kahawat in english and hindi , कहावतें और उनका अर्थ | कहावत की परिभाषा | कहावत की परिभाषा क्या है ? कहावत किसे कहते हैं | Show कहावते वस्तुतः कहावतों के मूल में कोई कहानी अथवा घटना ही होती है । बाद में जब लोगों की जबान पर उस घटना अथवा कहानी से निकली बात चल पड़ती है तो वही ‘कहावत‘ बन जाती है । एक रूप में यह भी कहा जा सकता है कि कहावतों के मूल में नीतिमूलक सूत्र रहते हैं, जिनका प्रयोग गद्य और पद्य दोनों में होता है । इस प्रकार एक-एक कहावत जीवन की सधी हुई अनुभूति होती है । नीचे कुछ प्रचलित कहावतें और उनके अर्थ दिये जा रहे हैं- (1) अधजल गगरी झलकत जाय-थोड़ी विद्या अथवा धन पाकर इतराना, घमंड करना । (2) अंधे के आगे रोना, अपना दीदा खोना-जो अत्याचारी और निर्दयी होते हैं उनके आगे अपना दुखड़ा सुनाना व्यर्थ होता है। (3) अंधों में काना राजा-यदि बहुत-से मूर्ख हों तो उनमें से किसी एक को पंडित मानना । (4) अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता-अकेला आदमी कुछ नहीं कर पाता । (5) अनदेखा चोर राजा बराबर-जब तक किसी का पाप छिपा रहता है तब तक वह पापी भी धर्मात्मा माना जाता है। (6) अपनी उफली, अपना राग-जिसकी जैसे इच्छा हो वैसा करे अर्थात् संगठन का अभाव । (7) अशर्फी की लूट और कोयले पर छाप-कीमती सामान को नष्ट होने देना और तुच्छ एवं सस्ती वस्तु की रक्षा करना। (8) आप भला तो जग भला-आदमी यदि स्वयं भला हो अर्थात् सज्जन हो तो दूसरे आदमी की भी भलाई कर सकता है। (9) आधा तीतर आधा बटेर-खिचड़ी अर्थात् जितनी वस्तुएँ हैं वे सभी एक दूसरे के मेल में न हों। (10) आगे नाथ न पीछे पगहा-बिलकुल निःसंग । (11) आम का आम गुठली का दाम-किसी भी काम में दूना लाभ उठाना । (12) आप डूबे तो जग डूबा-जो आदमी गलत होता है वह सबको वैसा ही समझता है । (13) आये थे हरिभजन को ओटन लगे कपास-कोई आदमी कुछ काम करने चले और करने लगे कुछ दूसरा काम । (14) ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया-ईश्वर की सृष्टि में कहीं सुख और कहीं दुख। (15) इस हाथ दे, उस हाथ ले-अपने किये कर्मों का फल शीघ्र ही मिलता है । (16) उँगली पकड़कर पहुँचा पकड़ना-धीरे-धीरे हिम्मत बढ़ना । (17) ऊँची दूकान, फीका पकवान-जिसमें सिर्फ तड़क-भड़क हो और वास्तविकता न हो । (18) ऊँट किस करवट बैठता-किसका कैसा लाभ होता है । (19) ऊँट के मुँह में जीरा-जितनी जरूरत हो उससे बहुत कम । (20) उलटे चोर कोतवाल को डाँटे-अपराध करनेवाला अपराध पकड़ने वाले को डाँटे । (21) एक पंथ दो काज-एक साथ दो इच्छित लाभ होना । (22) एक तो चोरी, दूसरे सीनाजोरी-खुद गलती कर उसे स्वीकार न करना और उलटे ही रोब गाँठना। (23) एक म्यान में दो तलवार-एक जगह पर दो समान अहंकारी व्यक्ति नहीं रह सकते । (24) एक तो करेला, दूजे नीम चढ़ा-बुरे आदमी को बुरे का संग मिलना । (25) ओस चाटे प्यास नहीं बुझती-अधिक कंजूसी से काम नहीं चलता । (26) ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डर-विपत्ति के समय धैर्य से काम लेना । (27) कहाँ राजा भोज और कहाँ गँगुआ तेली-छोटे और निर्धन आदमी का मिलन बड़ों से नहीं होता। (28) कभी नाव पर गाड़ी और कभी गाड़ी पर नाव- स्थिति सर्वदा एक समान नहीं रहती है। (29) कबीरदास की उलटी बानी, बरसे कम्बल, भीजे पानी-बिलकुल उलटा काम । (30) कहीं का ईंट, कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा-इधर-उधर से वस्तुएँ लेकर कोई चीज बनाना अर्थात् कोई नवीनता नहीं । (31) काला अक्षर भैंस बराबर-बिलकुल अनपढ़ का लक्षण । (32) का बरसा कृषी सुखाने- सुखाने-अवसर के बीत जाने पर काम पूरा नहीं होता । (33) काबुल में क्या गदहे नहीं होते-अच्छे-बुरे लोग हर स्थान पर होते हैं । (34) खग जाने खग ही की भाषा-जो जिसके साथ रहता है वही उसकी बात जानता है। (35) खरी मजूरी, चोखा काम-पूरा पैसा देने से अच्छा और पूरा काम होता है। (36) खेत खाये गदहा और मार खाये जुलहा- कसूर कोई करे और सजा किसी और को मिले। (37) खोदा पहाड़, निकली चुहिया-कठिन परिश्रम करने पर भी तुच्छ परिणाम निकलना । (38) गाँव का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध-यदि कोई परिचित योग्य व्यक्ति है तो उसकी कोई कद्र नहीं करना और अपरिचित को सम्मान देना। (39) गरजे सो बरसे नही-जो अधिक बोलता है अथवा डींग हाँकता है वह कुछ नहीं कर सकता । (40) गुरु गुड़ रह्म चेला चीनी हुआ-शिष्य गुरु से आगे निकला । (41) गये थे रोजा छुड़ाने, गले पड़ी नमाज-सुख के लिए जाय, पर मिले दुख । (42) गुरु कीजै जान, पानी पीजै छान-अच्छी तरह सोच-समझकर और जाँचकर ही कोई काम करना चाहिए। (43) गोद में लड़का, नगर में ढिंढोरा-सहज ही मिलने वाली वस्तु के लिए व्यर्थ परेशान होना। (44) घर पर फूस नहीं, नाम धनपत-किसी के पास कोई गुण न हो, फिर भी वह गुणवान् कहलाने की इच्छा रखे । (45) घर का भेदी, लंकादाह–आपसी फूट से हानि होती है । (46) घर की मुर्गी दाल बराबर-घर की कीमती वस्तु का कोई मूल्य नहीं आँकता । (47) घी का लड्डू टेढ़ा भला-लाभदायक वस्तु किसी भी रूप में लाभदायक ही होती है । (48) चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाय-बड़ी एवं कीमती वस्तु को खोकर छोटी वस्तु को बचाने की चेष्टा करना। (49) चोर की दाढ़ी में तिनका-अपराध करने वाला व्यक्ति स्वयं चिन्तित एवं डरता रहता है। (50) चोर-चोर मौसेरे भाई-एक समान पेशेवाले व्यक्ति आसानी से आपस में मिल जाते हैं। (51) चैबे गये छब्बे होने, दूबे बनके आये-लाभ के लिए जाय और बदले में मिल जाय हानि । (52) छप्पर पर फूस नहीं, ड्यौदी पर नाच-छोटे आदमी का बड़प्पन दिखाना अर्थात् आडंबर। (53) छठी का दूध याद आना-बुरा हाल होना । (54) छोटे मियाँ तो छोटे मियाँ, बड़े मियाँ सुभान अल्लाह-छोटे से अधिक बड़े व्यक्ति में बुराई होना। (55) छोटे मुँह बड़ी बात-बढ़-बढ़कर बातें करना । (56) जबतक साँस, तबतक आस-अन्तिम समय तक आशा करना । (57) जिन ढूँढा तिन पाइयों गहरे पानी पैठ-अथक और कठोर परिश्रम करनेवाले को अवश्य सफलता मिलती है। (58) जस दूलह तस बनी बाराता-अपने ही सभी साथी-संगी । (59) जैसे मुर्दे पर सौ मन वैसे हजार मन-दुखी व्यक्ति पर और अधिक दुख का पड़ना । (60) जिस पत्तल में खाना उसी में छेद करना-किये गये उपकार को न मानना । (61) जान बची लाखों पाये-अपना प्राण बहुत प्यारा होता है। (62) जिसकी लाठी उसकी भैंस-शक्तिशाली सब कुछ कर सकता है । (63) जहाँ न जाये रवि, तहाँ जाये कवि-दूरदर्शी अर्थात् पैनी दृष्टिवाला । (64) जान है तो जहान है -प्राण सबसे अधिक मूल्यवान् होता है । (65) जैसा देश बैसा वेश-देश के अनुसार कार्य करना । (66) जिसे पिया माने वही सुहागिन-जिसे जो रुच जाय वही उत्तम । (67) जैसा राजा वैसी प्रजा-बड़े व्यक्ति के आचरण का प्रभाव छोटे व्यक्ति पर पड़ता है। (68) जैसी करनी वैसी भरनी-जैसा किया जाता है वैसा फल मिलता है। (69) जल में रहे, मगर से बैर-जिसके अधीन रहे उसी से बैर ।। (70) जो बोले सो किवाड़ खोले-नेतृत्व करने वाले को अधिक श्रम करना पड़ता है। (71) जो बोले सो घी को जाय-नेतृत्व करने वाले को अधिक श्रम करना पड़ता है। (72) जैसी बहै बयार पीठ तब तैसी दीजै-समयानुसार काम करना । (73) जाके पाँव न फटी बिवाई सो क्या जानै पीर पराई-बिना दुख भोगे दूसरे के दुख का अनुभव नहीं हो सकता। (74) झोपड़ी में रहना और महल का सपना देखना-असंभव बातें सोचना । (75) डूबते को तिनका सहारा-असहाय आदमी के लिये थोड़ा-सा भी सहारा बहुत होता है। (76) तसलवा तोर कि मोर- एक वस्तु पर दो आदमी के दावे का झगड़ा । (77) तन पर नहीं लत्ता, पान खाये अलबत्ता-झूठा घमंड दिखलाना । (78) तीन बुलाये, तेरह आये-बिना बुलाये ही बहुत लोगों का आ जाना। (79) तीन लोक से मथुरा न्यारी-एक प्रकार का विचित्र तरीका । (80) तीन कनौजिया, तेरह चूल्हा-ढकोसला दिखाना अथवा व्यर्थ का बखेड़ा खड़ा करना । (81) तू डाल-डाल, मैं पात-पात-किसी की चाल को अच्छी तरह पहचान लेना । (82) दालभात में मूसलचन्द-किसी के काम में बेकार ही दखल देना। (83) दुधार गाय की लताड़ भली-जिससे लाभ हो उसकी झिड़कियाँ भी अच्छी लगती हैं। (84) दमड़ी की हंडिया गयी, कुत्ते की जात पहचानी-थोड़ी-सी वस्तु में ही बेइमानी का पता लगना। (85) दस की लाठी एक का बोझ-कई लोगों के सहयोग से कार्य अच्छी तरह से हो जाता है, जबकि एक आदमी के लिए वह कठिन हो जाता है। (86) दूध का जला मट्ठा भी फूंक-फूंककर पीता है-एक बार धोखा खा लेने पर आदमी सावधान होकर कार्य करता है। (87) दूर का टोल सुहावन-कोई भी वस्तु दूर से अच्छी लगती है। (88) देशी मुर्गी बिलायती बोल-बेमेल एवं बेढंका काम करना । (89) दुविधा में दोनों गये, माया मिली न राम-एक साथ दो काम नहीं हो पाता अर्थात् कोई लाभ नहीं होता। (90) धोबी का कुत्ता, न घर का, न घाट का-कहीं का न रहना, निरर्थक सिद्ध होना । (91) न ऊधो का लेना, न माधो का देना-कोई लटपट नहीं । (92) न नौ मन तेल होगा, और न राधा नाचेगी-किसी साधन के अभाव में बहाना करना। (93) न रहे बाँस, न बाजे बाँसुरी-किसी काम की जड़ को ही नष्ट कर देना, निर्मूल करना। (94) नक्कारखाने में तूती की आवाज-कोई सुनवाई न होना । (95) नेकी और पूछ-पूछ-बिना कहे ही भलाई करना । (96) नौ की लकड़ी नब्बे खर्च-थोड़े-से लाभ के लिए अधिक खर्च करना । (97) नौ जानते हैं, छः नहीं-ढोंगी आदमीय सीधा, सरल आदमी भी । (98) नौ नगद, न तेरह उधार–थोड़ा-सा नकद आये वह अच्छा है, पर अधिक उधार देना ठीक नहीं। (99) नाम बड़े, दर्शन थोड़े-किसी के गुण से अधिक प्रशंसा एवं प्रचार का होना ।। (100) नाचे न जाने, अँगनवे टेढ-काम करने का ढंग मालुम न होने पर कुछ दूसरा बहाना करना। (101) नीम हकीम खतरे जान-अयोग्य व्यक्ति से लाभ के बदले हानि ही मिलती है। (102) पानी पी कर जात पूछना-काम करके परिणाम के बारे में सोचना । (103) प्रथमे ग्रासे मक्षिकापातः-काम के शुरू में ही विघ्न पड़ना । (104) बाँझ क्या जाने प्रसव की पीड़ा-कष्ट सहनेवाला व्यक्ति ही दूसरे के कष्ट को समझ सकता है। (105) बन्दर क्या जाने अदरख का स्वाद-मूर्ख आदमी गुण का आदर करना नहीं जानता । (106) बीबी महल में, गला बाजार में लाज-लिहाज छोड़ देना । (107) बिल्ली के भाग से छींका टूटा-संयोग से काम का हो जाना । (108) बैल न कूदे, कूदे तंगी-मालिक के बल पर नौकर की हिम्मत बढ़ना । (109) बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले न भीख-लालची बनने से कोई काम नहीं बनता। (110) भई गति सॉप-छछुन्दर केरी-दुविधा में पड़ना। (111) भरी जवानी, माझा टीला-यौवन में ही स्वास्थ्य का बिगड़ जाना । (112) भागते भूत की लंगोटी भली-बचे हुए धन को अधिक समझना । (113) भैंस के आगे बीन बजाये, भैंस खड़ी पगुराय-मूर्ख के आगे गुणों की प्रशंसा करना बेकार है। (114) मन चंगा तो कठौती में गंगा-यदि मन शुद्ध है तो सब कुछ ठीक । (115) दान के बैल के दाँत नहीं देखे जाते-मुफ्त मिले हुए सामान पर टीका – टिप्पणी करना अनुचित है। (116) मुँह में राम, बगल में छुरी-कपटी आदमी । (117) मानो तो देव नहीं तो पत्थर-विश्वास करने से ही फल मिलता है। (118) मान न मान मैं तेरा मेहमान-किसी पर जबरदस्ती बोझ डालना। (119) मेढकी को जुकाम होना-योग्यता न होने पर भी योग्यता का ढोंग करना । (120) मुद्दई सुस्त, गवाह चुस्त-किसी काम के लिए जिसे गर्ज है वह निश्चिन्त रहे और दूसरा उसके लिए चिन्ता करे । कहावतों का अर्थ क्या है?कहावत आम बोलचाल में प्रयोग होने वाले उस वाक्यांश को कहते हैं जिसका सम्बन्ध किसी न किसी पौराणिक कहानी से जुड़ा हुआ होता है। कहीं कहीं इसे मुहावरा अथवा लोकोक्ति के रूप में भी जानते हैं। कहावतें प्रायः सांकेतिक रूप में होती हैं।
कहावत अर्थ और उदाहरण क्या है?(1) अधजल गगरी झलकत जाय-थोड़ी विद्या अथवा धन पाकर इतराना, घमंड करना । (2) अंधे के आगे रोना, अपना दीदा खोना-जो अत्याचारी और निर्दयी होते हैं उनके आगे अपना दुखड़ा सुनाना व्यर्थ होता है। (3) अंधों में काना राजा-यदि बहुत-से मूर्ख हों तो उनमें से किसी एक को पंडित मानना ।
पचास मुहावरे और कहावतों का अर्थ लिखकर वाक्यों में प्रयोग करो?गुदड़ी का लाल – गरीब घर में गुणवान का पैदा होना (वाक्य में प्रयोग– राष्ट्रपति कलाम गुदड़ी के लाल हैं।) मिट्टी में मिलना – नष्ट होना (वाक्य में प्रयोग – केदारनाथ में बाढ़ आने पर सब कुछ मिट्टी में मिल गया)। आँखों का तारा होना – बहुत प्रिय होना (वाक्य में। प्रयोग – इकलौती संतान माता – पिता की आँखों की तारा होती है)।
हिंदी मुहावरे और उनके अर्थ और वाक्यों?कुछ महत्त्वपूर्ण मुहावरे एवं उनके वाक्यों में प्रयोग. अँगारे बरसना—अत्यधिक गर्मी पड़ना। ... . अंगारों पर पैर रखना-कठिन कार्य करना। ... . अँगारे सिर पर धरना—विपत्ति मोल लेना। ... . अँगूठा चूसना-बड़े होकर भी बच्चों की तरह नासमझी की बात करना। ... . अँगूठा दिखाना-इनकार करना। ... . अँगूठी का नगीना-अत्यधिक सम्मानित व्यक्ति अथवा वस्तु।. |