वीर बहादुर सिंह की मृत्यु कैसे हुई? - veer bahaadur sinh kee mrtyu kaise huee?

(आनन् द राय)

गोरखपुर (उप्र), 25 जनवरी (भाषा) उत् तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने से पहले पांच बार गोरखपुर से लोकसभा के सदस्य रहे योगी आदित्यनाथ को लोग अब इस क्षेत्र के ‘अभिभावक’ की तरह देखने लगे हैं और मानते हैं कि इलाके के कद्दावर नेता रहे पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह के निधन के बाद जो जगह खाली हो गई थी योगी उसकी भरपाई कर रहे हैं।

गोरखपुर शहर विधानसभा क्षेत्र में छठे चरण में तीन मार्च को मतदान होगा और योगी के यहां से भारतीय जनता पार्टी का उम्मीदवार घोषित होने के बाद पूरे प्रदेश की निगाह इस सीट पर है। नाथ संप्रदाय की प्रसिद्ध गोरक्षपीठ के महंत योगी आदित्यनाथ वर्ष 1998 से लेकर 2017 तक गोरखपुर संसदीय क्षेत्र का पांच बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं, लेकिन विधानसभा चुनाव में वह पहली बार अपनी किस् मत आजमाएंगे।

दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हर्ष कुमार सिन् हा ने 'पीटीआई-भाषा' से बातचीत में दावा किया कि विपक्ष से चाहे कोई भी उम्मीदवार रहे योगी की जीत तय है। प्रोफेसर सिन् हा का तर्क था ''चूंकि गोरखपुर की जनता का एक जख् म रहा है कि वीर बहादुर सिंह के न रहने के बाद यहां कोई बड़ा नेता नहीं था, ‘‘राजनीतिक अभिभावक’’ नहीं था जिसके चलते विकास अवरूद्ध हुआ और यह क्षेत्र उपेक्षित रहा। इसलिए लोगों के मन में है कि एक बड़ा नेता यहां होना चाहिए।''

भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर योगी के अलावा इस विधानसभा क्षेत्र से अभी केवल आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष और भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आजाद के ही चुनाव लड़ने की अधिकृत घोषणा हुई है। लेकिन 2017 में मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी के इस्तीफा देने से खाली हुई गोरखपुर संसदीय सीट पर भाजपा के उम्मीदवार रहे दिवंगत उपेंद्र दत्त शुक्ल की पत्नी शुभावती शुक् ला ने हाल ही में समाजवादी पार्टी (सपा) की सदस्यता ग्रहण कर ली और योगी के खिलाफ उनके सपा उम्मीदवार होने की अटकलें लगाई जा रही हैं।

उपेंद्र दत्त शुक्ल के पुत्र अमित दत् त शुक्ल ने 'पीटीआई-भाषा' से बातचीत में कहा कि ''राष् ट्रीय अध्यक्ष (अखिलेश यादव) ने चुनाव लड़ने को कहा है और माताजी के नाम पर पूरी सहमति बन गई है।''

हुमायूंपुर उत्तरी निवासी युवा कारोबारी कौशल शाही ने प्रोफेसर सिन्हा की बात से सहमति जताते हुए कहा, ''वीर बहादुर सिंह 24 नवंबर 1985 से 24 जून 1988 तक मुख्यमंत्री रहे और उन्हें गोरखपुर के विकास का श्रेय जाता है। उनके निधन के बाद यहां के खाद कारखाने में ताला बंदी, रामगढ़ ताल परियोजना के ठप होने और अन् य बुनियादी सुविधाओं का अभाव हर बार चुनावों में मुद्दा बना।’’ शाही ने दावा किया कि योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद इन सब कार्यों के पूरा होने से यह मुद्दा समाप्त हो गया है।

गोरखपुर शहर विधानसभा क्षेत्र में करीब साढ़े चार लाख मतदाता हैं और राजनीतिक जानकारों के मुताबिक यहां 60 से 70 हजार ब्राह्मण मतदाता हैं। आंकड़ों के अनुसार यहां दूसरे नंबर पर 55 से 60 हजार कायस्थ, लगभग 50 हजार वैश्य, करीब 40 हजार मुसलमान, 25 से 30 हजार क्षत्रिय, 50 हजार अनुसूचित जाति की आबादी और पिछड़ी जातियों में सैंथवार, चौहान (नोनिया), यादव आदि मिलाकर 75 हजार से अधिक लोग हैं। शहरी क्षेत्र में बंगाली, पंजाबी, ईसाई और सिंधी समाज के लोग भी निवास करते हैं और अलग-अलग मोहल्लों में इनकी बसावट है।

गोरखपुर संसदीय क्षेत्र में गोरखपुर (शहर), गोरखपुर (ग्रामीण), कैम्पियरगंज, सहजनवा और पिपराइच विधानसभा क्षेत्र आते हैं जबकि इस जिले के बांसगांव, चिल्लूपार, चौरीचौरा (बांसगांव लोकसभा क्षेत्र) तथा खजनी विधानसभा क्षेत्र (संत कबीर नगर लोकसभा क्षेत्र) दूसरे लोकसभा क्षेत्रों में आते हैं।

गोरखनाथ मंदिर से करीब जाहिदाबाद मोहल्ले के रहने वाले चाय दुकानदार समीउल्लाह (62) ने ''पीटीआई-भाषा'’ से कहा कि '' जो सरकार अच्छी चलाए हम उसी को वोट देंगे। हम लोग चाहेंगे कि योगी जी जीतें।''

जाहिदाबाद निवासी कपड़ों के कारोबारी सलीम (35) ने कहा, ‘‘राजनीति में हमारी रुचि नहीं है लेकिन योगी की सरकार बनेगी क्योंकि उनका जनाधार है और वह अच्छा काम कर रहे हैं।'' वहीं जमुनहिया बाग (चकसा हुसैन) निवासी मोबाइल मरम्मत की दुकान चलाने वाले 32 वर्षीय नूर मोहम् मद ने कहा कि ''योगी जी के विकास का दावा झूठा है क्योंकि गोरखपुर में जहां (गोरखनाथ मंदिर) वह रहते हैं वहां से मात्र पांच सौ मीटर की दूरी पर हम लोग रहते हैं और यहां की टूटी सड़क और बदहाली उनके कार्यों का सटीक आइना है।''

ग़ौरतलब है कि आजादी के बाद विधानसभा चुनाव में शुरुआती तीन बार गोरखपुर शहर क्षेत्र से मुस्लिम विधायक क्रमश: इस् तफा हुसैन (दो बार) और एक बार नियामतुल् लाह अंसारी कांग्रेस पार्टी से जीते, जबकि ब्राह्मण बिरादरी से भारतीय जनसंघ के टिकट पर एक बार उदय प्रताप दुबे (1969) और चार बार भारतीय जनता पार्टी के पार्टी के टिकट पर (1989-1996) शिवप्रताप शुक्ल यहां से चुनाव जीते।

साल 1974 और 1977 में अवधेश कुमार श्रीवास्तव क्रमश: जनसंघ और जनता पार्टी के टिकट पर जीते जबकि 1980 और 1985 में पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के पुत्र सुनील शास्त्री कांग्रेस से चुनाव जीते।दोनों ही कायस्थ समुदाय के रहे।

2002 से 2017 तक चार बार भारतीय जनता पार्टी के डाक् टर राधा मोहन दास अग्रवाल ने गोरखपुर शहर से चुनाव जीता। पिछले विधानसभा चुनाव में डॉक्टर अग्रवाल को एक लाख 22 हजार से ज्यादा मत मिले थे जबकि सपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रहे कांग्रेस के राणा राहुल सिंह दूसरे नंबर पर करीब 61 हजार वोट हासिल कर सके थे।

अग्रवाल को इस बार भाजपा उम्मीदवार न बनाये जाने पर अखिलेश यादव ने उन्हें टिकट देने का खुला आमंत्रण दिया लेकिन डॉक्टर अग्रवाल ने चुप्पी साध ली है। वह इस मसले पर किसी भी तरह की प्रतिक्रिया नहीं दे रहे हैं। दूसरी तरफ अटकलें हैं कि उनके मैदान में न होने से गोरखपुर में अग्रवाल समर्थकों में नाराजगी रहेगी।

हालांकि इस संदर्भ में गोरखनाथ निवासी 32 वर्षीय नौकरीपेशा अनूप कुमार मद्धेशिया ने कहा कि योगी जी के लिए गोरखपुर में हर किसी को त्याग करने के लिए तैयार रहना चाहिए क्योंकि वह उत् तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं और उनके चुनाव जीतने और सरकार बनने से गोरखपुर के 'सीएम सिटी' होने का जलवा बरकरार रहेगा।

सपा से ब्राह्मण उम्मीदवार आने की संभावना और योगी के खिलाफ ब्राह्मणों के ध्रुवीकरण की चर्चा भी है लेकिन राजेंद्र नगर (पश्चिमी) निवासी पेशे से शिक्षक 40 वर्षीय डॉक्टर मनोज ओझा ने इसे खारिज करते हुए दावा किया कि योगी हर वर्ग के नेता हैं और विकास के लिए उनकी रिकार्ड जीत जरूरी है।

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