हिन्दू दर्शन में मोक्ष प्राप्त करना या जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्ति प्राप्त करना जीवन का अन्तिम उद्देश्य है। मोक्ष प्राप्ति के तीन साधन बताए गए हैं; ज्ञान, कर्म तथा भक्ति। सल्तनत काल (1206-1526 ई.) में कई हिन्दू सन्तों व सुधारकों ने हिन्दू धर्म के लिए एक आन्दोलन आरंभ किया। यह आन्दोलन भक्ति पर बल देता था, इसलिए इसे भक्ति आन्दोलन कहा गया। Show भक्ति आंदोलन की पृष्ठभूमि शंकराचार्य ने तैयार की। उन्होंने अद्वैतवाद नामक मत की स्थापना की और मोक्ष प्राप्ति के लिए ज्ञान मार्ग पर बल दिया, क्योंकि इनका मत बहुत ही दार्शनिक एवं बौद्धिक था। अतः वह आम लोगों की समझ में न आ सका और जनता को प्रभावित नहीं कर सका। इसलिए हमारे मध्ययुगीन धर्म सुधारकों द्वारा आम जनता को हिन्दू धर्म की ओर आकर्षित करने के लिए ईश्वर की भक्ति पर बल दिया गया। भक्ति आन्दोलन की उत्पत्ति के कारण भक्ति आन्दोलन की उत्पत्ति के कारण निम्नलिखित थे :
भक्ति आन्दोलन का स्वरूप भक्ति आन्दोलन के स्वरूप या धारणाओं को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है, जो निम्नलिखित है:
भक्ति आन्दोलन के प्रमुख सन्त
भक्ति आन्दोलन की विशेषताएँ यद्यपि भक्ति आंदोलन के संतो ने जो सिद्धांत और विचारों को लोगों के सामने रखा, वे एक जैसे नहीं थे किंतु फिर भी उनके विचारों में मौलिक समानता विद्यमान थी। भक्ति आंदोलन की सामान्य विशेषताएं निम्नलिखित है:
भक्ति आन्दोलन का प्रभाव भक्ति आन्दोलन प्रायः एक जन-आन्दोलन था तथा तत्कालीन हिन्दू धर्म व समाज पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा, जिसका उल्लेख निम्नलिखित है:
निष्कर्ष अतः उपरोक्त विवरण के आधार पर हम कह सकते हैं कि तत्कालीन हिंदू धर्म की जटिलता, धार्मिक कर्मकांड और अन्य धार्मिक संप्रदायों से मिल रही चुनौतियों ने भक्ति आंदोलन की पृष्ठभूमि को तैयार किया। इस आंदोलन ने ईश्वर की उपासना भक्ति द्वारा किए जाने पर बल दिया। इसके साथ ही धार्मिक सरलता, सद्भाव, ईश्वरीय प्रेम को बढ़ावा दिया। भक्ति आंदोलन के क्या कारण है?भारत में भक्ति आंदोलन के उदय के कारण-
सूफी संतों की उदार एवं सहिष्णुता की भावना तथा एकेश्वरवाद में उनकी प्रबल निष्ठा ने हिन्दुओं को प्रभावित किया; जिस कारण से हिन्दू, इस्लाम के सिद्धांतों के निकट सम्पर्क में आये। हिन्दुओं ने सूफियों की तरह एकेश्वरवाद में विश्वास करते हुए ऊँच-नीच एवं जात-पात का विरोध किया।
भक्ति आंदोलन की शुरुआत कैसे हुई?भक्ति आन्दोलन का आरम्भ दक्षिण भारत में आलवारों एवं नायनारों से हुआ जो कालान्तर में (800 ई से 1700 ई के बीच) उत्तर भारत सहित सम्पूर्ण दक्षिण एशिया में फैल गया। इस हिन्दू क्रांतिकारी अभियान के नेता शंकराचार्य थे जो एक महान विचारक और जाने माने दार्शनिक रहे।
भक्ति आंदोलन से आप क्या समझते हैं?भक्ति आंदोलन मध्युग काल का एक धार्मिक आंदोलन था। यह भारतीय समाज का मौन क्रांति था जो हिंदू, मुस्तामानो सिखों द्वारा भगवान की पूजा से जुड़ा था। भक्ति आंदोलन में सामाजिक-धार्मिक सुधारकों द्वारा समाज में अलग अलग तरह से भगवान की भक्ति का प्रचार प्रसार किया गया है। भक्ति आंदोलन के द्वारा ही सिख धर्म का उद्भव हुआ है।
भक्ति आंदोलन की प्रमुख विशेषताएं क्या थी?भक्ति आंदोलन की मुख्य विशेषताएं है। एक ईश्वर मेंं आस्था- ईश्वर एक है वह सर्व शक्तिमान है । बाह्य आडम्बरों का विरोध- भक्ति आंदोलन के संतों ने कर्मकाण्ड का खण्डन किया । सच्ची भक्ति से मोक्ष एवं ईश्वर की प्राप्ति होती है ।
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