श्री कृष्ण द्वारा उद्धव को अपना संदेश देकर जब श्री कृष्ण मथुरा भेजते हैं। वहां गोपियां जो कृष्ण की विरह वेदना में जलती है, उन्हें उद्धव का ब्रह्म ज्ञान पसंद नहीं आता और वह भंवरे को आधार मानते हुए उसे प्रेम की शिक्षा देती है। इस गीत को सूरदास जी ने बड़े ही बारीकी से प्रस्तुत किया है। प्रस्तुत लेख में भ्रमरगीत का अध्ययन करेंगे। Show Table of Contents
भ्रमरगीत सूर के पदों का संक्षिप्त परिचययहां सूर के भ्रमरगीत से चार पद लिए गए हैं। कृष्ण ने मथुरा जाने के बाद स्वयं न लौटकर उद्धव के जरिए गोपियों के पास संदेश भेजा था। उन्होंने निर्गुण ब्रह्म एवं योग का उपदेश देकर गोपियों की विरह वेदना को शांत करने का प्रयास किया। गोपियां ज्ञान मार्ग की बजाए प्रेम मार्ग को पसंद करती थी इस कारण उंहें उद्धव का शुष्क संदेश पसंद नहीं आया। तभी वहां एक भंवरा आ पहुंचा यहीं से भ्रमरगीत का प्रारंभ होता है। गोपियों ने भ्रमर के बहाने उद्धव पर व्यंग्य बाण छोड़े। पहले पद में गोपियों की यह शिकायत वाजिब लगती है कि यदि उद्धव कभी स्नेह के धागे से बंधे हो थे तो वह विरह की वेदना को अनुभूत अवश्य कर पाते। दूसरे पद में गोपियों की स्वीकारोक्ति कि उनके मन की अभिलाषाए मन में ही रह गई। कृष्ण के प्रति उनके प्रेम की गहराई को अभिव्यक्त करती है। तीसरे पद में उद्धव के योग साधना को कड़वी – ककड़ी जैसा बता कर अपने एकनिष्ठ प्रेम से दृढ़ विश्वास प्रकट करती है। चौथे पद में उद्धव को ताना मारती है , कि कृष्ण ने अब राजनीति पढ़ ली है। अंत में गोपियों द्वारा उद्धव को राजधर्म – प्रजा का हित याद दिलाया जाना सूरदास की लोक धर्मिता को दर्शाता है। श्री कृष्णमथुरा के राजाउद्धवज्ञानमार्ग, ब्रम्ह ज्ञान पर विश्वास रखने वाला, कृष्ण ने अपना सन्देश देकर गोगुल भेजा थागोपियाँगोकुल और बरसाने में रहने वाली श्री कृष्ण के प्रति स्नेह रखने वाली ग्वालिन, स्त्रियांभंवराकीट-पतंग जिसको आधार बनाकर गीत गाया गया।पहला पदउधौं , तुम हो अति बड़भागी। शब्दार्थ ; बड़भागी = भाग्यवान। अपरस = अलिप्त , अछूता। तगा = धागा , बंधन। अनुरागी = प्रेमी। पुरइनि पात = कमल का पत्ता। दागी = दाग ,धब्बा , मांह में। प्रीति नदी = प्रेम की नदी।पाऊं = पैर। बोरयो = डुबाया। परागी = मुग्ध होना। भोरी = भोली-भाली। गुर चांटी ज्यों पागी = जिस प्रकार चींटी गुड में लिपटी रहती है , उसी प्रकार हम कृष्ण प्रेम में , अनुरक्त हैं सनी है। प्रसंग : प्रस्तुत पद कृष्ण भक्त सूरदास रचित ” सूरसागर ” के भ्रमरगीत से लिया गया है। गोपिया कृष्ण के मित्र उद्धव पर व्यंग्य करती हुई कहती है। व्याख्याहै उद्धव तुम बड़े भाग्यशाली हो। तुम कृष्ण के निकट रहकर भी उनके प्रेम – रस में नहीं डूबे (व्यंग्य) | तुम कृष्ण प्रेम से सर्वथा अछूते रहे , अलिप्त रहे। तुम कभी कृष्ण – प्रेम के धागे से बंधे ही नहीं। तुम्हारे मन में कृष्ण के प्रति कभी अनुराग उत्पन्न ही नहीं हुआ। तुम तो कमल के पत्ते के समान हो जो जल के भीतर रहकर भी जल से ऊपर रहता है। इसी प्रकार तुम कृष्ण के साथ रहकर भी उनके प्रेम से अलग रहते हो। तुम्हारे शरीर पर कृष्ण – प्रेम का कोई दाग तक नहीं है। गोपियां उद्धव पर व्यंग करते हुए एक अन्य उदाहरण देती है कि , जिस प्रकार जल के मध्य रहते हुए भी तेल की गागर पर पानी की एक बूंद तक नहीं टिकती (तुम पर भी कृष्ण – प्रेम की कोई बूंद नहीं है)। अरे उद्धव; तुमने तो प्रेम की नदी में कभी पैर डुबाया ही नहीं। तुम्हारी दृष्टि उनके रूप पर नहीं पड़ी अतः तुम उनके रूप पर मुग्ध नहीं हुए। गोपियां अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहती है कि , हम तो बड़ी भोली भाली है और कृष्ण – प्रेम में इस प्रकार अनुरक्त है , जैसे चींटी गुड में पग जाती है। विशेष : दूसरा पदमन की मन ही मांझ रही शब्दार्थ : मांझ = मध्य। अवधि = समय। अधार = आधार। आवन = आगमन। बिथा = व्यथा। विरहिनी = वियोग में जीने वाली। विरह दही = वियोग में जल रही हैं। हुंती – गुहारि = रक्षा के लिए पुकार। जीतहिं तै = जहां से। उत = उधर। धीर = धैर्य। मरजादा = मर्यादा , प्रतिष्ठा। न लही = न रही। प्रसंग : प्रस्तुत पद सूरदास द्वारा रचित ‘ सूरसागर ‘ के भ्रमरगीत से संकलित है। इस पद में गोपियों की स्वीकारोक्ति है। व्याख्यागोपियां स्वीकारती है कि उनके मन की अभिलाषाए मन में ही दब कर रह गई। वह कृष्ण के समक्ष अपने प्रेम की अभिव्यक्ति नहीं कर पाई। हमसे वह प्रेम की बात कही ही नहीं गई ,पता नहीं कोई इसे कैसे कह पाता है। हम उनके आगमन की अवधि को गिन – गिनकर अपने तन – मन की व्यथा को सहती रही है। हम तो प्रतीक्षारत थी। तुमने अर्थात उद्धव ने हमें आकर योग का संदेश सुना दिया। इसे सुन – सुनकर हम गोपियां विरह की आग में जली जा रही है। हम तो पहले ही से ही वियोगिनी थी तुम्हारे योग के उपदेश ने हमें विरहाग्नि में जलाकर दर्द कर दिया। जिस और हम पुकार करना चाहती थी , उसी ओर से यह योग की धारा बहने लगी। हम तो तुमसे अपनी व्यथा की गुहार लगाना चाहती थी और तुमने प्रेम – धारा के स्थान पर योग संदेश की धारा बहा दी। बताओ , अब हम कैसे धैर्य धारण करें। अब हमारी कोई मर्यादा शेष नहीं रह गई है। विशेष १ गोपियों की विरह – व्यथा की सटीक अभिव्यक्ति हुई है। तीसरा पदहमारैं हरि हारिल की लकरी। शब्दार्थ : हरि = कृष्ण। हारिल = एक पक्षी , जो अपने मैं सदैव एक लकड़ी लिए रहता है उसे छोड़ता नहीं। नंद – नंदन = कृष्ण। उर पकरी = हृदय से पकड़ लिया है। दिवस = दिन। निशि =रात। जक री = रटती रहती है। करुई = कड़वी। सु = वह। व्याधि = बीमारी। करी = भोगा। तिनहिं = उनको। मन चकरी = जिनका मन स्थिर नहीं रहता। प्रसंग : प्रस्तुत पद सूरदास द्वारा रचित है इसमें श्री कृष्ण के प्रति गोपियों का प्रेम अभिव्यक्त हुआ है। व्याख्यागोपियां उद्धव से कहती है कि हमारे कृष्ण तो हमारे लिए हारिल पक्षी की लकडी के समान है। जिस प्रकार हारिल पक्षी लकड़ी के आश्रय को नहीं छोड़ता , उसी प्रकार हम कृष्ण का आश्रय नहीं छोड़ सकती। हमने अपने प्रिय कृष्ण को मन – वचन – कर्म अर्थात पूरी तरह से , पक्की तरह से पकड़ रखा है। हमने तो सोते – जागते दिन में रात में कृष्ण – कृष्ण की रट लगा रखी है। अर्थात हम तो पूरी तरह से कृष्णमय हो गई है। उन्होंने गोपियों को जो योग का उपदेश दिया था उसके बारे में उनका यह कहना है कि यह योग सुनते ही कड़वी ककड़ी के समान प्रतीत होता है। इसे निकला नहीं जा सकता हे उद्धव ; तुम तो हमारे लिए ऐसी बीमारी ले आए हो जो हमने ना तो कहीं देखी और ना कही सुनी। इस योग की आवश्यकता तो उनको है जिनका मन चकरी के समान घूमता रहता है। अतः इसे उन्हीं को सौंप दो हम तो पहले से ही कृष्ण के प्रति एक निष्ठ प्रेम बनाए हुए हैं , हमारा मन भ्रमित नहीं है। विशेष : १ गोपियों का कृष्ण के प्रति एकनिष्ठ प्रेम अभिव्यक्त हुआ है चौथा पदहरि हैं राजनीति पढ़ि आए। शब्दार्थ : मधुकर = भौरा। हुते = थे। पठाए = भेजे। परहित = दूसरों के कल्याण के लिए। डोलत धाए = घूमते – फिरते थे। फेर = फिर से। पाइहैं =पा लेंगी। अनीति = अन्याय। प्रसंग : प्रस्तुत पद कृष्ण भक्त कवि सूरदास द्वारा रचित है इस पद में गोपियां उद्धव को ताना मारती है कि कृष्ण ने अब राजनीति भी पढ़ ली है। व्याख्यागोपियां कहती है – हे उद्धव ; अब कृष्ण ने राजनीति भी पढ़ ली है। भंवरे (उद्धव) के बात कहते ही हम सब बात समझ गई। हमें सभी समाचार मिल गए। एक तो कृष्ण पहले से ही बहुत चतुर थे और अब ग्रंथ भी पढ़ लिए। यह उनकी बढ़ी हुई बुद्धि का ही प्रमाण है कि उन्होंने हमारे लिए योग का संदेश भेजा है। आगे के लोग भी बड़े भले थे जो परहित के लिए भागे चले आए। अब हम अपने मन को फिर से पालेंगे जिसे किसी और (कृष्ण) ने चुरा लिया था। वह हमारे ऊपर अन्याय क्यों करते हैं। जिन्होंने दूसरों को अन्याय से छुड़ाया है। गोपियां उद्धव को राजधर्म की याद दिलाती है। राजधर्म यह कहता है कि प्रजा को सताया नहीं जाना चाहिए। विशेष : अन्य महत्वपूर्ण लेख –भ्रमर गीत। उद्धव का गोपियों को संदेश। सूर का दर्शन | दार्शनिक कवि | सगुण साकार रूप का वर्णन | जीव | जगत और संसार | सूरदास जी की सृष्टि | माया | मोक्ष समाजशास्त्र | समाज की परिभाषा | समाज और एक समाज में अंतर | Hindi full notes शिक्षा का समाज पर प्रभाव – समाज और शिक्षा।Influence of education on society शिक्षा और आदर्श का सम्बन्ध क्या है। शिक्षा और समाज | Education and society notes in hindi समाजशास्त्र। समाजशास्त्र का अर्थ एवं परिभाषा। sociology facebook page hindi vibhag YouTUBE भाषाविज्ञान के अध्ययन के प्रकार एवं पद्धतियां। भाषाविज्ञान। BHASHA VIGYAN भाषा की परिभाषा तथा अभिलक्षण। भाषाविज्ञान। भाषा के अभिलक्षण के नोट्स बलाघात। बलाघात के उदहारण संक्षेप में। बलाघात क्या है। भाषा के प्रकार्य। भाषा की परिभाषा। भाषा के प्रमुख तत्त्व। भाषा की प्रकृति तथा परिभाषा। भाषा के प्रकार्य उदहारण सहित। भाषा की प्रकृति का सरल नोट्स बलाघात के प्रकार उदहारण परिभाषा आदि।बलाघात के भेद सरल रूप में।balaghat in hindi निष्कर्ष –भ्रमरगीत गोपियों द्वारा उद्धव को दिए गए प्रेम संदेश को कहते हैं, जिसमें काले भवरे को आधार बनाकर गोपियों ने उद्धव को प्रेम का संदेश दिया था, जिसमें शिक्षण व्यंग्य थे। गोपियों के इन व्यंग्य के कारण ही उद्धव को प्रेम का उचित मार्ग मिल पाया था। प्रेम के बिना यह जीवन कितना सुना है आदि का अनुभव हो पाया था। इस गीत को सूरदास जी ने भ्रमरगीत का नाम दिया क्योंकि यह संपूर्ण गीत भंवरे को आधार बनाकर गाया गया था। आशा है उपरोक्त लेख से आपकी जानकारी में वृद्धि हो सकी होगी। अपने प्रश्न पूछने के लिए कमेंट बॉक्स में लिखें। उद्धव शतक का प्रतिपाद्य विषय क्या है?उद्धव शतक का प्रतिपाद्य विषय भक्तिकालीन कवियों जैसा है, किन्तु उसे प्रस्तुत करने की शैली रीतिकालीन कवियों जैसी चमत्कारपूर्ण है। इनके खण्डकाव्य 'गंगावतरण' में गंगा के पथ्वी पर आने की कथा है। इसमें रत्नाकर जी का भाव वैभव अनेक रूपों में प्रकट हुआ है। भाव निरूपण की दृष्टि से इनकी सृजन शक्ति अनुपमेय है।
उद्धव शतक के रचनाकार कौन हैं?उद्धव-शतक / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
उद्धव शतक किसकी रचना है इस रचना का प्रतिपाद्य?उद्धव शतक(1929ई.) में जगन्नाथदास 'रत्नाकर' द्वारा रचित काव्य ग्रन्थ है। जगन्नाथदास 'रत्नाकर'(1866-1932ई.)- हिंडोला(1894),हरिश्चंद्र,श्रृंगार लहरी,गंगावतरण(1927)आदि।
उद्धव शतक की भाषा कौन सी है?इतना ही नहीं रीतिकालीन परंपरा का अवगाहन करके ब्रजभाषा में ही उद्धव शतक की रचना की।
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