Maithili Sharan Gupt Poems - Charu Chandr Ki Chanchal Kirne (चारु चंद्र की चंचल किरणें)चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में, Show पंचवटी की छाया में है, सुन्दर पर्ण-कुटीर बना, किस व्रत में है व्रती वीर यह, निद्रा का यों त्याग किये, मर्त्यलोक-मालिन्य मेटने, स्वामि-संग जो आई है, कोई पास न रहने पर भी, जन-मन मौन नहीं रहता; क्या ही स्वच्छ चाँदनी है यह, है क्या ही निस्तब्ध निशा; है बिखेर देती वसुंधरा, मोती, सबके सोने पर, सरल तरल जिन तुहिन कणों से, हँसती हर्षित होती है, तेरह वर्ष व्यतीत हो चुके, पर है मानो कल की बात, और आर्य को, राज्य-भार तो, वे
प्रजार्थ ही धारेंगे, <<Go Back To Main Page
छ क्या ही स्वच्छशांत और चुपचाप?एक मनमोहक सुगंध वातावरण में फैली हुई है। हर तरफ आनंद-ही-आनंद है। इस स्तब्ध कर देने वाली सुंदरता का प्रभाव सभी की सूत्रधार नियति अर्थात प्रकृति पर नहीं पड़ रहा है। उसके क्रिया-कलाप एकांत भाव से चुपचाप जारी हैं।
निम्नलिखित पंक्तियों का सरल अर्थ लिखिए च चारु चंद्र झोंकों से छ क्या ही स्वच्छ शांत और चुपचाप?इन पंक्तियों में पंचवटी के चारों और प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन किया है| यहाँ पर स्वच्छ और निर्मल चांदनी है। चारों तरह वातावरण शांत सा महसूस हो रहा है और अच्छी खुशबू दिशाओं में महक रही है| पंचवटी में चारों और स्वच्छ वातावरण फैला हुआ है| सब जगह एकांत और चुप्पी है, फिर भी सब अपना कर्तव्य का पालन कर रहे हैं।
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