हरिशंकर परसाई के साहित्य की भाषा शैली - harishankar parasaee ke saahity kee bhaasha shailee

HariShankar Parsai Ki Bhasha Shaili

Pradeep Chawla on 12-05-2019

हरिशंकर परसाई (२२ अगस्त, १९२४ - १० अगस्त, १९९५) हिंदी के प्रसिद्ध लेखक और व्यंगकार थे। उनका जन्म जमानी, होशंगाबाद, मध्य प्रदेश में हुआ था। वे हिंदी के पहले रचनाकार हैं जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया और उसे हल्के–फुल्के मनोरंजन की परंपरागत परिधि से उबारकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा। उनकी व्यंग्य रचनाएँ हमारे मन में गुदगुदी ही पैदा नहीं करतीं बल्कि हमें उन सामाजिक वास्तविकताओं के आमने–सामने खड़ा करती है, जिनसे किसी भी व्यक्ति का अलग रह पाना लगभग असंभव है। लगातार खोखली होती जा रही हमारी सामाजिक और राजनैतिक व्यवस्था में पिसते मध्यमवर्गीय मन की सच्चाइयों को उन्होंने बहुत ही निकटता से पकड़ा है। सामाजिक पाखंड और रूढ़िवादी जीवन–मूल्यों की खिल्ली उड़ाते हुए उन्होंने सदैव विवेक और विज्ञान–सम्मत दृष्टि को सकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया है। उनकी भाषा–शैली में खास किस्म का अपनापा है, जिससे पाठक यह महसूस करता है कि लेखक उसके सामने ही बैठा है।

अनुक्रम

1 शिक्षा

2 जीवन

3 पूछिये परसाई से

4 प्रमुख रचनाएं

5 सम्मान

6 इन्हें भी देखें

7 बाहरी कड़ियाँ

शिक्षा

उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए. की उपाधि प्राप्त की।

जीवन

18 वर्ष की उम्र में वन विभाग में नौकरी। खंडवा में ६ महीने अध्यापन। दो वर्ष (१९४१-४३) जबलपुर में स्पेस ट्रेनिंग कालिज में शिक्षण की उपाधि ली। 1942 से वहीं माडल हाई स्कूल में अध्यापन। १९५२ में उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ी। १९५३ से १९५७ तक प्राइवेट स्कूलों में नौकरी। १९५७ में नौकरी छोड़कर स्वतन्त्र लेखन की शुरूआत। जबलपुर से वसुधा नाम की साहित्यिक मासिकी निकाली, नई दुनिया में सुनो भइ साधो, नयी कहानियों में पाँचवाँ कालम और उलझी–उलझी तथा कल्पना में और अन्त में इत्यादि कहानियाँ, उपन्यास एवं निबन्ध–लेखन के बावजूद मुख्यत: व्यंग्यकार के रूप में विख्यात। परसाई मुख्यतः व्यंग -लेखक है, पर उनका व्यंग केवल मनोरजन के लिए नही है। उन्होंने अपने व्यंग के द्वारा बार-बार पाठको का ध्यान व्यक्ति और समाज की उन कमजोरियों और विसंगतियो की ओर आकृष्ट किया है जो हमारे जीवन को दूभर बना रही है। उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार एवं शोषण पर करारा व्यंग किया है जो हिन्दी व्यंग -साहित्य में अनूठा है। परसाई जी अपने लेखन को एक सामाजिक कर्म के रूप में परिभाषित करते है। उनकी मान्यता है कि सामाजिक अनुभव के बिना सच्चा और वास्तविक साहित्य लिखा ही नही जा सकता। परसाई जी मूलतः एक व्यंगकार है। सामाजिक विसंगतियो के प्रति गहरा सरोकार रखने वाला ही लेखक सच्चा व्यंगकार हो सकता है। परसाई जी सामायिक समय का रचनात्मक उपयोग करते है। उनका समूचा साहित्य वर्तमान से मुठभेड़ करता हुआ दिखाई देता है। परसाई जी हिन्दी साहित्य में व्यंग विधा को एक नई पहचान दी और उसे एक अलग रूप प्रदान किया, इसके लिए हिन्दी साहित्य उनका हमेशा ऋणी रहेगा।

पूछिये परसाई से

परसाई जबलपुर व रायपुर से प्रकाशित अखबार देशबंधु में पाठकों के प्रश्नों के उत्तर देते थे। उनके कोलम का नाम था - पारसी से पूछें। पहले पहल हल्के, इश्किया और फिल्मी सवाल पूछे जाते थे। धीरे-धीरे परसाई जी ने लोगों को गम्भीर सामाजिक-राजनैतिक प्रश्नों की ओर प्रवृत्त किया। दायरा अंतर्राष्ट्रीय हो गया। यह पहल लोगों को शिक्षित करने के लिए थी। लोग उनके सवाल-जवाब पढ़ने के लिये अखबार का इंतजार करते थे।

प्रमुख रचनाएं

कहानी–संग्रह: हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे, भोलाराम का जीव।

उपन्यास: रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज, ज्वाला और जल।

संस्मरण: तिरछी रेखाएँ।

लेख संग्रह: तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे, बेइमानी की परत, अपनी अपनी बीमारी, प्रेमचन्द के फटे जूते, माटी कहे कुम्हार से, काग भगोड़ा, आवारा भीड़ के खतरे, ऐसा भी सोचा जाता है, वैष्णव की फिसलन, पगडण्डियों का जमाना, शिकायत मुझे भी है, सदाचार का ताबीज, विकलांग श्रद्धा का दौर, तुलसीदास चंदन घिसैं, हम एक उम्र से वाकिफ हैं।

सम्मान

विकलांग श्रद्धा का दौर के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित।

सम्बन्धित प्रश्न



Comments Pallavi on 16-01-2022

Harishankar prsai g ki bhasha shalli pr tippni likhe

Bhumi on 10-12-2021

Harishankar parsai ke sahitya ki Bhasha shaili likhiye

Bhumi on 10-12-2021

Hari Shankar parsai ke sahitya ki Bhasha shaili likhiye

Pooja on 15-11-2021

Harishankar parsai ki bhasha shaili .

Mantasha on 08-11-2021

Prem chander ji ki bhasha sheli

Kiran on 11-12-2020

Harishankar parshai chapter ka Saransh.

Megha yadav on 13-05-2020

Vyangkaro ka prichay

Parsaai ji ka janam on 08-12-2019

Parsaai ji ka janam

Praveen on 27-10-2019

Agrawal ki Bhasha Shaili kya hai



कबीर अथवा हरिशंकर परसाई का साहित्यिक परिचय बताइए?

हरिशंकर परसाई (जन्म: 22 अगस्त¸ 1924-1995) हिंदी के प्रसिद्ध कवि और लेखक थे। उनका जन्म जमानी¸ होशंगाबाद¸ मध्य प्रदेश मे हुआ था। वे हिंदी के पहले रचनाकार है¸ जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दरजा दिलाया और उसे हल्के–फुल्के मनोरंजन की परंपरागत परिधि से उबारकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा है।

2 हरिशंकर परसाई ने कौन कौन सी रचनाएं लिखी है?

प्रमुख रचनाएं कहानी–संग्रह: हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे, भोलाराम का जीव। उपन्यास: रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज, ज्वाला और जल। संस्मरण: तिरछी रेखाएँ।

हरिशंकर परसाई के निबंधों की विशेषता क्या है?

हरिशंकर परसाई हिन्दी-साहित्य के एक प्रतिष्ठित व्यंग्य-लेखक थे। मौलिक एवं अर्थपूर्ण व्यंग्यो की रचना में परसाईजी सिद्धहस्त रहे हैं। हास्य एवं व्यंग्यप्रधान निबन्धों की रचना करके, इन्होंने हिन्दी-साहित्य के एक विशिष्ट अभाव की पूर्ति की। इनके व्यंग्यों में समाज एवं व्यक्ति की कमजोरियों पर तीखा प्रहार मिलता है।

श्री हरिशंकर परसाई की व्यंग्य रचना क्या है?

हरिशंकर परसाई के व्यंग्य 'शिकायत मुझे भी है' उनकी रचनाओं में तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे, बेईमानी की परत, वैष्णव की फिसलन, पगडण्डियों का जमाना, शिकायत मुझे भी है, सदाचार का ताबीज, विकलांग श्रद्धा का दौर, तुलसीदास चंदन घिसैं, हम इकउम्र से वाकिफ हैं, जाने पहचाने लोग (व्यंग्य निबंध-संग्रह) शामिल हैं.