेब ब्राउजर सॉफ्टवेयर, जइसे कि माइक्रोसॉफ्ट के इंटरनेट एक्स्प्लोरर/एज, मोजिला फायरफॉक्स, ऑपेरा, एप्पल के सफारी, आ गूगल के क्रोम इत्यादि प्रयोगकर्ता लोग के ई सुबिधा देवे लें कि ऊ लोग एक वेब पन्ना से दुसरे वेब पन्ना पर हाइपरलिंक के माध्यम से आवाजाही क सके। ई हाइपरलिंक वेब पन्ना डाकुमेंट के हिस्सा होखे लें आ एक पन्ना से दुसरे ले जाए के कड़ी केरूप में उपलब्ध होखे लें। अइसन डाकुमेंट सभ में डेटा के अउरी दूसर कौनों तरह के कंबिनेशन भी हो सके ला जइसे कि साउंड, पाठ (टेक्स्ट), बीडियो, मल्टीमीडिया आ अउरी कौनों प्रकार के इंटरेक्टिव सामग्री जवन तब रन करे ले जब प्रयोगकर्ता एह कड़ी सभ के क्लिक करे लें या पन्ना के साथ इंटरेक्शन क रहल होखे लें। क्लायंट-साइड के सॉफ्टवेयर में एनीमेशन, गेम ऑफिस एप आ बैज्ञानिक डेमो इत्यादि शामिल हो सके लें। कीवर्ड द्वारा संचालित होखे वाला इंटरनेट रिसर्च भी कइल जा सके ला जेकरा बदे कई गो इंटरनेट सर्च इंजन बाड़ें जइसे कि याहू!, बिंग, गूगल, आ डक-डक-गो। एह तरीका से प्रयोगकर्ता लोग के लगे अपार ऑनलाइन जानकारी तक ले तुरंता (इंस्टैंट) चहुँप संभव होखे ला। छपल किताब, ज्ञानकोश भा मीडिया के तुलना में वर्ल्ड वाइड वेब के इस्तेमाल जानकारी के बिकेंद्रीकरण (डीसेंट्रलाइजेशन) में बहुते गजब के काम कइले बा। संचारसंचार या कम्यूनिकेशन एगो दुसरा प्रमुख सेवा बाटे जेवन इंटरनेट से मिलेला। ईमेल एगो संचार सेवा हवे। डेटा साझा करनाइंटरनेट की मदद से ढेर सारा डेटा ट्रांसफर किया जा सकता है। इंटरनेट प्रयोगकर्ताइंटरनेट के इस्तमाल में गजब के बढ़ती देखल गइल बा। साल 2000 से 2009 के बीच दुनियां में इंटरनेट प्रयोग करे वाला लोग के संख्या 394 मिलियन से बढ़ के 1.858 बिलियन हो गइल। साल 2010 में दुनिया के कुल जनसंख्या के 22 फीसदी लोग के लगे इंटरनेट तक पहुँच हो चुकल रहे आ एह समय ले 1 बिलियन गूगल सर्च रोज होखे लागल, 300 मिलियन प्रयोगकर्ता लोग ब्लॉग पढ़े लागल, आ 2 बिलियन बीडियो रोज यूट्यूब पर देखल जाए लागल। साल 2014 में दुनिया में इंटरनेट इस्तेमाल करे वाला लोग के संख्या 3 बिलियन या 43.6 प्रतिशत पहुँच गइल, लेकिन एह प्रयोगकर्ता लोग के दू-तिहाई हिस्सा धनी देसन से रहल, जहाँ 78.0 प्रतिशत यूरोपीय लोग आ उत्तर आ दक्खिन अमेरिका के 57.4 लोग इंटरनेट प्रयोगकर्ता बन गइल रहल लोग। सुरक्षाइंटरनेट के संसाधन सभ, जइसे कि एकरा से संबंधित हार्डवेयर आ सॉफ्टवेयर वाल अंग सभ, कई तरह के अपराधी या दुरभावग्रस्त कोसिस के निसाना बने लें। अइसन कोसिस के मकसद होला कि अबैध तरीका से इंटरनेट के संसाधन सभ पर कंट्रोल क लिहल जाव, फ्राड, धोखाधड़ी, ब्लैकमेल नियर घटना के अंजाम दिहल जाव या निजी जानकारी के गलत तरीका से हासिल कइल जा सके। अइसन चीज से बचाव करे के उपाय इंटरनेट सुरक्षा भा इंटरनेट सिक्योरिटी हवे। मैलवेयरसाइबर अपराध के सभसे चलनसार तरीका मैलवेयर के इस्तेमाल हवे। मैलवेयर एक तरह के दुरभाव वाला भा खतरनाक रूप से नोकसान पहुँचावे वाला सॉफ्टवेयर होला। एह में कंप्यूटर वायरस, कंप्यूटर वर्म, रैनसमवेयर, बॉटनेट आ स्पाईवेयर सभ के सामिल कइल जाला। एह में से कुछ अइसन प्रोग्राम होलें जे अपना के खुद से कापी क के एक कंप्यूटर से दूसरा में फइले लें आ फाइल अ डेटा के नोकसान चहुँपावे लें। कुछ कंप्यूटर के लॉक क देलें आ बदला में फिरौती के माँग करे लें, कुछ अइसन होलें जे प्रयोगकर्ता के कामकाज के जासूसी करे लें। सर्विलांसकंप्यूटर सर्विलांस के ज्यादातर हिस्सा इंटरनेट पर डेटा आ ट्रैफिक के मॉनिटरिंग के रूप में होला।[1] अमेरिका में कानूनी रूप से ई प्राबिधान बा कि सगरी फोन काल आ ब्रॉडबैंड ट्रैफिक (ईमेल, वेब ट्रैफिक, इंटरनेट मैसेजिंग इत्यादि) रियल-टाइम मॉनीटर कइल जा सके ला, ई काम फेडरल एजेंसी सभ के दायरा में आवे ला।[2][3][4] कंप्यूटर नेटवर्क पर डेटा के ट्रैफिक के मॉनिटरिंग के पैकेट कैप्चर कहल जाला। आसान रूप में समझावल जाय त कंप्यूटर सभ आपस में संबाद करे खाती मैसेज सभ के कई छोट-छोट टुकड़ा में बाँट के साझा करे लें जिनहन के पैकेट कहल जाला आ ईहे पैकेट नेटवर्क के जरिये एक जगह से दूसरा जगह ट्रांसफर होलें आ अपना लक्ष्य के जगह पर पहुँच के दुबारा एकट्ठा (असेंबल) हो के संदेस के रूप ले लेलें। पैकेट मॉनिटरिंग में इनहने के पकड़ल जाला जब ई नेटवर्क में जात्रा क रहल होलें। पैकेट कैप्चर अप्लायंस सभ द्वारा इनहन के पकड़ के अन्य प्रोग्राम सभ के मदद से इनहन के सामग्री के जाँच कइल जाला। पैकेट कैप्चर एक तरह से जानकारी के "एकट्ठा" करे के औजार होला न कि एकर "बिस्लेषण" करे वाला।[5] पैकेट कैप्चर से एकट्ठा कइल भारी मात्रा में डेटा के अन्य सॉफ्टवेयर द्वारा बिस्लेषण कइल जाला, इनहन में कुछ खास शब्द भा वाक्य सभ के फिल्टर कइल जाला, कुछ खास संदेह वाली वेबसाइट इत्यादि के पहुँच के बिस्लेषण कइल जाला।[6] परफार्मेंसदेखल जाय तब इंटरनेट एगो हेटरोजीनस (बिबिधता भरल) नेटवर्क हवे आ एही कारन भौतिक लच्छन सभ, जिनहन में डेटा ट्रांसफर रेट भी शामिल बा, बहुत वैरी करे लें। इंटरनेट इमर्जेंट फेनामेना के उदाहरण हवे जे एकरे बड़हन-पैमाना के संगठन पर डिपेंड करे ला।[7] ट्रैफिकइंटरनेट पर केतना ट्रैफिक (आवाजाही) बाटे ई नापल एक किसिम के कठिन काम बाटे। काहें से कि कौनों अइसन सिंगल प्वाइंट लोकेशन ना बा जहाँ एकरा के नापल जा सके। इंटरनेट एगो मल्टी-टायर वाला आ गैर-हेरारकी वाला टोपोलॉजी वाला चीज हवे। एही से कौनों एगो ख़ास बिंदु ना मिले ला जहाँ से सारा ट्रैफिक गुजरत होखे आ नापल जा सके। तब फिर ट्रैफिक डेटा के अनुमान भर लगावल जा सके ला। ई एस्टीमेट टायर 1 नेटवर्क प्रोवाईडर के पीयरिंग प्वाइंट सभ के एग्रीगेट के आधार पर लगावल जाला, बाकी एह तरीका में बड़हन नेटवर्क प्रोवाईडर सभ के अंदरूनी ट्रैफिक के नापजोख ना संभव हो पावे ला। आउटेजइंटरनेट के गायब हो जाये भा डाउन हो जाए के घटना, जेकरा के इंटरनेट ब्लैकआउट कहल जाला, लोकल सिग्नलिंग में बेवधान के चलते हो सके ला। समुंद्र के भीतर मौजूद केबल सभ के खराबी के कारन बड़हन पैमाना पर इंटरनेट के बंदी हो सके ला चाहे स्लोडाउन हो सके ला। अइसन 2008 में घटना भइल रहल जब समुंद्री केबल सभ के क्षतिग्रस्त हो जाए से इंटरनेट बाधित भइल रहल। कम बिकसित देसन के इंटरनेट डाउन होखे के खतरा बेसी रहे ला काहें से की एहिजे हाई कैपसिटी वाली लिंक के संख्या कम बाटे। जमीन के भीतर बिछल केबल सभ के नोकसान पहुँचे पर अइसन हो सके ला। एगो घटना आर्मीनिया में देखल गइल रहे जब एगो औरत गलती से कबाड़ खनत समय केबिल के नोकसान पहुँचा दिहले रहल आ एकरा चलते लगभग पूरा आर्मेनिया में इंटरनेट ठप हो गइल रहे।[8] पूरा देस ब्यापी इंटरनेट ठप होखे के घटना सरकारी तौर पर भी हो सके ले अगर सरकार द्वारा इंटरनेट के सेंसर कई दिहल जाय। अइसन घटना मिस्र में देखे में आइल जब देस के लगभग 93%[9] oनेटवर्क सभ 2011 में ठप क दिहल गइल रहलें जवना से कि सरकार बिरोधी परदरशन पर रोक लगावल जा सके।[10] एनर्जी के इस्तेमालइंटरनेट चलावे में केतना बिजली खर्चा होले एकर अनुमान सभ बहुत बिबाद के बिसय रहल बाड़ें। एगो पियर-रिव्यू जर्नल में छपल रिसर्च-पेपर में 2014 में पछिला एक दशक में छपल लगभग 20,000 के आसपास सामग्री के आधार पर बिजली के खर्चा के आँकड़ा में भारी अंतर देखल गइल आ ई 0.0064 किलोवाट घंटा प्रति गीगाबाइट ट्रांसफर (kWh/GB) से ले के 136 kWh/GB तक के बीचा में अलग-अलग दर्ज कइल गइल।[11] रिसर्च करे वाला लोग एह गड़बड़झाला खातिर मुख्य रूप से संदर्भ के साल के कारन मानल (जइसे कि, एनर्जी एफिशेंसी के कवना तरीका से गिनती में लिहल गइल बा, समय के साथ एह में होखे वाला सुधार के कइसे गिनल गइल बा) आ "अंतिम माथ पर स्थित पर्सनल कंप्यूटर आ सर्वर सभ के गिनती" एह बिस्लेशन में सामिल बा की ना।[11] साल 2011 में एकेडमिक रिसर्चर लोग ई अनुमान लगावल कि इंटरनेट चलावे में खर्चा होखे वाली कुल एनर्जी 170 से 307 GW के बीचा में बाटे जे पूरा मानव जाति द्वारा इस्तेमाल होखे वाली कुल एनर्जी के दू प्रतिशत से कम बाटे। एह इस्टीमेट में जरूरी चीजन के निर्माण, संचालन आ समय-समय पर लगभग 7500 लाख लैपटाप आ एक अरब स्मार्टफोन अउरी 1000 लाक सर्वर सभ के रिप्लेस करे में खर्चा एनर्जी, राउटर आ सेलफोन टावर, ऑप्टिकल स्विच में, वाईफाई ट्रांसमीटर में आ क्लाउड स्टोरेज में होखे वाला सगरी एनर्जी खर्चा के सामिल कइल गइल रहल।[12][13] एगो बिना पियर-रिव्यू वाले प्रकाशन में 2018 में छपल दि शिफ्ट प्रोजेक्ट (कार्पोरेट स्पांसर्ड फ्रांसीसी थिंक टैंक) में बैस्विक डेटा ट्रांसफर आ जरूरी इंफ़्रास्ट्रक्चर के दुनिया के कुल बैस्विक CO2 एमिशन के लगभग 4% हिस्सेदारी के जानकारी दिहल गइल।[14] एह अध्ययन में इहो बतावल गइल की एह तरीका के डेटा ट्रांसफर में सभसे बेसी लगभग 60% हिस्सेदारी बीडियो स्ट्रीमिंग के रहल जे लगभग 300 मिलियन टन सालाना CO2 एमिशन खाती जिम्मेदार बा, आ तर्क दिहल गइल कि नया "डिजिटल सोबर बेहवार" में बीडियो फाइल के साइज आ ट्रांसफर पर रेगुलेशन के जरूरत बाटे।[15] इहो देखल जाय
संदर्भ
बाहरी कड़ी
|