विमुद्रीकरण से आप क्या समझते हैं? - vimudreekaran se aap kya samajhate hain?

विमुद्रीकरण एक आर्थिक गतिविधि है जिसके अंतर्गत सरकार पुरानी मुद्रा को समाप्त कर देती है और नई मुद्रा को चालू करती है। जब काला धन बढ़ जाता है और अर्थव्यवस्था के लिए खतरा बन जाता है तो इसे दूर करने के लिए इस विधि का प्रयोग किया जाता है। जिनके पास काला धन होता है ,वे उसके बदले में नई मुद्रा लेने का साहस नहीं जुटा पाते हैं और काला धन स्वयं ही नष्ट हो जाता है। इसका प्रयोग 8 नवम्बर 2016 को भारत के प्रधानमंञी नरेंद्र मोदी ने किया है। इस दिन से पुराने 500 और 1000 रूपए की मुद्रा बंद कर दी गई और नए मुद्राये चलाई गई !

भारत के चौथे प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के द्वारा सन्र 1978 में सर्वप्रथम मुद्रा का विमुद्रीकरण किया गया जिसमे 1000 और 5000 के नोट बंद किये गए थे।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • भारत के 500 और 1000 रुपये के नोटों का विमुद्रीकरण

सन्दर्भ[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • जानिए क्या है विमुद्रीकरण (जनसत्ता)
  • तीन फैसले - राजवेंद्र सिंह, विमुद्रीकरण का विश्लेषण करती किताब।

मोदी सरकार द्वारा आठ नंवबर को हजार और पांच सौ के पुराने नोट बंद करने के बाद से ही देश मुद्रा की कमी से परेशान रहे। सरकार ने कहा है कि 30 दिसंबर तक सभी लोग बैंक में जाकर अपने पैसे जमा करा दे। लोगों से यह भी अपील की गई कि वे नकदी और उपयोग कम से कम करें और डिजिटल माध्यमों से भुगतान करें। आइए डालते हैं विमुद्रीकरण पर एक नजर... 

क्या है विमुद्रीकरण : जब सरकार पुरानी मुद्रा (Currency) को कानूनी तौर पर बंद कर देती है और नई मुद्रा लाने की  घोषणा करती है तो इसे विमुद्रीकरण (Demonetization) कहते हैं। इसके बाद पुरानी मुद्रा अथवा नोटों की कोई कीमत नहीं रह जाती। हालांकि सरकार द्वारा पुराने नोटों को बैंकों से बदलने के लिए लोगों को समय दिया जाता है, ताकि वे  अमान्य हो चुके अपने पुराने नोटों को बदल सकें। 

8 नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश में 1000 और 500 रुपए के नोट बंद करने की घोषणा की अर्थात  विमुद्रीकरण की घोषणा की। आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल ने भी सरकार की इस घोषणा का समर्थन किया। इसके बाद सरकार 500 और 2000 रुपए के नए नोट भी बाजार में लेकर आई। 

आरबीआई के अनुसार 31 मार्च 2016 तक भारत में 16.42 लाख करोड़ रुपए मूल्य के नोट बाजार में थे, जिसमें से  करीब 14.18 लाख रुपए 500 और 1000 के नोटों के रूप में थे। 1938 में गठित भारतीय रिजर्व बैंक ने अभी तक 10 हजार रुपए से अधिक का नोट जारी नहीं किया है। 

विमुद्रीकरण क्यों : कालाधन, भ्रष्टाचार, नकली नोट और आतंकवादी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए सरकारें  विमुद्रीकरण का फैसला लेती हैं। अवैध गतिविधियों में संलग्न लोग नोटों को अपने पास ही रखते हैं। ऐसे में विमुद्रीकरण से सीधे उन पर चोट होती है। कई बार नकद लेन देन को हतोत्साहित करने के लिए भी नोटबंदी की जाती है। केन्द्र की  मोदी सरकार को भी उम्मीद है कि नोटबंदी से कालेधन, नकली नोट और आतंकवाद पर अंकुश लगेगा। हालांकि नोटबंदी के चलते आम आदमी को भी काफी मुश्किलों को सामना करना पड़ा। केन्द्र सरकार अपने इस फैसले से नकद लेन-देन को भी हतोत्साहित करने की कोशिश कर रही है। कई देशों में विमुद्रीकरण बेहद आम प्रक्रिया मानी जाती है। 

इसके उलट वेनेजुएला में अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने का कभी कोई काम नहीं किया गया। इसीलिए वहां अब एक लीटर दूध लगभग 13 हजार रुपए में और एक अंडा 900 रुपए में बिक रहा है। सबसे आश्चर्य वाली बात तो यह कि वेनेजुएला में सामान के बदले नोट गिनकर नहीं तौलकर लिए जा रहे हैं। इसका मतलब यह कि मक्खन की एक स्लाइस के बदले उतनी वजन के नोट लिए जा रहे हैं।

भारत कब-कब हुई नोटबंदी : भारत में पहली बार साल 1946 में 500, 1000 और 10 हजार के नोटों को बंद करने  का फैसला लिया गया था। 1970 के दशक में भी प्रत्यक्ष कर की जांच से जुड़ी वांचू कमेटी ने विमुद्रीकरण का सुझाव  दिया था, लेकिन सुझाव सार्वजनिक हो गया, जिसके चलते नोटबंदी नहीं हो पाई। 

जनवरी 1978 में मोरारजी देसाई की जनता पार्टी सरकार सरकार ने एक कानून बनाकर 1000, 5000 और 10 हजार  के नोट बंद कर दिए। हालांकि तत्कालीन आरबीआई गवर्नर आईजी पटेल ने इस नोटबंदी का विरोध किया था।

कई बार सरकार पुराने नोटों को एकदम बंद करने के बजाय धीरे-धीरे बंद कर देती है। 2005 में मनमोहन सिंह की  कांग्रेस नीत सरकार ने 500 के 2005 से पहले के नोटों का विमुद्रीकरण कर दिया था। 

What is Demonetisation and its Advantages and Disadvantages in hindi विमुद्रीकरण! 8 नवम्बर 2016 से पहले संभवतः भारत के आम लोग इस शब्द से अपरिचित ही रहे होंगे. इसकी वजह इस शब्द का रोजमर्रा के जीवन में प्रयोग का लगभग ना होना रहा है. हाँ, अर्थशास्त्र के विद्यार्थी, शिक्षक और फिर अर्थजगत के ज्ञाता विमुद्रीकरण से अवगत तो रहे होंगे, परन्तु क्या भारत में इसे अमल में लाया जा सकता है, इसके बारे में उन्होंने शायद सोचा भी नहीं होगा. हालाँकि जिस तरह से पिछले ढाई वर्षों से देश की नरेन्द्र मोदी की सरकार काले धन (Black Money) पर लगाम लगाने के लिए सक्रिय थी, उससे अनुमान लगाया जाने लगा था कि काले धन को नेस्तनाबूद करने के लिए वह कोई बड़ा और अभूतपूर्व कदम उठा सकते हैं. अंततः 8 नवम्बर 2016 को राष्ट्र को संबोधित करते हुए, उन्होंने बड़े मूल्य के नोटों यानि 500 और 1000 के नोटों को उसी दिन की अर्धरात्रि से बंद कर दिए जाने का ऐलान कर दिया. इस ऐलान के बाद उपरोक्त दोनों मूल्य वर्ग के नोट कानूनी तौर पर अवैध हो गए और उन नोटों यानि मुद्रा की कोई कीमत नहीं रह गई. प्रधानमंत्री मोदी ने किये 1000 एवं 500 के नोट बंद.

विमुद्रीकरण से आप क्या समझते हैं? - vimudreekaran se aap kya samajhate hain?

  • विमुद्रीकरण क्या है? (What is Demonetisation in hindi)
    • विमुद्रीकरण क्यों किया जाता है? (Why demonetisation is necessary) –
    • भारत में विमुद्रीकरण का इतिहास (Demonetization history in India) –
    • विमुद्रीकरण के फायदे (Advantages of Demonetization) –
    • विमुद्रीकरण के साइड इफेक्ट्स (Disadvantages of demonetization) –

संक्षिप्त तौर पर कह सकते हैं कि “विमुद्रीकरण (Demonetisation) वह प्रक्रिया है, जिसके तहत किसी देश की सरकार अपने देश की किसी मुद्रा (नोट) को कानूनी तौर पर प्रतिबंधित कर देती है. प्रतिबंध के बाद उस मुद्रा की कोई कीमत नहीं रह जाती. उस मुद्रा से किसी प्रकार की खरीद-बिक्री, लेन-देन और उसे संचित करना भी अपराध माना जाता है. मुद्रा पर प्रतिबंध के बाद सरकार एक समय सीमा तय करती है, जिसके अंदर लोग प्रतिबंधित किए गए नोटों को बैंकों में बदलकर उसके बदले उतने ही मूल्य के अन्य वर्ग के प्रचलित नोट या फिर नए जारी किए गए नोट ले सकते हैं. अगर तय समय सीमा के अंदर जिस प्रतिबंधित मुद्रा को बदला नहीं जाता है या फिर उसे बैंक में जमा नहीं किया जाता है तो वे सभी नोट कागज़ के टुकड़े या रद्दी हो जाते हैं.”

विमुद्रीकरण क्यों किया जाता है? (Why demonetisation is necessary) –

किसी भी देश की सरकार द्वारा देश में प्रचलित विभिन्न मूल्य वर्ग के नोटों में से किसी खास वर्ग या वर्गों को प्रतिबंधित करने के कई कारण होते हैं. इस प्रकार के प्रतिबंध के संबंध में सबसे खास बात यह है कि सामान्यतः प्रतिबंध बड़े मूल्य वर्ग के नोटों पर लगाया जाता है. जैसे कि भारत में 500 और 1000 के नोटों पर प्रतिबंध लगाया गया, जो देश में प्रचलित नोटों में सबसे बड़े मूल्य वर्ग के नोट थे. विमुद्रीकरण के कारणों में सबसे प्रमुख है देश की अर्थव्यवस्था में काले धन और जाली मुद्रा की विनाशकारी भूमिका. जब किसी देश में लोग टैक्स चोरी करने के उद्देश्य से नगद लेन-देन ज्यादा करने लगते हैं, तब मुद्रा की जमाखोरी बढ़ जाती है और फिर यही जमाखोरी धीरे-धीरे काले धन के रूप में उस देश में समानांतर अर्थव्यवस्था के तौर पर खड़ी हो जाती है. ऐसी स्थिति में काला धन देश की अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा से बाहर हो जाता है, जिससे नगदी संकट की समस्या पैदा होने लगती है. अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा से काले धन के रूप में मुद्रा के बाहर होने से, न केवल उस देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचता है बल्कि यह देश की सुरक्षा के लिए भी एक चुनौती बन जाता है. यह काला धन ही देश में आतंकवाद, नक्सलवाद, अपराध, हवाला कारोबार और तस्करी का मुख्य पोषक बन जाता है. साथ ही दुश्मन देश इसी आपराधिक गतिविधियों की आड़ में देश में जाली मुद्रा को भारी मात्रा में झोंककर, देश की आर्थिक व्यवस्था को पंगु बनाने की साजिश रचते हैं. 

इन सब गतिविधियों के लिए जमाखोरी बड़े मूल्य वर्ग के नोटों में की जाती है. भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा जारी आंकड़ों को देखें, तो स्पष्ट हो जाता है कि देश में काले धन का एक बड़ा साम्राज्य स्थापित हो चुका था. आंकड़ों के अनुसार 31 मार्च 2016 तक देश में 16.42 लाख करोड़ रुपये मूल्य के नोट प्रचलन में थे, जिसमे से 14.18 लाख करोड़ रुपये 500 और 1000 मूल्य वर्ग के थे. यानि कुल नोटों में से 500 और 1000 मूल्य वर्ग के नोटों की हिस्सेदारी 86 फीसदी थी. परन्तु आरबीआई के आंकड़े कहते हैं कि इन बड़े मूल्य वर्ग के नोट बाज़ार में सिर्फ 24 फीसदी ही थे. यानि कि बाकी बचे 76 फीसदी बड़े मूल्य वर्ग के नोटों को जमाखोरी कर काले धन में परिवर्तित कर दिया गया था.

दूसरी तरफ भारतीय अर्थव्यवस्था जाली नोटों की बढती संख्या से भी त्रस्त था. अनुमान लगाया गया था कि देश की अर्थव्यवस्था में विमुद्रीकरण से पूर्व लगभग 400 करोड़ रुपए के जाली नोटों का प्रवाह था. यानि प्रति 10 लाख नोटों में 250 जाली नोट थे. इतना ही नहीं, इन जाली नोटों के भंडार में प्रति वर्ष 70 करोड़ का इजाफा भी हो रहा था. इन जाली नोटों में से 50 फीसदी से अधिक केवल 1000 मूल्य वर्ग के नोट ही थे और बाकी 500 मूल्य वर्ग के थे. ऐसे में भारतीय अर्थव्यवस्था का खोखला होते जाना लाजिमी था. अंततः जरूरी था कि सरकार कोई ऐसा कदम उठाए, जिससे अर्थव्यवस्था के लिए नासूर बनते जा रहे काले धन और जाली नोटों के खेल पर करारा प्रहार हो सके. देश की वर्तमान नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा लिया गया विमुद्रीकरण का फैसला इसी दिशा में उठाया गया एक सफल प्रयास कहा जा सकता है. 

भारत में विमुद्रीकरण का इतिहास (Demonetization history in India) –

ऐसा नहीं है कि भारत की वर्तमान सरकार द्वारा विमुद्रीकरण पर लिया गया फैसला पहला फैसला है. इससे पहले भी देश में विमुद्रीकरण का चाबुक चल चुका है. पहली बार वर्ष 1946 में 500, 1000 और 10,000 मूल्य वर्ग के नोटों का विमुद्रीकरण किया गया था. आगे के दिनों में प्रत्यक्ष कर (Direct Taxes) की जांच करने के लिए गठित वांचू कमिटी ने 1970 के दशक में काले धन को बाहर लाने और उसे नष्ट करने के लिए सरकार को विमुद्रीकरण करने की सलाह दी थी. परन्तु इस संबंध में सरकार जब तक अंतिम फैसला करती, उससे पहले ही सरकार द्वारा विमुद्रीकरण करने की योजना का खुलासा हो गया और काला धन रखने वाले सतर्क हो गए. तत्कालीन सरकार को अंततः विमुद्रीकरण की योजना को रद्द करना पड़ा.

वर्ष 1977 में आपातकाल हटने के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस को सत्ता से हटना पड़ा और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी सरकार का गठन हुआ. इस सरकार ने जनवरी 1978 में 1000, 5000 और 10,000 मूल्य वर्ग के नोटों का विमुद्रीकरण कर दिया. हालाँकि रिज़र्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर आईजी पटेल ने सरकार के इस कदम का समर्थन नहीं किया था. मोरारजी देसाई जीवन परिचययहाँ पढ़ें.

अब एक बार फिर देश की वर्तमान नरेन्द्र मोदी सरकार ने बड़े मूल्य वर्ग के नोटों का विमुद्रीकरण कर काला धन पर बड़ा प्रहार किया है. इस बार सरकार के फैसले के साथ रिज़र्व बैंक भी है. इस सन्दर्भ में रिज़र्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने सरकार के कदम को साहसिक बताया है. हालाँकि आर्थिक जगत में सरकार के इस कदम पर एकराय नहीं है. कई विशेषज्ञ विमुद्रीकरण को अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा बता रहे हैं तो कईयों का मानना है कि काला धन निकालने और उसे नष्ट करने की सरकार की मंशा इससे पूरी नहीं होगी. देश के विरोधी दलों ने भी सरकार के विमुद्रीकरण के कदम को अनुचित बताया है. बहरहाल विमुद्रीकरण पर समर्थन और आलोचनाओं के मद्देनजर हम इससे होने वाले फायदे पर नज़र डालते हैं.

विमुद्रीकरण के फायदे (Advantages of Demonetization) –

  1. काले धन पर करारा प्रहार – विमुद्रीकरण का सबसे करारा चोट काले धन के कुबेरों पर पड़ा है. अनुमान लगाया गया था कि देश में लगभग 3 लाख करोड़ रुपये काले धन के रूप में छिपा कर रखे गए हैं. इन रुपयों का हवाला कारोबार, तस्करी, आतंकवाद और आपराधिक गतिविधियों में धड़ल्ले से उपयोग हो रहा था. कश्मीर में जारी हिंसा में भी काला धन मुख्य भूमिका निभा रहा था. देश की सियासत में भी काला धन लंबे समय से एक मुद्दा रहा है. अंततः विमुद्रीकरण कर जब इस पर प्रहार किया गया, तो माना जा रहा है कि काले धन पर पूर्ण तो नहीं परन्तु इसके सम्राज्य पर लगभग 80 से 90 फीसदी प्रभाव अवश्य पड़ेगा.
  2. आतंकवाद, नक्सलवाद और आपराधिक गतिविधियों पर चोट – विमुद्रीकरण के चोट से आतंकवादी गुटों, नक्सली समूहों, नशे के कारोबारियों सहित अन्य गैरकानूनी गतिविधियों को करारा आघात पहुंचा है. इसका स्पष्ट प्रभाव कश्मीर में देखने को मिल रहा है. एक तरफ जहाँ इन समूहों द्वारा जमा किए गए नोटों के बंडल कागज़ के टुकड़ों में तब्दील हो गए हैं वहीँ नए नोटों के अभाव में इनकी गतिविधियां ठप्प पड़ गई हैं.
  3. टैक्स कलेक्शन में बढ़ोत्तरी – सरकार ने विमुद्रीकरण से पहले और विमुद्रीकरण के दौरान काले धन को छिपाकर रखने वालों को राहत देते हुए कहा था कि वे अपने धन का खुलासा कर नियम के अनुसार टैक्स चुका कर मुख्यधारा में आ सकते हैं. इसका असर हुआ. बहुत सारे लोगों ने राहत का फायदा उठाया और जो छिपे रहे उनमें से कईयों के ठिकाने पर एजेंसियों ने छापा मारकर उन्हें पकड़ा और नगदी को जब्त किया. अब तक की सरकारी रिपोर्ट के अनुसार विमुद्रीकरण के बाद टैक्स कलेक्शन में 14.5 फीसदी की बढ़ोत्तरी हो चुकी है.
  4. अर्थव्यवस्था में वृद्धि – विमुद्रीकरण के बाद अनुमान लगाया गया है कि इस कदम से सरकारी खाते में लगभग 3 लाख करोड़ रुपये आएंगे. साथ ही 65 हज़ार करोड़ रुपये विभिन्न करों (Tax) के माध्यम से भी आने की उम्मीद है. उल्लेखनीय है कि ये आंकड़े अभी अनुमानित हैं. ये अनुमान से कहीं अधिक भी हो सकते हैं. इतनी भारी-भरकम रकम आने से सरकार आधारभूत ढ़ांचे में निवेश करेगी, जिससे देश की आर्थिक वृद्धि को रफ़्तार मिलेगा.
  5. सस्ते होंगे ब्याज दर – विमुद्रीकरण के बाद काले धन के एक बड़े भाग का अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में आने से बैंकों में डिपाजिट बढ़ेंगे. बैंकों के पास पर्याप्त मात्रा में नगदी आने से वे क़र्ज़ का प्रवाह बढ़ाएंगे. क़र्ज़ का प्रवाह बढ़ाने के लिए बैंकों के लिए लाजमी हो जाएगा कि वे क़र्ज़ पर ब्याज दर में कटौती करें. ऐसा होने पर जहां व्यावसायिक गतिविधियों में तेजी आएगी, वहीँ पिछले दो सालों से मंदी की मार झेल रहे रियल्टी सेक्टर में उछाल आएगा. परिणामस्वरूप मकानों की बिक्री बढ़ने के साथ सस्ते घर का भी सपना पूरा होने की उम्मीद है.
  6. लोक कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च – विमुद्रीकरण के बाद सरकार के हिस्से में आए रकम से सरकार लोक कल्याणकारी योजनाओं का दायरा बढ़ाएगी और पहले से चल रही योजनाओं के बजट में भी वृद्धि कर सकेगी. सरकार ने इसके संकेत भी दे दिए हैं. प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत, जिस प्रकार मकानों के निर्माण के तय लक्ष्य और कम ब्याज के साथ मकान निर्माण के लिए दिए जाने वाले आर्थिक सहायता को बढाया गया है, उससे सरकार की भविष्य के प्रति मंशा स्पष्ट होती है. प्रधानमंत्री आवास योजनायहाँ पढ़ें.
  7. रोजगार में वृद्धि – विमुद्रीकरण के बाद सरकार की मुद्रा योजना को बल मिलेगा. नरेन्द्र मोदी सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना को बैंकों से अभी पूरा सहयोग नहीं मिल रहा था. इसकी वजह थी बैंकों के पास नगदी का संकट. परन्तु अब जब बैंकों में नगदी का प्रवाह बढ़ा है तो बैंक व्यावसायिक गतिविधियों में ऋण का प्रवाह बढ़ाएंगे. इससे औद्योगिक गतिविधियां बढेंगी और परिणामस्वरूप रोजगार सृजन में बढ़ोत्तरी होगी.
  8. कैशलेस अर्थव्यवस्था की तरफ बढ़ते कदम – विमुद्रीकरण के दौरान कैश की किल्लत ने देश के लोगों को एक बड़ा सबक दिया और वह था कैशलेस पेमेंट की मजबूरी. आज वही मजबूरी देश में लोगों के सर चढ़कर बोल रहा है. कल तक जो पेमेंट लोग कैश में देना चाहते थे, आज वही लोग डिजिटल पेमेंट की वकालत कर रहे है. देश में अगर यह ट्रेंड जोर पकड़ता है तो यहाँ आईटी सेक्टर को जबरदस्त फायदा होगा. दूसरी तरफ कैशलेस अर्थव्यवस्था में काले धन की संभावनाओं पर भी काफी हद तक नियंत्रण पाया जा सकेगा. कैशलेस पेमेंट के तरीके यहाँ पढ़ें.

विमुद्रीकरण के साइड इफेक्ट्स (Disadvantages of demonetization) –

  • विमुद्रीकरण के दौर में देश के पर्यटन उद्दयोग को बड़ा धक्का लगा है. उस दौरान देश में स्थानीय मुद्रा की कमी से विदेशी पर्यटकों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था. समस्या को देखते हुए भारत आने वाले पर्यटकों ने अपना दौरा रद्द कर दिया था. परिणामस्वरूप देश का पर्यटन उद्दयोग मंदी की चपेट में आ गया. कहा जा रहा है कि मंदी का यह दौर अभी कुछ और समय तक चल सकता है.
  • विमुद्रीकरण के साइड इफ़ेक्ट का देश की जीडीपी (Gross Domestic Product) यानि सकल घरेलू उत्पाद पर भी पड़ने की आशंका जताई जा रही है. ऐसा होना भी स्वाभाविक है. विमुद्रीकरण देश की अर्थव्यवस्था में अचानक आए एक भूचाल के समान था. इससे अर्थव्यवस्था में सुस्ती का आना भी स्वाभाविक है. परन्तु यह ठहराव थोड़े समय के लिए है. बेहतर भविष्य के लिए थोड़ा बहुत नुकसान कोई मायने नहीं रखता.

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि विमुद्रीकरण किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए लंबे समय का फायदा ही लेकर आता है, कोई विशेष नुकसान नहीं.

विमुद्रीकरण का उद्देश्य क्या है?

विमुद्रीकरण का उद्देश्य काले धन पर रोक लगाना, भष्ट्राचार में कमी करना, आतंकवाद तथा नक्सलवाद को खत्म करना, जाली नोटो को निष्क्रिय करना तथा अर्थव्यवस्था को कैशलैस करना है।

भारत में पहली बार विमुद्रीकरण कब हुआ था?

भारत में पहला विमुद्रीकरण 1946 में हुआ था, जिसमें 1,000 रुपये और 10,000 रुपये के करेंसी नोट को सर्कुलेशन से हटा दिया गया था। vहालांकि, दोनों नोटों को 1954 में 5,000 रुपये की अतिरिक्त मुद्रा के साथ फिर से शुरू किया गया था।

भद्रीकरण से क्या तात्पर्य है?

किसी वस्तु को वैध मुद्रा (legal tender) में बदलना मुद्रीकरण (Monetization) कहलाता है। . 1 संबंध: विमुद्रीकरण।

भारत में अब तक कितनी बार विमुद्रीकरण हो चुका है?

अतीत में दो बार -1946 और 1978 में विमुद्रीकरण लागू किया गया है। पहली बार मुद्रा प्रतिबंध: 1946 में 1,000 रुपये और 10,000 रुपये के करेंसी नोट को प्रचलन से हटा दिया गया था।