शिक्षण अधिगम प्रबंधन के सोपान कितने हैं? - shikshan adhigam prabandhan ke sopaan kitane hain?

 अधिगम की प्रभावशाली विधियाँ effective method of learning (btc/deled/ bal wikas awam sikhane ki prakriya)

  BTC/DELED 1st Semester Note

SUBJECT:-बाल विकास एवं सीखने की प्रक्रिया 

इस पोस्ट अधिगम की प्रभावशाली विधियाँ effective method of learning (btc/deled/ bal wikas awam sikhane ki prakriya) के माध्यम से अधिगम क्या है ,अधिगम शैली की परिभाषा , अधिगम की प्रभावशाली विधियाँ जैसे करके सीखना विधि ,अनुकरण द्वारा सीखना विधि,निरिक्षण द्वारा सीखना विधि, परिक्षण करके सीखना विधि, सामूहिक विधि द्वारा सीखना, सम्मलेन व विचार संगोष्ठी विधि, प्रोजेक्ट विधि, सामूहिक अधिगम विधि तथा अधिगम की प्रभावशाली विधियों से सम्बन्धित महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर दिये गये है।  अगर आप को हमारी पोस्ट पसन्द आये तो इसे अपने दोस्तों को जरूर शेयर करे और अपने सुझाव हमें कमेन्ट बॉक्स में अवश्य दे। 

प्रमुख बिन्दु 

अधिगम क्या है ?

अधिगम की प्रमुख परिभाषाएँ 

अधिगम विधि क्या है ?

अधिगम की प्रभावशाली विधियाँ 

1. करके सीखना विधि 

  • करके सीखना विधि की प्रभावशीलता 
  • करके सीखना विधि के दोष 

2.अनुकरण द्वारा सीखना विधि (अनुकरण विधि)

  • अनुकरण का सिद्धान्त
  • अनुकरण द्वारा सीखने की प्रभावशीलता सम्बन्धी तथ्य 
  • अनुकरण द्वारा सिखने की विधि के दोष 
  • अनुकरण द्वारा सीखने की विधि को प्रभावशाली बनाने में परिवार, शिक्षक एवं विद्यालय की भूमिका 

3.निरीक्षण विधि (निरीक्षण द्वारा सीखना विधि)

  • निरीक्षण विधि के प्रभावशीलता तथ्य 
  • निरीक्षण विधि के दोष 
  • निरीक्षण विधि के द्वारा अधिगम को प्रभावशील बनाने में अध्यापक, विद्यालय एवं परिवार की भूमिका 

4.परीक्षण विधि (परिक्षण करके सीखना)

  • परीक्षण विधि की प्रभावशीलता सम्बन्धी तथ्य 
  • परीक्षण विधि के दोष 
  • परीक्षण विधि के द्वारा अधिगम को प्रभावशील बनाने में शिक्षक, विद्यालय एवं परिवार की भूमिका

5.सामूहिक विधि (सामूहिक विधि द्वारा सीखना)

  • प्रमुख सामूहिक विधियाँ 
  • सामूहिक विधियों के लाभ 
  • समूह विधि के दोष 

6.सम्मलेन व विचार संगोष्ठी विधि

  • विचार संगोष्ठी विधि की उपयोगिता 

7.प्रोजेक्ट विधि

  • प्रोजेक्ट विधि की परिभाषा 
  • प्रोजेक्ट का अर्थ
  • प्रोजेक्ट प्रणाली की विशेषताएँ 

अधिगम क्या है pdf?

अधिगम शब्द अंग्रेजी शब्द Learning का हिन्दी रूपान्तरित है | जिसका अर्थ होता है | 'सीखना' हर एक व्यक्ति बचपन से ही अपने जीवन में कुछ न कुछ सीखता ही रहता है इस सिखने की प्रक्रिया में कुछ चीजों को तो वह अनुकरण द्वारा सीखता है  कुछ चीजों को वातावरण के द्वारा तथा  कुछ चीजों को वह व्यवहार के द्वारा सीखता है | सीखने की इस सतत प्रक्रिया को ही अधिगम कहते है |

अधिगम की परिभाषाएँ

अधिगम की प्रमुख परिभाषाएँ निम्न लिखित है 

 वुडवर्थ के अनुसार“नवीन  ज्ञान और नवीन प्रतिक्रियाओं को प्राप्त करने  की प्रक्रिया सीखने की प्रक्रिया है”

मर्फी के अनुसार“अनुभव एवं व्यवहारिक द्रष्टिकोण का परिमार्जन करना अधिगम है “

हिलगार्ड के अनुसार“नवीन परिस्थितियों में अपने आप को ढालना या अनुकूलित करना ही अधिगम है”

गिल्फोर्ड के अनुसार“व्यवहार के कारण व्यवहार में होने वाला परिवर्तन अधिगम है”

क्रो एण्ड क्रो के अनुसार“सीखना आदतों,ज्ञान और अभिवृत्तियों का अर्जन है”

गेट्स व अन्य के अनुसार“अनुभव के आधार पर होने वाले परिवर्तन को अधिगम कहते है” 

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अधिगम विधि क्या है?

वह विधियाँ जिनके माध्यम से व्यक्ति स्वम कार्य को करने का अभ्यास करता है जिसके परिणाम स्वरुप वह उस कार्य को सीख जाता है। इस तरह वह विभिन्न विधियों के माधयम से सीखना ही अधिगम विधि कहलाता है। 

 अधिगम की प्रभावशाली विधियाँ (effective method of learning in Hindi)

सीखना एक ऐसी प्रक्रिया है जो जीवन प्रयत्न निरन्तर चलती रहती है।  इस सीखने की प्रक्रिया को बालक के द्वारा विभिन्न विधियों के माध्यम से संपन्न किया जाता है।  इन सीखने की प्रक्रियांओं में बालक घर से परिवार के सदस्यों की सहायता से सीखना प्रारम्भ करता है।  जिस कारण परिवार को बालक की प्रथम पाठशाला कहा जाता है। 

बालक को सीखने में विभिन्न  प्रभावशाली विधियों में वातावरण,शिक्षक तथा उसके आसपास का प्रवेश की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अधिगम की प्रभावशाली विधियाँ निम्न लिखित है। 

करके सीखना विधि (Learning by doing method)

इस विधि के माध्यम से बालक स्वम करके सीखने का प्रयास करता है।  उसके द्वारा किया गया प्रयास सार्थक और निरर्थक दोनों रूप में हो सकता है।  मनोवैज्ञानिकों का यह मानना है की जो कार्य स्वम करके सीखा जाता है उसका अधिगम स्थायी और लम्बे समय तक चलता है। 

जैसे- घर पर हमें कोई कार्य करते देखने पर वह उस कार्य को करने का प्रयास करता है। जब बालक उस कार्य को स्वम करके सीखता तो वह करके सीखने की विधि के अन्तर्गत आता है। 

करके सीखने विधि की प्रभावशीलता 

  1. इस विधि से अर्जित किया गया अधिगम स्थायी होता है। 
  2. इस प्रकार का अधिगम बाल केन्द्रित अधिगम  होता है। 
  3. यह शरीरिक एवं मानसिक क्रियाशीलता अधिगम होता है। 
  4. यह क्रिया केंद्रित अधिगम होता है। 
  5. इस विधि द्वारा अर्जित किया गया अधिगम रूचपूर्ण होता है। 
  6. करके सीखने विधि से बालक में विभिन्न कौशलों का विकास होता है। 

करके सीखने विधि के दोष 

  1. इस विधि के द्वारा बालक अथवा छात्रों से प्रत्येक कार्य में सफलता की आशा करना अनुचित होगा। स्वम द्वारा कार्य करके सीखने में उसके द्वारा किया गया कार्य सार्थक और निरर्थक दोनों हो सकते है।
  2. करके सीखने की विधि प्राथमिक स्तर पर उपयुक्त नहीं मानी जा सकती है क्योंकि प्राथमिक स्तर पर बालक में स्वम कार्य को करने की परिपक्वता नहीं होती है। 
  3. इस विधि में बालक को प्राथमिक स्तर पर प्रयोगशाला में अकेला नहीं छोड़ा जा सकता है। क्योंकि इस स्तर पर छात्रों को प्रत्येक पदार्थो की जानकारी नहीं होती है। 

महत्वपूर्ण प्रश्न 

प्रश्न-करके सीखना क्या है?

करके सीखना अधिगम की एक प्रभावशाली विधि है। इस विधि के अन्तर्गत छात्र अपनी आवश्यकता के अनुरूप सामग्री का परीक्षण करते हैं तथा ज्ञान प्राप्त करते हैं जैसे - घर पर बालक हमें टीवी के माध्यम से आवाज को कम या ज्यादा करते देख वह स्वम उसको करने का प्रयास करता है। 

प्रश्न-कौन सी विधि करके सीखने पर आधारित है?

फ्रोबेल (यह विधि खेल एवं करके सीखने पर आधारित है)

प्रश्न-अधिगम की प्रक्रिया क्या है?

अधिगम को सामान्य भाषा में सीखना कहा जाता है।  यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो बालक में जीवन प्रयत्न चलती रहती है वह निरन्तर कुछ न कुछ सीखता ही रहता है। 

अनुकरण द्वारा सीखना विधि (अनुकरण विधि) सिद्धान्त,प्रभावशीलता सम्बन्धी तथ्य, दोष एवं भूमिका 

अनुकरण का सामान्य शब्दिक अर्थ है- नक़ल करना।  जबकि अधिगम के सम्बन्ध में अनुकरण का अर्थ दूसरो को क्रिया करते हुये देख वैसा ही सीख लेना। 

बालक की अनुकरण करने की क्रिया, बालक की प्रथम पाठशाला कहा जाने वाला उसके घर से शुरू होती है जहां वह परिवार के लोगो की नक़ल करते हुये,चलना, रुक-रुक कर बोलनाऔर विभिन्न क्रियाओं को वह सीखता है। 

अनुकरण का सिद्धान्त  (Imitation method)

अनुकरण के सिद्धान्त का प्रतिपादन मनोवैज्ञानिक हैगार्ट ने किया।  इनके अनुसार अनुकरण एक सामान्य प्रवृति की क्रिया है। जिसका उपयोग मनुष्य जीवन प्रयत्न समस्याओं को सुलझाने में करता है।  अर्थात हम कह सकते है की वह दुसरो की नक़ल करता रहता है।  और इस तरह दूसरों की क्रियाओं की नक़ल करते हुये वह सीखता रहता है। 

अनुकरण द्वारा सीखने की प्रभावशीलता सम्बन्धी तथ्य 

  1. अधिगम रुचिपूर्ण होना चाहिये 
  2. सामाजिक व्यवस्था का ज्ञान होना 
  3. कौशल विकास के सरल अवसर होने चाहिये 
  4. बालक में क्रिया के प्रति विश्वास होना चाहिये 
  5. रुचिपूर्ण अवसर का मिलना 
  6. प्रत्येक क्रिया को सीखने के अवसर प्राप्त होने चाहिये 

अनुकरण द्वारा सिखने की विधि के दोष 

  1. इस विधि द्वारा बालक को प्राप्त ज्ञान आधा अधूरा होता है क्योंकि बालक प्रत्येक क्रिया का ज्ञान वास्तविक रूप में नहीं कर सकता है। 
  2. गलत संगत अथवा गलत सामाजिक व्यवस्था में रहने वाला बालक, विभिन्न प्रकार की कुरीतियों का अनुकरण कर अनेक दोषो को ग्रहण कर लेता है। 
  3. बालक में सही अथवा गलत की पहचान न होने से वह विभिन्न गलत आदतों को सीख लेता है। 

अनुकरण द्वारा सीखने की विधि को प्रभावशाली बनाने में परिवार, शिक्षक एवं विद्यालय की भूमिका 

  1. परिवार तथा विद्यालय का वातावरण सामाजिक मान्यताओं के अनुरूप होना 
  2. बालक जिस विद्यालय में शिक्षा ग्रहण कर रहा है उस विद्यालय का वातावरण शिक्षा केन्द्रित होना चाहिये। 
  3. शिक्षक एवं विद्यालय के सभी कर्मचारियों का व्यवहार नियन्त्रित होना चाहिए।  गुस्सा,क्रोधपूर्ण व्यवहार करने पर बालक पर प्रतिकूल असर पड़ता है। 
  4. विद्यालय में समय समय पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करना चाहिए तथा बालको को उसमे सम्मिलित होने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये। 
  5. अनुकरण विधि के लिये वातावरण का महत्वपूर्ण स्थान होता है। अर्थात विद्यालय में बालक के चहुँमुखी विकास के लिये उससे सम्बन्धित वातावरण होना चहिए। 

अनुकरण विधि के महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर 

प्रश्न-अनुकरण विधि के प्रतिपादक कौन हैं?

अथवा 

अनुकरण विधि के जनक कौन है ?

उत्तर-अनुकरण विधि का प्रतिपादक मनोवैज्ञानिक हैगार्ट को माना जाता है। 

प्रश्न-विधि के नियम सिद्धांत के प्रतिपादक कौन है?

उत्तर-रोनॉल्ड ड्वॅर्किन

प्रश्न-अनुकरण विधि क्या है?

उत्तर-इस विधि में बालक शिक्षक के उच्चारण को सुनकर वाचन करना सीखता है अर्थात अनुकरण करके सीखता है। अर्थात अनुकरण का अर्थ है किसी आदर्श की नक़ल करना है। अनुकरण विधि में बालक अपने शिक्षक का अनुकरण कर लिखना, पढ़ना व नवीन रचना करना सीखता है . 

प्रश्न-कौन सी विधि करके सीखने का अवसर प्रदान करती है?

उत्तर-अनुकरण द्वारा सीखना विधि करके सीखने का अवसर प्रदान करती है। 

प्रश्न-इकाई विधि के जनक कौन है?

उत्तर-एच सी मॉरिसन को इकाई विधि का जनक कहा जाता है। 

निरीक्षण विधि (निरीक्षण द्वारा सीखना विधि) , प्रभावशाली तथ्य,दोष,विभिन्न भूमिका 

निरक्षण विधि बालक के निरीक्षण करने के गुण को प्रदर्शित करती है। इस विधि  अनुसार बालक में जितनी अधिक गहन एवं व्यापक निरीक्षण की क्षमता होगी बालक उतनी ही तीव्र गति से सीखने का प्रयास करेगा।

निरीक्षण विधि के प्रभावशीलता तथ्य 

  1. छात्र को स्वतंत्रता 
  2. व्यापक ज्ञान 
  3. बाल केन्द्रित विधि 
  4. वैज्ञानिक द्रष्टि कोण का विकास 
  5. छात्र की रूचि के अनुसार ज्ञान 
  6. तर्क शक्ति का विकास 
  7. मानसिक चिन्तन को प्रोत्साहन 

निरीक्षण विधि के दोष 

  1. इस विधि से किया गया अधिगम दिशाहीन होता है 
  2. इस विधि में बालक को अधिक महत्व दिया गया है जबकि बालक सदैव निरीक्षण के आधार पर किसी निश्चित तथ्य पर नहीं पहुँच सकता है। 
  3. निरीक्षण विधि से बालक के पाठ्यक्रम को पूर्ण नहीं किया जा सकता 
  4. भारतीय विद्यालयों में निरीक्षण विधि के माध्यम से अधिगम व्यवस्था उपलब्ध कराना सम्भव नहीं है जिसका प्रमुख कारण पाठ्यक्रम के अनुरूप निरीक्षण गतिविधियों की व्यवस्था में अधिक संसधान एवं धन की आवश्यकता होती है। 
  5. निरीक्षण विधि का प्रयोग प्रत्येक विषय में व्यापक रूप से नहीं किया जा सकता 

निरीक्षण विधि के द्वारा अधिगम को प्रभावशील बनाने में अध्यापक, विद्यालय एवं परिवार की भूमिका 

  1. शिक्षक का सकारात्मक वयवहार 
  2. अभिभावक का सकारात्मक व्यवहार 
  3. विद्यालय में सार्थक गतिविधियों की वयवस्था 
  4. उचितपूर्ण निर्देशन वयवस्था 
  5. विद्यालय का शैक्षिक वातावरण 
  6. स्तरानुकूल निरीक्षण  वयवस्था 
  7. शिक्षक के द्वारा समस्याओं  समाधान 
  8. रुचिपूर्ण निर्देशन वयवस्था 
  9. उचित निर्देशन वयवस्था 

परीक्षण विधि (परिक्षण करके सीखना) प्रभावशाली तथ्य, दोष,भूमिका (learning by Testing)

परीक्षण विधि का आशय उस विधि से है जिसमें विविध प्रयोगों एवं खोजों के माध्यम से किसी नियम या सिद्धान्त की सत्यता का मापन किया जाता है। सामान्य रूप से बालक भी परीक्षण का कार्य अपने प्रारम्भिक जीवन से ही कर देता है।वह अपनी माता के प्रति अधिक विश्वास का प्रदर्शन करता है क्योंकि माता की अनेक गतिविधियाँ बालक की इच्छा को पूर्ण करने वाली होती हैं।

प्रभावशीलता सम्बन्धी तथ्य 

  1. सार्थक ज्ञान 
  2. तर्क एवं चिन्तन का विकास 
  3. स्थायी अधिगम 
  4. मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों  अनुरूप अधिगम 
  5. वैज्ञानिक द्रष्टिकोण का विकास 
  6. क्रियाशीलता 
  7. प्रयोग कुशलता का विकास 

परीक्षण विधि के दोष 

  1.  भारतीय विद्यालयों में संस्थानों आभाव होने से विभिन्न प्रकार के सिंद्धान्तों का सत्यापन नहीं  है। 
  2. परीक्षण विधि से पाठ्यक्रम उचित समय में पूर्ण नहीं किया जा सकता। 
  3.  विद्यालयों के प्राथमिक स्तर  विद्यालयों में प्रयोगशाला के आभाव में छात्रों के उचित उपयोग सम्बन्धी गतिविधियाँ सम्पन्न नहीं हो पाती है। 
  4. सभी विषयों का परीक्षण विधि के माध्यम से सम्भव नहीं है। 

 परीक्षण विधि के द्वारा अधिगम को प्रभावशील बनाने में शिक्षक, विद्यालय एवं परिवार की भूमिका 

  1. शिक्षक का साकारात्मक व्यवहार 
  2. विद्यालय में निर्देशन की वयवस्था 
  3. स्वमूल्यांकन को प्रोत्साहन 
  4. छात्रों को प्रयोग में सहायता 
  5. विद्यालय में प्रयोगशला की व्यवस्था
  6. प्रमाणों का प्रस्तुत्तीकरण 
  7. छात्रों को परीक्षण के अवसर 

परिक्षण विधि के महत्पूर्ण प्रश्न उत्तर  

प्रश्न- परीक्षण की क्या परिभाषा है ?

उत्तर-"परीक्षण एक व्यक्ति या समूह के कौशल, ज्ञान, क्षमताओं या प्रवृति का मूल्यांकन करने का साधन है"

प्रश्न-परीक्षण की परिभाषा दीजिए परीक्षण के क्या उद्देश्य है?

उत्तर-परीक्षण की परिभाषा-"परीक्षण एक व्यक्ति या समूह के कौशल, ज्ञान, क्षमताओं या प्रवृति का मूल्यांकन करने का साधन है"

परीक्षण के उद्देश्य-किसी भी वस्तु अथवा चीज से होने वाले लाभ अथवा दुष्प्रभाव का पता लगाना ही परीक्षण का उद्देश्य होता है जैसे-किसी को भी यह पहले से पता नहीं होता कि यह इलाज काम करेगा की नहीं, या इससे होनेवाले दुष्प्रभाव क्या होंगे। वास्तव में इन्हीं चीजों का पता करना नैदानिक परीक्षण का उद्देश्य होता है। 

प्रश्न-परीक्षण कितने प्रकार का होता है?

उतर-परीक्षण दो प्रकार का होता है।  व्यक्तिक परीक्षण , समूह परीक्षण  

व्यक्तिक परिक्षण-दिए गए समय के अन्दर किसी एक व्यक्ति पर किया जाने वाला परीक्षण व्यक्तिक परीक्षण कहलाता है। 

समूह परीक्षण-दिये गये समय अन्दर एक से अधिक व्यक्ति अर्थात्त समूह पर किया जाने वाला परीक्षण समूह परीक्षण कहलाता है। 

प्रश्न-परीक्षण की क्या आवश्यकता है?

उत्तर-परीक्षण के द्वारा किसी क्षेत्र विशेष में छात्रों के ज्ञान के स्तर को मापा जाता है। 

प्रश्न-परीक्षण शंकर क्या है इसके महत्व को लिखे?

उत्तर- जब F1 पीढ़ी या किसी अज्ञात आनुवंशिक व्यक्तिगत का संकरण अप्रभावी जनक के साथ कराया जाता है तब इस संकरण को परीक्षण  संकरण कहते हैं। 

प्रश्न-परीक्षण प्रशासन क्या है ?

उत्तर-एक ही परीक्षण में अनेक प्रकार के पदों को रख कर जैसे -छोटे परीक्षणों में दो से तीन प्रकार के पद एवं बड़े परीक्षण में चार से पाँच प्रकार के पद उनका प्रशासन कर देते हैं। प्रशासन में अनेक बातों का ध्यान रखते हैं जैसे-निर्देश स्पष्ट हों, किसी परीक्षार्थी को अन्य की अपेक्षा कोई सुविधा न दी जाये।

प्रश्न-उत्तम परीक्षण क्या है?

उत्तर-उत्तम परीक्षण वह परीक्षण है जो मानव-व्यवहार का वस्तुनिष्ठ एवं व्यापकता के साथ निरीक्षण करता है तथा समय,धन एवं व्यक्ति के दृष्टिकोण से यह सदैव मितव्ययी तथा प्रशासन,फलांकन एवं विवेचन के दृष्टिकोण से सुगम होता है। 

प्रश्न-उपलब्धि परीक्षण के निर्माण में कितने सोपान होते हैं?

उत्तर- उपलब्धि परीक्षण के निर्माण में चार सोपान है 

  1. उद्देश्यों का चयन एवं निर्धारण करना। 
  2. उद्देश्यों का विश्लेषण करना। 
  3. मूल्यांकन प्रविधियों का चयन करना। 
  4. प्रविधियों का प्रयोग एवं परिणाम निकालना।

प्रश्न-मौखिक परीक्षा के कितने भेद हैं?

उत्तर-मौखिक परीक्षा के दो भेद है 

  1. निबंधात्मक परीक्षा
  2. वस्तुनिष्ठ परीक्षा।

सामूहिक विधि (सामूहिक विधि द्वारा सीखना) प्रमुख विधियाँ, लाभ एवं दोष 

सामान्यतः यह देखा  बालक किसी भी कार्य को समूह में करना अधिक पसन्द करता है। बालक को उसके साथियों के साथ खेलना अधिक पसन्द होता है।  इस प्रकार बालको को उनके साथियों  समूह में बैठा कर अधिगम कराना सामूहिक विधि कहलाता है। जैसे-प्राथमिक विद्यालयों में बालको को समूह में बैढा कर गिनती अथवा कविता को सीखना। 

इस तरह बालको को अधिगम कराने के लिये विभिन्न सामूहिक विधियों का प्रयोग किया जाता है। 

प्रमुख सामूहिक विधियाँ 

  1. सांस्कृतिक कार्यक्रम 
  2. शैक्षिक भ्रमण द्वारा सीखना 
  3. समूह विधि द्वारा अधिगम
  4. शैक्षिक प्रदर्शनों द्वारा सीखना 
  5. सामूहिक प्रतियोगिता द्वारा अधिगम  
  6. शैक्षिक मेलों द्वारा सीखना 
  7. खेल द्वारा अधिगम 

सामूहिक विधियों के लाभ 

समूहिक विधि के निम्नलिखित लाभ है 

  1. बालक हमेशा समूह में कार्य करने के हमेशा तत्पर रहता है। इस प्रकार सामूहिक विधि अधिगम में सहायता प्रदान करती है। 
  2. सामूहिक विधि के अधिगम में बालको को कार्य करने का अवसर मिलता है। 
  3. सामूहिक विधि के द्वारा अधिगम में छात्र समायोजन को सिखाता है।  समायोजन के आभाव में छात्र शिक्षक, समाज, परिवार, अपने साथियों एवं विद्यालय से कुछ भी नहीं सिख सकता। 
  4. बालक समूह में बैठ कर विभिन्न अपने सहयोगियों से सीखता है साथ ही अपनी समस्याओं को उनके सामने प्रकट कर उनका समाधान प्राप्त करता है। 
  5. सामूहिक विधि अधिगम में प्रत्येक छात्र अपने समूह को अग्रसर करने का प्रयास करता है। 

समूह विधि के दोष 

  1. सामूहिक विधि से कार्य करने में छात्रों में उत्तरदायित्व की भावना का आभाव हो जाता है जिससे छात्र एक दूसरे पर दायित्व को सौप कर अपने दायित्व से बचने का प्रयास करता है। 
  2. समूह विधि में मन्द बुद्धि बालकों का समायोजन नहीं हो पाता है। 
  3. सामूहिक अधिगम में छात्र समूह के छात्रों से बात करने में व्यस्त हो जाते है उनको दिये गये कार्य पर ध्यान नहीं लगाता है। 

सम्मलेन व विचार संगोष्ठी विधि

सम्मलेन व विचार संगोष्ठी विधि एक ऐसी विधि है जिससे चिंतन स्तर के अधिगम के लिये अन्तः प्रक्रिया की परिस्थिति उत्पन्न की जाती है। 

विचार संगोष्ठी विधि की उपयोगिता 

  1. इस विधि से प्रजातान्त्रिक मूल्यों का विकास होता है।
  2. विचार संगोष्ठी विधि से आलोचनात्मक चिन्तन का विकास होता है। 
  3. संगोष्ठी विधि स्वतंत्र अध्ययन को प्रोत्साहित करती है।  
  4. इस विधि के माध्यम से शिक्षा के ज्ञानात्मक एवं भावात्मक उच्च उद्देश्यों की प्राप्ति की जाती है।
  5. विचार संगोष्ठी विधि से छात्रों में बोलने के कौशल का विकास होता है।  
  6. इस विधि से प्रस्तुतीकरण एवं तर्क करने की क्षमता का विकास होता है। 
  7. विचार संगोष्ढी विधि से छात्रों में सामाजिक तथा भावात्मक गुणों का विकास होता है। 

प्रोजेक्ट विधि

प्रोजेक्ट विधि की अवधारणा जॉन डीवी के द्वारा की गयी जबकि प्रोजेक्ट विधि का प्रतिपादन किलपैट्रिक ने किया। इस विधि में शिक्षक मार्गदर्शक के रूप में काम करता है।बालक द्वारा ही किसी को प्रोजेक्ट को  हल किया जाता है  उद्देश्य उद्देश्य पूर्ण होता हैं।इस विधि में पता करके सीखने पर बल दिया जाता है इस विधि में प्राप्त होने वाला ज्ञान स्थाई एवं स्पष्ट होता है। प्रयोजना विधि से बालकों में तारक चिंतन अन्वेषण शक्ति का विकास होता है। आत्मनिर्भर,सामाजिक गुणों से पूर्ण होते हैं। इस विधि में हाथ से कार्य करने पर बल दिया जाता है। शारीरिक व मानसिक परिश्रम करवाया जाता है। परियोजना विधि अधिक खर्चीली तथा अधिक समय लेने वाली होती है।

प्रोजेक्ट विधि की परिभाषा 

बेलार्ड के अनुसार "प्रोजेक्ट यथार्थ जीवन का एक ही भाग है जो विद्यालय में प्रयोग किया जाता है।''

पार्कर के अनुसार "प्रोजेक्ट कार्य की एक इकाई है जिसमे छात्रों को कार्य की योजना और सम्पन्नता के लिये उत्तारदायी बनाया जाता है "

स्टीवेन्सन के अनुसार "प्रोजेक्ट एक समस्या मूलक कार्य है,जो स्वाभाविक स्थिति में पूरा किया जाता है"

बेलार्ड के अनुसार "प्रोजेक्ट यथार्थ जीवन का एक ही भाग है, जो विद्यालय में प्रयोग किया जाता है"

प्रोजेक्ट का अर्थ

  1. प्रोजेक्ट रुचिपूर्ण होता है। 
  2. प्रोजेक्ट क्रिया सामाजिक वातावरण में की जाती है। 
  3. प्रत्येक प्रोजेक्ट का प्रयोजन होता है। 
  4. प्रत्येक प्रोजेक्ट को आरम्भ के बाद पूर्ण करना भी आवश्यक होता है

प्रोजेक्ट प्रणाली की विशेषताएँ 

  1. प्रोजेक्ट प्रणाली की निम्न लिखित विशेषताएँ होती है। 
  2. किसी भी योजना का व्यक्तिगत तथा सामाजिक रूप से उपयोगी होना अनिवार्य है। 
  3. योजना छात्रों के लिए चुनौतीपूर्ण एवं रोचक होनी चाहिए। 
  4. योजना ऐसी होनी चाहिये की छात्रों को इसके प्रयोग में कोई कठिनाई नहीं न हो। 
  5. योजना में विभिन्न प्रकार की क्रियाओं का समावेश होना चाहिए।

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शिक्षण अधिगम प्रबंधन के कितने सोपान होते हैं?

विस्तृत ज्ञान (Comprehensive knowledge)– (a) विषयवस्तु (Contents) का, (b) विद्यार्थी (Students) का, (c) शिक्षण-विधियाँ (Methods), शिक्षण युक्तियाँ (Devices) तथा शिक्षण तकनीकों (Techniques) का, (d) वातावरण (Environment) का। 4. प्रभावी सम्प्रेषण कौशल (Effective communication skill)।

सूक्ष्म शिक्षण के कितने चरण होते हैं?

सामान्य हिंदी सूक्ष्म शिक्षण के प्रमुख चरण 1. विशिष्ट कौशल को परिभाषित करना। 2. कौशल का प्रदर्शन।

सूक्ष्म शिक्षण कितने मिनट का होता है?

2- सूक्ष्म शिक्षण (Micro Teaching) एक व्यक्तिगत शिक्षण हैं। 3- सूक्ष्म शिक्षण में एक समय में एक ही कौशल का विकास करने का लक्ष्य रखा जाता हैं। 4- सूक्ष्म शिक्षण के अंतर्गत छात्रों की संख्या में कटौती करके 5-6 तक रखी जाती हैं। 5- सूक्ष्म शिक्षण में समय की अवधि को कम करके 5 से 10 मिनट तक रखा जाता हैं।

सूक्ष्म शिक्षण चक्र क्या है?

सूक्ष्म शिक्षण चक्र (Cycle of Micro-Teaching) शिक्षण अनेक कौशलों का योग है और एक साथ छात्राध्यापकों में अनेक कौशलों को उत्पन्न करना एक जटिल कार्य है। सूक्ष्म शिक्षण की सहायता से मनोवैज्ञानिक शिक्षण सूत्रों का अनुकरण करते हुए एक-एक करके वांछित कौशलों को अधिकाधिक रूप से भावी अध्यापकों में विकसित किया जाता है।