खेती-बारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत अपनी किन चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधु कहलाते थे? Show खेती-बारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत वेशभूषा से साधु नहीं लगते थे परंतु उनका व्यवहार साधु जैसा था। वे कबीर के भगत थे। कबीर के ही गीत गाते थे। उनके बताए मार्ग पर चलते थे। वे कभी भी झूठ नहीं बोलते थे। वे कभी भी किसी से निरर्थक बातों के लिए नहीं लड़ते थे परंतु गलत बातों का विरोध करने में संकोच नहीं करते थे। वे कभी भी किसी की चीज को नहीं छूते थे और न ही व्यवहार में लाते थे। उनकी सब चीज साहब (कबीर) की थी। उनके खेत में जो पैदावार होती थी उसे लेकर कबीर के मठ पर जाते थे। वहाँ से उन्हें जो प्रसाद के रूप में मिलता था उसी में अपने परिवार का निर्वाह करते थे। बालगोबिन भगत की इन्हीं चारित्रिक विशेषताओं के कारण लेखक उन्हें साधु मानता था। 452 Views पाठ के आधार पर बताएँ कि बालगोबिन भगत की कबीर पर श्रद्धा किन-किन रूपों में प्रकट हुई है? लेखक के अनुसार
बालगोबिन भगत कबीर के भगत थे। वे कत्पीर को ‘साहब’ कहते थे। वे कबीर के बताए नियमों का दृढ़ता से पालन करते थे। उनके अनुसार उनकी सब चीजें ‘साहब’ की देन हैं। उनके खेत में जो भी पैदावार होती थी, उसे सिर पर लादकर ‘साहब’ के दरबार में पहुँचाते थे। वह सब कुछ भेंट स्वरूप दरबार में रख देते थे। वापसी में जो कुछ भी ‘प्रसाद’ के रूप में मिलता उससे अपना निर्वाह करते थे। 207 Views धान की रोपाई के समय समूचे माहौल को भगत की स्वर लहरियाँ किस तरह चमत्कृत कर देती थी? उस माहौल का शब्द चित्र प्रस्तुत करें। आषाढ़ की फुहार पड़ते ही सारा गाँव खेतों में दिखाई देने लगता था। वह मौसम धान की रोपाई का होता है। खेतों में कहीं हल चल रहे हैं और कहीं धान के पौधों की रोपाई हो रही है। घर की औरतें आदमियों के लिए भोजन लेकर खेतों की मंडेर पर बैठी होती हैं। बच्चे पास में खेल रहे होते हैं। खेतों में ठंडी-ठंडी हवा चलती है। उसी समय सबके कानों में ठंडी-की हवा के साथ मधुर स्वर लहरियाँ पड़ने लगती है। यह स्वर बालगोबिन भगत का होता है। वे भी अपने खेत में धान की रोपाई कर रहे होते हैं। उनका सारा शरीर खेत की गीली मिट्टी से लथ-पथ है। जिस प्रकार उनकी अँगुलिया धान के पौधों को एक-एक करके पंक्तिबद्ध रूप दे रही थीं उसी प्रकार उनका कंठ उनकी संगीत शब्दावली को स्वरों के ताल से ऊपर-नीचे कर रहा था। ऐसे लग रहा था जैसे कि संगीत के कुछ स्वर ऊपर स्वर्ग की ओर जा रहे हैं और कुछ स्वर धरती पर खेतों में काम करने वाले लोगों के कानों में जा रहे हैं। उनका संगीत सुनकर खेतों में काम करने वाले लोगों के तन में लय पैदा कर देता है जिससे वहाँ का सारा वातावरण संगीतमय हो जाता है। 129 Views कुछ मार्मिक प्रसंगों के आधार पर यह दिखाई देता है कि बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। पाठ के आधार पर उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिये। बालगोबिन भगत समाज में प्रचलित मान्यताओं को नहीं मानते थे। वे जाति-पाति में विश्वास नहीं रखते थे। सब लोगों को एक समझते थे। वे भी भगवान के निराकार रूप को मानते थे। भगत मृत्यु को भी आनंद मनाने का अवसर मानते हैं। जब उनके इकलौते बेटे की मृत्यु होती है तो वे अपने बेटे के मृत शरीर को फूलों से सजाते हैं और गीत गाते हैं। उनके अनुसार आज आत्मा रूपी प्रेमिका परमात्मा रूपी प्रेमी से मिल गई हैं उसके मिलन पर आनंद मनाना चाहिए अफसोस नहीं। भगत ने अपने बेटे का क्रिया-कर्म अपनी पुत्रवधू से कराया। उनकी पुत्रवधू ने ही अपने पति की चिता को अग्नि दी थी। उनकी जाति में विधवा के पुनर्विवाह को अनुचित नहीं मानते थे परंतु उनकी पुत्रवधू इसके लिए तैयार नहीं थी। वह उन्हीं के पास रहकर उनकी सेवा करना चाहती थी लेकिन उन्होंने उसे यौवन की ऊँच-नीच का ज्ञान करवाया और पुनर्विवाह के लिए तैयार किया। इससे हम कह सकते हैं कि बालगोबिन पुरानी सामाजिक मान्यताओं के समर्थक नहीं थे। वे अपने स्वार्थ की अपेक्षा दूसरों के हित का ध्यान रखते थे। 143 Views “ऊपर की तस्वीर से यह नहीं माना जाए कि बालगोबिन भगत साधु थे।” क्या साधु की पहचान पहनावे के आधार पर की जानी चाहिए? आप किन आधारों पर यह सुनिश्चित करेंगे कि अमुक व्यक्ति ‘साधु’ है? ‘साधु’ की पहचान उसके पहनावे से नहीं उसके व्यवहार से करनी चाहिए। हर भगवे कपड़े पहनने वाला व्यक्ति साधु नहीं होता अपितु परिवार में रहने वाला व्यक्ति भी साधु हो सकता है। साधु व्यक्ति की पहचान निम्न आधारों पर की जा सकती है: 199 Views भगत के व्यक्तित्व और उनकी बेशभूषा का अपने शब्दों में चित्र प्रस्तुत कीजिए। बालगोबिन भगत मँझोलेकद के गोरे-चिट्टे व्यक्ति थे जिनकी आयु साठ वर्ष से अधिक थी। उनके बाल सफेद थे। वे दाढ़ी तो नहीं रखते थे पर उनके चेहरे पर सफेद बाल जगमगाते ही रहते थे। वे कपड़े बिलकुल कम पहनते थे। कमर में एक लंगोटी और सिर पर कबीर पंथियों जैसी कनफटी टोपी पहनते थे। जब सरदियां आतीं तो एक काली कमली ऊपर से ओढ़ लेते थे। माथे पर सदा चमकता रामानंदी चंदन, जो नाक के एक छोर से ही, औरतों के टीके की तरह शुरू होता था। अपने गले में तुलसी की जड़ों की एक बेडौल माला बाँधे रहते थे। उनमें साधुओं वाली सारी बातें थीं। वे कबीर को ‘साहब’ मानते थे, उन्हीं के गीत गाते रहते थे और उन्हीं के आदेशों पर चलते थे। कभी झूठ नहीं बोलते थे और सदा खरा न्यवहार करते थे। हर बात साफ-साफ करते थे और किसी से व्यर्थ झगड़ा नहीं करते थे। किसी की चीज को तो कभी छूते नहीं थे। वह दूसरों के खेत में शौच तक के लिए नहीं बैठते थे। उनके खेत में जो कुछ पैदा होता उसे सिर पर रख कर चार कोस दूर कबीर पंथी मठ में ले जाते थे और प्रमाद रूप में कुछ वापिस ले आते थे। 661 Views बाल गोविंद भगत के खेत में जो भी पैदा होता था वह उसका क्या करते थे?वह गृहस्थ थे; लेकिन उनकी सब चीज़ 'साहब' की थी। जो कुछ खेत में पैदा होता, सिर पर लादकर पहले उसे साहब के दरबार में ले जाते - जो उनके घर से चार कोस दूर पर था - एक कबीरपंथी मठ से मतलब ! वह दरबार में 'भेंट' रूप रख लिया जाकर 'प्रसाद' रूप में जो उन्हें मिलता, उसे घर लाते और उसी से गुज़र चलाते !
बालगोबिन भगत के खेत में जो कुछ पैदा होता था उसे सिर पर लाद कर वे सबसे पहले कहाँ जाते थे?(5) कुछ खेत में पैदा होता, सिर पर लादकर पहले उसे कबीरपंथी मठ में ले जाते, वहाँ से जो कुछ भी भेंट स्वरुप मिलता था उसे प्रसाद स्वरुप घर ले जाते थे।
बालगोबिन भगत अपने खेत में किसकी रोपनी कर रहे थे?कमर में केवल लंगोटी पहनते और सिर पर कबीर पंथियों की-सी कनफटी टोपी | माथे पर रामानंदी चंदन का टीका और गले में तुलसी की जड़ों की बेडौल माला पहनते थे। वे किसी दूसरे की वस्तु को छूते तक न थे। बालगोबिन भगत का एक रेखाचित्र प्रस्तुत कीजिए ।
खेत में पैदा हुई फसल को कहाँ ले जाते थे?कालांतर में खेती कर, चावल, गेहूँ एवं अन्य खाद्य फसलों को उत्पादित कर सकें। इस प्रकार कृषि का प्रारम्भ हुआ। जब एक ही किस्म के पौधे किसी स्थान पर बड़े पैमाने पर उगाए जाते हैं, तो इसे फसल कहते हैं।
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