Students can prepare for their exams by studying NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 12 सुदामा चरित was designed by our team of subject expert teachers. प्रश्न-अभ्यास कविता से प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. (ख) कथन की पृष्ठभूमि-गरीब सुदामा श्रीकृष्ण के पास कुछ आर्थिक सहायता की आशा लेकर गए थे। जाते समय उनकी पत्नी ने श्रीकृष्ण को उपहार में देने के लिए एक पोटली में कुछ चावल भिजवा दिए थे। श्रीकृष्ण द्वारका के राजा थे। वे नाना प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन खाया करते थे। सुदामा सोच रहे थे कि ऐसे राजा को ये चावल कैसे भेंट करूं। इसी इंद्र में फंसे सुदामा उस चावल की पोटली को दबाकर छिपाने का प्रयास कर रहे थे। यह देखकर ही श्रीकृष्ण ने ऐसा कहा
था। (ग) उपालंभ के पीछे पौराणिक कथा-श्रीकृष्ण और सुदामा बचपन में गुरु संदीपनि के आश्रम में साथ-साथ शिक्षा ग्रहण करते थे। एक दिन आश्रम में भोजन बनाने के लिए लकड़ियाँ खत्म हो गईं। ऋषि संदीपनि की पत्नी ने कृष्ण और सुदामा को जंगल में लकड़ियाँ लेने भेज दिया। उन्होंने उन दोनों को भूख लगने पर चबाने के लिए चने एक पोटली में दे दिए, जिसे सुदामा ने अपने पास रख लिया था। जंगल में पहुंचकर कृष्ण एक पेड़ पर चढ़ कर लकड़ियाँ तोड़ने लगे और नीचे खड़े सुदामा उनको एकत्र करने लगे। इसी बीच अचानक मौसम खराब हुआ और वर्षा होने लगी। हवा चलने से ठंडक बढ़ गई। श्रीकृष्ण उस समय पेड़ पर ही थे। नीचे पेड़ के तने के पास खड़े सुदामा गुरुमाता के दिए चने चबाने लगे। कच्चे चने चबाने से होने वाली आवाज सुनकर श्रीकृष्ण ने सुदामा से पूछा, “मित्र! क्या खा रहे हो?” सुदामा ने कहा, “मित्र! कुछ भी नहीं। सर्दी के कारण दाँत किटकिटा रहे हैं। इस प्रकार सुदामा श्रीकृष्ण से चोरी-चोरी चने खा गए। प्रश्न 4.
सुदामा श्रीकृष्ण के व्यवहार से इसलिए खीज रहे थे कि द्वारका से विदा करते समय श्रीकृष्ण ने उन्हें प्रत्यक्ष रूप से कुछ नहीं दिया था। प्रश्न 5.
प्रश्न 6. कहाँ तो सुदामा को पूरी रात कठोर जमीन पर बितानी होती थी और अब तो उन्हें मुलायम गद्दों से युक्त बिस्तर पर भी नींद नहीं आती है। कहाँ तो उन्हें खाने के लिए सर्वां और कोषों भी नहीं मिलते थे और अब ईश्वर की कृपा से अत्यंत स्वादिष्ट भोजन और अंगूर भी अच्छे नहीं लगते हैं। कविता के आगे प्रश्न 1. अर्जुन ने ऐसा ही किया। अपमानित द्रुपद ने इस कामना से तपस्या की कि उन्हें एक बेटी हो, जिसे वे अर्जुन को ब्याह सके और एक पुत्र हो जो द्रोणाचार्य को मार सके। इसी घृष्टद्युम्न नामक वीर ने महाभारत के युद्ध में द्रोणाचार्य को मार गिराया तथा द्रुपद की पुत्री द्रौपदी से अर्जुन का विवाह हुआ। सुवामा कथानक से तुलना-कृष्ण-सुदामा और दुपद द्रोणाचार्य की मित्रता की परिणति विपरीत थी। एक ओर श्रीकृष्ण ने जहाँ सुदामा को अपने समान ही राज्य का राजा बना दिया, वहीं दुपद और द्रोण जो बचपन के मित्र थे, एक-दूसरे की जान के दुश्मन बन गए और अवसर मिलते ही एक ने दूसरे की जान ले ली। प्रश्न 2. अनुमान और कल्पना प्रश्न 1. प्रश्न 2. भाषा की बात – (क) “पानी परात को हाथ छुयो नहि, नैनन के जल सो पग धोए” ऊपर लिखी गई पंक्ति को ध्यान से पढ़िए। इसमें बात को बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ाकर चित्रित किया गया है। जब किसी बात को इतना बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है तो वहाँ पर अतिशयोक्ति अलंकार होता है। आप भी कविता में से एक अतिशयोक्ति अलंकार का उदाहरण | छाँटिए। कुछ करने को प्रश्न 1. सुदामा – (द्वारपाल से) क्या तुम बता सकते हो कि यहाँ श्रीकृष्ण का महल कौन-सा है? द्वारपाल – क्या नाम है आपका? सुदामा – सुदामा? द्वारपाल – महाराज, प्रभु श्रीकृष्ण का महल तो यही है। सुदामा – अपने प्रभु श्रीकृष्ण से कह दो कि सुदामा उनसे मिलने आया है। [द्वारपाल महल में श्रीकृष्ण को सूचना देने के लिए जाता है। द्वारपाल – [श्रीकृष्ण से] प्रभु आप से कोई मिलने आया है। श्रीकृष्ण-कैसा है वह व्यक्ति? द्वारपाल – उसके सिर पर पगड़ी और शरीर पर कुर्ता नहीं है। पैरों में जूते नहीं हैं। वह एक दुर्बल सा ब्राह्मण है और अपना नाम सुदामा बता रहा है। [सुदामा नाम सुनते ही श्रीकृष्ण राजसिंहासन छोड़कर सुदामा के पास आते हैं और उन्हें महल में ले जाकर सिंहासन पर बिठाकर उनके पैर धोते हैं। उनके बिवाई फटे तथा काँटे चुभे पैर देखकर श्रीकृष्ण रो पड़ते हैं।] श्रीकृष्ण – [सुदामा से] मित्र तुम इतने कष्ट सहते रहे। अब तक यहाँ क्यों नहीं आ गए? [कुछ देर बाद सुदामा अपने साथ लाए चावल को दबाकर काँख में छिपाने का प्रयास करते हैं। श्रीकृष्ण उसे ऐसा करते हुए देख लेते हैं।] श्रीकृष्ण – [सुदामा से] मित्र! भाभी के दिए हुए इन अमृत से सने चावलों को तुम किसके लिए छिपा रहे हो। [मुस्कुराते हुए] चोरी की आदत में तुम अत्यंत चतुर हो। . [यह कहकर श्रीकृष्ण उन चावलों में से कुछ चावल खा लेते हैं।] हँसी खुशी कुछ दिन बिताने के बाद श्रीकृष्ण सुदामा को खाली हाथ विदा करते हैं। सुदामा अपने गाँव आते हैं। सुदामा – [अपने आप से] मैं व्यर्थ ही द्वारका चला आया। श्रीकृष्ण ने कुछ मदद तो की नहीं। आखिर है तो वही कृष्ण जो बचपन में जरा-सी दही के लिए हाथ फैलाते फिरता था। अब चलकर अपनी पत्नी से कहूँगा कि श्रीकृष्ण ने धन दिया है, उसे संभालकर रख लो। [अपने गाँव पहुँचने पर]. सुदामा – [अपने आप से] ये कैसा भ्रम मुझे हो रहा है। यहाँ तो सारे महल द्वारका जैसे ही हैं। क्या मैं मार्ग भूलकर द्वारका वापस तो नहीं आ गया हूँ। [गाँव के ही किसी व्यक्ति से] भाई बताना, यहीं सुदामा नामक गरीब ब्राह्मण की झोपड़ी हुआ करती थी। आखिर वह कहाँ गई? व्यक्ति – यह सुदामा का ही भवन (महल) है। वह देखो दरवाजे पर सुदामा की पत्नी ही रानियों की-सी वेशभूषा में खड़ी है।
प्रश्न 2. प्रश्न 3.
जे न मित्र दुख होहि दुखारी। तिनहिं बिलोकत पातक भारी।। (चौपाई-तुलसीदास) ‘मित्रता’ संबंधी अन्य दोहों का संकलन छात्र स्वयं करें। सुदामा कृष्ण के लिए क्या भेंट लेकर गए?कृष्ण एक राजा थे और सुदामा एक गरीब ब्राह्मण। फिर भी कृष्ण और सुदामा की दोस्ती एक मिसाल है। कृष्ण और सुदामा की दोस्ती के कई किस्से आपने सुने होंगें। जैसे, गरीब सुदामा कृष्ण से मिलने उनके महल पहुंचे थे तो वह भगवान कृष्ण के लिए महज तीन मुट्ठी चावल लेकर गए थे।
कृष्ण भगवान ने सुदामा को क्या दिया?सुदामा की कैशलेश मदद
आपके मित्र भगवान श्री कृष्ण की कृपा से अब हमारे पास किसी चीज की कोई कमी नहीं है। इस तरह भगवान श्री कृष्ण ने कैश न देकर सुदामा की कैशलेश मदद की।
श्री कृष्ण ने सुदामा के स्वागत के लिए क्या क्या किया?जब सुदामा दीन-हीन अवस्था में कृष्ण के पास पहुँचे तो कृष्ण उन्हे देखकर व्यथित हो उठे। उनकी फटी हुई एड़ियाँ व काँटे चुभे पैरों की हालत उनसे देखी न गई। परात में जो जल सुदामा के चरण धोने हेतु मँगवाया गया था उसे कृष्ण ने हाथ न लगाया। अपने आँसुओं के जल से ही उनके पाँव धो डाले।
सुदामा श्री कृष्ण को लाया गया उपहार देने में संकोच क्यों कर रहे थे?उत्तर: द्वारका आते समय सुदामा की पत्नी ने कृष्ण के लिए उपहारस्वरूप थोड़े-से चावल एक पोटली में बाँधकर दिए थे। द्वारका पहुँचकर जब सुदामा ने कृष्ण का शाही वैभव तथा एशो-आराम देखा तो उन्होंने कृष्ण जैसे बड़े राजा के लिए चावल जैसा तुच्छ उपहार देना उचित न समझा। इसलिए वे संकोच कर रहे थे।
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