संविधान के उद्देश्यों को प्रकट करने हेतु प्राय: उनसे पहले एक उद्देशिका प्रस्तुत की जाती है। भारतीय संविधान की उद्देशिका आस्ट्रेलियाई संविधान से प्रभावित मानी जाती है[1]। उद्देशिका संविधान का सार मानी जाती है उसके लक्ष्य प्रकट करती है; संविधान का दर्शन भी इसके माध्यम से प्रकट होता है। संविधान किन आदर्शों, आकांक्षाओं को प्रकट करता है, इसका निर्धारण भी उद्देशिका से हो जाता है। सर्वोच्च न्यायालय के मतानुसार उद्देशिका का प्रयोग संविधान निर्माताओ के मस्तिष्क में झांकने और उनके उद्देश्य को जानने में प्रयोग की जा सकती है। उद्देशिका यह घोषणा करती है कि संविधान अपनी शक्ति सीधे जनता से प्राप्त करता है। इसी कारण यह ‘हम भारत के लोग’ से प्रारम्भ होती है। केहर सिंह बनाम भारत संघ के वाद में कहा गया कि संविधान सभा भारतीय जनता का सीधा प्रतिनिधित्व नहीं करती थी अत: संविधान विधि की विशेष अनुकृपा प्राप्त नहीं कर सकता है परंतु न्यायालय ने इसे खारिज करते हुए संविधान को सर्वोपरि माना है जिस पर कोई प्रश्न नहीं उठाया जा सकता है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना[संपादित करें]
उद्देशिका की प्रकृति[संपादित करें]
उद्देशिका के उद्देश्य[संपादित करें]
उद्देशिका संविधान के एक भाग के रूप में[संपादित करें]परम्परागत मत -- उद्देशिका को संविधान का भाग नहीं मानता है क्योंकि यदि इसे विलोपित भी कर दे तो भी संविधान अपनी विशेष स्थिति बनाये रख सकता है। इसे पुस्तक के पूर्व परिचय की तरह समझा जा सकता है यह मत सर्वोच्च न्यायालय ने बेरुबारी यूनियन वाद 1960 में प्रकट किया था। सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि जहाँ संविधान की भाषा संदिग्ध हो, वहाँ प्रस्तावना विविध निर्वाचन में सहायता करती है। इसीलिए "विधायिका" प्रस्तावना में संशोधन नहीं कर सकती। नवीन मत-- इसे संविधान का एक भाग बताता है केशवानन्द भारती बनाम केरल राज्य 1973 में दिये निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने इसे संविधान का भाग बताया है। संविधान का एक भाग होने के कारण ही संसद ने इसे 42वें संविधान संशोधन से इसे सशोधित किया था तथा समाजवादी, पंथनिरपेक्ष और अखंण्डता शब्द जोड़ दिये थे। वर्तमान में नवीन मत ही मान्य है। उद्देशिका के आदर्श[संपादित करें]उद्देशिका के आदर्श अग्रलिखित है- कम या अधिक मात्रा में प्राप्त
कर लिये गये हैं उद्देशिका के शब्दों का विश्लेषण[संपादित करें]सम्प्रभु -- राज्य की सर्वोपरि राजनैतिक शक्ति है कि घोषणा करती है, राज्य की राजनैतिक सीमाओं के भीतर इसकी सत्ता सर्वोपरि है, तथा यह किसी बाहरी शक्ति की प्रभुता स्वीकार नहीं करती है। समाजवादी-- भारतीय समाजवाद अनिवार्य रूप से लोक तांत्रिक होना चाहिए। समाजवादी लक्ष्यों की प्राप्ति लोक तांत्रिक माध्यमों से होनी चाहिए। यह शब्द भारत को एक जनकल्याणकारी राज्य के रूप में स्थापित कर देता है। पंथनिरपेक्षता-- इसका अर्थ लौकिकता को आध्यात्मिक्ता पर वरीयता देना है, धर्म पर आधारित भेदों का सम्मान करना, अन्य धर्मों के प्रति
राज्य द्वारा तटस्थता बरतना ही धर्म निरपेक्षता है, ऐसे राज्य किसी एक धर्म को प्रोत्साहन ना देकर विविध धर्मो के मध्य सहिष्णुता तथा सहयोग बढाने का कार्य करें यह एक कर्तव्य है जिसके पालन से विभिन्न धर्मो के बीच सहस्तित्व स्वीकार किया जाता है। इसका लाभ यह है कि राज्य किसी धर्म के अधीन नहीं होता है जैसे इस्लामिक गणतंत्र ईरान में इस्लाम गणतंत्र से भी अधिक महत्वपूर्ण है।
गणतंत्र -- राजप्रमुख निर्वाचित होगा न कि वंशानुगत अपेक्षाएँ[संपादित करें](1) न्याय-- सामाजिक आर्थिक तथा राजनैतिक न्याय के वे प्रकार है जो संविधान मे भारतीय नागरिकों को देने की वकालत की गयी है,1 व्यक्ति 1 वोट राजनैतिक न्याय की प्राप्ति हेतु आवश्यक है[19,326], सामाजिक न्याय की प्राप्ति हेतु अस्पृश्यता का उन्मूलन, उपाधि का उन्मूलन किया गया है,[अनु 15,16,17,18], आर्थिक न्याय हेतु राज्य हेतु नीति निर्देशक तत्वॉ प्रावधान रखा गया है (2) स्वतंत्रता-- इसका अर्थ नागरिक पर बाध्यकारी तथा बाहरी प्रतिबंधों का अभाव है, एक नागरिका द्वारा दूसरे के अधिकारों का उल्लघंन करना निषेधित है, नागरिक स्वतंत्रता अनुच्छेद 19 में तथा धार्मिक स्वतंत्रता अनु 25-28 मे वर्णित है। (3)समानता-- स्तर तथा अवसरों की समानता स्थापित करना अनु 14 से 18 मे वर्णित है। (4) बंधुत्व -- भारतीय नागरिकों के मध्य बंधुत्व की भावना स्थापित करना, क्योकि इस के बिना देश में एकता स्थापित नहीं की जा सकती है सन्दर्भ[संपादित करें]
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
भारत के संविधान की उद्देशिका में कौन कौन से शब्द है?इन शब्दों को 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा संविधान में शामिल किया गया था। इस संशोधन के द्वारा "समाजवादी" और "धर्मनिरपेक्ष" शब्दों को "प्रभुत्वंसम्पन" और "लोकतांत्रिक" शब्दों के मध्य जोड़ा गया था और शब्द "राष्ट्र की एकता" के स्थान पर "राष्ट्र की एकता और अखंडता" को शामिल किया गया था।
संविधान की प्रस्तावना में कितने शब्द हैं?प्रस्तावना में जो प्रारंभिक पांच शब्द हैं... संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक, गणराज्य . आपको बता दें, ये पांच शब्द हमारे संविधान के स्वरूप को दर्शाते हैं. वहीं प्रस्तावना के अंतिम शब्द वह इसके उद्देश्य को दर्शाते हैं.
संविधान की उद्देशिका में कौन सा शब्द नहीं है?लोक कल्याण, शब्द संविधान की प्रस्तावना में नहीं है।
संविधान की प्रस्तावना में क्या लिखा है?प्रस्तावना की शुरुआत "हम भारत के लोग" से शुरू होती है और "26 नवंबर 1949 अंगीकृत" पर समाप्त होती है. नेहरू द्वारा प्रस्तुत उद्देश्य संकल्प में जो आदर्श प्रस्तुत किया गया उन्हें ही संविधान की उद्देशिका में शामिल कर लिया गया. संविधान के 42वें संशोधन (1976) द्वारा संशोधित यह उद्देशिका कुछ इस तरह है.
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