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उग्रवादी आंदोलन के राजनीतिक कारण -
उग्रवादी आंदोलन के आर्थिक कारण
उग्रवादी आंदोलन के धार्मिक तथा सामाजिक कारण
उग्रवादी आंदोलन के उद्देश्यउग्रवादियों का उद्देश्य स्वराज्य प्राप्त करना था। उनके अग्रणी नेता तिलक कहा करते थे, ‘‘ स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और में इसे लेकर रहूगा।’’ अरविन्द घोष ने भी कहा था, ‘‘ स्वराज्य हमारे जीवन का लक्ष्य है और हिन्दू धर्म के माध्यम से ही इसकी पूर्ति संभव है।’’ इस प्रकार, उग्रवादी स्वतंत्रता के महान पुजारी थे। पूर्णतया राष्ट्रीय सरकार की स्थापना के समर्थक थे तथा इंग्लैण्ड से संबंध विच्छेद चाहते थे। उग्रवादी आंदोलन की प्रगतिकांग्रेसे दो गुटों में बंट गई नरम दल एवं गरम दल। नरम दल के प्रमुख नेता गोपाल कृष्ण गोखले, फीरोजशाह मेहता एवं सुरेन्द्रनाथ बनर्जी थे। गरम दल के प्रमुख नेता बालगंगाधार तिलक, विपिन चन्द्र पाल और लाला लाजपतराय थे जो लाल-बाल-पाल के नाम से विख्यात थे। दाने ों गुटों के बीच पहली बार 1905 ईके बनारस अधिवेशन में खुला संघर्ष हुआ। कांग्रेस के युवक वर्ग के लाल-बाल-पाल के नेतृत्व में विद्राहे का झंडा खड़ा किया। कांग्रेस के पंडाल में उग्रवादियों की पृथक बैठक हुई और अनाधिकारिक रूप से उग्रवादी दल का जन्म हुआ। उग्रवादियों के प्रभावस्वरूप इस अधिवेशन में राजनीतिक सुधारों की मांग की गई। कांग्रेस की राजनीतिक भिक्षावृत्ति की नीति पर गहरा प्रहार किया गया और यह प्रहार भविष्य में और भी प्रबलतम होता गया। 1906 ई0. के कलकत्ता अधिवेशन में दादाभाई नौरोजी ने नरम दल और गरम दल के मध्य कांग्रेस में फूट उत्पन्न होने से रोकीं उन्होंने अध्यक्षपद से कांग्रेस का लक्ष्य ‘स्वराज्य’ घोषित किया साथ ही स्वराज्य, स्वदेशी आन्दोलन, विदेशी बहिष्कार और राष्ट्रीय भिक्षा के समर्थन में प्रस्ताव पास किये गये। उससे उग्रवादियों को काफी संतोष हुआ तथा काँग्रेस में एकता बनी रही। कांग्रेस का अगला अधिवेशन 1907 ई. में सूरत में हुआ। इस अधिवेशन में स्वराज्य के अर्थ तथा उसकी प्राप्ति के साधनों के प्रश्न पर नरम और गरम दलों में फटू काफी गहरी हो गई। अध्यक्ष पद के लिये पुन: मतभेद हुआ। उग्रवादी लोकमान्य तिलक को इस अधिवेशन का सभापति बनाना चाहते थे, परन्तु उदारवादियों ने बहुमत द्वारा डॉरासबिहारी घोष को सभापति निर्वाचित किया। फलत: अध्यक्ष भाषण के पूर्व ही हो-हल्ला आरंभ हो गया तथा शोर-गुल के बीच अधिवेशन को स्थगित कर देना पड़ा। तत्पश्चात् सूरत अधिवेशन में उदारवादी बहुमत में थे। अत: इनकी एक अलग सभा हुर्इं। इनकी समिति ने कांग्रेस का विधान तैयार किया। विधान की प्रथम धारा में काँग्रेस की नीति का स्पष्टीकरण किया गया जिसका पालन प्रत्येक कांग्रेसी के लिये आवश्यक बताया गया। इस धारा में कहा गया कि ‘‘भारत की जनता को उसी प्रकार की शासन व्यवस्था प्राप्त हो, जिस प्रकार की शासन व्यवस्था ब्रिटिश साम्राजय के अन्य उपनिवेशों में प्रचलित है और उनके समान ही भारतवासी भी साम्राज्य के अधिकारों और उत्तरदायित्वों के भागी बने। यही भारत की राष्ट्रीय कांग्रेस के उद्देश्य हैं। इन उद्देश्यों की प्राप्ति वर्तमान शासन व्यवस्था में धीरे-धीरे सुधार का राष्ट्रीय एकता तथा जनोत्साह को बढ़ावा देकर और देश के मानसिक नैतिक, आर्थिक एवं औद्योगिक साधनों को सुसंगठित कर वैधानिक रीति से की जाए।’’ उग्रवादी कांग्रेस की इस नरम नीति के बिल्कुल विरूद्ध थे। अत: वे कांग्रेस से अलग हो गये। दोनों दल अगले 9 वर्षो तक पृथक रूप से कार्य करते रहें। भारत में उग्रवादी आंदोलन के उदय के क्या कारण थे?उग्रवादी आन्दोलन के प्रारंभ होने का एक कारण अंग्रेजों की शोषण नीति का पर्दाफाश होना था। अंग्रेजों की शोषण नीति का पर्दाफाश करने मे विभिन्न लेखों और पुस्तकों का महत्वपूर्ण योगदान रहा। इसका श्रेय दादाभाई नौरोजी, दिनशा वाचा, गोपाल कृष्ण गोखले, आनन्द चार्लू एवं मदन मोहन मालवीय आदि को जाता हैं।
उग्रवादी आंदोलन कब प्रारंभ हुआ?उग्रवादी तथा क्रांतिकारी आन्दोलन (1906-1919 ई.) आगामी कई वर्षों तक ये अलग-अलग अपने-अपने ढंग से कार्य करते रहे । उग्रवादी नेताओं में लाला लाजपतराय, बाल गंगाधर तिलक, विपिनचन्द्र पाल एवं अरविन्द घोष थे।
उग्र राष्ट्रवाद के उदय के क्या कारण है?1896-97 में अकाल तथा महामारी के कारण महाराष्ट्र में घोर असन्तोष फैला। पंजाब में लाला लाजपतराय ने उग्र राष्ट्रवादी आन्दोलन का नेतृत्व किया । उन्होंने 'कायस्थ समाचार' के माध्यम से जनता को संघर्ष के लिए प्रेरित किया । बंगाल में उग्र राष्ट्रवाद का जन्म बंगाल विभाजन से हुआ ।
उग्रवाद का मतलब क्या होता है?उग्रवादियों का उद्देश्य स्वराज्य प्राप्त करना था। उनके अग्रणी नेता तिलक कहा करते थे, '' स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और में इसे लेकर रहूगा।'' अरविन्द घोष ने भी कहा था, '' स्वराज्य हमारे जीवन का लक्ष्य है और हिन्दू धर्म के माध्यम से ही इसकी पूर्ति संभव है।'' इस प्रकार, उग्रवादी स्वतंत्रता के महान पुजारी थे।
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