अजंता की गुफाओं में बौद्ध धर्म द्वारा प्रेरित और उनकी करुणामय भावनाओं से भरी हुई शिल्पकला और चित्रकला पाई जाती है, जो मानवीय इतिहास में कला के उत्कृष्ट अनमोल समय को दर्शाती है. बौद्ध तथा जैन सम्प्रदाय द्वारा बनाई गई ये गुफाएं सजावटी रूप से तराशी गई हैं. Show महाराष्ट्र में औरंगाबाद शहर से लगभग 107 किलोमीटर की दूरी पर अजंता की ये गुफाएं पहाड़ को काट कर विशाल घोड़े की नाल के आकार में बनाई गई हैं. अजंता में 29 गुफाओं का एक सेट बौद्ध वास्तुकला, गुफा चित्रकला और शिल्प चित्रकला के उत्कृष्टतम उदाहरणों में से एक है. इन गुफाओं में चैत्य कक्ष या मठ है, जो भगवान बुद्ध और विहार को समर्पित हैं, जिनका उपयोग बौद्ध भिक्षुओं द्वारा ध्यान लगाने और भगवान बुद्ध की शिक्षाओं का अध्ययन करने के लिए किया जाता था. गुफाओं की दीवारों तथा छतों पर बनाई गई ये तस्वीरें भगवान बुद्ध के जीवन की विभिन्न घटनाओं और विभिन्न बौद्ध देवत्व की घटनाओं का चित्रण करती हैं. कलाकृति का अद्भुत नमूना रंगों का रचनात्मक उपयोग और विचारों की स्वतंत्रता के उपयोग से इन गुफाओं की तस्वीरों में अजंता के अंदर जो मानव और जंतु रूप चित्रित किए गए हैं, उन्हें कलात्मक रचनात्मकता का एक उच्च स्तर माना जा सकता है. ये शताब्दियों से बौद्ध, हिन्दू और जैन धर्म के प्रति समर्पित है. ये सहनशीलता की भावना को प्रदर्शित करते हैं, जो प्राचीन भारत की विशेषता रही है. अजंता में निर्मित कुल 29 गुफाओं में वर्तमान में केवल 6 ही, गुफा संख्या 1, 2, 9, 10, 16, 17 शेष है. इन 6 गुफाओं में गुफा संख्या 16 एवं 17 ही गुप्तकालीन हैं. अजंता के चित्र तकनीकी दृष्टि से पूरी दुनिया में प्रथम स्थान रखते हैं. इन गुफाओं में अनेक प्रकार के फूल-पत्तियों, वृक्षों एवं पशु आकृति से सजावट का काम तथा बुद्ध एवं बोधिसत्वों की प्रतिमाओं के चित्रण का काम, जातक ग्रंथों से ली गई कहानियों का वर्णनात्मक दृश्य के रूप में प्रयोग हुआ है. ये चित्र अधिकतर जातक कथाओं को दर्शाते हैं. इन चित्रों में कहीं-कही गैर भारतीय मूल के मानव चरित्र भी दर्शाये गये हैं. अजंता की चित्रकला की एक विशेषता यह है कि इन चित्रों में दृश्यों को अलग-अलग भागों में नहीं विभाजित किया गया है. अजंता की प्रसिद्ध गुफाओं के चित्रों की चमक हज़ार से अधिक वर्ष बीतने के बाद भी आधुनिक समय से विद्वानों के लिए आश्चर्य का विषय है. भगवान बुद्ध से संबंधित घटनाओं को इन चित्रों में अभिव्यक्त किया गया है. उचित प्रमाण, लवलीन वर्णाढ्यता, भावनाओं की सुकुमारता, उच्चादर्श का गौरव, रूपाकारों की सुकोमल रचना, लयात्मक रेखाओं का नियोजन, धरातल विभाजन की परिकल्पना, अनुभूतियों की गहरायी आदि विशिष्टताएँ एक उत्कृष्ट कलाकृति की रचना में सहायक होती हैं. इस कथन की सच्चाई अजन्ता की कलाकृतियाँ प्रत्यक्ष प्रदर्शित करती हैं। अजन्ता एक नाम है कलाकारों की परिकल्पना का, भिक्षुओं के उच्चादशों का बौद्ध धर्म के उपदेशों का, तत्कालीन संस्कृति के विस्तार का भित्ति चित्रण परम्परा के एक इतिहास का वास्तव में अजन्ता भारतीय संस्कृति का स्तम्भ है, एक वातायन है जिसके माध्यम से हम एक ऐसे जगत् से साक्षात्कार करते हैं जहाँ सृष्टि का प्रत्येक तत्व आत्मानुभूति से ओतप्रोत गतिशील है।
अजन्ता की गुफाएँ महाराष्ट्र में औरंगाबाद में 68 किलोमीटर दूर पहाड़ियों में विराजमान हैं। जहाँ प्रकृति ने मुक्त हस्त से अपना सौन्दर्य विकीर्ण किया है। प्राय: कलाकार को शोरगुल से दूर शान्तमय वातावरण में चित्रण करना भाता है यह वातावरण इस घाटी में मिलता है। इसलिए ही यहाँ के कलाकार अजन्ता की कलाकृतियों के रूप में अपनी तूलिका एवं छैनी हथौड़े की सिद्धहस्वता को सदैव के लिए अमर कर गये और अपना नाम तक नहीं लिखा। अजंता की गुफाओं की संख्याअजन्ता की गुफाएँ अजन्ता पर्वत को तराशकर निर्मित की गयी हैं जहाँ जाने के लिए बहुत सँकरे ऊँचे-नीचे रास्ते से होकर गुजरना पड़ता है। यहाँ कुल 30 गुफाएँ है। जिनमें 25 विहार तथा 5 चैत्य हैं। इनकी छते ऊँची नीची हैं बिहार गुफाओं को संघाराम भी कहा जाता है। इन गुफाओं का प्रयोग बौद्ध भिक्षु निवास हेतु करते थे। 9, 10, 19, 26, 29 न० की गुफाएँ चैत्य हैं जहाँ उपासना की जाती थी। चैत्य के अन्तिम किनारे पर एक स्तूप बनाया जाता था जहाँ तथागत के अवशेष सुरक्षित रहते थे। गैरोला, “चैत्य कहते हैं चिता को, और चिता के अवशिष्ट अंश को (अस्थि अवशेष को) भूमि गर्भ में रख कर वहाँ जो स्मारक तैयार किया जाता था उसे चैत्य कहा जाता था। स्तूप का अर्थ है ‘टीला’। स्तूप और चैत्य वस्तुतः उन स्मारकों को कहा जाता था, बहुधा जिनमें किसी महापुरुष की अस्थियाँ, राख, दाँत या बाल गाड़कर रखा जाता है।” चैत्य का दरवाजा घोड़े की नाल के आकार का होता है। इन चैत्य गुफाओं में भी चित्र हैं परन्तु अधिकांश चित्र बिहार गुफाओं में बनाए गए थे। आज 1, 2, 9, 10, 16, 17 न० की गुफाओं में चित्र शेष हैं जहाँ बौद्ध कलाकारों के अद्भुत स्वप्न रेखा, रूपाकारों एवं रंगों में वेष्टित होकर आज तक अमरत्व का संदेश दे रहे हैं। इन गुफाओं में 9वीं तथा 10वीं गुफा सबसे प्राचीन है तथा 17वीं गुफा में सबसे अधिक चित्र मिलते हैं। अजन्ता भारतीय कला का कीर्ति स्तम्भ है जिसमें कलात्मकता एवं भावनात्मकता का सामञ्जस्य अभिव्यन्जित होता है। स्थापत्य शिल्प एवं चित्र तीन कलाओं का एक साथ संगम और वह भी इतने अनुपम ढंग से कि विश्व का प्रत्येक व्यक्ति उन्हें देखकर आश्चर्यचकित हो जाता है। ऐसा कहा जाता है कि अजन्ता के ये भित्ति चित्र एवं पाषाण प्रतिमाएँ उन देवताओं के अभिशप्त शरीर है जो स्वर्गिक जीवन की एक रसता से उठकर इस पृथ्वी पर आनन्द हेतु विचरण करने आए थे परन्तु भोर होने से पहले स्वर्ग वापिस नहीं लौट पाए। इसी से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह घाटी कितनी सुन्दर होगी जहाँ विध्यांचल पहाड़ी, सात प्रपातों के रूप में गिरती बाघोरा नदी, चारों ओर प्रकृति का लवलीन साम्राज्य निहित है। अजन्ता एक आलौकिक, दिव्य, आध्यात्मिक कृति है जिसका कारण अनुकूल एवं शान्त नैसर्गिक वातावरण था। घने जंगलों तथा अंधेरी गुफाओं में इन कलाकृतियों की रचना करने वाले कोई दीक्षित कलाकार नहीं थे। वरन् भोगी, तपस्वी, भिक्षु थे जिन्होंने धर्म की शरण में स्वयं को समर्पित कर जीवन का मर्म कला जिज्ञासुओं के समक्ष प्रस्तुत कर दिया। ‘अजन्ता’ मानव मात्र के लिए एक नाम नहीं वरन् कला की आत्मा है। इसके नामकरण के संदर्भ में बहुत से मतभेद है। प्रथम विश्लेषण के आधार पर अजन्ता की गुफाएँ निर्जन स्थान पर थी जहाँ कोई आता-जाता नहीं था अर्थात् अजन्ता (जनता से हीन) द्वितीय विश्लेषण के आधार पर गुफाओं के समीप एक छोटा सा गाँव अजिण्ठा था। सम्भवतः उसी के आधार पर इन्हें अजन्ता नाम दिया गया। नैसर्गिक सम्पदा से आच्छादित पर्वतमालाएँ यहाँ अर्धचन्द्राकार रूप में है जिन्हें काटकर चैत्य और विहार गुफाओं की रचना की गयी। चैत्य गुफाएँ बौद्ध भिक्षुओं की धर्म साधना हेतु तथा विहार गुफाएँ उनके निवास हेतु थी। वैसे तो आज इन गुफाओं की स्थिति वह नहीं जो उस समय थी किन्तु फिर भी सूर्य की अन्तिम किरण जब इन गुफाओं के द्वार पर अपनी आत्मा को विकीर्ण करती है तो निश्चित ही आध्यात्मिक परिवेश में मानव एक ऐसे वातावरण को पाता है जहाँ तथागत के आश्रय में मानव बुद्धत्व को प्राप्त कर लेता है। गुफाओं के भीतरी भाग को प्रकाशित करने के लिए अजन्ता के कलाकारों ने मशाल अथवा चमकदार बड़ी धातु की प्लेट्स का प्रयोग किया ताकि प्रकाश प्रतिबिम्बत हो कर कार्य करने में सहायता कर सके। अजंता की गुफाएँ किसने बनवाईअजन्ता का कार्य शुंग, सातवाहन, कुषाण तथा गुप्तकाल में हुआ। गुप्तकाल में कला का सर्वाधिक विकास हुआ क्योंकि गुप्त सम्राट कला एवं संस्कृति के संरक्षण के पक्षधर थे। अजंता की गुफा के चित्र में कौन सा रंग भरे हैं?अजंता की गुफा क्रमांक 1 में बोधिसत्त्व पद्मपानी का चित्र
इस जानकारी से आपको अजंता की बाकी की चित्रकारी समझने में सहायता होगी। यह बोधिसत्त्व पद्मपानी है, अर्थात वह जिसके हाथों में पद्म या कमल का पुष्प है। इस चित्र को कुछ समय के लिए ध्यान से देखने पर आपको यह नज़र आयेगा।
अजंता चित्रों की विषय वस्तु क्या है?अजन्ता के चित्रों की मुख्य विषय-वस्तु बौद्ध धर्म है तथा चित्रकार की तूलिका सर्वत्र बुद्ध अथवा बोद्धिसत्त्व को चित्रित करने में ही संलग्न दिखाई देती है. बुद्ध तथा बोधिसत्त्व के ये चित्रांकन प्रायः जातक कथाओं से तथा बुद्ध के जीवन से लिए गये हैं.
अजंता की गुफाओं के चित्रों का विषय क्या है?अजंता की गुफाओं में बौद्ध धर्म द्वारा प्रेरित और उनकी करुणामय भावनाओं से भरी हुई शिल्पकला और चित्रकला पाई जाती है, जो मानवीय इतिहास में कला के उत्कृष्ट अनमोल समय को दर्शाती है.
अजंता की चित्रकारी में किसकी कहानी को चित्रित किया गया है?अजंता के चित्रों में जातक कथाओं का महत्त्वपूर्ण स्थान है. पहली गुफा में शिवि जातक, महाजनक जातक, शंखपाल जातक, महाउम्मग्ग जातक तथा चम्पेय जातक चित्रित हैं. दूसरी गुफा में हंस जातक, विधुरपंडित जातक तथा रुरु जातक को अंकित किया गया है.
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