भारत में पर्यावरण कानून का इतिहास 125 वर्ष पुराना है। प्रथम कानून सन् 1894 में पास हुआ था, जिसमें वायु प्रदूषण नियंत्रणकारी कानून थे। वर्तमान समय में पर्यावरण संरक्षण एक जटिल समस्या है तथा वह संपूर्ण विश्व के लिए चुनौती है। आज का बढ़ता हुआ प्रदूषण संपूर्ण मानव-जाति के लिए अभिशाप बन गया है। मानव के अतिरिक्त वन एवं वन्य जीव प्रदूषण से त्रस्त हैं। इसी कारण संविधान में पर्यावरण संरक्षण पर विशेष बल दिया जा रहा है तथा इस समस्या से निपटने के लिए समय-समय पर कई कानून भी बनाए गए हैं। भारत ही नहीं पूरा विश्व पर्यावरण के इस बिगड़ते स्वरूप से प्रभावित है विकासशील व अविकसित देश इस समस्या से अधिक प्रभावित हुए, क्योंकि एक तो उनकी अपेक्षाकृत भारी जनसंख्या, दूसरा आर्थिक अभाव, तीसरे अशिक्षा अथवा कम शिक्षा उन्हें इस संकट से सहज छुटकारा नहीं दिला सकती। आम जनता ने पहले प्रगति के नाम पर प्रशासन से और फिर कानून से संरक्षण चाहा। प्रगति के नाम पर प्रशासन स्वयं भी कहीं इस समस्या के उत्पन्न करने के कारणों से जुड़ा था। अतः वह कुछ कर न सका। हां, कानून ने राहत दी। विद्वान न्यायाधीशों और विधिवेत्ताओं ने आम नागरिक के लाभ के लिए जहां भी कानून में कुछ मिला, उसी से जनता को लाभ पहुंचाया। यहां तक कि भारत के संविधान की धाराओं में उनके हित में बहुत खोजकर उनका उपयोग किया। Show
पर्यावरण में कानून की आवश्यकता वस्तुतः आम नागरिक को दैनिक जीवन के लिए मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति, उनकी शुद्धता, प्रदूषण को रोकने तथा आगे न होने देने और विकृत पर्यावरण को सुधारने के लिए ही महसूस हुई। अतः पर्यावरण संरक्षण तथा प्रदूषण रोकने हेतु अनेक पिछले वर्षों में बने। पर्यावरण को सुरक्षा प्रदान करने के लिए ब्रिटिशकाल में भी कुछ कानून बने थे, किंतु स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारतीय संविधान में पर्यावरण संरक्षण संबंधी 40वां संविधान संशोधन इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम था। इसके अनुच्छेद 48ए के अनुसार सरकार देश के पर्यावरण संरक्षण और सुधार तथा वन एवं वन्य जीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगी। 42वें संविधान के अच्छेद 51ए (जी) के अनुसार भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करें और उनका सुधार करें तथा प्राणीमात्र के प्रति दया-भाव रखें। भारत सरकार द्वारा सन् 1980 में पर्यावरण मंत्रालय की स्थापना की गई। जून, 1972 संपन्न मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र संघ के स्टॉक होम में अधिवेशन के अनुसार, ‘मनुष्य अपने पर्यावरण का निर्माता एवं शिल्पकार दोनों ही है, जिससे उसे भौतिक स्थिरता मिलती है तथा बौद्धिक, नैतिक सामाजिक तथा आध्यात्मिक विकास का सुअवसर प्राप्त होता है।’ इस ग्रह पर मनुष्य जाति की एक लंबी तथा पीड़ादायक उत्क्रमण यात्रा में एक ऐसी स्थिति आ गई है, जब विज्ञान तथा तकनीक के तीव्र विस्तार द्वारा मनुष्य ने एक प्रकार से अपने पर्यावरण की कायापलट करने की क्षमता प्राप्त कर ली है। पर्यावरण प्रबंधन के लिए अनेक कानूनी प्रावधान बनाए गए हैं, जिनकी मुख्य भूमिकाएं हैं- कानून पर्यावरण को क्षति पहुंचाने वाले व्यक्ति को दंडित करता है। भारत में पर्यावरण कानून का इतिहास 125 वर्ष पुराना है। प्रथम कानून सन् 1894 में पास हुआ था, जिसमें वायु प्रदूषण नियंत्रणकारी कानून थे। वर्तमान समय में पर्यावरण संरक्षण एक जटिल समस्या है तथा वह संपूर्ण विश्व के लिए चुनौती है। आज का बढ़ता हुआ प्रदूषण संपूर्ण मानव-जाति के लिए अभिशाप बन गया है। मानव के अतिरिक्त वन एवं वन्य जीव प्रदूषण से त्रस्त हैं। इसी कारण संविधान में पर्यावरण संरक्षण पर विशेष बल दिया जा रहा है तथा इस समस्या से निपटने के लिए समय-समय पर कई कानून भी बनाए गए हैं। कानूनी स्थिति (Legal Status)प्रदूषण से पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए संसार के कई देशों ने कानून को विनियमित करने के लिए विभिन्न प्रकार के प्रदूषण के साथ ही प्रदूषण के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के लिए कानून बनाए हैं। पर्यावरण कानून का प्रमुख उद्देश्य वातावरण के प्रमुख उपहार को प्रदूषण से मुक्त रखना है। भारतीय समाज धार्मिक प्रवृत्ति का होने के कारण यहां प्राकृतिक संसाधन (पौधे, जंतु, नदियां) पूजे जाते हैं। इसी कारण प्राचीनकाल में पर्यावरण रक्षा के लिए कानून नहीं बना था, लेकिन पिछली सदी से पर्यावरण को बचाने के लिए बड़ी संख्या में कानून बनाए गए। ये सभी कानून तीन श्रेणियों में बांटे जा सकते हैं- सामान्य कानून, 1. सामान्य कानून (Common Laws) – सामान्य कानून इंग्लैंड के परंपरागत कानून की व्याख्या है। यह न्यायिक निर्णयों पर आधारित है और अभी तक लागू है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 372 कॉमन लॉ पर आधारित है। इस कानून के अंतर्गत किसी भी कार्य के विरुद्ध जो किसी संपत्ति या व्यक्ति की हानि का कारण बना हो, प्रभावित पक्ष क्षतिपूर्ति या निषेधाज्ञा या दोनों का दावा कर सकता है। पर्यावरण प्रदूषण के लिए निम्न तीन कारक जिम्मेवार हैं- (क) व्यवधान, 2. विशेष विधान (Specific Legislations) – जल एवं वायु प्रदूषण। संवैधानिक प्रावधान (Constitutional Provisions) – भारतीय संविधान विश्व का पहला संविधान है, जिसमें पर्यावरण के लिए विशिष्ट प्रावधान है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना यह सुनिश्चित करती है कि हमारा देश समाजवादी समाज की अवधारणा पर आधारित है, जहां राज्य व्यक्ति की अपेक्षा सामाजिक समस्याओं को प्राथमिकता देता है। समाजवाद का मूल लक्ष्य है, सभी को जीवन का सुखद स्तर उपलब्ध करवाना, जो केवल एक प्रदूषण मुक्त वातावरण में ही संभव है। 3. प्रदूषण नियंत्रण कानून (Pollution Control Legislation)- भारत में प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए निम्न कानून बनाए गए हैं- जल प्रदूषण अधिनियम (The Water Prevention and Control of Pollution Amendment Act)यह अधिनियम जल प्रदूषण की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए बनाया गया है। इसके माध्यम से बोर्डों का गठन किया गया है, जो जल प्रदूषण की रोकथाम व नियंत्रण करते हैं। अधिनियम द्वारा बोर्डों को अधिकार एवं कर्तव्य प्रदत्त किए गए हैं। प्रदूषण से तात्पर्य जल का अशुद्धिकरण अथवा उसमें भौतिक, रासायनिक या जीव विज्ञानी परिवर्तन करना है अथवा सीवेज (Sewage) या कोई अन्य औद्योगिक, कृषि या किसी अन्य न्यायसंगत कार्य के लिए अयोग्य या पशु-पक्षी अथवा जलीय वनस्पति के लिए अयोग्य कर दें। केंद्रिय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में एक पूर्णकालिक सभापित, 5 नामित अधिकारी, 5 नामित राज्य बोर्ड अधिकारी, 3 नामित गैर-सरकारी व्यक्ति, 2 नामित औद्योगिक इकाई प्रतिनिधि तथा 1 पूर्णकालिक सचिव होगा। राज्य बोर्ड में एक पूर्णकालिक सभापित, 5 राज्य सरकार नामित अधिकारी, 5 नामित राज्य बोर्ड अधिकारी, 3 नामित गैर-सरकारी व्यक्ति, 2 नामित औद्योगिक इकाई प्रतिनिधि तथा 1 पूर्णकालिक सचिव होगा। सदस्यों का कार्यकाल 3 वर्ष है। बोर्ड की मीटिंग 3 मास में कम-से-कम एक बार होगी। केंद्र विशेष कार्यों के लिए कमेटी बना सकता है, जिसमें बोर्ड तथा बाह्य दोनों प्रकार के व्यक्ति सदस्य हो सकते हैं। केंद्रीय बोर्ड के कार्य- i. केंद्र सरकार को जल प्रदूषण संबंधी सलाह
देना। 9. राज्य बोर्ड के कार्य- i. राज्य सरकार के जल प्रदूषण रोकने के कार्यक्रम का संचालन। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 (Environment Protection Act,1986)केंद्र सरकार द्वारा पारित अधिनियम के प्रावधान इस प्रकार हैं- ‘पर्यावरण’ से तात्पर्य जल, वायु भूमि का अंतर्संबध मनुष्य, जीव, वनस्पति, सूक्ष्मजीवी तथा वन-संपदा से है। 6. कोई भी व्यक्ति कोई ऐसा कार्य या उद्योग स्थापित नहीं कर सकता, जिससे निर्गत होने वाला प्रदूषक अनुमन्य से अधिक हो। भारतीय वन अधिनियम, 1927 (Indian Forest Act, 1927)भारतीय वन अधिनियम सन् 1927 में पारित किया गया था। भारतीय वन (संरक्षण) अधिनियम (Indian Forest Conservation Act, 1980) तथा वन संरक्षण नियम (Forest Conservation Rules, 1981) में पारित हुआ। इसके नियम इस प्रकार हैं- 1.सन् 1927 में पारित मूल अधिनियम में वन-पशु अधिकारी, वन संपदा, नदी, वृक्ष, लकड़ी इत्यादि की अधिकृत परिभाषा दी गई हैं।2. सन् 1927 के अधिनियम के अनुसार सुरक्षित वन घोषित करने का अधिकार राज्य सरकारों को
है। i. वृक्ष तथा लकड़ी काटने संबंधी। वन संरक्षण अधिनियम, 1980 (Forest Conservation Act, 1980)इस अधिनियम में सन् 1988 में संशोधन किया गया था। इसके अनुसार – राज्य सरकारें सुरक्षित वनों को असुरक्षित अथवा किसी
अन्य वन को सुरक्षित घोषित कर सकती है। वन संरक्षण नियम, 1981 (Forest Conservation Rules, 1980)उक्त नियम केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए हैं, जो नियम वन संरक्षण अधिनियम, 1980 द्वारा केंद्र सरकार को प्रदत्त अधिकारी के अनुरूप है। 1. एडवाइजरी कमेटी में निम्न सदस्य होंगे- 2. कमेटी के गैर सरकारी सदस्यों का कार्यकाल 2 वर्ष होगा व उनके यात्रा एवं अन्य भत्ते सरकार द्वारा देय होंगे। i. एक मास में कम-से-कम एक बार बैठक नई दिल्ली में या आवश्यकता होने पर देश में कहीं
भी की जा सकती है। 4. राज्य सरकारों द्वारा विचार के लिए प्रस्ताव भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण सचिव को दिए जाने चाहिए। वन्य प्राणी सुरक्षा अधिनियम, 1972 (Wild Life Protection Act, 1972)उक्त अधिनियम 1972 में पारित किया गया था। इसमें 1982, 1986, 1991 तथा 1993 में संशोधन किए गए। इस अधिनियम में पशु, पशु पदार्थ (Animal Article), पकड़े हुए पशु (Captive Animal) आदि की समुचित परिभाषाएं दी गई हैं। 5. मुख्य वन प्राणी वार्डन द्वारा अनुमत स्थिति के अतिरिक्त किसी स्थिति में वन्य प्राणियों का शिकार करने की अनुमति नहीं है। मोटर गाड़ी अधिनियम, 1988 (Motor Vehicle Act, 1988)भारतीय मोटर गाड़ी अधिनियम सर्वप्रथम 1914 में बनाया गया था। इसे 1939 में तथा फिर 1988 एवं 1994 में संशोधित किया गया। इस अधिनियम के 1994 तक संशोधित रूप के मुख्य तथ्य निम्न प्रकार हैं- इस अधिनियम में 14 अध्याय तथा दो अनुसूचियां (SCHEDULES) हैं। संदर्भपर्यावरण शिक्षा, डॉ. एम.के.गोयल। मंगेश भवन, विकासनगर 27 खोली, बिलासपुर (छ.ग.) पर्यावरण को क्षति पहुंचाने वाले महत्वपूर्ण कारक कौन कौन से हैं?अति आबादी: इंसान की आबादी तेजी से बढ़ती जा रही है. ... . वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन: हमारी आबोहवा और समुद्री जल कार्बन से भर चुका है. ... . जंगलों की कटाई: कई प्रकार के पौधों और जन्तुओं को आसरा देने वाले जंगल रोज काटे जा रहे हैं.. भारतीय दंड संहिता में पर्यावरण संरक्षण का क्या प्रावधान है?अनुच्छेद 47 के अनुसार
"राज्य देश के पर्यावरण के संरक्षण तथा उसमें संवद्धन और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा के लिए प्रयास करेंगा।" "भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अन्तर्गत वन, नदी ओर वन्य जीव हैं, रक्षा और उसका संवर्धन करें तथा प्राणि मात्र के प्रति दया भाव रखे।"
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 में सरकार द्वारा पर्यावरण संरक्षण हेतु कौन से संवैधानिक प्रावधान किए गए हैं?संवैधानिक प्रावधान:
EPA को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 253 के तहत अधिनियमित किया गया था, जो अंतर्राष्ट्रीय समझौतों को प्रभावी करने के लिये कानून बनाने का प्रावधान करता है। संविधान का अनुच्छेद 48A निर्दिष्ट करता है कि राज्य पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने तथा देश के वनों और वन्यजीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा।
पर्यावरण को बचाने के लिए सरकार के द्वारा क्या क्या कदम उठाये गये है विस्तार से लिखिए?वनरोपण के लिए स्पेशल पर्पज व्हीकल (एसपीवी)
पर्यावरण एवं वन मंत्रालय (एमओईएफ) के माध्यम से एनटीपीसी और अन्य सदस्यों की विद्युत परियोजनाओं, वन रोपण के लिए उचित भूमि की पहचान करना, जिसे राज्य वन विभागों/जिला विकास प्राधिकरणों आदि के साथ समन्वित किया जाएगा।
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