Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय Textbook Exercise Questions and Answers. Show
RBSE Class 9 Social Science Solutions History Chapter 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदयRBSE Class 9 Social Science नात्सीवाद और हिटलर का उदय InText Questions and Answersपृष्ठ 61 स्रोत क और ख को पढ़ें- प्रश्न 1.
प्रश्न 2. पृष्ठ 63 प्रश्न 1. फ्रांसीसी क्रांति के अनुसार नागरिकता-फ्रांसीसी क्रांति का यह विचार था कि सभी मानव, जन्म से समान एवं स्वतंत्र हैं तथा उनके अधिकार भी समान हैं। स्वतंत्रता, संपत्ति, सुरक्षा तथा दमन का विरोध, ये नागरिक के प्राथमिक अधिकार हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपने विचार व्यक्त करने तथा अपने इच्छित जगह पर बस जाने के लिए स्वतंत्र है। किसी प्रजातांत्रिक तथा समाजवादी समाज में कानून का शासन होना चाहिये, जिसके ऊपर कोई नहीं होता। फ्रांस में मनुष्य के जीवन के अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के अधिकार और कानूनी बराबरी के अधिकार को 'नैसर्गिक एवं अहरणीय' अधिकार के रूप में मान्यता दी गई अर्थात् ये अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को जन्मजात प्राप्त थे तथा इन अधिकारों को छीना नहीं जा सकता था। राज्य का यह कर्त्तव्य माना गया था कि वह प्रत्येक नागरिक के नैसर्गिक अधिकारों की रक्षा करे। नात्सीवाद के अनुसार नागरिकता-नात्सियों ने नागरिकता को खासकर नस्लीय विभेद के दृष्टिकोण से परिभाषित किया। यही कारण है कि उन्होंने यहूदियों तथा आबादी के अन्य हिस्सों को जर्मन नागरिक मानने से इनकार कर दिया। इतना ही नहीं, उनके साथ बहुत कठोर व्यवहार करते हुए उन्हें जर्मनी से बाहर निकाल दिया। कालांतर में उन्हें भागकर जर्मनी से बाहर पोलैंड तथा पूर्वी यूरोप में बसना पड़ा। उन्होंने नागरिकों में भेदभाव किया। प्रश्न 2.
अन्य कानूनी कदमों में निम्न उपाय शामिल थे-
पृष्ठ 69 प्रश्न 1.
होती तो हिटलर के विचारों पर किस तरह की प्रतिक्रिया देतीं? (2) गैर-यहूदी जर्मन औरत-यदि मैं गैर-यहूदी जर्मन औरत होती तब भी हिटलर के नस्लीय विचारों की आलोचना करती। साथ ही उसके उन विचारों का भी विरोध करती जिनके अनुसार वह महिला तथा पुरुषों में भेद करता था। प्रश्न 2. पृष्ठ 70 जर्मन किसान तुम सिर्फ हिटलर के हो! क्यों! आज जर्मन किसान दो भयानक पाटों के बीच पिस रहा है : एक खतरा अमेरिकी अर्थव्यवस्था यानी बड़े पूँजीवाद का है दूसरा खतरा बोल्शेविज्म की मार्क्सवादी अर्थव्यवस्था का है बड़ा पूँजीवाद और बोल्शेविज्म, दोनों हाथ मिला कर काम करते हैं : ये दोनों ही यहूदी विचारों से जन्मे हैं और विश्व यहूदीवाद की महायोजना को लागू कर रहे हैं। किसान को इन खतरों से कौन बचा सकता है? केवल राष्ट्रीय समाजवाद 1932 में छपे एक नात्सी पर्चे से उपर्युक्त चित्रों को देखें और निम्नलिखित का उत्तर दें- पृष्ठ 71 प्रश्न 2. पृष्ठ 74 प्रश्न 1. स्कूलों में शुद्धिकरण की मुहिम चलाई गई। पाठ्यपुस्तकें नये सिरे से लिखी गईं। नात्सी विचारधारा वाले शिक्षकों को ही नौकरी पर रखा गया। जर्मन बच्चों को तथा यहूदी बच्चों को अलग-अलग बिठाया जाता था। उन्हें ऐसी किताबें पढ़ाई जाती थीं जो नात्सी विचारों के प्रसार के लिए तैयार की गई थीं। बच्चों को खेल के रूप में बॉक्सिंग का चुनाव करने के लिए बाध्य किया जाता था क्योंकि हिटलर का मानना था कि बॉक्सिंग से बच्चे फौलादी दिल वाले, ताकतवर और मर्दाना बनते हैं। उन्हें उस आयु में एक छोटा-सा झंडा लहराना पड़ता था जब उसके बारे में उनकी कोई सोच भी विकसित नहीं हुई होती थी। 10 वर्ष की आयु होने पर उन्हें युंगकोफ में भेजा जाता था, उसके बाद हिटलर यूथ में तथा बाद में नात्सी सेना में। इस तरह उनकी पूरी जिंदगी ही थोपे गये विकृत विचारों के अनुसार गुजरती थी। (2) यातना गृह से जिन्दा बच निकले एक यहूदी की नजर से जर्मनी का इतिहास- नात्सियों द्वारा यहूदियों पर किये गये अत्याचार के लिए जर्मन इतिहास का एक काला अध्याय है। यहूदियों को पकड़कर यातना गृहों में डाल दिया जाता था जहाँ उन्हें घोर यातनाएँ दी जाती थीं। बहुत दिनों तक विभिन्न तरह के अत्याचार करने के बाद यहूदियों को गैस चैंबर्स में मरने के लिए छोड़ दिया जाता था। यातना गृहों से बाहर के यहूदियों की स्थिति भी दयनीय थी। उन्हें समाज में घोर अपमान सहना पड़ता था। अपनी पहचान प्रदर्शित करने के लिए उन्हें डेविड का तमगा युक्त वस्त्र पहनना पड़ता था तथा उनके घरों पर विशेष चिह्न अंकित किसी भी तरह के संदेह की स्थिति अथवा कानून के मामूली उल्लंघन पर उन्हें यातना गृहों में भेज दिया जाता था, नया दौर शुरू होता था जिसकी अंतिम परिणति उसकी मौत में होती थी। जर्मनी में हजारों-लाखों यहूदियों को गैस चैंबरों में दम घोंट कर मारा गया। नात्सियों द्वारा यातना गृहों में यहूदियों पर किया जाने वाला अत्याचार अकथनीय तथा अवर्णनीय है। यह मानवता के नाम पर एक कलंक है। यहाँ तक कि स्कूली बच्चों तथा महिलाओं पर भी कोई रहम नहीं किया जाता था। (3) नात्सी शासन के राजनीतिक विरोधी की नजर से जर्मनी का इतिहास-जर्मनी में नात्सीवाद का जन्म न केवल जर्मनी के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए एक अभिशाप सिद्ध हुआ। इसने जर्मन इतिहास को कलंकित कर दिया। नात्सी शासन प्रचार के खोखले तथा कमजोर पैरों पर टिका हुआ था। युद्ध द्वारा नये क्षेत्रों के अधिग्रहण की नीति से कुछ भी प्राप्त होने वाला नहीं था। यह कभी भी देश में एक लंबी शांति तथा समृद्धि का दौर नहीं ला सकता था। नात्सी लोग राष्ट्रवाद का जो अर्थ लगाते थे तथा जिन साधनों तथा नीतियों के उपयोग द्वारा अपने लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते थे, उससे कतई भी सहमत नहीं हुआ जा सकता है। जर्मन राष्ट्रवाद की प्राप्ति के लिए पहले से अल्प धन की मात्रा को सेना या सैन्य उपकरणों पर खर्च करना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं था। महिलाओं तथा बच्चों के प्रति नात्सियों की नीति पूर्णतः असंगत तथा अतार्किक थी। जर्मन बच्चों को उनके नैसर्गिक व्यक्तित्व के विकास से दूर हटाकर उनमें कट्टरपंथी विचारधारा को स्कूली पाठ पाठ्यक्रम के अनुसार भरना, उनके साथ घोर अन्याय था। महिलाओं के ऊपर अव्यावहारिक आचार संहिताओं का थोपा जाना उनकी स्वतंत्रता को खत्म करने जैसा था। एक तरह से नात्सी लोगों ने असभ्यता के सभी लक्षणों के प्रचार द्वारा जर्मन जनता को भ्रष्ट करने का असफल प्रयास किया जिसके लिए इतिहास उन्हें कभी माफ नहीं करेगा। नात्सियों ने तथाकथित अवांछितों पर, जिनमें यहूदी, जिप्सी, विकलांग आदि शामिल किये जाते थे, बर्बर जुल्म किये। उन्हें तरह-तरह की यातनाएँ दी तथा मौत के घाट उतारा। नात्सी लोग मानवता के दुश्मन थे। उन्होंने अपने कार्यों से सम्पूर्ण जर्मन इतिहास को कलंकित कर दिया। प्रश्न 2. RBSE Class 9 Social Science नात्सीवाद और हिटलर का उदय Textbook Questions and Answersप्रश्न 1. (2) वर्साय की अपमानजनक संधि से मित्र राष्ट्रों को युद्ध की क्षतिपूर्ति के रूप में भारी धन-राशि देनी पड़ी। (3) जर्मनी ने पहला विश्वयुद्ध मोटे तौर पर कर्ज लेकर लड़ा था और युद्ध के बाद तो उसे स्वर्ण मुद्रा में हर्जाना भी भरना पड़ा। इस दोहरे बोझ से जर्मनी के स्वर्ण भंडार लगभग समाप्त होने की स्थिति में पहुँच गए थे। जर्मनी ने इसके कागजी मुद्रा छापना आरम्भ कर दिया। कागजी मुद्रा के अत्यधिक प्रसार के कारण जर्मन माके का मूल्य बहुत कम हो गया। इसलिए जर्मनी मुद्रा स्फीति तथा आर्थिक मंदी के कुचक्र में फंस गया। (4) 1929 की आर्थिक मंदी के कारण अमेरिका ने अपनी मदद वापस ले ली, जबकि जर्मनी की अर्थव्यवस्था अमेरिका पर आश्रित थी। फलतः जर्मनी का औद्योगिक उत्पादन 1929 के मुकाबले 40 प्रतिशत रह गया। इससे वहाँ बेरोजगारी बढ़ गई तथा उद्योग व व्यापार पिछड़ गये। (5) वाइमर गणतंत्र के काल में जर्मनी में शासन अस्थिरता के दौर से गुजरता रहा। अपने छोटे जीवन काल में वाइमर गणतंत्र में बीस विभिन्न मंत्रिमंडलों का गठन हुआ। इससे लोगों का लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास खत्म होने लगा। (6) मित्र राष्ट्रों ने जर्मनी को कमजोर करने के लिए उसकी सेना को भंग कर दिया था तथा युद्ध अपराध न्यायाधिकरण ने उसे युद्ध के लिए जिम्मेदार ठहराने के साथ-साथ मित्र राष्ट्रों को हुए नुकसान के लिए भी उत्तरदायी ठहराया। प्रश्न 2. हिटलर ने वर्साय सन्धि को निरस्त कराने तथा जर्मनी के गौरव को पुनः प्राप्त करने का आश्वासन दिया जिससे हजारों व्यक्ति नाजी दल के समर्थक बन गये। (2) जर्मनी की खराब आर्थिक दशा तथा विश्व आर्थिक मंदी-बेरोजगारी, मुद्रास्फीति, मूल्य-वृद्धि, जर्मनी के व्यापार तथा उद्योगों की तबाही तथा सामान्य विश्व मंदी से जर्मनी में निकृष्टतम अवस्था की आर्थिक आपदा पैदा हुई। हिटलर ने लोगों की दशा के लिए लोकतांत्रिक सरकार को दोषी ठहराया। हिटलर ने लोगों को आर्थिक क्षेत्र में सहायता देने का वायदा किया तथा उसने लोगों का विश्वास जीता। (3) साम्यवाद का खतरा-जर्मनी में साम्यवादियों ने 1917 ई. की रूसी क्रांति के अनुरूप क्रांति करने का प्रयास किया। इसलिए जर्मन पूँजीवादियों ने हिटलर की नात्सी पार्टी को पूरा समर्थन दिया क्योंकि नात्सी पार्टी साम्यवाद का विरोध करती थी। (4) वाइमर गणतन्त्र की अलोकप्रियता-वाइमर गणतन्त्र जर्मनी की आर्थिक और अन्य समस्याएं सुलझाने में असमर्थ रहा। पराजित और अपमानित जर्मन जाति वाइमर गणतन्त्र के नेताओं की शान्तिपूर्ण और दब्बू नीति से क्रोधित होने लगी क्योंकि मित्र राष्ट्रों ने जर्मनी को द्वितीय श्रेणी का राष्ट्र मानना जारी रखा। ऐसी स्थिति में नाजी दल के आकर्षक कार्यक्रम के प्रति जर्मन जनता का झकना स्वाभाविक था। (5) हिटलर का प्रभावशाली व्यक्तित्व-हिटलर एक कुशल वक्ता था। वह जोशीला भाषण देता था। उसका जोश एवं उसके शब्द लोगों को हिलाकर रख देते थे। जर्मन जनता उसके व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुई। (6) यहूदियों के विरुद्ध जर्मन भावनाएँ-नात्सियों ने जर्मन लोगों की भावनाओं को उभार कर उसका फायदा उठाया। जर्मनी में यहूदी प्रभावशाली स्थान रखते थे। अतः जर्मनी में यहूदी विरोधी भावनाएँ पहले से ही पर्याप्त मात्रा में विद्यमान थीं। नात्सियों ने इस स्थिति का लाभ उठाकर यहूदियों के विरुद्ध विषैला प्रचार किया। उन्होंने यह वायदा किया कि सत्ता में आने पर वे यहूदियों को देश की नागरिकता से वंचित कर देंगे तथा देश के बाहर खदेड़ देंगे। (7) हिटलर का आकर्षक कार्यक्रम-हिटलर ने जर्मन जनता के सामने ऐसा कार्यकम प्रस्तुत किया जो जर्मनी के सभी वर्ग के लोगों के लिए रुचिकर था। हिटलर ने वर्साय की अपमानजनक संधि का विरोध किया। उसने गणतन्त्रीय व्यवस्था की आलोचना की और एक सुदृढ़ सरकार की स्थापना पर बल दिया। उसने बेरोजगारों को रोजगार तथा नौजवानों को सुरक्षित भविष्य देने का वायदा किया। उसने देश को विदेशी प्रभाव से मुक्त कराने तथा तमाम विदेशी साजिशों का मुँहतोड़ जवाब देने का आश्वासन भी दिया। इस प्रकार हिटलर के विचार जर्मन जाति की परम्परा तथा आकांक्षाओं के अनुकूल थे। अतः हिटलर को लाखों जर्मन लोगों का समर्थन प्राप्त हुआ। प्रश्न 3.
प्रश्न 4. (2) मीडिया का सोच-समझ कर इस्तेमाल-नात्सियों ने यहूदियों के खिलाफ नफरत फैलाने के लिए मीडिया का बहुत सोच-समझ कर इस्तेमाल किया। नात्सी विचारों को फैलाने के लिए तस्वीरों, फिल्मों, रेडियो, पोस्टरों, आकर्षक नारों और इश्तहारी पर्यों का खूब सहारा लिया जाता था। पोस्टरों में यहूदियों की रटी-रटाई छवियाँ दिखाई जाती थीं, उनका मजाक उड़ाया जाता था, उन्हें अपमानित किया जाता था, उन्हें शैतान के रूप में पेश किया जाता था। प्रचार फिल्मों में यहूदियों के प्रति नफरत फैलाने पर जोर दिया जाता था। 'द एटर्नल ज्यू' (अक्षय यहूदी) इस सूची की सबसे कुख्यात फिल्म थी। परंपराप्रिय यहूदियों को खास तरह की छवियों में पेश किया जाता था। उन्हें दाढ़ी बढ़ाए और काफ़्तान (चोगा) पहने दिखाया जाता था। उन्हें केंचुआ, चूहा और कीड़ा जैसे शब्दों से संबोधित किया जाता था। उनकी चाल-ढाल की तुलना कुतरने वाले छछूदरी जीवों से की जाती थी। इस प्रकार के प्रचार से लोगों की भावनाओं को भड़काया गया। (3) स्कूली स्तर पर प्रचार-नात्सी लोगों ने यहूदियों के विरुद्ध अपना प्रचार स्कूली स्तर पर आरम्भ किया। सभी यहूदी अध्यापकों को स्कूल से निकाल दिया गया। नात्सी की नस्ली विचारधारा को तर्कसंगत सिद्ध करने के लिए स्कूल की पाठ्यपुस्तकों को फिर से लिखा गया। (4) सांकेतिक भाषा का प्रयोग-विश्व की प्रतिक्रिया से सरकार को बचाने के लिए सांकेतिक भाषा का प्रयोग किया जाता था। जैसे-सामूहिक हत्याओं के लिए 'विशेष व्यवहार' तथा 'अन्तिम समाधान' शब्द का प्रयोग किया जाता था। उन्हें मारने के लिए बनाये गये गैस चैम्बरों को 'संक्रमण मुक्ति क्षेत्र' कहते थे। इस प्रकार नात्सी प्रचार कला में निपुण थे इसीलिए यहूदियों के विरुद्ध किया गया उनका प्रचार इतना असरदार रहा। प्रश्न 5. फ्रांसीसी क्रांति तथा नात्सी शासन में औरतों की भूमिका में अन्तर- (2) फ्रांस में अधिकतर महिलाओं को आजीविका के लिए पुरुषों के साथ मिलकर काम करना पड़ता था, जबकि नात्सी समाज में महिलाओं को पुरुषों के साथ मिलकर काम करने की आज्ञा नहीं थी। (3) फ्रांस में अपने हितों की आवाज उठाने के लिए महिलाओं के अपने राजनैतिक क्लब तथा समाचार पत्र होते थे, जबकि नात्सी जर्मनी में किसी भी राजनैतिक क्लब अथवा संस्था को काम करने की आज्ञा नहीं थी। (4) फ्रांस में महिलाओं तथा पुरुषों दोनों को बराबर समझा जाता था, जबकि नात्सी समाज में महिलाओं को अलग प्रकार की शिक्षा दी जाती थी। उन्हें आर्य संस्कृति तथा नस्ल का ध्वजवाहक समझा जाता था। (5) फ्रांस की महिलाएँ अपना साथी बदलने के लिए स्वतंत्र थीं, जबकि नात्सी समाज में महिलाओं के लिए एक आचार संहिता थी। उन्हें यहूदियों के साथ सम्बन्ध बनाने का अधिकार नहीं था। प्रश्न 6. (2) तानाशाही स्थापित करना-3 मार्च, 1933 को हिटलर ने इनेबलिंग एक्ट पारित करके कानून के जरिये बाकायदा तानाशाही स्थापित कर दी। नात्सी पार्टी तथा उससे जुड़े संगठनों के अलावा सभी राजनीतिक पार्टियों और ट्रेड यूनियनों पर पाबंदी लगा दी गई। अर्थव्यवस्था, मीडिया, सेना तथा न्यायपालिका पर राज्य का पूरा नियंत्रण स्थापित हो गया। (3) विशेष सुरक्षा सेनाओं का गठन-जनता पर पूरा नियंत्रण हासिल करने के लिए विशेष निगरानी और सुरक्षा सेनाओं का गठन किया गया ताकि नात्सियों की इच्छानुसार समाज पर नियंत्रण रखा जा सके। पहले से काम कर रहे हरी वर्दीधारी पुलिस तथा स्टॉर्म ट्रपर्स (एस ए) के अतिरिक्त इनमें गेस्तापो (गुप्तचर राज्य पुलिस), एस.एस. (अपराध नियंत्रण पुलिस) तथा सुरक्षा सेवा (एस डी) का गठन किया गया। इन नई गठित संस्थाओं को प्रदान की गई अत्यधिक असंवैधानिक शक्तियों के कारण ही नात्सी राज्य को सबसे अधिक खूखार आपराधिक राज्य का नाम दिया गया। नये दस्ते किसी को भी यातना गृहों में भेज सकते थे, किसी को भी बिना कानूनी कार्रवाई के देश-निकाला दिया जा सकता था या गिरफ्तार किया जा सकता था। (4) नस्लवादी राज्य की स्थापना-एक बार सत्ता में आने पर नात्सियों ने, अपने शासन में अवांछितों को निष्कासित करके शुद्ध जर्मनवासियों के जातीय समुदाय के निर्माण के अपने सपने को जल्दी लागू करना आरम्भ किया। नाजी केवल शुद्ध तथा स्वस्थ नॉर्डिक आर्यों का समाज चाहते थे। वे ही केवल वांछनीय समझे जाते थे। केवल उन्हें ही फलने-फूलने का अधिकार था। (5) शिक्षा तथा स्कूलों पर नियंत्रण-नात्सीवाद का प्रचार करने के लिए पूरी शिक्षा प्रणाली को राज्य के नियंत्रण में कर दिया गया। स्कूल की पाठ्यपुस्तकें फिर से लिखी गईं। नस्ल के विचारों को सिद्ध करने के लिए नस्ली विज्ञान आरम्भ किया गया। यहूदी बच्चों तथा अध्यापकों को स्कूल से बाहर निकाल दिया गया। (6) महिलाओं पर नियंत्रण-नात्सियों ने महिलाओं पर भी नियंत्रण स्थापित किया। उनके लिए एक आचार संहिता निर्धारित की गई। जो औरतें उस निर्धारित आचारसंहिता के अनुसार चलती थीं उन्हें इनाम दिया जाता था तथा इसका उल्लंघन करने वाली महिलाओं को कड़ा दण्ड दिया जाता था अर्थात् अनुपयुक्त बच्चे की माँ को दंडित किया जाता था और बच्चे के शुद्ध आर्य प्रजाति के होने पर महिला को सम्मानित किया जाता था। (7) धुआँधार प्रचार-नात्सियों ने जनता पर पूरा नियंत्रण स्थापित करने के लिए सुनियोजित धुआँधार प्रचार का भी सहारा लिया। (8) स्कूली बच्चों, युवाओं तथा लड़कियों का विचार परिवर्तन-बाल्यावस्था से ही नात्सी सरकार ने बच्चों के मन-मस्तिष्क पर कब्जा कर लिया। जैसे-जैसे वे बड़े होते गये उन्हें वैचारिक प्रशिक्षण द्वारा नात्सीवाद की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित किया गया। जर्मनी में नात्सी शिक्षा प्रणाली की क्या विशेषता थी?सभी स्कूल के भीतर व बाहर, दोनों जगह बच्चों पर बुरा नियंत्रण किया गया। 'यहूदी' या 'राजनीतिक रूप से 'अविश्वसनीय' दिखाई देने वाले शिक्षकों को नौकरी से हटाया गया। जर्मन व यहूदी बच्चों को अलग-अलग बैठाया जाता था। बाद मे अवांछित बच्चो को यानी यहूदियों, जिप्सियों के बच्चे और विकलांग बच्चों को स्कूलों से निकाल दिया गया।
नात्सीवाद की मुख्य विशेषताएं क्या थी?नाज़ीवाद या नात्सीवाद, जर्मन तानाशाह एडोल्फ़ हिटलर की विचार धारा थी। यह विचारधारा सरकार और आम जन के बीच एक नये से रिश्ते के पक्ष में थी। इस के अनुसार सरकार की हर योजना में पहल हो परंतु फिर वह योजना जनता-समाज की भागिदारी से चले।
3 नात्सी सोच के खास पहलू कौन से थे ?`?नात्सी सोच के खास पहलू इस प्रकार थे-
लोग देश के लिए हैं न कि देश लोगों के लिए। नाजी सोच सभी प्रकार की संसदीय संस्थाओं को समाप्त करने के पक्ष में थी और एक महान नेता के शासन में विश्वास रखती थी। यह सभी प्रकार के दल निर्माण व विपक्ष के दमन और उदारवाद, समाजवाद एवं कम्युनिस्ट विचारधाराओं के उन्मूलन की पक्षधर थी।
1930 तक आते आते जर्मनी में नात्सीवाद को लोकप्रियता क्यों मिलने लगी वर्णन करें?युद्ध संबंधित हर्जाने की भारी राशि चुकाने के कारण अर्थव्यवस्था खराब हालत में थी और लोगों के कष्ट बढ़े हुए थे। ऐसे में हिटलर ने अपने आप को किसी मसीहा की तरह पेश किया। भाषण देने की कला में उसका कोई जोड़ नहीं था। अपने लोकलुभावने वादों से उसने जनता का दिल जीत लिया और 1930 आते आते नात्सीवाद लोकप्रिय होने लगा।
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