भारत में वर्तमान मुख्य चुनाव आयुक्त कौन है - bhaarat mein vartamaan mukhy chunaav aayukt kaun hai

भारत एक समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य और दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। आधुनिक भारतीय राष्ट्र राज्य 15 अगस्त 1 9 47 को अस्तित्व में आया था। तब से संविधान, निर्वाचन कानून और व्यवस्था में निहित सिद्धांतों के अनुसार नियमित अंतराल पर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव आयोजित किए गए हैं।

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भारत के संविधान ने भारत के निर्वाचन आयोग में प्रत्येक राज्य के संसद और विधानमंडल के चुनाव और भारत के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के कार्यालयों के चुनाव के संचालन के लिए पूरी प्रक्रिया के अधीक्षण, दिशा और नियंत्रण में निहित किया है।

भारत का निर्वाचन आयोग स्थायी संवैधानिक निकाय है। चुनाव आयोग 25 जनवरी 1 9 50 को संविधान के अनुसार स्थापित किया गया था। आयोग ने 2001 में अपनी स्वर्णिम जयंती मनाई।

मूल रूप से आयोग के पास केवल एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त था। वर्तमान में इसमें मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दो निर्वाचन आयुक्त शामिल हैं।
पहली बार 16 अक्टूबर 1 9 8 9 को दो अतिरिक्त आयुक्त नियुक्त किए गए थे लेकिन 1 जनवरी 1 99 0 तक उनका बहुत ही कम कार्यकाल था। बाद में, 1 अक्टूबर 1 99 3 को दो अतिरिक्त चुनाव आयुक्त नियुक्त किए गए। मल्टी-सदस्य आयोग की अवधारणा तब से चल रही है, जिसमें बहुमत से निर्णय लेने की शक्ति है।

आयोग के पास एक पदानुक्रमित सेट में, लगभग 300 अधिकारी शामिल हैं, जिसमें नई दिल्ली में एक अलग सचिवालय है।

भारत निर्वाचन आयोग (अंग्रेज़ी: Election Commission of India) एक स्वायत्त एवं अर्ध-न्यायिक संस्थान है जिसका गठन भारत में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष रूप से विभिन्न से भारत के प्रातिनिधिक संस्थानों में प्रतिनिधि चुनने के लिए किया गया था। भारतीय चुनाव आयोग की स्थापना 25 जनवरी 1950 को की गयी थी।

संरचना

आयोग में वर्तमान में एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त होते हैं। जब यह पहले पहल 1950 में गठित हुआ तब से और 15 अक्टूबर, 1989 तक केवल मुख्य निर्वाचन आयुक्त सहित यह एक एकल-सदस्यीय निकाय था। 16 अक्टूबर, 1989 से 1 जनवरी, 1990 तक यह आर. वी. एस. शास्त्री (मु.नि.आ.) और निर्वाचन आयुक्त के रूप में एस.एस. धनोवा और वी.एस. सहगल सहित तीन-सदस्यीय निकाय बन गया। 2 जनवरी, 1990 से 30 सितम्बर, 1993 तक यह एक एकल-सदस्यीय निकाय बन गया और फिर 1 अक्टूबर, 1993 से यह तीन-सदस्यीय निकाय बन गया।[2]

मुख्य चुनाव आयुक्त

चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति एवं कार्यावधि

मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति भारत का राष्ट्रपति करता है। मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल 6 वर्ष या आयु 65 साल, जो पहले हो, का होता है जबकि अन्य चुनाव आयुक्तों का कार्यकाल 6 वर्ष या आयु 62 साल, जो पहले हो, का होता हैं। चुनाव आयुक्त का सम्मान और वेतन भारत के सर्वोच्च न्यायलय के न्यायधीश के सामान होता है। मुख्य चुनाव आयुक्त को संसद द्वारा महाभियोग के जरिए ही हटाया जा सकता हैं।

भारत निर्वाचन आयोग के पास विधानसभा, लोकसभा, राज्यसभा और राष्ट्रपति आदि चुनाव से सम्बंधित सत्ता होती है जबकि ग्रामपंचायत, नगरपालिका, महानगर परिषद् और तहसील एवं जिला परिषद् के चुनाव की सत्ता सम्बंधित राज्य निर्वाचन आयोग के पास होती है।

भारतीय मुख्य चुनाव आयुक्त भारतीय चुनाव आयोग का प्रमुख होता है और भारत में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष रूप से राष्ट्र और राज्य के चुनाव करवाने का उत्तरदायी होता हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति भारत का राष्ट्रपति करता है। वर्तमान में भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार है एवं अन्य दो निर्वाचन आयुक्त अरुण गोयल हैं

मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु, जो पहले हो, का होता है। चुनाव आयुक्त का सम्मान और वेतन भारत के सर्वोच्च न्यायलय के न्यायधीश के सामान होता है। मुख्य चुनाव आयुक्त को संसद द्वारा महाभियोग पर राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है।

मुख्य चुनाव आयुक्तों की सुची [3] :

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO), राष्ट्रीय अंतरिक्ष परिवहन नीति (NSTP), इन-स्पेस, न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL), इंडियन स्पेस एसोसिएशन (ISpA)

मेन्स के लिये:

अंतरिक्ष क्रांति की आवश्यकता और संबंधित पहल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष संघ (ISpA) की वर्षगाँठ मनाने के लिये इंडियन स्पेस कॉन्क्लेव का आयोजन किया गया।

  • अर्नस्ट एंड यंग (EY) और भारतीय अंतरिक्ष संघ (ISpA) द्वारा तैयार की गई संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था वर्ष 2025 तक 13 बिलियन अमेरिकी डाॅलर तक पहुँचने के लिये तैयार है।

प्रमुख बिंदु:

  • स्पेस-लॉन्च सेगमेंट 13% की कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट (CAGR) से बढ़ेगा, जो निजी भागीदारी बढ़ने, नवीनतम प्रौद्योगिकी अपनाने और लॉन्च सेवाओं की कम लागत से प्रेरित है।
  • उपग्रह सेवाएँ और अनुप्रयोग खंड वर्ष 2025 तक अंतरिक्ष पारिस्थितिकी तंत्र के 36 प्रतिशत के साथ अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा हिस्सा होगा।
  • वर्ष 2025 तक देश का उपग्रह विनिर्माण 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाएगा। वर्ष 2020 में यह 2.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
    • उपग्रह निर्माण भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में दूसरा सबसे तेज़ी से बढ़ने वाला क्षेत्र होगा।

भारतीय अंतरिक्ष संघ (ISpA):

  • परिचय:
    • इसे वर्ष 2021 में लॉन्च किया गया था, यह अंतरिक्ष और उपग्रह कंपनियों का प्रमुख उद्योग संघ है।
    • अंतरिक्ष सुधार के चार स्तंभ:
      • निजी क्षेत्र को नवाचार की स्वतंत्रता की अनुमति देना।
      • सरकार की भूमिका प्रवर्तक के रूप में।
      • युवाओं को भविष्य के लिये तैयार करना।
      • अंतरिक्ष क्षेत्र को आम आदमी की प्रगति के लिये एक संसाधन के रूप में देखना।
    • ISpA को भारतीय अंतरिक्ष उद्योग को एकीकृत करने के उद्देश्य से प्रारंभ किया गया है। ISpA का प्रतिनिधित्व प्रमुख घरेलू और वैश्विक निगमों द्वारा किया जाएगा जिनके पास अंतरिक्ष तथा उपग्रह प्रौद्योगिकियों में उन्नत क्षमताएँ हैं।
  • उद्देश्य:
    • ISpA भारत को आत्मनिर्भर, तकनीकी रूप से उन्नत और अंतरिक्ष क्षेत्र में अग्रणी बनाने के लिये सरकार तथा उसकी एजेंसियों सहित भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में सभी हितधारकों के साथ नीतिगत एकीकरण एवं परामर्श करेगा।
    • ISpA भारतीय अंतरिक्ष उद्योग के लिये वैश्विक संबंध बनाने की दिशा में भी काम करेगा ताकि देश में महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकी और निवेश लाया जा सके तथा अधिक उच्च कौशल वाली नौकरियाँ सृजित की जा सकें।
  • महत्त्व:
    • संगठन के मुख्य लक्ष्यों में से एक भारत को वाणिज्यिक अंतरिक्ष-आधारित क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर अग्रणी बनाने की दिशा में सरकार के प्रयासों को पूरा करना है।
    • ISRO के रॉकेट द्वारा विभिन्न देशों के पेलोड और संचार उपग्रहों को ले जाने में लंबा समय लगता है, निजी हितधारकों के प्रवेश से इसमें तेज़ी आएगी।
    • निजी क्षेत्र की कई कंपनियों ने भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में रुचि दिखाई है, जिसमें अंतरिक्ष आधारित संचार नेटवर्क सामने आ रहे हैं।

अंतरिक्ष क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता:

  • अंतरिक्ष क्षेत्र के बाज़ार को बढ़ाने की आवश्यकता:
    • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) केंद्र द्वारा वित्तपोषित है और इसका वार्षिक बजट 14,000 से 15,000 करोड़ रुपए के मध्य है, इसका अधिकांश उपयोग रॉकेट और उपग्रहों के निर्माण में किया जाता है।
    • भारत में अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का आकार छोटा है। इस क्षेत्र के आकार को बढ़ाने के लिये निजी हितधारकों का बाज़ार में प्रवेश करना अनिवार्य है।
    • इसरो सभी निजी हितधारकों के लिये ज्ञान और प्रौद्योगिकी, जैसे कि रॉकेट एवं उपग्रहों की निर्माण तकनीक को साझा करने  योजना बना रहा है।
      • संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप, रूस जैसे देशों में बोइंग, स्पेसएक्स, एयरबस, वर्जिन गैलेक्टिक आदि बड़ी निजी कंपनियाँ अंतरिक्ष उद्योग में संलग्न हैं।
  • निजी क्षेत्रं में सुधार:
    • इस क्षेत्र में निजी क्षेत्र की हमेशा से भागीदारी रही है, लेकिन यह पूरी तरह से पुर्जों और उप-प्रणालियों के निर्माण तक सीमित है। रॉकेट एवं उपग्रहों के निर्माण में सक्षम होने के लिये उद्योगों को प्रोत्साहन प्रदान करने की आवश्यकता है।
    • निजी हितधारक अंतरिक्ष आधारित अनुप्रयोगों और सेवाओं के विकास के लिये आवश्यक नवाचार कर सकते हैं।
    • इसके अतिरिक्त इन सेवाओं की मांग विश्व स्तर पर बढ़ रही है, अधिकांश क्षेत्रों में उपग्रह डेटा, इमेजरी और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा रहा है।

संबंधित पहलें:

  • इन-स्पेस (IN-SPACe):
    • इन-स्पेस को निजी कंपनियों को भारतीय अंतरिक्ष अवसंरचना का उपयोग करने के एक समान अवसर प्रदान करने के लिये लॉन्च किया गया था।
    • यह ISRO और अंतरिक्ष से संबंधित गतिविधियों में भाग लेने या भारत के अंतरिक्ष संसाधनों का उपयोग करने वाले सभी लोगों के मध्य सिंगल-पॉइंट इंटरफेस के रूप में कार्य करता है।
  • न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL):
    • बजट 2019 में घोषित NSIL का उद्देश्य भारतीय उद्योग भागीदारों के माध्यम से वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिये ISRO द्वारा वर्षों से किये जा रहे अनुसंधान और विकास का उपयोग करना है।

आगे  की राह

  • भारतीय अंतरिक्ष उद्योग पर ISRO के एकाधिकार को ख़त्म करने के लिये एक नई नीति के निर्माण की आवश्यकता है जिसके तहत इच्छुक एवं सक्षम निजी अभिकर्त्ताओं के साथ उपग्रहों एवं रॉकेटों को बनाने के लिये आवश्यक ज्ञान और प्रौद्योगिकी को साझा किया जा सकता है।
  • भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम दुनिया के सर्वश्रेष्ठ अंतरिक्ष कार्यक्रमों में से एक है, इस क्षेत्र में FDI की अनुमति देने का कदम भारत को वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में एक महत्त्वपूर्ण अभिकर्ता के रूप में स्थापित कर सकता है।
  • अंतरिक्ष क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) विदेशी अभिकर्त्ताओं को भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में उद्यम करने की अनुमति देगा, इससे राष्ट्रीय और विदेशी भंडार में योगदान प्राप्त होगा, साथ ही प्रौद्योगिकी हस्तांतरण एवं नवाचारों हेतु अनुसंधान को बढ़ावा मिलेगा।
  • इसके आलावा भारतीय अंतरिक्ष गतिविधि विधेयक पेश किये जाने से निजी कंपनियों को अंतरिक्ष क्षेत्र का अभिन्न अंग बनने के बारे में अधिक स्पष्टता मिल सकती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

 ISRO द्वारा प्रक्षेपित मंगलयान:

  1. इसे मार्स ऑर्बिटर मिशन भी कहा जाता है
  2. इसने भारत को USA के बाद मंगल के चारों ओर अंतरिक्षयान को चक्रमण कराने वाला दूसरा देश बना दिया है।
  3. इसने भारत को एकमात्र ऐसा देश बना दिया है, जिसने अपने अंतरिक्षयान को मंगल के चारों ओर चक्रमण कराने में पहली बार में ही सफ़लता प्राप्त कर ली।

उपुर्यक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3


मेन्स

प्रश्न. भारत की अपने अंतरिक्ष स्टेशन बनाने की क्या योजना है और इससे हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम को क्या लाभ होगा? (2019)

प्रश्न. अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों पर चर्चा कीजिये। इस तकनीक के अनुप्रयोग ने भारत को अपने सामाजिक-आर्थिक विकास में कैसे मदद की है? (2016)

स्रोत: द हिंदू

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शासन व्यवस्था

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सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम

    टैग्स:
  • सामान्य अध्ययन-II
  • सूचना का अधिकार
  • न्यायिक समीक्षा
  • पारदर्शिता और जवाबदेहिता

प्रिलिम्स के लिये:

सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, केंद्रीय सूचना आयोग

मेन्स के लिये:

सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, पारदर्शिता और जवाबदेही

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, सूचना का अधिकार (Right to Information-RTI) अधिनियम के तहत सूचना आयोगों में अपील या शिकायतों के लंबित मामले लगातार बढ़ रहे हैं।

रिपोर्ट के निष्कर्ष:

  • लंबित मामले:
    • वर्तमान में भारत भर में 26 सूचना आयोगों के पास लगभग 3.15 लाख शिकायतें या अपील लंबित हैं।
    • वर्ष 2019 में लंबित अपीलों और शिकायतों की संख्या 2,18,347 थी जो 2022 में बढ़कर 3,14,323 हो गई।
    • सबसे अधिक लंबित मामले महाराष्ट्र में थे, उसके बाद उत्तर प्रदेश, कर्नाटक में थे।
  • निष्क्रिय सूचना आयोग:
    • देश भर में 29 सूचना आयोगों में से दो पूरी तरह से निष्क्रिय हैं, चार बगैर प्रमुख अधिकारी के संचालित हो रहे हैं और केवल 5% पदों पर ही महिलाएँ हैं।
      • झारखंड और त्रिपुरा क्रमशः 29 महीने और 15 महीने से पूरी तरह से निष्क्रिय हैं। मणिपुर, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल तथा आंध्र प्रदेश में सूचना आयोग कार्यालय प्रमुख अधिकारी के बिना संचालित हो रहे हैं।
  • जुर्माना:
    • आयोगों ने उन 95% मामलों में जुर्माना नहीं लगाया जहाँ जुर्माना संभावित रूप से आवश्यक था।
  • मामलों का विलंबित निपटान:
    • रिपोर्ट में कई आयोगों में मामलों के विलंबित निपटान दरों और उनके कामकाज में पारदर्शिता की कमी के बारे में भी चिंता व्यक्त की गई है।
  • RTI आवेदनों के लिये ई-फाइलिंग सुविधा:
    • 29 में से केवल 11 सूचना आयोग RTI आवेदनों या अपीलों के लिये ई-फाइलिंग की सुविधा प्रदान करते हैं, जिनमें से केवल पाँच ही कार्यरत हैं।

सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम:

  • परिचय:
    • सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 सरकारी सूचना के लिये नागरिकों के प्रश्नों का समय पर जवाब देना अनिवार्य बनाता है।
    • सूचना का अधिकार अधिनियम का मूल उद्देश्य नागरिकों को सशक्त बनाना, सरकार के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देना, भ्रष्टाचार को रोकना तथा वास्तविक अर्थों में हमारे लोकतंत्र का लोगों के लिये कार्य करना है।
  • सूचना का अधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2019:
    • इसमें प्रावधान किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त और एक सूचना आयुक्त (केंद्र के साथ-साथ राज्यों के) केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित अवधि के लिये पद धारण करेंगे। इस संशोधन से पहले इनका कार्यकाल 5 साल के लिये तय किया गया था।
    • इसमें प्रावधान किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त (केंद्र के साथ-साथ राज्यों के) के वेतन, भत्ते और अन्य सेवा संबंधी शर्तें केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित की जाएंगी।
      • इस संशोधन से पूर्व, मुख्य सूचना आयुक्त के वेतन, भत्ते और अन्य सेवा संबंधी शर्तें मुख्य चुनाव आयुक्त के समान थीं और सूचना आयुक्त के वेतन, भत्ते और अन्य सेवा संबंधी शर्तें एक चुनाव आयुक्त (राज्यों के मामले में राज्य चुनाव आयुक्त) के समान थीं।
    • इसने मुख्य सूचना आयुक्त, सूचना आयुक्त, राज्य मुख्य सूचना आयुक्त, और राज्य सूचना आयुक्त के लिये पेंशन या किसी अन्य सेवानिवृत्ति लाभ के कारण वेतन कटौती से संबंधित खंडों को समाप्त कर दिया, जो उन्हें उनके सरकारी नौकरी के लिये प्राप्त हुए थे।
    • RTI (संशोधन) अधिनियम, 2019 की आलोचना कानून को कमज़ोर करने और केंद्र सरकार को अधिक शक्तियाँ देने के आधार पर की गई थी।
  • कार्यान्वयन में समस्याएँ:
    • सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा प्रोएक्टिव डिस्क्लोज़र में गैर-अनुपालन।नागरिकों के प्रति लोक सूचना अधिकारियों (PIO) का शत्रुतापूर्ण रवैया और सूचना छिपाने के लिये सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम के प्रावधानों की गलत व्याख्या करना।
    • जनहित और निजता के अधिकार के संबंध में स्पष्टता का अभाव।
    • राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव और खराब बुनियादी ढाँचा।
    • सार्वजनिक महत्त्व के आवश्यक मामलों पर सक्रिय नागरिकों द्वारा किये गए सूचना अनुरोधों की अस्वीकृति।
    • RTI कार्यकर्त्ताओं और आवेदकों की आवाज दबाने के लिये उनके खिलाफ हमलों और धमकियों जैसे अन्य साधन।

केंद्रीय सूचना आयोग (CIC):

  • स्थापना: CIC की स्थापना सूचना का अधिकार अधिनियम (2005) के प्रावधानों के तहत वर्ष 2005 में केंद्र सरकार द्वारा की गई थी। यह संवैधानिक निकाय नहीं है।
  • सदस्य: इसमें एक मुख्य सूचना आयुक्त होता है और दस से अधिक सूचना आयुक्त नहीं हो सकते हैं।
  • नियुक्ति: उन्हें राष्ट्रपति द्वारा एक समिति की सिफारिश पर नियुक्त किया जाता है जिसमें अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष का नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नामित केंद्रीय कैबिनेट मंत्री शामिल होते हैं।
  • क्षेत्राधिकार: आयोग का अधिकार क्षेत्र सभी केंद्रीय लोक प्राधिकरणों तक है।
  • कार्यकाल: मुख्य सूचना आयुक्त और एक सूचना आयुक्त केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित अवधि या 65 वर्ष की आयु तक (जो भी पहले हो) पद पर रह सकता है।
    • वे पुनर्नियुक्ति के पात्र नहीं हैं।
  • CIC की शक्तियाँ और कार्य:
    • आयोग का कर्तव्य है कि वह सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत किसी विषय पर प्राप्त शिकायतों के मामले में संबंधित व्यक्ति से पूछताछ करे।
    • आयोग उचित आधार होने पर किसी भी मामले में स्वतः संज्ञान (Suo-Moto Power) लेते हुए जाँच का आदेश दे सकता है।
    • आयोग के पास पूछताछ करने हेतु सम्मन भेजने, दस्तावेज़ों की आवश्यकता आदि के संबंध में सिविल कोर्ट की शक्तियाँ होती हैं।

आगे की राह

  • सूचना आयोगों का समुचित कामकाज:
    • लोगों को सूचना के अधिकार का एहसास कराने के लिये सूचना आयोगों का उचित कामकाज महत्त्वपूर्ण है।
    • RTI कानून के तहत सूचना आयोग अंतिम अपीलीय प्राधिकरण हैं और लोगों के सूचना के मौलिक अधिकार की रक्षा एवं सुविधा के लिये अनिवार्य हैं।
  • पारदर्शिता:
    • पारदर्शिता पर्यवेक्षकों को अधिक प्रभावी और पारदर्शी तरीके से कार्य करने की तत्काल आवश्यकता है।
  • प्रणाली का डिजिटलीकरण:
    • डिजिटल RTI पोर्टल (वेबसाइट या मोबाइल एप) अधिक कुशल और नागरिक-अनुकूल सेवाएँ प्रदान कर सकता है जो पारंपरिक माध्यम से संभव नहीं है।
    • यह पारदर्शिता चाहने वालों और सरकार दोनों के लिये फायदेमंद होगा।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न: सूचना का अधिकार अधिनियम केवल नागरिकों के सशक्तीकरण के बारे में नहीं है, यह अनिवार्य रूप से जवाबदेही की अवधारणा को पुनःपरिभाषित करता है। चर्चा कीजिये। (2018)

स्रोत: द हिंदू

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उपासना स्थल अधिनियम, 1991

    टैग्स:
  • सामान्य अध्ययन-II
  • सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप
  • भारतीय संविधान

प्रिलिम्स के लिये:

उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991

मेन्स के लिये:

भारतीय संविधान, उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991, संबंधित प्रावधान

चर्चा में क्यों?

सॉलिसिटर जनरल ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि उपासना स्थल अधिनियम, 1991 की वैधता अयोध्या मामले में उसकी पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ की राय द्वारा "कवर नहीं की जा सकती है"।

उपासना स्थल अधिनियम:

  • विषय: यह किसी भी उपासना स्थल के रूपांतरण को प्रतिबंधित करने और उसके धार्मिक स्वरुप के रखरखाव और उससे संबंधित या उसके आनुषंगिक मामलों के लिये के एक अधिनियम के रूप में वर्णित किया गया है जैसा कि यह 15 अगस्त, 1947 को था।
  • छूट:
    • अयोध्या में विवादित स्थल को इस अधिनियम से छूट दी गई थी। इस छूट के चलते अयोध्या मामले में इस कानून के लागू होने के बाद भी सुनवाई चलती रही।
    • अयोध्या विवाद के अलावा इस अधिनियम में इन्हें भी छूट दी गई है:
      • कोई भी पूजा स्थल जो एक प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक है, या एक पुरातात्त्विक स्थल है जो प्राचीन स्मारक और पुरातत्त्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम, 1958 द्वारा संरक्षित है।
      • एक ऐसा वाद जो अंतत: निपटा दिया गया हो।
      • कोई भी विवाद जो पक्षों द्वारा सुलझाया गया हो या किसी स्थान का स्थानांतरण जो अधिनियम के शुरू होने से पहले सहमति से हुआ हो।
  • दंड:
    • अधिनियम की धारा 6 अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर जुर्माने के साथ अधिकतम तीन वर्ष के कारावास की सज़ा का प्रावधान करती है।
  • आलोचना:
    • इस कानून को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि यह न्यायिक समीक्षा पर रोक लगाता है, जो कि संविधान की एक बुनियादी विशेषता है, साथ ही यह एक "मनमाना तर्कहीन पूर्वव्यापी कटऑफ तिथि" आरोपित करता है जो हिंदू, जैन, बौद्ध एवं सिखों के धार्मिक अधिकारों को सीमित करता है।
    • धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन: यह न्यायिक समीक्षा के उपचार की शक्ति को सीमित करता है जो संविधान की एक बुनियादी विशेषता है और इसलिये संसद की विधायी क्षमता से बाहर है।
      • इसका परिणाम यह होगा कि हिंदू उपासक दीवानी न्यायालय में कोई मुकदमा दायर करके या भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र का उपयोग कर अपनी शिकायत दर्ज़ नहीं करा सकेंगे। यदि अतिवादी 15 अगस्त, 1947 से पहले इस तरह की संपत्ति पर अतिक्रमण कर चुके हैं, तो हिंदू उपासक हिंदू बंदोबस्ती, मंदिरों, मठों और अन्य संपत्तियों के धार्मिक स्वरुप को वापस पाने में भी असमर्थ होंगे, और इस तरह की अवैध संपत्ति की अवस्थिति यथावत बनी रहेगी।
      • अधिनियम ने उस भूमि को अपने दायरे से बाहर रखा था जो अयोध्या विवाद का विषय था।

प्रावधान:

  • धारा 3: इस अधिनियम की धारा 3 उपासना स्थलों के परिवर्तन पर रोक लगाने का प्रावधान करती है अर्थात् कोई भी व्यक्ति किसी भी धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी वर्ग के पूजा स्थल को उसी धार्मिक संप्रदाय के किसी भिन्न वर्ग या किसी भिन्न धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी वर्ग के पूजा स्थल में परिवर्तित नहीं करेगा।
  • धारा 4(1): यह घोषणा करती है कि 15 अगस्त, 1947 तक अस्तित्व में आए पूजा स्थलों की धार्मिक प्रकृति "पूर्ववत् बनी रहेगी।
  • धारा 4(2): इसमें कहा गया है कि 15 अगस्त, 1947 को मौजूद किसी भी पूजा स्थल की धार्मिक प्रकृति के परिवर्तन के संबंध में किसी भी न्यायालय के समक्ष लंबित कोई भी मुकदमा या कानूनी कार्यवाही समाप्त हो जाएगी और कोई नया मुकदमा या कानूनी कार्यवाही शुरू नहीं की जाएगी।
    • इस उपखंड का प्रावधान उन मुकदमों, अपीलों और कानूनी कार्यवाही से बचाता है जो अधिनियम के प्रारंभ होने की तिथि पर लंबित हैं, यदि वे कट-ऑफ तिथि के बाद पूजा स्थल के धार्मिक प्रकृति के रूपांतरण से संबंधित हैं।
  • धारा 5: यह निर्धारित करती है कि अधिनियम रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले और इससे संबंधित किसी भी मुकदमे, अपील या कार्यवाही पर लागू नहीं होगा।

अयोध्या फैसले के दौरान सर्वोच्च न्यायालय की राय:

  • वर्ष 2019 के अयोध्या निर्णय में संविधान पीठ ने कानून का हवाला दिया और कहा कि यह संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को प्रकट करता है तथा प्रतिगमन पर रोक लगाता है।
  • इसलिये कानून भारतीय राजनीति की धर्मनिरपेक्ष विशेषताओं की रक्षा के लिये बनाया गया एक विधायी साधन है, जो संविधान की बुनियादी विशेषताओं में से एक है।

आगे की राह

  • अधिनियम से जुड़ी कमियों के बावजूद हम पूजा स्थल अधिनियम के महत्त्व को नज़रअंदाज नहीं कर सकते। यह एक महत्त्वपूर्ण विधायी हस्तक्षेप है जो गैर-प्रतिगमन को हमारे धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की एक अनिवार्य विशेषता के रूप में संरक्षित करता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न:

प्रिलिम्स:

प्रश्न निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. भारत का संविधान संघवाद, धर्मनिरपेक्षता, मौलिक अधिकारों और लोकतंत्र के संदर्भ में अपनी बुनियादी संरचना को परिभाषित करता है।
  2. भारत का संविधान नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा और उन आदर्शों को संरक्षित करने के लिये 'न्यायिक समीक्षा' का प्रावधान करता है, जिन पर संविधान आधारित है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)


मेन्स

प्रश्न. धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हमारी सांस्कृतिक प्रथाओं के लिये क्या चुनौतियाँ हैं? (2019)

प्रश्न.  धर्मनिरपेक्षता की भारतीय अवधारणा धर्मनिरपेक्षता के पश्चिमी मॉडल से किस प्रकार भिन्न है? विचार-विमर्श कीजिये। (2018)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

भारत में वर्तमान मुख्य चुनाव आयुक्त कौन है - bhaarat mein vartamaan mukhy chunaav aayukt kaun hai
भारत में वर्तमान मुख्य चुनाव आयुक्त कौन है - bhaarat mein vartamaan mukhy chunaav aayukt kaun hai

जैव विविधता और पर्यावरण

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लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट 2022

प्रिलिम्स के लिये:

लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट 2022, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ, लिविंग प्लैनेट इंडेक्स (LPI), मैंग्रोव, सुंदरबन, प्रवासन, जलवायु परिवर्तन, जैवविविधता।

मेन्स के लिये:

जैवविविधता  की हानि, संबंधित खतरे।

चर्चा में क्यों?

वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF) द्वारा जारी ‘लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट 2022’ के अनुसार, पिछले 50 वर्षों में दुनिया भर में स्तनधारियों, पक्षियों, उभयचरों, सरीसृपों और मछलियों की आबादी में 69% की गिरावट आई है।

  • यह रिपोर्ट प्रति दो वर्ष में जारी की जाती है।

प्रमुख बिंदु:

  • वन्यजीव आबादी में क्षेत्रवार गिरावट:
    • वन्यजीव आबादी (94%) में सबसे अधिक गिरावट लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई क्षेत्र में हुई।
    • अफ्रीका ने वर्ष 1970-2018 के मध्य अपनी वन्यजीव आबादी में 66% की गिरावट दर्ज की, जबकि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में 55% की गिरावट दर्ज की गई।

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  • मीठे जल की प्रजातियों की आबादी में गिरावट:
    • विश्व स्तर पर मीठे जल की प्रजातियों की आबादी में 83 प्रतिशत की कमी आई है।
      • पर्यावास की हानि और प्रवास के मार्ग में आने वाली बाधाएँ निगरानी की जा रही प्रवासी मछली प्रजातियों के खतरों के लिये ज़िम्मेदार थीं।
  • कशेरुकीय वन्यजीव आबादी का पतन:
    • लिविंग प्लैनेट इंडेक्स (LPI) के अनुसार, विश्व के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में कशेरुकीय वन्यजीव आबादी विशेष रूप से चौंका देने वाली दर से गिर रही है।
      • LPI, वैश्विक स्तर पर 5,230 प्रजातियों की लगभग 32,000 आबादी की विशेषता के लिये स्थलीय, मीठे जल और समुद्री आवासों से कशेरुकीय प्रजातियों की जनसंख्या प्रवृत्तियों के आधार पर दुनिया की जैविक विविधता की स्थिति के आकलन का उपाय है।
  • मैंग्रोव क्षरण:
    • जलीय कृषि, कृषि और तटीय विकास के कारण प्रतिवर्ष 0.13% की दर से मैंग्रोव का नुकसान जारी है।
      • तूफान और तटीय कटाव जैसे प्राकृतिक खतरों के साथ-साथ अतिदोहन तथा प्रदूषण से कई मैंग्रोव प्रभावित होते हैं।
    • 1985 के बाद से भारत और बांग्लादेश में सुंदरबन मैंग्रोव वन के लगभग 137 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र का क्षरण हुआ है, जिससे वहाँ रहने वाले 10 मिलियन लोगों में से कई के भूमि और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं में कमी आई है।।
  • जैवविविधता के लिये प्रमुख खतरे:
    • WWF ने स्थलीय कशेरुकियों के लिये 'खतरे के हॉटस्पॉट' को चिह्नित करने हेतु जैवविविधता के छह प्रमुख खतरों की पहचान की है:   
      • कृषि
      • शिकार
      • लॉगिंग
      • प्रदूषण
      • आक्रामक प्रजाति
      • जलवायु परिवर्तन

प्रकृति हेतु विश्व वन्यजीव कोष (WWF):

  • यह दुनिया का अग्रणी संरक्षण संगठन है और 100 से अधिक देशों में काम करता है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1961 में हुई थी और इसका मुख्यालय ग्लैंड, स्विट्रज़लैंड में है।
  • इसका मिशन प्रकृति का संरक्षण करना और पृथ्वी पर जीवन की विविधता के लिये सबसे अधिक दबाव वाले खतरों को कम करना है।
  • WWF दुनिया भर के लोगों के साथ हर स्तर पर सहयोग करता है ताकि समुदायों, वन्यजीवों और उनके रहने वाले स्थानों की रक्षा करने वाले अभिनव समाधान विकसित एवं वितरित किये जा सकें।

रिपोर्ट की सिफारिशें:

  • ग्रह मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन और जैवविविधता के नुकसान की दोहरी आपात स्थिति का सामना कर रहा है, जिससे वर्तमान एवं भविष्य की पीढ़ियों को खतरा है। जैवविविधता से क्षति तथा जलवायु संकट से दो अलग-अलग मुद्दों के बजाय एक के रूप में निपटा जाना चाहिये क्योंकि वे आपस में जुड़े हुए हैं।
  • एक हरित भविष्य के लिये हमारे उत्पादन, उपभोग, शासन और वित्त प्रबंधन में क्रांतिकारी एवं महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों की आवश्यकता होती है।
  • हमें अधिक सतत् मार्ग की दिशा में एक समावेशी सामूहिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिये। जो यह सुनिश्चित करते हों कि हमारे कार्यों के परिणाम और उससे उत्पन्न लाभ सामाजिक रूप से न्यायसंगत एवं समान रूप से साझा किये गए हैं।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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भारतीय राजनीति

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कर्नाटक में हिजाब पर प्रतिबंध मामला

    टैग्स:
  • सामान्य अध्ययन-I
  • सामान्य अध्ययन-II
  • मौलिक अधिकार
  • सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप
  • महिलाओं से संबंधित मुद्दे

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, हिजाब, मौलिक अधिकार, धर्म की स्वतंत्रता से संबंधित मामले।

मेन्स के लिये:

मौलिक अधिकार, न्यायपालिका, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, महिलाओं से संबंधित मुद्दे, धर्म की स्वतंत्रता से संबंधित मामले।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने कर्नाटक हिजाब प्रतिबंध मामले में एक विभाजित निर्णय दिया।

  • विभाजित निर्णय की स्थिति में मामले की सुनवाई एक बड़ी बेंच द्वारा की जाती है।
  • जिस बड़ी बेंच को विभाजित निर्णय का मामला हस्तांतरित किया जाता है, वह उच्च न्यायालय की तीन-न्यायाधीशों की पीठ हो सकती है, अथवा इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष भी अपील की जा सकती है।
  • मार्च 2022 में उच्च न्यायालय ने कर्नाटक में मुस्लिम छात्रों के एक वर्ग द्वारा कक्षाओं में हिजाब पहनने की अनुमति मांगने वाली याचिकाओं को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि यह इस्लामी आस्था में आवश्यक धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है।

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निर्णय की प्रमुख बातें:

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हिजाब के मुद्दे पर न्यायालयों के अब तक के निर्णय:

  • वर्ष 2015 में केरल उच्च न्यायालय के समक्ष ऐसी दो याचिकाएँ दायर की गई थीं, इनमें अखिल भारतीय प्री-मेडिकल प्रवेश के लिये ड्रेस कोड को चुनौती दी गई थी, जिसमें सलवार/पायजामा" के साथ चप्पल पहनने की अनुमति थी एवं आधी आस्तीन वाले हल्के कपड़े, जिनमें बड़े बटन, बैज, फूल आदि न हों", ही पहनने का प्रावधान था।
    • केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) के तर्क को स्वीकार करते हुए कि यह नियम केवल यह सुनिश्चित करने के लिये था कि उम्मीदवार कपड़ों के भीतर वस्तुओं को छुपाकर अनुचित तरीकों का इस्तेमाल नहीं करेंगे, केरल उच्च न्यायालय ने CBSE को उन छात्रों की जाँच हेतु अतिरिक्त उपाय करने का निर्देश दिया जो अपने धार्मिक रिवाज़ के अनुसार पोशाक पहनने का इरादा रखते हैं, लेकिन जो ड्रेस कोड के विपरीत है।
  • आमना बिंट बशीर बनाम केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (2016) मामले में केरल उच्च न्यायालय ने इस मुद्दे की अधिक बारीकी से जाँच की। इस मामले में न्यायालय ने माना कि हिजाब पहनने की प्रथा एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है, लेकिन सीबीएसई नियम को रद्द नहीं किया गया।
    • न्यायालय ने एक बार फिर 2015 में "अतिरिक्त उपायों" और सुरक्षा उपायों की अनुमति दी।
  • हालाँकि स्कूल द्वारा निर्धारित ड्रेस के मुद्दे पर एक और बेंच ने फातिमा तसनीम बनाम केरल राज्य (2018) मामले में अलग तरीके से फैसला सुनाया।
    • केरल उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने कहा कि किसी संस्था के सामूहिक अधिकारों को याचिकाकर्त्ता के व्यक्तिगत अधिकारों पर प्राथमिकता दी जाएगी।

संविधान के तहत धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा:

  • संविधान के भाग-3 (मौलिक अधिकार) का अनुच्छेद 25 से 28 धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है।
  • संविधान का अनुच्छेद 25 (1) ‘अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म को मानने, आचरण करने तथा प्रचार करने की स्वतंत्रता के अधिकार’ की गारंटी देता है।
  • यह एक ऐसा अधिकार है जो नकारात्मक स्वतंत्रता की गारंटी देता है, जिसका अर्थ है कि राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि इस स्वतंत्रता का उपयोग करने में कोई हस्तक्षेप या बाधा न हो।
    • हालाँकि सभी मौलिक अधिकारों की तरह राज्य सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता, नैतिकता, स्वास्थ्य और अन्य राज्य हितों के अधिकार को प्रतिबंधित कर सकता है।
  • अनुच्छेद 26 सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने की स्वतंत्रता की व्याख्या करता है।
  • अनुच्छेद 27 के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को किसी विशेष धर्म के प्रचार या व्यवहार के लिये किसी भी कर का भुगतान करने के लिये मजबूर नहीं किया जाएगा।
  • अनुच्छेद 28 शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक पूजा में भाग लेने की स्वतंत्रता की व्याख्या करता है।

आगे की राह

  • मौजूदा राजनीतिक माहौल में कर्नाटक सरकार द्वारा "एकता, समानता एवं सार्वजनिक व्यवस्था के हित में" या तो एक निर्धारित वर्दी या किसी भी पोशाक को अनिवार्य करने के निर्णय को शैक्षिक संस्थानों में धर्मनिरपेक्ष मानदंडों, समानता और अनुशासन को लागू करने की आड़ में एक बहुसंख्यकवादी दावे के रूप में भी देखा गया।
  • एक निर्णय जो शिक्षा के लिये इस गैर-समावेशी दृष्टिकोण को वैध बनाता है और एक नीति जो मुस्लिम महिलाओं को अवसर से वंचित कर सकती है, देश के हित में नहीं होगी।
  • उचित गुंज़ाइश तब तक होनी चाहिये जब तक कि हिजाब या कोई भी पहनावा, धार्मिक या अन्य, यूनिफार्म से अलग नहीं होता है।

स्रोत: द हिंदू

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भारतीय अर्थव्यवस्था

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लीड्स रिपोर्ट 2022

    टैग्स:
  • सामान्य अध्ययन-III
  • आधारिक संरचना
  • समावेशी विकास
  • औद्योगिक नीति
  • सामान्य अध्ययन-II
  • सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप

प्रिलिम्स के लिये:

लॉजिस्टिक्स ईज अक्रॉस डिफरेंट स्टेट्स (LEADS)” सर्वे, मल्टीमॉडल ट्रांसपोर्टेशन ऑफ गुड्स एक्ट, 1993, पीएम गति शक्ति स्कीम, मल्टी मॉडल लॉजिस्टिक्स पार्क, लीड्स रिपोर्ट, डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर, सागरमाला परियोजना, भारतमाला परियोजना।

मेन्स के लिये:

एकीकृत और मल्टी-माॅडल परिवहन, लॉजिस्टिक लागत।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने विभिन्न राज्यों में लॉजिस्टिक्स ईज (लीड्स) रिपोर्ट 2022 जारी की है।

  • लीड्स सभी 36 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में लॉजिस्टिक्स बुनियादी ढाँचे, सेवाओं और मानव संसाधनों का आकलन करने के लिये एक स्वदेशी डेटा-संचालित सूचकांक है।
  • लीड्स राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में लॉजिस्टिक्स परफॉर्मेंस बढ़ाने वाले हस्तक्षेपों की पहचान के लिये एक मार्गदर्शक और ब्रिजिंग तंत्र के रूप में कार्य करना जारी रखता है। यह लॉजिस्टिक्स परफॉर्मेंस इंडेक्स जैसे  अंतर्राष्ट्रीय सूचकांकों पर सकारात्मक रूप से प्रतिबिंबित करता है।
  • पहली लॉजिस्टिक्स रिपोर्ट वर्ष 2018 में जारी की गई थी।

प्रमुख बिंदु

  • LEADS के पिछले संस्करणों के विपरीत जो सभी राज्यों के लिये रैंकिंग सिस्टम पर आधारित थे, LEADS 2022 ने वर्गीकरण-आधारित ग्रेडिंग को अपनाया है, राज्यों को अब चार श्रेणियों के तहत वर्गीकृत किया गया है जैसे तटीय राज्य, भीतरी इलाके/भू-आबद्ध राज्य, उत्तर-पूर्वी राज्य और केंद्रशासित प्रदेश।
    • किसी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश ने विशिष्ट क्लस्टर के भीतर शीर्ष राज्य/केंद्रशासित प्रदेश की तुलना में कितना अच्छा प्रदर्शन किया है, इसका आकलन किया गया।
  • तीन प्रदर्शन श्रेणियाँ:
    • अचीवर्स: 90% या अधिक प्रतिशत हासिल करने वाले राज्य/केंद्रशासित प्रदेश।
      • आंध्र प्रदेश, असम, चंडीगढ़, दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और गुजरात उपलब्धि हासिल करने वालों की श्रेणी में हैं।
        • "अचीवर्स" राज्यों में महाराष्ट्र सबसे ऊपर है।
    • फास्ट मूवर्स: 80-90% के बीच स्कोर प्राप्त करने वाले राज्य/केंद्रशासित प्रदेश।
      • केरल, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पुद्दुचेरी, सिक्किम और त्रिपुरा।
    • एस्पायरर्स: 80 प्रतिशत से कम अंक प्राप्त करने वाले राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को इस श्रेणी में रखा गया है।
  • लीड्स 2022 सर्वेक्षण रिपोर्ट पीएम गति-शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान (PMGS-NMP) और राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति (NLP) के लॉजिस्टिक्स बुनियादी ढाँचे, सेवाओं एवं नियामक वातावरण के मानचित्रण में सहायता करेगी, जिससे राज्य सरकारों को अंतर की पहचान करने तथा उनका निवारण करने व डेटा-संचालित मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी प्राप्त करने में सक्षम बनाया जा सकेगा।
    • लॉजिस्टिक्स दक्षता में सुधार करके और आने वाले वर्षों में लॉजिस्टिक लागत को एकल अंकों में लाकर PMGS-NMP योजना में सालाना 10 लाख करोड़ रुपए से अधिक की बचत करने की क्षमता है।
    • NMP दूर-दराज़ के क्षेत्रों में एकीकृत अवसंरचना योजना बनाने और विकास की कमियों को दूर करने में मदद करेगा। पीएम गति-शक्ति राष्ट्रीय प्लान के माध्यम से अवसंरचना की कमी से जूझ रही 197 महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं की पहचान की गई।

लॉजिस्टिक्स परफॉर्मेंस इंडेक्स:

  • विश्व बैंक समूह द्वारा विकसित लॉजिस्टिक्स परफॉर्मेंस इंडेक्स (LPI), इंटरैक्टिव बेंचमार्किंग टूल है, जो देशों को व्यापार लॉजिस्टिक्स पर उनके प्रदर्शन में आने वाली चुनौतियों और अवसरों की पहचान करने में मदद के लिये बनाया गया है तथा यह सुझाव प्रदान करता है कि वे अपने प्रदर्शन को बेहतर बनाने हेतु क्या कर सकते हैं।
  • LPI छह प्रमुख आयामों पर देश के स्कोर का भारित औसत है:
    • सीमा शुल्क सहित सीमा नियंत्रण एजेंसियों द्वारा निकासी प्रक्रिया की दक्षता (अर्थात् गति, सरलता और औपचारिकताओं की पूर्वानुमेयता)।
    • व्या पार और परिवहन से संबंधित बुनियादी ढाँचे  की गुणवत्ता (जैसे, बंदरगाह, रेलमार्ग, सड़कें, सूचना प्रौद्योगिकी)।
    • प्रतिस्पर्द्धी मूल्य के शिपमेंट की व्यवस्था में सुगमता।
    • रसद सेवाओं की क्षमता और गुणवत्ता (जैसे, परिवहन ऑपरेटर, सीमा शुल्क दलाल)।
    • माल को ट्रैक और ट्रेस करने की क्षमता।
    • निर्धारित या अपेक्षित डिलीवरी समय के भीतर गंतव्य तक पहुँचने में शिपमेंट की समयबद्धता।
    • LPI पर वर्ष 2018 में भारत 44वें स्थान पर था और और वर्ष 2022 तक कोई नया आँकड़ा अभी तक प्रकाशित नहीं किया गया है।

लॉजिस्टिक्स से संबंधित पहलें:

  • माल का बहुविध परिवहन अधिनियम, 1993
  • प्रधानमंत्री गति शक्ति योजना
  • मल्टी मॉडल लॉजिस्टिक्स पार्क
  • लीड्स रिपोर्ट
  • डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर
  • सागरमाला परियोजना
  • भारतमाला परियोजना

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न. गति-शक्ति योजना के कनेक्टिविटी के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये सरकार और निजी क्षेत्र के बीच सूक्ष्म समन्वय की आवश्यकता है। विचार-विमर्श कीजिये। (2022)

भारत के प्रथम निर्वाचन आयुक्त कौन है?

भारत निर्वाचन आयोग की शुरुआत के 70 वर्ष पूरे होने पर, आयोग ने भारत के प्रथम मुख्‍य निर्वाचन आयुक्‍त श्री सुकुमार सेन के प्रति श्रद्धांजलि के रूप में एक वार्षिक व्‍याख्‍यानमाला आयोजित करने का निर्णय लिया है।

भारत निर्वाचन आयोग का क्या नाम है?

भारत निर्वाचन आयोग (अंग्रेज़ी: Election Commission of India) एक स्वायत्त एवं अर्ध-न्यायिक संस्थान है जिसका गठन भारत में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष रूप से विभिन्न से भारत के प्रातिनिधिक संस्थानों में प्रतिनिधि चुनने के लिए किया गया था। भारतीय चुनाव आयोग की स्थापना 25 जनवरी 1950 को की गयी थी।

भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति कौन करता है?

मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति कौन करता है? उत्तर : राष्ट्रपति। भारत के संविधान के अनुच्छेयद 324(2) के अधीन, भारत के राष्ट्रपति को मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तोंे को नियुक्त करने की शक्तियां दी गई है।

भारत में चुनाव कौन करवाता है?

भारत निर्वाचन आयोग एक स्‍वायत्‍त संवैधानिक प्राधिकरण है जो भारत में निर्वाचन प्रक्रियाओं के संचालन के लिए उत्‍तरदायी है। यह निकाय भारत में लोक सभा, राज्‍य सभा, राज्‍य विधान सभाओं और देश में राष्‍ट्रपति एवं उप-राष्‍ट्रपति के पदों के लिए निर्वाचनों का संचालन करता है।